आश्रम का अनुमानित व्यय पाठ के पाठ सार, पाठ-व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर

Ashram ka Anumanit Vyay Summary Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 book Chapter 19 Summary of Ashram ka Anumanit Vyay and detailed explanation of the lesson along with meanings of difficult words. Here is the complete explanation of the lesson, along with all the exercises, Questions and Answers are given at the back of the lesson. Take Free Online MCQs Test for Class 7.

इस लेख में हम हिंदी कक्षा 7 ” वसंत भाग – 2 ” के पाठ – 19 ” आश्रम का अनुमानित व्यय ” पाठ के पाठ – प्रवेश, पाठ – सार, पाठ – व्याख्या, कठिन – शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर, इन सभी के बारे में चर्चा करेंगे –

आश्रम का अनुमानित व्यय

“आश्रम का अनुमानित व्यय” 

Class 7 Hindi Lesson Explanation notes

 

आश्रम का अनुमानित व्यय पाठ प्रवेश

Mahatma Gandhi

महात्मा गाँधी एक ऐसा नाम है , जिसे सुनते ही सत्य और अहिंसा की याद आ जाती है। महात्मा गाँधी का एक ऐसा व्यक्तित्व था जिन्होंने किसी दूसरे को सलाह देने से पहले उसका प्रयोग स्वंय पर किया। जिन्होंने बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी अहिंसा का मार्ग नहीं छोड़ा। महात्मा गाँधी एक महान व्यक्तित्व के राजनैतिक नेता थे। इन्होंने भारत की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया था। गाँधी जी का मानना था कि हमें सादा जीवन जीना चाहिए और अपने विचारों को सदा उच्च रखना चाहिए, और इसे वे पूरी तरह अपने जीवन में लागू भी करते थे। उनके सम्पूर्णं जीवन में उनके इसी विचार की छवि प्रतिबिम्बित होती है। यहीं कारण है कि उन्हें 1944 में नेताजी सुभाष चन्द्र ने राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित किया था।

1915 में 46 वर्ष की उम्र में गाँधी जी दक्षिण अफ़्रीका से भारत लौट आये , और भारत की स्थिति का सूक्ष्म अध्ययन किया। गोपाल कृष्ण गोखले जी जो की गाँधी जी के राजनीतिक गुरु थे , उन की सलाह पर गाँधी जी नें एक वर्ष शान्तिपूर्ण बिना किसी आन्दोलन के व्यतीत किया। इस समय में उन्होंने भारत की वास्तविक स्थिति से रूबरू होने के लिये पूरे भारत का भ्रमण किया। 1916 में गाँधी जी नें अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। फरवरी 1916 में गाँधी जी ने पहली बार बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय में मंच पर भाषण दिया। जिसकी चर्चा पूरे भारत में हुई।

दक्षिण अफ़्रीका से लौटकर गांधी जी ने अहमदाबाद में जिस साबरमती आश्रम की स्थापना की थी , उसके जो प्रारंभिक सदस्य थे तथा वहाँ किस – किस सामान की आवश्यकता होती थी और साथ – ही – साथ अहमदाबाद में स्थापित आश्रम का संविधान भी गांधी जी ने खुद से ही तैयार किया था। इस संविधान के मसविदे से पता चलता है कि वह भारतीय जीवन का निर्माण किस प्रकार करना चाहते थे। इसी का विवरण इस पाठ में है।


