CBSE Class 7 Hindi Chapter 8 Birju Maharaj Se Sakshatkar (बिरजू महाराज से साक्षात्कार) Question Answers (Important) from Malhar Book

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Birju Maharaj Se Sakshatkar Chapter 8 NCERT Solutions

 

पाठ से

आइए, अब हम बिरजू महाराज से पूछे गए प्रश्नों और उनसे मिले उत्तरों को थोड़ा और निकटता से समझ लेते हैं।

मेरी समझ से

() नीचे दिए गए प्रश्नों का सबसे सही उत्तर कौनसा है? उनके सामने तारा (*) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।

(1) बिरजू महाराज ने गंडा बाँधने की परंपरा में परिवर्तन क्यों किया होगा?

  • वे गुरु के प्रति शिष्य के निष्ठा भाव को परखना चाहते थे।
  • वे नृत्य शिक्षण के लिए इस परंपरा को महत्वपूर्ण नहीं मानते थे।
  • वे नृत्य के प्रति शिष्य के लगन समर्पण भाव को जाँचना चाहते थे।
  • वे शिष्य की भेंट देने की सामर्थ्य को परखना चाहते थे।

उत्तर- वे नृत्य के प्रति शिष्य के लगन समर्पण भाव को जाँचना चाहते थे।

(2) “जीवन में उतार चढ़ाव तो होता ही है।बिरजू महाराज के जीवन में किस तरह के उतारचढ़ाव आए?

  • पिता के देहांत के बाद आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा।
  • कोई भी संस्था नृत्य प्रस्तुतियों के लिए आमंत्रित नहीं करती थी।
  • किसी समय विशेष में घर में सुखसमृद्धि थी।
  • नृत्य के औपचारिक प्रशिक्षण के अवसर बहुत ही सीमित हो गए थे।

उत्तर- पिता के देहांत के बाद आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा।

(3) बिरजू महाराज के अनुसार बच्चों को लय के साथ खेलने की अनुशंसा क्यों की जानी चाहिए?

  • संगीत, नृत्य, नाटक और सभी कलाएँ बच्चों में मानवीय मूल्यों का विकास नहीं करती हैं।
  • कला संबंधी विषयों से जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
  • कला भी एक खेल है, जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
  • वर्तमान समय में कला भी एक सफल माध्यम नहीं है।

उत्तर- कला संबंधी विषयों से जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

() अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए और कारण बताइए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुनें?
उत्तर- मैंने अपने मित्रों से चर्चा की और निम्नलिखित कारण चुने-
कारण 1 – बिरजू महाराज का मानना था कि गंडा बाँधना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि गुरु-शिष्य के बीच पवित्र संबंध की शुरुआत है। उन्होंने यह परंपरा तभी निभाई जब उन्हें शिष्य में सच्ची लगन और समर्पण दिखाई देती थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि वे भेंट या दिखावे से अधिक निष्ठा को महत्व देते थे।
कारण 2 – पाठ में स्पष्ट उल्लेख है कि बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज के निधन के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई थी। उन्हें कम उम्र में ही नृत्य प्रस्तुतियाँ करनी पड़ीं। इससे यह सिद्ध होता है कि उनके जीवन में आर्थिक कठिनाइयाँ एक महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव थीं।
कारण 3 – बिरजू महाराज ने कहा कि नृत्य और संगीत जैसे कलात्मक खेल बच्चों में संतुलन, अनुशासन और समय के सदुपयोग की भावना को जन्म देते हैं। इसलिए कला के माध्यम से बौद्धिक और मानसिक विकास संभव होता है। उन्होंने इसे भी एक प्रकार का खेल कहा, जिससे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

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मिलकर करें मिलान

पाठ में से चुनकर कुछ शब्द एवं शब्द समूह नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें इनके सही संदर्भों या अवधारणाओं से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।

शब्द संदर्भ या अवधारणा
1. कर्नाटक संगीत शैली 1. भारत की प्राचीन गायन-वादन गीत-नृत्य अभिनय पंरपरा का अभिन्न अंग है। इसमें शब्दों की अपेक्षा सुरों का महत्व होता है। इसमें नियमों की प्रधानता होती है।
2. घराना 2. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में प्रचलित है। इसमें स्वर शैली की प्रधानता होती है। जल तरंगम, वीणा, मृदंग, मंडोलिन वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है।
3. शास्त्रीय संगीत 3. हिंद धर्म के 16 संस्कारों में एक है, यह कान में सोने या चाँदी का तार पहनाने से संबंधित है।
4. हिंदुस्तानी संगीत शैली 4. हिंदुस्तानी संगीत में कलाकारों का एक समुदाय या कुटुंब, जो संगीत नृत्य की विशिष्ट शैली साझा करते हैं। संगीत या नृत्य की परंपरा, जिसमें सिद्धांत और शैली पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रशिक्षण के द्वारा आगे बढ़ती है।
5. कनछेदन 5. किसी क्षेत्र विशेष में लोक द्वारा किए जाने वाले पारंपरिक नृत्य। लोक नृत्य, क्षेत्र विशेष की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं। ये विशेष रूप से फसल कटाई, उत्सवों आदि के अवसर पर किए जाते हैं।
6. लोक नृत्य 6. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में प्रचलित है। तबला, सारंगी, सितार, संतूर वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है। इसके प्रमुख रागों की संख्या छह है।

उत्तर- 

शब्द संदभर् या अवधारणा
1. कर्नाटक संगीत शैली 1. भारत की प्राचीन गायन-वादन गीत-नृत्य अभिनय पंरपरा का अभिन्न अंग है। इसमें शब्दों की अपेक्षा सुरों का महत्व होता है। इसमें नियमों की प्रधानता होती है।
2. घराना 2. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में प्रचलित है। इसमें स्वर शैली की प्रधानता होती है। जल तरंगम, वीणा, मृदंग, मंडोलिन वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है।
3. शास्त्रीय संगीत 3. हिंद धर्म के 16 संस्कारों में एक है, यह कान में सोने या चाँदी का तार पहनाने से संबंधित है।
4. हिंदुस्तानी संगीत शैली 4. हिंदुस्तानी संगीत में कलाकारों का एक समुदाय या कुटुंब, जो संगीत नृत्य की विशिष्ट शैली साझा करते हैं। संगीत या नृत्य की परंपरा, जिसमें सिद्धांत और शैली पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रशिक्षण के द्वारा आगे बढ़ती है।
5. कनछेदन 5. किसी क्षेत्र विशेष में लोक द्वारा किए जाने वाले पारंपरिक नृत्य। लोक नृत्य, क्षेत्र विशेष की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं। ये विशेष रूप से फसल कटाई, उत्सवों आदि के अवसर पर किए जाते हैं।
6. लोक नृत्य 6. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में प्रचलित है। तबला, सारंगी, सितार, संतूर वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है। इसके प्रमुख रागों की संख्या छह है।

 

शीर्षक

इस पाठ का शीर्षकबिरजू महाराज से साक्षात्कारहै। यदि आप इस साक्षात्कार को कोई अन्य नाम देना चाहते हैं तो क्या नाम देंगे? आपने यह नाम क्यों सोचा? लिखिए।
उत्तर- यदि मुझे कोई शीर्षक देना होता तो मैं यह शीर्षक चुनता – “कथक सम्राट बिरजू महाराज से बातचीत”
मैंने यह शीर्षक इसलिए चुना क्योंकि यह साक्षात्कार केवल बिरजू महाराज से बातचीत नहीं है, बल्कि उनके जीवन की पूरी यात्रा, उनके संघर्ष, उनकी कला के प्रति समर्पण और उनके विचारों की एक सजीव झलक है। इस शीर्षक में ‘कथक सम्राट’ शब्द उनके नृत्य क्षेत्र में महान योगदान को दर्शाता है, और उनसे बातचीत उनकी पूरी कहानी को बताता है।

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पंक्तियों पर चर्चा

साक्षात्कार में से चुनकर कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार लिखिए।

  • “तुम नौकरी में बँट जाओगे। तुम्हारे अंदर का नर्तक पूरी तरह पनप नहीं पाएगा।”
    उत्तर- इस वाक्य का अर्थ है कि जब इंसान दो कामों में बँट जाता है तो वह किसी एक काम में पूरी तरह मन नहीं लगा पाता। अगर कोई कलाकार है और वह नौकरी में लग गया तो उसके अंदर का कलाकार अपनी पूरी क्षमता से निखर नहीं पाएगा। यह बात चाचा ने बिरजू महाराज से कही थी ताकि वे नृत्य को ही अपना पूरा समय दें और उसमें आगे बढ़ें।
  • “लय हम नर्तकों के लिए देवता है।”
    उत्तर– इस पंक्ति का मतलब है कि लय (ताल, समय का क्रम) नर्तकों के लिए बहुत ही पवित्र और पूजनीय चीज़ होती है। जैसे हम भगवान की पूजा करते हैं, वैसे ही नर्तक लय को मानते हैं क्योंकि नृत्य की सुंदरता और सफलता लय पर ही निर्भर करती है।
  • “नृत्य में शरीर, ध्यान और तपस्या का साधन होता है।”
    उत्तर– इसका अर्थ है कि नृत्य केवल हाथ-पाँव हिलाने का काम नहीं है। इसमें शरीर को साधना होता है, मन को एकाग्र करना होता है और बहुत अभ्यास करना पड़ता है। यह पूरी तरह साधना (तपस्या) की तरह होता है, जिसमें मेहनत, अनुशासन और समर्पण की जरूरत होती है।
  • “कथक में गर्दन को हल्के से हिलाया जाता है, चिराग की लौ के समान।”
    उत्तर- यह वाक्य कथक की कोमलता और सुंदरता को दर्शाता है। चिराग की लौ बहुत धीरे-धीरे हिलती है, ठीक वैसे ही कथक में गर्दन की हरकतें बहुत सौम्य और नियंत्रित होती हैं। इससे नृत्य में नज़ाकत और भावनाएँ सुंदर रूप में प्रकट होती हैं।

