CBSE Class 10 Hindi (Course B) Sanchayan Bhag 2 Book Chapter 2 Sapno Ke Se Din Question Answers from previous years question papers (2019-2025) with Solutions
Sapno Ke Se Din Previous Year Questions with Answers – Question Answers from Previous years Question papers provide valuable insights into how chapters are typically presented in exams. They are essential for preparing for the CBSE Board Exams, serving as a valuable resource.They can reveal the types of questions commonly asked and highlight the key concepts that require more attention. In this post, we have shared Previous Year Questions for Class 10 Hindi (Course B) Sanchayan Bhag 2 Book Chapter 2, “Sapno Ke Se Din”
Questions from the Chapter in 2025 Board Exams
प्रश्न 1 – ‘खेलकूद बच्चों को अनुशासित, सक्रिय और मिलनसार बनाता है।’ – इस कथन पर अपने विचार ‘सपनों के से दिन’ पाठ से उदाहरण देते हुए लिखिए। (40-50 शब्दों में)
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक बताते हैं कि बच्चे चोट खाने, डाँट खाने के बावजूद हर दिन खेलने पहुँच जाते थे। खेल-कूद से बच्चे न केवल शारीरिक रूप से सक्रिय रहते थे, बल्कि आपस में सहयोग करना, हार-जीत सहना और अनुशासन का पालन करना भी सीखते थे।
प्रश्न 2 – ‘कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती।’ अपने आसपास से कोई उदाहरण देकर इस तथ्य की पुष्टि कीजिए। (40-50 शब्दों में)
उत्तर – मेरे पड़ोस में एक बंगाली परिवार रहता है, जो हिन्दी अच्छी तरह नहीं बोल पाता। फिर भी हाव-भाव, टूटी-फूटी हिन्दी और मुस्कान से हम आसानी से संवाद कर लेते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि भावना और सहयोग से भाषा की बाधा भी दूर हो जाती है।
प्रश्न 3 – ‘सपनों के–से दिन’ पाठ में अंग्रेज़ों द्वारा गाँव के नवयुवकों को फ़ौज में भर्ती करने के लिए नौटंकी द्वारा उन्हें आकर्षित करने का उल्लेख किया गया है। वर्तमान समय में प्रचार–प्रसार के तरीकों में क्या परिवर्तन आया है? (40-50 शब्दों में)
उत्तर – ‘सपनों के से दिन’ पाठ में अंग्रेजों द्वारा गाँव के नवयुवकों को सेना में भर्ती करने के लिए नौटंकी का सहारा लिया गया। क्योंकि उस समय प्रचार-प्रसार के साधन नहीं थे। लोगों को किसी भी बात के लिए जागरूक करने का नौटंकी एक माध्यम था। जिसका अंग्रेजों ने सहारा लिया। परन्तु वर्तमान समय में प्रचार-प्रसार के साधनों में, तरीकों में बहुत अंतर आया है। आज यदि किसी को कोई जानकारी देनी हो तो समाचार पत्र, दूरदर्शन, रेडियो व् इंटरनेट जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इन साधनों से अत्यधिक शीघ्रता से जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाई जा सकती है।
Questions which came in 2024 Board Exam
प्रश्न 1 – ‘सपनों के से दिन’ पाठ के लेखक और उसके साथी किस प्रकार गर्मियों की छुट्टियाँ बिताया करते? आप गर्मी की छुट्टियों में क्या करते हैं, लिखिए।
