JKBOSE Class 10 Hindi Chapter 6 Kaikeyi ka Anutap (कैकेयी का अनुताप) Question Answers (Important) from Bhaskar Bhag 2 Book

 

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JKBOSE Class 10 Chapter 6 Kaikeyi ka Anutap Textbook Questions

 

भाव – सौंदर्य
1. ऐसी कोई दो पंक्तियाँ ढूँढ़कर लिखें, जिनमें कैकेयी का पछतावा प्रकट हुआ है?
उतर– यहाँ दो पंक्तियाँ दी गई हैं जिनमें रानी कैकेयी का गहरा पछतावा प्रकट होता है:

“करके पहाड़ सा पाप मौन रह जाऊँ,
राई-भर भी अनुताप न करने पाऊँ?”
प्रस्तुत पंक्तियों में कैकेयी कहती हैं कि उसने इतना बड़ा अपराध किया है, क्या वह चुप रहकर उसका कोई पश्चाताप भी न करे? क्या उसे इतना भी अधिकार नहीं कि वह अपने अपराध को स्वीकार कर आत्मग्लानि प्रकट कर सके।

“बस मैंने इसका बाह्य- मात्र ही देखा,
दृढ़ हृदय न देखा, मृदुल मात्र ही देखा”
कैकेयी आत्मस्वीकृति करती हैं कि उन्होंने अपने पुत्र भरत के व्यक्तित्व की गहराई को नहीं समझा। वे केवल उसके कोमल, बाह्य स्वरूप को देखती रहीं, पर उसके दृढ़, त्यागमयी और परमार्थी स्वभाव को पहचानने में असफल रहीं। उनका दृष्टिकोण केवल स्वार्थ से प्रेरित था, इसलिए वे अपने कर्तव्यों से विचलित हो गईं और आज इस घोर पीड़ा का सामना कर रही हैं।

2. कैकेयी के लिए प्रयुक्त “सिंही” और “गोमुखी गंगा विशेषण उसके जीवन के किन पक्षों को संकेतित करते हैं ?
उतर– “सिंही” और “गोमुखी गंगा” विशेषण रानी कैकेयी के जीवन के दो विपरीत पक्षों को संकेतित करते हैं-
“सिंही” विशेषण उनके पूर्व रूप का प्रतीक है, जब वे साहसी, तेजस्वी और निर्णायक थीं। उन्होंने निर्भीकता से राम को वनवास दिलवाया था। यह उनकी बलिष्ठता और कठोरता को बताता है।
“गोमुखी गंगा” विशेषण उनके पश्चातापपूर्ण रूप को बताता है, जब वे शांत, करुणामयी और पवित्र दिखाई देती हैं। अब वे आत्मग्लानि और दुःख में डूबी हुई हैं, जैसे गोमुख से निकली निर्मल और शीतल गंगा।

3. दुर्बलता का ही चिह्न विशेष शपथ है” कहते हुए भी कैकेयी शपथपूर्वक अपना पक्ष प्रस्तुत करती है, क्यों ?
उतर- कैकेयी यह स्वीकार करती हैं कि “दुर्बलता का ही चिह्न विशेष शपथ है”, यानी बार-बार शपथ लेना किसी की कमज़ोरी या विवशता को बताता है। फिर भी वह शपथपूर्वक अपना पक्ष प्रस्तुत करती हैं क्योंकि एक अबलाजन (स्त्री) होने के कारण उनके पास अपने निर्दोष होने को सिद्ध करने का और कोई मार्ग नहीं बचा था।
वे भरत को निर्दोष साबित करना चाहती थीं और चाहती थीं कि राम और सभा उनके पश्चाताप को गंभीरता से लें। अतः शपथ लेकर वे अपने पछतावे और सत्य को प्रमाणित करना चाहती हैं, ताकि उनका अपराधबोध कम हो और राम को लौटने के लिए मना सकें।

