NCERT Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 Chapter 9 Chidiya ki Bacchi Summary, Explanation and Question Answers 

Chidiya ki Bacchi NCERT Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 Book Chapter 9 Chidiya Ki Bacchi Summary and detailed explanation of lesson “Chidiya ki Bacchialong with meanings of difficult words. Here is the complete explanation of the lesson, along with a all the exercises, Questions and Answers given at the back of the lesson. Take Free Online MCQs Test for Class 7.

 

 

इस लेख में हम हिंदी कक्षा 7 ” वसंत भाग – 2 ” के पाठ – 9 ” चिड़िया की बच्ची ” पाठ के पाठ – प्रवेश , पाठ – सार , पाठ – व्याख्या , कठिन – शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर,  इन सभी के बारे में चर्चा करेंगे –

 

कक्षा – 7 पाठ 9 ” चिड़िया की बच्ची”

 

लेखक परिचय –

लेखक – जैनेंद्र कुमार

चिड़िया की बच्ची पाठ प्रवेश

इस कहानी में लेखक जैनेंद्र कुमार ने आजादी की महत्ता और मनुष्य के स्वार्थी स्वभाव का वर्णन किया है। लेखक ने इस कहानी में एक ओर तो एक छोटी सी प्यारी सी चिड़िया की आजाद जिंदगी का वर्णन किया है और दूसरी ओर एक अमीर सेठ की अकेलेपन से भरी जिंदगी का वर्णन किया है। सेठ माधवदास के पास हर भौतिक सुख सुविधाएँ हैं लेकिन इतने धन धान्य के बावजूद उसके पास सच्ची खुशी नहीं है। नन्ही चिड़िया के पास भौतिक सुविधा के नाम पर केवल उसकी माँ का घोंसला है , जहाँ सुनहरी धूप आती है और खाने को उसकी माँ के द्वारा लाए गए कुछ दाने मिल जाते हैं। लेकिन नन्हीं चिड़िया को और किसी सुख सुविधा की इच्छा नहीं है। वह तो इतनी निच्छल है कि उसे सेठ , सोना , मोती और मालामाल जैसे शब्दों का अर्थ भी मालूम नहीं है। सेठ उसे सारी सुख सुविधाएँ देने का वचन देता है और उसे सोने चाँदी से तौलने की बात भी करता है। जब इन सबसे बात नहीं बनती है तो सेठ अपने नौकर को इशारा कर देता है कि चिड़िया को बंदी बना ले। लेकिन चिड़िया वहाँ से बचकर निकल जाती है और अपनी माँ के आँचल की गर्माहट में सुकून और सुरक्षा की तलाश करती है।


