पेड़ की बात सार
CBSE Class 6 Hindi Chapter 13 “Ped Ki Baat”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book
पेड़ की बात सार – Here is the CBSE Class 6 Hindi Malhar Chapter 13 Ped Ki Baat Summary with detailed explanation of the lesson ‘Ped Ki Baat’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 6 हिंदी मल्हार के पाठ 13 पेड़ की बात पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 6 पेड़ की बात पाठ के बारे में जानते हैं।
Ped Ki Baat
Author – Jagdishchandra Basu
Translator – Shankar Sen
क्या आपने कभी कोई बीज बोया है? बीज से पेड़ बनने की कहानी बहुत रोचक है। कैसे अंकुर फूटता है, पौधा बनता है, धीरे-धीरे बढ़ता है और बड़ा पेड़ बन जाता है। आइए जानते हैं पेड़ की बात……
प्रस्तुत पाठ ‘पेड़ की बात’ जगदीशचंद्र बसु द्वारा लिखित है। जिसमें लेखक ने पेड़ों के जीवन चक्र को बहुत सरल और रोचक तरीके से समझाया है। इसमें बताया गया है कि कैसे एक छोटा बीज मिट्टी में पड़ा रहता है, फिर अंकुरित होकर धीरे-धीरे एक बड़ा पेड़ बनता है। पेड़ अपनी जड़ों से मिट्टी से पोषक तत्व और पानी ग्रहण करता है और पत्तों से सूर्य के प्रकाश की मदद से भोजन बनाता है।
पेड़-पौधे पर्यावरण के लिए बहुत जरूरी होते हैं क्योंकि वे प्रदूषित हवा को शुद्ध करते हैं और सभी जीवों को भोजन और आश्रय देते हैं। यह अध्याय हमें यह भी सिखाता है कि पेड़ अपने फूलों और फलों के जरिए नई पीढ़ी के बीज तैयार करते हैं और अंत में खुद सूखकर गिर जाते हैं। इस प्रकार, पेड़ त्याग और सेवा का एक सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।
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पेड़ की बात पाठ सार Ped Ki Baat Summary
यह पाठ हमें पेड़ों के जीवन के बारे में बहुत सुंदर और सरल तरीके से बताता है। पेड़ भी हमारी तरह जन्म लेते हैं, बड़े होते हैं, भोजन करते हैं और फिर नई पीढ़ी को जन्म देकर खुद खत्म हो जाते हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि पेड़ भी एक जीव की तरह महसूस करते हैं, संघर्ष करते हैं और प्रकृति के नियमों का पालन करते हैं।
शुरुआत में बीज मिट्टी के अंदर पड़ा रहता है। धीरे-धीरे समय बीतता है और जब सही मौसम आता है—सर्दियों के बाद वसंत और बारिश—तो बीज से अंकुर निकलता है। यह अंकुर दो भागों में बढ़ता है—एक भाग नीचे की ओर जाता है, जिसे जड़ कहते हैं, और दूसरा भाग ऊपर की ओर बढ़ता है, जिसे तना कहते हैं। पेड़ कितना भी छोटा हो, उसकी जड़ हमेशा नीचे की ओर और तना हमेशा ऊपर की ओर बढ़ता है। यह प्रकृति का नियम है। अगर हम एक पौधे को उल्टा भी लटका दें, तो कुछ समय बाद उसकी जड़ फिर नीचे की ओर और तना ऊपर की ओर मुड़ जाता है।
हम खाना खाते हैं और पानी पीते हैं, लेकिन पेड़ जड़ों से मिट्टी में घुला पानी और पोषक तत्व सोखते हैं। जब बारिश होती है, तो मिट्टी में बहुत से तत्व घुल जाते हैं और पेड़ इन्हें अपनी जड़ों से खींच लेते हैं। जड़ों में छोटे-छोटे नल होते हैं, जिनसे यह रस पूरे पेड़ में पहुँचता है। पेड़ सिर्फ मिट्टी से ही नहीं, बल्कि हवा से भी आहार लेते हैं। उनके पत्तों में बहुत छोटे-छोटे मुँह होते हैं, जिनसे वे हवा को ग्रहण करते हैं। यह प्रक्रिया सूरज की रोशनी की मदद से होती है। पेड़ हमारे द्वारा छोड़ी गई गंदी हवा (अंगारक वायु) को साफ करके ऑक्सीजन में बदल देते हैं, जिससे हम सांस ले पाते हैं।
