मानवता पाठ सार
JKBOSE Class 10 Hindi Chapter 11 “Manavata”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Bhaskar Bhag 2 Book
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इस पोस्ट में हम आपके लिए जम्मू और कश्मीर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कक्षा 10 हिंदी भास्कर भाग 2 के पाठ 11 मानवता पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 मानवता पाठ के बारे में जानते हैं।
Manavata (मानवता)
– डॉ. बंशी लाल शर्मा
कविता ‘मानवता’ प्रसिद्ध कवि बंशी लाल शर्मा द्वारा रचित एक सामाजिक और नैतिक चेतना से परिपूर्ण कविता है, जो ‘भास्कर’ भाग–2 में संकलित है। यह कविता भारत की कुरीतियों पर गहरी दृष्टि डालती है। कवि ने अत्यंत सहज, सशक्त और प्रभावशाली भाषा में यह संदेश दिया है कि इंसान को अपने जीवन में निःस्वार्थ सेवा, परोपकार और भक्ति का मार्ग अपनाना चाहिए तथा समाज में व्याप्त बुराइयों का खुलकर विरोध करना चाहिए।
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मानवता कविता पाठ सार Manavata Summary
इस कविता के माध्यम से कवि समाज को यह प्रेरणा देते हैं कि दान, सेवा और मानवता ही मनुष्य के सच्चे गुण हैं। कवि कहते हैं कि जब हम दूसरों की मदद करते हैं, बिना किसी स्वार्थ के दान करते हैं, तो हम सच्चे अर्थों में ‘दानी’ कहलाते हैं। यही भारत की महान परंपरा और सांस्कृतिक विरासत है जिसे कवियों की कलम पीढ़ी-दर-पीढ़ी गाती रहेगी।
कविता का दूसरा प्रमुख पक्ष दहेज प्रथा जैसे सामाजिक अपराध के विरुद्ध है। कवि युवाओं से आवाहन करते हैं कि वे यह संकल्प लें कि दहेज के नाम पर एक चवन्नी भी स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि यही उनका सबसे बड़ा दान होगा। जो लोग दहेज मांगते हैं, उन्हें समाज से बहिष्कृत करना चाहिए।
तीसरी बात कविता में यह उठाई गई है कि समाज को दहेज के कारण आत्महत्या जैसी दर्दनाक घटनाओं से बचाना चाहिए। कवि अपील करते हैं कि हम सब मिलकर यह प्रण लें कि दहेज जैसी कुरीति को कभी न दोहराएँ, और बेटियों की बलि चढ़ने की घटनाएँ फिर कभी न सुनाई दें।
चौथी बात में कवि भौतिकता और लोभ की मानसिकता पर चोट करते हैं। वे कहते हैं कि जो लोग सगाई या विवाह को सोने-चाँदी जैसे भौतिक लेन-देन से आँकते हैं, वे आत्मिक पतन की ओर जा रहे हैं। मोक्ष या मुक्ति केवल प्रभु-भक्ति और सेवा से मिलती है, न कि गहनों से।
पाँचवाँ पक्ष है कर्म का फल, कवि कहते हैं कि जो भलाई करेगा, उसे भला ही फल मिलेगा; लेकिन जो लोग समाज को प्रदूषित करेंगे, वे यमदूतों के कोप का सामना करेंगे।
अंत में कवि एक मार्मिक सामाजिक दृष्टिकोण रखते हैं कि गरीब की कमर न टूटे, और किसी की जवानी दहेज या सामाजिक दबाव में न बर्बाद हो। वे याद दिलाते हैं कि यह जीवन नश्वर है, इसलिए हमें प्रेम, सहानुभूति और सहयोग से रहना चाहिए, न कि लड़ाई-झगड़े और कुरीतियों में उलझकर।
मानवता पाठ व्याख्या Manavata Poem Explanation
1
दान करके तुम सब ही बन जाओ दानी,
कलम कवियों की लिखती रहे यह कहानी ।
कदर मानवता की ही होती है आई
है भारत की यही एकमात्र निशानी ।।
शब्दार्थ-
दान– पुण्य
दानी– उदार
कलम– लेखनी
कदर – महत्व, सम्मान
मानवता – मनुष्यता, इंसानियत
एकमात्र – केवल
निशानी– भेंट
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्कर’ भाग 2 में उद्धृत कविता ‘मानवता’ से ली गयी है। इसके लेखक कवि बंशी लाल शर्मा हैं।
