CBSE Class 8 Hindi Chapter 4 Haridwar (हरिद्वार) Question Answers (Important) from Malhar Book
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सीबीएसई कक्षा 8 हिंदी मल्हार के पाठ 4 हरिद्वार प्रश्न उत्तर खोज रहे हैं? आगे कोई तलाश नहीं करें! महत्वपूर्ण प्रश्नों का हमारा व्यापक संकलन आपको अपने विषय ज्ञान को बढ़ाने में मदद करेगा। कक्षा 8 के हिंदी प्रश्न उत्तर का अभ्यास करने से परीक्षा में आपके प्रदर्शन में काफी सुधार हो सकता है। हमारे समाधान इस बारे में एक स्पष्ट विचार प्रदान करते हैं कि उत्तरों को प्रभावी ढंग से कैसे लिखा जाए। हमारे हरिद्वार प्रश्न उत्तरों को अभी एक्सप्लोर करें उच्च अंक प्राप्त करने के अवसरों में सुधार करें।
The questions listed below are based on the latest CBSE exam pattern, wherein we have given NCERT solutions to the chapter’s extract-based questions, multiple choice questions, short answer and long answer questions.
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पाठ से
आइए, अब हम इस पत्र को थोड़ा और विस्तार से समझते हैं। नीचे दी गई गतिविधियाँ इस कार्य में आपकी सहायता करेंगी।
मेरी समझ से
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उपयुक्त उत्तर के सम्मुख तारा (★) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
1. “सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं” का क्या अर्थ है ?
- लेखक के अनुसार सज्जन लोग बिना पूछे स्वादिष्ट रसीले फल देते हैं।
- लेखक फलदार वृक्षों की उदारता को मानवीय रूप में व्यक्त कर रहे हैं।
- लेखक का मानना था कि हरिद्वार के सभी दुकानदार बहुत सज्जन थे।
- लेखक को पत्थर मारकर पके हुए फल तोड़कर खाना पसंद था।
उत्तर– लेखक फलदार वृक्षों की उदारता को मानवीय रूप में व्यक्त कर रहे हैं। (★)
2. ‘’वैराग्य और भक्ति का उदय होता था” इस कथन से लेखक का कौन-सा भाव प्रकट होता है?
- शारीरिक थकान और मानसिक बेचैनी
- आर्थिक संतोष और मानसिक विकास
- मानसिक शांति और आध्यात्मिक अनुभव
- सामाजिक सद्भाव और पारिवारिक प्रेम
उत्तर– मानसिक शांति और आध्यात्मिक अनुभव (★)
3.“पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल से बढ़कर था”इस वाक्य का सर्वाधिक उपयुक्त निष्कर्ष क्या है?
- संतुष्टि में सुख होता है।
- सुखी लोग पत्थर पर भोजन करते हैं।
- लेखक के पास सोने की थाली नहीं थी ।
- पत्थर पर रखा भोजन अधिक स्वादिष्ट होता है।
उत्तर- संतुष्टि में सुख होता है। (★)
4. “एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया।‘’ यह प्रसंग किस मूल्य को बढ़ावा देता है?
- अंधविश्वास और लालच
- मानवता और देशप्रेम
- सादगी और आत्मनिर्भरता
- स्वच्छता और प्रकृति प्रेम
उत्तर-
सादगी और आत्मनिर्भरता (★)
स्वच्छता और प्रकृति प्रेम (★)
5. लेखक का हरिद्वार अनुभव मुख्यतः किस प्रकार का था?
- राजनीतिक
- आध्यात्मिक
- सामाजिक
- प्राकृतिक
उत्तर-
आध्यात्मिक (★)
प्राकृतिक (★)
6. पत्र की भाषा का एक मुख्य लक्षण क्या है?
- कठिन शब्दों का प्रयोग और बोझिलता
- मुहावरों का अधिक प्रयोग
- सरलता और चित्रात्मकता
- जटिलता और संक्षिप्तता
उत्तर- सरलता और चित्रात्मकता (★)
(ख) हो सकता है कि आपके समूह के साथियों ने अलग-अलग उत्तर चुने हों। अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुने?
उत्तर-
मैंने ये उत्तर इसलिए चुने क्योंकि ये पाठ में लेखक की भावना, भाषा, अनुभव और दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से बताते हैं।
पहले प्रश्न में, लेखक वृक्षों को सज्जन बताते हैं क्योंकि वे पत्थर मारने पर भी बदला नहीं लेते, उल्टे फल ही देते हैं। लेखक ने वृक्षों की उदारता के माध्यम से सज्जनों की विशेषता को बताया है। इसलिए यह मानवीय गुणों को प्रकृति के उदाहरण से जोड़ने का प्रयास है।
दूसरे प्रश्न में, ‘वैराग्य और भक्ति का उदय’ जैसे शब्द स्पष्ट रूप से मानसिक शांति और आध्यात्मिक अनुभूति की ओर संकेत करते हैं, इसलिए वही उत्तर उपयुक्त लगा।
तीसरे प्रश्न में, ‘पत्थर पर भोजन का सुख सोने की थाली से बढ़कर’ से लेखक संतोष और साधारण जीवन के महत्व को बताना चाहते हैं, न कि भौतिक सुविधाओं को।
चौथे प्रश्न में, गंगा तट पर खुद खाना बनाकर, प्रकृति के पास बैठकर खाने से सादगी, आत्मनिर्भरता और प्रकृति प्रेम जैसे जीवन-मूल्य झलकते हैं।
पाँचवे प्रश्न में, लेखक ने हरिद्वार की प्राकृतिक सुंदरता और वहाँ के धार्मिक वातावरण का वर्णन किया है, जिससे अनुभव आध्यात्मिक और प्राकृतिक दोनों ही प्रतीत होता है।
छठे प्रश्न में, पत्र की भाषा बहुत ही सरल, चित्रात्मक और अनुभवों से भरी है, जिससे पाठक स्थान, व्यक्ति और भावनाओं को कल्पना में देख सकते हैं। इसलिए ‘सरलता और चित्रात्मकता’ उपयुक्त उत्तर है।
इन उत्तरों के चयन का आधार पाठ की गहराई से समझ, लेखक के भावों की पहचान और भाषा की शैली है।
मिलकर करें मिलान
पाठ से चुनकर कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं। आपस में चर्चा कीजिए इनके उपयुक्त संदर्भों से इनका मिलान कीजिए—
| क्रम | शब्द | संदर्भ |
| 1. | हरिद्वार | 1. मान्यताओं के अनुसार दुर्गा का एक रूप। |
| 2. | गंगा | 2. यह अठारह पुराणों में से सर्वप्रसिद्ध एक पुराण है। इसमें अधिकांश श्री कृष्ण -संबंधी कथाएँ हैं। |
| 3. | भगीरथ | 3. यह भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यहाँ से गंगा पहाड़ों को छोड़कर मैदान में आती है। |
| 4. | चण्डिका | 4. यह एक पेड़ का नाम है। यह दक्षिण भारत में बहुतायत से मिलता है। इस पेड़ की सुगंधित छाल दवा और मसाले के काम में आती है। इसे दारचीनी भी कहते हैं। |
| 5. | भागवत | 5. यह भारतवर्ष की एक प्रधान नदी है जो हिमालय से निकलकर लगभग 1560 मील पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसके अनेक नाम हैं, जैसे—भागीरथी, त्रिपथगा, अलकनंदा, मंदाकिनी, सुरनदी आदि। |
| 6. | दालचीनी | 6. ये अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे। कहा जाता है कि ये घोर तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लाए थे। इसीलिए गंगा का एक नाम ‘भागीरथी’ भी है। |
उत्तर-
| क्रम | शब्द | संदर्भ |
| 1. | हरिद्वार | 3. यह भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यहाँ से गंगा पहाड़ों को छोड़कर मैदान में आती है। |
| 2. | गंगा | 5. यह भारतवर्ष की एक प्रधान नदी है जो हिमालय से निकलकर लगभग 1560 मील पूर्व की ओर बहकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसके अनेक नाम हैं, जैसे—भागीरथी, त्रिपथगा, अलकनंदा, मंदाकिनी, सुरनदी आदि। |
| 3. | भगीरथ | 6. ये अयोध्या के प्रसिद्ध सूर्यवंशी राजा थे। कहा जाता है कि ये घोर तपस्या करके गंगा को पृथ्वी पर लाए थे। इसीलिए गंगा का एक नाम ‘भागीरथी’ भी है। |
| 4. | चण्डिका | 1. मान्यताओं के अनुसार दुर्गा का एक रूप। |
| 5. | भागवत | 2. यह अठारह पुराणों में से सर्वप्रसिद्ध एक पुराण है। इसमें अधिकांश श्री कृष्ण -संबंधी कथाएँ हैं। |
| 6. | दालचीनी | 4. यह एक पेड़ का नाम है। यह दक्षिण भारत में बहुतायत से मिलता है। इस पेड़ की सुगंधित छाल दवा और मसाले के काम में आती है। इसे दारचीनी भी कहते हैं। |
मिलकर करें चयन
(क) पाठ से चुनकर कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं। प्रत्येक वाक्य के सामने दो-दो निष्कर्ष दिए गए हैं — एक सही और एक भ्रामक। अपने समूह में इन पर विचार कीजिए और उपयुक्त निष्कर्ष पर सही का चिह्न लगाइए।
| क्रम | पंक्ति | निष्कर्ष |
| 1. | पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैलकर लहलहा रही है। | लताओं का फैलना सज्जनों की शुभ इच्छाओं की तरह सौम्यता और सुंदरता को दर्शाता है।
सज्जनों की शुभ इच्छाएँ लताओं के समान फैल जाती हैं। |
| 2. | बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानो एक पैर से खड़े तपस्या करते हैं और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं। | वृक्षों की स्थिति साधुओं जैसी है जो हर मौसम को सहने के लिए विवश हैं।
वृक्षों की स्थिति साधुओं जैसी है जो हर मौसम को सहते हुए तपस्या करते हैं। |
| 3. | इन वृक्षों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं। | यहाँ के पक्षी प्रकृति में सुरक्षित अनुभव करते हैं, इसलिए वे निडर होकर कल्लोल करते हैं।