पेड़-पौधों को जीने के लिए सूरज की रोशनी बहुत जरूरी होती है। अगर पौधे को रोशनी न मिले, तो वह मुरझा जाता है और धीरे-धीरे मर जाता है। इसीलिए, पौधे हमेशा सूरज की ओर मुड़ने की कोशिश करते हैं। जंगलों में पेड़ ऊँचे उठने की कोशिश करते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा रोशनी मिल सके। बेल-लताएँ भी ऊँचे पेड़ों से लिपटकर ऊपर चढ़ती हैं, ताकि वे भी रोशनी तक पहुँच सकें।
पेड़ हमें फल, फूल और बीज देता है। फूलों से ही बीज बनते हैं, जिससे नए पेड़ जन्म लेते हैं। फूल अपने रंग और खुशबू से तितलियों और मधुमक्खियों को आकर्षित करते हैं, जो पराग-कण में मदद करते हैं। जब पेड़ बूढ़ा हो जाता है, तो वह धीरे-धीरे सूखने लगता है। उसकी शाखाएँ कमजोर हो जाती हैं, पत्ते गिर जाते हैं और एक दिन पूरा पेड़ जमीन पर गिर पड़ता है। लेकिन इसके पहले ही वह अपने बीज धरती में छोड़ जाता है, जिससे नए पेड़ उग सकें।
पेड़ हमें सिखाते हैं कि जीवन में त्याग, धैर्य और सेवा कितनी महत्वपूर्ण है। वे बिना किसी स्वार्थ के हमें हवा, फल, लकड़ी और छाया देते हैं। उनका पूरा जीवन दूसरों के लिए समर्पित होता है। हमें भी पेड़ों की तरह सहनशील और परोपकारी बनना चाहिए। इस पाठ से हमें यह सीख मिलती है कि हमें पेड़ों की देखभाल करनी चाहिए और ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने चाहिए, ताकि पृथ्वी हरी-भरी और सुंदर बनी रहे।
पेड़ की बात पाठ व्याख्या Ped Ki Baat Lesson Explanation
पाठ : बहुत दिनों तक मिट्टी के नीचे बीज पड़े रहे। इसी तरह महीना-दर-महीना बीतता गया। सर्दियों के बाद वसंत आया। उसके बाद वर्षा की शुरुआत में दो-एक दिन पानी बरसा। अब और छिपे रहने की आवश्यकता नहीं थी! मानों बाहर से कोई शिशु को पुकार रहा हो, ‘और सोए मत रहो, ऊपर उठ जाओ, सूरज की रोशनी देखो।’ आहिस्ता-आहिस्ता बीज का ढक्कन दरक गया, दो सुकोमल पत्तियों के बीच अंकुर बाहर निकला। अंकुर का एक अंश नीचे माटी में मज़बूती से गड़ गया और दूसरा अंश माटी भेदकर ऊपर की ओर उठा। क्या तुमने अंकुर को उठते देखा है? जैसे कोई शिशु अपना नन्हा-सा सिर उठाकर आश्चर्य से नई दुनिया को देख रहा है!
शब्दार्थ-
महीना-दर-महीना – महीने के बाद महीना, लगातार कई महीने
वसंत – ऋतुओं में एक, जिसे बसंत भी कहते हैं (फरवरी-मार्च)
शिशु – छोटा बच्चा
आहिस्ता-आहिस्ता – धीरे-धीरे
दरकना – फटना, टूटना, हल्का सा खुलना
सुकोमल – नाजुक
अंकुर – बीज से निकलने वाला नया पौधा, नन्हा पौधा
अंश – भाग, हिस्सा
भेदना – छेद करना, पार करना
आश्चर्य – हैरानी
नई दुनिया – यहाँ इसका अर्थ है नया वातावरण, प्रकृति की नई झलक

व्याख्या- लेखक बता रहा है कि बहुत दिनों तक बीज मिट्टी के नीचे दबा रहा। समय धीरे-धीरे बीतता गया और कई महीने गुजर गए। फिर ठंडी सर्दी के बाद वसंत आया और उसके बाद बारिश शुरू हुई। बारिश की हल्की फुहारों ने मिट्टी को नम कर दिया। अब बीज को और छिपे रहने की जरूरत नहीं थी। लेखक कहता है कि ऐसा लग रहा था जैसे कोई शिशु को पुकार रहा हो कि अब सोए मत रहो, ऊपर उठो, सूरज की रोशनी देखो। धीरे-धीरे बीज का खोल टूटने लगा और उसमें से एक नन्हा अंकुर बाहर निकल आया। लेखक बताता है कि अंकुर का एक हिस्सा मिट्टी में मजबूती से जड़ पकड़ने लगा और दूसरा हिस्सा मिट्टी को भेदकर ऊपर की ओर बढ़ने लगा। लेखक पूछता है कि क्या तुमने कभी अंकुर को ऊपर उठते देखा है? वह ऐसे उठता है जैसे कोई छोटा बच्चा अपनी गर्दन उठाकर नई दुनिया को आश्चर्य से देख रहा हो।