सन्दर्भ- यह पंक्तियाँ भारतीय संस्कृति में दान, मानवता और परोपकार की महत्ता को बताती हैं। कवि समाज को प्रेरित करते हैं कि वे मानव कल्याण के कार्य करें, क्योंकि यही भारत की सच्ची पहचान है।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि मानवता, दानशीलता और भारतीय संस्कृति की विशेषताओं का गुणगान करते हुए प्रेरणा देते हैं। वे कहते हैं कि यदि हम सभी लोग जरूरतमंदों की सहायता करें, दान करें, तो हम सच्चे अर्थों में ‘दानी’ कहलाएँगे। यहाँ ‘दान’ केवल धन का नहीं, बल्कि सेवा, समय, ज्ञान, प्रेम, और करुणा का भी प्रतीक है। जब लोग निःस्वार्थ भाव से दूसरों की भलाई के लिए कार्य करते हैं, तो समाज में एक सकारात्मक परिवर्तन आता है।
कवि आगे कहते हैं कि कवियों की कलम सदा उन व्यक्तियों की गाथा लिखती है जो मानवता की सेवा में समर्पित रहते हैं। कविता और साहित्य में उन्हीं लोगों की चर्चा होती है जो समाज के लिए कुछ करते हैं, जिन्होंने अपने जीवन को दूसरों के कल्याण हेतु समर्पित किया होता है। इस प्रकार कवियों की रचनाएँ इन दानशील और मानवीय मूल्यों को अमर करती हैं।
कवि यह भी बताते हैं कि भारत की एक अनूठी पहचान उसकी मानवतावादी सोच है। यहाँ सदा से ही करुणा, सहिष्णुता, सेवा और परोपकार की परंपरा रही है। यही विशेषता भारत को अन्य देशों से अलग करती है और इसकी सांस्कृतिक विरासत को महान बनाती है।
कहने का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में मानवता का पालन करते हुए निःस्वार्थ सेवा और दान की भावना अपनानी चाहिए। ऐसे कार्य न केवल समाज को बेहतर बनाते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनते हैं। यही भारतीय संस्कृति की सच्ची पहचान है।
2
सब से बड़ा दान तुम इसको जानो,
दहेज के नाम पर न लेंगे चवन्नी ।
खोला है मुँह जिसने दहेज की खातिर,
बारात उसकी हम ने है वापस भगानी ।।
शब्दार्थ-
खातिर – के लिए
चवन्नी– 25 पैसे
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्कर’ भाग 2 में उद्धृत कविता ‘मानवता’ से ली गयी है। इसके लेखक कवि बंशी लाल शर्मा हैं।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पँक्तियों के माध्यम से कवि समाज को यह संदेश देना चाहते हैं कि विवाह जैसे पवित्र संस्कार को दहेज रूपी लेन-देन के व्यापार से मुक्त किया जाना चाहिए।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारे समाज की एक गंभीर और पुरानी समस्या ‘दहेज प्रथा’ के विरुद्ध एक सशक्त संदेश देती हैं। कवि समाज के सभी लोगों, विशेषकर युवाओं से यह आग्रह करते हैं कि विवाह जैसे पवित्र बंधन को व्यापार का रूप न दिया जाए। वे कहते हैं कि अगर तुम जीवन में वास्तव में कोई बड़ा और नेक कार्य करना चाहते हो, तो यह प्रण करो कि दहेज के नाम पर एक चवन्नी (छोटा सा सिक्का) भी स्वीकार नहीं करोगे। यही तुम्हारा सबसे महान दान और योगदान होगा समाज के लिए।
कवि आगे कहते हैं कि जो कोई भी व्यक्ति दहेज की माँग करता है, उसका असली चेहरा सामने आ जाता है। वह लोभी, स्वार्थी और अमानवीय है। ऐसे व्यक्ति की बारात को बिना किसी झिझक के वापस लौटा देना चाहिए। उसका सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए, क्योंकि वह एक सामाजिक बुराई को बढ़ावा दे रहा है।
इन पंक्तियों के माध्यम से कवि दहेज जैसी कुप्रथा के खिलाफ समाज को जागरूक करने, साहस से खड़े होने और सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा दे रहे हैं।
3
न शब्द मिले सुनने को फिर कोई कभी भी
कि चढ़ गई बलि बच्ची किसी की बेगानी,
प्रण कर लो मिलकर यह आज आप सारे,
दोहराएँगे नहीं अब कुरीति पुरानी ।।
शब्दार्थ-
शब्द- कथन
बलि- आत्महत्या
बेगानी – पराई
प्रण- प्रतिज्ञा
कुरीति – बुरी रीति या प्रथा
