CBSE Class 10 Hindi (Course A) Kshitij Bhag 2 Book Chapter 11 Naubatkhane Mein Ibadat Question Answers from previous years question papers (2019-2025) with Solutions
Naubatkhane Mein Ibadat Previous Year Questions with Answers – Question Answers from Previous years Question papers provide valuable insights into how chapters are typically presented in exams. They are essential for preparing for the CBSE Board Exams, serving as a valuable resource.They can reveal the types of questions commonly asked and highlight the key concepts that require more attention. In this post, we have shared Previous Year Questions for Class 10 Hindi (Course A) Kshitij Bhag 2 Book Chapter 11, “Naubatkhane Mein Ibadat”.
Questions from the Chapter in 2025 Board Exams
प्रश्न 1 – “ई काशी छोड़कर कहाँ जाएँ” बिस्मिल्ला खाँ के मन में काशी के प्रति विशेष अनुराग के क्या कारण थे? (25-30 शब्दों में)
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ के मन में काशी के प्रति विशेष अनुराग था क्योंकि वहाँ उनके पुरखों ने पीढ़ियों तक शहनाई बजाई थी। गंगा मइया, बाबा विश्वनाथ और बालाजी मंदिर से उनका गहरा आध्यात्मिक लगाव था। काशी ने उन्हें संगीत की तालीम, अदब और एक विशिष्ट पहचान दी थी। उनके अनुसार, काशी और शहनाई से बढ़कर इस धरती पर कोई जन्नत नहीं थी।
Questions which came in 2024 Board Exam
प्रश्न 1 – बिस्मिल्ला खाँ का जीवन वर्तमान और भावी पीढ़ी को क्या संदेश देता है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म अर्थात् मुस्लिम धर्म के प्रति समर्पित इंसान थे। वे नमाज़ पढ़ते , सिजदा करते और खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगते थे। इसके अलावा वे हज़रत इमाम हुसैन की शहादत पर दस दिनों तक शोक प्रकट करते थे तथा आठ किलोमीटर पैदल चलते हुए रोते हुए नौहा बजाया करते थे। इसी तरह वे काशी में रहते हुए गंगामैया , बालाजी और बाबा विश्वनाथ के प्रति असीम आस्था रखते थे। वे हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित शास्त्रीय गायन में भी उपस्थित रहते थे। इन प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली – जुली संस्कृति के प्रतीक थे। बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से वर्तमान और भावी पीढ़ी को यही सीख लेने की आवश्यकता है।
प्रश्न 2 – ‘शहनाई’ क्या है? भारतीय संगीत में इसका क्या महत्त्व है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – संगीत शास्त्रों के अनुसार ‘ सुषिर – वाद्यों ’ अर्थात संगीत में वह यंत्र जो वायु के जोर से बजता है , शहनाई को भी इसमें गिना जाता है। शहनाई, बाँसुरी, श्रृंगी आदि सुषिर वाद्य के अंतर्गत आते हैं। अरब देश में फूँककर बजाए जाने वाले वाद्य जिसमें नाड़ी अर्थात नरकट या रीड होती है , को ‘ नय ’ बोलते हैं और शहनाई को ‘ शाहेनय ’ अर्थात् ‘ सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि् दी गई है। शहनाई सबसे सुरीली और कर्ण प्रिय आवाज वाली होती है , इसलिए उसे ‘ सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि दी गई।
प्रश्न 3 – ‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ में काशी के प्राचीन और पारंपरिक संगीत का विवरण प्रस्तुत कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – काशी में हज़ारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं , विद्याधरी हैं , बड़े रामदास जी हैं , मौजुद्दीन खाँ हैं व इन सब के जिनके हृदय में सौंदर्य – प्रेम – भक्ति – कला आदि के प्रति अनुराग है , उनसे कृतज्ञ अथवा अहसानमंद होने वाला अनगिनत जन – समूह है। यह एक अलग काशी है जिसका अपना अलग शिष्टाचार है , अपनी बोली और अपने विशेष व् प्रसिद्ध लोग हैं। इनके अपने उत्सव हैं , अपना गम है। अपना सेहरा – बन्ना और अपना नौहा।