 

सोच-विचार के लिए

1. साक्षात्कार को एक बार पुनः पढ़िए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए।

(क) बिरजू महाराज नृत्य का औपचारिक प्रशिक्षण आरंभ होने से पहले ही कथक कैसे सीख गए थे?
उत्तर- बिरजू महाराज के घर में कथक का माहौल था। उनके पिता और चाचा सभी प्रसिद्ध कथक नर्तक थे। वे बचपन से उन्हें नाचते हुए देखते थे और उसी को देखकर उन्होंने बिना औपचारिक प्रशिक्षण के कथक सीख लिया। इसीलिए वे बहुत छोटी उम्र में ही नवाब के दरबार में नाचने लगे थे।

(ख) नृत्य सीखने के लिए संगीत की समझ होना क्यों अनिवार्य है?
उत्तर- नृत्य में लय, ताल और भावों की जरूरत होती है, जो संगीत से जुड़ी होती हैं। अगर नर्तक को संगीत और लय की समझ नहीं होगी तो उसका नृत्य असंतुलित और बिना भावना के हो जाएगा। लय नृत्य को सुंदरता और संतुलन प्रदान करती है, इसलिए संगीत की समझ जरूरी है।

(ग) नृत्य के अतिरिक्त बिरजू महाराज को और किन-किन कार्यों में रुचि थी?
उत्तर- बिरजू महाराज को मशीनें खोलने और ठीक करने में बहुत रुचि थी। वे हमेशा अपने साथ औजार रखते थे और फ्रिज, पंखा आदि खुद ठीक करते थे। इसके अलावा उन्हें चित्रकला का भी शौक था। वे रात को पेंटिंग बनाते थे और दो साल में उन्होंने लगभग सत्तर चित्र बनाए।

(घ) बिरजू महाराज ने बच्चों की शिक्षा और रुचियों के बारे में अभिभावकों से क्या कहा है?
उत्तर– बिरजू महाराज ने कहा कि अगर बच्चों की गाना, बजाना या नाचने में रुचि हो तो माता-पिता को उन्हें ज़रूर प्रोत्साहित करना चाहिए। यह भी एक खेल की तरह है जिसमें बच्चे बहुत कुछ सीखते हैं। इससे बच्चों में संतुलन, समय का सही उपयोग और बौद्धिक विकास होता है। उन्होंने कहा कि हुनर एक ऐसा खजाना है जिसे कोई नहीं छीन सकता।

2. पाठ में से उन प्रसंगों की पहचानकर उन पर चर्चा कीजिए, जिनसे पता चलता है कि—

(क) बिरजू महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
उत्तर– पाठ में कई स्थानों पर यह साफ़ दिखता है कि बिरजू महाराज सिर्फ़ एक अच्छे नर्तक ही नहीं, बल्कि बहुत से क्षेत्रों में माहिर थे। उन्हें कथक के साथ-साथ गायन, तबला और हारमोनियम बजाने का भी ज्ञान था। उन्होंने नृत्य नाटिकाओं के लिए संगीत भी तैयार किया। इसके अलावा उन्हें मशीनों की जानकारी थी—वे पंखा, फ्रिज जैसी चीज़ें खुद ठीक कर लेते थे। उन्हें चित्रकला का भी शौक था और उन्होंने दो वर्षों में लगभग सत्तर चित्र बनाए। यह सब दर्शाता है कि वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।

(ख) बिरजू महाराज को नृत्य की ऊँचाइयों तक पहुँचाने में उनकी माँ का बहुत योगदान रहा।
उत्तर– पाठ में बताया गया है कि जब उनके पिता की मृत्यु के बाद आर्थिक कठिनाइयाँ आईं, तब उनकी माँ ने बहुत संघर्ष किया। कभी कर्ज लेकर, तो कभी ज़री की पुरानी साड़ियाँ जलाकर उनका सोना-चाँदी निकालकर घर चलाया। माँ ने उन्हें हमेशा यह सिखाया कि भले ही खाने को कुछ न हो, लेकिन अभ्यास ज़रूर करना चाहिए। यहाँ तक कि उन्होंने बिरजू महाराज के दो कार्यक्रमों से मिले पैसे को भेंट स्वरूप उनके पिता को देकर उनका ‘गंडा बंधवाया’। उनकी माँ ने हमेशा उन्हें नृत्य के लिए प्रेरित किया और उनका मनोबल बढ़ाया।

(ग) बिरजू महाराज महिलाओं के लिए समानता के पक्षधर थे।
उत्तर- बिरजू महाराज ने कहा कि उनके समय में उनकी बहनों को कथक नहीं सिखाया गया था, लेकिन उन्होंने अपनी बेटियों को ज़रूर सिखाया। उनका मानना था कि लड़कियों को पढ़ाई के साथ-साथ कोई न कोई हुनर ज़रूर आना चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। वे कहते हैं कि हुनर एक ऐसा खज़ाना है जिसे कोई छीन नहीं सकता। इससे स्पष्ट होता है कि वे महिलाओं के अधिकार और समानता के समर्थक थे।

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शब्दों की बात

(क) पाठ में आए हुए कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं, इन्हें ध्यान से पढ़िए—

आजीविका, सीमित, प्रशिक्षण, सुंदरता, आधुनिक, पारंपरिक, भारतीय, सामूहिक, शास्त्रीय

आपने इन शब्दों पर ध्यान दिया होगा कि मूल शब्द के आगे या पीछे कोई शब्दांश जोड़कर नया शब्द बना है। इससे शब्द के अर्थ में परिवर्तन आ गया है। शब्द के आगे जुड़ने वाले शब्दांश उपसर्ग कहलाते हैं, जैसे कि–अदृश्य – अ + दृश्य
आवरण – आ + वरण
प्रशिक्षण – प्र + शिक्षण

यहाँ पर ‘अ’, ‘आ’, ‘प्र’ उपसर्ग हैं।
शब्द के पीछे जुड़ने वाले शब्दांश प्रत्यय कहलाते हैं और मूल शब्द के अर्थ में नवीनता, परिवर्तन या विशेष प्रभाव उत्पन्न करते हैं. जैसे कि–
सीमित – सीमा + इत
सुंदरता – सुंदर + ता
भारतीय – भारत + इय
सामूहिक – समूह + इक

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यहाँ पर ‘इत’, ‘ता’, ‘ईय’, और ‘इक’ प्रत्यय हैं।
(ख) नीचे दो तबले हैं, एक में कुछ शब्दांश (उपसर्ग व प्रत्यय) हैं, दूसरे तबले में मूल शब्द हैं। इनकी सहायता से नए शब्द बनाइए-

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उत्तर-
उपसर्ग + मूल शब्द= नया शब्द
आ + गमन = आगमन
आ + साधारण = आसाधारण
अ + कर्म = अकर्म
सु + नाम = सुनाम

मूल शब्द + प्रत्यय = नया शब्द
राष्ट्र + ईय = राष्ट्रीय
खंड + इत = खंडित
श्रम + इक = श्रमिक
मर्म + इक = मार्मिक
संस्कृति + इक = सांस्कृतिक

(ग) इस पाठ में से उपसर्ग व प्रत्यय की सहायता से बने कुछ और शब्द छाँटकर उनसे वाक्य बनाइए।
उत्तर-
उपसर्ग के उदाहरण –
अ + दृश्य = अदृश्य
वाक्य- हवा अदृश्य होती है, लेकिन हम उसे महसूस कर सकते हैं।
प्र + शिक्षण = प्रशिक्षण
वाक्य- नर्तकों को मंच पर प्रस्तुति देने से पहले प्रशिक्षण लेना होता है।
प्र + चलन = प्रचलन
वाक्य- आजकल मोबाइल फोन का बहुत अधिक प्रचलन हो गया है।
सद + उपयोग = सदुपयोग
वाक्य- समय का सदुपयोग करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल होता है।
अनु + शासन = अनुशासन
वाक्य- विद्यालय में अनुशासन बनाए रखना जरूरी होता है।

प्रत्यय के उदाहरण –
सुन्दर + ता= सुंदरता
वाक्य- फूलों की सुंदरता सबका मन मोह लेती है।
समूह + इक = सामूहिक
वाक्य- गाँव के लोग सामूहिक रूप से त्योहार मनाते हैं।
शास्त्र = ईय = शास्त्रीय
वाक्य- बिरजू महाराज शास्त्रीय नृत्य के प्रसिद्ध कलाकार थे।
अर्थ + इक = आर्थिक
वाक्य- पिता के देहांत के बाद परिवार को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा।
उपचार + इक= औपचारिक
वाक्य- कथक का औपचारिक प्रशिक्षण बिरजू महाराज ने अपने पिता से लिया।