चिड़िया की बच्ची पाठ सार

प्रस्तुत कहानी ” चिड़िया की बच्ची ” के लेखक जैनेंद्र कुमार है। लेखक ने इस कहानी में एक ओर तो एक छोटी सी प्यारी सी चिड़िया की आजाद जिंदगी का वर्णन किया है और दूसरी ओर एक अमीर सेठ की अकेलेपन से भरी स्वार्थी जिंदगी का वर्णन किया है। लेखक कहते हैं कि माधवदास ने कुछ ही समय पहले अपना संगमरमर का पक्का एवं ऊँचा मकान बनवाया है। उसके सामने बहुत ही सुंदर और सुखद बगीचा भी लगवाया गया है। उनके पास धन की कोई कमी नहीं है और कोई बुरी आदत अब तक माधवदास को छू नहीं पाई है। अपने बाग़ में फव्वारे भी लगवाए हैं , फव्वारों में उछलता हुआ पानी उसे बहुत अच्छा लगता है। शाम के समय जब दिन की गरमी ढल कर कम हो जाती है और आसमान कई रंग का हो जाता है तब माधवदास अपने संगमरमर के पक्के एवं ऊँचे मकान के बाहर खुली हुई चौरस जगह पर तख्त डलवाकर बड़े तकिये के सहारे ऊन की मोटी चादर पर बैठते हैं और प्रकृति की शोभा का आनंद लेते हैं। लेखक बताते हैं कि माधवदास ने अपनी जिंदगी में हर एक चीज़ को हासिल किया था क्योंकि वह बहुत आमिर था उसे किसी चीज़ की कमी कभी महसूस नहीं की थी। पर सभी चीज़े होने के बावजूद भी माधवदास का जी भरकर भी कुछ खाली सा रहता था। एक शाम को जब माधवदास शाम को प्रकृति की शोभा का आंनद ले रहे थे तो उसी समय उनके देखते – देखते सामने की गुलाब की डाली पर एक चिड़िया आकर बैठ गई। वह चिड़िया बहुत ही सुंदर थी। उस चिड़िया के पंख ऊपर से काले और चमकदार थे। उस चिड़िया के शरीर पर रंग बिरंगे रंगों से चित्रकारी के कारण वह चिड़िया बहुत ही सुंदर लग रही थी। चिड़िया को देख कर ऐसा लग रहा था कि मानो उसे थोड़ी देर का भी आराम नहीं चाहिए था। क्योंकि वह कभी अपने पंख हिलाती थी , कभी इधर – उदर फुदकती रहती थी। उस चिड़िया को देख कर ऐसा भी लग रहा था कि वह बहुत खुश थी। वह अपनी छोटी सी चोंच से बहुत ही प्यारी – प्यारी आवाजें निकाल रही थी। कुछ देर तक तो माधवदास उस चिड़िया का चंचलता के साथ पैरों को उठाते , गिराते एवं हिलाते हुए एक डाल से दूसरी डाल तक फुदकना देखते रहे। माधवदास अब उस चिड़िया से बात करना चाहता था इसलिए माधवदास ने उस चिड़िया से कहा कि आओ , तुम बड़ी अच्छी आईं। क्योंकि माधवदास का वह बगीचा उन लोगों अर्थात पक्षियों के बिना खाली – खाली सा लगता है। माधवदास चिड़िया को कहता है कि वह चिड़िया खुशी से यह समझ सकती है कि यह बगीचा माधव दास ने उसके लिए ही बनवाया है। वह उसके बगीचे में बिना संकोच के आया करे। चिड़िया ने माधव दास की बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि उसने नहीं सोचा था कि माधवदास उससे बात कर रहा है। फिर यह जानकर कि माधवदास उसी से बात कर रहा है वह अचानक से घबरा गई। फिर अपनी हिचक को काम कर के मादव दास से बोली कि उसे यह मालूम नहीं था कि यह बगीचा जिस में वह आराम करने के लिए रुकी है वह माधवदास का है। वह अभी वहाँ से चली जाएगी। चिड़िया को मनाते हुए माधवदास कहता है कि भले ही वह बगीचा और वह संगमरमर का मकान उसका है लेकिन चिड़िया उन सबको अपना ही समझ सकती हो। माधवदास की बातों को सुन कर चिड़िया बहुत हद तक घबरा गई। चिड़िया अब यह सोच रही थी कि माधवदास के बगीचे में आ कर उससे कोई गलती तो नहीं हो गई जो वह उसके बगीचे में आकर बैठ गई है। वह बगीचा माधव दास का है। वहाँ बैठने के लिए चिड़िया माधवदास से माफ़ी माँगती है। चिड़िया की बात पर माधवदास ने कहा कि मेरी भोली चिड़िया , उस चिड़िया को देखकर उसका मन बहुत खुश हुआ है। उसका महल भी खाली – खाली ही है। उसके महल में कोई भी चहचहाता नहीं है। माधवदास चिड़िया से कहता है कि चिड़िया को देखकर माधवदास का मन भी बहलेगा। चिड़िया की तारीफ़ करते हुए माधवदास कहता है कि वह बहुत प्यारी है , वह वहीं उसके महल में उसके साथ ही क्यों नहीं रहती ? माधवदास की बात सुनकर चिड़िया उससे कहती है कि वह अपनी माँ के पास जा रही है , वह सूरज की धूप खाने और हवा से खेलने और फूलों से बात करने के लिए जरा अपने घर से उड़ कर बाहर आई थी , अब शाम हो गई है और अब उसे माँ के पास जाना है। वह कहती है कि वह जल्दी ही चली जाएगी। माधवदास चिड़िया को मनाते हुए कहता है कि प्यारी चिड़िया तुम पागल  मत बनो। तुम अपने चारों तरफ देखो , कितनी हरियाली या प्रफुल्लता है। लालच देते हुए माधवदास चिड़िया को कहता है कि उसके पास बहुत सा सोना – मोती है। सोने का एक बहुत सुंदर घर वह उस चिड़िया के लिए बना देगा  , उस चिड़िया के घर में वह मोतियों की झालर भी लटकाएगा। माधवदास कहता है कि चिड़िया उसे खुश रखे। माधवदास चिड़िया से पूछता है कि उसकी माँ के पास क्या है , जो वह उसके पास जाना चाहती है। माधवदास की बातें चिड़िया की समझ में नहीं आ रही थी। वह कहती है कि उसकी माँ के घोंसले के बाहर बहुत प्रकार की सुनहरी धूप बिखरी रहती है। उसे और करना ही क्या है ? दो दाने उसकी माँ उसके लिए ला लेती है और जब वह पंख खोलने बाहर जाती है , तो उसकी माँ उसका रास्ता देखती रहती है। माधव दास चिड़िया से प्रश्न करता है कि वह कहाँ रहती है ? क्या वह उसे नहीं जानती है ? चिड़िया माधवदास के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहता है कि वह अपनी माँ को जानती है , वह अपने भाई को जानती है , वह सूरज को और उसकी धूप को जानती है। वह घास , पानी और फूलों को भी जानती है। चिड़िया माधव दास को आदर के साथ कहती है कि परम् माननीय , वह उसे नहीं जानती कि वह कौन है ? चिड़िया का उत्तर जान कर माधवदास चिड़िया को अपने बारे में बताते हुए कहता है कि वही तो सेठ माधवदास है। उसके पास क्या नहीं है अर्थात उसके पास सब कुछ है। चिड़िया मासूमियत से माधव दास कहती है कि वह सेठ है। परन्तु वह नहीं जानती कि सेठ क्या होता है। वह अपनी माँ से बहुत प्यार करती है। और उसकी माँ उसके लिए परेशान हो रही होगी और उसके आने का इन्तजार कर रही होगी। माधवदास चिड़िया को और लालच देते हुए कहता है कि वह उसका पूरा घर सोने का ही बनवा देगा। वह चिड़िया के लिए ऐसा पिंजरा बनवाएगा कि कहीं दुनिया में वैसा पिंजरा किसी का भी न होगा , वह ऐसा होगा कि चिड़िया उसे बस देखती रह जाएगी। उसके पानी पीने की कटोरी भी सोने की ही होगी। माधवदास की सारी बातें सुन कर चिड़िया कहती है कि वह सोना क्या चीज़ होती है , इस बारे में कुछ नहीं जानती ? सेठ माधवदास भी कहता है कि वह कैसे जान सकती है , वह चिड़िया जो है। सोने का मूल्य सीखने के लिए उसे बहुत कुछ सीखना पड़ेगा। बस वह यह जान ले कि सेठ माधवदास उस से बात कर रहा है। और जिससे वह बात तक कर लेता है उसकी किस्मत खुल जाती है। चिड़िया फिर भी अपनी बात पर स्थिर रहते हुए सेठ माधवदास से कहती है कि वह नासमझ है। वह यह सब कुछ नहीं समझ रही है जो माधवदास उसे समझा रहा है। पर उसे देर हो रही है। उसकी माँ उसका इन्तजार कर रही होगी। माधवदास चिड़िया का ध्यान उसकी माँ से हटाने के लिए उससे कहता है कि वहाँ घोंसले में उसकी माँ है , पर माँ क्या है ? इस बहार के सामने , इस सुंदर बाग़ – बगीचे और फल – फूलों के सामने उसकी माँ क्या है ? वहाँ उसके घोंसले में कुछ भी तो नहीं है। चिड़िया फिर भी अपनी बात पर अटल रहते हुए सेठ माधवदास को समझाते हुए कहती है कि उसे नहीं पता कि वह कितनी सुंदर है और उसका क्या मूल्य है। वह बस इतना जानती है कि माँ उसकी माँ है और उसे यहाँ माधवदास के पास रह कर देर हो रही है। चिड़िया की बात सुन कर सेठ माधव दास चिड़िया से कहता है कि अच्छा , चिड़िया अगर वह जाना चाहती है , तो जाओ। पर , इस बगीचे को वह अपना ही समझ सकती है। वह बड़ी सुंदर है। यह कहने के साथ ही सेठ माधवदास ने एक बटन दबा दिया। उसके बटन दबने से दूर उसके मकान के अंदर आवाज हुई जिसे सुनकर एक नौकर जल्दी से भागकर बाहर आ गया। सेठ माधवदास ने उस नौकर को चिड़िया को पकड़ने का इशारा कर दिया और वह नौकर चिड़िया को पकड़ने की कोशिश में चल पड़ा। कहीं चिड़िया को पता न चल जाए इसलिए सेठ माधवदास चिड़िया से कहते रहे कि सच में वह बड़ी सुंदर लगती है। क्या उसके भाई – बहिन भी हैं ? और अगर हैं तो कितने भाई – बहिन हैं ? चिड़िया भी माधवदास के प्रश्नो के उत्तर देने में व्यस्त हो गई और कहने लगी कि उसके दो  बहिन , और एक भाई है। जब चिड़िया यह सब माधवदास को बता रही थी तो चिड़िया को ऐसा लगा जैसे कि एक कठोर स्पर्श उसके शरीर को छू गया। वह चीख देकर चिल्लाई और एकदम से डाल पर से उड़ गई। नौकर के फैले हुए पंजे में वह आकर भी नहीं आ सकी।अर्थात नौकर बस उसे पकड़ने वाला ही था किन्तु वह नौकर के हाथ में आते – आते बच कर उड़ गई। वह तुरंत उड़ कर सीधे अपनी माँ के पास पहुँच गई।  वह इतनी डर गई थी कि वह माधवदास के बगीचे से उड़ कर सीधे माँ के घौंसले में रुकी कही बिच में नहीं बैठी , न ही आराम किया। जब चिड़िया डर कर अपनी माँ की गोद में हिचकियाँ ले लेकर रोने लगी तो उसकी माँ ने अपनी बच्ची को अपनी छाती से सटाकर पूछा की उसकी प्यारी बच्ची को क्या हुआ है , वह इस तरह क्यों रो रही है ? परन्तु चिड़िया की बच्ची काँप – काँपकर अपनी माँ की छाती से और सट कर चिपक गई और वह कुछ भी नहीं बोली , बस हिचकियाँ ले लेकर रोती रही और ओ माँ , ओ माँ करती रही। बहुत देर तक वह इसी तरह अपनी माँ की छाती से सटकर रोती रही और जब उसे उसकी माँ द्वारा थोड़ा दिलासा दिया गया ,तब भी वह अपनी पलकों को बंद करके उसकी छाती में ही चिपककर सो गई। जैसे अब वह पलक कभी नहीं खोलेगी। कहने का तात्पर्य यह है कि जब भी कोई संकट आता है या कभी कुछ गलत होने की आशंका मन में उठती है तो हमें अपनी माँ की ही याद आती है ,क्योंकि माँ के आँचल में ही सबसे ज्यादा सकून और सुरक्षा महसूस होती है , यही कारण है कि चिड़िया की बच्ची अपनी माँ की गोद में ही अपने आप को सुरक्षित महसूस कर पा रही थी।


चिड़िया की बच्ची  पाठ व्याख्या

पाठ – माधवदास ने अपनी संगमरमर की नयी कोठी बनवाई है। उसके सामने बहुत सुहावना बगीचा भी लगवाया है। उनको कला से बहुत प्रेम है। धन की कमी नहीं है और कोई व्यसन छू नहीं गया है। सुंदर अभिरुचि के आदमी हैं। फूल – पौधे , रकाबियों से हौजों में लगे फव्वारों में उछलता हुआ पानी उन्हें बहुत अच्छा लगता है। समय भी उनके पास काफी है। शाम को जब दिन की गरमी ढल जाती है और आसमान कई रंग का हो जाता है तब कोठी के बाहर चबूतरे पर तख्त डलवाकर मसनद के सहारे वह गलीचे पर बैठते हैं और प्रकृति की छटा निहारते हैं। इनमें मानो उनके मन को तृप्ति मिलती है। मित्र हुए तो उनसे विनोद – चर्चा करते हैं , नहीं तो पास रखे हुए फर्शी हक्के  की सटक को मुँह में दिए खयाल ही खयाल में संध्या को स्वप्न की भाँति गुजार देते हैं।

नोट – प्रस्तुत गद्यांश में लेखक माधवदास के रुतबे को दर्शाने का प्रयास कर रहें हैं।

कठिन शब्द
कोठी – पक्का एवं ऊँचा मकान , हवेली , थोक बिक्री की दुकान
सुहावना – सुंदर और सुखद
व्यसन – बुरी आदत , लत ( जैसे – जुआ खेलने का व्यसन ) , पाप , दुराचरण
अभिरुचि – शौक , झुकाव
रकाबी – गोल छोटी थाली , तश्तरी , घोड़े की बगल में लटकने वाली तलवार
हौज – पानी जमा रहने का चहबच्चा , मिट्टी आदि का बना हुआ नांद नामक अर्ध गोलाकार बड़ा पात्र
चबूतरा – खुली हुई चौकोर और चौरस जगह , चौंतरा
मसनद – गोल लंबोतरा तथा बड़ा तकिया , अमीरों के बैठने की गद्दी
ग़लीचा – ऊन की मोटी चादर
छटा – शोभा , छवि , दीप्ति , चमक
तृप्ति – आवश्यकता पूरी होने पर मिलनेवाली मानसिक शांति , तृप्त होने का भाव
विनोद – चर्चा – ऐसा काम या बात जिसका मुख्य प्रयोजन अपना ( और दूसरे का भी ) मन बहलाना तथा प्रसन्न रखना होता है
फ़र्शी – फ़र्श का , फ़र्श संबंधी
सटक – खिसकने का भाव , डंठल

