Yojak Chinh in Hindi | Yojak Chinh Definition, Uses, Examples and Important Question – योजक चिह्न की परिभाषा, योजक चिन्ह का प्रयोग, उदाहरण और महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
Yojak Chinh in Hindi – हिंदी भाषा को शुद्ध तरीके से लिखने के लिए बहुत सारे चिन्हों का प्रयोग किया जाता है। जैसे – पूर्ण विराम, योजक, अल्प विराम इत्यादि। इस लेख हम योजक चिन्ह के बारे में बात करेंगे। इस लेखक में हम, योजक चिन्ह किसे कहते हैं, इनका प्रयोग कहाँ और कैसे किया जाता है एवं योजक चिन्ह के कुछ उदाहरणों से योजक चिन्हों के बारे में विस्तार से जानेगें।
- योजक चिह्न किसे कहते है?
- योजक चिह्न (-) की परिभाषा
- योजक चिह्नों के कुछ उदाहरण
- योजक चिन्ह का प्रयोग
- कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
- FAQ’s
योजक चिह्न किसे कहते है?
योजक का अर्थ होता है – मिलाने वाला अथवा जोड़ने वाला। योजक चिह्न वाक्य में प्रयुक्त किए गए शब्द अर्थ को स्पष्ट करते हैं। कई जगहों पर तो योजक चिह्नों का प्रयोग न करने के कारण उच्चारण और अर्थ से सम्बंधित कई गलतियाँ भी सामने आती हैं।
आप एक उदाहरण से अच्छे से समझ सकते हैं, जैसे – विद्याधन अथवा विद्या–धन।
यहाँ ‘विद्याधन‘ का अर्थ है विद्या रूपी धन और योजक चिह्न का प्रयोग होने के कारण ‘विद्या–धन‘ का अर्थ होता है, विद्या और धन। अब यदि आप विद्या और धन की अलग–अलग बात करना चाह रहे हैं तो आपको विद्याधन के मध्य योजक चिह्न का प्रयोग (विद्या–धन) अनिवार्य है। अन्यथा अर्थ समझने में बड़ी भूल हो सकती है।
योजक चिह्न (-) की परिभाषा –
इसका प्रयोग दो शब्दों में संबंध प्रकट करने के लिए और युग्म शब्दों के मध्य किया जाता है।
जैसे –
सुख – दु:ख
माता – पिता
अपना – पराया इत्यादि।
साथ–ही–साथ यह भी कह सकते हैं कि दो शब्दों के मध्य अर्थ में स्पष्टता लाने के लिए योजक चिह्नों का प्रयोग किया जाता है।
योजक चिह्नों के कुछ उदाहरण –
– सुख–दुःख जीवन के दो पहलु हैं।
– मुझे दाल–चावल से अधिक सब्जी–रोटी पसंद है।
– मोहन ने बच्चों को चार–चार मिठाइयाँ दी।
– मेरे घर के आँगन में बड़ा–सा बरगद का पेड़ है।
– सृष्टि के कण–कण में राम बसे हैं।
योजक चिन्ह का प्रयोग –
1 – विपरीत अर्थ बताने वाले शब्दों को जोड़ने के लिए योजक चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। जैसे – दिन–रात, काला–गोरा, सुख–दुःख, माता–पिता, हार–जीत, लाभ–हानि इत्यादि।
2 – जहाँ दोनों पद प्रधान हों तथा उनके मध्य ‘और‘ लुप्त हो, वहाँ ‘और‘ के स्थान पर योजक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे – दाल और रोटी = दाल–रोटी, राधा और कृष्ण = राधा–कृष्ण, पेड़ और पत्ते = पेड़–पत्ते।
3 – एक सामान अर्थ बताने वाले शब्दों के मध्य भी योजक चिह्नों का प्रयोग किया जाता है। जैसे – दीन–दुखी, हँसी–ख़ुशी, भूत–प्रेत, बाल–बच्चा, मार–पीट, नौकर–चाकर, जीव–जन्तु, कूड़ा–कचरा इत्यादि।
4 – जब दो क्रियाओं का एक साथ प्रयोग किया जाता है, तो उनके मध्य योजक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे – पढ़ना–लिखना, आना–जाना, उठना–बैठना, खाना–पीना इत्यादि।
5 – जब दो विशेषण पदों का संज्ञा के अर्थ में प्रयोग हो तो उनके मध्य भी योजक चिह्नों का प्रयोग होता है। जैसे – भूखा–प्यासा, अँधा–बहरा, लूला–लंगड़ा इत्यादि।
6 – जब दो ऐसे शब्दों का प्रयोग किया जाए जिसमें से एक सार्थक तथा दूसरा निरर्थक हो तो उनके मध्य भी योजक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे – उल्टा–पुल्टा, अनाप–शनाप, रोटी–वोटी, पानी–वानी, झूठ–मूठ इत्यादि।