उत्तर – हर साल ही छुट्टियों में लेखक अपनी माँ के साथ अपनी नानी के घर चला जाता था। दोपहर तक तो लेखक और उनके साथी तालाब में नहाते फिर नानी से जो उनका जी करता वह माँगकर खाने लगते। लेखक जिस साल नानी के घर नहीं जा पाता था, उस साल लेखक अपने घर से दूर जो तालाब था वहाँ जाया करता था। लेखक और उसके साथी कपड़े उतार कर पानी में कूद जाते, फिर पानी से निकलकर भागते हुए एक रेतीले टीले पर जाकर रेत के ऊपर लोटने लगते फिर गीले शरीर को गर्म रेत से खूब लथपथ करके फिर उसी किसी ऊँची जगह जाकर वहाँ से तालाब में छलाँग लगा देते थे। लेखक को यह याद नहीं है कि वे इस तरह दौड़ना, रेत में लोटना और फिर दौड़ कर तालाब में कूद जाने का सिलसिला पाँच-दस बार करते थे या पंद्रह-बीस बार।
हम भी गर्मियों की छुट्टियों में दादी-दादी व् नाना-नानी से मिलने जाते हैं। वहाँ हम अपने बचपन के मित्रों के साथ मिल कर क्रिकेट, वॉलीबॉल, कबड्डी खेलते हैं व् पहाड़ों की चढ़ाई करते हैं। साल भर में इन दिनों का हम बेसब्री से इंतजार करते हैं और इन दिनों में की गई मस्ती को दिलों में समेट कर फिर अगली छुट्टियों का इन्तजार करते हैं।
प्रश्न 2 – ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय क्यों लगता है? पढ़ाई के साथ खेलों का छात्र जीवन में क्या महत्त्व है? इससे किन जीवन-मूल्यों की प्रेरणा मिलती है?
उत्तर – ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर लेखक ने बच्चों के व्यवहार को दर्शाने का प्रयास किया है। बचपन में बच्चों का हाल एक ही तरह का होता था। खेलते हुए उन्हें कोई सुध नहीं रहती, सभी के पाँव नंगे, फटी-मैली सी कच्छी और कई जगह से फटे कुर्ते, जिनके बटन टूटे हुए होते थे और सभी के बाल बिखरे हुए होते थे। कई बार तो खेल-खेल में चोट भी लग जाती है। पढ़ाई का कोई ध्यान ही नहीं रहता। पूरा दिन बस खेल-कूद में निकल जाता है। शायद इसीलिए बच्चों का खेलकूद में अधिक रुचि लेना अभिभावकों को अप्रिय लगता है।
परन्तु बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए खेल-कूद भी आवश्यक है। पढ़ाई यदि मानसिक विकास में सहायक है तो खेलकूद मानसिक व् शारीरिक दोनों विकास में योगदान देता है। खेलकूद से कई जीवन-मूल्यों की प्रेरणा मिलती है। जैसे – आपस में मिलझुल कर काम करना, एक-दूसरे के सहयोगी बनना, जीत के साथ-साथ हार को भी सकारात्मकता से लेना व् एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना का विकास इत्यादि।
प्रश्न 3 – ‘सपनों के से दिन’ पाठ में अंग्रेजों द्वारा गाँव के लोगों को सेना में भर्ती करने के लिए नौटंकी का सहारा लिया गया। वर्तमान समय में प्रचार-प्रसार के साधनों में, तरीकों में क्या अंतर आया है?
उत्तर – ‘सपनों के से दिन’ पाठ में अंग्रेजों द्वारा गाँव के लोगों को सेना में भर्ती करने के लिए नौटंकी का सहारा लिया गया। क्योंकि उस समय प्रचार-प्रसार के साधन नहीं थे। लोगों को किसी भी बात के लिए जागरूक करने का नौटंकी एक माध्यम था। जिसका अंग्रेजों ने सहारा लिया। परन्तु वर्तमान समय में प्रचार-प्रसार के साधनों में, तरीकों में बहुत अंतर आया है। आज यदि किसी को कोई जानकारी देनी हो तो समाचार पत्र, दूरदर्शन, रेडियो व् इंटरनेट जैसी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इन साधनों से अत्यधिक शीघ्रता से जानकारी अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाई जा सकती है।
प्रश्न 4 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक को बचपन में प्रकृति कैसी प्रतीत होती थी? उस समय लेखक फूलों के साथ कैसा व्यवहार करता था?