4. इस कविता की किन पंक्तियों से व्यंजित होता है कि –

(क) कैकेयी बाहर से स्थिर बैठी थी, पर उसके मन में बड़ी हलचल थी।
उत्तर- कैकेयी बाहर से स्थिर बैठी थी, पर उसके मन में बड़ी हलचल थी। – इस भाव को प्रकट करने वाली पंक्ति है-
“बैठी थी अचल तथापि असंख्य तरंगा”
इस पंक्ति में ‘अचल’ शब्द से स्पष्ट है कि कैकेयी बाहरी रूप से स्थिर बैठी हुई थी, लेकिन ‘असंख्य तरंगा’ से यह संकेत मिलता है कि उसके मन में अनेक भावनाएँ, पछतावा और हलचल चल रही थीं। यह उसके भीतर की बेचैनी और आत्ममंथन को व्यंजित करता है।

(ख) कैकेयी की सबसे बड़ी वेदना यह है कि उसका पुत्र उसके लिए अन्य हो गया।
उत्तर– कैकेयी की सबसे बड़ी वेदना यह है कि उसका पुत्र उसके लिए अन्य हो गया। – इस भाव को प्रकट करने वाली पंक्तियाँ हैं:
“कुछ मूल्य नहीं वात्सल्य मात्र, क्या तेरा?
पर आज अन्य-सा हुआ वत्स भी मेरा।”
इन पंक्तियों में कैकेयी की गहन वेदना प्रकट होती है कि उसका स्नेह और मातृत्व अब भरत के लिए निरर्थक हो गया है। वह दुखी होकर कहती है कि जिस पुत्रमोह ने उसे अपराधी बना दिया, वही पुत्र अब उसके लिए पराया हो गया है। यही उसकी सबसे बड़ी पीड़ा है।

(ग) कुपुत्र को जन्म देने पर भी माता कुमाता नहीं कहलाती
उत्तर– कुपुत्र को जन्म देने पर भी माता कुमाता नहीं कहलाती- इस भाव को प्रकट करने वाली पंक्तियाँ हैं-
“कहते आते थे यही अभी नरदेही
‘माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही'”
इन पंक्तियों में यह पुरानी लोकमान्यता व्यक्त की गई है कि माता कभी कुमाता नहीं हो सकती, भले ही पुत्र कुपुत्र क्यों न हो। यह विश्वास समाज में लंबे समय से चला आ रहा है और बताता है कि माँ का स्नेह और त्याग इतना महान होता है कि उसकी तुलना किसी दोष से नहीं की जा सकती।

5. “निज जन्म-जन्म में सुने जीव यह मेरा –
धिक्कार ! उसे था महास्वार्थ ने घेरा ।”
इन पंक्तियों में कैकेयी के मन की कौन-सी भावना व्यक्त हुई है ?
उत्तर- इन पंक्तियों में कैकेयी के मन की गहन आत्मग्लानि और पश्चाताप की भावना व्यक्त हुई है।
“निज जन्म-जन्म में सुने जीव यह मेरा”– यह पंक्ति बताती है कि कैकेयी को अपने किए गए कर्मों का इतना गहरा पछतावा है कि वह जन्म-जन्मांतर तक इसका प्रायश्चित करना चाहती है।
“धिक्कार ! उसे था महास्वार्थ ने घेरा”- इस पंक्ति से स्पष्ट होता है कि वह स्वयं को महास्वार्थी मानकर धिक्कार (तिरस्कार) कर रही हैं। उन्होंने स्वार्थ के कारण धर्म, रिश्तों और प्रेम की अवहेलना की। यह स्वीकृति उनके अंतरमन की पीड़ा को बताता है।

शिल्प सौंदर्य
इस कविता को तीन भागों में बाँट कर देख सकते हैं
1. कैकेयी के कथन – दोहरे उद्धरण चिह्नों में हैं। जैसे :- “यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को
2. लोगों के कथन – इकहरे उद्धरण चिह्नों में हैं जैसे:- ‘माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही’
3. कवि का वर्णन – बिना किसी चिह्न के है जैसे:- चाँके सब सुनकर अटल कैकेयी स्वर को
लोगों के कथन कैकेयी के कथन के मध्य में होने के कारण इकहरे चिह्नों में रखे गए हैं। जब भी किसी के वार्तालाप के बीच किसी अन्य का कथन उद्धृत करना हो तो मूल वार्तालाप दोहरे चिह्नों में तथा उद्धृत कथन इकहरे चिह्नों में रखा जाता है।

