एक टोकरी भर मिट्टी पाठ सार
CBSE Class 8 Hindi Chapter 6 “Ek Tokri Bhar Mitti”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book
एक टोकरी भर मिट्टी सार – Here is the CBSE Class 8 Hindi Malhar Chapter 6 Ek Tokri Bhar Mitti with detailed explanation of the lesson ‘Ek Tokri Bhar Mitti’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 8 हिंदी मल्हार के पाठ 6 एक टोकरी भर मिट्टी पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 8 एक टोकरी भर मिट्टी पाठ के बारे में जानते हैं।
Ek Tokri Bhar Mitti (एक टोकरी भर मिट्टी)
माधवराव सप्रे
‘एक टोकरी भर मिट्टी’ के लेखक माधवराव सप्रे हैं। ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ जैसी कहानियाँ केवल घटनाएँ नहीं सुनातीं, बल्कि मिट्टी से उठते हुए उन प्रश्नों को उठाती हैं जो हमारे सामाजिक ताने-बाने में गाँठ बनकर अटके हैं।
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एक टोकरी भर मिट्टी पाठ सार Ek Tokri Bhar Mitti Summary
‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी में लेखक बताते हैं कि श्रीमान् नाम के ज़मींदार के महल के पास ही एक गरीब और बूढ़ी महिला की झोंपड़ी थी। ज़मींदार साहब की इच्छा हुई कि वे अपने महल के आंगन को उस बूढ़ी महिला की झोंपड़ी तक आगे बढ़ाए। उन्होंने उस बूढ़ी महिला को कई तरह से समझया, परन्तु वह बूढ़ी महिला तो बहुत समय पहले से उस जगह पर रहती थी। उसी झोंपड़ी में रहते हुए उसके प्रिय पति, एक मात्र पुत्र और बहू की मृत्यु हुई थी। उसकी एक पाँच साल की पोती थी। जब भी उसे अपनों की याद आ जाती थी, तो दुख के कारण वह फूट-फूट कर रोने लगती थी और जब से उसे पता चला कि उस के पड़ोसी श्रीमान उसे हटवाना चाहते हैं, तब से वह अत्यधिक दुखी और परेशान रहने लगी थी। उस झोंपड़ी में उस बूढ़ी महिला का मन कुछ इस तरह लग गया था कि वह उस जगह को बिना मरे नहीं छोड़ना चाहती थी। वकीलों की रिश्वत दे कर श्रीमान ने अदालत से बूढ़ी महिला की उस झोंपड़ी पर अपना हक़ साबित कर दिया और बूढ़ी महिला को वहाँ से निकाल दिया। एक दिन श्रीमान् उस बूढ़ी महिला की झोंपड़ी के आस-पास घूम रहा था और लोगों को काम बता रहा था, उसी समय वह बूढ़ी महिला भी अपने हाथ में एक टोकरी लेकर वहाँ पहुँच गई। वह श्रीमान् से क्षमा मांगती है और कहती है कि जब से उसे और उसकी पोती को झोंपड़ी से निकाला गया है, तब से उसकी पोती ने खाना-पीना छोड़ दिया है। वह हर समय बस यही कहती रहती है कि जब उसकी दादी उसे घर अर्थात उसकी झोंपड़ी में वापिस ले चलेगी, तभी वह वहीं रोटी खाएगी। उसकी ऐसी जिद्द देखकर बूढ़ी महिला ने सोचा कि वह अपनी झोंपड़ी में से एक टोकरी भर मिट्टी लेकर उसी मिट्टी का चूल्हा बनाकर उसमें रोटी पकाएगी। ऐसा करने पर उस बूढ़ी महिला को विश्वास है कि उसकी पोती रोटी खाने लगेगी। वह बूढ़ी महिला श्रीमान की अनुमति पा कर झोंपड़ी के अंदर चली गई। अंदर जाते ही उसे वहाँ पर बिताई पुरानी बातें याद आ गई और वह उस झोंपड़ी में बिताए अपने पुराने दिनों को याद करके दुखी हो गई और रोने लगी। वह हाथ जोड़कर