उत्तर – लेखक को बचपन में घास ज्यादा हरी और फूलों की सुगंध बहुत ज्यादा मन को लुभाने वाली लगती थी। उस समय स्कूल की छोटी क्यारियों में फूल भी कई तरह के उगाए जाते थे जिनमें गुलाब, गेंदा और मोतिया की दूध-सी सफ़ेद कलियाँ भी हुआ करती थीं। ये कलियाँ इतनी सुंदर और खुशबूदार होती थीं कि लेखक और उनके साथी चपरासी से छुप-छुपा कर कभी-कभी कुछ फूल तोड़ लिया करते थे। परन्तु लेखक को यह याद नहीं कि फिर उन फूलों का वे क्या करते थे। लेखक कहता है कि शायद वे उन फूलों को या तो जेब में डाल लेते होंगे और माँ उसे धोने के समय निकालकर बाहर फेंक देती होगी या लेखक और उनके साथी खुद ही, स्कूल से बाहर आते समय उन्हें बकरी के मेमनों की तरह खा या ‘चर’ जाया करते होंगे।
प्रश्न 5 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक को विद्यालयी जीवन क्यों अच्छा नहीं लगता था? कारण सहित उत्तर देते हुए लिखिए कि आप अपने विद्यालयी जीवन को रोचक कैसे बना सकते हैं।
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक को विद्यालयी जीवन इसलिए अच्छा नहीं लगता था क्योंकि हर बच्चे की तरह लेखक को भी खेलकूद में अधिक रूचि थी। पढ़ाई से ज्यादा लेखक को फूल तोड़ने, तालाबों में नहाने व् नानी के घर जाने में आनंद आता था। छुट्टियों में भी जरुरत से ज्यादा काम मिलने के कारण भी लेखक को विद्यालयी जीवन अच्छा नहीं लगता था।
हम अपने विद्यालयी जीवन को कोई चीजों से रोचक बना सकते है। जैसे – पढाई के साथ-साथ स्कूलों में खेलकूद की सामग्रियों में विभिन्नताएँ ला सकते हैं। पढ़ाई में विषयों से सम्बंधित चीजों पर बच्चों से कागज़, मिट्टी आदि से मॉडल बनवा कर रोचक ढंग से जानकारी उपलब्ध करवा सकते हैं। विषयों से सम्बंधित जगहों पर यात्राएँ करवा कर प्रत्यक्ष ज्ञान दे सकते हैं। प्रतियोगिताएँ करवा कर तथा पुरस्कार देकर बच्चों का मनोबल बढ़ा सकते हैं।
Questions that appeared in 2023 Board Exams
प्रश्न 1 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में वर्णित ‘ओमा’ जैसा व्यक्तित्व कभी भी अनुकरणीय क्यों नहीं हो सकता?
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में वर्णित ‘ओमा’ जैसा व्यक्तित्व कभी भी अनुकरणीय नहीं हो सकता क्योंकि ओमा की बातें, गालियाँ और उसकी मार-पिटाई का ढंग सभी से बहुत अलग था। वह देखने में भी सभी से बहुत अलग था। उसका मटके के जितना बड़ा सिर था, जो उसके चार बालिश्त (ढाई फुट) के छोटे कद के शरीर पर ऐसा लगता था जैसे बिल्ली के बच्चे के माथे पर तरबूज रखा हो। बड़े सिर पर नारियल जैसी आँखों वाला उसका चेहरा बंदरिया के बच्चे जैसा और भी अजीब लगता था। जब भी लड़ाई होती थी तो वह अपने हाथ-पाँव का प्रयोग नहीं करता था, वह अपने सिर से ही लड़ाई किया करता था। ओमा जैसा व्यक्तित्व कभी भी किसी के लिए आदर्श नहीं बन सकता क्योंकि उसमें कोई गुण नहीं थे बल्कि वह अवगुणों से भरपूर था। वह अध्यापकों का आदर नहीं करता था, न ही कोई कार्य पूर्ण करता था। वह अनुशासनहीन होने के साथ-साथ, निर्दयी भी था।