योग्यता – विस्तार
1. “पश्चाताप से आत्मा शुद्ध होती है।” इस कथन पर विचार व्यक्त कीजिए ।
उत्तर– “पश्चाताप से आत्मा शुद्ध होती है।” इस कथन पर विचार-
पश्चाताप वह गहन भाव है, जो व्यक्ति को अपने किए गए गलत कार्यों के प्रति आत्मबोध कराता है। जब कोई व्यक्ति अपने अपराध या भूल को स्वीकार कर, मन से पछताता है, तो उसकी अंतरात्मा जागृत होती है और वह आत्मशुद्धि की ओर अग्रसर होता है। पश्चाताप केवल शब्दों में नहीं, बल्कि व्यवहार और भावों में बदलाव लाने वाला भाव है। यह व्यक्ति के चरित्र को पुनः निर्मित करता है और समाज में सम्मान की पुनः स्थापना का अवसर देता है। जैसे कैकेयी ने गहन पश्चाताप कर अपने पाप का बोध किया, वैसे ही सच्चा पश्चाताप आत्मा को पवित्र बना सकता है।

2. क्या कर सकती थी मरी मंथरा दासी,
मेरा ही मन रह सका न निज विश्वासी ।”
उपर्युक्त पंक्तियों के संदर्भ में बताइए कि आपके विचार में राम को वनवास देने का दोष कैकेयी का है या मंथरा का
उत्तर– उपर्युक्त पंक्तियों के संदर्भ में विचार-
इन पंक्तियों में कैकेयी स्वयं अपने मन को दोषी ठहराती हैं, न कि मंथरा को। मंथरा केवल एक दासी थी, जिसने सुझाव दिया लेकिन निर्णय लेने की शक्ति और अधिकार तो कैकेयी के पास था।
इसलिए मेरे विचार में राम को वनवास देने का मुख्य दोष मंथरा का नहीं, बल्कि कैकेयी का है, क्योंकि उसका मन उस समय सही-गलत का निर्णय नहीं कर सका। वह अपने स्वार्थ और पुत्रमोह में बहक गई और राजनीतिक अधिकारों का गलत प्रयोग कर बैठी। पश्चाताप में उसने स्वयं यह बात स्वीकार कर ली, जिससे यह स्पष्ट होता है कि मंथरा प्रेरक मात्र थी, कर्ता कैकेयी स्वयं थीं।


 

JKBOSE Class 10 Hindi Lesson 6 कैकेयी का अनुताप सार-आधारित प्रश्न (Extract Based Questions)

 

1
“यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को”
चौंके सब सुनकर अटल कैकेयी – स्वर को।
सबने रानी की ओर अचानक देखा,
वैधव्य – तुषारावृता यथा विधु – लेखा|
बैठी थी अचल तथापि असंख्य तरंगा,
वह सिंही अब थी हहा गोमुखी गंगा-
“हा, जनकर भी मैंने नहीं भरत को जाना,
सब सुन लें, तुमने स्वयं अभी यह माना।
यह सच है तो फिर लौट चलो घर भैया,
अपराधिन मैं हूँ तात. तुम्हारी मैया,

1. कैकेयी राम से क्या कहती हैं?
(क) वन में और रुक जाओ
(ख) युद्ध करो
(ग) घर लौट चलो
(घ) भरत को दंड दो
उत्तर – (ग) घर लौट चलो

2. कैकेयी ने अपने आपको क्या कहा?
(क) माता
(ख) अपराधिनी
(ग) रानी
(घ) सेविका
उत्तर – (ख) अपराधिनी

3. कैकेयी राम से क्या अनुरोध करती हैं?
उत्तर- कैकेयी राम से कहती हैं कि वे अब वन से लौटकर अयोध्या चले। वह मानती हैं कि उनसे बहुत बड़ी गलती हुई है। वह खुद को अपराधिनी कहती हैं और राम से माफ़ी माँगती हैं। वह चाहती हैं कि राम भरत को दोषी न मानें।

4. कैकेयी का मन किस प्रकार बदल गया है?
उत्तर– पहले कैकेयी कठोर और जिद्दी थीं, लेकिन अब वह शांत, दुखी और पश्चाताप से भरी हुई हैं। वह राम से माफ़ी माँगती हैं और अपने अपराध को स्वीकार करती हैं। वह अब कोमल और विनम्र दिखाई देती हैं।