शब्दों का प्रभाव

पाठ में आए नीचे दिए गए वाक्य पढ़िए-
1. “कुछ कथिक डर गए किंतु उन कथिकों की कला में दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उन कथिकों के कथक में इतना मग्न हो गए।” इस वाक्य में रेखांकित शब्द ‘इतना हटाकर वाक्य पढ़िए और पहचानिए कि क्या परिवर्तन आया है?
पाठ में आए हुए वाक्यों में से ऐसे ही कुछ और शब्द ढूँढ़कर उन्हें रेखांकित कीजिए जिनके प्रयोग से वाक्य में विशेष प्रभाव उत्पन्न होता है?
उत्तर- नीचे कुछ उदाहरण दिए गए हैं-
“भेंट मिलने पर ही गंडा बाँधूंगा।”
‘ही’ शब्द ज़ोर देकर बताता है कि बिना भेंट के गुरु कुछ नहीं करेंगे।

“खाने को भले ही चना मिले या कुछ भी न मिले पर अभ्यास ज़रूर करो।”
‘ज़रूर’ शब्द अभ्यास की अनिवार्यता और दृढ़ता को बताता है।

“नींद में भी हाथ चलता रहता है।”
‘भी’ शब्द बताता है कि वे कितने समर्पित हैं, कि सोते हुए भी अभ्यास करते हैं।

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पाठ से आगे

कला का संसार

() बिरजू महाराजकथक की पुरानी परंपरा को तो कायम रखा है। हाँ, उसके प्रस्तुतीकरण में बदलाव किए हैं।इस कथन को ध्यान में रखते हुए लिखिए कि कथक की प्रस्तुतियों में किस प्रकार के परिवर्तन आए हैं?
उत्तर- बिरजू महाराज ने कहा कि उन्होंने कथक की पुरानी परंपरा को बनाए रखा, लेकिन उसके प्रस्तुतीकरण यानी उसे दिखाने के ढंग में कुछ बदलाव किए हैं। पहले कथक सिर्फ मंदिरों में या दरबारों में किया जाता था, और उसमें बहुत लंबी-लंबी कथाएँ विस्तार से दिखाई जाती थीं। अब कथक के मंच और दर्शकों का रूप बदल गया है।
जो इस प्रकार हैं-

  1. कथक की प्रस्तुति अब मंच पर होती है, पहले ज़मीन पर बैठकर देखा जाता था।
  2. अब कथक में भाव-भंगिमाएँ और चेहरे के हाव-भाव को ज़्यादा सुंदर और साफ़ दिखाया जाता है।
  3. पुराने कवियों के साथ-साथ रवींद्रनाथ टैगोर और त्यागराज जैसे आधुनिक कवियों की रचनाओं को भी कथक में शामिल किया गया है।
  4. पहले कथक एकदम पारंपरिक होता था, अब उसमें थोड़ी आधुनिकता और रचनात्मकता जुड़ गई है।
  5. अब कथक को नाटक और संगीत के साथ मिलाकर भी प्रस्तुत किया जाता है, जिससे वह और रोचक बन गया है।

(ख) लोकनृत्य और शास्त्रीय नृत्य में क्या अंतर है? लिखिए।
(इस प्रश्न के उत्तर के लिए आप अपने सहपाठियों, अभिभावकों, शिक्षकों. पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता भी ले सकते हैं।)

उत्तर-
लोकनृत्य और शास्त्रीय नृत्य दोनों ही भारत की संस्कृति का हिस्सा हैं, लेकिन इनमें कुछ मुख्य अंतर होते हैं-

विषय लोकनृत्य शास्त्रीय नृत्य
उद्देश्य मनोरंजन और खुशी के लिए किया जाता है। कला, साधना और भावों की अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है।
स्थान त्योहारों, मेलों, गाँवों में खुले स्थानों पर किया जाता है। मंच पर या किसी खास जगह (जैसे मंदिर या सभागार) में किया जाता है।
प्रशिक्षण इसे लोग अपने आप सीखते हैं, कोई गुरु जरूरी नहीं होता। इसे गुरु से सीखना होता है, औपचारिक प्रशिक्षण जरूरी होता है।
रचना सरल और सामूहिक होता है। कठिन और एकल प्रदर्शन अधिक होता है।
उदाहरण गरबा, गिद्दा, भांगड़ा, कालबेलिया कथक, भरतनाट्यम, ओडिसी, कुचिपुड़ी

(ग) “बैरगिया नाला जुलुम जोर,
नौ कथिक नचावें तीन चोर।
जब तबला बोले धीन-धीन,
तब एक-एक पर तीन-तीन ।”
इस पाठ में हरिया गाँव में गाए जाने वाले उपर्युक्त पद का उल्लेख है। आप अपने क्षेत्र में गाए जाने वाले किसी लोकगीत को कक्षा में प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
प्रथम मास असाढि सखि हो, गरज गरज के सुनाय।
सामी के अईसन कठिन जियरा, मास असाढ नहि आय॥

सावन रिमझिम बुनवा बरिसे, पियवा भिजेला परदेस।
पिया पिया कहि रटेले कामिनि, जंगल बोलेला मोर॥

भादो रइनी भयावन सखि हो, चारु ओर बरसेला धार।
चकवी त चारु ओर मोर बोले दादुर सबद सुनाई॥

कुवार ए सखि कुँवर बिदेश गईले, तीनि निसान।
सीर सेनुर, नयन काजर, जोबन जी के काल॥

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साक्षात्कार की रचना

प्रस्तुत पाठ की विधा ‘साक्षात्कार’ है। सामान्यत: इसे बातचीत या भेंटवार्ता का पर्याय मान लिया जाता है, लेकिन यह भेंटवार्ता से इस संदर्भ में भिन्न है कि इसका एक निश्चित उद्देश्य और ढाँचा होता है। यह साक्षात्कार किसी नौकरी या पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए होने वाले साक्षात्कार से बिल्कुल भिन्न है। प्रस्तुत साक्षात्कार एक प्रकार से व्यक्तिपरक साक्षात्कार है। इसका उद्देश्य साक्षात्कारदाता के निजी जीवन, उनके कामकाज, उपलब्धियों, रुचि अरुचि, विचारों आदि को पाठकों के सामने लाना है। किसी भी प्रकार के साक्षात्कार के लिए पर्याप्त तैयारी, संवेदनशीलता और धैर्य की आवश्यकता होती है। साक्षात्कार की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि साक्षात्कारदाता के संदर्भ में कितना शोध किया गया है और प्रश्न किस प्रकार के बनाए गए हैं।
प्रस्तुत ‘साक्षात्कार’ के आधार पर बताइए—

(क) साक्षात्कार से पहले क्या-क्या तैयारियाँ की गई होंगी?
उत्तर– साक्षात्कार से पहले साक्षात्कारकर्ता ने बिरजू महाराज के जीवन, उनके नृत्य रूप कथक, उनके परिवार, शिष्यों और योगदान के बारे में गहराई से अध्ययन किया होगा। उन्हें यह भी जानना पड़ा होगा कि कथक के विभिन्न घराने कौन-कौन से हैं, और बिरजू महाराज किस घराने से संबंधित हैं। साथ ही, साक्षात्कारकर्ता ने ऐसे प्रश्न तैयार किए होंगे जो उनके बचपन, संघर्ष, उपलब्धियाँ, विचार, कला में योगदान और निजी रुचियों को उजागर कर सकें। सबसे जरूरी, उन्हें यह तय करना पड़ा होगा कि बातचीत सम्मानजनक, सहज, और ज्ञानवर्धक हो।

(ख) आप इस साक्षात्कार में और क्या-क्या प्रश्न जोड़ना चाहेंगे?
उत्तर- यदि मैं यह साक्षात्कार ले रही होती, तो मैं कुछ और प्रश्न जोड़ती:

  1. आपने जब पहली बार मंच पर प्रस्तुति दी, वह अनुभव कैसा था?
  2. क्या कभी किसी प्रस्तुति के दौरान कोई कठिन स्थिति आई? आपने कैसे सँभाला?
  3. आज के बच्चों के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे जो कला के क्षेत्र में आना चाहते हैं?
  4. आपको अपनी कौन-सी प्रस्तुति सबसे प्रिय लगती है और क्यों?
  5. आजकल की कथक प्रस्तुतियों में आप क्या बदलाव देख रहे हैं?

() यह साक्षात्कार एक सुप्रसिद्ध कलाकार का है। यदि आपको किसी सब्जी विक्रेता, रिक्शा चालक, घरेलू सहायक या सहायिका का साक्षात्कार लेना हो तो आपके प्रश्न किस प्रकार के होंगे?
उत्तर- इन पेशों से जुड़े लोगों के जीवन को जानने के लिए मैं सीधे, सरल और सहानुभूतिपूर्ण प्रश्न पूछूँगी। उदाहरण के लिए-

सब्जी विक्रेता से प्रश्न-

  1. आप कब से यह काम कर रहे हैं?
  2. सब्जियाँ कहाँ से लाते हैं?
  3. सबसे ज़्यादा बिकने वाली सब्जी कौन-सी है?
  4. बारिश या गर्मी में आपको किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है?
  5. क्या आपके बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं?