यहाँ के पक्षी नगर से डरकर इस जगह आ गए हैं इसलिए वे कल्लोल करते हैं। |
| 4. | जल यहाँ का अत्यंत शीतल है और मिष्ट भी वैसा ही है मानो चीनी के पने को बरफ में जमाया है। | गंगाजल की ठंडक और मिठास का अनुभव बहुत मनोहारी है।
गंगाजल की शीतलता और मिठास से शक्कर और बरफ बनाई जा सकती है। |
| 5. | एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया। | लेखक ने भोजन इसलिए बनाया क्योंकि गंगा का पानी बहुत गरम था और वह पकाने में सहायक था।
लेखक ने गंगा के समीप बैठकर भोजन किया, जिससे उनकी प्रकृति से निकटता झलकती है। |
| 6. | निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। | लेखक चाहता है कि पत्र को महत्व देकर कहीं स्थान दिया जाए, यानी इसे पढ़ा और सँजोया जाए।
लेखक चाहता है कि पत्र को महत्व देकर प्रकाशित किया जाए। |
उत्तर-
| क्रम | पंक्ति | निष्कर्ष | सही / भ्रामक |
| 1. | पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैलकर लहलहा रही है। | लताओं का फैलना सज्जनों की शुभ इच्छाओं की तरह सौम्यता और सुंदरता को दर्शाता है। | ✔ |
| सज्जनों की शुभ इच्छाएँ लताओं के समान फैल जाती हैं। | भ्रामक | ||
| 2. | बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानो एक पैर से खड़े तपस्या करते हैं और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं। | वृक्षों की स्थिति साधुओं जैसी है जो हर मौसम को सहने के लिए विवश हैं। | भ्रामक |
| वृक्षों की स्थिति साधुओं जैसी है जो हर मौसम को सहते हुए तपस्या करते हैं। | ✔ | ||
| 3. | इन वृक्षों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं। | यहाँ के पक्षी प्रकृति में सुरक्षित अनुभव करते हैं, इसलिए वे निडर होकर कल्लोल करते हैं। | ✔ |
| यहाँ के पक्षी नगर से डरकर इस जगह आ गए हैं इसलिए वे कल्लोल करते हैं। | भ्रामक | ||
| 4. | जल यहाँ का अत्यंत शीतल है और मिष्ट भी वैसा ही है मानो चीनी के पने को बरफ में जमाया है। | गंगाजल की ठंडक और मिठास का अनुभव बहुत मनोहारी है। | ✔ |
| गंगाजल की शीतलता और मिठास से शक्कर और बरफ बनाई जा सकती है। | भ्रामक | ||
| 5. | एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया। | लेखक ने भोजन इसलिए बनाया क्योंकि गंगा का पानी बहुत गरम था और वह पकाने में सहायक था। | भ्रामक |
| लेखक ने गंगा के समीप बैठकर भोजन किया, जिससे उनकी प्रकृति से निकटता झलकती है। | ✔ | ||
| 6. | निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। | लेखक चाहता है कि पत्र को महत्व देकर कहीं स्थान दिया जाए, यानी इसे पढ़ा और सँजोया जाए। | भ्रामक |
| लेखक चाहता है कि पत्र को महत्व देकर प्रकाशित किया जाए। | ✔ |
पंक्तियों पर चर्चा
पाठ से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार अपने समूह में साझा कीजिए और लिखिए।
(क) “यहाँ की कुशा सबसे विलक्षण होती है जिसमें से दालचीनी, जावित्री इत्यादि की अच्छी सुगंध आती है। मानो यह प्रत्यक्ष प्रगट होता है कि यह ऐसी पुण्यभूमि है कि यहाँ की घास भी ऐसी सुगंधमय है।“
उत्तर- लेखक हरिद्वार की भूमि को अत्यंत पवित्र और विशेष मानते हैं। वे यह कहना चाहते हैं कि वहाँ की साधारण चीज़ें भी जैसे कि घांस (कुशा) असाधारण गुणों से भरपूर हैं, जिसमें दालचीनी और जावित्री जैसे मसालों की सुगंध आती है। सुगंधित कुशा प्रतीक है कि यह भूमि न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि प्राकृतिक दृष्टि से भी बहुत समृद्ध और चमत्कारी है। लेखक के अनुसार पवित्र स्थान की पहचान वहाँ की छोटी-छोटी चीज़ों से भी हो जाती है।
(ख) “अहा! इनके जन्म भी धन्य हैं जिनसे अर्थी विमुख जाते ही नहीं। फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़; यहाँ तक कि जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ पूर्ण करते हैं।”
उत्तर- यहाँ लेखक वृक्षों की महानता और उपयोगिता की प्रशंसा कर रहे हैं। वे कहते हैं कि वृक्ष अपने जीवन में हर रूप में मनुष्य को कुछ न कुछ देते हैं, जैसे- फल, फूल, छाया, लकड़ी आदि। यहाँ तक कि मरने के बाद भी वे कोयले और राख के रूप में उपयोगी रहते हैं। लेखक ने वृक्षों की सेवा भावना और त्याग को मानव-जीवन के लिए आदर्श बताया है।
सोच-विचार के लिए
पाठ को पुनः ध्यान से पढ़िए, पता लगाइए और लिखिए।
(क) “और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ…”
लेखक का यह वाक्य क्या दर्शाता है? क्या आपने कभी किसी स्थान को छोड़कर ऐसा अनुभव किया है? कब-कब?
(संकेत—किसी स्थान से लौटने के बाद भी उसी के विषय में सोचते रहना)
उत्तर- लेखक का मतलब है कि भले ही वह शारीरिक रूप से हरिद्वार से लौट आए हैं, लेकिन उनका मन अब भी वहीं है। वहाँ का वातावरण, लोग, शांति और अनुभव उन्हें इतना अच्छा लगा कि वह बार-बार उसे याद करते हैं।
हां, कई बार ऐसा होता है कि जब हम किसी बहुत सुंदर, शांत या प्रिय जगह पर जाते हैं, तो लौटने के बाद भी हम वहीं के बारे में सोचते रहते हैं- जैसे नानी का घर, कोई यात्रा, या बचपन की जगह।
(ख) “पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं। एक पैसे को लाख करके मान लेते हैं।‘’
लेखक का यह कथन आज के समाज में कितना सच है? ‘अब भी ऐसे संतोषी लोग मिलते हैं? अपने विचार उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर– इस वाक्य का मतलब है कि वहाँ के पंडे बहुत ही संतोषी स्वभाव के हैं। वे थोड़ा मिलने पर भी बहुत खुश हो जाते हैं और किसी से ज्यादा माँग नहीं करते।
आज के समय में ऐसे लोग कम मिलते हैं, पर अब भी कुछ लोग ऐसे होते हैं जो ज्यादा लालच नहीं करते।
उदाहरण के लिए, गाँव के बुज़ुर्ग या मंदिरों के कुछ पुजारी थोड़े में ही संतुष्ट रहते हैं।
(ग) “मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। यह स्थान भी उस क्षेत्र में टिकने योग्य ही है।”
आपके विचार से लेखक ने उस स्थान को ‘टिकने योग्य’ क्यों कहा है? उस स्थान में कौन-कौन सी विशेषताएँ होंगी जो उसे ‘टिकने योग्य’ बनाती होंगी?
(संकेत— केवल आराम, सुविधा या कोई और कारण भी।)
उत्तर- लेखक ने उस स्थान को ‘टिकने योग्य’ इसलिए कहा क्योंकि वहाँ उन्हें अच्छा अनुभव मिला होगा, जैसे- शांति, साफ़-सफाई, सुंदर दृश्य, या अच्छा व्यवहार।
ऐसी जगहें मन को शान्ति और आराम देती हैं। वहाँ रहने से मानसिक सुख मिलता है और आत्मा भी प्रसन्न होती है। सिर्फ सुविधा नहीं, शांति, सुंदरता और वहाँ के लोग भी उस जगह को खास बनाते हैं।
(घ) ’’फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़; यहाँ तक कि जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ पूर्ण करते हैं।”
इस वाक्य के माध्यम से आपको वृक्षों के महत्व के बारे में कौन-कौन सी बातें सूझ रही हैं?
उत्तर- इस वाक्य से हमें यह समझ आता है कि वृक्ष मनुष्य के लिए बहुत उपयोगी होते हैं। वे जीवन में हर रूप में कुछ न कुछ देते हैं, जैसे- भोजन, दवा, लकड़ी, छाया, हवा, यहाँ तक कि जलने के बाद भी उनकी राख काम आती है।
इससे हमें यह सीख मिलती है कि हमें वृक्षों का आदर करना चाहिए, उन्हें काटना नहीं चाहिए और जितना हो सके उतने पेड़ लगाने चाहिए।
अनुमान और कल्पना से
(क) ‘’यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है।‘’
कल्पना कीजिए कि आप हरिद्वार में हैं। आप वहाँ क्या-क्या करना चाहेंगे?
उत्तर– अगर मैं हरिद्वार में होता, तो सबसे पहले गंगा स्नान करता। मैं पहाड़ों की सुंदरता को निहारता, सुबह-सुबह आरती देखने जाता और मंदिरों में दर्शन करता। फिर गंगा किनारे बैठकर शांति महसूस करता और बहुत सारी तस्वीरें भी खींचता। हरिद्वार का लड्डू और छोले-पूरी जरूर खाता।
(ख) “जल के छलके पास ही ठंढे-ठंढे आते थे। “
कल्पना कीजिए कि आप गंगा के तट पर हैं और पानी के छींटे आपके मुँह पर आ रहे हैं। अपने अनुभवों को अपनी कल्पना से लिखिए।
उत्तर– जब मैं गंगा के तट पर खड़ा था, तो पानी की ठंडी छींटें मेरे चेहरे पर पड़ रही थीं। वो हवा बहुत ही ताज़ा थी। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था, मानो गंगा माँ मुझे आशीर्वाद दे रही हों। मन में शांति और खुशी का अनुभव हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे सारी थकान दूर हो गई हो।
(ग) ‘’सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।”
यदि पेड़-पौधे सच में मनुष्यों की तरह व्यवहार करने लगें तो क्या होगा?