5. ‘गोमुखी गंगा’ उपमा का क्या अर्थ है?
उत्तर- ‘गोमुखी गंगा’ का मतलब है – गंगा का शांत और पवित्र रूप। यह उपमा बताती है कि अब कैकेयी शांत, शुद्ध और पश्चाताप से भरी हुई हैं, जैसे गोमुख से निकलती हुई गंगा की धारा।

2
दुर्बलता का ही चिह्न विशेष शपथ है,
पर, अबलाजन के लिए कौन-सा पथ है ?
यदि मैं उकसाई गई भरत से होऊँ,
तो पति समान ही स्वयं पुत्र भी खोऊँ।
ठहरो, मत रोको मुझे कहूँ सो सुन लो,
पाओ यदि उसमें सार उसे सब चुन लो,
करके पहाड़ सा पाप मौन रह जाऊँ,
राई-भर भी अनुताप न करने पाऊँ?”
थी सनक्षत्र शशि – निशा ओस टपकाती,
रोती थी नीरव सभा हृदय थपकाती ।
उल्का – सी रानी दिशा दीप्त करती थी,
सबमें भय, विस्मय और खेद भरती थी।

1. कैकेयी के अनुसार शपथ लेना किसका संकेत होता है?
(क) साहस का
(ख) सम्मान का
(ग) दुर्बलता का
(घ) प्रेम का
उत्तर – (ग) दुर्बलता का

2. कैकेयी सभा में सभी से क्या अनुरोध करती हैं?
(क) सब चुप रहें
(ख) उसे बोलने से न रोकें
(ग) राम को वन भेजें
(घ) भरत को दंड दें
उत्तर – (ख) उसे बोलने से न रोकें

3. कैकेयी सभा में कैसी दिखाई देती हैं?
(क) शांत और प्रसन्न
(ख) गुस्से में
(ग) उल्का के समान दीप्त
(घ) सोई हुई
उत्तर – (ग) उल्का के समान दीप्त

4. कैकेयी सभा में किस भावना से भरी हुई थी?
उत्तर- कैकेयी सभा में गहरे पश्चाताप और आत्मग्लानि से भरी हुई थीं। वह चाहती थीं कि उन्हें बोलने दिया जाए ताकि वह अपने अपराध को स्वीकार कर सकें। वह कहती हैं कि इतने बड़े अपराध के बाद क्या उन्हें पछताने का भी अधिकार नहीं है।

5. सभा का वातावरण कैसा था?
उत्तर– सभा का वातावरण बहुत ही भावुक और चुप था। सभी लोग कैकेयी की बातों से दुखी और हैरान थे। चाँदनी रात ओस की बूंदों के समान आँसू बहा रही थी, और सभा की नीरवता मानो सबके दिल की पीड़ा को व्यक्त कर रही थी। सब लोग खेद, भय और विस्मय से भर गए थे।

3
“क्या कर सकती थी मरी मंथरा दासी,
मेरा ही मन रह सका न निज विश्वासी।
जल पंजर – गत अब अरे अधीरे, अभागे,
वेज्वलित भाव थे स्वयं तुझी में जागे।
पर था केवल क्या ज्वलित भाव ही मन में?
कुछ शेष बचा था कुछ न और इस जन में?
कुछ मूल्य नहीं वात्सल्य – मात्र,
क्या तेरा ? पर आज अन्य-सा हुआ वत्स भी मेरा।
थूके, मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके,
जो कोई जो कह सके, कहे, क्यों चूके?
छीने न मातृपद किंतु भरत का मुझसे,
हे राम, दुहाई करूँ और क्या तुझसे?

1. कैकेयी मंथरा को क्या कहती हैं?
(क) सबसे बड़ी दोषी
(ख) देवी
(ग) केवल दासी
(घ) बहन
उत्तर – (ग) केवल दासी

2. कैकेयी किससे विनती करती हैं कि वह उनसे मातृत्व न छीने?
(क) भरत
(ख) दशरथ
(ग) मंथरा
(घ) राम
उत्तर – (घ) राम

3. ‘त्रैलोक्य’ शब्द का अर्थ क्या है?
(क) तीनों ऋतु
(ख) तीनों लोक (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल)
(ग) तीनों समय
(घ) तीनों भाई
उत्तर – (ख) तीनों लोक (स्वर्ग, पृथ्वी, पाताल)