पाठ: वृक्ष का अंकुर निकलने पर जो अंश माटी के भीतर प्रवेश करता है, उसका नाम जड़ है और जो अंश ऊपर की ओर बढ़ता है, उसे तना कहते हैं। सभी पेड़-पौधों में ‘जड़ व तना’ ये दो भाग मिलेंगे। यह एक आश्चर्य की बात है कि पेड़-पौधों को जिस तरह ही रखो, जड़ नीचे की ओर जाएगी व तना ऊपर की ओर उठेगा। एक गमले में पौधा था। परीक्षण करने के लिए कुछ दिन गमले को औंधा लटकाए रखा।
पौधे का सिर नीचे की तरफ़ लटका रहा और जड़ ऊपर की ओर रही। दो-एक दिन बाद क्या देखता हूँ कि जैसे पौधे को भी सब भेद मालूम हो गया हो। उसकी सब पत्तियाँ और डालियाँ टेढ़ी होकर ऊपर की तरफ़ उठ आईं तथा जड़ घूमकर नीचे की ओर लटक गई। तुमने कई बार सर्दियों में मूली काटकर बोई होगी। देखा होगा, पहले पत्ते व फूल नीचे की ओर रहे। कुछ दिन बाद देखोगे कि पत्ते और फूल ऊपर की ओर उठ आए हैं।
शब्दार्थ-
माटी – मिट्टी, धरती
जड़ – पौधे का वह भाग जो मिट्टी के अंदर रहता है
तना – पौधे का वह भाग जो ऊपर की ओर बढ़ता है
औंधा – उल्टा, सिर के बल रखा हुआ
लटकाना – ऊपर से टांग देना, झूलने देना
परीक्षण – जाँच, परखने की प्रक्रिया
भेद – रहस्य, जानकारी
बोना – बीज या पौधा जमीन में रोपना
व्याख्या- इस अंश में लेखक कह रहा है कि जब किसी वृक्ष का अंकुर निकलता है, तो उसका एक भाग मिट्टी के अंदर चला जाता है, जिसे ‘जड़’ कहते हैं। वहीं, दूसरा भाग मिट्टी को भेदकर ऊपर की ओर बढ़ता है, जिसे ‘तना’ कहा जाता है। यह एक रोचक बात है कि पेड़-पौधों को किसी भी दिशा में रखो, फिर भी जड़ हमेशा नीचे की ओर और तना ऊपर की ओर ही बढ़ेगा।
लेखक ने एक गमले में पौधा लगाया और परीक्षण के लिए उसे कुछ दिन उल्टा लटका दिया। शुरू में पौधे का सिर नीचे की ओर था और जड़ ऊपर की ओर दिख रही थी। लेकिन कुछ दिनों बाद यह देखा गया कि पौधे की पत्तियाँ और टहनियाँ मुड़कर फिर से ऊपर की ओर उठ गईं, और जड़ भी घूमकर नीचे की ओर झुक गई।
लेखक उदाहरण देता है कि जब सर्दियों में मूली काटकर बोई जाती है, तो पहले उसके पत्ते और फूल नीचे की ओर होते हैं, लेकिन कुछ ही दिनों में वे ऊपर की ओर उठ जाते हैं। इससे पता चलता है कि पौधों में एक प्राकृतिक शक्ति होती है, जो उन्हें हमेशा ऊपर प्रकाश की ओर बढ़ने और जड़ों को नीचे मिट्टी में फैलाने के लिए प्रेरित करती है।
पाठ : हम जिस तरह भोजन करते हैं, पेड़-पौधे भी उसी तरह भोजन करते हैं। हमारे दाँत हैं, कठोर चीज़ खा सकते हैं। नन्हें बच्चों के दाँत नहीं होते वे केवल दूध पी सकते हैं। पेड़-पौधों के भी दाँत नहीं होते, इसलिए वे केवल तरल द्रव्य या वायु से भोजन ग्रहण करते हैं। पेड़-पौधे जड़ के द्वारा माटी से रस-पान करते हैं। चीनी में पानी डालने पर चीनी गल जाती है। माटी में पानी डालने पर उसके भीतर बहुत-से द्रव्य गल जाते हैं। पेड़-पौधे वे ही तमाम द्रव्य सोखते हैं। जड़ों को पानी न मिलने पर पेड़ का भोजन बंद हो जाता है, पेड़ मर जाता है।
सूक्ष्मदर्शी से अत्यंत सूक्ष्म पदार्थ स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। पेड़ की डाल अथवा जड़ का इस यंत्र द्वारा परीक्षण करके देखा जा सकता है कि पेड़ में हज़ारों-हज़ार नल हैं। इन्हीं सब नलों के द्वारा माटी से पेड़ के शरीर में रस का संचार होता है।
शब्दार्थ-
कठोर – सख्त, मजबूत
नन्हें – छोटे
द्रव्य – तरल पदार्थ
रस-पान – पौधों द्वारा मिट्टी से पोषक तत्व ग्रहण करना