प्रश्न 2 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि मास्टर प्रीतमचंद जैसे अध्यापकों को मुअत्तल किए जाने को आप कहाँ तक उचित मानते हैं और क्यों। पक्ष या विपक्ष में तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर मास्टर प्रीतमचंद जैसे अध्यापकों को मुअत्तल किए जाने को हम अनुचित मानते हैं क्योंकि वे केवल अपने कर्तव्य का पालन कर रहे थे। वे अपने विद्यार्थियों को सही राह पर चलने व् अनुशासन में रहने का पाठ पढ़ा रहे थे। विद्यार्थियों को सज़ा देना उनके क्रूर होने का सबूत नहीं है क्योंकि जब लेखक अपने साथियों के साथ मास्टर प्रीतमचंद के घर गए थे उन्होंने मास्टर प्रीतमचंद को तोतो को प्यार से खाना खिलाते देखा था। इससे साबित होता है कि अध्यापक कभी भी अपने स्वार्थ के लिए विद्यार्थियों को सजा नहीं देता बल्कि वह तो अपने विद्यार्थियों के उज्जवल भविष्य के लिए उन्हें सुधारने के लिए थोड़ा सख्त रवैया अपनाता है।
प्रश्न 3 – ‘सपनों के से दिन’ पाठ में बच्चों को स्कूल जाना बिल्कुल भी पसंद नहीं था, कारण सहित उत्तर स्पष्ट करते हुए बताइए कि स्कूल जाने के संबंध में आपका क्या अनुभव है ?
उत्तर – ‘सपनों के से दिन’ पाठ में बच्चों को स्कूल जाना बिल्कुल भी पसंद नहीं था, इसका कारण था कि स्कुल में बच्चों को वह आज़ादी नहीं मिल पाती थी जो बच्चे चाहते हैं। स्कूल में अध्यापकों द्वारा उन्हें पढ़ाई करने को कहा जाता था और पढ़ाई न करने पर मारा भी जाता था। अध्यापक सख्त स्वभाव के थे। और गर्मियों की छुट्टियों का काम न करने पर मार के डर से भी बच्चे स्कूल जाना पसंद नहीं करते थे। बचपन में हमें भी स्कूल जाना पसंद नहीं आता था क्योंकि बालमन शरारतों में लगा रहता था और स्कूल में अध्यापक अनुशासन में रहने की सीख देते थे। परन्तु जैसे-जैसे बुद्धि का विकास हुआ हमें स्कूल के महत्त्व का पता चला और फिर हमने स्कूल के हर कार्यक्रम व् प्रतियोगिताओं में अपना योगदान दिया। जो हमें आज के समय में जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना करने की प्रेरणा देते हैं।
प्रश्न 4 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए माता-पिता, भाई-बहनों और अध्यापकों द्वारा मार-पीट करने का जिक्र आया है। वर्तमान समय में इसमें क्या परिवर्तन आया है ? आपकी दृष्टि में कौन-सा तरीका अधिक बेहतर है ?