7 – जब द्विरूचि अर्थात एक ही संज्ञा बार–बार प्रयुक्त हो तो संज्ञाओं के बीच योजक चिह्न लगता है। अथवा यह भी कह सकते हैं कि शब्दों की पुनरावृति रूपों में योजक चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे – राम–राम, शहर–शहर, गाँव–गाँव, नगर–नगर, कण–कण इत्यादि।
8 – शब्दों में लिखी जाने वाली संख्याओं तथा उनके अंशों के बीच भी योजक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे – एक–तिहाई, एक–चौथाई, दस–बारह, सात–आठ इत्यादि।
9 – तत्पुरुष तथा द्वंद्व समास के दोनों पदों के मध्य योजक चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे – हवन–सामग्री, देश–भक्ति, लाभ–हानि इत्यादि।
10 – अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण अथवा तुलना सूचक शब्दों के बीच योजक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे – राम–सा भाई, यशोदा–सी माता, विभीषण–सा भाई, बहुत–सा धन, काम–से–कम।
11 – जब दो शब्दों के बीच सम्बन्ध कारक के चिह्न का, के या की लुप्त या अनुक्त हो, तब दोनों के बीच योजक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे – मानव का जीवन = मानव–जीवन, कृष्ण की लीला = कृष्ण–लीला, रावण का वध = रावण–वध इत्यादि।
12 – लिखते समय यदि कोई शब्द अधिक बड़ा होने के कारण पंक्ति में पूरा न आ रहा हो तब भी योजक चिह्न का प्रयोग करके उस शब्द का पहला पद पंक्ति के अंत में लिख कर योजक चिह्न लगा कर बचे हुए अंश को दूसरी पंक्ति में योजक चिह्न लगा कर लिखना चाहिए।
कुछ शब्दों के प्रयोग में असावधानी पाई जाती है। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं –
अशुद्ध = शुद्ध
गंगा–जल = गंगाजल
आकाश–वाणी = आकाशवाणी
कमल–नयन = कमलनयन
डाक–गाड़ी = डाकगाड़ी
कृष्ण–लीला = कृष्ण लीला
नोट – तत्पुरुष समास व् द्वंद्व समास में योजक चिह्न का प्रयोग किया जाता है।
द्विगु समास से बने सामासिक पदों में योजक चिह्नों का प्रयोग नहीं किया जाता। जैसे – नवग्रह, पंचवटी, चौमासा इत्यादि।
कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
प्रश्न 1 – योजक चिह्न किसे कहते है?
उत्तर – योजक का अर्थ होता है – मिलाने वाला अथवा जोड़ने वाला। योजक चिह्न वाक्य में प्रयुक्त किए गए शब्द अर्थ को स्पष्ट करते हैं। कई जगहों पर तो योजक चिह्नों का प्रयोग न करने के कारण उच्चारण और अर्थ से सम्बंधित कई गलतियाँ भी सामने आती हैं।
प्रश्न 2 – योजक चिह्न की परिभाषा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – इसका प्रयोग दो शब्दों में संबंध प्रकट करने के लिए और युग्म शब्दों के मध्य किया जाता है। साथ–ही–साथ यह भी कह सकते हैं कि दो शब्दों के मध्य अर्थ में स्पष्टता लाने के लिए योजक चिह्नों का प्रयोग किया जाता है।
जैसे – सुख–दु:ख, माता–पिता, अपना–पराया इत्यादि।
FAQ’s –
प्रश्न 1 – योजक चिह्न का चिह्न कौन सा है?
उत्तर – (-)
प्रश्न 2 – कौन से समास में योजक चिह्न का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर – तत्पुरुष समास और द्वंद्व समास।
प्रश्न 3 – किस समास में योजक चिह्न का प्रयोग नहीं किया जाता?
उत्तर – द्विगु समास से बने सामासिक पदों में।
प्रश्न 4 – योजक चिह्न के कुछ उदाहरण लिखिए।
उत्तर – माता–पिता, एक–दो, राम–राम, सीता–गीता, कूड़ा–करकट इत्यादि।
प्रश्न 5 – तत्पुरुष तथा द्वंद्व समास के दोनों पदों के मध्य योजक चिह्न का प्रयोग किस प्रकार होता है।
उत्तर – हवन–सामग्री, देश–भक्ति, लाभ–हानि इत्यादि।