व्याख्या – लेखक कहते हैं कि माधवदास ने कुछ ही समय पहले अपना संगमरमर का पक्का एवं ऊँचा मकान बनवाया है। उसके सामने बहुत ही सुंदर और सुखद बगीचा भी लगवाया गया है। लेखक बताते हैं कि माधवदास को कला से बहुत अधिक प्यार है। उनके पास धन की कोई कमी नहीं है और कोई बुरी आदत अब तक माधवदास को छू नहीं पाई है। कहने का अभिप्राय यह है कि बहुत अधिक धन होने के बावजूद भी माधवदास को कोई बुरी आदत नहीं है। उनके सभी शौक या आदतें एक अच्छे आदमी की तरह हैं। लेखक माधवदास के बारे में बताते हुए कहते हैं कि उन्हें फूल – पौधे और गोल छोटी थाली के समान मिट्टी आदि का बना हुआ नांद नामक अर्ध गोलाकार बड़े पात्र में लगे फव्वारों में उछलता हुआ पानी  बहुत अच्छा लगता है। उनके पास समय की भी कोई कमी नहीं है। कहने का तात्पर्य यह है कि माधवदास के पास करने को कोई काम नहीं है , उनका सारा काम उनके नौकर आदि करते हैं। लेखक बताते हैं कि शाम के समय जब दिन की गरमी ढल कम हो जाती है और आसमान कई रंग का हो जाता है तब माधवदास अपने संगमरमर के पक्के एवं ऊँचे मकान के बाहर खुली हुई चौरस जगह पर तख्त डलवाकर बड़े तकिये के सहारे ऊन की मोटी चादर पर बैठते हैं और प्रकृति की शोभा का आनंद लेते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि इन सब से ही मानो माधवदास के मन को मानसिक शांति मिलती है। अगर शाम के उस समय माधवदास के मित्र उनके साथ हुए तो उनसे बात अपना और दूसरे का भी मन बहलाने वाली बात – चीत करते हैं , और अगर कोई साथ नहीं हुआ तो पास रखे हुए फर्शी हक्के के डंठल को मुँह में ले कर अपने मन के खयाल ही खयाल में शाम को किसी स्वप्न की तरह गुजार देते हैं।

पाठ – आज कुछ – कुछ बादल थे। घटा गहरी नहीं थी। धूप का प्रकाश उनमें से छन – छनकर आ रहा था। माधवदास मसनद के सहारे बैठे थे। उन्हें  जिंदगी में क्या स्वाद नहीं मिला है ? पर जी भरकर भी कुछ खाली सा रहता है।
उस दिन संध्या समय उनके देखते – देखते सामने की गुलाब की डाली पर एक चिड़िया आन बैठी। चिड़िया बहुत सुंदर थी। उसकी गरदन लाल थी और गुलाबी होते – होते किनारों पर जरा – जरा नीली पड़ गई थी। पंख ऊपर से चमकदार स्याह थे। उसका नन्हा सा सिर तो बहुत प्यारा लगता था और शरीर पर चित्र – विचित्र चित्राकारी थी। चिड़िया को मानो माधवदास की सत्ता का कुछ पता नहीं था और मानो तनिक देर का आराम भी उसे नहीं चाहिए था। कभी पर हिलाती थी , कभी फुदकती थी। वह खूब खुश मालूम होती थी। अपनी नन्ही सी चोंच से प्यारी – प्यारी आवाज निकाल रही थी।

नोट – इस गद्यांश में लेखक बता रहे हैं कि माधवदास के पास भले ही धन – दौलत की कोई कमी नहीं थी , फिर भी उसका मन हमेशा खाली ही रहता था अर्थात उसके जीवन में खुशियों की कमी थी। इसके साथ ही लेखक माधवदास के बगीचे में आई सुन्दर चिड़िया का वर्णन भी कर रहे हैं।

कठिन शब्द 
घटा – बादल
आन – आकर
स्याह – काला
चित्र – विचित्र –  जिसमें कई रंग हों , रंग बिरंगा
सत्ता – अस्तित्व , हस्ती , शक्ति , सामर्थ्य
तनिक – थोड़ा , अल्प , कुछ , ज़रा
पर – पंख

व्याख्या – लेखक माधव दास के बारे में बताते हुए कि माधवदास हमेशा की तरह शाम को अपने संगमरमर के पक्के एवं ऊँचे मकान के बाहर खुली हुई चौरस जगह पर तख्त डलवाकर बड़े तकिये के सहारे ऊन की मोटी चादर पर बैठते हैं और प्रकृति की शोभा का आनंद लेते हैं। लेखिन आज आकाश में कुछ – कुछ बादल थे। परन्तु बादल गहरे नहीं थे। जिस कारण धूप का प्रकाश उन बादलों में से छन – छनकर आ रहा था। माधवदास बड़े तकिये के सहारे बैठे हुए थे। लेखक बताते हैं कि माधवदास ने जिंदगी में हर एक चीज़ का स्वाद लिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि माधवदास ने अपनी जिंदगी में हर एक चीज़ को हासिल किया था क्योंकि वह बहुत आमिर था उसे किसी चीज़ की कमी कभी महसूस नहीं की थी। पर सभी चीज़े होने के बावजूद भी माधवदास का जी भरकर भी कुछ खाली सा रहता था। लेखक का अभिप्राय यहाँ यह है कि आपके पास भले ही कभी न ख़त्म होने वाली सम्पत्ति क्यों न हो और आप भले ही सब कुछ खरीद सकते हों परन्तु आप कभी ख़ुशी नहीं खरीद सकते। लेखक एक शाम का वर्णन करते हुए कहते हैं कि एक शाम को जब माधवदास शाम को प्रकृति की शोभा का वर्णन करते समय उनके देखते – देखते सामने की गुलाब की डाली पर एक चिड़िया आकर बैठ गई। वह चिड़िया बहुत ही सुंदर थी। उस चिड़िया की गरदन लाल थी और गुलाबी होते – होते किनारों पर जरा – जरा नीली पड़ गई थी। उस चिड़िया के पंख ऊपर से काले और चमकदार थे। उस चिड़िया का छोटा  सा सिर तो बहुत प्यारा लगता था और उसके शरीर पर कई रंग की चित्राकारी थी। अर्थात उस चिड़िया के शरीर पर रंग बिरंगे रंगों से चित्रकारी के कारण वह चिड़िया बहुत ही सुंदर लग रही थी।  लेखक कहते हैं कि चिड़िया को देख कर ऐसा लग रहा था कि चिड़िया को माधवदास के अस्तित्व का कुछ पता नहीं था कहने का तात्पर्य यह है कि माधवदास बहुत ही आमिर व् प्रसिद्ध व्यक्ति था , किन्तु चिड़िया को उससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। चिड़िया को देख कर ऐसा लग रहा था कि मानो उसे थोड़ी देर का भी आराम नहीं चाहिए था। क्योंकि वह कभी अपने पंख हिलाती थी , कभी इधर – उदर फुदकती रहती थी। उस चिड़िया को देख कर ऐसा भी लग रहा था कि वह बहुत खुश थी। वह अपनी छोटी सी चोंच से बहुत ही प्यारी – प्यारी आवाजें निकाल रही थी।

पाठ – माधवदास को वह चिड़िया बड़ी मनमानी लगी। उसकी स्वच्छंदता बड़ी प्यारी जान पड़ती थी। कुछ देर तक वह उस चिड़िया का इस डाल से उस डाल थिरकना देखते रहे। इस समय वह अपना बहुत – कुछ भूल गए। उन्होंने उस चिड़िया से कहा , ” आओ , तुम बड़ी अच्छी आईं। यह बगीचा तुम लोगों के बिना सूना लगता है। सुनो चिड़िया तुम खुशी से यह समझो कि यह बगीचा मैंने तुम्हारे लिए ही बनवाया है। तुम बेखटके यहाँ आया करो। ”
चिड़िया पहले तो असावधान रही। फिर जानकर कि बात उससे की जा रही है , वह एकाएक तो घबराई। फिर संकोच को जीतकर बोली , ” मुझे मालूम नहीं था कि यह बगीचा आपका है। मैं अभी चली जाती हूँ। पलभर साँस लेने मैं यहाँ टिक गई थी। ”
माधवदास ने कहा , ” हाँ , बगीचा तो मेरा है। यह संगमरमर की कोठी भी मेरी है। लेकिन , इस सबको तुम अपना भी समझ सकती हो। सब कुछ तुम्हारा है। तुम कैसी भोली हो , कैसी प्यारी हो। जाओ नहीं , बैठो। मेरा मन तुमसे बहुत खुश होता है। “

नोट – इस गद्यांश में लेखक ने उस दृश्य का वर्णन किया है जहाँ माधवदास उस प्यारी चिड़िया को देख कर उसे उसी के पास रुकने के लिए मनाने लगता है।

