शक्ति की महिमा पाठ सार
JKBOSE Class 10 Hindi Chapter 5 “Shakti ki Mahima”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Bhaskar Bhag 2 Book
शक्ति की महिमा सार – Here is the JKBOSE Class 10 Hindi Bhaskar Bhag 2 Book Chapter 5 Shakti ki Mahima Summary with detailed explanation of the lesson ‘Shakti ki Mahima’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए जम्मू और कश्मीर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कक्षा 10 हिंदी भास्कर भाग 2 के पाठ 5 शक्ति की महिमा पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 शक्ति की महिमा पाठ के बारे में जानते हैं।
Shakti ki Mahima (शक्ति की महिमा)
– डॉ. अजय कुमार सिंह
‘शक्ति की महिमा’ कविता डॉ. अजय कुमार सिंह द्वारा रचित एक प्रेरणादायक कविता है। इस कविता में कवि ने ‘शक्ति’ को केवल बाहरी बल नहीं, बल्कि मातृशक्ति, आत्मबल, ममता, समानता और सृजन की मूल प्रेरणा के रूप में प्रस्तुत किया है। कविता में शक्ति को जीवन की मूल धारा बताया गया है, जिससे मनुष्य की पहचान, भावना, अभिव्यक्ति और विकास संभव होता है। मातृरूपी शक्ति ही सभी चीज़ों का आधार है। यह रचना माँ और मातृभूमि के प्रति सम्मान और समर्पण को बताती है।
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शक्ति की महिमा- पाठ सार Shakti ki Mahima Summary
कविता ‘शक्ति की महिमा’ डॉ. अजय कुमार सिंह द्वारा रचित एक प्रेरणादायी रचना है, जिसमें मातृशक्ति की महत्ता को सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इस कविता में कवि ने शक्ति को सृजन, विस्तार, ममता, समता और योग्यता का मूल स्रोत माना है। वह कहते हैं कि जीवन की शुरुआत शक्ति से होती है और उसी से मनुष्य को बल मिलता है। जीवन में जो प्रेम, समानता, संगीत, भावनाएँ और संवेदनाएँ हैं, वे सभी शक्ति की ही देन हैं। यह मातृरूपी शक्ति है जो दुःखों को हरती है और जीवन तथा मृत्यु की प्रक्रिया को संचालित करती है। कवि के अनुसार शक्ति के बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
दूसरे भाग में कवि यह समझाते हैं कि शक्ति से ही व्यक्ति की पहचान बनती है और वही उसे समाज में सम्मान दिलाती है। शक्ति की पूजा सभी करते हैं क्योंकि वही सबसे बड़ी है। कवि यह मानते हैं कि शक्ति के सिवा कोई दूसरा सहारा नहीं है। इसलिए मनुष्य को शक्ति का आशीर्वाद लेना चाहिए ताकि वह अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों और विरोधों से जीत सके। अंत में कवि यह संदेश देते हैं कि हमें शक्ति के चरणों में रहकर अपने जीवन के परम लक्ष्य की प्राप्ति का संकल्प लेना चाहिए।
अंतिम पद्यांश में कवि ने माँ को ही शक्ति और भक्ति का रूप बताया है। वे कहते हैं कि माँ से ही शरीर का निर्माण हुआ है और माँ से ही हमें यह मानव जीवन मिला है। हमारी वाणी, हमारे शब्द और हमारी पहचान सब कुछ माँ जैसी शक्ति की ही देन है। इसलिए मनुष्य को हर पल उस मातृशक्ति को प्रणाम करना चाहिए और अपना सारा जीवन उसकी सेवा में समर्पित कर देना चाहिए। इस प्रकार पूरी कविता में कवि ने शक्ति, विशेषकर मातृशक्ति को सर्वोपरि मानते हुए उसके प्रति श्रद्धा और समर्पण की भावना प्रकट की है।
शक्ति की महिमा पाठ व्याख्या Shakti ki Mahima Explanation
पाठ
शक्ति से सृजित, शक्ति से संबलित ।
शक्ति से ही है जीवन विस्तृत ।।
शक्ति से ममता शक्ति से समता।
शक्ति ही है सबकी क्षमता ।।
शक्ति ही राग, शक्ति ही ताल ।
शक्ति ही गीत, शक्ति ही सबका संगीत।
शक्ति से ही दुःखों का हरण ।
शक्ति से ही जीवन मरण ।।
शब्दार्थ-
शक्ति – बल, ऊर्जा, सामर्थ्य (यहाँ मातृशक्ति के रूप में)
सृजित– निर्माण
संबलित– बल से परिपूर्ण
विस्तृत – फैला हुआ
समता– समानता (समान भाव से देखना)
ममता – माँ का स्नेह, प्रेम
क्षमता – योग्यता, सामर्थ्य
राग – स्वर
ताल – लय
गीत – गाना
संगीत – सुर, लय और भाव का समन्वय
दुःखों का हरण – दुःखों को दूर करना, कष्टों से छुटकारा
जीवन मरण – जन्म और मृत्यु, जीवन की पूरी प्रक्रिया