श्रीमान् से प्रार्थना करने लगी कि वह दया करके उस टोकरी को थोड़ा सा हाथ लगाए जिससे वह बूढ़ी महिला उस मिट्टी से भरी टोकरी को अपने सिर पर रख सके। पहले तो ज़मींदार साहब उस बूढ़ी महिला की बात सुनकर बहुत नाराज हुए। पर जब उस बूढ़ी महिला ने बार-बार निवेदन करने पर मान गए। जब उन्होंने देखा की टोकरी उठाना उनके लिए कठिन हो रहा है, तो फिर वे शर्मिंदा होकर बूढ़ी महिला से कहने लगे कि, यह मिट्टी से भरी टोकरी उनसे नहीं उठाई जाएगी। श्रीमान की बात सुनकर वह बूढ़ी महिला कहने लगी कि श्रीमान बुरा न माने। उनसे तो एक टोकरी भर मिट्टी उठाई नहीं जा रही है और बूढ़ी महिला की झोंपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी हुई है। उसका भार वे कैसे उठा सकेंगे? ज़मींदार साहब अपने धन-दौलत पर घमंड करते हुए अहंकारी हो गए थे और अपना कर्तव्य भूल गए थे। परन्तु उस बूढ़ी महिला के सभी वचन सुनते ही मानों उनका वास्तविकता से परिचय हो गया था। अपने द्वारा किए गए घृणित कार्य पर पछतावा करते हुए उन्होंने उस बूढ़ी महिला से क्षमा माँगी और उसकी झोंपड़ी उसे वापस भी दे दी।
एक टोकरी भर मिट्टी पाठ व्याख्या Ek Tokri Bhar Mitti Lesson Explanation

पाठ – किसी श्रीमान् ज़मींदार के महल के पास एक गरीब, अनाथ वृद्धा की झोंपड़ी थी। ज़मींदार साहब को अपने महल का अहाता उस झोंपड़ी तक बढ़ाने की इच्छा हुई। वृद्धा से बहुतेरा कहा कि अपनी झोंपड़ी हटा ले, पर वह तो कई ज़माने से वहीं बसी थी। उसका प्रिय पति और इकलौता पुत्र भी उसी झोंपड़ी में मर गया था। पतोहू भी एक पाँच बरस की कन्या को छोड़कर चल बसी थी। अब यही उसकी पोती इस वृद्धावस्था में एकमात्र आधार थी। जब उसे अपनी की याद आ जाती तो मारे दुख के फूट-फूट कर रोने लगती थी और जब से उसने अपने श्रीमान् पड़ोसी की इच्छा का हाल सुना, तब से वह मृतप्राय गई थी। उस झोंपड़ी में उसका ऐसा कुछ मन लग गया था कि बिना मरे वहाँ से वह निकलना ही नहीं चाहती थी। श्रीमान् के सब प्रयत्न निष्फल हुए, तब वे अपनी ज़मींदारी चाल चलने लगे। बाल की खाल निकालने वाले वकीलों की थैली गरम कर उन्होंने अदालत से उस झोंपड़ी पर अपना कब्ज़ा कर लिया और वृद्धा को वहाँ से निकाल दिया। बिचारी अनाथ तो थी ही, पास-पड़ोस में कहीं जाकर रहने लगी।
शब्दार्थ –
ज़मींदार – वह व्यक्ति जिसे किसी विशेष भूमि पर स्वामित्व प्राप्त हो, ज़मीन का मालिक, भू-स्वामी
वृद्धा – महिला बुजुर्ग
झोंपड़ी – कुटिया, घास-फूस से बनी छत का छोटा कच्चा घर
अहाता – दीवार आदि से घिरा हुआ स्थान, बाड़ा, चारदीवारी
बहुतेरा – बहुत बार, कई बार, बहुत तरह से, अनेक प्रकार से
ज़माने – युग, दौर, समय, काल, वक्त
बसना – रहना, ठहरना
इकलौता – एक मात्र
पतोहू – बहू
बरस – वर्ष
आधार – सहारा
मृतप्राय – जो मरने के बहुत समीप हो
प्रयत्न – प्रयास
निष्फल – जिसका कोई फल या परिणाम न हो, व्यर्थ, निरर्थक
बाल की खाल निकालना – बारीकी से छानबीन करना, छोटी से छोटी बातों पर तर्क करना
थैली गरम करना – रिश्वत देना
कब्ज़ा करना – हक़ जमाना
अनाथ – जिसका कोई न हो
