Swar in Hindi

 

Swar in Hindi| Swar Types, Examples, Important Question– स्वर की परिभाषा, स्वर के भेद ,उदाहरण और महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर

 

Swar in Hindi – इस लेख में हम स्वर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे- स्वर की परिभाषा, स्वर के भेद/हिंदी व्याकरण में स्वरों का निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकरण, स्वर की मात्राएँ, महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर।

 

स्वर की जानकारी से पूर्व वर्ण और वर्णमाला का ज्ञान होना आवश्यक है। अतः सर्वप्रथम वर्ण किसे कहते हैं यह जान लेते हैं –

 

वर्ण –

मानव द्वारा बोलते समय जिन सार्थक व अर्थपूर्ण ध्वनियों का उच्चारण किया जाता है उसे भाषा की संज्ञा दी जाती है। इस भाषा को कुछ चिन्हों द्वारा लिखित भाषा में परिवर्तित किया जाता है। इन्हीं चिन्हों को वर्ण कहा जाता है। साधारण शब्दों में वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है जिसके टुकड़े नहीं किए जा सकते। जैसे – क्, र्, प्, त् आदि

इसे एक उदाहरण से समझें –

राज पत्र लिखता है।

इस वाक्य के खंड किए जा सकते हैं। जैसे – “राज” “पत्र” “लिखता” तथा “है”।

इन शब्दों को और अलग-अलग करके लिखा जा सकता है –

जैसे – राज – र् + आ + ज् + अ,  पत्र – प् + अ + त्  + र् + अ, लिखता – ल् + इ + ख्  + अ + त् + आ,  है – ह् + ऐ

प्रत्येक शब्द के ध्वनि के अनुसार टुकड़े किए जा सकते हैं।

अब इससे आगे इन ध्वनियों तथा वर्णों के और टुकड़े नहीं किए जा सकते। अतः भाषा की सबसे छोटी मौखिक इकाई “ध्वनि” तथा इसके लिखित रूप को ‘वर्ण’ कहते हैं।

दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि “मौखिक ध्वनियों” को व्यक्त करने वाले चिह्न “वर्ण” कहलाते हैं।

अब बात करते हैं वर्णमाला की

वर्णमाला –

वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। दूसरे शब्दों में किसी भाषा के ध्वनि चिन्हों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिंदी भाषा की वर्णमाला में 48 वर्ण माने गए हैं। जिसमें 11 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं, जबकि कुल व्यंजन 35 होते हैं। दो उच्छिप्त व्यंजन एवं दो अयोगवाह होते हैं।

 

वर्णमाला के भेद

वर्णमाला को मुख्य रूप से दो भागो में बाँटा गया है –

(1) स्वर

(2) व्यंजन

 

इस लेख में हम केवल वर्णमाला के प्रथम भेद स्वर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे –

 

 
 

स्वर की परिभाषा 

 

‘स्वयं राजन्ते इति स्वरः’ अर्थात जो वर्ण स्वयं ही उच्चारित होते हैं वे स्वर कहलाते हैं।

दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वांस-वायु बिना किसी रूकावट के अथवा मुख के किसी भाग को बिना छुएँ मुख से निकलती है, उन्हें स्वर कहते हैं।

साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि स्वर वे ध्वनियाँ हैं, जिन्हें इसके उच्चारण के लिए किसी अन्य वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती। स्वर स्वतंत्र रूप से बोले जाते हैं।

 

हिन्दी भाषा में कुल ग्यारह स्वर होते हैं। यह ग्यारह स्वर निम्नलिखित हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ और औ हैं। हिन्दी भाषा में ऋ को आधा स्वर (अर्धस्वर) माना जाता है,अतः इसे स्वर में शामिल किया गया है। हिन्दी भाषा में प्रायः ॠ और ऌ का प्रयोग नहीं होता है। ॠ और ऌ प्रयोग प्रायः संस्कृत भाषा में होता है। अं और अः को भी स्वर में नहीं गिना जाता। जबकि पारंपरिक वर्णमाला में ‘अं’ और ‘अः’ को स्वरों में गिना जाता है, परंतु उच्चारण की दृष्टि से यह व्यंजन के ही रूप है। ‘अं’ को अनुस्वर और ‘अः’ को विसर्ग कहा जाता है। इन दोनों का प्रयोग हमेशा स्वर के बाद ही किया जाता है। जैसे-इंगित, अंक, अतः, प्रातः। विसर्ग का प्रयोग हिंदी में प्रचलित संस्कृत शब्दों में होता है।

