CBSE Class 10 Hindi (Course B) Sparsh Bhag 2 Book Chapter 11 Teesri Kasam Ke Shilpkaar Shailendra Question Answers from previous years question papers (2019-2025) with Solutions

 

Teesri Kasam Ke Shilpkaar Shailendra Previous Year Questions with Answers –  Question Answers from Previous years Question papers provide valuable insights into how chapters are typically presented in exams. They are essential for preparing for the CBSE Board Exams, serving as a valuable resource.They can reveal the types of questions commonly asked and highlight the key concepts that require more attention. In this post, we have shared Previous Year Questions for Class 10 Hindi (Course B) Sparsh Bhag 2 Book Chapter 11, “Teesri Kasam Ke Shilpkaar Shailendra”.

Questions from the Chapter in 2025 Board Exams

प्रश्न 1 – शैलेंद्र ने साहित्य की एक अत्यंत मार्मिक कृति को सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता से उतारा है।तीसरी क़समफ़िल्म के आधार पर सिद्ध कीजिए । (25-30 शब्दों में)

उत्तर – शैलेंद्र ने ‘तीसरी क़सम’ फ़िल्म के माध्यम से फणीश्वरनाथ रेणु की कृति को सैल्यूलाइड पर पूरी सार्थकता से प्रस्तुत किया। उन्होंने फिल्म में भावनाओं और करुणा को वास्तविकता के साथ, बिना किसी अतिशयोक्ति के, दिखाया। शैलेंद्र की सटीक गीत-रचनाएँ और राजकपूर का उत्कृष्ट अभिनय मिलकर इस फिल्म को एक साहित्यिक कृति के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो दर्शकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ती है।

Questions which came in 2024 Board Exam

 

प्रश्न 1 – “तीसरी कसम’ एक कलात्मक फिल्म थी। ‘ – इस कथन को ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – ‘तीसरी कसम’ फिल्म कवि शैलेंद्र के जीवन की पहली और अंतिम फिल्म है। इस फिल्म को बहुत सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यह फिल्म कला से परिपूर्ण थी जिसके लिए इस फिल्म की बहुत तारीफ़ हुई थी। इस फिल्म में शैलेंद्र की भावुकता पूरी तरह से दिखाई देती है। अभिनय को देखते हुए ‘तीसरी कसम’ फिल्म राज कपूर के द्वारा उनके जीवन में की गई सभी फिल्मों में से सबसे खूबसूरत फिल्म मानी जाती है। राज कपूर को एशिया के सबसे बड़े शोमैन का ख़िताब हासिल था। वे अपनी आँखों से अभिनय करने और अपनी आँखों से ही भावनाओं को दिखने में माहिर थे। इसके विपरीत शैलेंद्र एक उमदा गीतकार थे जो भावनाओं को कविता का रूप देने में माहिर थे। शैलेंद्र ने राजकपूर की भावनाओं को अपनी कविता और फिल्म की कहानी में शब्द रूप दिए और राजकपूर ने भी उनको बड़ी ही बखूबी से निभाया।

 

प्रश्न 2 – ‘तीसरी कसम’ फिल्म को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

उत्तर – ‘तीसरी कसम’ चाहे आज बहुत कामयाब फिल्मों में गिनी जाती हो, लेकिन यह एक कड़वा सच रहा है कि इसे परदे पर दिखाने और प्रसारित करने के लिए लोग बहुत ही मुश्किल से मिले थे। इस फिल्म की कहानी में जो भावनाएँ थी उनको समझना किसी मुनाफा कमाने वालों के लिए आसान नहीं था। इस फिल्म में जिस करुणा के साथ भावनाओं को दर्शाया गया था उनको किसी तराज़ू में नहीं तौला जा सकता था। यहाँ तक कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म में राजकपूर और वहीदा रहमान जैसे बेहतरीन कलाकार थे, शंकर-जयकिशन का संगीत था, जिनका संगीत उस समय सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला था और-तो-और इस फिल्म के परदे पर आने से पहले ही इस फिल्म के गीत बहुत ज्यादा पसंद किये जा चुके थे, परन्तु इतना सब कुछ होने के बाद भी इस फिल्म को खरीदने वाला कोई नहीं था।