उत्तर– अगर पेड़-पौधे सच में मनुष्यों की तरह व्यवहार करने लगें, तो वे हमारी बातों को समझेंगे, हमें जवाब देंगे और शायद हमें सिखाएँगे कि कैसे प्रकृति की सेवा करें। वे दुखी होंगे अगर हम उन्हें काटेंगे। हमें उनका और ज़्यादा ध्यान रखना होगा। यह दुनिया और भी सुंदर और भावनात्मक हो जाएगी।
(घ) “यहाँ पर श्री गंगा जी दो धारा हो गई हैं— एक का नाम नील धारा, दूसरी श्री गंगा जी ही के नाम से।”
इस पाठ में ‘गंगा” शब्द के साथ ‘श्री’ और ‘जी’ लगाया गया है। आपके अनुसार उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा?
उत्तर- लेखक ने ‘गंगा’ के साथ ‘श्री’ और ‘जी’ शब्द इसलिए जोड़ा क्योंकि वे गंगा नदी को माँ की तरह मानते हैं। हमारे धर्म और परंपरा में गंगा को पवित्र और पूजनीय माना जाता है। यह सम्मान और श्रद्धा दिखाने का तरीका है।
(ङ) कल्पना कीजिए कि आप हरिद्वार एक श्रवणबाधित या दृष्टिबाधित व्यक्ति के साथ गए हैं। उसकी यात्रा को अच्छा बनाने के लिए कुछ सुझाव दीजिए।
उत्तर– अगर मेरे साथ कोई ऐसा साथी है जिसे सुनाई या दिखाई नहीं देता, तो मैं उसका हाथ पकड़कर उसे सुरक्षित चलने में मदद करूँगा। मैं उसे स्पर्श से चीज़ें महसूस कराऊँगा और उसके कान के पास बोलकर बताऊँगा कि हम कहाँ हैं। अगर वो देख नहीं सकता, तो मैं उसे नदी की ठंडी हवा और पानी के छींटे महसूस कराऊँगा।
अगर वह सुन नहीं सकता, तो मैं लिखकर या इशारों में उसे सब कुछ समझाऊँगा ताकि वह भी यात्रा का आनंद ले सके।
लिखें संवाद
(क) “मेरे संग कल्लू जी मित्र भी परमानंदी थे।”
लेखक और कल्लू जी के बीच हरिद्वार यात्रा पर एक काल्पनिक संवाद लिखिए।
उत्तर-
लेखक और कल्लू जी के बीच संवाद
लेखक: कल्लू जी, हरिद्वार आकर तो मन ही शांत हो गया।
कल्लू जी: हाँ मित्र, सच कहें तो यहाँ की हवा में ही भक्ति घुली हुई लगती है।
लेखक: आपने देखा, गंगा के किनारे बैठना कितना सुखद है!
कल्लू जी: और वो आरती! जैसे स्वर्ग से देवता उतर आए हों।
लेखक: बिल्कुल! और यहाँ के लोग भी कितने सज्जन हैं।
कल्लू जी: हाँ, पंडे भी एक पैसे को लाख समझकर आशीर्वाद दे रहे थे।
लेखक (हँसते हुए): और आपने देखा, हम जिस पेड़ के नीचे बैठे थे, वहाँ कैसी ठंडी हवा आ रही थी!
कल्लू जी: लगता है प्रकृति भी यहाँ भक्तों की सेवा में लगी है।
लेखक: हरिद्वार से जाने का मन ही नहीं करता।
कल्लू जी: हाँ, सच कहूँ, तो मेरा मन यहीं रुकने का कर रहा है।
(ख) “यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है।”
लेखक और प्रकृति के बीच एक काल्पनात्मक संवाद तैयार कीजिए – जैसे पर्वत बोल रहे हों।
उत्तर-
लेखक और पर्वतों के बीच संवाद
लेखक: ओ सुंदर हरे-भरे पर्वतो! तुम्हें देखकर मन आनंदित हो उठता है।
पर्वत: धन्यवाद, यात्री। हम सदियों से यहीं खड़े हैं, गंगा को बहते देखते हुए।
लेखक: तुम कितने शांत और स्थिर लगते हो।
पर्वत: यही तो हमारा धर्म है, सबको छाया देना, शांति देना, और धैर्य सिखाना।
लेखक: क्या तुम्हें कभी थकान नहीं होती?
पर्वत: नहीं, जब भक्तजन आते हैं और हमें निहारते हैं, तब हमें ऊर्जा मिलती है।
लेखक: मैं चाहता हूँ कि मैं भी तुम जैसा धैर्यवान और शांत बनूँ।
पर्वत: तब प्रकृति को अपना मित्र बना लो। वह तुम्हें सब सिखा देगी।
‘है’ और ‘हैं’ का उपयोग
इन वाक्यों में रेखांकित शब्दों के प्रयोग पर ध्यान दीजिए-
- विशेष आश्चर्य का विषय यह है कि यहाँ केवल गंगा जी ही देवता हैं, दूसरा देवता नहीं।
- यों तो वैरागियों ने मठ मंदिर कई बना लिए हैं।
आप जानते ही हैं कि एकवचन संज्ञा शब्दों के साथ ‘है’ का प्रयोग किया जाता है और बहुवचन संज्ञा शब्दों के साथ ‘हैं’ का। सोचिए, ‘गंगा’ शब्द एकवचन है, फिर भी इसके साथ ‘ हैं ‘ क्यों लिखा गया है?
इसका कारण यह है कि कभी-कभी हम आदर-सम्मान प्रदर्शित करने के लिए एकवचन संज्ञा शब्दों को भी बहुवचन के रूप में प्रयोग करते हैं। इसे ‘आदरार्थ बहुवचन’ प्रयोग कहते हैं। उदाहरण के लिए—
- मेरे पिता जी सो रहे हैं।
- भारत के प्रधानमंत्री भाषण दे रहे हैं।

अब ‘आदरार्थ बहुवचन’ को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त शब्दों से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए—1. प्रधानाचार्य जी विद्यालय में नहीं _____________________ वे अभी सभा में उपस्थित
2. माता – पिता हमारे जीवन के मार्गदर्शक होते ______________, हमें उनका कहना मानना चाहिए।
3. मेरी बहन बाजार जा रही ________________ वहाँ से किताबें ले आएगी।
4. बाहर फेरीवाला ___________________ _____________________। _______________बुला लाओ।
5. डाकिया जी आए ________________ । उन्हें भी बुला लाओ।
6. आप तो बहुत दिन बाद _________________ __________________________ का स्वागत है।
7. डॉक्टर साहब बहुत विद्वान ________________, _______________________ से परामर्श लेना चाहिए।
8. आपके माता-पिता कहाँ ___________________? क्या मैं __________________ से मिल सकता हूँ।
9. ये हमारे हिंदी के अध्यापक ______________, हम ____________________________ से बहुत-कुछ सीखते-समझते हैं।
10. बंदर पेड़ पर उछल-कूद कर ________________________________________।
उत्तर-
1. प्रधानाचार्य जी विद्यालय में नहीं हैं, वे अभी सभा में उपस्थित हैं।
2. माता – पिता हमारे जीवन के मार्गदर्शक होते हैं, हमें उनका कहना मानना चाहिए।
3. मेरी बहन बाजार जा रही है, वहाँ से किताबें ले आएगी।
4. बाहर फेरीवाला है। उसे बुला लाओ।
5. डाकिया जी आए हैं। उन्हें भी बुला लाओ।
6. आप तो बहुत दिन बाद आए हैं, आपका स्वागत है।
7. डॉक्टर साहब बहुत विद्वान हैं, उनसे परामर्श लेना चाहिए।
8. आपके माता-पिता कहाँ हैं? क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ।
9. ये हमारे हिंदी के अध्यापक हैं, हम उनसे बहुत-कुछ सीखते-समझते हैं।
10. बंदर पेड़ पर उछल-कूद कर रहा है।
भावों की पहचान
| प्रेम, | संतोष, | भक्ति, | श्रद्धा, | वैराग्य, | आश्चर्य, |
| करुणा, | हास्य, | शांति, | परोपकार, | दया, | दुख |
नीचे कुछ पंक्तियाँ दी गई हैं। सोचिए कि इनमें कौन-सा भाव प्रकट हो रहा है? पहचानिए और चुनकर लिखिए—
1. उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था।
___________________________________________________________________________________
2. चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था।
___________________________________________________________________________________
3. पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं।
___________________________________________________________________________________
4. हर तरफ पवित्रता और प्रसन्नता बिखरी हुई थी।
___________________________________________________________________________________
5. सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।
___________________________________________________________________________________
उत्तर-
1. उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था।
संतोष, शांति
2. चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था।
वैराग्य और भक्ति
3. पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं।
संतोष
4. हर तरफ पवित्रता और प्रसन्नता बिखरी हुई थी।
शांति, प्रसन्नता
5. सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।
परोपकार
काल की पहचान
“यहाँ हरि की पैड़ी नामक एक पक्का घाट है और यहीं स्नान भी होता है।”
आप जानते ही होंगे कि काल के तीन भेद होते हैं— भूतकाल, वर्तमान काल और भविष्य काल। परस्पर चर्चा करके पता लगाइए कि ऊपर दिए गए वाक्य में कौन-सा काल प्रदर्शित हो रहा है? सही पहचाना, यह वाक्य वर्तमान काल को प्रदर्शित कर रहा है।
(क) नीचे दी गई पाठ की इन पंक्तियों को पढ़कर बताइए, इनमें क्रिया कौन-से काल को प्रदर्शित कर रही है? (भूतकाल/वर्तमान/भविष्य)
1. निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। _____________________________
2. यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है। _____________________________
3. वृक्ष ऐसे हैं कि पत्थर मारने से फल देते हैं। _____________________________
4. चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था। _____________________________
5. मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। _____________________________
उत्तर-
1. निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। भविष्य काल
2. यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है। वर्तमान काल
3. वृक्ष ऐसे हैं कि पत्थर मारने से फल देते हैं। वर्तमान काल
4. चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था। भूतकाल
5. मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। भूतकाल
(ख) अब इन वाक्यों के काल को अन्य कालों में बदलकर लिखिए और नए वाक्य बनाइए।
| भूतकाल | वर्तमान काल | भविष्य काल |
| निश्चय है कि आपने इस पत्र को स्थानदान दिया। | निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान देते हैं। | निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा। |
| यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी थी। | यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है। | वह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी होगी। |
| वृक्ष ऐसे हैं कि पत्थर मारने से फल देते थे। | वृक्ष ऐसे हैं कि पत्थर मारने से फल देते हैं। | वृक्ष ऐसे हैं कि पत्थर मारने से फल देंगे। |
| चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था। | चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता है। | चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होगा। |
| मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। | मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका हूँ। | मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका रहूँगा। |
पत्र की रचना
“और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ …”
इस पंक्ति में लेखक संपादक महोदय को संबोधित करके अपनी बात लिख रहे हैं। आप जानते ही होंगे कि पत्र जिस व्यक्ति के लिए लिखा जाता है, उसे संबोधित किया जाता है। पत्र के अंत में अपना नाम लिखा जाता है ताकि पत्र पाने वाले को पता चल सके कि पत्र किसने लिखा है।
नीचे इस पत्र की कुछ विशेषताएँ दी गई हैं। अपने समूह के साथ मिलकर इन विशेषताओं से जुड़े वाक्यों से इनका मिलान कीजिए—
| क्रम | पत्र की विशेषताएँ | पत्र से उदाहरण |
| 1. | व्यक्तिपरकता — पत्र लेखन में लेखक के विचार, अनुभव और भावनाएँ प्रमुख होते हैं। | “ग्रहण में बड़े आनंदपूर्वक स्नान किया… |
| 2. | संवादात्मकता— पत्र संवाद का रूप है; पाठक से सीधा संवाद होता है। | श्रीमान कविवचन सुधा संपादक महामहिम मित्रवरेषु! |
| 3. | स्वाभाविक शैली— भाषा कृत्रिम नहीं होती; | भावनाओं के अनुरूप होती है। | आपका मित्र — यात्री |
| 4. | व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन— जहाँ लेखक अपने वास्तविक अनुभव को साझा करता है | मुझे हरिद्वार का समाचार लिखने में बड़ा आनंद होता है… |
| 5. | अभिवादन या संबोधन— पत्र का आरंभ, जिसमें संबोधित व्यक्ति को आदरपूर्वक संबोधित किया जाता है। | हरिद्वार की प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिकता, साधु-संन्यासियों का जीवन, नदी, पर्वत, जल, गंगा स्नान आदि का अत्यंत विस्तार से वर्णन।
जैसे— ”यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से धिरी है….” |
| 6. | हस्ताक्षर— लेखक अपने नाम या संबंध | को समाप्त करता है। | और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ… निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान करता दीजिएगा। |
| 7. | उपसंहार और निवेदन— लेखक पत्र समाप्त | करता है और अपनी इच्छा या निवेदन प्रकट करता है। | एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके… |
| 8. | मुख्य विषय-वस्तु | और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ…. |
आप एक विशेषता को एक से अधिक वाक्यों से भी जोड़ सकते हैं।
उत्तर-
| क्रम | पत्र की विशेषताएँ | पत्र से उदाहरण |
| 1. | व्यक्तिपरकता — पत्र लेखन में लेखक के विचार, अनुभव और भावनाएँ प्रमुख होते हैं। | “ग्रहण में बड़े आनंदपूर्वक स्नान किया…
मुझे हरिद्वार का समाचार लिखने में बड़ा आनंद होता है… |
| 2. | संवादात्मकता— पत्र संवाद का रूप है; पाठक से सीधा संवाद होता है। | एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके… |
| 3. | स्वाभाविक शैली— भाषा कृत्रिम नहीं होती; | भावनाओं के अनुरूप होती है। | और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ…. |
| 4. | व्यक्तिगत अनुभवों का वर्णन— जहाँ लेखक अपने वास्तविक अनुभव को साझा करता है | एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके… |
| 5. | अभिवादन या संबोधन— पत्र का आरंभ, जिसमें संबोधित व्यक्ति को आदरपूर्वक संबोधित किया जाता है। | श्रीमान कविवचन सुधा संपादक महामहिम मित्रवरेषु! |
| 6. | हस्ताक्षर— लेखक अपने नाम या संबंध | को समाप्त करता है। | आपका मित्र — यात्री |
| 7. | उपसंहार और निवेदन— लेखक पत्र समाप्त | करता है और अपनी इच्छा या निवेदन प्रकट करता है। | और संपादक महाशय, मैं चित्त से तो अब तक वहीं निवास करता हूँ… निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान करता दीजिएगा। |
| 8. | मुख्य विषय-वस्तु | हरिद्वार की प्राकृतिक सुंदरता, धार्मिकता, साधु-संन्यासियों का जीवन, नदी, पर्वत, जल, गंगा स्नान आदि का अत्यंत विस्तार से वर्णन।
जैसे— ”यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से धिरी है….” |
पत्र
आपने जो यात्रा-वर्णन पढ़ा है, इसे भारतेंदु हरिश्चंद्र ने एक संपादक को पत्र के रूप में लिखकर भेजा था। आप भी अपनी किसी यात्रा के विषय में अपने किसी परिचित को पत्र लिखकर बताइए।
गाँधी नगर, लखनऊ
दिनाँक: 07 जुलाई 2025
प्रिय चाचा जी,
सादर नमस्कार।
आशा है कि आप कुशलपूर्वक होंगे। आज मैं आपको अपनी हाल की ऋषिकेश यात्रा के बारे में लिख रहा हूँ, जो मेरे जीवन की सबसे सुंदर यात्राओं में से एक रही।
मैं अपने माता-पिता के साथ पिछली छुट्टियों में ऋषिकेश गया। वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता देखकर मन प्रसन्न हो गया। तीनों ओर हरे-भरे पहाड़, बीच में शांत और पवित्र गंगा नदी है। हमने लक्ष्मण झूला देखा, त्रिवेणी घाट पर गंगा आरती देखी, और नीलकंठ महादेव मंदिर के दर्शन किए।
गंगा का जल इतना ठंडा और निर्मल था कि उसमें स्नान करके जैसे सारी थकान दूर हो गई। वहाँ के साधु-संत, शांत वातावरण और पक्षियों की मधुर ध्वनि मन को बहुत भा गई। सबसे अच्छा अनुभव त्रिवेणी घाट की संध्या आरती रही। दीपों की रौशनी और भजनों की ध्वनि ने मन को पूरी तरह भक्ति-भाव में डुबो दिया।
यह यात्रा न केवल आनंददायक रही, बल्कि आत्मिक शांति देने वाली भी थी। मैं चाहता हूँ कि अगली बार आप भी हमारे साथ चलें।
आपका
भतीजा
राहुल
शब्द से जुड़े शब्द
नीचे दिए गए स्थानों में ‘हरिद्वार से जुड़े शब्द अपने मन से या पाठ से चुनकर लिखिए-

उत्तर-

लेखन के अनोखे तरीके
(क) ‘हरिद्वार’ पाठ में लेखक ने हरिद्वार के अपने अनुभवों को बहुत ही साहित्यिक और कल्पनाशील भाषा में प्रस्तुत किया है जिसमें कई स्थानों पर उन्होंने तुलनात्मक वाक्यों के माध्यम से दृश्यों का वर्णन किया है। जैसे— हरी-भरी लताओं की तुलना सज्जनों से इस प्रकार की गई है—
“पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैलकर लहलहा रही है।”
नीचे कुछ तुलनात्मक वाक्य दिए गए हैं। पाठ में ढूँढ़िए कि इन तुलनात्मक वाक्यों को लेखक ने किस प्रकार विशिष्ट तरीके से लिखा है यानी विशिष्टता प्रदान की है?