सोखना – अवशोषित करना, अंदर लेना
सूक्ष्मदर्शी – बहुत छोटे पदार्थों को देखने का यंत्र
स्पष्ट – साफ़, स्पष्ट रूप से दिखने वाला
संचार – प्रवाह, गति, फैलाव
गलना – घुलना, पिघलना
यंत्र – उपकरण, मशीन
पोषक तत्व – आवश्यक आहार
नलिकाएँ – पतली ट्यूब जैसी आकृति जिनमें से पौधों में जल व पोषण प्रवाहित होते हैं
व्याख्या- प्रस्तुत अंश में लेखक कहते हैं कि जिस तरह हम भोजन करते हैं, वैसे ही पेड़-पौधे भी भोजन करते हैं। हमारे दाँत होते हैं, जिससे हम कठोर भोजन चबा सकते हैं, लेकिन छोटे बच्चों के दाँत नहीं होते, इसलिए वे केवल दूध पीते हैं। इसी तरह, पेड़-पौधों के भी दाँत नहीं होते, इसलिए वे तरल पदार्थ और वायु से अपना भोजन प्राप्त करते हैं।
आगे लेखक कहते हैं कि पेड़-पौधे अपनी जड़ों के माध्यम से मिट्टी से रस ग्रहण करते हैं। जिस तरह चीनी पानी में घुल जाती है, वैसे ही मिट्टी में पानी डालने पर कई पोषक तत्व घुल जाते हैं, जिन्हें पौधे अपनी जड़ों से सोख लेते हैं। अगर जड़ों को पानी न मिले, तो पेड़ भोजन नहीं कर पाता और धीरे-धीरे मर जाता है।
लेखक आगे कहते हैं कि सूक्ष्मदर्शी से देखने पर पेड़ की जड़ों और टहनियों में हजारों-हजार नलिकाएँ दिखाई देती हैं। इन्हीं नलिकाओं के माध्यम से मिट्टी से प्राप्त पोषक तत्व और पानी पूरे पेड़ में संचारित होते हैं, जिससे वह हरा-भरा और स्वस्थ बना रहता है।
पाठ : इसके अलावा वृक्ष के पत्ते हवा से आहार ग्रहण करते हैं। पत्तों में अनगिनत छोटे-छोटे मुँह होते हैं। सूक्ष्मदर्शी के जरिए अनगिनत मुँह पर अनगिनत होंठ देखे जा सकते हैं। जब आहार करने की ज़रूरत न हो तब दोनों होंठ बंद हो जाते हैं। जब हम श्वास-प्रश्वास ग्रहण करते हैं तब प्रश्वास के साथ एक प्रकार की विषाक्त वायु बाहर निकलती है, उसे ‘अंगारक’ वायु कहते हैं। अगर यह ज़हरीली हवा पृथ्वी पर इकट्ठी होती रहे तो तमाम जीव-जंतु कुछ ही दिनों में उसका सेवन करके नष्ट हो सकते हैं। ज़रा विधाता की करुणा का चमत्कार तो देखो, जो जीव-जंतुओं के लिए जहर है, पेड़-पौधे उसी का सेवन करके उसे पूर्ण तथा शुद्ध कर देते हैं। पेड़ के पत्तों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब पत्ते सूर्य ऊर्जा के सहारे ‘अंगारक’ वायु से अंगार निःशेष कर डालते हैं। और यही अंगार वृक्ष के शरीर में प्रवेश करके उसका संवर्द्धन करते हैं। पेड़-पौधे प्रकाश चाहते हैं। प्रकाश न मिलने पर ये बच नहीं सकते। पेड़-पौधों की सर्वाधिक कोशिश यही रहती है कि किसी तरह उन्हें थोड़ा-सा प्रकाश मिल जाए। यदि खिड़की के पास गमले में पौधा रखो, तब देखोगे कि सारी पत्तियाँ व डालियाँ अंधकार से बचकर प्रकाश की ओर बढ़ रही हैं। वन-अरण्य में जाने पर पता लगेगा कि तमाम पेड़-पौधे इस होड़ में सचेष्ट हैं कि कौन जल्दी से सिर उठाकर पहले प्रकाश को झपट ले। बेल-लताएँ छाया में पड़ी रहने से, प्रकाश के अभाव में मर जाएँगी। इसलिए वे पेड़ों से लिपटती हुई, निरंतर ऊपर की ओर अग्रसर होती रहती हैं।
शब्दार्थ-
आहार – भोजन, पोषण
विषाक्त – ज़हरीला, हानिकारक
अंगारक वायु – कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂)
सेवन – ग्रहण करना, लेना
नष्ट – समाप्त, ख़त्म
विधाता – भगवान, सृष्टिकर्ता
करुणा – दया
चमत्कार – अद्भुत घटना
निःशेष करना – पूरी तरह से समाप्त करना
संवर्द्धन – विकास, वृद्धि
सर्वाधिक – सबसे अधिक
होड़ – प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता
सचेष्ट – प्रयासरत, प्रयत्नशील
बेल-लताएँ – लताओं वाली वनस्पति, जो सहारे से बढ़ती है
अग्रसर होना – आगे बढ़ना
व्याख्या- इस अंश में बताया गया है कि पेड़-पौधे सिर्फ जड़ों के जरिए ही भोजन नहीं करते, बल्कि उनके पत्ते भी हवा से आहार ग्रहण करते हैं। पत्तों में बहुत छोटे-छोटे मुँह होते हैं, जिन्हें सूक्ष्मदर्शी से देखा जा सकता है। जब पौधे को भोजन की आवश्यकता नहीं होती, तो ये मुँह बंद हो जाते हैं, और जब आवश्यकता होती है, तो खुल जाते हैं।
जब हम साँस लेते हैं, तो हमारे शरीर से एक विषैली गैस निकलती है, जिसे ‘अंगारक वायु’ कहते हैं। यदि यह गैस वातावरण में अधिक मात्रा में जमा हो जाए, तो सभी जीव-जंतु कुछ ही दिनों में इसके कारण मर सकते हैं। लेकिन प्रकृति ने इस समस्या का समाधान किया है—पेड़-पौधे इस विषैली गैस को ग्रहण कर लेते हैं और उसे शुद्ध करके हमारे लिए उपयोगी बना देते हैं। जब सूर्य की किरणें पत्तों पर पड़ती हैं, तो वे इस अंगारक वायु को अपने भीतर लेकर इसे पोषक तत्वों में बदलते हैं, जिससे वे बड़े और हरे-भरे होते हैं। यह एक तरह से उनका भोजन है, जो सूर्य की रोशनी की मदद से तैयार होता है।
पेड़-पौधों के लिए प्रकाश बहुत जरूरी होता है। अगर उन्हें रोशनी न मिले, तो वे लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकते। इसीलिए वे हमेशा सूर्य की ओर बढ़ने की कोशिश करते हैं। अगर खिड़की के पास कोई पौधा रखा जाए, तो उसकी डालियाँ और पत्तियाँ धीरे-धीरे प्रकाश की ओर मुड़ने लगती हैं। जंगलों में भी पेड़-पौधे एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में रहते हैं ताकि पहले सूर्य की रोशनी प्राप्त कर सकें। बेल-लताएँ, जो छाया में रहकर जीवित नहीं रह सकतीं, वे पेड़ों से लिपटकर ऊपर चढ़ती हैं ताकि सूर्य की रोशनी तक पहुँच सकें। यही कारण है कि कुछ पौधे बहुत ऊँचे हो जाते हैं, जबकि कुछ छोटे और झाड़ियों की तरह फैले रहते हैं।
पाठ : अब तो समझ गए होंगे कि प्रकाश ही जीवन का मूलमंत्र है। सूर्य-किरण का स्पर्श पाकर ही पेड़ पल्लवित होता है। पेड़-पौधों के रेशे-रेशे में सूरज की किरणें आबद्ध हैं। ईंधन को जलाने पर जो प्रकाश व ताप बाहर प्रकट होता है, वह सूर्य की ही ऊर्जा है। पेड़-पौधे व समस्त हरियाली प्रकाश हथियाने के जाल हैं। पशु-डाँगर, पेड़-पौधे या हरियाली खाकर अपने प्राणों का निर्वाह करते हैं। पेड़-पौधों में जो सूर्य का प्रकाश समाहित है वह इसी तरह जंतुओं के शरीर में प्रवेश करता है। अनाज व सब्ज़ी न खाने पर हम भी बच नहीं सकते हैं। सोचकर देखा जाए तो हम भी प्रकाश की खुराक पाने पर ही जीवित हैं।
शब्दार्थ-
मूलमंत्र – आधारभूत सिद्धांत, मूल नियम
सूर्य-किरण – सूरज की रोशनी
स्पर्श – छूना, संपर्क
पल्लवित – हरा-भरा होना, विकसित होना
रेशे-रेशे – तंतु, बहुत छोटे-छोटे भाग
आबद्ध – बंधा हुआ, समाहित
ईंधन – जलने वाली सामग्री, जैसे लकड़ी, कोयला
प्रकट – प्रकट होना, दिखना
ऊर्जा – शक्ति, बल
हथियाना – प्राप्त करना, लेना
पशु-डाँगर – पालतू पशु
निर्वाह – जीवनयापन, गुज़ारा
समाहित – शामिल, संग्रहित
जंतु – जीव, प्राणी
खुराक – भोजन, पोषण
व्याख्या- लेखक हमें यह समझा रहा है कि प्रकाश ही जीवन का मूल आधार है। सूर्य की किरणें जब पेड़-पौधों को छूती हैं, तब वे पल्लवित और विकसित होते हैं। पेड़-पौधों के रेशे-रेशे में सूर्य की ऊर्जा समाहित होती है, और यही ऊर्जा हमें विभिन्न रूपों में प्राप्त होती है। जब हम ईंधन जलाते हैं, तो उसमें से जो प्रकाश और गर्मी निकलती है, वह वास्तव में सूर्य की संचित ऊर्जा होती है, जो कभी पेड़-पौधों ने ग्रहण की थी।