 

प्रश्न 3 – ‘तीसरी कसम फिल्म नहीं, सैल्यूलाइड पर लिखी कविता थी।’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए।

उत्तर – 1966 में कवि शैलेंद्र के द्वारा बनाई गई फिल्म ‘तीसरी कसम’ हिंदी साहित्य की एक दिल को छू लेने वाली कहानी थी, जिसको बड़ी ही सफलता के साथ कैमरे की रील में उतार कर चलचित्र द्वारा प्रस्तुत किया गया था। कहा जा सकता है कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म नहीं बल्कि कवि शैलेंद्र द्वारा कैमरे की रील पर लिखी गई एक कविता थी। ‘तीसरी कसम’ फिल्म कवि शैलेंद्र के जीवन की पहली और अंतिम फिल्म है। इस फिल्म को बहुत सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। ‘तीसरी कसम’ को ‘राष्ट्रपति स्वर्णपदक’ दिया गया, बंगाल फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा भी इस फिल्म को सबसे अच्छी फिल्म के लिए पुरस्कृत किया गया और भी बहुत सारे पुरस्कारों द्वारा इस फिल्म को सम्मानित किया गया। मास्को फिल्म फेस्टिवल में भी इस फिल्म को पुरस्कृत किया गया था। यह फिल्म कला से परिपूर्ण थी जिसके लिए इस फिल्म की बहुत तारीफ़ हुई थी। इस फिल्म में शैलेंद्र की भावुकता पूरी तरह से दिखाई देती है। शैलेंद्र ने ऐसी फिल्म बनाई थी जिसे सिर्फ एक सच्चा कवि-हृदय ही बना सकता था क्योंकि इतनी भावुकता केवल एक कवि के हृदय में ही हो सकती है।

 

प्रश्न 4 – ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि सिनेमा की चकाचौंध के बीच रहते हुए भी शैलेंद्र यश और धन-लिप्सा से कोसों दूर थे।

उत्तर – राज कपूर जानते थे कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म शैलेंद्र की पहली फिल्म है इसलिए उन्होंने एक अच्छे और सच्चे मित्र के नाते शैलेंद्र को फिल्म की असफलता के खतरों से भी परिचित करवाया। परन्तु शैलेंद्र तो एक सज्जन, भावनाओं में बहने वाला व्यक्ति था, जिसको न तो अधिक धन-सम्पति का लालच था न ही नाम कमाने की इच्छा। उसे तो केवल अपने आप से संतोष की कामना थी। ‘तीसरी कसम’ चाहे आज बहुत कामयाब फिल्मों में गिनी जाती हो, लेकिन यह एक कड़वा सच रहा है कि इसे परदे पर दिखाने और प्रसारित करने के लिए लोग बहुत ही मुश्किल से मिले थे।

 

प्रश्न 5 – ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के आधार पर सिद्ध कीजिए कि मूल कहानी का रेशा-रेशा, छोटी-छोटी बारीकियाँ तीसरी कसम फिल्म में उतर आई हैं।