प्रश्न 4 – ‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ में काशी को संस्कृति की पाठशाला क्यों कहा गया है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – लेखक कहते हैं कि काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में काशी आनंदकानन के नाम से सम्मानित है। काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य – विश्वनाथ हैं। काशी में बिस्मिल्ला खाँ हैं। आप काशी में संगीत को भक्ति से , भक्ति को किसी भी धर्म के कलाकार से , कजरी को चैती से , विश्वनाथ को विशालाक्षी से , बिस्मिल्ला खाँ को गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते। कहने का अभिप्राय यह है कि काशी हर तरह से अलग है , काशी की अपनी ही अलग पहचान है जिसको आप बदल कर नहीं देख सकते क्योंकि काशी की हर एक चीज़ किसी न किसी से जुड़ी हुई है।
प्रश्न 5 – बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में रसूलनबाई और बतूलनबाई का क्या महत्त्व है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर से भी हमेशा कोई न कोई संगीत सुनाई पड़ता रहता था और रसूलन और बतूलन जब गाती थी तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती थी। एक प्रकार से यह कहा जा सकता है कि उनकी कच्ची या कम उम्र में जो प्रत्यक्ष ज्ञान या तज़ुर्बा या एक्सपीरिएंस की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला रसूलनबाई और बतूलनबाई ने ही नक्काशी करके बनाई थी। कहने का तात्पर्य यह है कि अमीरुद्दीन अथवा बिस्मिल्ला खाँ के अनुसार रसूलनबाई और बतूलनबाई के द्वारा ही उन्हें संगीत का आरंभिक ज्ञान प्राप्त हुआ है।
Questions that appeared in 2023 Board Exams
प्रश्न 1 – बिस्मिल्ला खाँ की एक संगीत साधक के रूप में क्या विशेषताएँ थीं? सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ की एक संगीत साधक के रूप में कई विशेषताएँ थीं। बिस्मिल्ला खाँ अपनी संगीत कला को समर्पित कलाकार थे। वे अपनी संगीत कला में निखार लाने के लिए खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगा करते थे। वे सच्चे सुर की इबादत में खुदा के आगे झुकते थे और बार-बार सच्चे सुर की माँग करते। थे। इससे बिस्मिल्ला खाँ की विनम्रता और सीखने की ललक जैसी विशेषताओं का पता चलता है।
प्रश्न 2 – भारत रत्न बिस्मिल्ला खाँ पर ‘सादा जीवन उच्च विचार’ वाली कहावत चरितार्थ होती है, कैसे? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – बिस्मिल्लाह खाँ को भारत रत्न का सम्मान अद्धभुत शहनाई वादक के रूप में मिला था। इसके बावजूद भी वे बहुत सादगी से रहते थे। एक दिन बिस्मिल्ला खाँ के एक शिष्य ने डरते – डरते बिस्मिल्ला खाँ साहब को टोका कि आपको भारत सरकार का सर्वोच्च सम्मान अर्थात भारतरत्न भी मिल चुका है, यह फटी धोती न पहना करें। “अच्छा नहीं लगता, जब भी कोई आता है आप इसी फटी धोती में सबसे मिलते हैं।” उस शिष्य की बात सुनकर बिस्मिल्ला खाँ साहब मुसकराए। दुलार व् वात्सल्य से भरकर उस शिष्य से बोले कि ये जो भारतरत्न उनको मिला है न यह शहनाई पर मिला है, उनकी लंगोटी पर नहीं। अगर वे भी सब लोगों की तरह बनावटी शृंगार देखते रहते, तो पूरी उमर ही बीत जाती, और शहनाई की तो फिर बात ही छोड़ो। तब क्या वे खाक रियाज़ कर पाते। कहने का तात्पर्य यह है कि बिस्मिल्ला खाँ साहब बहुत ही सीधे – सादे व्यक्ति थे। वे कोई भी दिखावा करना सही नहीं समझते थे। वे केवल अपने रियाज़ को ही महत्वपूर्ण मानते थे। भारत रत्न बिस्मिल्ला खाँ पर ‘सादा जीवन उच्च विचार’ वाली कहावत चरितार्थ होती है।
प्रश्न 3 – बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के लिए सर्वोच्च सम्मान पाकर भी नमाज के बाद सजदे में गिड़गिड़ाते – ‘मेरे मालिक एक सुर बख्श दे।’ – इससे उनकी कौन-सी दो विशेषताएँ उभरकर आती हैं? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ शहनाई के लिए सर्वोच्च सम्मान पाकर भी नमाज के बाद सजदे में गिड़गिड़ाते – ‘मेरे मालिक एक सुर बख्श दे।’ बिस्मिल्ला खाँ को यह भरोसा था कि कभी न कभी ईश्वर उन पर यूँ ही दयालु व् दयावान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर बिस्मिल्ला खाँ की ओर उछालेगा, और फिर कहेगा कि ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी इच्छा को पूरी। इससे बिस्मिल्ला खाँ के बारे में पता चलता है कि उन्हें अपनी शहनाई बजाने में किसी प्रकार का घमंड नहीं था बल्कि वे तो सारा दिन रियास करते रहते थे। वे एक सच्चे संगीतज्ञ थे।