पेड़-पौधे और हरियाली प्रकाश को पकड़ने के प्राकृतिक जाल हैं। पशु-पक्षी और इंसान इन्हीं पेड़-पौधों या उनसे मिलने वाले आहार पर निर्भर होते हैं। जब हम अनाज, फल, सब्ज़ियाँ या मांस खाते हैं, तो वास्तव में हम उसी सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण कर रहे होते हैं, जो पहले पेड़-पौधों में संग्रहित हुई थी।
यदि पेड़-पौधे न हों, तो भोजन का कोई स्रोत नहीं रहेगा और हम भी जीवित नहीं रह पाएँगे। इस तरह देखा जाए तो हम सभी प्रकाश पर ही निर्भर हैं। हमारा जीवन भी सूर्य की ऊर्जा से चलता है, चाहे वह प्रत्यक्ष रूप से हो या अप्रत्यक्ष रूप से। यही कारण है कि प्रकृति में हर जीव सूर्य के प्रकाश का महत्व समझता है और उससे अपने जीवन के लिए ऊर्जा प्राप्त करता है।
पाठ: कोई-कोई पेड़ एक वर्ष के बाद ही मर जाते हैं। सब पेड़ मरने से पहले संतान छोड़ जाने के लिए व्यग्र हैं। बीज ही उनकी संतान है। बीज की सुरक्षा व सार-सँभाल के लिए पेड़ फूल की पंखुड़ियों से घिरा एक छोटा-सा घर तैयार करता है। फूलों से आच्छादित होने पर पेड़ कितना सुंदर दिखलाई पड़ता है। जैसे फूल-फूल के बहाने वह स्वयं हँस रहा हो। फूल की तरह सुंदर चीज़ और क्या है? ज़रा सोचो तो, पेड़-पौधे तो मटमैली माटी से आहार व विषाक्त वायु से अंगारक ग्रहण करते हैं, फिर इस अपरूप उपादान से किस तरह ऐसे सुंदर फूल खिलते हैं। तुमने कथा तो सुनी होगी— स्पर्शमणि की अर्थात पारस पत्थर की, जिसके स्पर्श से लोहा सोना हो जाता है। मेरे विचार से माँ की ममता ही वह मणि है। संतान पर स्नेह न्योछावर होते ही फूल खिलखिला उठते हैं। ममता का स्पर्श पाते ही मानो माटी व अंगार के फूल बन जाते हैं।
शब्दार्थ-
व्यग्र – चिंतित, अधीर
संतान – बच्चा
सार-सँभाल – देखभाल, पालन-पोषण
आच्छादित – ढका हुआ, आवृत
पंखुड़ियाँ – फूल की छोटी-छोटी पत्तियाँ
मटमैली – हल्की गंदी, धूल-धूसरित
अपरूप उपादान – साधारण सामग्री, अजीब तत्व
स्पर्शमणि – पारस पत्थर, छूने से मूल्यवान बनाने वाला रत्न
स्नेह न्योछावर – प्रेम अर्पित करना, पूरी तरह प्यार देना
खिलखिलाना – प्रसन्न होना, हँसना
ममता – मातृस्नेह, माँ का प्यार
अंगारक – विषाक्त वायु, दूषित हवा
पारस पत्थर – वह पत्थर जो लोहे को सोना बना दे (कहावत के अनुसार)
व्याख्या- इस अंश में लेखक कहते हैं कि हर पेड़ अपने जीवन के अंत से पहले अपनी संतान, यानी बीज, को सुरक्षित छोड़ने के लिए उत्सुक रहता है। बीज को बचाने और उसका पालन-पोषण करने के लिए पेड़ फूलों की पंखुड़ियों से एक सुंदर, छोटा-सा घर तैयार करता है। जब पेड़ फूलों से ढक जाता है, तो वह बहुत सुंदर दिखता है, मानो अपनी ही संतानों के जन्म पर प्रसन्न होकर मुस्कुरा रहा हो।
फूलों की सुंदरता बेजोड़ होती है। यह कितनी आश्चर्यजनक बात है कि पेड़ मटमैली मिट्टी से पोषण लेता है और विषाक्त वायु को ग्रहण करता है, फिर भी वह इन साधारण और अप्रिय तत्वों से इतने मनोहर और सुगंधित फूल पैदा करता है। यह दृश्य किसी जादू से कम नहीं लगता।