उत्तर – इस फिल्म की कहानी में जो भावनाएँ थी उनको समझना किसी मुनाफा कमाने वालों के लिए आसान नहीं था। इस फिल्म में जिस करुणा के साथ भावनाओं को दर्शाया गया था उनको किसी तराज़ू में नहीं तौला जा सकता था। ‘प्यार हुआ, इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल।’ इसके एक अंतरे की एक पंक्ति है -‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’, इस पंक्ति में संगीतकार जयकिशन का मानना था कि दर्शकों को चार दिशाएँ तो समझ आ सकती है परन्तु दर्शक दस दिशाओं को समझने में परेशान हो सकते हैं। लेकिन शैलेन्द्र का मानना था कि एक कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह दर्शकों की पसंद को अच्छा और सुंदर भी बनाने की कोशिश करे। ‘तीसरी कसम’ उन कुछ सफल फिल्मों में से है जिन्होंने साहित्य-रचना के साथ शत-प्रतिशत न्याय किया है। शैलेंद्र ने राजकपूर जैसे उमदा कलाकार को अपनी फिल्म में एक छोटा आदमी ‘हिरामन’ बना दिया था। राजकपूर ने भी हिरामन की भूमिका को इतनी बखूबी से निभाया की सभी को राजकपूर, हिरामन ही लगे। और छींट की सस्ती साड़ी पहन कर वहीदा रहमान ने जब हीराबाई का किरदार किया तो लोग वहीदा रहमान की प्रसिद्ध ऊँचाइयों को भूल गए। फिल्म में जब कजरी नदी के किनारे घुटने मोड़कर पैर के तलवों के सहारे बैठा हिरामन गीत गाते हुए हीराबाई से पूछता है ‘मन समझती हैं ना आप’, तब हीराबाई ज़ुबान से कुछ नहीं कहती, परन्तु आँखों ही आँखों से सब कुछ बोलती है और दुनिया-भर के शब्द उस भाषा को प्रकट नहीं कर सकते कि हीराबाई क्या कहती है। ऐसी बहुत सी बारीकियों से सजाई गई थी फिल्म- ‘तीसरी कसम’। अपनी मस्ती में डूबकर झूमता हुआ गाड़ीवाला गाना गा रहा है- ‘चलत मुसाफ़िर मोह लियो रे पिंजरे वाली मुनिया’। अर्धगोलाकार छप्पर युक्त बैलगाड़ी में हीराबाई को जाते हुए देख कर उसके पीछे दौड़ते हुए और गाना गाते हुए बच्चों की भीड़- ‘लाली-लाली डोलिया में लाली रे दुलहनिया’, किसी नाटक में काम करने वाली बाई में अपनापन खोज लेने वाला सरल हृदय वाला गाड़ीवान! जिंदगी में कई कमियों को झेलते हुए लोगों के सपनों की कहानियाँ, इसी तरह की बहुत सी बारीकियों वाली फिल्म है ‘तीसरी कसम’।

 

प्रश्न 6 – फिल्मकार शैलेंद्र के बारे में लेखक ने क्या कहा है? उन कथनों से आपके मन में शैलेंद्र की कौन-सी छवि उभरती है?

उत्तर – ‘तीसरी कसम’ को आज इसलिए भी याद किया जाता है क्योंकि इस फिल्म को बनाने के बाद यह भी सिद्ध हो गया कि हिंदी फिल्म जगत में एक सार्थक और उद्द्येश्य से भरपूर फिल्म को बनाना कितना कठिन और कितना जोख़िम भरा काम है। ‘तीसरी कसम’ फिल्म नहीं बल्कि कवि शैलेंद्र द्वारा कैमरे की रील पर लिखी गई एक कविता थी। ‘तीसरी कसम’ फिल्म कवि शैलेंद्र के जीवन की पहली और अंतिम फिल्म है। इस फिल्म को बहुत सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। यह फिल्म कला से परिपूर्ण थी जिसके लिए इस फिल्म की बहुत तारीफ़ हुई थी। इस फिल्म में शैलेंद्र की भावुकता पूरी तरह से दिखाई देती है। शैलेंद्र को न तो अधिक धन-सम्पति का लालच था न ही नाम कमाने की इच्छा। उसे तो केवल अपने आप से संतोष की कामना थी। शैलेंद्र ने कभी भी झूठे रंग-ढ़ग या दिखावे को नहीं अपनाया। इन कथनों से हमारे मन में शैलेंद्र की सरल व् भावुक छवि उभरती है। 

 

प्रश्न 7 – फ़िल्मकार शैलेंद्र के जीवन की कौन-सी विशेषताएँ आप अपनाना चाहेंगे और क्यों? ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ के संदर्भ में लिखिए।