कठिन शब्द
थिरकना – चंचलता के साथ पैरों को उठाते , गिराते एवं हिलाते हुए नाचना , नाचते समय अंगों को हाव – भाव के साथ संचालित करना
सूना – खाली
बेखटक – बिना संकोच के , बेधड़क
असावधान – जो सावधान न हो , लापरवाह
एकाएक – अचानक , एकदम
संकोच – असमंजस , आगा पीछा , हिचक
पलभर – बहुत ही कम समय में , तुरंत

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब माधवदास ने उस प्यारी चिड़िया को देखता है तो उसे वह चिड़िया बड़ी मनमानी लगी। अर्थात माधवदास को वह चिड़िया बहुत ही चंचल और मन माना काम करने वाली लगी और उसकी यही स्वच्छंदता माधव दास को बड़ी प्यारी जान पड़ी थी। कुछ देर तक तो माधवदास उस चिड़िया का चंचलता के साथ पैरों को उठाते , गिराते एवं हिलाते हुए एक डाल से दूसरी डाल तक फुदकना देखते रहे। लेखक कहता है कि जब मादवदास उस चिड़िया को देख रहे थे तो उस समय वह अपना बहुत – कुछ भूल गए थे। कहने का तात्पर्य यह है कि वह चिड़िया इतनी प्यारी थी कि उसको देख कर माधवदास अपना अकेलापन भी भूल गया था। माधवदास अब उस चिड़िया से बात करना चाहता था इसलिए माधवदास ने उस चिड़िया से कहा कि आओ , तुम बड़ी अच्छी आईं। क्योंकि माधवदास का वह बगीचा उन लोगों अर्थात पक्षियों के बिना खाली – खाली सा लगता है। माधवदास चिड़िया को कहता है कि वह चिड़िया खुशी से यह समझ सकती है कि यह बगीचा माधव दास ने उसके लिए ही बनवाया है। वह उसके बगीचे में बिना संकोच के आया करे। कहने का तात्पर्य यह है कि मादव दास चिड़िया को उसके बगीचे में कभी भी बिना डरे आने को कहता है। मादव दास की बात सुन कर चिड़िया पहले तो लापरवाह रही। अर्थात चिड़िया ने मादव दास की बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि उसने नहीं सोचा था कि मादवदास उससे बात कर रहा है। फिर यह जानकर कि माधवदास उसी से बात कर रहा है वह अचानक से घबरा गई। फिर अपनी हिचक को काम कर के मादव दास से बोली कि उसे यह मालूम नहीं था कि यह   बगीचा जिस में वह आराम करने के लिए रुकी है वह माधवदास का है। वह अभी वहाँ से चली जाएगी। थोड़ी देर के लिए साँस लेने वह उसके बगीचे में  टिक गई थी। चिड़िया की बात सुन कर माधवदास ने कहा कि चिड़िया सही कह रही है कि वह बगीचा तो माधवदास का ही है। और अपने संगमरमर के मकान को दिखते हुए कहता है कि वह संगमरमर का मकान भी उसी का है। चिड़िया को मनाते हुए मादवदास कहता है कि भले ही वह बगीचा और वह संगमरमर का मकान उसका है लेकिन चिड़िया उन सबको अपना ही समझ सकती हो। यह सब कुछ तुम्हारा है। माधवदास चिड़िया से कहता है कि वह बहुत भोली है  , और बहुत ही प्यारी भी है। वह वहाँ से न जाए , उसी के पास बैठी रहे। क्योंकि मादवदास का  मन उस चिड़िया को देख कर बहुत खुश हो रहा था। उसका अकेलापन भी उस चिड़िया को देखकर कहीं घुम हो गया था।

पाठ – चिड़िया बहुत – कुछ सकुचा गई। उसे बोध हुआ कि यह उससे गलती तो नहीं हुई कि वह यहाँ बैठ गई है। उसका थिरकना रुक गया। भयभीत – सी वह बोली , ” मैं थककर यहाँ बैठ गई थी। मैं अभी चली जाऊँगी। बगीचा आपका है। मुझे माफ़ करें ! ”
माधवदास ने कहा , ” मेरी भोली चिड़िया , तुम्हें देखकर मेरा चित्त प्रफुल्लित हुआ है। मेरा महल भी सूना है। वहाँ कोई भी चहचहाता नहीं है। तुम्हें देखकर मेरी
रागनियों का जी बहलेगा। तुम कैसी प्यारी हो , यहाँ ही तुम क्यों न रहो ? ”
चिड़िया बोली , ” मैं माँ के पास जा रही हूँ , सूरज की धूप खाने और हवा से खेलने और फूलों से बात करने मैं जरा घर से उड़ आई थी , अब साँझ हो गई है और माँ के पास जा रही हूँ। अभी – अभी मैं चली जा रही हूँ। आप सोच न करें। “

नोट – इस गद्यांश में लेखक माधवदास का चिड़िया को मनाने का वर्णन कर रहा है। इस गद्यांश में लेखक चिड़िया के डर को भी उजागर कर रहा है।

कठिन शब्द
बोध – ज्ञान , जानकारी
भयभीत – डरा हुआ
चित्त – मन
प्रफुल्लित – खिला हुआ , कुसुमित , हँसता हुआ
साँझ – शाम

व्याख्या – लेखक कहता है कि माधवदास की बातों को सुन कर चिड़िया बहुत हद तक घबरा गई। चिड़िया अब यह सोच रही थी कि माधवदास के बगीचे में आ कर उससे कोई गलती तो नहीं हो गई जो वह उसके बगीचे में आकर बैठ गई है। माधवदास की बातें सुनकर और अपनी गलती का एहसास होने के बाद चिड़िया का एक डाल से दूसरे डाल पर फुदकना रुक गया। माधवदास की बातें सुन कर चिड़िया दर गई थी , डरते – डरते वह माधवदास से बोली कि वह थककर मादवदास के बगीचे में आराम करने बैठ गई थी। वह अभी थोड़ी देर में वहाँ से चली जाएगी। वह बगीचा माधव दास का है। वहाँ बैठने के लिए चिड़िया माधवदास से माफ़ी माँगती है। चिड़िया की बात पर माधवदास ने कहा कि मेरी भोली चिड़िया , उस चिड़िया को देखकर उसका मन बहुत खुश हुआ है। उसका महल भी खाली – खाली ही है। उसके महल में कोई भी चहचहाता नहीं है। माधवदास चिड़िया से कहता है कि चिड़िया को देखकर माधवदास का मन भी बहलेगा। चिड़िया की तारीफ़ करते हुए माधवदास कहता है कि वह बहुत प्यारी है , वह वहीं उसके महल में उसके साथ ही क्यों नहीं रहती ? माधवदास की बात सुनकर चिड़िया उससे कहती है कि वह अपनी माँ के पास जा रही है , वह सूरज की धूप खाने और हवा से खेलने और फूलों से बात करने के लिए जरा अपने घर से उड़ कर बाहर आई थी , अब शाम हो गई है और अब उसे माँ के पास जाना है। वह कहती है कि वह जल्दी ही चली जाएगी। वह किसी बात की चिंता न करे।

पाठ – माधवदास ने कहा , ” प्यारी चिड़िया , पगली मत बनो। देखो , तुम्हारे चारों तरफ कैसी बहार है। देखो , वह पानी खेल रहा है , उधर गुलाब हँस रहा है। भीतर महल में चलो , जाने क्या – क्या न पाओगी ! मेरा दिल वीरान है। वहाँ कब हँसी सुनने को मिलती है ? मेरे पास बहुत सा सोना – मोती है। सोने का एक बहुत सुंदर घर मैं तुम्हें बना दूँगा , मोतियों की झालर उसमें लटकेगी। तुम मुझे खुश रखना। और तुम्हें क्या चाहिए ! माँ के पास बताओ क्या है ? तुम यहाँ ही सुख से रहो , मेरी भोली गुड़िया।”
चिड़िया इन बातों से बहुत डर गई। वह बोली , ” मैं भटककर तनिक आराम के लिए इस डाली पर रुक गई थी। अब भूलकर भी ऐसी गलती नहीं होगी। मैं अभी यहाँ से उड़ी जा रही हूँ। तुम्हारी बातें मेरी समझ में नहीं आती हैं। मेरी माँ के घोंसले के बाहर बहुतेरी सुनहरी धूप बिखरी रहती है। मुझे और क्या करना है ? दो दाने माँ ला देती है और जब मैं पर खोलने बाहर जाती हूँ तो माँ मेरी बाट देखती रहती है। मुझे तुम और कुछ मत समझो , मैं अपनी माँ की हूँ। “

नोट – इस गद्यांश में लेखक बता रहे हैं कि किस तरह माधवदास चिड़िया को बहला – फुसला कर अपने पास रोकने का प्रयास कर रहा है और चिड़िया किस तरह अपनी माँ के पास जाने की जिद पकड़ कर बैठी है।