आश्रम का अनुमानित व्यय पाठ सार 

दक्षिण अफ़्रीका से लौटकर गांधी जी ने अहमदाबाद में जिस साबरमती आश्रम की स्थापना की थी , उसके जो प्रारंभिक सदस्य थे तथा वहाँ किस – किस सामान की आवश्यकता होती थी और साथ – ही – साथ अहमदाबाद में स्थापित आश्रम का संविधान भी गांधी जी ने खुद से ही तैयार किया था। इसी का विवरण इस पाठ में है। गांधी जी अपने आश्रम का निर्माण करने से पहले उसका ब्यौरा तैयार करते हुए लिखते हैं कि उनके अनुमानानुसार शुरुआत में संस्था यानि आश्रम में चालीस ( 40 ) लोग होंगे। परन्तु गाँधी जी कुछ समय में इस संख्या के पचास ( 50 ) हो जाने अनुमान लगाते हैं। इसके साथ – ही – साथ हर महीने औसत के हिसाब से दस मेहमानों के आने का अनुमान भी लगाते हैं। इन सबका अनुमान लगाते हुए गाँधी जी लिखते हैं कि उनके आश्रम में तीन रसोईघर होने चाहिए और मकान कुल पचास हज़ार वर्ग फुट क्षेत्रफल में बनना चाहिए तभी सब लोगों के रहने योग्य जगह हो सकेगी। इसके अतिरिक्त गाँधी जी चाहते हैं कि उनके आश्रम में एक पुस्तकालय भी हो जिसमें कम से कम तीन हज़ार पुस्तकें रखने योग्य जगह हो और कुछ अलमारियाँ भी वे अपने आश्रम में चाहते हैं। गाँधी जी चाहते हैं कि आश्रम के पास खेती – बाड़ी करने के लिए भी जमीन हो , इसके साथ ही खेती करने के पर्याप्त औज़ार भी होने चाहिए। इन औजारों में कुदालियों , फ़ावड़ों और खुरपों की ज़रूरत खेती करने के लिए होगी , जिस कारण गाँधी जी चाहते हैं कि ये सभी औज़ार आश्रम में होने चाहिए। इसी के साथ ही गाँधी जी आश्रम में लकड़ी का काम करने के औज़ार भी चाहते थे और साथ – ही – साथ मोची के औज़ार भी। गाँधी जी के अनुमान के अनुसार इन सब सामान पर कुल पाँच रुपया खर्च आने वाला था। और जितना उन्होंने रसोई के लिए आवश्यक सामान की सूची तैयार की है उनके अनुमानानुसार उस पर एक सौ पचास रुपये खर्च आएगा। एक और आवश्यक चीज़ गाँधी जी को बैलगाड़ी लगती है क्योंकि स्टेशन आश्रम से दूर है , तो सामान को या मेहमानों को लाने के लिए कोई साधन तो चाहिए ही होगा इसी कारण आश्रम के पास अपनी एक बैलगाड़ी भी होनी ही चाहिए। गाँधी जी अपने अनुमान के जरिए आश्रम में खाने का खर्च प्रति व्यक्ति दस रुपये मासिक लगाते हैं। गाँधी जी को यह एक समस्या ही लगती है कि इतना खर्च वे शायद ही पहले वर्ष में निकाल सकेंगे क्योंकि वर्ष में औसत के अनुसार पचास लोगों का खर्च छह हज़ार रुपये आएगा। उन्हें कहीं से यह मालूम हुआ है कि कुछ ख़ास या अधिकारी लोगों की इच्छा यह है कि जो भी गांधी जी अहमदाबाद में आश्रम निर्माण कर के लोगों पर प्रयोग कर रहे हैं वह कम – से – कम एक वर्ष तक किया जाए। अगर वे ऐसा चाहते हैं तो जो भी खर्च अभी तक तैयार किया गया है उस सभी खर्च को उठाने की जिम्मेदारी अहमदाबाद को अपने ऊपर लेनी चाहिए। अब गाँधी जी और एक सुझाव रखते हुए लिखते हैं कि अगर अहमदाबाद की जनता या सरकार पुरे आश्रम के एक वर्ष के खर्च का बोझ उठाने के लिए तैयार नहीं है या असमर्थ है  , तो उनका बोझ काम करने के लिए जो भी खर्चा अब तक तैयार किया गया है उस में से खाने के खर्च का इंतज़ाम वे कर सकते हैं। अब गाँधी जी यह भी लिखते हैं कि क्योंकि उन्होंने खर्च का जो भी अंदाजा लगाया है वह जल्दी में तैयार किया है , इसलिए यह हो सकता है कि कुछ जरुरी चीज़े उन से छूट गई हों। इसके अलावा गांधी जी यह भी लिखते हैं कि उन्हें केवल खाने के खर्च का अनुमान है। इस के सिवा उन्हें अहमदाबाद की स्थानीय स्थितियों की जानकारी नहीं है। इस कारण उनका अंदाजा कहीं – कहीं गलत भी हो सकता है। गांधी जी अपने आश्रम का निर्माण करने से पहले उसका ब्यौरा तैयार करते हुए लिखते हैं कि अगर अहमदाबाद की जनता या सरकार पुरे आश्रम के एक वर्ष के खर्च का बोझ उठाने के लिए तैयार है तो कुछ सामानों में खर्च का ब्यौरा गाँधी जी लिखते हैं और इस के अलावा गाँधी जी कुछ घरेलु सामानों का ब्यौरा भी तैयार करते हैं। गाँधी जी को इन सामानों के अलावा कुछ और सामानों और औज़ारों की जरुरत महसूस होती है जिनमें वे चाहते हैं कि लोहे का काम करने के लिए और राजमिस्त्री के औज़ारों की भी ज़रूरत आश्रम को होगी। इसके आलावा दूसरे बहुत से औज़ार भी गाँधी जी आश्रम में चाहते हैं , किन्तु गाँधी लिखते हैं कि जो भी हिसाब उन्होंने बनाया है उसमे उन्होंने इन औजारों का खर्च और शिक्षण – संबंधी सामान का खर्च शामिल नहीं किया है। गाँधी जी यह भी लिखते हैं कि शिक्षण के सामान में पाँच – छह देशी हथकरघों कीआवश्यकता होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि गांधी जी अपने विचार सादा रहना और उच्च विचार को सर्वसाधारण तक पहुँचाना चाहते थे।


