भिक्षुक पाठ सार

 

JKBOSE Class 10 Hindi Chapter 14 “Bhikshuk”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Bhaskar Bhag 2 Book

भिक्षुक सार – Here is the JKBOSE Class 10 Hindi Bhaskar Bhag 2 Book Chapter 14 Bhikshuk Summary with detailed explanation of the lesson “Hindi Jan Ki Boli” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

इस पोस्ट में हम आपके लिए जम्मू और कश्मीर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड  कक्षा 10 हिंदी भास्कर भाग 2 के पाठ 14 भिक्षुक पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 भिक्षुक पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Bhikshuk (भिक्षुक) 

 

प्रस्तुत कविता में कवि ने भिक्षुक की दुर्दशा का बहुत ही करुण चित्र खींचा है। शारीरिक कमज़ोरी तथा पेटभर खाना मिलने के कारण उसके पेटपीठ दोनों मिलकर एक हो गए हैं। वह एक हाथ से पेट मलता हुआ दूसरा हाथ मांगने के लिए आगे बढ़ाता है। उसकी दशा आवारा कुत्ते से भी दयनीय है। कविता में कवि ने भिखारी की स्थिति को समाज के समक्ष स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है।

 

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भिक्षुक पाठ सार Bhikshuk Summary

भिक्षुककविता में कवि ने भिक्षुक की दुर्दशा का बहुत ही करुण चित्र खींचा है। कविता में कवि ने भिखारी की स्थिति को समाज के समक्ष स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है। कवि एक दीनहीन भिखारी की दशा का मार्मिक चित्रण करते हुए कहता है कि जब भिखारी आता है तो उसकी दयनीय दशा  कवि के हृदय को करुणा से भर देती है। वह भिखारी भी अपनी दशा पर पश्चात्तापसा करता हुआ रास्ते में बढ़ता जाता है। भूख और कमजोरी के कारण वह बहुत कमजोर व् दुबला हो गया है और वह लाठी का सहारा लेकर चल रहा है। मुट्ठी भर भोजन प्राप्त करने के लिए और अपनी भूख को मिटाने के लिए वह लगातार मुँह से आवाज लगाए जा रहा है और अपनी फटी पुरानी झोली को फैलाता हुआ आता है। उस भिखारी के साथ उसके दो बच्चे भी हैं, जो भीख के लिए हमेशा अपने हाथ फैलाये रहते हैं। बच्चे अपने एक हाथ को अपने पेट पर मलते हैं ताकि लोगों को उनके भूखे होने का आभास हो सके और दूसरे हाथ को इस उम्मीद से आगे बढ़ा के चलते है कि कोई उन पर दया दिखाकर कुछ भीख दे देगा। परन्तु लोग उनकी दशा को नजरअंदाज करते हैं और उन्हें कुछ नहीं देते।  वे विवश होते हैं जिस कारण वे किसी को कुछ नहीं कह पाते। कभीकभी भिखारी  के बच्चों को सड़क पर खड़े होकर दूसरों की छोड़ी हुई जूठी प्लेट को चाटते हुए देखा जा सकता है, और उसे भी उनसे छीन लेने के लिए वहाँ कुत्ते डट कर खड़े हुए रहते हैं।

 

भिक्षुक पाठ व्याख्या Bhikshuk Explanation

 

1.
वह आता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता
पेटपीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेक,
मुट्ठी भर दाने कोभूख मिटाने को,
मुंह फटीपुरानी झोली को फैलाता
दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता

शब्दार्थ –
टूक टुकड़े
कलेजेजिगर
पछताता अफ़सोस या पश्चाताप करना
पथ रास्ता
पेट पीठ दोनों एक होनाबहुत कमजोर होना
लकुटियालाठी
टेक सहारा
मुट्ठी भरबहुत कम
झोली कपड़े की थैली; छोटा झोला

