जड़ की मुसकान पाठ सार

PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 6 “Jad ki Muskaan” Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings

 

जड़ की मुसकान सार – Here is the PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 6 Jad ki Muskaan Summary with detailed explanation of the lesson “Jad ki Muskaan” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

इस पोस्ट में हम आपके लिए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड  कक्षा 10 हिंदी पुस्तक के पाठ 6 जड़ की मुसकान पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 जड़ की मुसकान पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Jad ki Muskaan (जड़ की मुसकान)

 हरिवंशराय बच्चन

प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन हिंदी साहित्य में अपने सरल, भावपूर्ण और जीवन से जुड़े काव्य के लिए जाने जाते हैं। उनकी कविताओं में जीवन-दर्शन, मानवीय संवेदनाएँ और गहरी शिक्षा छिपी होती है। ‘जड़ की मुस्कान’ उनकी एक ऐसी कविता है जिसमें उन्होंने पेड़ के विभिन्न अंगों के माध्यम से मनुष्य के अहंकार और मूलभूत आधार के महत्व को समझाया है। यह कविता हमें सिखाती है कि प्रगति और उपलब्धियों पर घमंड करने के बजाय हमें हमेशा अपनी नींव और जड़ों को याद रखना चाहिए।

 

 

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जड़ की मुसकान पाठ सार Jad ki Muskaan Summary

प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन की कविता ‘जड़ की मुसकान’ हमें यह सिखाती है कि जीवन में प्रगति करने पर हमें कभी भी अपने आधार और जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। कविता में कवि ने वृक्ष के विभिन्न अंगों ‘तना, डालियाँ, पत्तियाँ और फूल’ को पात्र बनाकर उनकी आपसी शेखी और बहस को दिखाया है। सबसे पहले तना जड़ को महत्वहीन मानते हुए कहता है कि वह तो हमेशा जमीन के भीतर दबी रही है और उसने ही बाहर आकर मजबूती पाई है। इसके बाद डालियाँ तने की स्थिरता का मजाक उड़ाकर स्वयं को श्रेष्ठ बताती हैं, क्योंकि वे चारों दिशाओं में फैली हैं और जीवन में गति लाई हैं। फिर पत्तियाँ डालियों को हीन साबित करते हुए कहती हैं कि वे अपनी हर-हर और मर्मर ध्वनि से वातावरण को संगीत से भर देती हैं, वृक्ष को हरियाली प्रदान करती हैं और थके पथिक को शांति देती हैं। अंत में फूल पत्तियों की निंदा कर अपने को सबसे बड़ा बताते हैं, क्योंकि वे रंग, रस और पराग से भरे हुए होते हैं और उनकी सुगंध दूर-दूर तक फैलती है। सबकी इस बहस को जड़ चुपचाप सुनती रहती है और अंत में केवल मुस्कुरा देती है। उसकी यह मुस्कान यह बताती है कि चाहे तना हो, डालियाँ, पत्तियाँ या फूल  सबका अस्तित्व तभी तक है जब तक जड़ सुरक्षित और मजबूत है। इस प्रकार कविता यह संदेश देती है कि जीवन में चाहे जितनी प्रगति हो जाए, हमें अपनी जड़ों, नींव और उन लोगों को नहीं भूलना चाहिए जिनके कारण हमारी उन्नति संभव हुई है।


 

जड़ की मुसकान पाठ व्याख्या Jad ki Muskaan Explanation

Jad ki Muskaan Summary img1

1
एक दिन तने ने भी कहा था,
जड़?
जड़ तो जड़ ही है;
जीवन से सदा डरी रही है,
और यही है उसका सारा इतिहास कि जमीन में मुँह गड़ाए पड़ी रही है।
लेकिन मैं ज़मीन से ऊपर उठा,
बाहर निकला,
बढ़ा हूँ
मज़बूत बना हूँ,
इसी से तो तना हूँ।

शब्दार्थ-
जड़- पेड़ का वह भाग जो जमीन के भीतर होता है और वृक्ष को आधार व पोषण देता है।
सदा- हमेशा
इतिहास- बीती हुई कहानी
गड़ाए- दबाए
तना हूँ- दृढ़ता पूर्वक खड़ा हूँ

प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियों में तना अपनी महानता का बखान करता है और जड़ को महत्त्वहीन बताता है।