कठिन शब्द
बहार – बसंत ऋतु , आनंद , प्रफुल्लता
वीरान – उजड़ा हुआ , जनहीन , तबाह , बर्बाद
बहुतेरी – बहुत सा , अधिक , बहुतेरा , बहुत , बहुत प्रकार से
बाट – रास्ता

व्याख्या – लेखक कहते हैं कि जब चिड़िया अपनी माँ के पास जाने की जिद करती है तो माधवदास चिड़िया को मनाते हुए कहता है कि प्यारी चिड़िया तुम पागल  मत बनो। तुम अपने चारों तरफ देखो , कितनी हरियाली या प्रफुल्लता है। माधवदास अपने चारो और चिड़िया को दिखते हुए कहता है कि देखो , वह पानी खेल रहा है , उधर गुलाब हँस रहा है। भीतर महल में चलो , वहाँ न जाने तुम्हें क्या – क्या नहीं मिलेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि माधवदास चिड़िया को तरह – तरह से मनाने की कोशिश कर रहा था , वह उसे लालच भी दे रहा था ताकि वह उसी के पास ठहर जाए। माधवदास कहता है कि उसका दिल बहुत खाली है। वहाँ कब हँसी सुनने को मिलती है ? अर्थात माधवदास अपने खालीपन के बारे में चिड़िया को बता रहा था ताकि वह उस पर दया करके ही वहाँ रुक जाए। लालच देते हुए माधवदास चिड़िया को कहता है कि उसके पास बहुत सा सोना – मोती है। सोने का एक बहुत सुंदर घर वह उस चिड़िया के लिए बना देगा  , उस चिड़िया के घर में वह मोतियों की झालर भी लटकाएगा। माधवदास कहता है कि चिड़िया उसे खुश रखे। चिड़िया से पूछते हुए माधवदास कहता है कि चिड़िया को और उसे क्या चाहिए। माधवदास चिड़िया से पूछता है कि उसकी माँ के पास क्या है , जो वह उसके पास जाना चाहती है। चिड़िया को भोली कहते हुए माधवदास कहता है कि वह वहीं माधवदास के पास सुखी रह सकती है। चिड़िया माधवदास की इन बातों से बहुत डर गई थी , वह डरते हुए माधवदास से बोली कि वह भटककर थोड़ा सा आराम करने के लिए इस डाली पर रुक गई थी। चिड़िया को लगा कि उस से गलती हो गई थी इस लिए वह माधवदास से कहती है कि अब भूलकर भी ऐसी गलती नहीं होगी। अर्थात वह माधवदास के बगीचे में भूल कर भी नहीं आएगी। वह अभी यहाँ से उड़ी कर चली जाएगी। माधवदास की बातें उसकी समझ में नहीं आ रही हैं। उसकी माँ के घोंसले के बाहर बहुत प्रकार की सुनहरी धूप बिखरी रहती है। चिड़िया माधवदास की बात का उत्तर देते हुए कहती है कि उसे और करना ही क्या है ? दो दाने उसकी माँ उसके लिए ला लेती है और जब वह पंख खोलने बाहर जाती है , तो उसकी माँ उसका रास्ता देखती रहती है। अर्थात उसकी माँ उसके घर आने का इंतजार करती रहती है। चिड़िया कहती है कि माधवदास उसे कुछ और न समझे वह उसके पास नहीं रह सकती वह अपनी माँ की ही है और वह अपनी माँ के पास जाना चाहती है।

पाठ –  माधवदास ने कहा , ” भोली चिड़िया , तुम कहाँ रहती हो ? तुम मुझे नहीं जानती हो ? ”
चिड़िया , ” मैं माँ को जानती हूँ , भाई को जानती हूँ , सूरज को और उसकी धूप को जानती हूँ। घास , पानी और फूलों को जानती हूँ। महामान्य , तुम कौन हो ? मैं तुम्हें नहीं जानती। ”
माधवदास , ” तुम भोली हो चिड़िया ! तुमने मुझे नहीं जाना , तब तुमने कुछ नहीं जाना। मैं ही तो हूँ सेठ माधवदास। मेरे पास क्या नहीं है ! जो माँगो , मैं वही दे सकता हूँ। ”
चिड़िया , ” पर मेरी तो छोटी सी जात है। आपके पास सब कुछ है। तब मुझे जाने दीजिए। ”
माधवदास , ” चिड़िया , तू निरी अनजान है। मुझे खुश करेगी तो तुझे मालामाल कर सकता हूँ। ”
चिड़िया , ” तुम सेठ हो। मैं नहीं जानती , सेठ क्या होता है। पर सेठ कोई बड़ी बात होती होगी। मैं अनसमझ ठहरी। माँ मुझे बहुत प्यार करती है। वह मेरी राह देखती होगी। मैं मालामाल होकर क्या होऊँगी , मैं नहीं जानती। मालामाल किसे कहते हैं ? क्या मुझे वह तुम्हारा मालामाल होना चाहिए ? “

नोट – इस गद्यांश में लेखक वर्णन कर रहा है कि किस तरह माधवदास चिड़िया को तरह – तरह से लालच दे कर उसी के पास उसके महल में रोकने की कोशिश कर रहा है।

कठिन शब्द 
महामान्य – परम् माननीय , अति सम्मान वाला
जात – जिसने जन्म लिया हो , उत्पन्न , जिसे कुछ उत्पन्न हुआ हो , पुत्र , बेटा , जीव , प्राणी
निरी अनजान – जिसके बारे में कोई जानकारी न हो , अपरिचित , अजनबी
मालामाल – धन धान्य से संपन्न , समृद्ध , भरपूर
अनसमझ – जो कुछ समझता बूझता न हो , विषय जो जाना या समझा हुआ न हो

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब चिड़िया अपनी माँ के पास जाने की जिद्द करती है तो माधवदास चिड़िया को मनाते हुए कहता है कि चिड़िया तुम बहुत भोली हो। माधव दास चिड़िया से प्रश्न करता है कि वह कहाँ रहती है ? क्या वह उसे नहीं जानती है ? चिड़िया माधवदास के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहता है कि वह अपनी माँ को जानती है , वह अपने भाई को जानती है , वह सूरज को और उसकी धूप को जानती है। वह घास , पानी और फूलों को भी जानती है। चिड़िया माधव दास को आदर के साथ कहती है कि परम् माननीय , वह उसे नहीं जानती कि वह कौन है ? चिड़िया का उत्तर जान कर माधवदास चिड़िया को अपने बारे में बताते हुए कहता है कि चिड़िया तुम तो बहुत भोली हो , अगर तुमने उसे नहीं जाना , तब तो उसने अब तक कुछ भी नहीं जाना है। माधव दास आगे कहता है कि वही तो सेठ माधवदास है। उसके पास क्या नहीं है अर्थात उसके पास सब कुछ है। जो कोई भी उससे जो कुछ भी माँगता है , वह वही दे सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि माधव दास से कोई भी कुछ भी माँगे वह सब कुछ देने की क्षमता रखता है अर्थात वह बहुत आमिर है। माधव दास की बात सुन कर चिड़िया माधव दास से कहती है कि पर वह तो छोटी सी प्राणी है। माधवदास से प्रार्थना करते हुए चिड़िया कहती है कि उस के पास तो सब कुछ है। तब वह उसे वहाँ से जाने दे। माधवदास फिर चिड़िया को समझाते हुए कहता है कि चिड़िया तुझे तो किसी के बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। अगर वह उसे खुश करेगी तो वह उसे धन धान्य से संपन्न कर सकता है। चिड़िया मासूमियत से माधव दास कहती है कि वह सेठ है। परन्तु वह नहीं जानती कि सेठ क्या होता है। पर जिस तरह से माधव दास ने चिड़िया को समझाया था उससे चिड़िया  कि सेठ जरूर कोई बड़ी बात होती होगी। चिड़िया अपने आप को इस विषय में नासनझ कहती है। चिड़िया माधव दास को फिर से कहती है कि वह अपनी माँ से बहुत प्यार करती है। और उसकी माँ उसके लिए परेशान हो रही होगी और उसके आने का इन्तजार कर रही होगी। धन धान्य से संपन्न होनी से अनजान चिड़िया कहती है कि धन धान्य से संपन्न होकर वह क्या बन जाएगी यह वह नहीं जानती। उसे तो यह भी नहीं मालूम कि धन धान्य से संपन्न होना किसे कहते हैं ? चिड़िया माधव दास से पूछती है कि क्या उसे धन धान्य से संपन्न होना चाहिए ? “