 

 
 

हिंदी व्याकरण में स्वरों का निम्नलिखित आधारों पर वर्गीकरण किया गया है –

1 – स्वरों को उच्चारण के आधार पर स्वरों को तीन भागों में बांटा गया है-

  • ह्रस्व स्वर
  • दीर्घ स्वर
  • प्लुत स्वर

 

हृस्व स्वर –

जिन वर्णों को सबसे कम समय में उच्चारित किया जाता है , उन्हें हर स्वर कहते हैं।

साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि उन स्वरों को हृस्व स्वरों के अंतरगर्त लिया गया जाता है। जिनका उच्चारण करने में सबसे कम समय लगता है। हृस्व स्वर को एकमात्रिक स्वर भी कहा जाता है, क्योंकि इन वर्णों में केवल एक मात्रा होती है। हृस्व स्वर को लघु स्वर या मूल स्वर के नाम से भी जाना जाता हैं।

हृस्व स्वर में अ, इ, उ, ऋ आते हैं। ह्रस्व ‘ऋ’ का प्रयोग केवल संस्कृत के तत्सम शब्दों में होता है जैसे-ऋषि, रितु, कृषि आदि।

 

दीर्घ स्वर –

जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से अधिक समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये स्वर हैं – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

जहाँ हृस्व स्वर एकमात्रिक होता है  वहीं दीर्घ स्वर में एक के स्थान पर दो मात्राएँ होती हैं। दो मात्रा होने के कारण ही उनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर की अपेक्षा दोगुना समय लगता है। दीर्घ स्वरों के उदाहरण आ, ई, ऊ हैं। आ वर्ण,अ और अ को जोड़ कर बनता हैं। ई वर्ण, इ और इ को जोड़ कर बनता है। ऊ वर्ण, उ और उ को जोड़ कर बनता है। 

जैसे –

अ + अ = आ

इ + इ = ई

उ + उ = ऊ

ध्यान रखने योग्य बात यह है कि यह स्वर ह्रस्व स्वरों के दीर्घ रूप नहीं है बल्कि स्वतंत्र ध्वनियाँ है।

 

प्लुत स्वर –

प्लुत स्वर ऐसे स्वर होते हैं, जिसका उच्चारण करते समय दीर्घ स्वरों से अधिक समय लेता है। जैसे – ॐ = अ + ओ + म्

दूसरे शब्दों में प्लुत स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से तीन गुना अधिक समय लगता है। और वहीं प्लुत स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वर से दो गुना अधिक समय लगता है।

वर्तमान में हिंदी भाषा में तीन मात्राओं के अक्षरों का प्रयोग नहीं किया जाता है। लेकिन वैदिक भाषा में तीन खंड के शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

प्लुत स्वरों को समझने के लिए साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि प्लुत स्वरों का प्रयोग खासकर के किसी को पुकारने एवं बुलाने के समय किया जाता हैं। जैसे – राऽऽम, सुनोऽऽ, इत्यादि।

 

2 – योग या रचना के आधार पर / स्रोत के आधार पर स्वरों का विभाजन –

बनावट या रचना के आधार पर / स्रोत के आधार पर स्वरों की संख्या 11 है। इनको दो भागों में बांटा गया है।

  • मूल स्वर
  • संयुक्त स्वर

मूल स्वर – वे स्वर जो स्वतंत्र है अर्थात वे स्वर जो किसी अन्य स्वरों के मिलाने से नहीं बने हैं, मूल स्वर कहलाते हैं। इन मूल स्वरों की संख्या 4 है।

साधारण शब्दों में मूल स्वर ही हृस्व स्वर हैं। जैसे – अ, इ, उ, ऋ। 

संयुक्त स्वर – वह स्वर जो दो और स्वर से मिलकर बने हों उन्हें संयुक्त स्वर कहते हैं अर्थात यह किसी अन्य स्वरों के मिलाने से बने हैं, संयुक्त स्वर कहलाते हैं। इन स्वरों की संख्या 4 हैं। जैसे – ए, ऐ, ओ, औ