रिक्शा चालक से प्रश्न-

  1. आप दिन भर में कितनी सवारी करते हैं?
  2. किस मौसम में काम सबसे मुश्किल हो जाता है?
  3. सबसे लंबी सवारी कहाँ तक की है?
  4. आप अपने खाली समय में क्या करते हैं?
  5. आप अपने बच्चों के भविष्य के बारे में क्या सपना देखते हैं?

घरेलू सहायिका से प्रश्न-

  1. आप कब से यह काम कर रही हैं?
  2. क्या एक दिन में कई घरों में काम करना मुश्किल होता है?
  3. आपको सबसे ज़्यादा क्या अच्छा लगता है अपने काम में?
  4. घर और काम को कैसे संतुलित करती हैं?
  5. आप अपने बच्चों को क्या बनाना चाहती हैं?

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सृजन

आपके विद्यालय में कथक नृत्य का आयोजन होने जा रहा है।

() आप दर्शकों को कथक नृत्यकला के बारे में क्याक्या बताएँगे? लिखिए।
उत्तर- मैं दर्शकों को कथक नृत्यकला के बारे में बताऊँगा-
कथक भारत का एक प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य रूप है। यह शब्द ‘कथा’ से बना है, जिसका अर्थ है – कहानी। पहले यह नृत्य मंदिरों में भगवान की कथाएँ कहने के लिए किया जाता था। बाद में यह राजदरबारों में भी लोकप्रिय हो गया।
कथक में सुंदर घूमने की गतियाँ, भाव-भंगिमाएँ (हाव-भाव), और ताल की अद्भुत प्रस्तुति होती है। इसमें तबले और पखावज जैसे वाद्य यंत्रों का प्रमुख उपयोग होता है। कथक के तीन प्रमुख घराने हैं – लखनऊ, जयपुर और बनारस।
बिरजू महाराज जैसे महान कलाकारों ने इस कला को बहुत ऊँचाई दी है।

() इस कार्यक्रम की सूचना देने के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए।
उत्तर-

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(
) यदि इस नृत्य कार्यक्रम में कोई दृष्टिबाधित दर्शक है और वह नृत्य का आनंद लेना चाहे तो इसके लिए विद्यालय की ओर से क्या व्यवस्था की जानी चाहिए?
उत्तर- दृष्टिबाधित दर्शक के लिए विद्यालय को विशेष व्यवस्था करनी चाहिए ताकि वह नृत्य का आनंद ले सके-

  1. एक विवरणात्मक कमेंट्री की व्यवस्था हो, जिसमें मंच पर हो रही हर गतिविधि जैसे नर्तक की भाव-भंगिमा, घूमना, ताल, हाव-भाव आदि का शब्दों में सुंदर वर्णन किया जाए।
  2. एक प्रशिक्षित स्वयंसेवक को उनके पास बैठाकर उन्हें धीरे-धीरे सब कुछ समझाते रहना चाहिए।
  3. कार्यक्रम के पहले उन्हें कथक नृत्य की विशेषताओं और भावों की सामान्य जानकारी ऑडियो माध्यम से दी जा सकती है।
  4. इससे वे नृत्य को सुनकर अनुभव कर पाएँगे और उनकी भागीदारी सार्थक होगी।

आज की पहेली

“अगर नर्तक को सुरताल की समझ है तो वह जान पाएगा कि यह लहरा ठीक नहीं है, इसके माध्यम से नृत्य अंगों में प्रवेश नहीं करेगा।संगीत में लय को प्रदर्शित करने के लिए ताल का सहारा लिया जाता है। किसी भी गीत की पंक्तियों में लगने वाले समय को मात्राओं द्वारा ठीक उसी प्रकार मापा जाता है, जैसे दैनिक जीवन में व्यतीत हो रहे समय को हम सेकेंड के द्वारा मापते हैं। ताल कई मात्रा समूहों का संयुक्त रूप होता है। संगीत के समय को मापने की सबसे छोटी इकाई मात्रा है और ताल कई मात्राओं का संयुक्त रूप है। जिस तरह घंटे में मिनट और मिनट में सेकेंड होते हैं, उसी तरह ताल में मात्रा होती है। आज हम आपके लिए ताल से जुड़ी एक अनोखी पहेली लाए हैं।
एक विद्यार्थी ने अपनी डायरी में अपने विद्यालय के किसी एक दिन का उल्लेख किया है। उस उल्लेख में संगीत की कुछ तालों के नाम आए हैं। आप उन तालों के नाम ढूँढ़िए

कल हमारे विद्यालय में संगीत और नृत्य सभा का आयोजन हुआ था। उसमें एकदो नहीं बल्कि चार कलाकार आए थे। उन कलाकारों में एक का नाम रूपक और दूसरे का नाम लक्ष्मी था। शेष दो कलाकारों के नाम पता नहीं चल पाए। वे दोनों जब अपनी प्रस्तुति के लिए मंच पर आए तो दर्शकों से पूछने लगे— “तिलवाड़ा, दादरा या झूमरा?” दर्शक बोले— “तीनों में से कोई नहीं। हमें दीपचंदी और कहरवा पसंद है।दर्शकों की यह बात सुनते ही कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति प्रारंभ कर दी।

अब नीचे दी गई शब्द पहेली में से संगीत की उन तालों के नाम ढूँढ़कर लिखिए

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उत्तर-

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झरोखे से

नृत्य की छटाएँ

बिरजू महाराज ने भारत के विभिन्न राज्यों के शास्त्रीय नृत्यों का उल्लेख किया है। आइए, इनके बारे में अपनी समझ बढ़ाते हैं

Birju Maharaj Se Sakshatkar QNA img 12भरतनाट्यमयह नृत्य विधा का सर्वाधिक प्राचीन रूप है। इसका नामभरतमुनितथानाट्यमशब्द से मिलकर बना है। कुछ विद्वानभरतशब्द को राग ताल, भाव से भी जोड़ते हैं। इस नृत्य विद्या की उत्पत्ति का संबंध तमिलनाडु में मंदिर नर्तकों की एकल नृत्य प्रस्तुतिसादिरसे है।

 

कथकली दक्षिण भारत के एक राज्य के मंदिरों में रामायण तथा महाभारत की कहानियाँ प्रस्तुत करने वाली दो लोक नाट्य परंपराएँ, रामानाट्टम तथा कृष्णानाट्टम कथकली के उद्भव का स्रोत हैं। यह संगीत, नृत्य और नाटक का अद्भुत संयोजन है। Birju Maharaj Se Sakshatkar QNA img 13सुप्रसिद्ध मलयाली कवि वी. एन. मेनन के द्वारा राजा मुकुंद के संरक्षण में इसका प्रचारप्रसार हुआ। यह नृत्य पुरूष मंडली द्वारा किया जाता है। इसकी विषयवस्तु महाकाव्यों और पुराणों में वर्णित कहानियाँ होती हैं। पूरे नृत्य नाटक का अनमोल आभूषण हैं भावभंगिमाएँ। आँखों और भौहों का लय संचालन बहुत महत्वपूर्ण है।

 

कथकब्रजभूमि की रासलीला से उत्पन्न, कथक एक परंपरागत नृत्य विद्या है। कथक का नामकथिकसे लिया गया है, जिसे कथावाचक भी कहते हैं।Birju Maharaj Se Sakshatkar QNA img 14 ये कथिक महाकाव्यों के पदों छंदों को संगीत तथा भावभंगिमाओं के साथ प्रस्तुत करते थे। कथक की महत्वपूर्ण विशेषता विभिन्न घरानों का विकास है। जुगलबंदी कथक प्रस्तुति का मुख्य आकर्षण है, जिसमें तबलावादक तथा नर्तक के बीच प्रतिस्पर्धात्मक खेल होता है।

 

Birju Maharaj Se Sakshatkar QNA img 15कुचिपुड़ीआंध्र प्रदेश का कुचिपुड़ी नृत्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक पारंपरिक शैली है। कुचिपुड़ी नृत्य प्रस्तुति प्रार्थना से आरंभ होती है, तत्पश्चात नृत्यअभिनय को प्रस्तुत किया जाता है। नृत्य प्रस्तुति के साथ कर्नाटक संगीत की संगत दी जाती है। कुचिपुड़ी नृत्य का समापन तरंगम प्रस्तुति के पश्चात होता है।

 

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मणिपुरी नृत्य पौराणिक आख्यानों के अनुसार मणिपुरी नृत्य का स्रोत भारत के एक उत्तरपूर्वी राज्य मणिपुर की घाटियों में स्थानीय गंधर्वों के साथ शिव और पार्वती का दैवीय नृत्य है। इस राज्य के प्रमुख त्योहारलाई हरोबामें इस नृत्य को करने का प्रचलन है। सामान्यत: यह नृत्य स्त्रियों द्वारा किया जाता है। इसमें चेहरे की अभिव्यक्ति के स्थान पर हाथ के हावभाव पैरों की गति महत्वपूर्ण होती है।

 

Birju Maharaj Se Sakshatkar QNA img 17ओडिसी नृत्यनाट्यशास्त्र में उल्लिखितसोदा नृत्यसे ओडिसी नृत्य रूप को नाम मिला है। कुछ भावमुद्राएँ भरतनाट्यम् से मिलतीजुलती हैं। इस नृत्य रूप का मुख्य आकर्षण है। त्रिभंग मुद्रा अर्थात शरीर का तीन मोड़ वाला रूप। नृत्य के दौरान शरीर का निचला हिस्सा काफी सीमा तक स्थिर रहता है और धड़ लयताल के साथ गति करता है।