आश्रम का अनुमानित व्यय पाठ व्याख्या

Ashram

आरंभ में संस्था ( आश्रम ) में चालीस लोग होंगे। कुछ समय में इस संख्या के पचास हो जाने की संभावना है। हर महीने औसतन दस अतिथियों के आने की संभावना है। इनमें तीन या पाँच सपरिवार होंगे , इसलिए स्थान की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि परिवार वाले लोग अलग रह सकें और शेष एक साथ। इसको ध्यान में रखते हुए तीन रसोईघर हों और मकान कुल पचास हज़ार वर्ग फुट क्षेत्रफल में बने तो सब लोगों के लायक जगह हो जाएगी। इसके अलावा तीन हज़ार पुस्तकें रखने लायक पुस्तकालय और अलमारियाँ होनी चाहिए।

शब्दार्थ
आरंभ –  शुरू , प्रारंभ , श्रीगणेश , उत्पत्ति , आरब्ध
संभावना – किसी घटना या बात के संबंध में वह स्थिति जिसमें उसके पूर्ण होने की आशा हो , पॉसिबिलिटी , होने का भाव , कल्पना , अनुमान
औसतन –  अनुपात या औसत के हिसाब से
अतिथी – मेहमान
लायक –  योग्य , काबिल , गुणवान , समर्थ , उचित , ठीक , उपयुक्त , मुनासिब
अलावा –  अतिरिक्त , सिवा

नोट – गांधी जी द्वारा लिखे गए पाठ ‘ आश्रम का अनुमानित व्यय ’ के इस भाग से हमें सीख मिल रही है कि यदि हम कोई भी कार्य करना चाहें तो सोच – समझकर पहले ब्यौरा बना लेना चाहिए ताकि उसके अनुमानित खर्च को भी जाना जा सके।

व्याख्या – गांधी जी अपने आश्रम का निर्माण करने से पहले उसका ब्यौरा तैयार करते हुए लिखते हैं कि उनके अनुमानानुसार शुरुआत में संस्था यानि आश्रम में चालीस ( 40 ) लोग होंगे। परन्तु गाँधी जी कुछ समय में इस संख्या के पचास ( 50 ) हो जाने अनुमान लगाते हैं। इसके साथ – ही – साथ हर महीने औसत के हिसाब से दस मेहमानों के आने का अनुमान भी लगाते हैं। इन मेहमानों में भी गाँधी जी अनुमान लगाते हैं , इनमें तीन या पाँच परिवार के साथ आ सकते हैं , इसलिए गाँधी जी आश्रम में स्थान की व्यवस्था ऐसी करवाना चाहते हैं जिससे की परिवार वाले लोग अलग से रह सकें और बाकि आए मेहमान एक साथ रह सकें। इन सबका अनुमान लगाते हुए गाँधी जी लिखते हैं कि उनके आश्रम में तीन रसोईघर होने चाहिए और मकान कुल पचास हज़ार वर्ग फुट क्षेत्रफल में बनना चाहिए तभी सब लोगों के रहने योग्य जगह हो सकेगी। इसके अतिरिक्त गाँधी जी चाहते हैं कि उनके आश्रम में एक पुस्तकालय भी हो जिसमें कम से कम तीन हज़ार पुस्तकें रखने योग्य जगह हो और कुछ अलमारियाँ भी वे अपने आश्रम में चाहते हैं।

कम – से – कम पाँच एकड़ ज़मीन खेती करने के लिए चाहिए , जिसमें कम – से – कम तीस लोग काम कर सकें , इतने खेती के औज़ार चाहिए। इनमें कुदालियों , फ़ावड़ों और खुरपों की ज़रूरत होगी।