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्कर’ भाग 2 में उद्धृत कविता ‘मानवता’ से ली गयी है। इसके लेखक कवि बंशी लाल शर्मा हैं।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पँक्तियों के माध्यम से कवि ने समाज को जागरूक करने का प्रयास किया है, ताकि हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि दहेज जैसी अमानवीय परंपरा को समाप्त कर सकें।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में समाज में फैली दहेज प्रथा जैसी अमानवीय और क्रूर कुरीति के विषय में बताया गया है। कवि समाज के सभी लोगों से एकजुट होकर यह संकल्प लेने का आह्वान करते हैं कि अब हम इस पुरानी सामाजिक बुराई को न तो स्वीकार करेंगे और न ही दोहराएंगे।
कवि कहते हैं कि हम सब मिलकर ऐसा वातावरण बनाएँ जहाँ किसी भी माँ-बाप को अपनी बेटी को दहेज के कारण खोने का दुःख न सहना पड़े। वे कामना करते हैं कि समाज में फिर कभी यह दर्दनाक खबर सुनने को न मिले कि किसी मासूम लड़की ने दहेज के दबाव में आकर आत्महत्या कर ली या उसकी बलि चढ़ा दी गई।
कवि यह नहीं चाहते कि हम सिर्फ बातें करें, बल्कि वे चाहते हैं कि हम वास्तव में अपने व्यवहार में बदलाव लाएँ, कभी दहेज न लें, न दें, और दूसरों को भी ऐसा करने से रोकें।
इस तरह, कवि इस कविता के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देना चाहते हैं, जहाँ बेटियाँ बोझ नहीं बल्कि सम्मान का प्रतीक बनें, और विवाह एक समझदारी व प्रेम का बंधन हो, न कि लेन-देन का सौदा।
4
चाहने वाले अवगति भले ही यह पूछें,
सगाई में सोने की है कोई निशानी?
चौरासी से चाहते हो यदि छुटकारा
तो चरणों में उसके लगाओ जिंदगानी।।
शब्दार्थ-
अवगति – बुरी दशा
सगाई- विवाह का ठहराव
निशानी- यादगार के लिए दी गयी वस्तु
चौरासी- 84
जिंदगानी- ज़िंदगी
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्कर’ भाग 2 में उद्धृत कविता ‘मानवता’ से ली गयी है। इसके लेखक कवि बंशी लाल शर्मा हैं।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पँक्तियों के माध्यम से कवि समाज में फैली बुराई, सगाई के भौतिक लेन-देन जैसी मानसिकता की आलोचना करते हैं। साथ ही, वह यह भी बताते हैं कि मोक्ष की प्राप्ति केवल प्रभु-भक्ति और आत्मसमर्पण से संभव है, न कि सोने-चाँदी के गहनों से।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियाँ भौतिक लालच, सामाजिक दिखावे और आध्यात्मिक मुक्ति के बीच गहरे संबंध को बताती हैं। कवि यहाँ उन लोगों की मानसिकता की आलोचना करते हैं जो सगाई जैसे पवित्र अवसर को भी सोने-चाँदी जैसी भौतिक वस्तुओं की दृष्टि से देखते हैं। वे पूछते हैं कि सगाई में क्या मिला, कितने तोले सोना मिला आदि। यह प्रश्न वास्तव में लोभ और दिखावे की मानसिकता को दर्शाता है, जो मनुष्य को पतन की ओर ले जाता है।
कवि चेतावनी देते हुए कहते हैं कि यदि कोई व्यक्ति ऐसी सोच लेकर आपके पास आता है और सगाई में मिली भौतिक वस्तुओं की चर्चा करता है, तो समझ लीजिए कि वह अवगति अर्थात् बुरी दशा, आत्मिक पतन और दुखों की ओर जा रहा है। ऐसे लोगों की संगति से बचना चाहिए।
आगे कवि एक गहन आध्यात्मिक संदेश देते हैं कि यदि मनुष्य वास्तव में 84 लाख योनियों के जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पाना चाहता है तो उसे प्रभु के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर देना चाहिए। यानी लोभ, मोह, अहंकार छोड़कर ईश्वर-भक्ति, विनम्रता और सेवा के मार्ग पर चलना चाहिए।
5
भलाई के बदले है होता भला ही,
यही बात हमने भी सदा से है जानी।
समाज को करते हैं जो जन प्रदूषित,
कराएँगे यमदूत याद उनको नानी।।
शब्दार्थ-
सदा- हमेशा
प्रदूषित- गन्दा
यमदूत- मृत्यु के दूत
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्कर’ भाग 2 में उद्धृत कविता ‘मानवता’ से ली गयी है। इसके लेखक कवि बंशी लाल शर्मा हैं।