1. वृक्षों की तुलना साधुओं से की गई है।
2. गंगाजल की मिठास की तुलना चीनी से की गई है।
3. हरियाली की तुलना गलीचे से की गई है।
4. नदी की धारा की तुलना राजा भगीरथ के यश (कीर्ति) से की गई है।
उत्तर-
| तुलनात्मक वाक्य | पाठ में प्रयुक्त वाक्य | स्पष्टीकरण |
| 1. वृक्षों की तुलना साधुओं से की गई है। | जिन पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैलकर लहलहा रही है और बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानो एक पैर से खड़े तपस्या करते हैं और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं। | इन पहाड़ों पर तरह-तरह की हरी-भरी लताएँ ऐसे लहरा रही हैं जैसे सज्जन लोगों की शुभ इच्छाएँ। वहाँ के पेड़ इतने विशाल हैं कि वे ऐसे लगते हैं मानो एक पैर पर खड़े होकर तपस्या कर रहे हों, और जैसे साधु लोग धूप, ओस और बारिश सहन करते हैं, वैसे ही ये पेड़ भी मौसम की मार चुपचाप झेलते हैं। |
| 2. गंगाजल की मिठास की तुलना चीनी से की गई है। | जल यहाँ का अत्यंत शीतल है और मिष्ट भी वैसा ही है मानो चीनी के पने को बरफ में जमाया है। | यहाँ का पानी बहुत ठंडा और मीठा है, जैसे चीनी का टुकड़ा बर्फ में जमाया गया हो। |
| 3. हरियाली की तुलना गलीचे से की गई है। | वर्षा के कारण सब ओर हरियाली ही दिखाई पड़ती थी मानो हरे गलीचा की जात्रियों के विश्राम के हेतु बिछायत बिछी थी। | वर्षा के कारण चारों ओर इतनी हरियाली है कि ऐसा लगता है जैसे हरियाले गलीचे (कालीन) को ज़मीन पर तीर्थयात्रियों के आराम के लिए बिछा दिया गया हो। |
| 4. नदी की धारा की तुलना राजा भगीरथ के यश (कीर्ति) से की गई है। | एक ओर त्रिभुवन पावनी श्री गंगा जी की पवित्र धारा बहती है जो राजा भगीरथ के उज्ज्वल कीर्ति की लता-सी दिखाई देती है। | गंगा की पवित्र धारा बह रही है, जो राजा भगीरथ की महानता की एक चमकदार लता जैसी प्रतीत होती है। |
(ख) “मैं उस पुण्य भूमि का वर्णन करता हूँ जहाँ प्रवेश करने ही से मन शुद्ध हो जाता है।”
“पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं। एक पैसे को लाख करके मान लेते हैं।”
उपर्युक्त पंक्तियों को ध्यान से देखिए, ये आज की हिंदी की तरह नहीं लिखी गई हैं। इसे लेखक ने न केवल अपनी शैली में लिखा है, अपितु इसमें प्राचीन हिंदी भाषा की छवि भी दिखाई देती है। नीचे कुछ पंक्तियाँ दी गई हैं आप इन्हें आज की हिंदी में लिखिए।
- “इन वृक्षों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं।”
- “वर्षा के कारण सब ओर हरियाली ही दृष्टि पड़ती थी मानो हरे गलीचा की जात्रियों के विश्राम के हेतु बिछायत बिछी थी।”
- “यह ऐसा निर्मल तीर्थ है कि इच्छा क्रोध की खानि जो मनुष्य हैं सो वहाँ रहते ही नहीं।”
- “मेरा तो चित्त वहाँ जाते ही ऐसा प्रसन्न और निर्मल हुआ कि वर्णन के बाहर है।”
- “यहाँ रात्रि को ग्रहण हुआ और हम लोगों ने ग्रहण में बड़े आनंदपूर्वक स्नान किया और दिन में श्री भागवत का पारायण भी किया।”
- “उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था।”
- “निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा।”
उत्तर-
| प्राचीन हिंदी | आधुनिक हिंदी |
| “इन वृक्षों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं।” | इन पेड़ों पर कई रंग-बिरंगे पक्षी चहचहाते हैं और शहरके शिकारियों से बेखौफ होकर खुशी से गाते हैं। |
| “वर्षा के कारण सब ओर हरियाली ही दृष्टि पड़ती थी मानो हरे गलीचा की जात्रियों के विश्राम के हेतु बिछायत बिछी थी।” | बारिश के कारण चारों तरफ हरियाली ही दिख रही थी, जैसे यात्रियों के आराम के लिए हरे गलीचे बिछा दिए गए हों। |
| “यह ऐसा निर्मल तीर्थ है कि इच्छा क्रोध की खानि जो मनुष्य हैं सो वहाँ रहते ही नहीं।” | यह इतना पवित्र तीर्थ है कि जो लोग लालच और गुस्से से भरे होते हैं, वे वहाँ टिक ही नहीं सकते। |
| “मेरा तो चित्त वहाँ जाते ही ऐसा प्रसन्न और निर्मल हुआ कि वर्णन के बाहर है।” | वहाँ जाते ही मेरा मन इतना खुश और शांत हो गया कि उसे शब्दों में बताना मुश्किल है। |
| “यहाँ रात्रि को ग्रहण हुआ और हम लोगों ने ग्रहण में बड़े आनंदपूर्वक स्नान किया और दिन में श्री भागवत का पारायण भी किया।” | यहाँ रात को ग्रहण पड़ा और हमने खुशी-खुशी स्नान किया, और दिन में श्री भागवत की कथा का पाठ भी किया। |
| “उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था।” | उस समय पत्थर पर बैठकर किया गया भोजन सोने की थाली में खाने से भी ज्यादा सुखद था। |
| “निश्चय है कि आप इस पत्र को स्थानदान दीजिएगा।” | कृपया इस पत्र को अपनी पत्रिका में जगह दें। |
(ग) इस रचना में हरिश्चंद्र जी ने कहीं-कहीं प्राचीन वर्तनी का प्रयोग किया है, जैसे— शिखर के लिए शिषर, यात्रियों के लिए जात्रियों। ऐसे शब्दों की सूची बनाइए। आप इन शब्दों को कैसे लिखते हैं? कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
शिषर – शिखर
जात्रियों – यात्रियों
बिछायत – बिछौना
मनोर्थ – मनोरथ
पाठ से आगे
आपकी बात
1. “मैंने गंगा जी के तट पर रसोई करके… भोजन किया। “
क्या आपने कभी खुले वातावरण में या प्रकृति के पास भोजन किया है? वह अनुभव घर के खाने से कैसे भिन्न था?
उत्तर- हाँ, मैंने एक बार अपने परिवार के साथ पहाड़ी यात्रा के दौरान खुले वातावरण में खाना खाया था। हमने जंगल के किनारे बैठकर टिफिन खोला और भोजन किया। वहाँ की ठंडी हवा, पक्षियों की चहचहाहट और हरियाली ने उस भोजन को और भी स्वादिष्ट बना दिया। घर में तो टीवी चलता रहता है या शोर होता है, लेकिन वहाँ बस शांति थी। यह अनुभव घर के भोजन से बिल्कुल अलग और बहुत खास था।
2. “उस समय पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था।”
आपके जीवन में ऐसा कोई क्षण आया, जब किसी सामान्य-सी वस्तु ने आपको गहरा सुख दिया हो? उसके बारे में बताइए।
उत्तर- एक बार मैं बहुत भूखा था और मेरी माँ ने साधारण दाल-चावल बना दिए थे। वह खाना इतना स्वादिष्ट लगा कि जैसे कोई शाही भोज हो। उस दिन समझ में आया कि जब मन संतुष्ट होता है, तब छोटी-सी चीज भी बहुत बड़ी खुशी दे सकती है। खाने का स्वाद सिर्फ चीज़ों में नहीं, भावनाओं में भी होता है।
3. “हर तरफ पवित्रता और प्रसन्नता बिखरी हुई थी।”
आपको किस स्थान पर पवित्रता और प्रसन्नता का अनुभव होता है? क्या कोई ऐसा स्थान है जहाँ जाते ही मन शांत हो गया हो? उस स्थान की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं?
उत्तर– मुझे एक बार वृंदावन जाने का मौका मिला। वहाँ के मंदिरों, भजनों की ध्वनि और श्रद्धालु लोगों को देखकर मुझे सच में पवित्रता और प्रसन्नता का अनुभव हुआ। जैसे ही वहाँ पहुँचा, मन एकदम शांत हो गया। वहाँ की हवा में ही भक्ति और शांति थी। सबसे अच्छी बात यह थी कि वहाँ लोग एक-दूसरे के लिए नम्र और सहयोगी थे।
4. पाठ में वर्णित है, यहाँ के वृक्ष “फल, फूल, गंध… जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ पूर्ण करते हैं।”
क्या आपके जीवन में कोई पेड़, फूल या प्राकृतिक वस्तु है जिससे आप विशेष जुड़ाव महसूस करते हैं?
उत्तर– मेरे घर के पास एक आम का पेड़ है, जो बचपन से मेरे साथ जैसे बड़ा हुआ है। गर्मियों में उसकी छांव में बैठना, झूला डालना और पके आम खाना, ये सब मेरे दिल से जुड़े हुए हैं। उस पेड़ से मुझे सिर्फ फल ही नहीं, बचपन की ढेर सारी यादें भी मिली हैं। आज भी जब उस पेड़ के नीचे बैठता हूँ, तो बहुत सुकून मिलता है।
प्रकृति का सौंदर्य और संरक्षण
“यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है….”
आपने पत्र में पढ़ा कि हरिद्वार का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है। इस सौंदर्य को बनाए रखने में प्रत्येक मानव की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस विषय में अपने समूह में चर्चा कीजिए। इसके बाद अपने समूह के साथ मिलकर “तीर्थ ही नहीं, पृथ्वी भी पावन हो!” विषय पर जन-जागरूकता पोस्टर बनाइए।
उत्तर- हमने हरिद्वार का प्राकृतिक सौंदर्य, बढ़ता प्रदूषण, “हरिद्वार स्वच्छ अभियान” जैसी योजनाओं पर चर्चा की।
चर्चा में यह निष्कर्ष निकला कि हरिद्वार का प्राकृतिक सौंदर्य नदियों, पर्वतों, हरे-भरे वृक्षों और स्वच्छ वातावरण के कारण अद्भुत है। इसे बनाए रखने के लिए हमें स्वच्छता का ध्यान रखना चाहिए, गंगा नदी को प्रदूषित होने से बचाना चाहिए, प्लास्टिक का प्रयोग बंद करना चाहिए और अधिक से अधिक पेड़ लगाने चाहिए। साथ ही पर्यटकों को भी जागरूक किया जाना चाहिए कि वे पर्यावरण की रक्षा में योगदान दें।
“तीर्थ ही नहीं, पृथ्वी भी पावन हो!” विषय पर जन-जागरूकता पोस्टर

स्वास्थ्य और योग
“चित्त में बारंबार ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का उदय होता था।”
अनेक लोग आज भी मन की शांति, स्वास्थ्य – लाभ और भक्ति के लिए तीर्थ और पर्वतीय स्थानों की यात्रा करते हैं। मन की शांति और स्वास्थ्य के लिए हमारे देश में हजारों वर्षों से योग भी किया जाता रहा है।