बढ़ईगिरी के निम्नलिखित औज़ार भी होने चाहिए – पाँच बड़े हथौड़े , तीन बसूले , पाँच छोटी हथौड़ियाँ , दो एरन , तीन बम , दस छोटी – बड़ी छेनियाँ , चार रंदे , एक सालनी , चार केतियाँ , चार छोटी – बड़ी बेधनियाँ , चार आरियाँ , पाँच छोटी – बड़ी संड़ासियाँ , बीस रतल कीलें – छोटी और बड़ी , एक मोंगरा ( लकड़ी का हथौड़ा ) , मोची के औज़ार।

मेरे अनुमान से इन सब पर कुल पाँच रुपया खर्च आएगा।

Mahatma Gandhiरसोई के लिए आवश्यक सामान पर एक सौ पचास रुपये खर्च आएगा। स्टेशन दूर होगा तो सामान को या मेहमानों को लाने के लिए बैलगाड़ी चाहिए। मैं खाने का खर्च दस रुपये मासिक प्रति व्यक्ति लगाता हूँ। मैं नहीं समझता कि हम यह खर्च पहले वर्ष में निकाल सकेंगे। वर्ष में औसतन पचास लोगों का खर्च छह हज़ार रुपये आएगा।

शब्दार्थ –
एकड़ –  भूमि या खेत की 4840 वर्ग गज की एक माप , 4046.8564 वर्ग मीटर , 1-3/5 बीघा के बराबर की माप
बढ़ईगिरी -लकड़ी को छीलकर या गढ़कर दरवाज़े , मेज़ , पलंग आदि बनाने की कला

नोट – गांधी जी द्वारा लिखे गए पाठ ‘ आश्रम का अनुमानित व्यय ’ के इस भाग से हमें सीख मिल रही है कि यदि हम कोई भी कार्य करना चाहें तो सोच – समझकर पहले ब्यौरा बना लेना चाहिए ताकि उसके अनुमानित खर्च को भी जाना जा सके।

व्याख्या – गांधी जी अपने आश्रम का निर्माण करने से पहले उसका ब्यौरा तैयार करते हुए लिखते हैं कि उनके अनुमानानुसार खेती करने के लिए उन्हें आश्रम में कम – से – कम पाँच एकड़ ज़मीन चाहिए , जिसमें कम – से – कम तीस लोग काम कर सकें अर्थात गाँधी जी चाहते हैं कि आश्रम के पास खेती – बाड़ी करने के लिए भी जमीन हो , इसके साथ ही खेती करने के पर्याप्त औज़ार भी होने चाहिए। इन औजारों में कुदालियों , फ़ावड़ों और खुरपों की ज़रूरत खेती करने के लिए होगी , जिस कारण गाँधी जी चाहते हैं कि ये सभी औज़ार आश्रम में होने चाहिए। इसी के साथ ही गाँधी जी आश्रम में लकड़ी का काम करने के औज़ार भी चाहते थे , ये निम्नलिखित औज़ार थे – पाँच बड़े हथौड़े , तीन बसूले , पाँच छोटी हथौड़ियाँ , दो एरन , तीन बम , दस छोटी – बड़ी छेनियाँ , चार रंदे , एक सालनी , चार केतियाँ , चार छोटी – बड़ी बेधनियाँ , चार आरियाँ , पाँच छोटी – बड़ी संड़ासियाँ , बीस रतल कीलें – छोटी और बड़ी , एक मोंगरा ( लकड़ी का हथौड़ा ) , और साथ – ही – साथ मोची के औज़ार भी। गाँधी जी के अनुमान के अनुसार इन सब सामान पर कुल पाँच रुपया खर्च आने वाला था। और जितना उन्होंने रसोई के लिए आवश्यक सामान की सूची तैयार की है उनके अनुमानानुसार उस पर एक सौ पचास रुपये खर्च आएगा। एक और आवश्यक चीज़ गाँधी जी को बैलगाड़ी लगती है क्योंकि स्टेशन आश्रम से दूर है , तो सामान को या मेहमानों को लाने के लिए कोई साधन तो चाहिए ही होगा इसी कारण आश्रम के पास अपनी एक बैलगाड़ी भी होनी ही चाहिए। गाँधी जी अपने अनुमान के जरिए आश्रम में खाने का खर्च प्रति व्यक्ति दस रुपये मासिक लगाते हैं। गाँधी जी को यह एक समस्या ही लगती है कि इतना खर्च वे शायद ही पहले वर्ष में निकाल सकेंगे क्योंकि वर्ष में औसत के अनुसार पचास लोगों का खर्च छह हज़ार रुपये आएगा। कहने का तात्पर्य यहाँ यह है कि गाँधी जी किसी काम को शुरू करने से पहले उसकी हर एक छोटी – बड़ी आवश्यकता का अनुमानानुसार ब्यौरा तैयार कर लेते थे ताकि किसी भी काम में कम से कम परेशानियों का सामना करना पड़े।