प्रसंग- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ में संकलित कविता ‘शक्ति की महिमा’ से उद्धृत है। जिसके रचनाकार डॉ. अजय कुमार सिंह हैं।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पँक्तियों में कवि ने शक्ति की महिमा का गुण-गान किया है। उन्होंने शक्ति को मातृशक्ति माना है।
व्याख्या- प्रस्तुत पँक्तियों में कवि कहता है कि मनुष्य का निर्माण मातृशक्ति से हुआ है और बल से परिपूर्ण भी इसी शक्ति के कारण है। कवि आगे कहता है कि मनुष्य के जीवन का विस्तार भी इसी मातृरूपी शक्ति से हुआ है। इसी शक्ति से ही ममता जाग्रत हुई है। समानता की भावना का विकास भी इसी शक्ति से हुआ है। सामर्थ्य भी इसी शक्ति से ही प्राप्त हुआ है। कवि आगे कहता है कि राग, ताल और गीत भी इसी शक्ति की ही देन है। इस मातृरूपी शक्ति के कारण ही मनुष्य के अंदर संगीत समाया हुआ है। यही शक्ति दुःखों का नाश करती है और जीवन तथा मरण की प्रक्रिया को संचालित करती है। अंत में कवि यह स्पष्ट करते हैं कि शक्ति ही सृष्टि की मूलभूत ऊर्जा है।
पाठ
शक्ति से ही नाम सबका ।
शक्ति से ही सम्मान सबका ।।
शक्ति की सब करें पूजा ।
शक्ति के सिवा नहीं कोई दूजा ।।
शक्ति का सब आशीष लें।
शक्ति से विरोधियों को जीत लें।।
शक्ति के चरण में, शक्ति की शरण में।
जीवन के परम लक्ष्य की प्राप्ति का प्रण लें ।।
शब्दार्थ-
सम्मान – आदर, प्रतिष्ठा
दूजा – दूसरा, कोई और
आशीष – आशीर्वाद
विरोधी – दुश्मन, विरोध करने वाला
चरण – पाँव
शरण – आश्रय, सहारा
परम लक्ष्य – सबसे बड़ा उद्देश्य
प्रण – संकल्प, दृढ़ निश्चय
प्रसंग- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ में संकलित कविता ‘शक्ति की महिमा’ से उद्धृत है। जो डॉ. अजय कुमार सिंह जी द्वारा रचित है।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पँक्तियों में कवि ने मातृरूपी शक्ति के महत्त्व को बताया है। उन्होंने बताया है कि सभी का आधार शक्ति ही है।
व्याख्या- कवि कहते हैं कि शक्ति के कारण ही मनुष्य का नाम होता है। इसी से वह प्रसिद्ध होता है और शक्ति से ही उसको सम्मान मिलता है। पूजा भी मनुष्य की मातृरूपी शक्ति के कारण ही सब करते हैं। शक्ति के अलावा कोई दूसरा नहीं है। शक्ति ही सब कुछ है। इस शक्ति का अर्थात् जो माँ समान है उसका आशीर्वाद सभी को लेना चाहिए। शक्ति से प्राप्त बल से ही मनुष्य विरोधियों से जीत सकता है। कवि कहते हैं कि मनुष्य को शक्ति के चरण में और उसकी ही शरण में रहना चाहिए। अंत में कवि कहते हैं कि जीवन को सफल बनाने के लिए लक्ष्य की प्राप्ति का प्रण लेना चाहिए।
पाठ
माँ ही शक्ति, माँ ही भक्ति ।
माँ ही हमारी काया है।
माँ से ही सबने मानव जीवन पाया है।।
मातृशक्ति से ही है सारे अक्षर और वचन ।
मातृशक्ति का पल-प्रतिपल करें नमन।
मातृशक्ति की सेवा में कर दें सारा जीवन अर्पण।।
शब्दार्थ-
भक्ति – श्रद्धा
काया – शरीर
मातृशक्ति – माँ की शक्ति
अक्षर – वर्ण
वचन – शब्द, बोल
पल-प्रतिपल – हर समय
नमन – प्रणाम
अर्पण – भेंट करना
प्रसंग- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘भास्कर’ में संकलित कविता ‘शक्ति की महिमा’ से उद्धृत है। जो डॉ. अजय कुमार सिंह जी द्वारा रचित है।
सन्दर्भ– प्रस्तुत पँक्तियों में कवि ने मातृरूपी शक्ति की महत्ता को बताया है। उन्होंने बताया है कि माँ ही शक्ति का आधार है।
व्याख्या- प्रस्तुत पद्यांश में कवि कहते हैं कि माँ ही शक्ति है और वही भक्ति का रूप भी है। अर्थात् मनुष्य को जो शक्ति और भक्ति मिली है वह माँ ही है। माँ ही वह शक्ति है जिससे हमारे शरीर का निर्माण हुआ है। माँ से ही मनुष्य को जीवन मिला है और उसकी हर अभिव्यक्ति शब्द, वाणी और विचार उसी मातृशक्ति से प्रेरित हैं। अंत में कवि का आग्रह है कि हम पल-पल मातृशक्ति को नमन करें और अपना समूचा जीवन उसकी सेवा में समर्पित करें।
Conclusion
इस बार के पोस्ट में हमने ‘शक्ति की महिमा’ कविता का साराँश, पद्यांश व्याख्या और शब्दार्थ को जाना। यह कविता कक्षा 10 हिंदी के पाठ्यक्रम में भास्कर पुस्तक से ली गयी है। यह कविता डॉ. अजय कुमार सिंह द्वारा रचित एक प्रेरणादायक कविता है, जिसमें मातृरूपी शक्ति की महत्ता को बताया गया है।
यह पोस्ट विद्यार्थियों को कविता को गहराई से समझने में मदद करेगा और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में भी सहायक सिद्ध होगा।