(क) 5 मिनट ध्यान लगाकर या मौन बैठकर अपने आस-पास की ध्वनियों को सुनिए, अपनी श्वास पर ध्यान दीजिए तथा ध्यान को केंद्रित करने का प्रयास कीजिए। इस अनुभव के विषय में एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर- जब मैंने पाँच मिनट मौन होकर ध्यान लगाया, तो शुरुआत में मन इधर-उधर भटकता रहा। लेकिन धीरे-धीरे मैंने अपनी साँसों पर ध्यान केंद्रित किया। आस-पास की हल्की आवाज़ें, जैसे- पंछियों की चहचहाहट, पंखे की आवाज़ और दूर से आती बातों की गूँज, धीरे-धीरे साफ़ सुनाई देने लगीं। उस क्षण मुझे बहुत शांति महसूस हुई। मन शांत हुआ और एक तरह की ताजगी का अनुभव हुआ। ऐसा लगा जैसे मैं प्रकृति से जुड़ गया हूँ और मेरे भीतर एक नया सुकून आ गया हो।
(ख) अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में अपने विद्यालय के कार्यक्रमों को बताने के लिए एक ‘सूचना’ लिखिए जिसे सूचना-पट पर लगाया जा सके।
उत्तर-
सूचना
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस कार्यक्रम
सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि हमारे विद्यालय में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा।
इस अवसर पर निम्नलिखित कार्यक्रम आयोजित किए जाएँगे:
सामूहिक योग अभ्यास
ध्यान व प्राणायाम सत्र
योग पर भाषण और पोस्टर प्रतियोगिता
योग से स्वास्थ्य लाभ पर प्रदर्शनी
समय- प्रातः 7:00 बजे से 10:00 बजे तक
स्थान– विद्यालय का खेल मैदान
सभी छात्र-छात्राएँ निर्धारित समय पर योग वेशभूषा में उपस्थित हों।
विद्यालय प्रशासन
सज्जन वृक्ष
“सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं।”
आप जानते ही हैं कि पेड़-पौधे हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं। किन्तु हमारे ही कार्यों के कारण वे कम होते जा रहे हैं आइए, पेड़-पौधों को अपना मित्र बनाएँ।
(क) एक पौधा लगाइए और उसकी देखभाल कीजिए ताकि वह कुछ वर्षों में बड़ा पेड़ बन सके। उसे एक नाम दीजिए और उसका मित्र बनिए।
उत्तर– मैंने एक अमरूद का पौधा लगाया। उसका नाम आनंद है। वह मेरा मित्र बन चुका है। मैं उसकी देखभाल कर रहा हूँ।
(ख) उसके बारे में अपनी दैनंदिनी में नियमित रूप से लिखिए।
उत्तर-
पौधे के बारे में दैनंदिनी लेखन
दिनाँक- 5 अगस्त 2025
पौधे का नाम- आनंद
प्रकार- अमरूद का पौधा
आज मैंने अपने आँगन में अमरूद का एक छोटा पौधा लगाया और उसका नाम “आनंद” रखा। यह नाम इसलिए चुना क्योंकि मुझे पेड़-पौधों के साथ रहकर आनंद की अनुभूति होती है। मैंने उसे अच्छे गड्ढे में गोबर की खाद डालकर लगाया और पानी भी दिया।
दिनाँक: 6 अगस्त 2025
आज “आनंद” को पानी दिया। वह बहुत अच्छा है। मैंने उसके पास एक छोटी सी लकड़ी बाँधी ताकि हवा से हिले नहीं। उसके पत्ते हरे और ताजे दिख रहे हैं।
दिनाँक: 8 अगस्त 2025
आज मौसम अच्छा था। “आनंद” को थोड़ी धूप और थोड़ी फुहारें मिलीं। मैंने उसके पास की घास हटाई ताकि वह खुलकर साँस ले सके।
दिनाँक: 12 अगस्त 2025
आज “आनंद” के नए पत्ते निकलते दिखे। मुझे देखकर बहुत खुशी हुई। मैंने उसके पास बैठकर कुछ समय बिताया, जैसे अपने किसी अच्छे मित्र के पास बैठते हैं।
दिनाँक: 15 अगस्त 2025
स्वतंत्रता दिवस पर “आनंद” के पास तिरंगा झंडा लगाया और सोचा कि जैसे देश को आज़ादी मिली, वैसे ही पेड़ लगाकर प्रकृति को प्रदूषण से आज़ाद किया जा सकता है।
इस तरह मैं रोज़ उसका ध्यान रखता हूँ, और अब “आनंद” सिर्फ एक पौधा नहीं, मेरा सच्चा मित्र बन गया है।
अपने शब्द
“शीतल वायु… स्पर्श ही से पावन करता हुआ संचार करता है।”
आइए, एक रोचक गतिविधि करते हैं। ‘शीतल’ शब्द को केंद्र में रखिए और उसके चारों ओर ये चार बातें
लिखिए-

अब इसी प्रकार आपके समूह का प्रत्येक सदस्य इस पत्र से एक-एक शब्द चुनकर उसके लिए ऐसा ही शब्द-चित्र बनाए।
उत्तर-

यात्रा के व्यय की गणना
इस पत्र में आपने हरिद्वार की एक यात्रा का वर्णन पढ़ा है। मान लीजिए कि आपको अपने मित्रों या अभिभावकों के साथ अपनी रुचि के किसी स्थान की यात्रा करनी है। उस स्थान को ध्यान में रखते हुए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए—
(क) मान लीजिए कि यात्रा के लिए आपको ₹1000 दिए गए हैं। यात्रा, खाना आदि सब मिलाकर एक व्यय विवरण बनाइए।
उत्तर-
| क्र.सं. | खर्च का नाम | राशि (₹ में) |
| 1. | बस यात्रा (आना-जाना) | 300 |
| 2. | नाश्ता और दोपहर का खाना | 250 |
| 3. | प्रवेश शुल्क (झील/पार्क) | 100 |
| 4. | जलपान व पेय सामग्री | 100 |
| 5. | स्मृति चिह्न (स्मॉल गिफ्ट) | 150 |
| 6. | आकस्मिक खर्च | 100 |
| कुल खर्च | 1000/- |
(ख) मान लीजिए कि आप इस यात्रा में एक छोटी वस्तु (स्मृति चिह्न) खरीदना चाहते हैं। आप क्या खरीदेंगे और क्यों?
(संकेत – सोचिए, क्या वह आवश्यक है? बजट कैसे संभालेंगे?)
उत्तर- मैं इस यात्रा से एक गंगा माँ की फोटो खरीदूँगा। यह स्मृति चिह्न छोटा, सस्ता और उस जगह से जुड़ा होगा। इससे मुझे हमेशा इस यात्रा की याद बनी रहेगी। यह मेरे बजट में भी आसानी से आ जाएगा और मैं इसे अपने घर के मंदिर में रख दूँगा।
यात्रा सबके लिए
(क) कल्पना कीजिए कि कुछ मित्रों का समूह एक यात्रा पर जा रहा है। आप एक मार्गदर्शक या टूरिस्ट गाइड हैं। आप इन सबकी यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे ?

उपर्युक्त चित्र में सबकी अलग-अलग आवश्यकताएँ हो सकती हैं। इन्हें ध्यान में रखते हुए सोचिए कि वहाँ पहुँचने, घूमने, भोजन आदि में आप कैसे सहायता करेंगे?
उत्तर- यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए ध्यान देने योग्य बातें –
- सभी यात्रियों की ज़रूरतों को जानना (जैसे- वृद्ध, बच्चे, दिव्यांग आदि)।
- आरामदायक वाहन और रुकने की जगह की व्यवस्था।
- समय पर भोजन और पानी उपलब्ध कराना।
- प्राथमिक चिकित्सा की सुविधा रखना।
- स्थानों की जानकारी और दिशा निर्देश देना।
(ख) अपने किसी मित्र के साथ बिना बोले संवाद कीजिए— संकेतों से। अब सोचिए कि यात्रा में श्रवणबाधित व्यक्ति के लिए क्या-क्या आवश्यक होगा?
उत्तर– श्रवणबाधित व्यक्ति के लिए ज़रूरी बातें-
- संकेतों (हाथ के इशारे, चित्र, कार्ड) से संवाद करना।
- लिखित जानकारी और मार्गदर्शन देना।
- उनके लिए विशेष ध्यान और सहयोगी साथी की व्यवस्था।
(ग) यात्रा करते हुए ऐतिहासिक धरोहरों या भवनों की सुरक्षा के लिए आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगे?
उत्तर– ऐतिहासिक धरोहरों की सुरक्षा के लिए-
- स्मारकों को छूने या नुकसान पहुँचाने से बचना।
- कूड़ा-कचरा न फैलाना।
- वहाँ के नियमों और निर्देशों का पालन करना।
- दूसरों को भी जागरूक करना।
आज की पहेली
पाठ में से शब्द खोजिए और नीचे दिए गए रिक्त स्थानों में लिखिए—
1. एक मसाले का नाम _________________________________
2. कपास से जुड़ा एक शब्द _________________________________
3. जहाँ स्नान होता है _________________________________
4. वृक्ष के किसी अंग का नाम _________________________________
5. एक नगर या तीर्थ का नाम _________________________________
6. व्यापार से जुड़ा स्थान _________________________________
7. एक नदी का नाम _________________________________
8. एक पर्वत का नाम _________________________________
9. एक धार्मिक ग्रंथ का नाम _________________________________
उत्तर-
पाठ में से शब्द खोजिए और नीचे दिए गए रिक्त स्थानों में लिखिए—
1. एक मसाले का नाम दालचीनी
2. कपास से जुड़ा एक शब्द जनेऊ
3. जहाँ स्नान होता है हरि की पैड़ी
4. वृक्ष के किसी अंग का नाम पत्ते
5. एक नगर या तीर्थ का नाम हरिद्वार
6. व्यापार से जुड़ा स्थान दुकानें
7. एक नदी का नाम गंगा
8. एक पर्वत का नाम विल्वपर्वत
9. एक धार्मिक ग्रंथ का नाम श्री भागवत
झरोखे से
भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा लिखे एक और पत्र का एक अंश नीचे दिया गया है। इसे पढ़िए और आपस में विचार कीजिए।
हरिद्वार के मार्ग में
हरिद्वार के मार्ग में अनेक प्रकार के वृक्ष और पक्षी देखने में आए। एक पीले रंग का पक्षी छोटा बहुत मनोहर देखा गया। बया एक छोटी चिड़िया है उसके घोंसले बहुत मिले। ये घोंसले सूखे बबूल काँटे के वृक्ष में हैं और एक-एक डाल में लड़ी की भाँति बीस- बीस, तीस-तीस लटकते हैं। इन पक्षियों की शिल्पविद्या तो प्रसिद्ध ही है, लिखने का कुछ काम नहीं है। इसी से इनका सब चातुर्य प्रगट है कि सब वृक्ष छोड़ के काँटे के वृक्ष में घर बनाया है। इसके आगे ज्वालापुर और कनखल और हरिद्वार हैं, जिसका वृत्तांत अगले नंबरों में लिखूँगा।
उत्तर-
विचार- भारतेंदु हरिश्चंद्र हरिद्वार की यात्रा के मार्ग का सुंदर चित्रण करते हैं। वे बताते हैं कि रास्ते में अनेक प्रकार के वृक्ष और पक्षी दिखाई दिए। विशेष रूप से ‘बया’ पक्षी के सुंदर और कलात्मक घोंसलों का उल्लेख है, जो काँटेदार बबूल के वृक्षों पर लटकते हैं। यह पक्षियों की शिल्पकला और चातुर्य को बताता है। अंत में वे ज्वालापुर, कनखल और हरिद्वार के बारे में आगे लिखने की बात करते हैं।
खोजबीन के लिए
भारतेंदु हरिश्चंद्र का एक प्रसिद्ध नाटक है— अंधेर नगरी। इसे पुस्तकालय या इंटरनेट से ढूँढ़कर पढ़िए और अपने
सहपाठियों के साथ चर्चा कीजिए।
Class 8 Hindi Haridwar– Extract Based Questions (गद्यांश पर आधारित प्रश्न)
1
श्रीमान कविवचन सुधा संपादक महामहिम मित्रवरेषु !