उत्तर – शैलेंद्र ने कभी भी झूठे रंग-ढंग या दिखावे को नहीं अपनाया। उनकी इसी विशेषता को हम अपने जीवन में भी अपनाना चाहेंगे क्योंकि बिना दिखावे के हम अपने असली व्यक्तित्व को सभी के समक्ष ज्यों का त्यों रख सकते हैं और झूठे रंग-ढंग से दूर रह कर हम अपने मानसिक तनाव से कोसों दूर रह सकते हैं। जिस तरह शैलेंद्र मानते थे कि दर्शकों की पसंद को ध्यान में रखकर किसी भी फिल्म निर्माता को कोई भी बिना मतलब की चीज़ दर्शकों को नहीं दिखानी चाहिए। उसी तरह हम भी बिना मतलब की कोई बात किसी से नहीं करना चाहेंगे क्योंकि बिना मतलब के कोई बात कहने पर न तो हमारी बात का कोई मूल्य ही रह जाएगा और न ही कोई हमारी बातों पर अमल करेगा। 

 

प्रश्न 8 – ‘शैलेंद्र’ से फ़िल्म की कहानी सुनकर राजकपूर ने अपनी प्रतिक्रिया कैसे व्यक्त की और सच्ची दोस्ती का निर्वाह किस प्रकार किया? ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर – फिल्म को देखकर ऐसा लगता है कि शैलेंद्र ने फिल्म को पहले नहीं लिखा बल्कि राजकपूर की भावनाओं को ही बाद में शब्द दे दिए हों। राजकपूर ने भी अपने परम मित्र की फिल्म में बहुत मन लगाकर काम किया था, बिना किसी मेहनताने की परवाह किए । जब शैलेंद्र राजकपूर के पास ‘तीसरी कसम’ फिल्म की कहानी को ले कर गए तो उन्होंने बड़े ही उत्साह के साथ फिल्म में काम करना स्वीकार कर लिया। परन्तु तुरंत ही बड़ी गंभीरता के साथ बोले कि शैलेंद्र को उनका मेहनताना पहले ही दे देना होगा। शैलेन्द्र को ऐसी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी क्योंकि राजकपूर उनके बहुत पुराने मित्र थे और पुराना मित्र इस तरह से पूरी जिंदगी-भर की दोस्ती का बदला लेगा ये कभी नहीं सोचा था। शैलेंद्र का चेहरा मुरझा गया और शैलेंद्र का मुरझाया हुआ चेहरा देखकर राजकपूर मुस्कुरा कर बोले कि निकालो एक रूपया, उनका पूरे-का-पूरा मेहनताना वो भी फिल्म से पहले। शैलेंद्र राजकपूर के इस दोस्ताना-अंदाज को जानते तो थे परन्तु एक फिल्म निर्माता के रूप में बड़े-बड़े सूझ-बूझ से व्यवसाय करने वाले भी चक्कर खा जाते हैं। फिर शैलेंद्र तो अभी इस व्यवसाय में नए थे क्योंकि यह उनकी पहली फिल्म थी। राजकपूर जानते थे कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म शैलेंद्र की पहली फिल्म है इसलिए उन्होंने एक अच्छे और सच्चे मित्र के नाते शैलेंद्र को फिल्म की असफलता के खतरों से भी परिचित करवाया। 

 

प्रश्न 9 – कलाकार या फ़िल्म को लेकर शैलेंद्र की सोच आम लोगों से हटकर क्यों थी? कारण सहित स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – राजकपूर जानते थे कि ‘तीसरी कसम’ फिल्म शैलेंद्र की पहली फिल्म है इसलिए उन्होंने एक अच्छे और सच्चे मित्र के नाते शैलेंद्र को फिल्म की असफलता के खतरों से भी परिचित करवाया। परन्तु शैलेंद्र तो एक सज्जन भावनाओं में बहने वाला व्यक्ति था, जिसको न तो अधिक धन-सम्पति का लालच था न ही नाम कमाने की इच्छा। उसे तो केवल अपने आप से संतोष की कामना थी। शैलेन्द्र का मानना था कि दर्शकों की पसंद को ध्यान में रखकर किसी भी फिल्म निर्माता को कोई भी बिना मतलब की चीज़ दर्शकों को नहीं दिखानी चाहिए। उनका मानना था कि एक कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह दर्शकों की पसंद को अच्छा और सुंदर भी बनाने की कोशिश करें। और शैलेंद्र का यह यकीन गलत नहीं था क्योंकि दर्शक जो देखता है उसी को सच भी मान लेता है। शैलेंद्र ने कभी भी झूठे रंग-ढंग या दिखावे को नहीं अपनाया। यही कारण था कि शैलेंद्र की सोच आम लोगों से हटकर थी। 