4. कैकेयी मंथरा को दोषी क्यों नहीं मानती?
उत्तर– कैकेयी कहती हैं कि मंथरा तो केवल एक दासी थी, उसकी कोई शक्ति नहीं थी कि वह किसी को उकसाए। असली दोष उनके अपने मन का था, जो उस समय भटक गया। वह मानती हैं कि उनकी दुर्बलता और लालसा ने ही उन्हें अपराध की ओर बढ़ाया।

5. कैकेयी राम से किस बात की दुहाई देती हैं?
उत्तर– कैकेयी राम से विनती करती हैं कि चाहे सब लोग उन्हें बुरा कहें, लेकिन वह भरत को अपना पुत्र कहने का अधिकार उनसे न छीनें। वह कहती हैं कि वह सिर्फ यही चाहती हैं कि उनका मातृत्व न छीना जाए और वह भरत की माँ बनी रहें।

4
कहते आते थे यही अभी नरदेही :-
‘माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही’
अब कहें सभी यह हाय! विरुद्ध विधाता : —
“है पुत्र सुपुत्र ही रहे कुमाता माता।‘
बस मैंने इसका बाह्य- मात्र ही देखा।
दृढ़ हृदय न देखा, मृदुल मात्र ही देखा
परमार्थ न देखा, पूर्ण स्वार्थ ही साधा,
इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा।
युग-युग तक चलती रहे कठोर कहानी-
रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी।

1. कैकेयी कौन-सी कहावत को याद करती हैं?
(क) पुत्र कभी गलत नहीं होता
(ख) माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही
(ग) राम सदा सत्य बोलते हैं
(घ) मंथरा ही दोषी है
उत्तर – (ख) माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही

2. कैकेयी ने भरत के किस पक्ष को नहीं पहचाना?
(क) उसका रूप
(ख) उसका प्रेम
(ग) उसका दृढ़ और परमार्थी स्वभाव
(घ) उसकी वाणी
उत्तर – (ग) उसका दृढ़ और परमार्थी स्वभाव

3. कैकेयी के अनुसार रघुकुल की क्या बदनामी होगी?
(क) वहाँ एक अभागिन रानी हुई थी
(ख) वहाँ राम को वनवास मिला
(ग) वहाँ युद्ध हुआ था
(घ) वहाँ भरत ने राज्य नहीं लिया
उत्तर – (क) वहाँ एक अभागिन रानी हुई थी

4. “माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही” – इस कहावत का नया रूप कैकेयी ने क्या बताया?
उत्तर- कैकेयी कहती हैं कि अब लोग कहेंगे—“पुत्र सुपुत्र ही रहा, कुमाता माता।” इसका अर्थ है कि राम जैसे आदर्श पुत्र के सामने वह खुद बुरी माँ सिद्ध हुई हैं। अब यह कहावत उलट गई है और वे खुद को इसका उदाहरण मानती हैं।

5. कैकेयी को क्यों लगता है कि युग-युग तक उनका नाम बदनाम रहेगा?
उत्तर– कैकेयी मानती हैं कि उनके स्वार्थ और गलत निर्णय ने राम को वनवास भेजा और रघुकुल को संकट में डाल दिया। इसलिए आने वाली पीढ़ियाँ उन्हें कलंकित माँ के रूप में याद करेंगी और कहेंगी कि रघुकुल जैसे वंश में भी एक अभागिन रानी थी।

 

JKBOSE Class 10 Hindi कैकेयी का अनुताप प्रश्न और उत्तर (Extra Question Answers)

1. कैकेयी ने राम से घर लौटने की प्रार्थना क्यों की?
उत्तर- कैकेयी ने राम से विनम्रतापूर्वक घर लौटने की प्रार्थना की क्योंकि उन्हें अपने किए पर गहरा पश्चाताप था। उन्होंने माना कि उन्होंने ही राम को वनवास भेजा और भरत को दोष देना अनुचित है। वह स्वयं को अपराधिनी मानती हैं और चाहती हैं कि राम लौटकर अयोध्या की व्यवस्था को संभालें।