मुझे हरिद्वार का समाचार लिखने में बड़ा आनंद होता है कि मैं उस पुण्य भूमि का वर्णन करता हूँ जहाँ प्रवेश करने ही से मन शुद्ध हो जाता है। यह भूमि तीन ओर सुंदर हरे-हरे पर्वतों से घिरी है जिन पर्वतों पर अनेक प्रकार की वल्ली हरी-भरी सज्जनों के शुभ मनोरथों की भाँति फैलकर लहलहा रही है और बड़े-बड़े वृक्ष भी ऐसे खड़े हैं मानो एक पैर से खड़े तपस्या करते हैं और साधुओं की भाँति घाम, ओस और वर्षा अपने ऊपर सहते हैं।
अहा! इनके जन्म भी धन्य हैं जिनसे अर्थी विमुख जाते ही नहीं। फल, फूल, गंध, छाया, पत्ते, छाल, बीज, लकड़ी और जड़; यहाँ तक कि जले पर भी कोयले और राख से लोगों का मनोर्थ पूर्ण करते हैं।
सज्जन ऐसे कि पत्थर मारने से फल देते हैं। इन वृक्षों पर अनेक रंग के पक्षी चहचहाते हैं और नगर के दुष्ट बधिकों से निडर होकर कल्लोल करते हैं। वर्षा के कारण सब ओर हरियाली ही दिखाई पड़ती थी मानो हरे गलीचा की जात्रियों के विश्राम के हेतु बिछायत बिछी थी। एक ओर त्रिभुवन पावनी श्री गंगा जी की पवित्र धारा बहती है जो राजा भगीरथ के उज्ज्वल कीर्ति की लता-सी दिखाई देती है। जल यहाँ का अत्यंत शीतल है और मिष्ट भी वैसा ही है मानो चीनी के पने को बरफ में जमाया है, रंग जल का स्वच्छ और श्वेत है और अनेक प्रकार के जल-जंतु कल्लोल करते हुए।
1. हरिद्वार को किस प्रकार की भूमि कहा गया है?
(क) व्यापारिक भूमि
(ख) शौर्य भूमि
(ग) पुण्य भूमि
(घ) वीर भूमि
उत्तर– (ग) पुण्य भूमि
2. गद्यांश में वृक्षों की कौन-सी विशेषता नहीं बताई गई है?
(क) वे तपस्वी की तरह खड़े हैं
(ख) वे अग्नि से डरते हैं
(ग) वे पत्थर मारने पर फल देते हैं
(घ) वे वर्षा, ओस और घाम सहते हैं
उत्तर- (ख) वे अग्नि से डरते हैं
3. गंगा नदी की तुलना किससे की गई है?
(क) राजा भगीरथ की उज्ज्वल कीर्ति की लता
(ख) हीरे की माला
(ग) अमृत कलश
(घ) हिमालय की तलहटी
उत्तर– (क) राजा भगीरथ की उज्ज्वल कीर्ति की लता
4. हरिद्वार के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन लेखक ने किस प्रकार किया है?
उत्तर- लेखक ने हरिद्वार को तीन ओर से घिरे सुंदर हरे-भरे पर्वतों वाली भूमि बताया है। इन पर्वतों पर लहराती वल्लियाँ और तपस्वियों जैसे खड़े वृक्ष प्राकृतिक सौंदर्य को और बढ़ाते हैं। वर्षा से चारों ओर हरियाली बिखरी हुई प्रतीत होती है।
5. गंगा नदी के जल का वर्णन लेखक ने कैसे किया है?
उत्तर– लेखक गंगा के जल को अत्यंत शीतल और मीठा बताते हैं, जिसे उन्होंने ‘चीनी के पने को बर्फ में जमाया’ जैसा कहा है। जल स्वच्छ, श्वेत और जीवनदायिनी है, जिसमें अनेक जल-जंतु आनंदपूर्वक तैरते हैं।
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यहाँ श्री गंगा जी अपना नाम नदी सत्य करती हैं अर्थात् जल के वेग का शब्द बहुत होता है और शीतल वायु नदी के उन पवित्र छोटे-छोटे कनों को लेकर स्पर्श ही से पावन करता हुआ संचार करता है। यहाँ पर श्री गंगा जी दो धारा हो गई हैं— एक का नाम नील धारा, दूसरी श्री गंगा जी ही के नाम से, इन दोनों धारों के बीच में एक सुंदर नीचा पर्वत है और नील धारा के तट पर एक छोटा-सा सुंदर चुटीला पर्वत है और उसके शिषर पर चण्डिका देवी की मूर्ति है। यहाँ हरि की पैड़ी नामक एक पक्का घाट है और यहीं स्नान भी होता है। विशेष आश्चर्य का विषय यह है कि यहाँ केवल गंगा जी ही देवता हैं, दूसरा देवता नहीं। यों तो वैरागियों ने मठ मंदिर कई बना लिए हैं।
श्री गंगा जी का पाट भी बहुत छोटा है पर वेग बड़ा है, तट पर राजाओं की धर्मशाला यात्रियों के उतरने के हेतु बनी हैं और दुकानें भी बनी हैं पर रात को बंद रहती हैं। यह ऐसा निर्मल तीर्थ है कि इच्छा क्रोध की खानि जो मनुष्य हैं सो वहाँ रहते ही नहीं।
1. गंगा नदी की ध्वनि को लेखक ने किस रूप में दर्शाया है?
(क) मधुर और शांत
(ख) धीमी और गंभीर
(ग) वेगपूर्ण और शब्दमयी
(घ) तेज और कर्कश
उत्तर- (ग) वेगपूर्ण और शब्दमयी
2. गंगा जी की दो धाराओं के बीच कौन-सा स्थान स्थित है?
(क) ऊँचा पहाड़
(ख) मंदिर
(ग) कुआँ
(घ) नीचा पर्वत
उत्तर- (घ) नीचा पर्वत
3. हर की पैड़ी के विषय में कौन-सा कथन सत्य है?
(क) यह एक मंदिर है
(ख) यह स्नान का पक्का घाट है
(ग) यह गुफा में स्थित है
(घ) यह एक पुल है
उत्तर– (ख) यह स्नान का पक्का घाट है
4. हर की पैड़ी के क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर– हर की पैड़ी एक पक्का घाट है, जहाँ स्नान होता है। यह घाट पवित्र माना जाता है। लेखक के अनुसार, यहाँ केवल गंगा जी ही देवता के रूप में पूजी जाती हैं, अन्य कोई देवता नहीं है, यहाँ वैरागियों ने अपने मठ और मंदिर बना लिए हैं।
5. तीर्थ स्थल की सात्विकता का वर्णन कैसे किया गया है?
उत्तर– लेखक बताता है कि यह तीर्थ अत्यंत निर्मल है। वहाँ मन के विकार, जैसे इच्छा और क्रोध, टिकते ही नहीं। गंगा जी की शीतल वायु और पवित्र जल के कण मनुष्य को स्पर्श से ही पावन कर देते हैं।
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पंडे दुकानदार इत्यादि कनखल व ज्वालापुर से आते हैं। पंडे भी यहाँ बड़े विलक्षण संतोषी हैं। एक पैसे को लाख करके मान लेते हैं। इस क्षेत्र में पाँच तीर्थ मुख्य हैं हरिद्वार, कुशावर्त्त, नीलधारा, विल्वपर्वत और कनखल। हरिद्वार तो हरि की पैंड़ी पर नहाते हैं, कुशावर्त्त भी उसी के पास है, नीलधारा वही दूसरी धारा, विल्व पर्वत भी पास ही एक सुहाना पर्वत है जिस पर विल्वेश्वर महादेव की मूर्ति है और कनखल तीर्थ इधर ही है, यह कनखल तीर्थ बड़ा उत्तम है। किसी काल में दक्ष ने यहीं यज्ञ किया था और यहीं सती ने शिव जी का अपमान न सहकर अपना शरीर भस्म कर दिया। यहाँ कुछ छोटे-छोटे घर भी बने हैं। और भारामल जैकृष्णदास खत्री यहाँ के प्रसिद्ध धनिक हैं।
1. इस क्षेत्र के पाँच मुख्य तीर्थ स्थलों में कौन-सा सम्मिलित नहीं है?
(क) कनखल
(ख) कुशावर्त्त
(ग) नीलधारा
(घ) ऋषिकेश
उत्तर- (घ) ऋषिकेश
2. कनखल तीर्थ का पौराणिक महत्व किस घटना से जुड़ा है?
(क) भगवान विष्णु के जन्म से
(ख) सती के आत्मदाह से
(ग) राम-रावण युद्ध से
(घ) गंगा अवतरण से
उत्तर– (ख) सती के आत्मदाह से
3. पंडों की कौन-सी विशेषता लेखक ने बताई है?
(क) वे संतोषी होते हैं
(ख) वे बहुत क्रोधित होते हैं
(ग) वे व्यापार नहीं करते
(घ) वे केवल यज्ञ कराते हैं
उत्तर- (क) वे संतोषी होते हैं
4. इस गद्यांश में बताए गए पाँच प्रमुख तीर्थ स्थल कौन-कौन से हैं?
उत्तर- लेखक ने हरिद्वार क्षेत्र के पाँच तीर्थ बताए हैं- हरिद्वार, कुशावर्त्त, नीलधारा, विल्वपर्वत और कनखल।
5. कनखल तीर्थ का क्या ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है?
उत्तर- कनखल तीर्थ को अत्यंत पवित्र माना जाता है क्योंकि यहीं राजा दक्ष ने यज्ञ किया था और यहीं सती ने शिव का अपमान न सहते हुए अपने शरीर को भस्म कर दिया था। इस घटना ने शिव-सती की कथा को धार्मिक महत्व प्रदान किया है और यह स्थान श्रद्धालुओं के लिए विशेष है।
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हरिद्वार में यह बखेड़ा कुछ नहीं है और शुद्ध निर्मल साधुओं के सेवन योग्य तीर्थ है। मेरा तो चित्त वहाँ जाते ही ऐसा प्रसन्न और निर्मल हुआ कि वर्णन के बाहर है। मैं दीवान कृपा राम के घर के ऊपर के बंगले पर टिका था। यह स्थान भी उस क्षेत्र में टिकने योग्य ही है। चारों ओर से शीतल पवन आती थी। यहाँ रात्रि को ग्रहण हुआ और हम लोगों ने ग्रहण में बड़े आनंदपूर्वक स्नान किया और दिन में श्री भागवत का पारायण भी किया। वैसे ही मेरे संग कल्लू जी मित्र भी परमानंदी थे। निदान इस उत्तम क्षेत्र में जितना समय बीता, बड़े आनंद से बीता। एक दिन मैंने श्री गंगा जी के तट पर रसोई करके पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया। जल के छलके पास ही ठंढे-ठंढे आते थे। उस समय के पत्थर पर का भोजन का सुख सोने की थाल के भोजन से कहीं बढ़ के था।
1. लेखक हरिद्वार में किसके बंगले पर ठहरे थे?