मुझे मालूम हुआ है कि प्रमुख लोगों की इच्छा यह है कि अहमदाबाद में यह प्रयोग एक वर्ष तक किया जाए। यदि ऐसा हो तो अहमदाबाद को ऊपर बताया गया सब खर्च उठाना चाहिए। मेरी माँग तो यह भी है कि अहमदाबाद मुझे पूरी ज़मीन और मकान सभी दे दें तो बाकी खर्च मैं कहीं और से या दूसरी तरह जुटा लूँगा। अब चूँकि विचार बदल गया है , इसलिए ऐसा लगता है कि एक वर्ष का या इससे कुछ कम दिनों का खर्च अहमदाबाद को उठाना चाहिए। यदि अहमदाबाद एक वर्ष के खर्च का बोझ उठाने के लिए तैयार न हो , तो ऊपर बताए गए खाने के खर्च का इंतज़ाम मैं कर सकता हूँ। चूँकि मैंने खर्च का यह अनुमान जल्दी में तैयार किया है , इसलिए यह संभव है कि कुछ मदें मुझसे छूट गई हों। इसके अतिरिक्त खाने के खर्च के सिवा मुझे स्थानीय स्थितियों की जानकारी नहीं है। इसलिए मेरे अनुमान में भूलें भी हो सकती हैं।

शब्दार्थ
अनुमान –  अंदाज़ा , अटकल , प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष का ज्ञान
संभव – किए जाने या हो सकने योग्य , कार्य जो हो सकता या किया जा सकता हो , घटित होना , संयोग
मदें – जरुरी चीज़े , सामान

नोट – गांधी जी द्वारा लिखे गए पाठ ‘ आश्रम का अनुमानित व्यय ’ के इस भाग से हमें सीख मिल रही है कि यदि हम कोई भी कार्य करना चाहें तो सोच – समझकर पहले ब्यौरा बना लेना चाहिए ताकि उसके अनुमानित खर्च को भी जाना जा सके।

व्याख्या – गांधी जी अपने आश्रम का निर्माण करने से पहले उसका ब्यौरा तैयार करते हुए लिखते हैं कि उन्हें कहीं से यह मालूम हुआ है कि कुछ ख़ास या अधिकारी लोगों की इच्छा यह है कि जो भी गांधी जी अहमदाबाद में आश्रम निर्माण कर के लोगों पर प्रयोग कर रहे हैं वह कम – से – कम एक वर्ष तक किया जाए। अगर वे ऐसा चाहते हैं तो जो भी खर्च अभी तक तैयार किया गया है उस सभी खर्च को उठाने की जिम्मेदारी अहमदाबाद को अपने ऊपर लेनी चाहिए। यहाँ पर गाँधी जी अहमदाबाद की जनता या नेताओं के सामने अपनी एक माँग रखते हुए यह कहते है कि अहमदाबाद की जनता या सरकार अगर उन्हें खेती के लिए पूरी ज़मीन और आश्रम के लिए मकान आदि सभी दे दें तो बाकी का जो भी खर्च होगा वे कहीं और से या दूसरी तरह से जुटा लेंगे। अब जब गाँधी जी के मन में यह विचार आया तो उन्हें लगा कि क्योंकि अब विचार बदल गया है , इसलिए अब उन्हें ऐसा लगता है कि एक वर्ष का या इससे कुछ कम दिनों का खर्च अहमदाबाद की जनता या सरकार किसी को तो उठाना चाहिए क्योंकि वे ही चाहते हैं कि गाँधी जी एक वर्ष के लिए वहाँ रहें। अब गाँधी जी और एक सुझाव रखते हुए लिखते हैं कि अगर अहमदाबाद की जनता या सरकार पुरे आश्रम के एक वर्ष के खर्च का बोझ उठाने के लिए तैयार नहीं है या असमर्थ है  , तो उनका बोझ काम करने के लिए जो भी खर्चा अब तक तैयार किया गया है उस में से खाने के खर्च का इंतज़ाम वे कर सकते हैं। अब गाँधी जी यह भी लिखते हैं कि क्योंकि उन्होंने खर्च का जो भी अंदाजा लगाया है वह जल्दी में तैयार किया है , इसलिए यह हो सकता है कि कुछ जरुरी चीज़े उन से छूट गई हों। इसके अलावा गांधी जी यह भी लिखते हैं कि उन्हें केवल खाने के खर्च का अनुमान है। इस के सिवा उन्हें अहमदाबाद की स्थानीय स्थितियों की जानकारी नहीं है। इस कारण उनका अंदाजा कहीं – कहीं गलत भी हो सकता है।