व्याख्या – लेखक कहानी सुनाते हुए कहते हैं कि श्रीमान् नाम के ज़मींदार के महल के पास ही एक गरीब और बूढ़ी महिला की झोंपड़ी थी, जिसका इस दुनिया में कोई नहीं था। ज़मींदार साहब की इच्छा हुई कि वे अपने महल के आंगन को उस बूढ़ी महिला की झोंपड़ी तक आगे बढ़ाए। उन्होंने उस बूढ़ी महिला को कई तरह से समझया कि वह बूढ़ी महिला अपनी झोंपड़ी उस जगह से हटा ले, परन्तु वह बूढ़ी महिला तो बहुत समय पहले से उस जगह पर रहती थी। उसी झोंपड़ी में रहते हुए उसके प्रिय पति और एक मात्र पुत्र की मृत्यु भी हुई थी। उसकी बहू भी एक पाँच साल की बेटी को छोड़कर मृत्यु को प्राप्त हो गई थी। उसकी यही पोती उसके बुढ़ापे की एकमात्र सहारा थी। जब भी उसे अपनों की याद आ जाती थी, तो दुख के कारण वह फूट-फूट कर रोने लगती थी और जब से उसे उसके पड़ोसी श्रीमान् की इच्छा का पता चला था, तब से वह मानो मृत्यु के समीप आ गई थी। अर्थात जब से उस बूढ़ी महिला को पता चला कि उसका बसेरा अर्थात रहने की जगह को उसके पड़ोसी श्रीमान हटवाना चाहते हैं, तब से वह अत्यधिक दुखी और परेशान रहने लगी थी। उस झोंपड़ी में उस बूढ़ी महिला का मन कुछ इस तरह लग गया था कि वह उस जगह को बिना मरे नहीं छोड़ना चाहती थी। श्रीमान् ने उसे वहाँ से हटवाने के जितने भी प्रयास किया सभी बेकार हो गए, सभी प्रयास बेकार होने पर श्रीमान अपनी चालाकियों भरी ज़मींदारी चाल चलने लगे। छोटी-छोटी बातों पर तर्क करने वाले वकीलों की रिश्वत दे कर उसने अदालत से बूढ़ी महिला की उस झोंपड़ी पर अपना हक़ साबित कर दिया और बूढ़ी महिला को वहाँ से निकाल दिया। वह बूढ़ी महिला पहले से ही बिलकुल अकेली थी, अब अपनी झोंपड़ी से निकाल देने के कारण पास-पड़ोस में कहीं जाकर रहने को मजबूर हो गई थी।
पाठ – एक दिन श्रीमान् उस झोंपड़ी के आस-पास टहल रहे थे और लोगों को काम बतला रहे थे कि इतने में वह वृद्धा हाथ में एक टोकरी लेकर वहाँ पहुँची। श्रीमान् ने उसको देखते ही अपने नौकरों से कहा कि उसे यहाँ से हटा दो। पर वह गिड़गिड़ाकर बोली, “महाराज, अब तो झोंपड़ी तुम्हारी ही हो गई है। मैं उसे लेने नहीं आई हूँ। महाराज क्षमा करें तो एक विनती है।” ज़मींदार साहब के सिर हिलाने पर उसने कहा, “जब से यह झोंपड़ी छूटी है, तब से मेरी पोती ने खाना-पीना छोड़ दिया है। मैंने बहुत कुछ समझाया, पर वह एक नहीं मानती। यही कहा करती है कि अपने घर चल, वहीं रोटी खाऊँगी। अब मैंने यह सोचा कि इस झोंपड़ी में से एक टोकरी भर मिट्टी लेकर उसी का चूल्हा बनाकर रोटी पकाऊँगी। इससे भरोसा है कि वह रोटी खाने लगेगी। महाराज कृपा करके आज्ञा दीजिए तो इस टोकरी में मिट्टी ले जाऊँ!” श्रीमान् ने आज्ञा दे दी।
शब्दार्थ –
टहलना – घूमना
बतला – बताना
गिड़गिड़ाकर – विनती करके, प्रार्थना करके
विनती – प्राथना
भरोसा – आत्मविश्वास, विश्वास, पक्की आशा
कृपा – दया, मेहरबानी