 

Birju Maharaj Se Sakshatkar QNA img 18मोहिनीअट्टम भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में से एक मोहिनीअट्टम का उद्भव केरल राज्य में हुआ। मोहिनीअट्टम की विशेषता घुमावदार कोमल भाव वाले आंगिक अभिनय हैं। इस नृत्य के अंतर्गत अभिनय पर बल दिया जाता है। इस नृत्य शैली में मुख की अभिव्यक्ति और हस्तमुद्राओं को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। नर्तकियाँ पारंपरिक पोशाक पहनती हैं जिसेमुंडूकहा जाता है। पारंपरिक रूप से मोहिनीअट्टम केवल स्त्रियों द्वारा ही किया जाता है, जबकि कथकली केवल पुरुषों द्वारा किया जाता है।

 

साझी समझ

अभी आपने शास्त्रीय नृत्यों को निकटता से जाना समझा। पाँचपाँच विद्यार्थियों के समूह में भारत के लोक नृत्यों की सूची बनाइए और उनकी विशिष्टताओं का पता लगाइए।

नीचे दिए गए भारत के मानचित्र में राज्यानुसार शास्त्रीय एवं लोक नृत्य दर्शाइए।

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स्रोत—https://surveyofindia.gov.in/webroot/UserFiles/files/1_16-state%20boundary.pdf

उत्तर- 

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खोजबीन के लिए

नीचे दी गई इंटरनेट कड़ियों की सहायता से आप भारतीय नृत्य, संगीत और बिरजू महाराज के बारे में जानसमझ सकते हैं

भारतीय शास्त्रीय संगीत में नृत्य संग
https://www.youtube.com/watch?v=W1ZXCUgi848

कथक परिचय भाग 7
https://www.youtube.com/watch?v=Dprj69iAM24

पंडित बिरजू महाराज
https://www.youtube.com/watch?v=0r3M8D2eAGg&list=PLqtVCj5ilH6BnMc

 

पढ़ने के लिए

नृत्यांगना सुधा चंद्रनBirju Maharaj Se Sakshatkar QNA img 21

जीवन के किसी भी क्षेत्र में शिखर तक पहुँचने के लिए दृढ इच्छाशक्ति और कठिन परिश्रम की आवश्यकता पड़ती है। कई लोग ऐसे भी हुए हैं, जिन्होंने शारीरिक अक्षमता के बावजूद संघर्ष किया है और लक्ष्य प्राप्त किया है। ऐसा ही एक नाम हैसुधा चंद्रना पैर खराब होने के बावजूद वह चोटी की नृत्यांगना बनी।

सुधा चंद्रन की माता श्रीमती भंगम एवं पिता श्री के. डी. चंद्रन की हार्दिक इच्छा थी कि उनकी पुत्री राष्ट्रीय ख्याति की नृत्यांगना बने। इसीलिए चंद्रन दंपत्ति ने सुधा को पाँच वर्ष की अल्पायु में ही मुंबई के प्रसिद्ध नृत्य विद्यालयकलासदन में प्रवेश दिलवाया। पहलेपहल तो नृत्य विद्यालय के शिक्षकों ने इतनी छोटी उम्र की बच्ची के दाखिले में हिचकिचाहट महसूस की, किंतु सुधा की प्रतिभा देखकर सुप्रसिद्ध नृत्य शिक्षक श्री के. एस. रामास्वामी भागवतार ने उसे शिष्या के रूप में स्वीकार कर लिया और सुधा उनसे नियमित प्रशिक्षण प्राप्त करने लगी। जल्द ही सुधा के नृत्य कार्यक्रम विद्यालय के आयोजनों में होने लगे। नृत्य के साथसाथ, अध्ययन में भी सुधा ने अपनी प्रतिभा दिखाई, लेकिन सुधा के स्वप्नों की इंद्रधनुषी दुनिया में एकाएक 2 मई, 1981 को अँधेरा छा गया।

2 मई को तिरूचिरापल्ली से मद्रास (चेन्नई) जाते समय उनकी बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस दुर्घटना में सुधा के बाएँ पाँव की एडी टूट गई और दायाँ पाँव बुरी तरह जख्मी हो गया। प्लास्टर लगने पर बायाँ पाँव तो ठीक हो गया, किंतु दायें पैर में गैंग्रीन‘ (एक प्रकार का कैंसर) हो गया। ऐसे में डॉक्टरों के पास सुधा का दायाँ पैर काट देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। अंततः दुर्घटना के एक महीने बाद सुधा का दायाँ पैर घुटने के साढ़े सात इंच नीचे से काट दिया गया। एक पैर का कट जाना संभवतः किसी भी नृत्यांगना के जीवन का अंत ही होता। सुधा के साथ भी यही हुआ। सुधा ने लकड़ी के गुटके के पाँव और बैसाखियों के सहारे चलना शुरू कर दिया और मुंबई आकर वह पुनः अपनी पढ़ाई में जुट गई।

इसी बीच सुधा ने मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सुप्रसिद्ध कृत्रिम अंग विशेषज्ञ डॉ. पी.सी. सेठी के बारे में सुना। वह जयपुर गई और डॉ. सेठी से मिली। डॉ. सेठी ने सुधा को आश्वस्त किया कि वह दुबारा सामान्य ढंग से चल सकेगी। इस पर सुधा ने पूछाक्या मैं नाच सकूँगी ?” डॉ. सेठी ने कहा—“क्यों नहीं, प्रयास करो तो सब कुछ संभव है।डॉ. सेठी ने सुधा के लिए एक विशेष प्रकार का पैर बनाया, जो अल्यूमिनियम का था और इसमें ऐसी व्यवस्था थी कि वह पैर को आसानी से घुमा सकती थी। सुधा एक नए विश्वास के साथ मुंबई लौटी और उसने नृत्य का अभ्यास शुरू करना चाहा, किंतु इस प्रयास में कटे हुए पैर से खून निकलने लगा। कोई भी सामान्य व्यक्ति इस तरह की घटना के बाद दुबारा नाचने की हिम्मत कतई नहीं करता, किंतु सुधा साधारण मिट्टी की नहीं बनी थी। जल्दी ही उसने अपनी निराशा पर काबू प्राप्त किया और अपने नृत्य प्रशिक्षक को साथ लेकर डॉ. सेठी से पुनः मिली।

डॉ. सेठी ने सुधा के नृत्य प्रशिक्षक से नृत्य हेतु पाँवों की विभिन्न मुद्राओं को गंभीरता से देखापरखा और एक नया पैर बनवाया, जो नृत्य की विशेष जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया गया था। पैर लगाते समय डॉ. सेठी ने सुधा से कहा– “मैं जो कुछ कर सकता था मैंने कर दिया, अब तुम्हारी बारी है।सुधा ने पुनः नृत्य का अभ्यास प्रारंभ किया। शुरूआत बहुत अच्छी नहीं रही। कटे हुए पाँव के ठूंठ से खून रिसने लगा, किंतु सुधा ने कड़ा अभ्यास जारी रखा। कठिन अभ्यास से सुधा जल्द ही सामान्य नृत्य मुद्राओं को प्रदर्शित करने में सफल हो गई। 28 जनवरी, 1984 को मुंबई केसाउथ इंडिया वेलफेयर सोसायटीके हाल में एक अन्य नृत्यांगना प्रीति के साथ सुधा ने दुबारा नृत्य के सार्वजनिक प्रदर्शन का आमंत्रण स्वीकार कर लिया। यह दिन सुधा की जिदंगी का संभवतः सबसे कठिन दिन था, उस दिन से भी ज्यादा जबकि उसका पाँव काट दिया गया था। सुधा का यह प्रदर्शन बेहद सफल रहा। चहेतों ने उसे देखतेदेखते पलकों पर उठा लिया और वह रातोंरात एक ऐतिहासिक महत्त्व की व्यक्तित्व हो गई।

उसकी अद्भुत जीवनयात्रा से प्रभावित होकर तेलुगु के फिल्मकार ने उसकी जिंदगी को आधार बनाकर एक कहानी लिखवाई औरमयूरीनाम से तेलुगु में एक फिल्म बनाई। अपने पात्र को सुधा ने स्वयं परदे पर जीवंत कर दिया। फिल्म को अद्भुत सफलता मिली और इस फिल्म में अभिनय के लिए सुधा को भारत के 33वें राष्ट्रीय फिल्म समारोह में विशेष पुरस्कार प्रदान किया गया।मयूरीकी सफलता को देखते हुए इसके निर्माता ने यह फिल्म हिंदी में भी नाचे मयूरीनाम से प्रदर्शित की और सुधा ने पूरे भारत को अपनी प्रतिभा का मुरीद कर दिया। आज सुधा एक नृत्यांगना ही नहीं, फिल्म कलाकार भी है। सुधा को उसके असामान्य साहस और श्रेष्ठ उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं।

रामाज्ञा तिवारी

 

Class 7 Hindi Birju Maharaj Se Sakshatkar– Extract Based Questions (गद्यांश पर आधारित प्रश्न)

निम्नलिखित गद्याँशों को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उत्तर दीजिये-