व्याख्या प्रस्तुत काव्यांश में कवि एक दीनहीन भिखारी की दशा का मार्मिक चित्रण करते हुए कहता है कि जब भिखारी आता है तो उसकी दयनीय दशा को देखकर कलेजे के मानो दो टुकड़े हो जाते हैं अर्थात भिखारी की दयनीय स्थिति कवि के हृदय को करुणा से भर देती है। वह भिखारी भी अपनी दशा पर पश्चात्तापसा करता हुआ रास्ते में बढ़ता जाता है। उसे देख कर ऐसा लगता है कि भूख और कमजोरी के कारण उसका पेट तथा पीठ दोनों मिलकर एक हो गए हैं। अर्थात भूख और कमजोरी के कारण वह बहुत कमजोर व् दुबला हो गया है। कमजोरी के कारण वह लाठी का सहारा लेकर चल रहा है। मुट्ठी भर भोजन प्राप्त करने के लिए और अपनी भूख को मिटाने के लिए वह लगातार मुँह से आवाज लगाए जा रहा है और अपनी फटी पुरानी झोली को फैलाता हुआ आता है। उसकी ऐसी दशा कलेजे के दो दुकड़े कर देती है और वह स्वयं भी अपनी परिस्थिति पर पछताता हुआ रास्ते में आगे बढ़ता जाता है। 

 

2 –
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,
बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,
और दाहिना दयादृष्टि पाने की ओर बढ़ाए
भूख से सूख ओंठ जब जाते
दाता भाग्यविधाता से क्या पाते ?
घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते
चाट रहे जूठी पत्तल वे कभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं, अड़े हुए।

शब्दार्थ –
सदा – हमेशा
बाएँ – उल्टा
दाहिना – सीधा
दया-दृष्टि – कोमल व्यवहार, सहानुभूति,
दाता भाग्य – विधाता – दानी, भाग्य का निर्माण करने वाला
पत्तल – प्लेट
झपट – छीनना
अड़े हुए – डटे हुए 

व्याख्याप्रस्तुत पद्यांश में कवि एक भिखारी की दयनीय दशा का मार्मिक वर्णन करते हुए कहता है की उस भिखारी के साथ उसके दो बच्चे भी हैं, जो भीख के लिए हमेशा अपने हाथ फैलाये रहते हैं। अपनी भूख को दर्शाने के लिए वे अपने उलटे हाथ से पेट को मलते हुए चलते जाते है और अपने सीधे हाथ को आगे बढ़ा कर लोगों से सहानुभूति प्राप्त करने की उम्मीद करते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि बच्चे अपने एक हाथ को अपने पेट पर मलते हैं ताकि लोगों को उनके भूखे होने का आभास हो सके और दूसरे हाथ को इस उम्मीद से आगे बढ़ा के चलते है कि कोई उन पर दया दिखाकर कुछ भीख दे देगा। परन्तु जब भूखप्यास से सूखे हुए ओंठों से वे दानी और भाग्यविधाता कहे जाने वाले लोगों से कुछ मांगते हैं तो उन्हें उनसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता। अर्थात लोग उनकी दशा को नजरअंदाज करते हैं और उन्हें कुछ नहीं देते। ऐसी स्थिति में वे अपनी विवशता के कारण आंसुओं के घूंट पी कर रह जाते हैं। अर्थात वे विवश होते हैं जिस कारण वे किसी को कुछ नहीं कह पाते। कभीकभी भिखारी के के बच्चों को सड़क पर खड़े होकर दूसरों की छोड़ी हुई जूठी प्लेट को चाटते हुए देखा जा सकता हैं, और उसे भी उनसे छीन लेने के लिए वहाँ कुत्ते डट कर खड़े हुए रहते हैं। अर्थात भिखारी के बच्चों से कुत्ते भी उनका भोजन छीनने के लिए तैयार खड़े रहते हैं।

 

Conclusion

प्रस्तुत कविता में कवि ने भिक्षुक की दुर्दशा का बहुत ही करुण चित्र खींचा है। शारीरिक कमज़ोरी तथा पेटभर खाना मिलने के कारण उसके पेटपीठ दोनों मिलकर एक हो गए हैं। वह एक हाथ से पेट मलता हुआ दूसरा हाथ मांगने के लिए आगे बढ़ाता है। उसकी दशा आवारा कुत्ते से भी दयनीय है। कविता में कवि ने भिखारी की स्थिति को समाज के समक्ष स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है। प्रस्तुत लेख में पाठ प्रवेश, पाठ सार, शब्दार्थ सहित व्याख्या दिए गए हैं जो विद्यार्थियों की परीक्षा में सहायक सिद्ध होंगें।