व्याख्या – लेखक कहानी बताते हुए कहता है कि एक दिन श्रीमान् उस बूढ़ी महिला की झोंपड़ी के आस-पास घूम रहा था और लोगों को काम बता रहा था अर्थात वह अपने आंगन को बड़ा करने के उपाय काम करने वाले लोगों को बता रहा था। उसी समय वह बूढ़ी महिला भी अपने हाथ में एक टोकरी लेकर वहाँ पहुँच गई। जब श्रीमान् ने उसे देखा तो अपने नौकरों से उसे वहाँ से हटा देने को कहा। परन्तु वह बूढ़ी महिला उससे विनती करते हुए कहने लगी कि महाराज, अब तो उसकी वह छोटी से झोंपड़ी श्रीमान् की ही हो गई है। वह बूढ़ी महिला उस झोंपड़ी को वापिस लेने नहीं आई है। वह श्रीमान् से क्षमा मांगती है और एक प्रार्थना करने की विनती मांगती है। ज़मींदार साहब के सिर हिला कर मंजूरी देने पर वह कहती है कि जब से उसकी यह झोंपड़ी उससे छूटी है, अर्थात जब से उसे और उसकी पोती को झोंपड़ी से निकाला गया है, तब से उसकी पोती ने खाना-पीना छोड़ दिया है। उस बूढ़ी महिला ने इसे बहुत समझाया, पर वह उसकी एक भी बात नहीं मान रही है। वह हर समय बस यही कहती रहती है कि जब उसकी दादी उसे घर अर्थात उसकी झोंपड़ी में वापिस ले चलेगी, तभी वह वहीं रोटी खाएगी। उसकी ऐसी जिद्द देखकर बूढ़ी महिला ने सोचा कि वह अपनी झोंपड़ी में से एक टोकरी भर मिट्टी लेकर उसी मिट्टी का चूल्हा बनाकर उसमें रोटी पकाएगी। ऐसा करने पर उस बूढ़ी महिला को विश्वास है कि उसकी पोती रोटी खाने लगेगी। फिर वह श्रीमान् से प्रार्थना करती है कि वह दया करके आज्ञा दें, तो वह अपनी लाइ हुई टोकरी में उस झोंपड़ी की मिट्टी ले जाए। उस बूढ़ी महिला की बातें सुन कर श्रीमान् ने उसे टोकरी भर मिट्टी ले जाने की अनुमति दे दी।
पाठ – वृद्धा झोंपड़ी के भीतर गई। वहाँ जाते ही उसे पुरानी बातों का स्मरण हुआ और उसकी आँखों से आँसू की धारा बहने लगी। अपने आंतरिक दुख को किसी तरह सँभाल कर उसने अपनी टोकरी मिट्टी से भर ली और हाथ से उठाकर बाहर ले आई। फिर हाथ जोड़कर श्रीमान् से प्रार्थना करने लगी कि, “महाराज, कृपा करके इस टोकरी को ज़रा हाथ लगाइए जिससे मैं उसे अपने सिर पर धर लूँ।” ज़मींदार साहब पहले तो बहुत नाराज हुए। पर जब वह बार-बार हाथ जोड़ने लगी और पैरों पर गिरने लगी तो उनके भी मन में कुछ दया आ गई। किसी नौकर से न कहकर आप ही स्वयं टोकरी उठाने को आगे
बढ़े। ज्यों ही टोकरी को हाथ लगाकर ऊपर उठाने लगे त्यों ही देखा कि यह काम उनकी शक्ति के बाहर है। फिर तो उन्होंने अपनी सब ताकत लगाकर टोकरी को उठाना चाहा, पर जिस स्थान पर टोकरी रखी थी, वहाँ से वह एक हाथ भी ऊँची न हुई। वह लज्जित होकर कहने लगे कि, “नहीं, यह टोकरी हमसे न उठाई जाएगी।”
यह सुनकर वृद्धा ने कहा, “महाराज, नाराज न हों… आपसे तो एक टोकरी भर मिट्टी उठाई नहीं जाती और इस झोंपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी है। उसका भार उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिए।”
ज़मींदार साहब धन-मद से गर्वित हो अपना कर्तव्य भूल गए थे पर वृद्धा के उपर्युक्त वचन सुनते ही उनकी आँखें खुल गईं। कृतकर्म का पश्चाताप कर उन्होंने वृद्धा से क्षमा माँगी और उसकी झोंपड़ी वापस दे दी।
शब्दार्थ –
भीतर – अंदर
स्मरण – याद
आंतरिक – अंदर के , अंदरूनी
ज़रा – थोड़ा
धर लूँ – रख लूँ
आप ही – स्वयं, खुद
ज्यों ही – जैसे ही
त्यों ही – वैसे ही
लज्जित – शर्मिंदा
धन-मद – दौलत के नशे में चूर, धन-दौलत पर घमंड करने वाला, अहंकारी, घमंढी व्यक्ति
गर्वित – जिसे गर्व हो, गर्व करने वाला, घमंडी, अहंकारी