यदि अहमदाबाद सब खर्च उठाए तो विभिन्न मदों में खर्च इस तरह होगा –

* किराया – बंगला और खेत की ज़मीन
* किताबों की अलमारियों का खर्च
* बढ़ई के औज़ार
* मोची के औज़ार
* चौके का सामान
* एक बैलगाड़ी या घोड़ागाड़ी
* एक वर्ष के लिए खाने का खर्च – छह हज़ार रुपया

Bullock cart घरेलु सामान –

चार पतीले – चालीस आदमियों का खाना बनाने के योग्य ; दो छोटी पतीलियाँ – दस आदमियों के योग्य ; तीन पानी भरने के पतीले या ताँबे के कलशे ; चार मिट्टी  के घड़े ; चार तिपाइयाँ ; एक कढ़ाई ; दस रतल खाना पकाने योग्य ; तीन कलछियाँ ; दो आटा गूँधने की परातें ; एक पानी गरम करने का बड़ा पतीला ; तीन केतलियाँ ; पाँच बाल्टियाँ या नहाने का पानी रखने के बरतन ; पाँच पतीले के ढक्कन ; पाँच अनाज रखने के बरतन ; तीन तइयाँ ; दस थालियाँ ; दस कटोरियाँ ; दस गिलास ; दस प्याले ; चार कपड़े धेने के टब ; दो छलनियाँ ; एक पीतल की छलनी ; तीन चक्कियाँ ; दस चम्मच ; एक करछा ; एक इमामदस्ता – मूसली ; तीन झाड़ू ; छह कुरसियाँ ; तीन मेशें ; छह किताबें रखने की अलमारियाँ ; तीन दवातें ; छह काले तख्ते ; छह रैक ; तीन भारत के नक्शे ; तीन दुनिया के नक्शे ; दो बंबई अहाते के नक्शे ; एक गुजरात का नक्शा ; पाँच हाथकरघे ; बढ़ई के औज़ार ; मोची के औज़ार ; खेती के औज़ार ; चार चारपाइयाँ ; एक गाड़ी ; पाँच लालटेन ; तीन कमोड ; दस गद्दे ; तीन चैंबर पॉट ; चार सड़क की बत्तियाँ। ( वैशाख बदी तेरह , मंगलवार , 11 मई , 1915 )

 मेरा खयाल है कि हमें लुहार और राजमिस्त्री के औज़ार की भी ज़रूरत होगी। दूसरे बहुत से औज़ार भी चाहिए , किन्तु इस हिसाब से मैंने उनका खर्च और शिक्षण – संबंधी सामान का खर्च शामिल नहीं किया है। शिक्षण के सामान में पाँच – छह देशी हथकरघों की आवश्यकता होगी।

शब्दार्थ –

लुहार – लोहे का काम करने वाली एक जाति

नोट – गांधी जी द्वारा लिखे गए पाठ ‘ आश्रम का अनुमानित व्यय ’ के इस भाग से हमें सीख मिल रही है कि यदि हम कोई भी कार्य करना चाहें तो सोच – समझकर पहले ब्यौरा बना लेना चाहिए ताकि उसके अनुमानित खर्च को भी जाना जा सके।

Gandhi Jiव्याख्या – गांधी जी अपने आश्रम का निर्माण करने से पहले उसका ब्यौरा तैयार करते हुए लिखते हैं कि अगर अहमदाबाद की जनता या सरकार पुरे आश्रम के एक वर्ष के खर्च का बोझ उठाने के लिए तैयार है तो विभिन्न सामानों में खर्च का ब्यौरा गाँधी जी कुछ इस तरह लिखते हैं –

* किराया – बंगला और खेत की ज़मीन
* किताबों की अलमारियों का खर्च
* बढ़ई के औज़ार
* मोची के औज़ार
* चौके का सामान
* एक बैलगाड़ी या घोड़ागाड़ी
* एक वर्ष के लिए खाने का खर्च – छह हज़ार रुपया

 

इन सामानों के अलावा गाँधी जी कुछ घरेलु सामानों का ब्यौरा भी तैयार करते हैं जिसमें –