प्रश्न 4 – बिस्मिल्ला खाँ ‘मालिक’ से कौन-सी दुआ माँगते थे? इससे उनके व्यक्तित्व का कौन-सा पहलू सामने उभरता है। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ ने अपनी पूरी जिंदगी में ईश्वर से अपने संगीत की समृद्धि के अलावा कुछ नहीं माँगा। वे हमेशा नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते थे कि मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। उनके सुर में ऐसा गुण व् योग्यता पैदा करे कि उनके सुरों को सुन कर हर किसी की आँखों से सच्चे मोती की तरह लगातार आँसू निकल आएँ। बिस्मिल्ला खाँ को यह भरोसा था कि कभी न कभी ईश्वर उन पर यूँ ही दयालु व् दयावान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर बिस्मिल्ला खाँ की ओर उछालेगा, और फिर कहेगा कि ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी इच्छा को पूरी। इससे बिस्मिल्ला खाँ के बारे में पता चलता है कि उन्हें अपनी शहनाई बजाने में किसी प्रकार का घमंड नहीं था बल्कि वे तो सारा दिन रियास करते रहते थे। वे एक सच्चे संगीतज्ञ थे।
प्रश्न 5 – बिस्मिल्ला खाँ को लेखक ‘मंगल ध्वनि का नायक’ क्यों कहता है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक इसलिए कहा गया है क्योंकि शहनाई की ध्वनि मंगलदायी मानी जाती है। इसका वादन मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। अर्थात शहनाई को केवल शुभ कार्य या कल्याण अवसरों पर ही बजाय जाता है। बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष की आयु तक शहनाई बजाते रहे। उनकी गणना भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक के रूप में की जाती है। उन्होंने शहनाई को भारत ही नहीं विश्व में लोकप्रिय बनाया। इसलिए बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा गया है।
प्रश्न 6 – काशी में किस प्रकार के परिवर्तन हो रहे थे और उन परिवर्तनों पर बिस्मिल्ला खाँ क्या सोचते थे? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – समय के साथ – साथ काशी में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं जो बिस्मिल्ला खाँ को दुखी करते हैं , जैसे –
- पक्का महाल से मलाई बरफ़ वाले गायब हो रहे हैं।
- कुलसुम की कचौड़ियाँ और जलेबियाँ अब नहीं मिलती हैं।
- संगीत और साहित्य के प्रति लोगों में वैसा मान – सम्मान नहीं रहा।
- गायकों के मन में संगतकारों के प्रति सम्मान भाव नहीं रहा।
- हिंदू – मुसलमानों में सांप्रदायिक सद्भाव में कमी आ गई है।
Questions from the Chapter in 2020 Board Exams
प्रश्न 1 – ‘नौबतख़ाने में इबादत’ के आलोक में लिखिए कि समय के साथ काशी की संस्कृति किस प्रकार बदल गई।
उत्तर – काशी एक ऐसी जगह है जो सचमुच किसी को भी हैरान कर सकती है – पक्का महाल से जैसे मलाई बरफ गायब हो गया , संगीत , साहित्य और अदब की बहुत सारी परंपराएँ भी गायब हो गईं। अर्थात बहुत सी ऐसी चीज़े हैं जो प्राचीन काशी से आते – आते गायब हो गई हैं और एक सच्चे सुर के योगी अथवा तपस्वी और सामाजिक की भाँति बिस्मिल्ला खाँ साहब को इन सबकी बहुत कमी खलती है।
प्रश्न 2 – बिस्मिल्ला खाँ जीवनभर ईश्वर से क्या माँगते रहे और क्यों ? इससे उनकी किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ ने अपनी पूरी जिंदगी में ईश्वर से अपने संगीत की समृद्धि के अलावा कुछ नहीं माँगा। वे हमेशा नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते थे कि मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह गुण व् योग्यता पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह लगातार आँसू निकल आएँ। बिस्मिल्ला खाँ को यह भरोसा है कि कभी न कभी ईश्वर उन पर यूँ ही दयालु व् दयावान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर बिस्मिल्ला खाँ की ओर उछालेगा, और फिर कहेगा कि ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी इच्छा को पूरी। इससे बिस्मिल्ला खाँ के बारे में पता चलता है कि उन्हें अपनी शहनाई बजाने में किसी प्रकार का घमंड नहीं था बल्कि वे तो सारा दिन रियास करते रहते थे। वे एक सच्चे संगीतज्ञ थे।
प्रश्न 3 – बिस्मिल्ला खाँ की तुलना कस्तूरी मृग से क्यों की गई है?