पाठ – सेठ , ” अरी चिड़िया तुझे बुद्धि नहीं है। तू सोना नहीं जानती , सोना ? उसी की जगत को तृष्णा है। वह सोना मेरे पास ढेर का ढेर है। तेरा घर समूचा सोने का होगा। ऐसा  पिंजरा बनवाऊँगा कि कहीं दुनिया में न होगा , ऐसा कि तू देखती रह जाए। तू उसके भीतर थिरक – फुदककर मुझे खुश करियो। तेरा भाग्य खुल जाएगा। तेरे पानी पीने की कटोरी भी सोने की होगी। ”
चिड़िया , ” वह सोना क्या चीज़ होती है ? ”
सेठ, ” तू क्या जानेगी , तू चिड़िया जो है। सोने का मूल्य सीखने के लिए तुझे बहुत सीखना है। बस , यह जान ले कि सेठ माधवदास तुझसे बात कर रहा है। जिससे मैं बात तक कर लेता हूँ उसकी किस्मत खुल जाती है। तू अभी जग का हाल नहीं जानती। मेरी कोठियों पर कोठियाँ हैं , बगीचों पर बगीचे हैं।
दास – दासियों की संख्या नहीं है। पर तुझसे मेरा चित्त प्रसन्न हुआ है। ऐसा वरदान कब किसी को मिलता है ? री चिड़िया ! तू इस बात को समझती क्यों नहीं ? ”
चिड़िया , ” सेठ , मैं नादान हूँ। मैं कुछ समझती नहीं। पर , मुझे देर हो रही है। माँ मेरी बाट देखती होगी। “

नोट – इस गद्यांश में लेखक वर्णन कर रहा है कि किस तरह माधवदास चिड़िया को धन धान्य से संपन्न होने का अर्थ बताते हुए उसे उसी के पास रुकने के लिए मनाने का प्रयास कर रहा है।

कठिन शब्द
तृष्णा – प्यास , विशेष कामना रखने वाला
समूचा – सब , कुल , पूरा
दास – दासियाँ – नौकर – नौकरानियाँ

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब चिड़िया माधवदास को बताती है कि उसे धन धान्य से संपन्न होने का अर्थ नहीं पता तो सेठ माधवदास चिड़िया से कहता है कि अरी चिड़िया तुझे बुद्धि नहीं है। वह सोना नहीं जानती कि सोना किसे कहते हैं ? सोना ही तो है जिस की संसार वालों को विशेष कामना रहती है। और वह सोना उसके पास ढेर का ढेर है। अर्थात माधवदास के पास सोने की कोई कमी नहीं है। माधवदास चिड़िया को और लालच देते हुए कहता है कि वह उसका पूरा घर सोने का ही बनवा देगा। वह चिड़िया के लिए ऐसा पिंजरा बनवाएगा कि कहीं दुनिया में वैसा पिंजरा किसी का भी न होगा , वह ऐसा होगा कि चिड़िया उसे बस देखती रह जाएगी। माधवदास आगे चिड़िया से कहता है कि वह उस पिंजरे के अंदर थिरक – फुदककर उसे  खुश किया करना। अगर वह ऐसा करेगी तो उसका भाग्य खुल जाएगा। उसके पानी पीने की कटोरी भी सोने की ही होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि माधवदास उस चिड़िया को हर तरह से लालच दे कर अपने पास ही रहने के लिए राज़ी करवाना चाहता था। माधवदास की सारी बातें सुन कर चिड़िया कहती है कि वह सोना क्या चीज़ होती है , इस बारे में कुछ नहीं जानती ? सेठ माधवदास भी कहता है कि वह कैसे जान सकती है , वह चिड़िया जो है। सोने का मूल्य सीखने के लिए उसे बहुत कुछ सीखना पड़ेगा। बस वह यह जान ले कि सेठ माधवदास उस से बात कर रहा है। और जिससे वह बात तक कर लेता है उसकी किस्मत खुल जाती है। वह चिड़िया अभी इस संसार का हाल नहीं जानती। इस संसार में उसके बहुत सारे मकान हैं , बहुत सारे महल भी हैं , बगीचों पर बगीचे हैं। उसके घर में काम करने वाले नौकर – नौकरानियों की संख्या ही नहीं है। अर्थात उसके घर में  नौकर – नौकरानियों की कोई कमी नहीं है। पर उसका मन उस चिड़िया को देख कर प्रसन्न हुआ है। इस बात को माधव दास किसी वरदान से कम नहीं समझता कि उसका मन किसी से खुश हुआ है। यह बात वह चिड़िया से कहता है कि वह इस बात को समझती क्यों नहीं है ? चिड़िया फिर भी अपनी बात पर स्थिर रहते हुए सेठ माधवदास से कहती है कि वह नासमझ है। वह यह सब कुछ नहीं समझ रही है जो माधवदास उसे समझा रहा है। पर उसे देर हो रही है। उसकी माँ उसका इन्तजार कर रही होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि चिड़िया को माधवदास की कोई बात समझ में नहीं आ रही थी वह सिर्फ जल्दी से जल्दी अपनी माँ के पास जाना चाहती थी।

पाठ –  सेठ , ” ठहर – ठहर , इस अपने पास के फूल को तूने देखा ? यह एक है। ऐसे अनगिनती फूल हैं। ऐसे अनगिनती फूल मेरे बगीचों में हैं। वे भाँति – भाँति के रंग के हैं। तरह – तरह की उनकी खुशबू हैं। चिड़िया , तैंने मेरा चित्त प्रसन्न किया है और वे सब फूल तेरे लिए खिला करेंगे। वहाँ घोंसले में तेरी माँ है , पर माँ क्या है ? इस बहार के सामने तेरी माँ क्या है ? वहाँ तेरे घोंसले में कुछ भी तो नहीं है। तू अपने को नहीं देखती ? कैसी सुंदर तेरी गरदन। कैसी रंगीन देह ! तू अपने मूल्य को क्यों नहीं देखती ? मैं तुझे सोने से मढ़कर तेरे मूल्य को चमका दूँगा। तैंने मेरे चित्त को प्रसन्न किया है। तू मत जा , यहीं रह। ”
चिड़िया , ” सेठ , मैं अपने को नहीं जानती। इतना जानती हूँ कि माँ मेरी माँ है और मुझे यहाँ देर हो रही है। सेठ , मुझे रात मत करो , रात में अँधेरा बहुत हो जाता है और मैं राह भूल जाऊँगी। ”
सेठ ने कहा , ” अच्छा , चिड़िया जाती हो तो जाओ। पर , इस बगीचे को अपना ही समझो। तुम बड़ी सुंदर हो। ”
यह कहने के साथ ही सेठ ने एक बटन दबा दिया। उसके दबने से दूर कोठी के अंदर आवाज हुई जिसे सुनकर एक दास झटपट भागकर बाहर आया। यह सब छनभर में हो गया और चिड़िया कुछ भी नहीं समझी।

नोट – इस गद्यांश में लेखक वर्णन कर रहा है कि जब माधव दास के धन दौलत का लालच देने पर भी चिड़िया ने अपनी माँ के पास जाने की जिद्द नहीं छोड़ी तो माधवदास ने चिड़िया को बाग़ – बगीचे , फल – फूल आदि का लालच देना चाहा। फिर भी चिड़िया ने अपना इरादा नहीं बदला।

कठिन शब्द 
अनगिनती – बे हिसाब , जिसकी कोई गिनती न हो
भाँति – भाँति – रीति , किस्म , प्रकार , तरह , अनुसार , रंग-ढंग , सादृश्य , तर्ज़
देह – शरीर
राह – रास्ता
छनभर – क्षण भर , पल भर

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब सेठ माधव दास के धन दौलत का लालच देने पर भी चिड़िया ने अपनी माँ के पास जाने की जिद्द नहीं छोड़ी तो माधवदास ने चिड़िया से कहा कि रुक जाओ जरा इस अपने पास के फूल को तो देखो , क्या उसने ऐसा फूल कहीं देखा है ? यहाँ पर यह एक ही है। परन्तु ऐसे बे हिसाब फूल और भी हैं। ऐसे फूल उसके बगीचों में हैं , और इतने सारे हैं कि उनकी गिनती नहीं की जा सकती। वहाँ पर कई किस्म के और कई रंग के पूल हैं। उन फूलों की खुशबू भी तरह – तरह की हैं। माधव दास फिर से चिड़िया से कहता है कि उस ने उसका  मन खुश किया है इसलिए उसके बाग़ – बगीचों के वे सब फूल उस चिड़िया के लिए ही खिला करेंगे।माधवदास चिड़िया का ध्यान उसकी माँ से हटाने के लिए उससे कहता है कि वहाँ घोंसले में उसकी माँ है , पर माँ क्या है ? इस बहार के सामने , इस सुंदर बाग़ – बगीचे और फल – फूलों के सामने उसकी माँ क्या है ? वहाँ उसके घोंसले में कुछ भी तो नहीं है। माधवदास चिड़िया की तारीफ़ करते हुए कहता है कि तू अपने आप को नहीं देखती कि तू कैसी सुंदर है , तेरी गरदन कितनी सुंदर है। तेरा शरीर कितना रंगीन है। तू अपने मूल्य को क्यों नहीं देखती ? वह उसे सोने से मढ़कर उसका मूल्य और अधिक बढ़ा देगा। उस ने माधवदास के मन को प्रसन्न किया है। माधवदास उससे प्रार्थना करता है कि वह न जाए उसी के पास रह जाए। चिड़िया फिर भी अपनी बात पर अटल रहते हुए सेठ माधवदास को समझाते हुए कहती है कि उसे नहीं पता कि वह कितनी सुंदर है और उसका क्या मूल्य है। वह बस इतना जानती है कि माँ उसकी माँ है और उसे यहाँ माधवदास के पास रह कर देर हो रही है। वह सेठ माधवदास से प्रार्थना करती है कि वह उसे रोक कर रात न करे , क्योंकि रात में अँधेरा बहुत हो जाता है और अँधेरे के कारण वह अपना रास्ता भूल जाएगी। चिड़िया की बात सुन कर सेठ माधव दास चिड़िया से कहता है कि अच्छा , चिड़िया अगर वह जाना चाहती है , तो जाओ। पर , इस बगीचे को वह अपना ही समझ सकती है। वह बड़ी सुंदर है। यह कहने के साथ ही सेठ माधवदास ने एक बटन दबा दिया। उसके बटन दबने से दूर उसके मकान के अंदर आवाज हुई जिसे सुनकर एक नौकर जल्दी से भागकर बाहर आ गया। यह सब बहुत जल्दी में ही हो गया जिसके कारण चिड़िया को कुछ भी समझ में नहीं आया कि उसके आस – पास क्या हो रहा है।