लेखक इसे पारस पत्थर की कथा से जोड़ते हैं, जिसके छूने से साधारण लोहा सोने में बदल जाता है। लेकिन उनके अनुसार, असली पारस पत्थर माँ की ममता है। जिस तरह माँ अपने बच्चे पर स्नेह लुटाती है और उसे सुंदर, सुसंस्कृत, और महान बनाती है, उसी तरह पेड़ भी अपने बीजों को फूलों की ममता में संजोकर पालता है। जब ममता का स्पर्श मिलता है, तो मिट्टी और विषाक्त तत्व भी बदलकर सुंदर फूल बन जाते हैं। यही प्रकृति का सबसे बड़ा चमत्कार है, जो प्रेम और देखभाल के महत्व को दर्शाता है।
पाठ : पेड़ों पर मुस्कराते फूल देखकर हमें कितनी खुशी होती है! शायद पेड़ भी कम प्रफुल्लित नहीं होते! खुशी के मौके पर हम अपने परिजनों को निमंत्रित करते हैं। उसी प्रकार फूलों की बहार छाने पर पेड़-पौधे भी अपने बंधु-बांधवों को बुलाते हैं। स्नेहसिक्त वाणी में पुकार सकते हैं, “कहाँ हो मेरे बंधु मेरे बांधव, आज मेरे घर आओ। यदि रास्ता भटक जाओ, कहीं घर पहचान नहीं सको, इसलिए रंग-बिरंगे फूलों के निशान लगा रखे हैं। ये रंगीन पंखुड़ियाँ दर से देख सकोगे।” मधुमक्खी व तितली के साथ वृक्ष की चिरकाल से घनिष्ठता है। वे दल-बल सहित फूल देखने आती हैं। कुछ पतंगे दिन के समय पक्षियों के डर से बाहर नहीं निकल सकते। पक्षी उन्हें देखते ही खा जाते हैं, इसलिए रात का अँधेरा घिरने तक वे छिपे रहते हैं। शाम होते ही उन्हें बुलाने की खातिर फूल चारों तरफ़ सुगंध-ही-सुगंध फैला देते हैं।
शब्दार्थ-
प्रफुल्लित – आनंदित, खुश
निमंत्रित – बुलाना, आमंत्रित करना
बंधन-बांधव – रिश्तेदार, मित्र
स्नेहसिक्त – प्रेम से भरी हुई
पुकारना – बुलाना
रंग-बिरंगे – अलग-अलग रंगों वाले
निशान – पहचान, चिह्न
पंखुड़ियाँ – फूल की रंगीन पत्तियाँ
चिरकाल – बहुत लंबे समय से, अनादि काल से
घनिष्ठता – गहरी मित्रता, घनिष्ठ संबंध
दल-बल सहित – अपने समूह के साथ
पतंगे – रात में उड़ने वाले छोटे-छोटे कीट
सुगंध – खुशबू, महक
घिरना – फैल जाना, आ जाना
व्याख्या- लेखक कहते हैं कि जब पेड़ों पर फूल खिलते हैं, तो वे हमें प्रसन्नता से भर देते हैं। जिस तरह हम किसी खुशी के अवसर पर अपने प्रियजनों को आमंत्रित करते हैं, वैसे ही जब पेड़ फूलों से भर जाते हैं, तो वे भी अपने बंधु-बांधवों को बुलाते प्रतीत होते हैं। मानो वे स्नेह भरी वाणी में कह रहे हों की आओ मेरे मित्रो, देखो मेरे घर पर बहार आई है। यदि कोई रास्ता भूल जाए, तो पेड़ अपने रंग-बिरंगे फूलों को संकेत के रूप में प्रस्तुत करते हैं, ताकि दूर से ही पहचान हो सके।
पेड़ और मधुमक्खियाँ तथा तितलियाँ आपस में घनिष्ठ मित्रों की तरह हैं। फूल खिलते ही मधुमक्खियाँ और तितलियाँ बड़ी संख्या में आकर उनका रस ग्रहण करती हैं और बदले में पीले रंग के बारीक दाने को फैलाकर पेड़ की मदद करती हैं। कुछ पतंगे दिन के समय बाहर नहीं निकल सकते, क्योंकि पक्षी उन्हें पकड़कर खा लेते हैं। इसलिए वे रात का इंतजार करते हैं। जैसे ही अंधेरा छाने लगता है, फूल अपनी सुगंध हवा में फैला देते हैं, जिससे ये पतंगे आकर्षित होकर फूलों के पास पहुँचते हैं।
पाठ: वृक्ष अपने फूलों में शहद का संचय करके रखते हैं। मधुमक्खी व तितली बड़े चाव से मधुपान करती हैं। मधुमक्खी के आगमन से वृक्ष का भी उपकार होता है। तुम लोगों ने फूल में पराग-कण देखे होंगे। मधुमक्खियाँ एक फूल के पराग-कण दूसरे फूल पर ले जाती हैं। पराग-कण के बिना बीज पक नहीं सकता।