उत्तर – दोनों के गुण समान होने के कारण बिस्मिल्ला खाँ की तुलना कस्तूरी मृग से की गई है। जिस प्रकार कस्तूरी अपनी खुशबू में पागल रहता है, उसी प्रकार बिस्मिल्ला खाँ भी अपने संगीत के प्रति पागल थे। जिस प्रकार कस्तूरी की खुशबू चारों ओर फैलती है, उसी प्रकार बिस्मिल्ला खाँ के संगीत की महक चारों ओर फैल गई और यह महक आजतक हमारे चारों ओर फैली हुई है।
प्रश्न 4 – बिस्मिल्ला खाँ शहनाई का घंटों रियाज़ करते थे। इससे विद्यार्थियों को क्या सीख ग्रहण करनी चाहिए और क्यों ?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ शहनाई का घंटों रियाज़ करते थे। इससे विद्यार्थियों को सीख ग्रहण करनी चाहिए क्योंकि ऐसा नहीं था कि बिस्मिल्ला खाँ केवल शुरू में शहनाई सीखते हुए शहनाई का घंटों रियाज़ करते थे, बल्कि वे तो अस्सी वर्ष के होने पर भी, यहाँ तक की भारत रत्न मिलने के बाद भी शहनाई का घंटों रियाज़ करते थे। इससे विद्यार्थियों को सीख ग्रहण करनी चाहिए कि किसी भी कार्य में निपुण होने का अर्थ यह नहीं है कि आप उसका रियास करना छोड़ दें। अपने कार्य से प्रेम करना व् सम्मान करना ही सबसे बड़ी सीख है।
प्रश्न 5 – बिस्मिल्ला खाँ के उदाहरण से यह स्पष्ट कीजिए कि अपने मज़हब से सच्चा प्यार करने वाला दूसरे का भी सम्मान करता है ।
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ जाति से मुसलमान थे और धर्म की दृष्टि से इस्लाम धर्म को भजने वाले तथा पाँच वक्त नमाज़ पढ़ने वाले मुसलमान थे। मुहर्रम से उनका विशिष्ट जुड़ाव था। धर्म एवं जातिभेद उनके मन में दूर-दूर तक न था। वे बिना किसी भेदभाव के हिंदू एवं मुसलमान दोनों के उत्सवों में मंगल ध्वनि बजाते थे। उनके मन में बालाजी के प्रति विशेष श्रद्धा थी। वे काशी से बाहर होने पर भी विश्वनाथ और बालाजी मंदिर की दिशा की ओर मुँह करके बैठते और शहनाई बजाते थे। इस प्रकार वह आपसी भाईचारे के साथ देशवासियों को एक साथ मिल-जुलकर रहने की प्रेरणा देते थे। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अपने मज़हब से सच्चा प्यार करने वाला दूसरे का भी सम्मान करता है ।
2019 Exam Question and Answers from the chapter
प्रश्न 1 – लेखक ने बिस्मिल्ला खाँ को वास्तविक अर्थों में सच्चा इंसान क्यों माना है?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ हिंदू – मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। उन्हें धार्मिक कट्टरता छू भी न गई थी। वे खुदा और हज़रत इमाम हुसैन के प्रति जैसी आस्था एवं श्रद्धा रखते थे। वैसी ही श्रद्धा एवं आस्था गंगामैया , बालाजी , बाबा विश्वनाथ के प्रति भी रखते थे। वे काशी की गंगा – जमुनी संस्कृति में विश्वास रखते थे। इन प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ सच्चे इंसान थे।
प्रश्न 2 – कैसे कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म अर्थात् मुस्लिम धर्म के प्रति समर्पित इंसान थे। वे नमाज़ पढ़ते , सिजदा करते और खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगते थे। इसके अलावा वे हज़रत इमाम हुसैन की शहादत पर दस दिनों तक शोक प्रकट करते थे तथा आठ किलोमीटर पैदल चलते हुए रोते हुए नौहा बजाया करते थे। इसी तरह वे काशी में रहते हुए गंगामैया, बालाजी और बाबा विश्वनाथ के प्रति असीम आस्था रखते थे। वे हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित शास्त्रीय गायन में भी उपस्थित रहते थे। इन प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली – जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