पाठ –  सेठ कहते रहे , ” तुम अभी माँ के पास जाओ। माँ बाट देखती होगी। पर , कल आओगी न ? कल आना , परसों आना , रोज आना। ”
यह कहते – कहते दास को सेठ ने इशारा कर दिया और वह चिड़िया को पकड़ने के जतन में चला।
सेठ कहते रहे , ” सच तुम बड़ी सुंदर लगती हो ! तुम्हारे भाई – बहिन हैं ? कितने भाई – बहिन हैं ? ”
चिड़िया , ” दो  बहिन , एक भाई। पर मुझे देर हो रही है। ”
” हाँ हाँ जाना। अभी तो उजेला है। दो बहन , एक भाई है ? बड़ी अच्छी बात है। ”
पर चिड़िया के मन के भीतर जाने क्यों चैन नहीं था। वह चौकन्नी हो – हो चारों ओर देखती थी। उसने कहा , ” सेठ मुझे देर हो रही है। ”
सेठ ने कहा , ” देर अभी कहाँ ? अभी उजेला है , मेरी प्यारी चिड़िया ! तुम अपने घर का इतने और हाल सुनाओ। भय मत करो। ”
चिड़िया ने कहा , ” सेठ मुझे डर लगता है। माँ मेरी दूर है। रात हो जाएगी तो राह नहीं सूझेगी। ”
इतने में चिड़िया को बोध हुआ कि जैसे एक कठोर स्पर्श उसके देह को छू गया। वह चीख देकर चिचियाई और एकदम उड़ी। नौकर के फैले हुए पंजे में वह आकर भी नहीं आ सकी। तब वह उड़ती हुई एक साँस में माँ के पास गई और माँ की गोद में गिरकर सुबकने लगी , ” ओ माँ, ओ माँ ! “

नोट – इस गद्यांश में लेखक वर्णन कर रहा है कि किस तरह चालाक सेठ माधवदास चिड़िया को पकड़ने की योजना बनता है और उसे कैसे बहलाने – फुसलाने की कोशिश करता है। और किस तरह चिड़िया अपनी जान बचा कर निकलने में सफल होती है।

कठिन शब्द –
जतन – कोशिश , प्रयास , यत्न
उजेला – उजाला
चौकन्नी – चारों ओर की आहट लेता हुआ , सतर्क , चौकस , सावधान , होशियार , चौंका हुआ , सशंकित परंतु सशर्त
चिचियाना – चिल्लाना , चीखना , हल्ला करना
सुबकना – हिचकियाँ लेते हुए रोना

व्याख्या – लेखक कहता है कि नौकर को बुलाने का कारण चिड़िया को समझ में नहीं आया क्योंकि सब कुछ बहुत जल्दी में हो गया था। नौकर को बुलाने के बाद भी सेठ माधव दास नौकर को कुछ नहीं बोलते बल्कि चिड़िया से ही बात करते हुए कहते हैं कि वह अभी अपनी माँ के पास जाए। उसकी माँ उसका रास्ता देखती होगी। अर्थात उसकी माँ उसका इन्तजार कर रही होगी। परन्तु माधवदास चिड़िया से पूछता है कि वह कल उसके इस बगीचे आएगी न ? वह चिड़िया से कहता है कि वह कल भी आना , परसों भी आना बल्कि वह वहाँ रोज आना। यह कहते – कहते को सेठ माधवदास ने उस नौकर को चिड़िया को पकड़ने का इशारा कर दिया जिससे उसने थोड़ी देर पहले बुलाया था और वह नौकर चिड़िया को पकड़ने की कोशिश में चल पड़ा। कहीं चिड़िया को पता न चल जाए इसलिए सेठ माधवदास चिड़िया से कहते रहे कि सच में वह बड़ी सुंदर लगती है। क्या उसके भाई – बहिन भी हैं ? और अगर हैं तो कितने भाई – बहिन हैं ? चिड़िया भी माधवदास के प्रश्नो के उत्तर देने में व्यस्त हो गई और कहने लगी कि उसके दो  बहिन , और एक भाई है। इतना कहने पर चिड़िया फिर माधवदास को याद दिलाती है कि उसे देर हो रही है। माधवदास फिर चिड़िया को उलझाते हुए कहता है कि हाँ , हाँ ठीक है , चले जाना। अभी तो उजाला है। चिड़िया की बात दोहराते हुए कहता है कि दो बहन , एक भाई है ? यह तो बड़ी अच्छी बात है। पर चिड़िया के मन के भीतर पता नहीं क्यों चैन नहीं था। वह चारों ओर की आहट लेती हुई सतर्क हो – हो कर चारों ओर देखती रहती थी। वह बार – बार सेठ माधवदास से कह रही थी कि उसे देर हो रही है। सेठ माधवदास चिड़िया की बातों को अनसुना सा करता हुआ कहता है कि अभी देर कहाँ हुई है ? अभी तो बहुत उजाला है , मेरी प्यारी चिड़िया। तुम अपने घर का और हाल सुनाओ। भय बिलकुल मत करो। चिड़िया फिर भी बार – बार माधवदास से कह रही थी कि उसे डर लगता है। क्योंकि उसकी माँ उससे बहुत दूर है। रात हो जाएगी तो रास्ता नहीं समझ आएगा और वह भटक जाएगी। जब चिड़िया यह सब माधवदास को बता रही थी तो चिड़िया को ऐसा लगा जैसे कि एक कठोर स्पर्श उसके शरीर को छू गया। वह चीख देकर चिल्लाई और एकदम से डाल पर से उड़ गई। नौकर के फैले हुए पंजे में वह आकर भी नहीं आ सकी।अर्थात नौकर बस उसे पकड़ने वाला ही था किन्तु वह नौकर के हाथ में आते – आते बच कर उड़ गई। तब वह चिड़िया उड़ती हुई एक साँस में अपनी माँ के पास पहुँच गई और अपनी माँ की गोद में गिरकर हिचकियाँ लेते हुए रोने लगी और ओ माँ, ओ माँ करती हुई बस रोए जा रही थी। कहने का तात्पर्य यह है कि माधवदास के इशारे पर नौकर ने उस सुंदर चिड़िया को पकड़ने का प्रयास तो किया किन्तु वह पकड़ नहीं पाया और जब चिड़िया को एहसास हुआ कि नौकर उसे पकड़ने वाला है तो वह तुरंत उड़ कर सीधे अपनी माँ के पास पहुँच गई।  वह इतनी डर गई थी कि वह माधवदास के बगीचे से उड़ कर सीधे माँ के घौंसले में रुकी कही बिच में नहीं बैठी , न ही आराम किया।

पाठ – माँ ने बच्ची को छाती से चिपटाकर पूछा , ” क्या है मेरी बच्ची , क्या है ? ”
पर , बच्ची काँप – काँपकर माँ की छाती से और चिपक गई , बोली कुछ नहीं , बस सुबकती रही , ” ओ माँ , ओ माँ ! ”
बड़ी देर में उसे ढाढ़स बँधा और तब वह पलक मींच उस छाती में ही चिपककर सोई। जैसे अब पलक न खोलेगी।

नोट – इस अंतिम गद्यांश में लेखक चिड़िया के डर कर अपनी माँ की गोद में छिप जाने का वर्णन कर रहा है। 

कठिन शब्द
ढाढ़स बँधा – किसी को दुख आदि में दिलासा देना

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब चिड़िया डर कर अपनी माँ की गोद में हिचकियाँ ले लेकर रोने लगी तो उसकी माँ ने अपनी बच्ची को अपनी छाती से सटाकर पूछा की उसकी प्यारी बच्ची को क्या हुआ है , वह इस तरह क्यों रो रही है ? परन्तु चिड़िया की बच्ची काँप – काँपकर अपनी माँ की छाती से और सट कर चिपक गई और वह कुछ भी नहीं बोली , बस हिचकियाँ ले लेकर रोती रही और ओ माँ , ओ माँ करती रही। बहुत देर तक वह इसी तरह अपनी माँ की छाती से सटकर रोती रही और जब उसे उसकी माँ द्वारा थोड़ा दिलासा दिया गया ,तब भी वह अपनी पलकों को बंद करके उसकी छाती में ही चिपककर सो गई। जैसे अब वह पलक कभी नहीं खोलेगी। कहने का तात्पर्य यह है कि चिड़िया की बच्ची अपनी माँ की गोद में ही अपने आप को सुरक्षित महसूस कर पा रही थी।


Chidiya ki Bacchi Question Answer  (चिड़िया की बच्ची प्रश्न अभ्यास)

प्रश्न 1 – किन बातों से ज्ञात होता है कि माधवदास का जीवन संपन्नता से भरा था और किन बातों से ज्ञात होता है कि वह सुखी नहीं था ?

