तरुण के स्वप्न पाठ सार

CBSE Class 8 Hindi Chapter 10 “Tarun Ke Swapn”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book

 

तरुण के स्वप्न सार – Here is the CBSE Class 8 Hindi Malhar Chapter 10 Tarun Ke Swapn with detailed explanation of the lesson ‘Tarun Ke Swapn’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 8 हिंदी मल्हार के पाठ 10 तरुण के स्वप्न पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 8 तरुण के स्वप्न पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Tarun Ke Swapn (तरुण के स्वप्न)

सुभाष चंद्र बोस

 

Tarun Ke Swapn Summary img1

 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस ऐसे स्वतंत्र व् पूर्णतः विकसित समाज और राष्ट्र का सपना देखते थे जिसमें व्यक्ति सब दृष्टियों से मुक्त हो और समाज तथा राष्ट्र की सेवा में समान रूप से भागीदार बने। वे अपने विचारों में नारी मुक्ति और सभी को शिक्षा तथा समान अवसर मिलने की बात भी करते थे। स्वतंत्र व्  पूर्णतः विकसित समाज और राष्ट्र के इस स्वप्न को वे देश के युवाओं को सौंपना चाहते थे जिससे आदर्श समाज और आदर्श राष्ट्र का रूप साकार हो सके। इस लेख में हमें  नेताजी के उन विचारों के विषय में बताया गया है, जो उन्होंने मेदिनीपुर जिला युवक-सम्मेलन में 29 दिसंबर, 1929 को युवाओं को संबोधित करते हुए प्रकट किए थे।

 

 

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तरुण के स्वप्न पाठ सार Tarun Ke Swapn Summary

‘तरुण के स्वप्न’ पाठ में सुभाष चंद्र बोस अपने सपने के बारे में बता रहे हैं। सपना सभी देखते हैं। स्वर्गीय देशबंधु चित्तरंजन दास ने भी एक सपना देखा था जो उनके जीवन में उनके साहस, शक्ति और उनके आनन्द का जरिया बना रहा। उनसे वह सपना  सुभाष चंद्र बोस को विरासत में मिला है। इसलिए सुभाष चंद्र बोस मानते हैं कि उनका भी अपना एक सपना है, वे स्वर्गीय देशबंधु चित्तरंजन दास के सपने की प्रेरणा से उठते हैं, बैठते हैं, चलते हैं, फिरते हैं और लिखते हैं, भाषण देते हैं, काम-काज करते हैं। वे एक नया, हर दृष्टि से स्वतन्त्र, पूर्णतः विकसित समाज और उस पर एक स्वतन्त्र राष्ट्र चाहते हैं। वे एक ऐसा समाज चाहते हैं जिसमें हर व्यक्ति सब दृष्टियों से आजाद हो, जातिवाद का कोई स्थान न हो, नारी पूरी आजाद होकर समाज एवं राष्ट्र के पुरुषों की तरह ही समान अधिकार का आनंद लें और समाज तथा पुरुषों के ही समान राष्ट्र की सेवा में हिस्सा ले, धन-सम्पति की कोई कठिनाई न हो, प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा और उन्नति का समान अवसर प्राप्त करे। किसी के काम व् परिश्रम को पूर्ण सम्मान दिया जाए। और आलस तथा कामचोरी के लिए उस समाज में कोई स्थान नहीं रहेगा, वह राष्ट्र किसी भी विभिन्न जातियों व् वर्गों के प्रभाव से हर प्रकार से मुक्त रहेगा। सबसे पहले ऐसा समाज और राष्ट्र भारतवासियों की कमियों को दूर करेगा या भारतवासी के आदर्श को अर्थवान बनाकर ही नहीं रुकेगा, बल्कि विश्व के लोगों के सामने आदर्श-समाज और आदर्श-राष्ट्र के रूप में गिना जाएगा। सुभाष चंद्र बोस ऐसे ही गुणों वाले समाज और ऐसे ही गुणों वाले राष्ट्र का स्वप्न देखते थे। यह सपना उनके सामने सदा एवं कभी न नष्ट होने वाले सत्य के सामान था। इस सत्य की इज्जत के लिए वे सब कुछ करने को तैयार थे। इस सपने को अर्थवान बनाने के दौरान यदि प्राण भी देने पड़े तो वे तैयार थे और इस तरह मरने को वे स्वर्ग के समान मानते थे। सुभाष चंद्र बोस भारतीयों को युवा भाइयो कह कर सम्बोधित करते हैं। और कहते हैं कि उनके पास भारतीयों को देने लायक कुछ भी नहीं है, यदि वे कुछ दे सकते हैं तो यही सपना है जो उन्हें असीम शक्ति और अपार आनंद देता है, जो उनके महत्वहीन जीवन को भी अर्थवान बनाता है। यह स्वप्न वे भारतवासियों को उपहारस्वरूप देना चाहते है और प्रार्थना करते हैं कि भारतवासी उनके इस सपने को स्वीकार करें।