2. ‘हहा गोमुखी गंगा’ उपमा से कैकेयी के किस रूप का चित्रण किया गया है?
उत्तर– इस उपमा के माध्यम से कैकेयी के भीतर व्याप्त करुणा, शीतलता और आत्मग्लानि को बताया गया है। पहले वह सिंहनी जैसे प्रचंड रूप में थी, अब वह शांत, पावन और गंगाजल सी शुद्ध दिखाई देती हैं। यह परिवर्तन उनके पश्चाताप और आत्मस्वीकृति का प्रतीक है।

3. विशेष शपथ लेना किस प्रकार दुर्बलता का प्रतीक माना गया है?
उत्तर– कैकेयी कहती हैं कि विशेष शपथ लेना दुर्बलता का संकेत है, परंतु स्त्रियों के लिए अपनी सच्चाई सिद्ध करने के लिए यही एकमात्र मार्ग बचता है। वह बताना चाहती हैं कि उनकी विवशता और आत्मग्लानि उन्हें अपनी बात कहने को विवश कर रही है, जिसमें वह सच्ची हैं।

4. सभा की प्रतिक्रिया कैकेयी की पीड़ा पर कैसी थी?
उत्तर- सभा कैकेयी की करुण पुकार से अत्यंत प्रभावित हुई। वातावरण नीरव था, जैसे सबका हृदय पीड़ा में डूबा हो। चाँदनी रात में ओस की बूँदें गिर रही थीं, मानो प्रकृति भी रो रही हो।

5. कैकेयी ने मंथरा को दोषी क्यों नहीं ठहराया?
उत्तर– कैकेयी ने स्पष्ट कहा कि मंथरा केवल एक दासी थी, दोष उनके अपने मन का था जो भ्रमित हुआ। मंथरा ने केवल एक विचार रखा, लेकिन निर्णय लेना कैकेयी की स्वयं की भूल थी। इस प्रकार उन्होंने पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली, जो उनके पश्चाताप की गहराई को बताता है।

6. ‘वत्स भी मेरा अन्य-सा हुआ’ – इस कथन का क्या तात्पर्य है?
उत्तर– इस पंक्ति से यह व्यक्त होता है कि कैकेयी को भरत के प्रति जो प्रेम और अधिकार का भाव था, वह अब समाप्त हो गया है। भरत उन्हें अपनी माँ नहीं मानते। यह स्थिति कैकेयी के लिए अत्यंत कष्टप्रद है, क्योंकि उन्होंने भरत के लिए जो किया, वही पुत्र अब उन्हें पराया समझने लगा।

7. कैकेयी अपने मातृत्व की रक्षा की याचना क्यों करती हैं?
उत्तर- कैकेयी राम से प्रार्थना करती हैं कि वे उनसे केवल एक चीज न छीनें—मातृत्व। वह चाहती हैं कि भरत उन्हें माँ के रूप में स्वीकारते रहें।

8. ‘ज्वलित भाव’ और ‘वात्सल्य’ का द्वंद्व कैकेयी के मन में कैसे दिखाई देता है?
उत्तर– कैकेयी के मन में पहले ईर्ष्या और स्वार्थ के ‘ज्वलित भाव’ थे जिन्होंने उन्हें राम के विरुद्ध कर दिया। अब उन्हें लगता है कि क्या उनके मन में केवल कठोरता थी? क्या वात्सल्य और ममता का कोई मूल्य नहीं रहा? यह द्वंद्व उनके आत्मसंघर्ष और पश्चाताप को बताता है।

9. ‘सौ बार धन्य वह एक लाल की माई’ – इस घोषणा का क्या महत्व है?
उत्तर– यह पंक्ति सभा की ओर से भरत की माँ के प्रति सम्मान को बताती है। सब भरत की धर्मनिष्ठा से इतने प्रभावित होते हैं कि वे उसकी माँ को सौ बार धन्य कहते हैं।

10. ‘रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी’ – इस पंक्ति का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर– यह पंक्ति यह दर्शाती है कि रघुकुल जैसे वंश में भी एक ऐसी रानी हुई जिसने अपने स्वार्थ और भ्रम के कारण महान व्यक्तियों को कष्ट पहुँचाया। कैकेयी स्वीकार करती हैं कि उनका नाम युगों तक एक अभागिनी के रूप में लिया जाएगा। यह उनकी आत्मस्वीकृति है।