अ/आ + इ/ई = ए

अ/आ + ए = ऐ

अ/आ + उ/ऊ = ओ

अ/आ + = औ

 

3 – जिह्वा की स्थिति के आधार पर –

अग्र स्वर –

जिन स्वरों में जीभ का अग्र भाग सक्रिय रहता है, उन्हें ‘अग्र स्वर’कहते हैं। इनकी संख्या 4 हैं। जैसे – इ, ई, ए, ऐ।

मध्य स्वर –

जिन स्वरों में जीभ का मध्य भाग सक्रिय रहता है, उन्हें ‘मध्य स्वर’कहते हैं। इनकी संख्या 1 हैं। जैसे – अ।

पश्च स्वर –

जिन स्वरों में जीभ का पश्च भाग सक्रिय रहता है, उन्हें ‘पश्च स्वर’कहते हैं। इनकी संख्या 5 हैं। जैसे – आ, उ, ऊ, ओ, औ।

 

4 – जिह्वा की ऊचाई के आधार पर –

संवृत स्वर –

संवृत अर्थात कम खुला। जिन स्वरों के उच्चारण में मुख कम खुलता है, वे स्वर संवृत स्वर कहलाते हैं। इनकी संख्या 4 है।

जैसे – इ, ई, उ, ऊ।

अर्द्धसंवृत स्वर –

जिन स्वरों में मुख संवृत स्वर से थोड़ा अधिक खुलता है उन्हें अर्द्धसंवृत स्वर कहलाते हैं। इनकी संख्या 2 है। जैसे – ए, ओ।

विवृत स्वर –

विवृत अर्थात अधिक खुला। जिन स्वरों के उच्चारण में मुख बहुत अधिक खुलता है, उन्हें विवृत स्वर कहते हैं। इनकी संख्या 1 है। जैसे – आ।

अर्द्धविवृत स्वर –

जिन स्वरों का उच्चारण में मुख विवृत स्वर से थोड़ा कम और अर्द्धसंवृत से थोड़ा अधिक खुलता है, उन्हें अर्द्धविवृत स्वर कहा जाता है। इनकी संख्या 4 है। जैसे – अ, ऐ, ओ, औ।

याद रखने योग्य बात – ओ को अर्ध विवृत और अर्ध संवृत दोनो में सम्मिलित किया गया है।

 

5 – होंठ की स्थिति के आधार पर –

वर्तुल या वृत्त मुखी या वृत्ताकार स्वर –

जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ की स्थिति वर्तुलाकार अर्थात लगभग वृत्त के समान हो जाती है, वर्तुल या वृत्त मुखी स्वर कहलाते हैं। ये  संख्या में 4 है। जैसे – उ, ऊ, ओ, औ।

अवर्तुल या प्रसृत या आवृतमुखी या अवृत्ताकार स्वर

जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ की स्थिति दीर्घवृत्त के समान हो अर्थात वर्तुल आकर न बने, अवर्तुल या आवृत्त मुखी स्वर कहलाते हैं। ये संख्या में 7 है। जैसे – अ ,आ ,इ ,ई ऋ ए और ऐ।

 

6 – जिह्वा पेशियों के तनाव के आधार पर –

शिथिल स्वर –

ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में जीभ की पेशियों में तनाव नहीं पड़ता है, अर्थात जिन स्वरों के उच्चारण करने में जिह्वा को कोई मेहनत नहीं पड़ती, वे शिथिल स्वर कहलाते हैं। ये स्वर संख्या में 3 है। जैसे – अ, इ, उ।

कठोर स्वर –

ऐसे स्वर जिनके उच्चारण में जीभ की पेशियों में तनाव पड़ता है, अर्थात जिन स्वरों के उच्चारण करने में जिह्वा को अधिक मेहनत करनी पड़ती है, वे कठोर स्वर कहलाते हैं। ये स्वर संख्या में 3 है। जैसे – आ, ई, ऊ।

 

7 – उच्चारण स्थान के आधार पर –

कण्ठ्य स्वर – अ, आ, अ:

तालव्य स्वर – इ, ई

मूर्धन्य स्वर – ऋ

ओष्ठ्य स्वर – उ, ऊ

अनुनासिक स्वर – अं

कण्ठ्य तालव्य स्वर – ए, ऐ

कण्ठयोष्ठ्य स्वर – ओ, औ

 

8 – स्वर तंत्रियों के कंपन के आधार पर –

सभी स्वर घोष वर्ण के अंतर्गत आते हैं। इन्हें मृदु या कोमल स्वर कहते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि स्वर तंत्रियों के कंपन के आधार पर स्वरों का एक ही प्रकार है।
 

 
 

हिंदी वर्णमाला में स्वर मात्रा संकेत –

आ   ा

ि

ऋ   ृ

ओ   ो

औ   ौ
 

 

ध्यान देने योग्य बात –

हिन्दी वर्णमाला में स्वरों की संख्या मात्रा के आधार पर 10 है। क्योंकि ‘अ’ की कोई मात्रा नहीं है, यह व्यंजन में सन्निहित है और स्वररहित व्यंजन लिखने के लिए व्यंजन के नीचे हलंत चिन्ह (्) लगाया जाता है। जैसे – ख्, च्, प्, त् इत्यादि।

 
 

स्वर पर कुछ महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 

 

प्रश्न 1 – वर्ण किसे कहते हैं?

उत्तर – भाषा की सबसे छोटी मौखिक इकाई “ध्वनि” तथा इसके लिखित रूप को ‘वर्ण’ कहते हैं। अर्थात जिन ध्वनियों के और टुकड़े न किए जा सके उन्हें वर्ण कहते हैं।

दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि “मौखिक ध्वनियों” को व्यक्त करने वाले चिह्न “वर्ण” कहलाते हैं।

 

प्रश्न 2 – वर्णमाला से क्या अभिप्राय है?

उत्तर – वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। दूसरे शब्दों में किसी भाषा के ध्वनि चिन्हों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिंदी भाषा की वर्णमाला में 48 वर्ण माने गए हैं। जिसमें 11 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं, जबकि कुल व्यंजन 35 होते हैं। दो उच्छिप्त व्यंजन एवं दो अयोगवाह होते हैं।

 

प्रश्न 3 – वर्णमाला के कितने भेद हैं?

उत्तर – वर्णमाला को मुख्य रूप से दो भागो में बाँटा गया है –

(1) स्वर

(2) व्यंजन

 

प्रश्न 4 – स्वर से क्या आशय है?

उत्तर – ‘स्वयं राजन्ते इति स्वरः’ अर्थात जो वर्ण स्वयं ही उच्चारित होते हैं वे स्वर कहलाते हैं।

दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वांस-वायु बिना किसी रूकावट के अथवा मुख के किसी भाग को बिना छुएँ मुख से निकलती है, उन्हें स्वर कहते हैं।

साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि स्वर वे ध्वनियाँ हैं, जिन्हें इसके उच्चारण के लिए किसी अन्य वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती। स्वर स्वतंत्र रूप से बोले जाते हैं। हिन्दी भाषा में कुल ग्यारह स्वर होते हैं। यह ग्यारह स्वर निम्नलिखित हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ और औ हैं।

 

प्रश्न 5 – स्वरों के उच्चारण के आधार पर कितने भेद हैं?

उत्तर – स्वरों को उच्चारण के आधार पर स्वरों को तीन भागों में बांटा गया है-

ह्रस्व स्वर

दीर्घ स्वर

प्लुत स्वर

 

प्रश्न 6 – हृस्व स्वर को परिभाषित कीजिए?

उत्तर – जिन वर्णों को सबसे कम समय में उच्चारित किया जाता है , उन्हें हर स्वर कहते हैं।

साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि उन स्वरों को हृस्व स्वरों के अंतरगर्त लिया गया जाता है। जिनका उच्चारण करने में सबसे कम समय लगता है। हृस्व स्वर को एकमात्रिक स्वर भी कहा जाता है, क्योंकि इन वर्णों में केवल एक मात्रा होती है। हृस्व स्वर को लघु स्वर या मूल स्वर के नाम से भी जाना जाता हैं।

हृस्व स्वर में अ, इ, उ, ऋ आते हैं। ह्रस्व ‘ऋ’ का प्रयोग केवल संस्कृत के तत्सम शब्दों में होता है जैसे-ऋषि, रितु, कृषि आदि।

 

प्रश्न 7 – दीर्घ स्वर का वर्णन कीजिए?