उत्तर – माधवदास के पास एक बड़ी संगमरमर की कोठी थी , सुंदर बाग़ – बगीचे थे , रहने का ठाठ – बाट अमीरों जैसा था। जब वह चिड़िया के साथ बात – चीत कर रहा था तब उसने कहा था कि वह चिड़िया के लिए सोने का पिंजरा बनावा देगा और उसे धन धान्य से संपन्न कर देगा। इसके अलावा वह स्वयं स्वीकार करता है कि उसके पास कई सारी कोठियाँ है , बाग़ – बगीचे और नौकर – चाकर हैं। इन बातों से उसकी संपन्नता का पता चलता है। लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद भी वह अकेलेपन महसूस करता था क्योंकि वह अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए शाम के समय बगीचे में बैठ कर प्रकृति की सुंदरता का आनंद लिया करता था और जब उसने अपने बगीचे में सुंदर चिड़िया को देखा तो वह उस चिड़िया को अपने साथ रहने के लिए मजबूर करने लगा था , वह चिड़िया को तरह -तरह से ललचाने की कोशिश कर रहा था किन्तु जब चिड़िया किसी भी तरह नहीं मानी तो अपने नौकर के द्वारा चिड़िया को पकड़ने की कोशिश भी की। यह बात दर्शाता है कि सारी सुविधाओं के बाद भी वह सुखी नहीं था।

प्रश्न 2 – माधवदास क्यों बार – बार चिड़िया से कहता है कि यह बगीचा तुम्हारा ही है ? क्या माधवदास निस्वार्थ मन से ऐसा कह रहा था ? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – माधवदास चिड़िया से बार – बार इसलिए कह रहा था कि यह बगीचा तुम्हारा ही है क्योंकि उसे चिड़िया बहुत सुंदर और प्यारी लगी थी। वह चाहता था कि वह चिड़िया हमेशा के लिए उसके ही बगीचे में रह जाए। यही कारण है कि बार – बार यह बात दुहराता जा रहा था कि बगीचा तुम्हारा ही है। माधवदास का ऐसा कहना पूरी तरह से निस्स्वार्थ मन से नहीं था। क्योंकि वह सिर्फ चिड़िया को बहला – फुसला कर पकड़ना चाहता था। वह चिड़िया को महल में पिंजरे में बंद करके रखना चाहता था ताकि जब उसकी इच्छा हो वह उसकी सुंदरता को निहार सके और उसका चहचहाना सुन सके।

प्रश्न 3 – माधवदास के बार – बार समझाने पर भी चिड़िया सोने के पिंजरे और सुख – सुविधाओं को कोई महत्त्व नहीं दे रही थी। दूसरी तरफ़ माधवदास की नज़र में चिड़िया की जिद का कोई तुक न था। माधवदास और चिड़िया के मनोभावों के अंतर क्या – क्या थे ? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर – माधवदास बार – बार चिड़िया को सोने के पिंजरे व सुख – सुविधाओं का लालच देता है लेकिन चिड़िया माधवदास की किसी भी बात को कोई महत्त्व नहीं देती , उसे तो स्वच्छंदता ही पसंद है। उसे माधवदास के सुंदर बगीचे में रहना भी पसंद नहीं है। वह अपने परिवार में अपनी माँ  , भाई और बहनों से भी अलग नहीं होना चाहती। सुबह भले ही वह सूरज की धुप का आंनद लेने , फूलों की खुशबू लेने के लिए और खेलने के लिए अपने घर से निकल जाती है , परन्तु शाम होते ही उसे माँ के पास जाने की जल्दी होती है। वह तो केवल घूमना ही चाहती है, बंधन में रहना किसी भी पक्षी का स्वभाव नहीं होता। दूसरी तरफ माधवदास की नजर में चिड़िया की ज़िद का कोई तुक न था वे तो केवल अपने बगीचे की शोभा बढ़ाने हेतु उस चिड़िया को पकड़ना चाहते थे। उस चिड़िया के द्वारा अपने जीवन के अकेलेपन को दूर करना चाहते थे। वे चिड़िया को सोने  मोतियों से जड़े पिंजरे व अन्य सुख – सुविधाओं का लालच भी देते हैं लेकिन चिड़िया के लिए सब चीजें कोई महत्त्व नहीं रखतीं। वह केवल अपनी माँ के पास जाना चाहती थी।

प्रश्न 4 – कहानी के अंत में नन्ही चिड़िया का सेठ के नौकर के पंजे से भाग निकलने की बात पढ़कर तुम्हें कैसा लेगा ? चालीस – पचास या इससे कुछ अधिक शब्दों में अपनी प्रतिक्रिया लिखिए।

उत्तर – कहानी के अंत में नन्ही चिडिया का सेठ के नौकर के पंजे से भाग निकलने की बात पढ़कर मुझे बहुत ज्यादा खुशी हुई , क्योंकि माधवदास उसे तरह -तरह के लालच देते हैं ताकि चिड़िया उसके पास ही रुकने केलिए तैयार हो जाए परन्तु चिड़िया किसी भी तरह से नहीं मानती। अंत में वह चिड़िया को अपने नौकर से पकड़वाना चाहता है लेकिन चिड़िया भाग निकलती है। यदि माधवदास चिड़िया को पकड़वाने में सफल हो जाता तो चिडिया का बाकि का पूरा जीवन कैदी के रूप में व्यतीत होता। उसकी आजादी समाप्त हो जाती , उसका परिवार उससे बिछड़ जाता। उसकी स्वच्छंदता , हँसी – खुशी समाप्त हो जाती। कोई भी गुलामी का जीवन जीना पसंद नहीं करता , और प्रत्येक प्राणी को स्वतंत्र रह कर अपना जीवन जीने का अधिकार है , अत: मेरी संवेदना चिड़िया के प्रति बहुत अधिक है। और मुझे बहुत अधिक प्रसन्नता हुई जब चिड़िया उस स्वार्थी माधवदास के चुंगल से बच निकलने में सफल हुई।

प्रश्न 5 – ‘ माँ मेरी बाट देखती होगी ’ – नन्ही चिड़िया बार – बार इसी बात को कहती है। आप अपने अनुभव के आधार पर बताइए कि हमारी जिंदगी में माँ का क्या महत्त्व है ?

उत्तर – हमारी जिंदगी में माँ का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। माँ दुख – सुख में सदैव अपने बच्चों के साथ रहती है। माँ ही बच्चों की पहली गुरु होती है। माँ अपने बच्चों की सभी परेशानियों को दूर करते हुए सारे दुखों और कष्टों को स्वयं झेल जाना चाहती है। हमारा पालन – पोषण करती है , हमें सभी सुख – सुविधाएँ उपलब्ध कराती है तथा दुख की घड़ी में ढाढ़स बँधाती है। माँ का स्नेह और आशीर्वाद बच्चे की सफलता में योगदान देता है। अतः हम माँ के ऋण को आजीवन कभी नहीं चुका सकते। जब भी कोई संकट आता है या कभी कुछ गलत होने की आशंका मन में उठती है तो हमें अपनी माँ की ही याद आती है , क्योंकि माँ के आँचल में ही सबसे ज्यादा सकून और सुरक्षा महसूस होती है , यही कारण है कि जब चिड़िया को माधवदास के घर देर होने लगती है तो रह – रहकर वह यही कहती है कि माँ इंतजार करती होगी।

प्रश्न 6 – इस कहानी का कोई और शीर्षक देना हो तो आप क्या देना चाहेंगे और क्यों ?

उत्तर – इस कहानी हेतु ‘ नन्हीं चिड़िया ’ शीर्षक पूर्णतया उपयुक्त रहेगा क्योंकि वह छोटी चिड़िया है। स्वभावानुसार थोड़ा बहुत घूमना ही जानती है। जब माधवदास का नौकर उसे पकड़ने लगता है तो वह बहुत डर गई। वह इतनी तेजी से उड़ती है कि सीधा माँ की गोद में आकर रुकी और सारी रात उससे चिपककर सोती रही। वास्तव में वह छोटे बच्चे की भाँति ही डर जाती है और बच्चा माँ की गोद में ही अपने – आप को सुरक्षित महसूस करता है वैसा ही ‘ नन्हीं चिडिया ’ ने भी किया।

 


 
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