प्रश्न 3 – बिस्मिल्ला खाँ जीवन भर ईश्वर से क्या माँगते रहे और क्यों ? इससे उनकी किस विशेषता का पता चलता है?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ ने अपनी पूरी जिंदगी में ईश्वर से अपने संगीत की समृद्धि के अलावा कुछ नहीं माँगा। वे हमेशा नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते थे कि मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह गुण व् योग्यता पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह लगातार आँसू निकल आएँ। बिस्मिल्ला खाँ को यह भरोसा था कि कभी न कभी ईश्वर उन पर यूँ ही दयालु व् दयावान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर बिस्मिल्ला खाँ की ओर उछालेगा, और फिर कहेगा कि ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी इच्छा को पूरी। इससे बिस्मिल्ला खाँ के बारे में पता चलता है कि उन्हें अपनी शहनाई बजाने में किसी प्रकार का घमंड नहीं था बल्कि वे तो सारा दिन रियास करते रहते थे। वे एक सच्चे संगीतज्ञ थे।
प्रश्न 4 – बिस्मिल्लाह खाँ को भारत रत्न का सम्मान क्यों मिला था ? उनके रहन-सहन की सादगी का एक उदाहरण दीजिए |
उत्तर – बिस्मिल्लाह खाँ को भारत रत्न का सम्मान अद्धभुत शहनाई वादक के रूप में मिला था। इसके बावजूद भी वे बहुत सादगी से रहते थे। उनके रहन-सहन की सादगी का एक उदाहरण इस प्रकार है कि एक दिन बिस्मिल्ला खाँ के एक शिष्य ने डरते – डरते बिस्मिल्ला खाँ साहब को टोका कि आपको भारत सरकार का सर्वोच्च सम्मान अर्थात भारतरत्न भी मिल चुका है , यह फटी धोती न पहना करें। अच्छा नहीं लगता , जब भी कोई आता है आप इसी फटी धोती में सबसे मिलते हैं।” उस शिष्य की बात सुनकर बिस्मिल्ला खाँ साहब मुसकराए। दुलार व् वात्सल्य से भरकर उस शिष्य से बोले कि ये जो भारतरत्न उनको मिला है न यह शहनाई पर मिला है, उनकी लंगोटी पर नहीं। अगर वे भी सब लोगों की तरह बनावटी शृंगार देखते रहते, तो पूरी उमर ही बीत जाती, और शहनाई की तो फिर बात ही छोड़ो। तब क्या वे खाक रियाज़ कर पाते। कहने का तात्पर्य यह है कि बिस्मिल्ला खाँ साहब बहुत ही सीधे – साढ़े व्यक्ति थे। वे कोई भी दिखावा करना सही नहीं समझते थे। वे केवल अपने रियाज़ को ही महत्वपूर्ण मानते थे।
प्रश्न 5 – बिस्मिल्ला खाँ को काशी में कौन-सी कमियाँ खलती थीं?
उत्तर – समय के साथ – साथ काशी में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं जो बिस्मिल्ला खाँ को दुखी करते हैं , जैसे –
- पक्का महाल से मलाई बरफ़ वाले गायब हो रहे हैं।
- कुलसुम की कचौड़ियाँ और जलेबियाँ अब नहीं मिलती है।
- संगीत और साहित्य के प्रति लोगों में वैसा मान – सम्मान नहीं रहा।
- गायकों के मन में संगतकारों के प्रति सम्मान भाव नहीं रहा।
- हिंदू – मुसलमानों में सांप्रदायिक सद्भाव में कमी आ गई है।
प्रश्न 6 – बिस्मिल्ला खाँ को मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक इसलिए कहा गया है क्योंकि शहनाई की ध्वनि मंगलदायी मानी जाती है। इसका वादन मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। अर्थात शहनाई को केवल शुभ कार्य या कल्याण अवसरों पर ही बजाय जाता है। बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष की आयु तक शहनाई बजाते रहे। उनकी गणना भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक के रूप में की जाती है। उन्होंने शहनाई को भारत ही नहीं विश्व में लोकप्रिय बनाया। इसलिए बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगलध्वनि का नायक कहा गया है।
प्रश्न 7 – “एक बड़े कलाकार का सहज मानवीय रूप मुहर्रम के अवसर पर आसानी से दिख जाता है।” बिस्मिल्ला खाँ के बारे में यह क्यों कहा गया है?