उत्तर – जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से अधिक समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये स्वर हैं – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

जहाँ हृस्व स्वर एकमात्रिक होता है  वहीं दीर्घ स्वर में एक के स्थान पर दो मात्राएँ होती हैं। दो मात्रा होने के कारण ही उनके उच्चारण में ह्रस्व स्वर की अपेक्षा दोगुना समय लगता है। दीर्घ स्वरों के उदाहरण आ, ई, ऊ हैं। आ वर्ण,अ और अ को जोड़ कर बनता हैं। ई वर्ण, इ और इ को जोड़ कर बनता है। ऊ वर्ण, उ और उ को जोड़ कर बनता है। 

जैसे –

अ + अ = आ

इ + इ = ई

उ + उ = ऊ

 

प्रश्न 8 – प्लुत स्वर किसे कहते हैं?

उत्तर – प्लुत स्वर ऐसे स्वर होते हैं, जिसका उच्चारण करते समय दीर्घ स्वरों से अधिक समय लेता है। जैसे – ॐ = अ + ओ + म्

दूसरे शब्दों में प्लुत स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से तीन गुना अधिक समय लगता है। और वहीं प्लुत स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वर से दो गुना अधिक समय लगता है।

वर्तमान में हिंदी भाषा में तीन मात्राओं के अक्षरों का प्रयोग नहीं किया जाता है। लेकिन वैदिक भाषा में तीन खंड के शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

प्लुत स्वरों को समझने के लिए साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि प्लुत स्वरों का प्रयोग खासकर के किसी को पुकारने एवं बुलाने के समय किया जाता हैं। जैसे – राऽऽम, सुनोऽऽ, इत्यादि।

 

प्रश्न 9 – स्रोत के आधार पर स्वर कितने प्रकार के हैं?

उत्तर – स्रोत के आधार पर स्वरों की संख्या 11 है। इनको दो भागों में बांटा गया है।

मूल स्वर

संयुक्त स्वर

 

प्रश्न 10 – मूल स्वर से क्या अभिप्राय है?

उत्तर – वे स्वर जो स्वतंत्र है अर्थात वे स्वर जो किसी अन्य स्वरों के मिलाने से नहीं बने हैं, मूल स्वर कहलाते हैं। इन मूल स्वरों की संख्या 4 है।

साधारण शब्दों में मूल स्वर ही हृस्व स्वर हैं। जैसे – अ, इ, उ, ऋ।

 

प्रश्न 11 – संयुक्त स्वर किसे कहते हैं?

उत्तर – वह स्वर जो दो और स्वर से मिलकर बने हों उन्हें संयुक्त स्वर कहते हैं अर्थात यह किसी अन्य स्वरों के मिलाने से बने हैं, संयुक्त स्वर कहलाते हैं। इन स्वरों की संख्या 4 हैं। जैसे – ए, ऐ, ओ, औ

अ/आ + इ/ई = ए

अ/आ + ए = ऐ

अ/आ + उ/ऊ = ओ

अ/आ + = औ

 

प्रश्न 12 – उच्चारण स्थान के आधार पर स्वरों के विभाजन का वर्णन कीजिए।

उत्तर – कण्ठ्य स्वर – अ, आ, अ:

तालव्य स्वर – इ, ई

मूर्धन्य स्वर – ऋ

ओष्ठ्य स्वर – उ, ऊ

अनुनासिक स्वर – अं

कण्ठ्य तालव्य स्वर – ए, ऐ

कण्ठयोष्ठ्य स्वर – ओ, औ
 

 
 

FAQ’s –

 

प्रश्न 1 – वर्ण क्या है?

उत्तर – वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है जिसके टुकड़े नहीं किए जा सकते। जैसे – क्, र्, प्, त् आदि।

 

प्रश्न 2 – वर्णमाला क्या है?

उत्तर – किसी भाषा के ध्वनि चिन्हों के व्यवस्थित समूह को वर्णमाला कहते हैं।

 

प्रश्न 3 – हिंदी भाषा की वर्णमाला में कितने वर्ण माने गए हैं?