इस प्रकार फूल में बीज फलता है। अपने शरीर का रस पिलाकर वृक्ष बीजों का पोषण करता है। अब अपनी जिंदगी के लिए उसे मोह-माया का लोभ नहीं है। तिल-तिल कर संतान की खातिर सब-कुछ लुटा देता है। जो शरीर कुछ दिन पहले हरा-भरा था, अब वह बिल्कुल सूख गया है। अपने ही शरीर का भार उठाने की शक्ति क्षीण हो चली है। पहले हवा बयार करती हुई आगे बढ़ जाती थी। पत्ते हवा के संग क्रीड़ा करते थे। छोटी-छोटी डालियाँ ताल-ताल पर नाच उठती थीं। अब सूखा पेड़ हवा का आघात सहन नहीं कर सकता। हवा का बस एक थपेड़ा लगते ही वह थर-थर काँपने लगता है। एक-एक करके सभी डालियाँ टूट पड़ती हैं। अंत में एक दिन अकस्मात पेड़ जड़ सहित भूमि पर गिर पड़ता है।
इस तरह संतान के लिए अपना जीवन न्योछावर करके वृक्ष समाप्त हो जाता है।
शब्दार्थ-
शहद – मधुमक्खियों द्वारा संचित मीठा रस
संचय – एकत्र करना, संग्रह
मधुपान – शहद या मधु पीना
आगमन – आना, उपस्थित होना
उपकार – भला, सहायता
पराग-कण – फूलों में पाया जाने वाला महीन पीला चूर्ण
पोषण – पालन-पोषण, वृद्धि करना
मोह-माया – सांसारिक लालसा
लोभ – लालच
तिल-तिल – धीरे-धीरे
लुटा देना – सब कुछ समर्पित कर देना
क्षीण – कमजोर, नष्ट
क्रीड़ा – खेल, मस्ती
आघात – चोट, झटका
थर-थर काँपना – बहुत ज्यादा डर या कंपन होना
अकस्मात – अचानक
जड़ सहित – पूरे रूप में, पूरी जड़ समेत
न्योछावर – बलिदान करना, समर्पित करना
व्याख्या- लेखक हमें यह समझा रहा है कि वृक्ष अपने फूलों में शहद का संचय करके रखते हैं, जिससे मधुमक्खियाँ और तितलियाँ मधुपान कर सकें। लेकिन यह केवल उनके आनंद के लिए नहीं होता, बल्कि वृक्ष को भी इससे लाभ मिलता है। जब मधुमक्खियाँ फूलों से रस चूसती हैं और उनके
पीले रंग के बारीक दाने एक फूल से दूसरे फूल तक पहुँचाती हैं, तो इससे बीज बनने की प्रक्रिया पूरी होती है। बिना इन पीले रंग के बारीक दानो से बीज नहीं बन सकते, इसलिए मधुमक्खियाँ वृक्ष के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती हैं।
फूलों में बीज बनने के बाद वृक्ष अपनी पूरी शक्ति से उन्हें पोषण देता है। वह अपने शरीर का रस पिलाकर धीरे-धीरे बीजों को बनाता है, ठीक वैसे ही जैसे एक माता-पिता अपने बच्चों के लिए सब कुछ न्योछावर कर देते हैं। अब वृक्ष को अपने जीवन का कोई मोह नहीं रहता। उसकी सारी ऊर्जा संतान के पोषण में लगी रहती है।
धीरे-धीरे वृक्ष बूढ़ा होने लगता है। जो कभी हरा-भरा और मजबूत था, अब वह सूखने लगता है। पहले जो पत्ते हवा के संग खेलते थे, अब वे धीरे-धीरे झड़ने लगते हैं। जो डालियाँ हल्की हवा में नाचती थीं, वे अब इतनी कमजोर हो जाती हैं कि जरा-सा झोंका भी उन्हें तोड़ देता है। वृक्ष की जड़ें कमजोर पड़ जाती हैं। अंत में एक दिन तेज हवा के झोंके से वह पूरा का पूरा धरती पर गिर पड़ता है।
इस तरह, वृक्ष अपने जीवन का बलिदान देकर अपनी संतान को आगे बढ़ाता है। वह खुद सूखकर खत्म हो जाता है, लेकिन अपने बीजों के रूप में नई जिंदगी को जन्म देकर अमर हो जाता है। यह प्रकृति का अटूट नियम है, जिसमें हर जीव किसी न किसी रूप में आगे बढ़ता रहता है।
Conclusion
इस पोस्ट में हमने ‘पेड़ की बात’ नामक पाठ का सारांश, पाठ-व्याख्या और शब्दार्थ को विस्तार से समझाया है। यह पाठ मल्हार पुस्तक में शामिल कक्षा 6 के हिंदी पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
जगदीश चंद्र बसु द्वारा लिखित इस पाठ में एक पेड़ के जीवन चक्र का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है।
इस पोस्ट को पढ़ने के बाद विद्यार्थी न केवल पाठ को बेहतर समझ सकेंगे, बल्कि यह उन्हें परीक्षा में सटीक उत्तर लिखने और महत्वपूर्ण बिंदुओं को याद रखने में भी सहायता करेगा।