 

तरुण के स्वप्न पाठ व्याख्या Tarun Ke Swapn Explanation

पाठ –  स्वप्न तो अनेकों ने देखा। हमारे नेता स्वर्गीय देशबंधु चित्तरंजन दास ने भी एक स्वप्न देखा था। वही स्वप्न उनकी शक्ति का उत्स बना और उनके आनंद का निर्झर रहा। उनके स्वप्न के उत्तराधिकारी आज हम हैं। इसलिए हमारा भी अपना एक स्वप्न है, इसी स्वप्न की प्रेरणा से हम उठते हैं, बैठते हैं, चलते हैं, फिरते हैं और लिखते हैं, भाषण देते हैं, काम-काज करते हैं। वह स्वप्न या आदर्श क्या है? हम चाहते हैं, एक नया सर्वांगीण स्वाधीन संपन्न समाज और उस पर एक स्वाधीन राष्ट्र। उस समाज में व्यक्ति सब दृष्टियों से मुक्त हो तथा समाज के दबाव से वह मरे नहीं । उस समाज में जातिभेद का स्थान नहीं हो, उस समाज में नारी मुक्त होकर समाज एवं राष्ट्र के पुरुषों की तरह समान अधिकार का उपभोग करे और समाज तथा राष्ट्र की सेवा में समान रूप से हिस्सा ले, उस समाज में अर्थ की विषमता न हो, उस समाज में प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा और उन्नति का समान सुअवसर पाए । 

Tarun Ke Swapn Summary img2शब्दार्थ –
स्वप्न – सपना
स्वर्गीय – जिसका निधन हो चुका हो, जो अब जीवित न हो, मृत
उत्स – जल का स्रोत, निर्झर, झरना
आनंद – ख़ुशी
निर्झर – पानी का झरना, जल-प्रपात
उत्तराधिकारी – वारिस
आदर्श – प्रतिमान, नमूना
सर्वांगीण – जो सभी अंगों से युक्त हो, हर दृष्टि से या हर बात में
स्वाधीन – स्वतंत्र
संपन्न – पूर्णतः विकसित
उपभोग – किसी वस्तु का इस्तेमाल या व्यवहार, इस्तेमाल या व्यवहार का सुख, विषय-सुख
अर्थ – धन, संपत्ति
विषमता –  कठिनाई, प्रतिकूल, विपरीत, विकट स्थिति