 

प्रश्न 10 – ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ के संदर्भ में लिखिए कि संगीतकार जयकिशन और शैलेंद्र में किस बात को लेकर सहमति नहीं बन पा रही थी? उन दोनों के तर्कों को प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर – ‘श्री 420’ का एक बहुत ही अधिक पसंद किया गया गीत है -‘प्यार हुआ, इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यूँ डरता है दिल।’ इसके एक अंतरे की एक पंक्ति है -‘रातें दसों दिशाओं से कहेंगी अपनी कहानियाँ’, इस पंक्ति में संगीतकार जयकिशन ने आपत्ति जताई थी। उनका मानना था कि दर्शकों को चार दिशाएँ तो समझ आ सकती है परन्तु दर्शक दस दिशाओं को समझने में परेशान हो सकते हैं। लेकिन शैलेन्द्र इस पंक्ति को बदलने के लिए तैयार नहीं हुए। वे चाहते थे कि दर्शकों की पसंद को ध्यान में रख कर किसी भी फिल्म निर्माता को कोई भी बिना मतलब की चीज़ दर्शकों को नहीं दिखानी चाहिए। उनका मानना था कि एक कलाकार का यह कर्तव्य भी है कि वह दर्शकों की पसंद को अच्छा और सुंदर भी बनाने की कोशिश करे। और शैलेंद्र का यह यकीन गलत नहीं था क्योंकि दर्शक जो देखता है उसी को सच भी मान लेता है। शैलेंद ने जो भी गीत लिखे वे सभी बहुत पसंद किये जाते रहे है। शैलेंद्र ने कभी भी झूठे रंग-ढ़ग या दिखावे को नहीं अपनाया। वे अपने गीतों में भावनाओं को अधिक महत्त्व देने वाले थे न की अपने गीतों को कठिन बनाने वाले।

 

Questions that appeared in 2023 Board Exams

 

प्रश्न 1 – ‘तीसरी कसम के शिल्पकार शैलेंद्र’ पाठ से लिए गए कथन – “ऐसा नहीं कि शैलेंद्र बीस सालों तक फ़िल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वहाँ के तौर-तरीकों से नावाकिफ थे, परंतु उनमें उलझकर वे अपनी आदमियत नहीं खो सके थे।” – के संदर्भ में शैलेंद्र की विशेषताएँ लिखिए।

उत्तर – ऐसा बिलकुल नहीं था कि शैलेन्द्र बीस सालों तक फिल्म जगत में रहे और उनको वहाँ के रहन-सहन या रंग-ढंग के बारे में कोई ज्ञान नहीं था। परन्तु बात तो यह थी कि वे फिल्म जगत के उस रंग-ढंग में फंसकर अपनी इंसानियत को भूलना नहीं चाहते थे। इस आधार पर कहा जा सकता है कि शैलेंद्र एक आदर्शवादी भावुक कवि थे और उनका यही स्वभाव उनके गीतों में भी झलकता था। उन्होंने झूठे दिखावों को कोई स्थान नहीं दिया। शैलेंद्र को न तो अधिक धन-सम्पति का लालच था न ही नाम कमाने की इच्छा। उसे तो केवल अपने आप से संतोष की कामना थी। उनके गीतों में भावों की प्रधानता थी और वे आम जनजीवन से जुड़े हुए थे। शैलेंद्र एक कवि और सफल गीतकार थे। उनके लिखे गीतों में अनेक विशेषताएँ दिखाई देती हैं। उनके गीत सरल, सहज भाषा में होने के बावजूद बहुत बड़े अर्थ को अपने में समाहित रखते थे। उनके गीतों में करुणा के साथ-साथ संघर्ष की भावना भी दिखाई देती है। उनके गीत मनुष्य को जीवन में दुखों से घबराकर रुकने के स्थान पर निरंतर आगे बढ़ने का संदेश देते हैं। 

 

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