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में बच्चों को अनुशासन में रखने के लिए माता-पिता, भाई-बहनों और अध्यापकों द्वारा मार-पीट करने का जिक्र आया है। वर्तमान समय में इसमें बहुत परिवर्तन आया है क्योंकि आज के समय में माना जाता है कि मार-पीट से बच्चों के मानसिक विकास पर असर पड़ता है। हमारी दृष्टि से यह कभी हद तक सही है। क्योंकि मार-पीट से बच्चों के मन में कहीं न कहीं डर बैठ जाता है और इससे उनकी बौद्धिक क्षमता पर असर पड़ता है। परन्तु बच्चों को अनुशासन व् सही शिक्षा देने के लिए बच्चों को सही तरीकों से समझाना आवश्यक है क्योंकि बिना डर के बच्चे गलत रास्तों को अपना लेते हैं व् अपना भविष्य अंधकारमय कर देते हैं।
प्रश्न 5 – “वर्तमान में विद्यालयों में बढ़ती हुई अनुशासनहीनता को देखते हुए मास्टर प्रीतमचंद जैसे अध्यापकों की आवश्यकता है।” इस कथन से सहमति या असहमति के संबंध में अपने तर्कसम्मत विचार लिखिए।
उत्तर – “वर्तमान में विद्यालयों में बढ़ती हुई अनुशासनहीनता को देखते हुए मास्टर प्रीतमचंद जैसे अध्यापकों की आवश्यकता है।” इस कथन से हम बहुत अधिक हद तक सहमत हैं, क्योंकि आजकल वर्तमान में बच्चों के दिमाग में यह बात घर कर गई है कि अध्यापकों को उन्हें पीटने व् डाँटने का कोई अधिकार नहीं है। जिस कारण विद्यालय में अनुशासनहीनता अक्सर देखने को मिल रही है। अध्यापकों का सख्त रवैया ही विद्यार्थियों को अनुशासन का पालन करने के लिए मजबूर करता है और यही अनुशासन आगे चल कर उन विद्यार्थियों के सफल भविष्य का कारण बनता है। विद्यार्थी भले ही अपने बालमन में सख्त अध्यापक को बुरा समझते हो परन्तु समय के साथ-साथ उन्हें एहसास हो जाता है कि वही सख्त अध्यापक असल में उनका शुभचिंतक था। जो अपनी परवाह किए बगैर अपने विद्यार्थियों के भविष्य को सवारने में लगा था।
Questions which came in 2022 Board Exam
प्रश्न 1 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक ने बताया है कि कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती।’ अपने आस-पास के जीवन से कोई उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक ने बताया है कि कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती।’ लेखक के बचपन के ज्यादातर साथी राजस्थान या हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करने आए परिवारों से थे। जब लेखक छोटा था तो उनकी बातों को बहुत कम समझ पाता था और उनके कुछ शब्दों को सुन कर तो लेखक को हँसी आ जाती थी। परन्तु जब सभी खेलना शुरू करते तो सभी एक-दूसरे की बातों को बहुत अच्छे से समझ लेते थे। हमारे आस-पास रहने वाले परिवार भी देश के अलग-अलग जगहों से हैं। जिसके कारण भाषा और रहन-सहन के साथ-साथ रीती-रिवाजों में भी बहुत अंतर् देखने को मिलता है। परन्तु सभी परिवार एक दूसरे के सुख-दुःख में एक-दूसरे के साथ खड़े रहते हैं। त्यौहारों में भी सभी मिल-झुलकर खुशियाँ मनाते हैं और एक दूसरे को अपनी-अपनी जगहों के प्रसिद्ध व्यंजन खिलाते हैं।
प्रश्न 2 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक की हैरानी का क्या कारण था और क्यों?
उत्तर – जब लेखक के पीटी मास्टर कई सप्ताह तक स्कूल नहीं आए। तब कुछ सातवीं-आठवीं के विद्यार्थी लेखक और उसके साथियों को बताया करते थे कि उन्हें निष्कासित होने की थोड़ी सी भी चिंता नहीं थी। जिस तरह वह पहले आराम से पिंजरे में रखे दो तोतों को दिन में कई बार, भिगोकर रखे बादामों की गिरियों का छिलका उतारकर खिलाते थे, वे आज भी उसी तरह आराम से पिंजरे में रखे उन दो तोतों को दिन में कई बार, भिगोकर रखे बादामों की गिरियों का छिलका उतारकर खिलाते और उनसे बातें करते रहते हैं। लेखक और उसके साथियों के लिए यह चमत्कार ही था कि जो प्रीतमचंद पट्टी या डंडे से मार-मारकर विद्यार्थियों की चमड़ी तक उधेड़ देते, वह अपने तोतों से मीठी-मीठी बातें कैसे कर लेते थे? लेखक स्वयं में सोच रहा था कि क्या तोतों को उनकी आग की तरह जलती, भूरी आँखों से डर नहीं लगता होगा?
प्रश्न 3 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के लेखक को नई कक्षा में पुरानी किताबों की गंध उदास कर देती थी, क्यों?