(क) जैकृष्णदास खत्री
(ख) दीवान कृपा राम
(ग) कल्लू जी मित्र
(घ) भारामल सेठ
उत्तर- (ख) दीवान कृपा राम
2. लेखक के अनुसार पत्थर पर का भोजन किससे बेहतर था?
(क) मिट्टी के पात्र के भोजन से
(ख) सोने की थाल के भोजन से
(ग) कांसे की थाली से
(घ) मंदिर के भोग से
उत्तर – (ख) सोने की थाल के भोजन से
3. हरिद्वार में लेखक का अनुभव कैसा रहा?
उत्तर- लेखक ने हरिद्वार को शुद्ध, निर्मल और साधुओं के योग्य तीर्थ बताया है। वहाँ पहुँचते ही उनका चित्त प्रसन्न हो गया। लेखक को वहाँ का हर पल आध्यात्मिक आनंद से भरपूर लगा।
4. ग्रहण के अवसर पर लेखक ने क्या किया?
उत्तर- ग्रहण की रात्रि में लेखक ने स्नान किया और दिन में श्रीमद्भागवत का पारायण किया। यह धार्मिक अनुभव उनके लिए अत्यंत आनंददायक था।
5. श्री गंगा जी के तट पर भोजन का अनुभव लेखक ने कैसे वर्णित किया है?
उत्तर– लेखक ने बताया कि उन्होंने श्री गंगा जी के तट पर पत्थर पर रसोई बनाकर भोजन किया। उस समय का अनुभव इतना सुखद था कि वह सोने की थाल में परोसे भोजन से भी अधिक आनंददायक प्रतीत हुआ।
Class 8 Hindi Malhar Lesson 4 Haridwar Multiple choice Questions (बहुविकल्पीय प्रश्न)
1. भारतेंदु हरिश्चंद्र हरिद्वार यात्रा पर कब गए थे?
(क) 1867 ई.
(ख) 1871 ई.
(ग) 1875 ई.
(घ) 1880 ई.
उत्तर– (ख) 1871 ई.
2. हरिद्वार का वर्णन लेखक ने किस रूप में प्रस्तुत किया है?
(क) धार्मिक उपदेश
(ख) कहानी
(ग) यात्रा-वृत्तांत
(घ) कविता
उत्तर- (ग) यात्रा-वृत्तांत
3. भारतेंदु हरिश्चंद्र ने यह पत्र किस पत्रिका को लिखा?
(क) कविवचन सुधा
(ख) हरिश्चंद्र मैगजीन
(ग) बालाबोधिनी
(घ) सरस्वती
उत्तर- (क) कविवचन सुधा
4. लेखक के अनुसार हरिद्वार पहुँचते ही मन कैसा हो गया?
(क) दुखी
(ख) थका हुआ
(ग) प्रसन्न और निर्मल
(घ) उत्तेजित
उत्तर- (ग) प्रसन्न और निर्मल
5. हरिद्वार को लेखक ने क्या कहा है?
(क) भयानक भूमि
(ख) पुण्य भूमि
(ग) युद्ध भूमि
(घ) कला भूमि
उत्तर– (ख) पुण्य भूमि
6. हरिद्वार चारों ओर से किससे घिरा है?
(क) रेगिस्तान
(ख) सागर
(ग) बर्फ
(घ) हरे-भरे पर्वतों से
उत्तर- (घ) हरे-भरे पर्वतों से
7. लेखक पेड़ों की तुलना किससे करता है?
(क) सैनिक
(ख) शिक्षक
(ग) साधु
(घ) राजा
उत्तर– (ग) साधु
8. गंगा को लेखक ने क्या कहा है?
(क) सामान्य नदी
(ख) त्रिभुवन पावनी
(ग) सरस्वती
(घ) यमुना
उत्तर– (ख) त्रिभुवन पावनी
9. गंगा का जल कैसा है?
(क) गंदा
(ख) पीला
(ग) ठंडा और मीठा
(घ) खारा
उत्तर– (ग) ठंडा और मीठा
10. लेखक ने गंगा जल की मिठास की तुलना किससे की है?
(क) नमक से
(ख) चीनी के पने से
(ग) शहद से
(घ) दूध से
उत्तर– (ख) चीनी के पने से
11. ‘हरि की पैड़ी’ क्या है?
(क) पक्का घाट
(ख) मंदिर
(ग) बाजार
(घ) धर्मशाला
उत्तर- (क) पक्का घाट
12. गंगा की कितनी धाराओं का वर्णन किया गया है?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार
उत्तर- (ख) दो
13. नीलधारा के शिखर पर किस देवी की मूर्ति है?
(क) दुर्गा
(ख) पार्वती
(ग) चण्डिका देवी
(घ) लक्ष्मी
उत्तर- (ग) चण्डिका देवी
14. हरिद्वार में प्रमुख रूप से किस देवता की पूजा होती है?
(क) शिव
(ख) विष्णु
(ग) गंगा
(घ) गणेश
उत्तर- (ग) गंगा
15. हरिद्वार किन लोगों के योग्य स्थान है?
(क) साधुओं के
(ख) लोभी व्यक्तियों के
(ग) क्रोधित लोगों के
(घ) व्यापारियों के
उत्तर- (क) साधुओं के
16. लेखक ने कितने तीर्थ स्थानों का उल्लेख किया है?
(क) तीन
(ख) चार
(ग) पाँच
(घ) सात
उत्तर– (ग) पाँच
17. लेखक कहाँ ठहरे थे?
(क) मंदिर में
(ख) गेस्ट हाउस में
(ग) धर्मशाला में
(घ) दीवान कृपा राम के बंगले में
उत्तर- (घ) दीवान कृपा राम के बंगले में
18. लेखक के साथ कौन मित्र थे?
(क) रघुनाथ जी
(ख) कल्लू जी
(ग) गिरधारी जी
(घ) दयाराम जी
उत्तर- (ख) कल्लू जी
19. भारतेंदु हरिश्चंद्र को क्या कहा जाता है?
(क) हिंदी व्याकरण के जनक
(ख) आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक
(ग) उपन्यासकार
(घ) सामाजिक नेता
उत्तर- (ख) आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक
20. कुशा से कौन सी सुगंध आती है?
(क) दालचीनी और जावित्री
(ख) गुलाब
(ग) चमेली
(घ) केवड़ा
उत्तर- (क) दालचीनी और जावित्री
Haridwar Extra Question Answers (अतिरिक्त प्रश्न उत्तर)
1. भारतेंदु हरिश्चंद्र हरिद्वार क्यों गए थे?
उत्तर– भारतेंदु हरिश्चंद्र हरिद्वार तीर्थ यात्रा पर गए थे। वे धार्मिक भावना से प्रेरित होकर वहाँ पहुँचे थे। वे हरिद्वार की सुंदरता, पवित्रता और धार्मिक वातावरण से बहुत प्रभावित हुए।
2. हरिद्वार पहुँचते ही लेखक को कैसा अनुभव हुआ?
उत्तर– हरिद्वार पहुँचते ही लेखक का मन निर्मल और प्रसन्न हो गया। वहाँ की प्राकृतिक सुंदरता, शांति और आध्यात्मिक वातावरण ने उनके मन को बहुत सुकून दिया।
3. लेखक ने गंगा जल को कैसा बताया है?
उत्तर– लेखक ने गंगा जल को ठंडा, मीठा और शुद्ध बताया है। उन्होंने इसकी तुलना शुद्ध चीनी के पने से की है, जिससे उसकी पवित्रता और स्वाद का पता चलता है।
4. लेखक को हरिद्वार में कौन-कौन से तीर्थ देखने को मिले?
उत्तर– लेखक ने हर की पैड़ी, नीलधारा, चण्डिका देवी का मंदिर और कनखल जैसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान देखे। ये स्थान धार्मिक और ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।
5. लेखक ने पंडों के व्यवहार के बारे में क्या कहा?
उत्तर- लेखक ने हरिद्वार के पंडों को संतोषी और सीधे-सादे बताया है। उन्होंने लिखा है कि वहाँ झगड़े-लड़ाई का नाम भी नहीं था और पंडे शांति से काम करते हैं।
6. लेखक कहाँ ठहरे थे और वहाँ का अनुभव कैसा था?
उत्तर– लेखक दीवान कृपा राम जी के बंगले में ठहरे थे। वहाँ का वातावरण शुद्ध और धार्मिक था। उन्हें वहाँ ‘भागवत’ का पाठ सुनने का अवसर भी मिला।
7. लेखक ने ग्रहण के समय क्या किया?
उत्तर- ग्रहण के समय लेखक ने पवित्र गंगा नदी में स्नान किया। उन्होंने श्रीमद्भगवद गीता का पाठ, ध्यान और भजन किया और इसे एक सुखद और धार्मिक अनुभव बताया।
8. लेखक के अनुसार हरिद्वार की विशेष वस्तुएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर- लेखक ने बताया कि हरिद्वार में जनेऊ बहुत अच्छा और उज्ज्वल मिलता है। वहाँ की कुशा भी बहुत विलक्षण होती है, जिसमें से दालचीनी और जावित्री जैसी सुगंध आती है।
9. लेखक ने गंगा किनारे भोजन के बारे में क्या अनुभव किया?
उत्तर– लेखक ने गंगा किनारे पत्थर ही पर जल के अत्यंत निकट परोसकर भोजन किया और उसे सोने की थाली से भी उत्तम बताया। वहाँ के भोजन में सच्चा स्वाद और शांति थी।
10. हरिद्वार यात्रा लेखक को क्यों याद रहती है?
उत्तर- हरिद्वार की धार्मिकता, गंगा का सौंदर्य, पर्वतों की हरियाली और शांत वातावरण लेखक के मन में बस गया। वे कहते हैं कि उनका चित्त अब भी वहीं बसा हुआ है
Give me the question and answer of ch 4 haridwar class8