1
श्रेया – सुना है कि आपका बचपन संघर्षों से भरा हुआ था। अपने बचपन के बारे में कुछ बताएँगे?
बिरजू महाराज – एक जमाना था जब हमलोग छोटे नवाब कहलाते थे। हवेली के दरवाजे पर आठ-आठ सिपाहियों का पहरा होता था। मेरे बाबूजी के देहांत के बाद आर्थिक परेशानियाँ बढ़ने लगीं। जिन डिब्बों में कभी तीन-चार लाख की कीमत के हार हुआ करते थे वे अब खाली पड़े थे। जीवन में उतार-चढ़ाव तो होता ही है। सब समय का चक्र है। संघर्षों के दौर में मेरी सबसे बड़ी सहयोगी मेरी माँ थीं। कभी कर्ज लेते थे तो कभी पुरानी ज़री की साड़ियाँ जलाकर उनके सोने-चाँदी के तार बेचते थे और गुजारा करते थे। नृत्य के कार्यक्रमों से भी कभी-कभी पैसा आ जाता था। दिन में खाना खाते थे तो रात को कई बार नहीं भी खाते थे। अम्मा बार-बार यही कहा करती थीं, “खाने को भले ही चना मिले या कुछ भी न मिले पर अभ्यास जरूर करो।”
तनुश्री – आपने कथक किससे सीखा?
बिरजू महाराज – मेरे गुरु थे मेरे पिता अच्छन महाराज और चाचा शंभू महाराज और लच्छू महाराज । घर में चूँकि कथक का माहौल था, अत: औपचारिक प्रशिक्षण शुरू होने से पहले ही मैं देख-देखकर कथक सीख गया था और नवाब के दरबार में नाचने भी लगा था। कथक की तालीम शुरू करते समय गुरु शिष्यों को गंडा (ताबीज़) बाँधते हैं और शिष्य गुरु को भेंट देता है। जब मेरी तालीम शुरू होने की बात आई तो बाबूजी ने कहा, “भेंट मिलने पर ही गंडा बाँधूंगा।” इस पर अम्मा ने मेरे दो कार्यक्रमों की कमाई बाबूजी को भेंट के रूप में दे दी। ‘गंडा’ गुरु और शिष्य के बीच पवित्र रिश्ता होता है। मैंने अब इस रस्म को उल्टा कर दिया है। कई वर्षों तक नृत्य सिखाने के बाद जब देखता हूँ कि शिष्य में सच्ची लगन है तभी गंडा बाँधता हूँ।

1.बिरजू महाराज के बचपन में कौन-सी बड़ी घटना उनके जीवन में संघर्ष का कारण बनी?
(क) उनका विद्यालय छूट गया
(ख) उनके पिता का देहांत हो गया
(ग) उन्हें नृत्य नहीं करने दिया गया
(घ) उनकी माँ बीमार हो गईं
उत्तर – (ख) उनके पिता का देहांत हो गया

2. गंडा बाँधने की परंपरा का क्या महत्व है?
(क) यह गुरु और शिष्य के बीच एक पवित्र रिश्ता दर्शाता है।
(ख) यह एक फैशन है
(ग) यह सिर्फ पैसे कमाने की विधि है
(घ) यह प्रतियोगिता जीतने के लिए किया जाता है
उत्तर – (क) यह गुरु और शिष्य के बीच एक पवित्र रिश्ता दर्शाता है।

3. बिरजू महाराज के बचपन में उन्हें किन आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
उत्तर- पिता के देहांत के बाद उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी। घर के कीमती गहने रखने वाले डिब्बे खाली हो गए थे। कभी कर्ज लेकर, कभी ज़री की साड़ियों के तार बेचकर गुजारा करते थे। कभी-कभी तो रात का खाना भी नहीं होता था।

4. बिरजू महाराज ने कथक की शिक्षा औपचारिक रूप से कब और कैसे शुरू की?
उत्तर– उन्होंने कथक देख-देखकर बचपन में ही सीखना शुरू कर दिया था क्योंकि घर में कथक का माहौल था। जब औपचारिक तालीम शुरू हुई तो उनके पिता ने गंडा बाँधने के लिए भेंट माँगी, जो उनकी माँ ने उनके दो कार्यक्रमों की कमाई से दी।

5. बिरजू महाराज ने गंडा बाँधने की परंपरा में क्या बदलाव किया?
उत्तर– बिरजू महाराज ने परंपरा को उलट दिया। अब वे पहले कई वर्षों तक शिष्य को सिखाते हैं और जब उन्हें लगता है कि शिष्य में सच्ची लगन और समर्पण है, तभी गंडा बाँधते हैं।

2
तनुश्री – क्या पढ़ाई या दूसरे कामों के साथ-साथ संगीत और नृत्य जारी रखना संभव है?
बिरजू महाराज – यह तो अपने सामर्थ्य पर निर्भर करता है। मेरी शिष्या शोभना नारायण आई.ए.एस. अफसर हैं और अच्छी नर्तकी भी। मैं नृत्य के साथ-साथ बजाता और गाता भी हूँ। इसके अतिरिक्त नृत्य नाटिकाएँ और उनके लिए संगीत भी तैयार करता हूँ। मैंने जब नौकरी शुरू की तो मेरे चाचा ने कहा, “तुम नौकरी में बँट जाओगे। तुम्हारे अंदर का नर्तक पूरी तरह पनप नहीं पाएगा।” पर मैंने दृढ़ निश्चय किया था कि ‘महाराज’ बनना है तो उसके लिए मेहनत भी करनी होगी।
माणिक – कथक की शुरुआत कब हुई ?
बिरजू महाराज – कथक की परंपरा बहुत पुरानी है। ‘महाभारत’ के आदिपर्व और ‘रामायण’ में इसकी चर्चा मिलती है। पहले कथक रोचक और अनौपचारिक रूप से कथा कहने का ढंग होता था । तब यह मंदिरों तक ही सीमित था। हमारे लखनऊ घराने के लोग मूलत: बनारस-इलाहाबाद के बीच हरिया गाँव के रहने वाले थे। वहाँ 989 कथिकों के घर हुआ करते थे। कथिकों का एक तालाब अभी भी है। गाँव में एक बैरगिया नाला है, जिसके साथ यह कहानी जुड़ी हुई है— एक बार नौ कथिक नाले के पास से गुजर रहे थे कि तीन डाकू वहाँ आ पहुँचे। कुछ कथिक डर गए, किंतु उन कथिकों की कला में इतना दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उन कथिकों के कथक में मग्न हो गए। तब से यह पद लोगों में प्रचलित हो गया-
बैरगिया नाला जुलुम जोर,
नौ कथिक नचावें तीन चोर।
जब तबला बोले धीन-धीन,
तब एक-एक पर तीन-तीन।
लखनऊ घराने के बाद जयपुर घराने और फिर बनारस घराने का विकास हुआ। इसके अलावा रायगढ़ के महाराज चक्रधर की भी अपनी अलग शैली थी।

1. बिरजू महाराज के अनुसार पढ़ाई के साथ नृत्य और संगीत सीखना किस पर निर्भर करता है?
(क) परिवार के सहयोग पर
(ख) गुरु की इच्छा पर
(ग) व्यक्ति के सामर्थ्य पर
(घ) समय की उपलब्धता पर
उत्तर- (ग) व्यक्ति के सामर्थ्य पर

2. कथक की शुरुआत कहाँ से मानी जाती है?
(क) महाभारत और रामायण के समय से
(ख) भरतनाट्यम से
(ग) लखनऊ और बनारस से
(घ) दक्षिण भारत से
उत्तर- (क) महाभारत और रामायण के समय से

3. “बैरगिया नाला जुलुम जोर…” यह पद किस घटना से जुड़ा हुआ है?
(क) कथक की प्रस्तुति पर इनाम मिलने से
(ख) डाकुओं को कथक दिखाने की घटना से
(ग) कथक सिखाने की परंपरा से
(घ) घराने के बदलाव से
उत्तर– (ख) डाकुओं को कथक दिखाने की घटना से

4. कथक का प्रारंभिक स्वरूप कैसा था और वह कहाँ प्रस्तुत किया जाता था?
उत्तर- कथक की शुरुआत कथा कहने की रोचक और अनौपचारिक शैली के रूप में हुई थी। यह मूल रूप से मंदिरों में प्रस्तुत किया जाता था, जहाँ कलाकार कथा को भावों और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत करते थे।

5. बैरगिया नाले की घटना से कथक की कौन-सी विशेषता सामने आती है?
उत्तर– इस घटना से स्पष्ट होता है कि कथक में इतनी शक्ति और आकर्षण था कि डाकू जैसे अपराधी भी उसकी प्रस्तुति में मग्न हो गए और सब कुछ भूल गए।