व्याख्या सुभाष चंद्र बोस कहते हैं कि सपना तो अनेक लोग देखा करते हैं। उन सभी में नेता स्वर्गीय देशबंधु चित्तरंजन दास ने भी एक सपना देखा था। उनका देखा गया वही सपना उनकी शक्ति का स्रोत बना और उनके आनंद अथवा ख़ुशी का मानो झरना बना रहा। कहने का आशय यह है कि स्वर्गीय देशबंधु चित्तरंजन दास ने जो सपना देखा था वह उनके जीवन में उनके साहस, शक्ति और आनन्द का जरिया बना रहा। उनके उसी सपने के वारिस सुभाष चंद्र बोस अपने आप को मानते हैं। अर्थात उनसे वह सपना  सुभाष चंद्र बोस को विरासत में मिला है। इसलिए सुभाष चंद्र बोस मानते हैं कि उनका भी अपना एक सपना है, वे स्वर्गीय देशबंधु चित्तरंजन दास के सपने की प्रेरणा से उठते हैं, बैठते हैं, चलते हैं, फिरते हैं और लिखते हैं, भाषण देते हैं, काम-काज करते हैं। इस सपने या आदर्श के बारे में सुभाष चंद्र बोस बताते हैं कि वे एक नया, हर दृष्टि से स्वतन्त्र, पूर्णतः विकसित समाज और उस पर एक स्वतन्त्र राष्ट्र चाहते हैं। वे एक ऐसा समाज चाहते हैं जिसमें हर व्यक्ति सब दृष्टियों से आजाद हो तथा समाज के दबाव से आकर वह मरे नहीं अर्थात समाज के दवाब में वह कोई कार्य न करे। उस समाज में जातिभेद अर्थात जातिवाद का कोई स्थान न हो, उस समाज में नारी पूरी आजाद होकर समाज एवं राष्ट्र के पुरुषों की तरह ही समान अधिकार के साथ किसी भी वस्तु का इस्तेमाल या विषय-सुखों का आनंद लें और समाज तथा पुरुषों के ही समान राष्ट्र की सेवा में हिस्सा ले, उस समाज में धन-सम्पति की कोई कठिनाई न हो, उस समाज में प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा और उन्नति का समान अवसर प्राप्त करे। कहने का आशय यह है कि सुभाष चंद्र बोस व् स्वर्गीय देशबंधु चित्तरंजन दास एक संपन्न, समृद्ध व् विकसित समाज व् राष्ट्र का सपना देखते थे।

 

पाठ – जिस समाज में श्रम और कर्म की पूरी मर्यादा होगी और आलसी तथा अकर्मण्य के लिए कोई स्थान नहीं रहेगा, वह राष्ट्र किसी भी विजातीय प्रभाव से हर प्रकार से मुक्त रहेगा। जो राष्ट्र हमारे स्वदेशी समाज के यंत्र के रूप में काम करेगा, सर्वोपरि वह समाज और राष्ट्र भारतवासियों का अभाव मिटाएगा या भारतवासी के आदर्श को सार्थक बनाकर ही स्थिर नहीं होगा, बल्कि विश्व-मानव के समक्ष आदर्श-समाज और आदर्श – राष्ट्र के रूप में गण्य होगा। मैं ऐसे समाज और ऐसे राष्ट्र का ही स्वप्न देखता रहा हूँ। यह स्वप्न मेरे समक्ष नित्य एवं अखंड सत्य है। इस सत्य की प्रतिष्ठा के लिए सबकुछ किया जा सकता है, हर प्रकार का त्याग किया जा सकता है, हर संकट को सहा जा सकता है और इस स्वप्न को सार्थक बनाने के दौरान प्राण देना भी है तो ‘वह मरण है स्वर्ग समान’। हे मेरे तरुण भाइयो! तुम्हें देने लायक मेरे पास कुछ भी नहीं है, है सिर्फ यही स्वप्न जो हमें असीम शक्ति और अपार आनंद देता है, जो मेरे क्षुद्र जीवन को भी सार्थक बनाता है। यह स्वप्न मैं तुम्हें उपहारस्वरूप देता हूँ— स्वीकार करो।