व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि तने के माध्यम से बताते हैं कि एक दिन तना जड़ से बोलता है। वह व्यंग्य करते हुए जड़ से कहता है कि जड़ तुम तो जड़ ही हो। उसका मतलब था कि जड़ का जीवन हमेशा भयभीत और दबा हुआ रहा है। वह हमेशा धरती के भीतर मुँह गड़ाए पड़ी रहती है और उसका यही इतिहास रहा है। इसके बाद तना अपने महत्व का बखान करता है। वह कहता है कि उसने तो जमीन से ऊपर उठकर सूर्य और वायु का सामना किया है। वह बाहर निकला है, लगातार बढ़ा है और मज़बूत भी बना है। यही कारण है कि उसे तना कहा जाता है। इस प्रकार तना अपने को महान मानते हुए जड़ को महत्वहीन समझता है और उसके योगदान को नकार देता है।

 

2
एक दिन डालों ने भी कहा था,
तना ?
किस बात पर है तना ?
जहां बिठाल दिया गया था वहीं पर है बना;
प्रगतिशील जगती में तिल भर नहीं डोला है,
खाया है, मोटाया है, सहलाया चोला है;
लेकिन हम तने से फूटीं,
दिशा-दिशा में गईं
ऊपर उठीं,
नीचे आई
हर हवा के लिए दोल बनीं, लहराईं,
इसी से तो डाल कहलाई।

शब्दार्थ-
जहाँ बिठाल दिया गया था– जहाँ रोप दिया गया था।
प्रगतिशील जगती- प्रगति करता हुआ संसार।
डोला- गतिशील
तिल भर– तिल के दाने के बराबर
सहलाया चोला- सुविधा भोगी शरीर
तने से फूटीं- तने से उत्पन्न हुई हैं।
दोल- हिलना

प्रसंग– प्रस्तुत पंक्तियों में डालियाँ अपना महत्त्व बताते हुए तने का मज़ाक बनाती हैं और उन्हें महत्त्वहीन बताती हैं।

व्याख्याइस पद्यांश में डालियाँ तने का मज़ाक उड़ाती हैं और अपने को अधिक महत्वपूर्ण बताती हैं। वे तने से कहती हैं कि आखिर तुम किस बात पर इतना तने हुए हो। उनका तात्पर्य है कि तना तो बस वहीं खड़ा रहा जहाँ उसे रोपा गया था, उसने संसार की प्रगतिशील धारा में ज़रा-सा भी हिलने-डुलने का साहस नहीं किया। उसने केवल धरती से रस पाया, मोटा हुआ और आराम से अपना जीवन बिताया। इसके विपरीत डालियाँ कहती हैं कि वे तो तने से फूटकर निकली हैं, चारों दिशाओं में फैली हैं, कभी ऊपर उठी हैं, कभी नीचे झुकी हैं। हर हवा के लिए झूलकर जीवन में गति और लय पैदा की है। इसी गति और विस्तार के कारण उन्हें डालियाँ कहा जाता है। इस प्रकार डालियाँ तने की स्थिरता को उसकी कमजोरी बताती हैं और अपने को अधिक जीवंत व श्रेष्ठ मानती हैं।

3
एक दिन पत्तियों ने भी कहा था,
डाल ?
डाल में क्या है कमाल?
माना वह झूमी, झुकी, डोली है
ध्वनि-प्रधान दुनिया में
एक शब्द भी वह कभी बोली है?
लेकिन हम हर हर स्वर करती हैं।
मर्मर स्वर मर्मभरा भरती हैं,
नूतन हर वर्ष हुई,
पतझर में झर
बहार फूट फिर छहरती हैं,
विथकित चित पंथी का
शाप-ताप हरतीं हैं।

शब्दार्थ-
कमाल– विशेषता, गुण
ध्वनि-प्रधान दुनिया– शब्दों की दुनिया;
हर-हर स्वर- सुरीली आवाज
मर्मर स्वर- हल्की, मधुर सरसराहट की ध्वनि
मर्मभरा- भावपूर्ण, हृदयस्पर्शी
नूतन- नया
पतझर में झर– पतझड़ में पत्तियाँ गिरना
बहार फूट फिर छहरती हैं- वसंत ऋतु में फिर से नए पत्ते निकलना
विथकित- थका हुआ
चित्त– मन
पंथी- पथिक, यात्री
शाप-ताप हरतीं हैं- थके पथिक की पीड़ा और दुख दूर करती हैं