3
श्रेया – क्या नृत्य सीखने के लिए संगीत जानना जरूरी होता है?
बिरजू महाराज – गाना, बजाना और नाचना – ये तीनों संगीत का हिस्सा हैं। संगीत में लय होती है। उसका ज्ञान आवश्यक है। नृत्य में शरीर, ध्यान और तपस्या का साधन होता है। नृत्य करना एक तरह अदृश्य शक्ति को निमंत्रण देना है— , मेरे अंदर समाओ और नाचो। नृत्य ही नहीं, हमारी हर गतिविधि में लय होती है। घसियारा घास को हाथ से पकड़ कर उस पर हँसिया मारता है और फिर घास हटाता है। मारने और हटाने की इस लय में जरा भी गड़बड़ी हुई नहीं कि उसका हाथ गया। लय हर काम में, नृत्य में, जीवन में संतुलन बनाए रखती है। लय एक तरह का आवरण है, जो नृत्य को सुंदरता प्रदान करती है। अगर नर्तक को सुर-समझ है तो वह जान पाएगा कि यह लहरा ठीक नहीं है। इसके माध्यम से नृत्य अंगों में प्रवेश नहीं करेगा।
तनुश्री – आपने कथक में कई नई चीजें भी जोड़ी हैं न?
बिरजू महाराज – कथक की पुरानी परंपरा को तो कायम रखा है। हाँ, उसके प्रस्तुतीकरण में बदलाव किए हैं। हमने गौर किया कि हमारे चाचा लोग और बाबूजी नाचते तो खूबसूरत थे ही, उनके खड़े होने का अंदाज भी निराला होता था। हमने उन भाव-भंगिमाओं को भी कथक में शामिल कर लिया। चाचा लोग और बाबूजी हमारे लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश थे। हमने तीनों की शिक्षा को इकट्ठा करके एक नया रूप तैयार किया। इसी प्रकार टैगोर, त्यागराज आदि कई आधुनिक कवियों की रचनाओं को लेकर भी कथक रचनाएँ तैयार कीं।

1.बिरजू महाराज के अनुसार नृत्य करने के लिए संगीत क्यों आवश्यक है?
(क) नृत्य में गति लाने के लिए
(ख) नृत्य को सुंदर दिखाने के लिए
(ग) लय और संतुलन के लिए
(घ) ताल समझने के लिए
उत्तर- (ग) लय और संतुलन के लिए

2. बिरजू महाराज ने कथक की प्रस्तुति में कौन-से परिवर्तन किए?
(क) कथक के नियम बदल दिए
(ख) चाचा और बाबूजी की भाव-भंगिमाएँ जोड़ दीं
(ग) शास्त्रीय ताल छोड़ दिए
(घ) कथक में वादन शामिल नहीं किया
उत्तर– (ख) चाचा और बाबूजी की भाव-भंगिमाएँ जोड़ दीं

3. बिरजू महाराज के अनुसार लय का क्या महत्व है?
(क) केवल ताल पहचानने के लिए
(ख) नर्तक को सजाने के लिए
(ग) नृत्य और जीवन में संतुलन लाने के लिए
(घ) मंच सजाने के लिए
उत्तर- (ग) नृत्य और जीवन में संतुलन लाने के लिए

4. क्या नृत्य सीखने के लिए संगीत की समझ जरूरी है?
उत्तर– हाँ, नृत्य सीखने के लिए संगीत की समझ जरूरी है क्योंकि संगीत में लय होती है जो नृत्य को सुंदरता और संतुलन प्रदान करती है। बिना लय के नृत्य में भाव नहीं आ पाते। संगीत के सुर और ताल से नर्तक अपने अंगों को सही ढंग से चला सकता है।

5. बिरजू महाराज ने कथक की परंपरा को कैसे नया रूप दिया?
उत्तर- बिरजू महाराज ने कथक की मूल परंपरा को कायम रखा, लेकिन उसके प्रस्तुतीकरण में बदलाव किए। उन्होंने अपने चाचा और बाबूजी की भाव-भंगिमाओं को कथक में शामिल किया और आधुनिक कवियों जैसे टैगोर व त्यागराज की रचनाओं पर कथक प्रस्तुतियाँ तैयार कीं।

4
तनुश्री – पर ये लोग तो अलग-अलग भाषाओं के कवि थे।
बिरजू महाराज – भाषाएँ अलग-अलग होती हैं पर इंसान तो सब जगह एक-से होते हैं। फ्रांस में एक दर्शक ने कहा, “मैं नहीं जानता कि यशोदा कौन है?” मैंने उन्हें बताया कि इस धरती पर सब माँएँ यशोदा हैं और सब नन्हें बच्चे कृष्ण। बच्चे की जिद, रोना, उठना, बैठना, सब जगह एक जैसा होता है। धीरे-धीरे हमें अलग-अलग भाषा, संस्कार और तौर-तरीके मिलते हैं। चाहे नृत्य हो या कुछ और, परंपरा एक वृक्ष के समान होती है, जो सबको एक जैसी छाया और आश्रय देती है। उसके नीचे बैठने वाले अलग-अलग स्वभाव के होते | वृक्ष से लिए बीज को बोएँ तो समय आने पर ही एक और वृक्ष फलेगा। वह नया वृक्ष कैसा होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि उसे कैसी हवा, पानी और खाद मिला है।
माणिक – आपने जब सीखना शुरू किया था, तब से अब कथक की दुनिया में क्या-क्या बदलाव आए हैं?
बिरजू महाराज – पहले मंच नहीं होते थे। फर्श पर चाँदनी (बिछाने की बड़ी सफेद चादर) बिछी होती थी जिस पर कथक होता था और दर्शक चारों ओर बैठते थे। शृंगार के लिए चंदनलेप और होंठ रंगने के लिए पान होता था।
पहले नर्तक कथा के दृश्यों का ऐसा विस्तृत वर्णन करते थे कि दर्शक के सामने पूरा दृश्य खिंच जाता था- कि कैसे गोपियों ने घड़ा उठाया, धीमी चाल से पनघट की ओर चलीं, पीछे से कृष्ण चुपचाप आए, कंकड़ उठाया और दे मारा। अब सिर्फ ‘पनघटकीगत देखो’ कहकर बाकी दर्शक की कल्पना पर छोड़ दिया जाता है।

1.बिरजू महाराज ने फ्रांस के दर्शक को यशोदा और कृष्ण के बारे में क्या समझाया?
(क) यशोदा केवल भारतीय माता हैं।
(ख) कृष्ण केवल धार्मिक पात्र हैं।
(ग) हर माँ यशोदा जैसी होती है और हर बच्चा कृष्ण जैसा।
(घ) यह केवल एक कल्पना है।
उत्तर- (ग) हर माँ यशोदा जैसी होती है और हर बच्चा कृष्ण जैसा।

2. बिरजू महाराज परंपरा को किससे तुलना करते हैं?
(क) वृक्ष से
(ख) मंदिर से
(ग) तालाब से
(घ) किताब से
उत्तर– (क) वृक्ष से

3. कथक की प्रस्तुति में पहले और अब के समय में क्या अंतर बताया गया है?
(क) अब कथक नहीं होता।
(ख) पहले विस्तृत वर्णन होता था, अब नहीं।
(ग) पहले मंच बड़े होते थे।
(घ) पहले सिर्फ नाटक होता था।
उत्तर– (ख) पहले विस्तृत वर्णन होता था, अब नहीं।

4. बिरजू महाराज ने परंपरा की तुलना वृक्ष से क्यों की?
उत्तर– उन्होंने कहा कि परंपरा एक वृक्ष की तरह होती है जो सबको छाया और आश्रय देती है। इस वृक्ष से लिए गए बीज से एक नया वृक्ष उगता है और वह कैसा होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसे कैसी हवा, पानी और खाद मिली है।

5. पहले के कथक प्रस्तुतियों में दर्शकों को दृश्य कैसे समझाए जाते थे?
उत्तर- पहले कथक में कथा के दृश्य इतने विस्तार से प्रस्तुत किए जाते थे कि दर्शक के मन में पूरी कहानी चित्र की तरह उभर जाती थी। जैसे गोपियों की चाल, कृष्ण का कंकड़ फेंकना आदि।

 

Class 7 Hindi Malhar Lesson 8 Birju Maharaj Se Sakshatkar Multiple choice Questions (बहुविकल्पीय प्रश्न)

 

1. बिरजू महाराज ने सबसे पहले कौन-सा वाद्य यंत्र बजाना शुरू किया था?
(क) हारमोनियम
(ख) तबला
(ग) वीणा
(घ) सितार
उत्तर- (ख) तबला

2. बिरजू महाराज की लय पकड़ने की क्षमता किसने पहचानी थी?
(क) चाचा ने
(ख) बहन ने
(ग) पिता ने
(घ) शिक्षक ने
उत्तर– (क) चाचा ने

3. शास्त्रीय नृत्य की विशेषता क्या है?
(क) सामूहिक रूप से होता है
(ख) बिना प्रशिक्षण के होता है
(ग) एकल और दर्शकों के लिए होता है
(घ) सिर्फ मेलों में किया जाता है
उत्तर– (ग) एकल और दर्शकों के लिए होता है

4. लोकनृत्य का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
(क) पुरस्कार जीतना
(ख) मन बहलाव और संतुष्टि
(ग) प्रतियोगिता
(घ) मंच पर प्रदर्शन
उत्तर– (ख) मन बहलाव और संतुष्टि

5. भारत में शास्त्रीय नृत्य की वर्तमान स्थिति कैसी है?
(क) पूर्णतः समाप्त हो गया है
(ख) अब भी कोई नहीं देखता
(ग) लोकप्रियता बढ़ रही है
(घ) सरकार ने बंद कर दिया है
उत्तर– (ग) लोकप्रियता बढ़ रही है

6. कथक की भाव-भंगिमा कहाँ से ली गई है?
(क) मूर्तिकला से
(ख) प्रकृति से
(ग) महाकाव्य से
(घ) दैनिक जीवन से
उत्तर- (घ) दैनिक जीवन से

7. भरतनाट्यम की भाव-भंगिमा किससे प्रेरित है?
(क) गीतों से
(ख) मूर्तिकला से
(ग) युद्ध से
(घ) चित्रकला से
उत्तर- (ख) मूर्तिकला से