आँखें खुल गईं – वास्तविकता का ज्ञान होना, सीख मिलना, सच्चाई का पता चलना
कृतकर्म – किया गया कार्य
पश्चाताप – पछतावा, ग्लानि, खेद, दुःख
व्याख्या – लेखक कहानी आगे बताते हुए कहते हैं कि वह बूढ़ी महिला श्रीमान की अनुमति पा कर झोंपड़ी के अंदर चली गई। अंदर जाते ही उसे वहाँ पर बिताई पुरानी बातें याद आ गई और उन यादों के कारण उसकी आँखों से आँसू की धारा बहने लगी। अर्थात वह उस झोंपड़ी में बिताए अपने पुराने दिनों को याद करके दुखी हो गई और रोने लगी। अपने अंदर के दुख को उसने किसी तरह सँभाल लिया और अपनी टोकरी को मिट्टी से भर लिया। वह उस मिट्टी से भरी टोकरी को हाथ से उठाकर बाहर ले आई। फिर वह हाथ जोड़कर श्रीमान् से प्रार्थना करने लगी कि वह दया करके उस टोकरी को थोड़ा सा हाथ लगाए जिससे वह बूढ़ी महिला उस मिट्टी से भरी टोकरी को अपने सिर पर रख सके। पहले तो ज़मींदार साहब उस बूढ़ी महिला की बात सुनकर बहुत नाराज हुए। पर जब उस बूढ़ी महिला ने बार-बार हाथ जोड़ कर और श्रीमान के पैरों पर गिर कर निवेदन किया, तो श्रीमान
के मन में भी उसके लिए कुछ दया आ गई। श्रीमान ने किसी नौकर से वह टोकरी नहीं उठवाई बल्कि वह खुद ही टोकरी उठाने को आगे बढ़ा। जैसे ही श्रीमान ने टोकरी को हाथ लगाया और ऊपर उठाने लगे, वैसे ही देखा कि यह काम उनकी शक्ति के बाहर है। अर्थात श्रीमान को उस मिट्टी से भरी टोकरी को उठाना अपनी ताकत से ज्यादा कठिन लग रहा था। जब उन्होंने देखा की टोकरी उठाना उनके लिए कठिन हो रहा है, तो फिर उन्होंने अपनी सब ताकत लगाकर टोकरी को उठाना चाहा, परन्तु वह टोकरी जिस स्थान पर रखी थी, वहाँ से एक हाथ भी ऊँची नहीं हुई। अर्थात वह थोड़ी सी भी नहीं उठी। श्रीमान शर्मिंदा होकर बूढ़ी महिला से कहने लगे कि, यह मिट्टी से भरी टोकरी उनसे नहीं उठाई जाएगी। श्रीमान की बात सुनकर वह बूढ़ी महिला कहने लगी कि श्रीमान बुरा न माने। उनसे तो एक टोकरी भर मिट्टी उठाई नहीं जा रही है और बूढ़ी महिला की झोंपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी हुई है। उसका भार वे कैसे उठा सकेंगे? इस बात पर श्रीमान को विचार कर लेना चाहिए। ज़मींदार साहब अपने धन-दौलत पर घमंड करते हुए अहंकारी हो गए थे और अपना कर्तव्य भूल गए थे। परन्तु उस बूढ़ी महिला के सभी वचन सुनते ही मानों उनका वास्तविकता से परिचय हो गया था। अपने द्वारा किए गए घृणित कार्य पर पछतावा करते हुए उन्होंने उस बूढ़ी महिला से क्षमा माँगी और उसकी झोंपड़ी उसे वापस भी दे दी।
Conclusion
‘एक टोकरी भर मिट्टी’ के लेखक माधवराव सप्रे हैं। ‘एक टोकरी भर मिट्टी’ कहानी में बताया गया है कि किस तरह धन और अहंकार ने ज़मींदार को मानवीयता और करुणा से दूर कर दिया था। वृद्धा की पोती उसका एकमात्र सहारा थी, और ज़मींदार ने अनुचित तरीके से झोंपड़ी पर कब्जा किया। वृद्धा ने टोकरी के माध्यम से ज़मींदार को उसके अन्याय का अहसास कराया, जो कहानी का मुख्य संदेश है। प्रस्तुत लेख में पाठ प्रवेश, पाठ सार, शब्दार्थसहित व्याख्या, अभ्यास प्रश्न, अन्य प्रश्न, पठित गद्यांश व् बहुविकल्पात्मक प्रश्न दिए गए हैं जो विद्यार्थियों की परीक्षा में सहायक सिद्ध होंगें।