जलाते चलो पाठ सार
CBSE Class 6 Hindi Chapter 7 “Jalate Chalo”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book
जलाते चलो सार – Here is the CBSE Class 6 Hindi Malhar Chapter 7 Jalate Chalo Summary with detailed explanation of the lesson ‘Meri Maa’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 6 हिंदी मल्हार के पाठ 7 जलाते चलो पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 6 जलाते चलो पाठ के बारे में जानते हैं।
Jalate Chalo
– द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी
इस कविता के माध्यम से कवि ‘द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी’ मनुष्यों के हृदय में आशा और ज्ञान का संचार करने का प्रयास कर रहे हैं। कवि के अनुसार हर प्रकार की कठिनाइयों और मुसीबतों का सामना करते हुए मनुष्य अपने जीवन के नए रास्तों का निर्माण कर सकता है। मनुष्य को अँधेरे से उजाले की ओर एवं अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ने का प्रयास लगातार करते रहना चाहिए। प्रेम और ज्ञान का सहारा ले कर, यदि मनुष्य मिल-जुलकर आगे बढ़ेंगे, तो विश्व-कल्याण का सपना साकार किया जा सकता है। इसी का मार्गदर्शन कवि इस कविता में कर रहे हैं।
Related:
जलाते चलो पाठ सार Jalate Chalo Summary
जलाते चलो” कविता में द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ने दीपक के माध्यम से साहस, संघर्ष और आशा का संदेश दिया है। यह कविता हमें अज्ञान रूपी अंधकार से न घबराने और निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। दिए का उदाहरण देकर कवि चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रेरित करता है। कवि कहता है कि एक छोटी-सी उम्मीद भी बड़ी-बड़ी कठिनाइयों को हराकर जीत दिला सकती है। कवि लोगों को ज्ञान रूपी दीयों में प्रेम रूपी तेल भर-भर कर डाल कर जलाने को प्रेरित कर रहा है क्योंकि कवि के अनुसार ज्ञान और प्रेम से कभी न कभी तो इस धरती की नफ़रत और बुराइयाँ समाप्त होंगी। आज विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि अमावस्या जैसी अँधेरी रात में पूर्णिमा जैसा उजाला करना संभव है। परन्तु इतना उन्नत होने पर भी आज विश्व में अमावस्या जैसा अन्धकार फैला हुआ है, अर्थात प्रकृति से लगातार खिलवाड़ करने व् विनाशकारी हथियारों के निर्माण के कारण हर ओर दुःख व् निराशा का माहौल है। आज विज्ञान ने रोशनी फैलाने वाले कई उपकरण बना दिए हैं। उन उपकरणों से सही रास्ता दिखाने वाला ज्ञान रूपी प्रकाश नहीं मिल सकता। इसलिए कवि उन्हें बुझा कर ज्ञान रूपी प्रकाश वाले दीपक जलाने को कह रहा है। ज्ञान के रास्ते पर चलते-चलते एक न एक दिन अज्ञान से मुक्ति मिल ही जाती है इसलिए कवि लगातार ज्ञान के पथ पर चलने को कह रहा है। ज्ञान व् संघर्ष को अज्ञान, लालच, स्वार्थ जैसी बुराइयाँ अक्सर मिटाने का प्रयास करती रहती हैं। ज्ञान रूपी मार्ग दिखाने वाले महापुरुषों को अज्ञानी व् पाखंडियों ने मरवा दिया या झूठा साबित कर दिया जिसके कारण कई विरोधियों ने हम पर शासन किया किन्तु उन्हीं महापुरुषों के ज्ञान को सीख रूप में लेकर नई पीढ़ियों ने अज्ञान रूपी अन्धकार को ज्ञान रूपी उजाले में परिवर्तित किया। संघर्ष और प्रेम की कहानी सदियों पुरानी है और ये भविष्य में भी चलती रहेगी क्योंकि संघर्ष और प्रेम व् आशा जीवन के दो पहलू हैं। ज्ञान कभी समाप्त नहीं होता। ज्ञान सदैव चमकता रहता है। यदि धरती पर एक भी ज्ञान रूपी दिया प्रेम रूपी तेल से भरा रहेगा वह अज्ञान रूपी रात को उम्मीद रूपी सवेरा दिखाता रहेगा।