8. ओडिसी और मणिपुरी नृत्य की मुख्य विशेषता क्या है?
(क) ओज
(ख) कठोरता
(ग) कोमलता
(घ) वीर रस
उत्तर- (ग) कोमलता

9. कथकली नृत्य किस विशेषता के लिए जाना जाता है?
(क) कोमलता
(ख) ओज
(ग) लय
(घ) भाव-भंगिमा
उत्तर– (ख) ओज

10. कथक में गर्दन को कैसे हिलाया जाता है?
(क) तेजी से
(ख) अकड़कर
(ग) गोलाई में
(घ) चिराग की लौ के समान
उत्तर– (घ) चिराग की लौ के समान

11. खाली समय में बिरजू महाराज क्या करते हैं?
(क) घूमने जाते हैं
(ख) आराम करते हैं
(ग) पेंटिंग करते हैं
(घ) टीवी देखते हैं
उत्तर– (ग) पेंटिंग करते हैं

12. बिरजू महाराज का वैकल्पिक करियर क्या हो सकता था?
(क) डॉक्टर
(ख) वकील
(ग) इंजीनियर
(घ) लेखक
उत्तर- (ग) इंजीनियर

13. बिरजू महाराज अपने ब्रीफकेस में क्या रखते हैं?
(क) औजार
(ख) पेंट ब्रश
(ग) रंग
(घ) किताबें
उत्तर– (क) औजार

14. उन्होंने दो वर्षों में लगभग कितने चित्र बनाए?
(क) 30
(ख) 70
(ग) 100
(घ) 45
उत्तर- (ख) 70

15. लय बच्चों को क्या सिखाती है?
(क) अनुशासन
(ख) खाना बनाना
(ग) लड़ाई करना
(घ) चित्र बनाना
उत्तर- (क) अनुशासन

16. लड़कियों को क्या होना चाहिए?
(क) जल्दी शादी
(ख) घर का काम
(ग) हुनरमंद और शिक्षित
(घ) मंच पर नहीं जाना
उत्तर– (ग) हुनरमंद और शिक्षित

17. हुनर कैसा खज़ाना है?
(क) छीनने योग्य
(ख) खो जाने वाला
(ग) स्थायी
(घ) व्यर्थ
उत्तर– (ग) स्थायी

18. सुर और लय क्या सिखाते हैं?
(क)सहयोग
(ख) प्रतियोगिता
(ग) लड़ाई
(घ) उपेक्षा
उत्तर– (क) सहयोग

19. बिरजू महाराज का पहला नृत्य प्रदर्शन किस गाने पर था?
(क) लता मंगेशकर के गीत पर
(ख) सुरैया के गाने पर
(ग) रफ़ी साहब के गीत पर
(घ) किशोर कुमार के गीत पर
उत्तर- (ख) सुरैया के गाने पर

20. ज़ोर से उँगलियाँ हिलाने पर चाचा क्या कहते थे?
(क) घूँघट उठा रहे या तंबू?
(ख) अभ्यास करो
(ग) ठीक है
(घ) नाचो मत
उत्तर– (क) घूँघट उठा रहे या तंबू?

 

Birju Maharaj Se Sakshatkar Extra Question Answers (अतिरिक्त प्रश्न उत्तर)

1.बिरजू महाराज ने गाना, बजाना और नाचना कब और कैसे शुरू किया?
उत्तर- बिरजू महाराज ने बहुत छोटे उम्र में संगीत की ओर रुझान दिखाया। उन्होंने सबसे पहले तबला बजाना शुरू किया और पाँच वर्ष की उम्र में हारमोनियम पर लहरा बजाने लगे। वे फिल्मी गाने भी गाया करते थे और नृत्य भी करते थे। एक बार बहनों ने उन्हें सजाकर सुरैया के गीत पर नचाया, पर जब चाचा आ गए तो वे डर के मारे सब कुछ उतार कर छिप गए।

2. लोकनृत्य और शास्त्रीय नृत्य में क्या अंतर है?
उत्तर– लोकनृत्य आमतौर पर समूह में किया जाता है और इसका उद्देश्य मनोरंजन व थकान मिटाना होता है। यह आत्म-संतुष्टि के लिए होता है। दूसरी ओर, शास्त्रीय नृत्य एकल रूप में प्रस्तुत किया जाता है और यह दर्शकों के लिए होता है। कथक जैसे शास्त्रीय नृत्य में धीरे-धीरे विशेष शैली विकसित हुई, जिससे यह लोकनृत्य से भिन्न बन गया।

3. वर्तमान समय में भारत में शास्त्रीय नृत्य की क्या स्थिति है?
उत्तर– बिरजू महाराज के अनुसार कुछ समय पहले शास्त्रीय नृत्य की स्थिति काफी दयनीय थी, पर अब उसमें सुधार आया है। लोगों में इसकी लोकप्रियता बढ़ी है। हालाँकि तेज़ और शोर वाले संगीत-नृत्य का भी काफी प्रचलन है, लेकिन वे सभी से आग्रह करते हैं कि पारंपरिक नृत्य और संगीत की गहराई को समझें और उसका अनुभव करें।

4. उत्तर और दक्षिण भारत के शास्त्रीय नृत्यों में क्या भिन्नताएँ हैं?
उत्तर– उत्तर और दक्षिण के शास्त्रीय नृत्यों में लय, भाव-भंगिमा और प्रस्तुति शैली में अंतर है। जैसे कथक की भाव-भंगिमा दैनिक जीवन से ली गई है, जबकि भरतनाट्यम में मूर्तिकला से। ओडिसी और मणिपुरी में कोमलता है, जबकि कथकली में ओज होता है। कथक में दोनों तत्व मौजूद हैं। इसके अलावा, प्रस्तुति में उँगलियों और गर्दन की चाल भी भिन्न होती है।

5. बिरजू महाराज अपने खाली समय में क्या करते हैं?
उत्तर– बिरजू महाराज का कहना है कि वे कभी खाली नहीं रहते। उन्हें मशीनों से गहरी दिलचस्पी है, और यदि वे नर्तक न होते तो शायद इंजीनियर बनते। वे उपकरणों को खोलना और सुधारना पसंद करते हैं। इसके अलावा, उन्हें पेंटिंग का भी शौक है। उन्होंने दो वर्षों में लगभग सत्तर चित्र बनाए हैं।

6. बिरजू महाराज ने बच्चों की रुचि और लड़कियों की शिक्षा को लेकर क्या कहा है?
उत्तर– बिरजू महाराज का मानना है कि बच्चों की रुचि को समझना और उन्हें संगीत व लय से जोड़ना आवश्यक है। यह उनके बौद्धिक विकास के लिए जरूरी है। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा और हुनर को भी आत्मनिर्भरता का साधन बताया। उनका मानना है कि हुनर ऐसा खज़ाना है जिसे कोई नहीं छीन सकता और कठिन समय में वही काम आता है।

7. बिरजू महाराज को कथक में किन-किन नई चीज़ों को जोड़ने का श्रेय जाता है?
उत्तर- बिरजू महाराज ने कथक की परंपरा को बनाए रखते हुए उसके प्रस्तुतीकरण में नई चीज़ें जोड़ी। उन्होंने अपने पिता और चाचाओं की भाव-भंगिमाओं को कथक में जोड़ा। इसके अतिरिक्त उन्होंने टैगोर और त्यागराज जैसे आधुनिक कवियों की रचनाओं पर भी कथक रचनाएँ प्रस्तुत कीं। वे भाव, संगीत और लय का संयोजन करते हुए कथक को एक नई ऊँचाई पर ले गए।

8. बिरजू महाराज की पेंटिंग में रुचि कैसे उत्पन्न हुई?
उत्तर- बिरजू महाराज को मशीनों के अलावा चित्रकारी में भी रुचि है। उनकी बेटी और दामाद चित्रकार हैं, जिन्हें देखकर उन्हें पेंटिंग का शौक हुआ। वे आमतौर पर रात बारह बजे के बाद चित्र बनाना शुरू करते हैं और नींद आने पर ब्रश रखकर सो जाते हैं। उन्होंने पिछले दो वर्षों में लगभग सत्तर चित्र बनाए हैं।

9. बिरजू महाराज का खाली समय किस प्रकार व्यतीत होता है?
उत्तर– बिरजू महाराज का कहना है कि उनका समय कभी खाली नहीं होता। वे हमेशा कुछ न कुछ करते रहते हैं। उन्हें मशीनों को खोलकर उनके कल-पुर्जे देखने में आनंद आता है। इसके अलावा वे चित्र बनाते हैं और रात्रि में भी रचनात्मक कार्यों में लगे रहते हैं। उनका जीवन अनुशासन और रचनात्मकता से भरा हुआ है।

10. बिरजू महाराज की सोच महिलाओं की शिक्षा और आत्मनिर्भरता को लेकर क्या थी?
उत्तर– बिरजू महाराज का मानना था कि लड़कियों के पास शिक्षा या कोई हुनर अवश्य होना चाहिए ताकि वे आत्मनिर्भर बन सकें। उन्होंने अपनी बेटियों को कथक सिखाया, जबकि उनकी बहनों को यह अवसर नहीं मिला था। वे कहते हैं कि हुनर एक ऐसा खज़ाना है जिसे कोई छीन नहीं सकता और यह कठिन समय में काम आता है।