उत्तर – हिंदी भाषा की वर्णमाला में 48 वर्ण माने गए हैं। जिसमें 11 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं, जबकि कुल व्यंजन 35 होते हैं। दो उच्छिप्त व्यंजन एवं दो अयोगवाह होते हैं।

 

प्रश्न 4 – वर्णमाला को मुख्य रूप से कितने भागो में बाँटा गया है?

उत्तर – वर्णमाला को मुख्य रूप से दो भागो में बाँटा गया है –

(1) स्वर

(2) व्यंजन

 

प्रश्न 5 – स्वर क्या है?

उत्तर – स्वर वे ध्वनियाँ हैं, जिन्हें इसके उच्चारण के लिए किसी अन्य वर्ण की सहायता की आवश्यकता नहीं होती। स्वर स्वतंत्र रूप से बोले जाते हैं।

 

प्रश्न 6 – हिन्दी भाषा में कितने स्वर होते हैं?

उत्तर – हिन्दी भाषा में कुल ग्यारह स्वर होते हैं। यह ग्यारह स्वर निम्नलिखित हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ और औ हैं।

 

प्रश्न 7 – हृस्व स्वर क्या है?

उत्तर – जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है वे हृस्व स्वर कहलाते हैं। हृस्व स्वर को लघु स्वर या मूल स्वर के नाम से भी जाना जाता हैं। हृस्व स्वर में अ, इ, उ, ऋ आते हैं।

 

प्रश्न 8 – दीर्घ स्वर किसे कहते हैं?

उत्तर – जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से अधिक समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये स्वर हैं – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।

 

प्रश्न 9 – प्लुत स्वर किसे कहते हैं?

उत्तर – प्लुत स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से तीन गुना अधिक समय लगता है। जैसे – ॐ = अ + ओ + म्

प्लुत स्वरों का प्रयोग खासकर के किसी को पुकारने एवं बुलाने के समय किया जाता हैं। जैसे – राऽऽम, सुनोऽऽ, इत्यादि।

 

प्रश्न 10 – मूल स्वर कौन से हैं?

उत्तर – वे स्वर जो स्वतंत्र है अर्थात वे स्वर जो किसी अन्य स्वरों के मिलाने से नहीं बने हैं, मूल स्वर कहलाते हैं। इन मूल स्वरों की संख्या 4 है। मूल स्वर ही हृस्व स्वर हैं। जैसे – अ, इ, उ, ऋ।

 

प्रश्न 11 – संयुक्त स्वर को परिभाषित कीजिए।

उत्तर – वह स्वर जो दो और स्वर से मिलकर बने हों उन्हें संयुक्त स्वर कहते हैं अर्थात यह किसी अन्य स्वरों के मिलाने से बने हैं, संयुक्त स्वर कहलाते हैं। इन स्वरों की संख्या 4 हैं। जैसे – ए, ऐ, ओ, औ

 

प्रश्न 12 – संवृत स्वर कौन से हैं?

उत्तर – संवृत अर्थात कम खुला। जिन स्वरों के उच्चारण में मुख कम खुलता है, वे स्वर संवृत स्वर कहलाते हैं। जैसे – इ, ई, उ, ऊ।

 

प्रश्न 13 – विवृत स्वर कौन से हैं?

उत्तर – विवृत अर्थात अधिक खुला। जिन स्वरों के उच्चारण में मुख बहुत अधिक खुलता है, उन्हें विवृत स्वर कहते हैं। जैसे – आ।

 

प्रश्न 14 – वर्तुल या वृत्ताकार स्वर किसे कहते हैं?

उत्तर – जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ की स्थिति वर्तुलाकार अर्थात लगभग वृत्त के समान हो जाती है, वर्तुल या वृत्त मुखी स्वर कहलाते हैं। जैसे – उ, ऊ, ओ, औ।

 

प्रश्न 15 – प्रसृत स्वर किसे कहते हैं?

उत्तर – जिन स्वरों के उच्चारण में होंठ की स्थिति दीर्घवृत्त के समान हो अर्थात वर्तुल आकर न बने, अवर्तुल या आवृत्त मुखी स्वर कहलाते हैं। जैसे – अ ,आ ,इ ,ई ऋ ए और ऐ।