Tarun Ke Swapn Summary img3शब्दार्थ –
श्रम – मेहनत, परिश्रम
कर्म –  कार्य, काम
मर्यादा – सीमा, हद, परंपरा आदि द्वारा निर्धारित सीमा
अकर्मण्य –  निठल्ला, निकम्मा, कामचोर
विजातीय – भिन्न जाति या वर्ग का, दूसरी जाति का
स्वदेशी – अपने देश का, अपने देश से संबंध रखने वाला, अपने ही देश में निर्मित
यंत्र – मशीन, कल, औज़ार
सर्वोपरि – जो सबसे ऊपर या बढ़कर हो
अभाव – कमी, त्रुटि
सार्थक – जिसका कुछ अर्थ हो, अर्थवान, अर्थवाला
स्थिर –  दृढ़, पक्का, निश्चल, गतिहीन
समक्ष – सामने
गण्य – गिनने योग्य, प्रतिष्ठित
नित्य – हमेशा, सदा
अखंड – जिसके खंड न हों, संपूर्ण, अविभाज्य
प्रतिष्ठा – मान-मर्यादा, सम्मान, इज़्ज़त
मरण – मरना
तरुण – युवा, जवान
असीम – जिसकी कोई सीमा न हो, असीमित
अपार – अथाह, बहुत अधिक, असंख्य
क्षुद्र –  नगण्य, महत्वहीन
उपहारस्वरूप – उपहार के रूप में 

व्याख्या सुभाष चंद्र बोस जिस समाज का सपना देखते थे उस समाज में परिश्रम और काम को परंपरा आदि द्वारा निर्धारित सीमा से देखा जाएगा अर्थात किसी के काम व् परिश्रम को पूर्ण सम्मान दिया जाएगा। और आलस तथा कामचोरी के लिए उस समाज में कोई स्थान नहीं रहेगा, वह राष्ट्र किसी भी विभिन्न जातियों व् वर्गों के प्रभाव से हर प्रकार से मुक्त रहेगा। सुभाष चंद्र बोस जी के सपनों का राष्ट्र अपने ही देश में निर्मित, समाज के मशीनों व् औजारों के रूप में काम करेगा, सबसे पहले ऐसा समाज और राष्ट्र भारतवासियों की कमियों को दूर करेगा या भारतवासी के आदर्श को अर्थवान बनाकर ही नहीं रुकेगा, बल्कि विश्व के लोगों के सामने आदर्श-समाज और आदर्श-राष्ट्र के रूप में गिना जाएगा। सुभाष चंद्र बोस ऐसे ही गुणों वाले समाज और ऐसे ही गुणों वाले राष्ट्र का स्वप्न देखते थे। यह सपना उनके सामने सदा व् हमेशा एवं कभी न नष्ट होने वाले सत्य के सामान था। इस सत्य के सम्मान और इज्जत के लिए वे सब कुछ करने को तैयार थे, हर प्रकार का त्याग करने को तैयार थे, हर संकट को सहने के लिए तैयार थे और इस सपने को अर्थवान बनाने के दौरान यदि प्राण भी देने पड़े तो वे इस तरह मरने को स्वर्ग के समान मानते थे। सुभाष चंद्र बोस भारतीयों को युवा भाइयो कह कर सम्बोधित करते हैं। और कहते हैं कि उनके पास भारतीयों को देने लायक कुछ भी नहीं है, यदि वे कुछ दे सकते हैं तो है यही सपना है जो उन्हें असीम शक्ति और अपार आनंद देता है, जो उनके महत्वहीन जीवन को भी अर्थवान बनाता है। यह स्वप्न वे भारतवासियों को उपहारस्वरूप देना चाहते है और प्रार्थना करते हैं कि भारतवासी उनके इस सपने को स्वीकार करें।

 

Conclusion निष्कर्ष 

नेताजी सुभाषचंद्र बोस ऐसे स्वतंत्र व्  पूर्णतः विकसित समाज और राष्ट्र का सपना देखते थे जिसमें व्यक्ति सब दृष्टियों से मुक्त हो और समाज तथा राष्ट्र की सेवा में समान रूप से भागीदार बने। इस स्वप्न को वे देश के युवाओं को सौंपना चाहते थे जिससे आदर्श समाज और आदर्श राष्ट्र का रूप साकार हो सके। कक्षा 8 हिंदी की मल्हार पुस्तक के पाठ 10 – तरुण के स्वप्न की इस पोस्ट में सार, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। छात्र इसकी मदद से पाठ को तैयार करके परीक्षा में पूर्ण अंक प्राप्त कर सकते हैं।