प्रसंग- इस पद्यांश में पत्तियाँ डालियों को महत्त्वहीन बता रहीं हैं।

व्याख्या- इस पद्यांश में पत्तियाँ डालियों को हीन सिद्ध करती हैं और अपने महत्व पर गर्व प्रकट करती हैं। वे डाल से कहती हैं कि तुझमें ऐसा क्या खास है। उनका कहना है कि डालियाँ सिर्फ हवा के झोंकों से झूमती, झुकती और डोलती रहती हैं, लेकिन इस ध्वनि-प्रधान संसार में उन्होंने कभी कोई शब्द नहीं बोला। इसके विपरीत पत्तियाँ कहती हैं कि वे हर-हर की मधुर ध्वनि करती हैं और अपनी सरसराहट से वातावरण को संगीत से भर देती हैं। वे हर वर्ष नई होकर वृक्ष को जीवन देती हैं, पतझर में गिर जाती हैं और वसंत आने पर फिर से छा जाती हैं। इसके अतिरिक्त वे थके हुए पथिक का दुख और ताप हर लेती हैं। इस तरह पत्तियाँ स्वयं को वृक्ष की सबसे उपयोगी और जीवंत शक्ति सिद्ध करती हैं।

 

4
एक दिन फूलों ने भी कहा था,
पत्तियाँ ?
पत्तियों ने क्या किया ?
संख्या के बल पर बस डालों को छाप लिया,
डालों के बल पर ही चल-चपल रही हैं,
हवाओं के बल पर ही मचल रही हैं
लेकिन हम अपने से खुले, खिले, फूले हैं –
रंग लिए रस लिए, पराग लिए –
हमारी यश-गंध दूर-दूर-दूर फैली है,
भ्रमरों ने आकर हमारे गुन गाए हैं,
हम पर बौराए हैं।
सबकी सुन पाई है!
जड़ मुसकराई है!

शब्दार्थ-
डालों को छाप लिया– शाखाओं पर छा जाना, शाखाओं को ढक लेना
चल-चपल- चंचल, इधर-उधर हिलने-डुलने वाली
मचल रही हैं- चंचलता से लहराना
पराग- परागकण
यश-गंध– ख्याति और सुगंध
भ्रमर– भौंरे
बौराए हैं- मतवाले होकर मंडराए हैं

प्रसंग– प्रस्तुत पद्यांश में फूल अपनी महत्ता बता रहे हैं और पत्तियों को निम्न बता रहे हैं।

व्याख्याइस पद्यांश में फूल पत्तियों को तुच्छ मानते हुए अपनी श्रेष्ठता प्रकट करते हैं। फूल पत्तियों से कहते हैं कि उन्होंने ऐसा क्या कर लिया। फूलों का तर्क है कि पत्तियाँ तो केवल अपनी अधिक संख्या के बल पर डालों को ढक लेती हैं। उनका अस्तित्व भी डालों पर ही निर्भर है और वे केवल हवाओं के सहारे डोलती और मचलती रहती हैं। जबकि फूल गर्व से कहते हैं कि हम अपने आप खिलते हैं, रंग, रस और पराग से भरे रहते हैं। हमारी सुगंध दूर-दूर तक फैलती है और हमें देखकर भौंरे आकर्षित होकर हमारा गुणगान करते हैं तथा हम पर मंडराते हैं। इस प्रकार फूल स्वयं को वृक्ष का सबसे सुंदर और महत्वपूर्ण अंग बताते हैं। लेकिन जब सबने अपनी-अपनी श्रेष्ठता जताई, तब जड़ चुपचाप यह सब सुनती रही और बस मुस्कुरा दी, मानो यह स्मरण करा रही हो कि इन सबका अस्तित्व केवल उसी पर आधारित है।

 

Conclusion

इस पोस्ट में ‘जड़ की मुसकान’ पाठ का सारांश, प्रसंग, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। यह पाठ PSEB कक्षा 10 के पाठ्यक्रम में हिंदी की पाठ्यपुस्तक से लिया गया है। प्रस्तुत पाठ की कविता हरिवंश राय बच्चन जी द्वारा रचित है, जिसमें उन्होंने पेड़ के विभिन्न अंगों ‘तना, डाल, पत्तियाँ और फूल’ के माध्यम से मनुष्य के अहंकार और जड़ों को भूल जाने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है। यह पोस्ट विद्यार्थियों को पाठ को सरलता से समझने, उसके मुख्य संदेश को ग्रहण करने और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में सहायक सिद्ध होगा।