चार पतीले – चालीस आदमियों का खाना बनाने के योग्य ; दो छोटी पतीलियाँ – दस आदमियों के योग्य ; तीन पानी भरने के पतीले या ताँबे के कलशे ; चार मिट्टी  के घड़े ; चार तिपाइयाँ ; एक कढ़ाई ; दस रतल खाना पकाने योग्य ; तीन कलछियाँ ; दो आटा गूँधने की परातें ; एक पानी गरम करने का बड़ा पतीला ; तीन केतलियाँ ; पाँच बाल्टियाँ या नहाने का पानी रखने के बरतन ; पाँच पतीले के ढक्कन ; पाँच अनाज रखने के बरतन ; तीन तइयाँ ; दस थालियाँ ; दस कटोरियाँ ; दस गिलास ; दस प्याले ; चार कपड़े धेने के टब ; दो छलनियाँ ; एक पीतल की छलनी ; तीन चक्कियाँ ; दस चम्मच ; एक करछा ; एक इमामदस्ता – मूसली ; तीन झाड़ू ; छह कुरसियाँ ; तीन मेशें ; छह किताबें रखने की अलमारियाँ ; तीन दवातें ; छह काले तख्ते ; छह रैक ; तीन भारत के नक्शे ; तीन दुनिया के नक्शे ; दो बंबई अहाते के नक्शे ; एक गुजरात का नक्शा ; पाँच हाथकरघे ; बढ़ई के औज़ार ; मोची के औज़ार ; खेती के औज़ार ; चार चारपाइयाँ ; एक गाड़ी ; पाँच लालटेन ; तीन कमोड ; दस गद्दे ; तीन चैंबर पॉट ; चार सड़क की बत्तियाँ। यह ब्यौरा गाँधी जी वैशाख बदी तेरह , मंगलवार , 11 मई , 1915 को तैयार कर रहे थे।

गाँधी जी को इन सामानों के अलावा कुछ और सामानों और औज़ारों की जरुरत महसूस होती है जिनमें वे चाहते हैं कि लोहे का काम करने के लिए और राजमिस्त्री के औज़ारों की भी ज़रूरत आश्रम को होगी। इसके आलावा दूसरे बहुत से औज़ार भी गाँधी जी आश्रम में चाहते हैं , किन्तु गाँधी लिखते हैं कि जो भी हिसाब उन्होंने बनाया है उसमे उन्होंने इन औजारों का खर्च और शिक्षण – संबंधी सामान का खर्च शामिल नहीं किया है। गाँधी जी यह भी लिखते हैं कि शिक्षण के सामान में पाँच – छह देशी हथकरघों कीआवश्यकता होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि गांधी जी अपने विचार सादा रहना और उच्च विचार को सर्वसाधारण तक पहुँचाना चाहते थे।


Ashram ka Anumanit Vyay Question Answers (आश्रम का अनुमानित व्यय प्रश्न अभ्यास)

प्रश्न 1 – हमारे यहाँ बहुत से काम लोग खुद नहीं करके किसी पेशेवर कारीगर से करवाते हैं। गांधी जी छेनी , हथौड़े , बसूले क्यों खरीदना चाहते होंगे ?

उत्तर – यह बिलकुल सच है कि हमारे यहाँ अर्थात् भारत में बहुत से काम लोग खुद न करके किसी पेशेवर कारीगर से करवाते हैं। गाँधी जी अपना सारा काम खुद करते थे और दूसरों को भी अपना काम स्वयं करने की प्रेरणा देते थे। यही कारण था कि गाँधी जी आश्रम के लिए छेनी, हथौड़े, बसूले इसलिए खरीदना चाहते थे ताकि लोग कुटीर उद्योग , लुहार व बढ़ईगिरी आदि को बढ़ावा दें , आत्मनिर्भर बनें व छोटे – छोटे कामों के लिए दूसरों का मुँह न ताकें।

 

प्रश्न 2 – गांधी जी ने अखिल भारतीय कांग्रेस सहित कई संस्थाओं व आंदोलनों का नेतृत्व किया। उनकी जीवनी या उन पर लिखी गई किताबों से उन अंशों को चुनिए जिनसे हिसाब – किताब के प्रति गांधी जी की चुस्ती का पता चलता है।

उत्तर – गांधी जी कोई भी कार्य बिना हिसाब किताब के नहीं करते थे। वे प्रत्येक विषय के प्रति नकारात्मक व सकारात्मक सोच बराबर रखते थे। निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा इस वक्तव्य को स्पष्टता दे सकते हैं –