उत्तर – “एक बड़े कलाकार का सहज मानवीय रूप मुहर्रम के अवसर पर आसानी से दिख जाता है।” इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं व दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए , मृतक के लिए शोक मनाते हुए जाते हैं। इस दिन कोई राग नहीं बजता। राग – रागिनियों को अदा करना या बजाने का इस दिन निषेध् होता है। सभी शिया मुसलमानों की आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों के शहीद होने पर नम रहती हैं। इन दस दिनों में मातम या शोक मनाया जाता है। हज़ारों आँखें नम होती है। हज़ार वर्ष की परंपरा फिर से जीवित होती है। मुहर्रम समाप्त होता है। एक बड़े कलाकार का साधारण मानवीय रूप ऐसे अवसर पर आसानी से दिख जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि बिस्मिल्ला खाँ जैसे बड़े कलाकार भी अपने रीती – रिवाजों को शिदद्त से निभाते हैं।
प्रश्न 8 – भारतरत्न बिस्मिल्ला खाँ सरल-सहज व्यक्ति थे, दो उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ हिंदू – मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। उन्हें धार्मिक कट्टरता छू भी न गई थी। वे खुदा और हज़रत इमाम हुसैन के प्रति जैसी आस्था एवं श्रद्धा रखते थे। वैसी ही श्रद्धा एवं आस्था गंगामैया , बालाजी , बाबा विश्वनाथ के प्रति भी रखते थे। वे काशी की गंगा – जमुनी संस्कृति में विश्वास रखते थे। इन प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ सच्चे इंसान थे।
प्रश्न 9 – कैसे कह सकते हैं कि “काशी संस्कृति की प्रयोगशाला” है? ‘नौबतख़ाने में इबादत’ पाठ के आधार पर लिखिए ।
उत्तर – काशी संस्कृति की पाठशाला है क्योंकि काशी में संगीत की एक अद्भुत परंपरा रही है। बड़े-बड़े रसिक कण्ठे महाराज ने भी यहीं सबको संस्कृति का पाठ पढ़ाया। काशी में बाबा विश्वनाथ हैं, संकटमोचक हनुमान का मंदिर है। खानपान, उत्सव और अन्य सामाजिक परम्पराएँ भी विद्यमान है। काशी में गंगा जमुनी संस्कृति है इसको शास्त्रों में आनंद कानन के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हजारों साल का इतिहास छिपा हुआ है।
प्रश्न 10 – ‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ के आधार पर डुमराँव गाँव की प्रसिद्धि के दो कारणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – शहनाई की दुनिया में डुमराँव को याद किए जाने के मुख्यतया दो कारण हैं –
शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड, नरकट जो की एक घास है जिसके पौधे का तना खोखला गाँठ वाला होता है, उससे बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इस रीड के बिना शहनाई बजना मुश्किल है।
शहनाई की मंगल ध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ की जन्मस्थली डुमराँव ही है।
प्रश्न 11 – किशोर अमीरुद्दीन को बालाजी के मंदिर तक जाने के लिए कौन-सा रास्ता प्रिय था और क्यों?
उत्तर – बालाजी मंदिर में बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने अपने संगीत के अभ्यास के लिए जाना पड़ता था। मगर बालाजी मंदिर तक जाने का एक रास्ता था , यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के पास से होकर जाता था। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता था। इसका कारण यह था कि इस रास्ते से न जाने कितने तरह के बोल – बनाव कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के द्वारा मंदिर के दरवाजे तक पहुँचते रहते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर से भी हमेशा कोई न कोई संगीत सुनाई पड़ता रहता था और रसूलन और बतूलन जब गाती थी तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती थी।
प्रश्न 12 – डुमराँव से अमीरुद्दीन के संबंधों को समझाइए ।
उत्तर – शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड, नरकट जो की एक घास है जिसके पौधे का तना खोखला गाँठ वाला होता है, उससे बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इस रीड के बिना शहनाई बजना मुश्किल है। शहनाई की मंगल ध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ की जन्मस्थली डुमराँव ही है।
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