जलाते चलो पाठ व्याख्या Jalate Chalo Explanation
1 –
जलाते चलो ये दिये स्नेह भर-भर
कभी तो धरा का अँधेरा मिटेगा ।
भले शक्ति विज्ञान में है निहित वह
कि जिससे अमावस बनें पूर्णिमा-सी,
मगर विश्व पर आज क्यों दिवस ही में
घिरी आ रही है अमावस निशा-सी।
शब्दार्थ –
जलाते चलो – प्रकाशित करना
स्नेह – प्रेम
धरा – धरती
अँधेरा – अँधकार, निराशा, बुराई
निहित – विध्यमान
विश्व – संसार
दिवस – दिन
निशा – रात
व्याख्या – कवि कहता है कि यदि हम दिए जलाते रहेंगे तो कभी न कभी इस धरती का अन्धकार अवश्य मिट जाएगा। कहने का आशय यह है कि कवि लोगों को ज्ञान रूपी दीयों में प्रेम रूपी तेल भर-भर कर डाल कर जलाने को प्रेरित कर रहा है क्योंकि कवि के अनुसार ज्ञान और प्रेम से कभी न कभी तो इस धरती की नफ़रत और बुराइयाँ समाप्त होंगी। कवि कहता है कि भले ही विज्ञान में अमावस्या को भी पूर्णिमा जैसा प्रकाशमान बनाने की शक्ति विध्यमान है, परन्तु वर्तमान में दिन के समय ही ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे अमावस्या जैसा अन्धकार घिर रहा है। कहने का अभिप्राय यह है कि आज विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि अमावस्या जैसी अँधेरी रात में पूर्णिमा जैसा उजाला करना संभव है। विज्ञान ने अनेक सुख-सुविधाओं का निर्माण किया है। परन्तु इतना उन्नत होने पर भी आज विश्व में अमावस्या जैसा अन्धकार फैला हुआ है, अर्थात प्रकृति से लगातार खिलवाड़ करने व् विनाशकारी हथियारों के निर्माण के कारण हर ओर दुःख व् निराशा का माहौल है।
2 –
बिना स्नेह विधुत-दिये जल रहे जो
बुझाओं इन्हें, यों न पथ मिल सकेगा।
जला दीप पहला तुम्हीं ने तिमिर की
चुनौती प्रथम बार स्वीकार की थी,
तिमिर की सरित पार करने तुम्हीं ने
बना दीप की नाव तैयार की थी।
शब्दार्थ –
विधुत – बिजली
पथ – रास्ता
तिमिर – अँधेरा
चुनौती – ललकार
सरित – नदी
व्याख्या – कवि कहता है कि ये जो बिना प्रेम के बिजली के दिए जल रहे हैं इन्हें बुझा देना चाहिए क्योंकि इनसे रास्ता नहीं मिल सकेगा। कहने का आशय यह है कि आज विज्ञान ने रोशनी फैलाने वाले कई उपकरण बना दिए हैं। उन उपकरणों से कृत्रिम प्रकाश तो मिल सकता है किन्तु सही रास्ता दिखाने वाला ज्ञान रूपी प्रकाश नहीं मिल सकता। इसलिए कवि उन्हें बुझा कर ज्ञान रूपी प्रकाश वाले दीपक जलाने को कह रहा है। कवि कहता है कि जब अन्धकार ने चुनौती दी थी तब तुमने ही पहली बार दीप जलाकर उसकी चुनौती को स्वीकार किया था। अन्धकार की नदी को पार करने के लिए तुमने ही तो दिप की नाव बना कर तैयार की थी। कहने का आशय यह है कि प्राचीन काल से हम मनुष्यों ने ही तो अज्ञान रूपी अन्धकार की चुनौती स्वीकार की है। अज्ञान रूपी अन्धकार व् निराशा की नदी को पार करने के लिए प्रेम व् आशा रूपी नाव भी हम मनुष्यों ने ही तैयार की थी।
3 –
बहाते चलो नाव तुम वह निरंतर
कभी तो तिमिर का किनारा मिलेगा।
युगों से तुम्हीं ने तिमिर की शिला पर
दिये अनगिनत है निरंतर जलाए,
समय साक्षी है कि जलते हुए दीप
अनगिन तुम्हारे पवन ने बुझाए।
शब्दार्थ –
निरंतर – लगातार
शिला – पत्थर, चटान
अनगिनत – जिनकी कोई गिनती न हो
साक्षी – गवाह
पवन – हवा