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के लेखक को नई कक्षा में पुरानी किताबों की गंध उदास कर देती थी। उसके लिए पुरानी किताबों का प्रबंध हेडमास्टर साहब कर देते थे, क्योंकि लेखक के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, जबकि अन्य बच्चे नई कक्षा में नई किताबें खरीदते थे। नयी श्रेणी में जाकर लेखक का बालमन इसलिए उदास हो जाता था, क्योंकि उसे किताबें अन्य लड़कों द्वारा पढ़ी हुई ही पढ़नी पड़ती थीं। लेखक का बालमन भी नई कापियों तथा नई किताबों के लिए तरसता था। जब लेखक को नई कक्षा में जाने पर भी पुरानी किताबों से पढ़ाई करनी पड़ती थी तो उनका मन उदास हो जाता था।
प्रश्न 4 – यदि आपको पी.टी. मास्टर बना दिया जाए, तो आपका अपने विद्यार्थियों के प्रति व्यवहार कैसा होगा? ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के संदर्भ में लिखिए।
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में बताया गया है कि अध्यापकों की मार व् डर से बच्चों को स्कूल जाना पसंद नहीं था परन्तु फिर भी कभी-कभी कुछ ऐसी स्थितियाँ भी होती थी जहाँ बच्चों को स्कूल अच्छा भी लगने लगता था। वह स्थितियाँ बनती थी जब स्कूल में स्काउटिंग का अभ्यास करवाते। यदि स्काउटिंग करते हुए कोई भी विद्यार्थी कोई गलती न करता तो पीटी साहब अपनी चमकीली आँखें हलके से झपकाते और सभी को शाबाश कहते। उनकी एक शाबाश लेखक और उसके साथियों को ऐसे लगने लगती जैसे उन्होंने किसी फ़ौज के सभी पदक या मेडल जीत लिए हो।
यदि हमें पी.टी. मास्टर बना दिया जाए, तो हम भी विद्यार्थियों को अनुशासन में रहने का पाठ पढ़ाएंगे। क्योंकि बचपन से ही यदि अनुशासन में रहना शुरू कर दिया जाए तो हर कार्य में सफलता मिलना स्वाभाविक होता है। बचपन में यह बात समझना किसी भी बालमन के लिए कठिन होता है अतः हम कोशिश करेंगे कि बच्चों को खेल-खेल में व् कहानियों के जरिए अनुशासन का पाठ पढ़ाएँ और जहाँ आवश्यकता हो वहाँ थोड़ी सख्ती करना भी आवश्यक हो जाता है।
प्रश्न 5 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर लिखिए कि लेखक को नयी श्रेणी में जाने की प्रसन्नता अन्य विद्यार्थियों की तरह क्यों नहीं होती थी?
उत्तर – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ में लेखक को नयी श्रेणी में जाने की प्रसन्नता अन्य विद्यार्थियों की तरह नहीं होती थी क्योंकि लेखक को नयी कापियों और पुरानी पुस्तकों में से ऐसी गंध आने लगती थी कि उसका मन बहुत उदास होने लगता था। अन्य सभी विद्यार्थियों को नई कक्षा में जाने पर नई कॉपियाँ व् नई किताबें मिलती थी परन्तु लेखक की पारिवारिक स्थितियों के कारण उन्हें दूसरे बच्चों की पुरानी किताबों से ही पढ़ाई करनी पड़ती थी जिस कारण लेखक का बालमन नई कक्षा में जाने पर भी प्रसन्न नहीं हो पता था।
2019 Exam Question and Answers from the chapter
प्रश्न 1 – “स्कूल हमारे लिए ऐसी जगह न थी जहां खुशी से भागा जाए फिर भी लेखक और साथी स्कूल क्यों जाते थे? आज के स्कूलों के बारे में आपकी क्या राय है? क्यों? विस्तार से समझाइए।