सन्दर्भ- कवि ने इन पंक्तियों के माध्यम से यह संदेश दिया है कि अच्छे कर्मों का परिणाम सदैव अच्छा होता है, जबकि जो लोग अपने स्वार्थ, दुष्टता या लालच के कारण समाज को प्रदूषित करते हैं, उन्हें अंततः कठोर दंड का सामना करना पड़ता है।
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं कि यह बात जीवन का अटल सत्य है कि अच्छाई के बदले हमेशा अच्छाई मिलती है। यानी जो व्यक्ति सद्भावना, ईमानदारी और सेवा के मार्ग पर चलता है, उसके साथ जीवन में देर-सवेर अच्छा ही होता है। यह जीवन का ऐसा नियम है जिसे सभी को समझना और अपनाना चाहिए।
लेकिन साथ ही कवि यह भी चेतावनी देते हैं कि जो लोग समाज को प्रदूषित करते हैं अर्थात् जो अपने स्वार्थ के लिए समाज में नफरत, लोभ, भ्रष्टाचार, हिंसा या अन्य बुराइयाँ फैलाते हैं, उन्हें यह मत समझना चाहिए कि वे सजा से बच जाएँगे। कवि ने हास्यात्मक वाणी में गहराई से कहा है कि ऐसे लोगों को यमदूत यमलोक में उनकी ‘नानी’ याद दिला देंगे। यह एक कहावत के रूप में प्रयुक्त हुआ वाक्य है, जिसका अर्थ है कि उन्हें इतना भयानक और कड़ा दंड मिलेगा कि वे पछता कर रह जाएँगे।
इस प्रकार, कवि हमें यह प्रेरणा देते हैं कि हमेशा भलाई का रास्ता अपनाओ, क्योंकि वही अंत में तुम्हारा रक्षक होता है, और बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली लगे, उसका अंत सदैव बुरा ही होता है।
6
कमर कभी किसी भी गरीब की न टूटे,
न दिखे टूटती कभी किसी की जवानी ।
है क्योंकर यह करना लड़ाई और झगड़ा,
ज़रा तुम तो सोचो यह दुनिया है फानी ।।
शब्दार्थ-
जवानी- युवावस्था
फानी – नश्वर, नष्ट हो जाने वाला
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्कर’ भाग 2 में उद्धृत कविता ‘मानवता’ से ली गयी है। इसके लेखक कवि बंशी लाल शर्मा हैं।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि द्वारा दहेज प्रथा, सामाजिक अन्याय और आपसी वैर-भाव के विरुद्ध व्यक्त की गई गहरी संवेदना को बताती हैं।
व्याख्या- प्रस्तुत पँक्तियों में कवि समाज के उस वर्ग की चिंता करता है जो गरीबी, दहेज प्रथा और सामाजिक दबावों के कारण रोज़ कठिनाइयों से जूझ रहा है। वह विनम्रता से प्रार्थना करता है कि कभी किसी गरीब की कमर न टूटे। इसका तात्पर्य है कि कभी भी किसी निर्धन को इतना भारी बोझ, विशेषकर दहेज का बोझ, न सहना पड़े कि वह जीवन से हार जाए।
दूसरी पंक्ति में कवि कहता है कि समाज में कभी किसी की जवानी टूटती या बर्बाद होती न दिखाई दे, अर्थात् कोई युवक या युवती दहेज, जाति, या सामाजिक अन्याय के कारण अपनी ज़िंदगी बर्बाद न करे, आत्महत्या न करे या कुंठा में न जिए।
इसके बाद कवि हम सभी से एक सवाल पूछता है कि लड़ाई-झगड़ा क्यों करना है यानी जब जीवन नश्वर है, जब यह संसार एक दिन समाप्त हो जाना है, तो हम क्यों इन छोटी-छोटी बातों को लेकर एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते हैं। दहेज जैसी कुरीति को लेकर जीवन भर दुश्मनी रखने और दूसरों को दुखी करने का क्या लाभ है।
कवि याद दिलाता है कि यह दुनिया स्थायी नहीं है; यहाँ कोई भी सदा नहीं रहेगा। इस अस्थायी जीवन में हमें लड़ाई-झगड़े नहीं बल्कि प्रेम, सहानुभूति और सहयोग को अपनाना चाहिए।
Conclusion
दिए गए पोस्ट में हमने ‘मानवता’ कविता का साराँश, व्याख्या और शब्दार्थ को जाना। यह कविता कक्षा 10 हिंदी पाठ्यक्रम के भास्कर भाग 2 पुस्तक में है। प्रस्तुत कविता डॉ. बंशी लाल शर्मा द्वारा रचित है। यह कविता भारत की कुरीतियों पर गहरी दृष्टि डालती है।
यह पोस्ट विद्यार्थियों को पाठ को गहराई से समझने में मदद करेगा और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में भी सहायक सिद्ध होगा।