दांडी यात्रा ’ के लिए गाँधी जी जब ‘ रास ’ नामक स्थान पर पहुँचे तो वहाँ निषेधाज्ञा लागू थी अर्थात कोई भी नेता किसी प्रकार के विचार जलूस – जलसे के रूप में नहीं प्रकट कर सकता था। गांधी जी तो लोगों को संबोधित किए बिना रह नहीं सकते थे तो पहले ही यह योजना बना ली गई कि यदि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तो अब्बास तैयबजी दांडी यात्रा का नेतृत्व करेंगे।

असहयोग आंदोलन के समय भी वे यह हिसाब लगाने में पूर्णतया सक्ष्म थे कि किस स्थान पर किस तरह से ब्रिटिश शासन पर प्रहार करना है। यही कारण था कि लोग उनके हर विचार की कद्र करते थे और उनका कहा पूरी तरह से मानते थे।

वे बिल्कुल भी फिजूल खर्च नहीं करते थे , एक – एक पैसा सोच समझ कर खर्च करते थे। यहाँ तक कि कई बार तो पच्चीस – पच्चीस किलोमीटर एक दिन में पैदल चलते थे। उनका मानना था कि धन को जरूरी कामों के लिए ही खर्च करना चाहिए। शानो – शौकत या वैभवपूर्व जीवन जीने के लिए नहीं।

किसी भी आश्रम या सभा का हिसाब – किताब वे बहुत कुशलता से लगाते थे। साबरमती आश्रम में भी उन्होंने ऐसा बजट बनाया कि आने वाले मेहमानों के खर्च भी उसमें शामिल किए गए।

 

प्रश्न 3 – मान लीजिए , आपको कोई बाल आश्रम खोलना है। इस बजट से प्रेरणा लेते हुए उसको अनुमानित बजट बनाइए। इस बजट में दिए गए किन – किन मदों पर आप कितना खर्च करना चाहेंगे। किन नई मदों को जोड़ना – हटाना चाहेंगे ?

उत्तर – छात्र इस पाठ से उदाहरण लेकर बाल आश्रम के लिए आवश्यक चीज़ों और उनके अनुमानित – खर्च का बजट तैयार करें।

 

प्रश्न 4 – आपको कई बार लगता होगा कि आप कई छोटे – मोटे काम ( जैसे – घर की पुताई , दूध दुहना , खाट बुनना ) करना चाहें तो कर सकते हैं। ऐसे कामों की सूची बनाइए जिन्हें आप चाहकर भी नहीं सीख पाते। इसके क्या कारण रहे होंगे उन कामों की सूची भी बनाइए , जिन्हें आप सीख कर ही छोड़ेंगे ?

उत्तर – हमारे जीवन में ऐसे बहुत से काम होते हैं जिसे हम चाहकर भी नहीं सीख पाते ; जैसे – घर पुताई सफ़ेदीवाला करता है , दूधवाला दूध देता है और खाट ( चारपाई ) बुनने वाले से बुनवाई जाती है। कुछ ऐसे ही निम्न कार्य हैं , जिन्हें हम चाहकर भी सीख नहीं पाते। जैसे –

कार्य      
कारण
रोटी बनाने का कार्य  
लगन की कमी
सिलाई करने का काम 
सिखाने वाला नहीं मिला
चप्पल जूते में टाँका लगाना
जानकारी का अभाव एवं औजारों की कमी

 

परन्तु हम इन कामों को सीखने का पूरा प्रयास कर सकते हैं और हम इन कामों को सीखकर ही दम लेंगे।

 

प्रश्न 5 – इस अनुमानित बजट को गहराई से पढ़ने के बाद आश्रम के उद्देश्यों और कार्यप्रणाली के बारे में क्या – क्या अनुमान लगाए जा सकते हैं ?

उत्तर – अनुमानित बजट को गहराई से अध्ययन करने के बाद हम आश्रम के उद्देश्यों को भलीभाँति समझ सकते हैं , स्वावलंबन की भावना का विकास करना , अतिथि सत्कार करना , जरूरतमंदों को आवश्यक सुविधाएँ प्रदान करना , बेकार लोगों को आजीविका प्रदान करना , श्रम का महत्त्व समझना , कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना , चरखे खादी आदि से स्वदेशी आंदोलन को बढ़ावा देना। सहयोग की भावना का विकास। इस आश्रम की कार्य प्रणाली का मुख्य आधार आत्मनिर्भरता है।


 
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