उत्तर – ‘सपनों के से दिन’ पाठ में बच्चों को स्कूल जाना बिल्कुल भी पसंद नहीं था, इसका कारण था कि स्कुल में बच्चों को वह आज़ादी नहीं मिल पाती थी जो बच्चे चाहते हैं। स्कूल में अध्यापकों द्वारा उन्हें पढ़ाई करने को कहा जाता था और पढ़ाई न करने पर मारा भी जाता था। अध्यापक सख्त स्वभाव के थे। और गर्मियों की छुट्टियों का काम न करने पर मार के डर से भी बच्चे स्कूल जाना पसंद नहीं करते थे। बचपन में हमें भी स्कूल जाना पसंद नहीं आता था क्योंकि बालमन शरारतों में लगा रहता था और स्कूल में अध्यापक अनुशासन में रहने की सीख देते थे। परन्तु जैसे-जैसे बुद्धि का विकास हुआ हमें स्कूल के महत्त्व का पता चला और फिर हमने स्कूल के हर कार्यक्रम व् प्रतियोगिताओं में अपना योगदान दिया। जो हमें आज के समय में जीवन की कठिन परिस्थितियों का सामना करने की प्रेरणा देते हैं।
प्रश्न 2 – ‘सपनों के-से दिन’ पाठ के आधार पर पी.टी. सर के स्वभाव की विशेषताओं पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
उत्तर – लेखक ने कभी भी मास्टर प्रीतमचंद को स्कूल के समय में मुस्कुराते या हँसते नहीं देखा था। उनके जितना सख्त अध्यापक किसी ने पहले नहीं देखा था। उनका छोटा कद, दुबला-पतला परन्तु पुष्ट शरीर, माता के दानों से भरा चेहरा यानी चेचक के दागों से भरा चेहरा और बाज़ सी तेज़ आँखें, खाकी वर्दी, चमड़े के चौड़े पंजों वाले जूत-ये सभी चीज़े बच्चों को भयभीत करने वाली होती थी। उनके जूतों की ऊँची एड़ियों के नीचे भी खुरियाँ लगी रहती थी। अगले हिस्से में, पंजों के नीचे मोटे सिरों वाले कील ठुके होते थे। वे अनुशासन प्रिय थे यदि कोई विद्यार्थी उनकी बात नहीं मानता तो वे उसकी खाल खींचने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। वे बहुत स्वाभिमानी भी थे क्योंकि जब हेडमास्टर शर्मा ने उन्हें निलंबित कर के निकाला तो वे गिड़गिड़ाए नहीं, चुपचाप चले गए और पहले की ही तरह आराम से रह रहे थे।
प्रश्न 3 – ‘सपनों के-से दिन’ संस्मरण के आधार पर लिखिए कि पी.टी. साहब को विद्यालय से क्यों निकाल दिया गया। हेडमास्टर साहब के इस कदम पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर – मास्टर प्रीतमचंद लेखक की चौथी कक्षा को फ़ारसी पढ़ाने लगे थे। अभी मास्टर प्रीतमचंद को लेखक की कक्षा को पढ़ते हुए एक सप्ताह भी नहीं हुआ होगा कि प्रीतमचंद ने उन्हें एक शब्द रूप याद करने को कहा और आज्ञा दी कि कल इसी घंटी में केवल जुबान के द्वारा ही सुनेंगे। दूसरे दिन मास्टर प्रीतमचंद ने बारी-बारी सबको सुनाने के लिए कहा तो एक भी लड़का न सुना पाया। मास्टर जी ने गुस्से में चिल्लाकर सभी विद्यार्थियों को कान पकड़कर पीठ ऊँची रखने को कहा। जब लेखक की कक्षा को सज़ा दी जा रही थी तो उसके कुछ समय पहले शर्मा जी स्कूल में नहीं थे। आते ही जो कुछ उन्होंने देखा वह सहन नहीं कर पाए। शायद यह पहला अवसर था कि उन्होंने पीटी प्रीतमचंद की उस असभ्यता एवं जंगलीपन को सहन नहीं किया और वह भड़क गए थे। यही कारण था कि हेडमास्टर शर्मा जी ने पीटी साहब को मुअत्तल कर दिया।
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