व्याख्या – कवि कहता है कि अज्ञान रूपी अंधकार की नदी को पार करने के लिए तुमने जो ज्ञान रूपी दिए से नाव बनाई है उस नाव को लगातार चलाते रहना, कभी न कभी तो अज्ञान रूपी अन्धकार की नदी का किनारा मिल ही जाएगा। कहने का आशय यह है कि ज्ञान के रास्ते पर चलते-चलते एक न एक दिन अज्ञान से मुक्ति मिल ही जाती है इसलिए कवि लगातार ज्ञान के पथ पर चलने को कह रहा है। प्राचीन काल से अज्ञान, स्वार्थ व् लालच जैसी बुराइयों से परिपूर्ण अन्धकार की चट्टान पर तुमने ज्ञान व् संघर्ष के दिप जलाए हैं। इस बात का समय गवाह रहा है कि तुम्हारे उन ज्ञान व् संघर्ष के दीयों को अज्ञान, स्वार्थ व् लालच रूपी हवाओं ने बुझाया है। कहने का आशय यह है कि ज्ञान व् संघर्ष को अज्ञान, लालच, स्वार्थ जैसी बुराइयाँ अक्सर मिटाने का प्रयास करती रहती हैं।
4 –
मगर बुझ स्वयं ज्योति जो दे गए वे
उसी से तिमिर को उजेला मिलेगा।
दिये और तुफ़ान की यह कहानी
चली आ रही और चलती रहेगी,
जली जो प्रथम बार लौ दीप की
स्वर्ण-सी जल रही और जलती रहेगी।
रहेगा धरा पर दिया एक भी यदि
कभी तो निशा को सवेरा मिलेगा।
शब्दार्थ –
ज्योति – प्रकाश
उजेला – उजाला
लौ – ज्योति, प्रकाश
स्वर्ण-सी – सोने के सामान
निशा – रात
सवेरा – सुबह
व्याख्या – कवि कहते हैं कि ज्ञान रूपी दीपकों को अज्ञान रूपी हवाओं ने बेशक बुझा दिया परन्तु स्वयं बुझ कर भी उन दीपकों ने ज्ञान रूपी प्रकाश फैलाया। उन्हीं दीयों से अन्धकार को उजाला मिलेगा। कहने का आशय यह है कि ज्ञान रूपी मार्ग दिखाने वाले महापुरुषों को अज्ञानी व् पाखंडियों ने मरवा दिया या झूठा साबित कर दिया जिसके कारण कई विरोधियों ने हम पर शासन किया किन्तु उन्हीं महापुरुषों के ज्ञान को सीख रूप में लेकर नई पीढ़ियों ने अज्ञान रूपी अन्धकार को ज्ञान रूपी उजाले में परिवर्तित किया। दिए और तूफान की यह कहानी सदियों से चली आ रही है और आगे भी चलती रहेगी। और जो ज्ञान रूपी दिप की पहली सोने के सामान रौशनी थी वह आज भी जल रही है और आगे भी जलती रहेगी। कहने का आशय यह है कि संघर्ष और प्रेम की कहानी सदियों पुरानी है और ये भविष्य में भी चलती रहेगी क्योंकि संघर्ष और प्रेम व् आशा जीवन के दो पहलू हैं। ज्ञान रूपी दिए से जो उम्मीद रूपी प्रकाश निकला था उसकी चमक सोने के सामान हमेशा रहेगी क्योंकि ज्ञान कभी समाप्त नहीं होता। ज्ञान सदैव चमकता रहता है। यदि धरती पर एक भी ज्ञान रूपी दिया प्रेम रूपी तेल से भरा रहेगा वह अज्ञान रूपी रात को उम्मीद रूपी सवेरा दिखाता रहेगा।
Conclusion
इस कविता का मुख्य विषय साहस, संघर्ष, और उम्मीद का संदेश है। द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ने दीपक को उदाहरण बनाकर समाज में एक सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास किया है। इस कविता के माध्यम से कवि ने मानव को प्रेम भरी ज्ञान की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया है। कवि सन्देश देते हैं कि जब तक हम प्रेम रूपी ज्ञान के दीपक प्रज्वलित नहीं करेंगे, तब तक बुराइयाँ, निराशा हम पर हावी होती रहेंगी। इस लेख में पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, पाठ पर आधारित प्रश्नोत्तर, अन्य प्रश्न, पठित काव्यांश व् बहुविकल्पात्मक प्रश्नोत्तर दिए गए हैं। यह लेख विद्यार्थियों को पाठ को अच्छे से समझने में सहायक है। विद्यार्थी अपनी परीक्षा के लिए इस लेख की सहायता ले सकते हैं।
Thank you
Not helping because the wards are too much I Will be happy if they explain it in short
Thank you so much