हमारा प्यारा भारत वर्ष पाठ सार
JKBOSE Class 10 Hindi Chapter 4 “Hamara Pyara Bharat Varsh”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Bhaskar Bhag 2 Book
हमारा प्यारा भारत वर्ष सार – Here is the JKBOSE Class 10 Hindi Bhaskar Bhag 2 Book Chapter 4 Hamara Pyara Bharat Varsh Summary with detailed explanation of the lesson ‘Hamara Pyara Bharat Varsh’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए जम्मू और कश्मीर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कक्षा 10 हिंदी भास्कर भाग 2 के पाठ 4 हमारा प्यारा भारत वर्ष पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 हमारा प्यारा भारत वर्ष पाठ के बारे में जानते हैं।
Hamara Pyara Bharat Varsh (हमारा प्यारा भारत वर्ष)
‘हमारा प्यारा भारत वर्ष’ कविता राष्ट्रप्रेम संबधी रचना है। इसमें भारतवर्ष की महानता का वर्णन किया गया है। कवि कहते हैं कि संसार में ज्ञान का आलोक (प्रकाश) सबसे पहले भारत में फैला। अधर्म और अन्याय की अपेक्षा हमारा देश धर्म की विजय को महान मानता है। यहाँ अतिथि (मेहमान) का सत्कार (सम्मान) देवता के समान होता है। शक्तिशाली होकर भी भारत अहिंसा और शांति का प्रतीक है। कवि कामना (इच्छा) करते हैं कि भारतवर्ष के लिए हम सब कुछ निछावर (त्याग) कर दें।)
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हमारा प्यारा भारत वर्ष पाठ सार Hamara Pyara Bharat Varsh Summary
‘हमारा प्यारा भारतवर्ष’ कविता में कवि भारत की विविधता, इतिहास और समृद्ध विरासत का अद्धभुत वर्णन कर रहे है। कवि भारत की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि भारत में उषा की पहली किरण हिमालय पर किसी उपहार की तरह अपने दर्शन देती है। हिमालय पर सूर्य की किरण पड़ने के कारण ओंस की बूंदें चमकने लगती है। जिससे ऐसा आभास होता है जैसे हिमालय ने हीरों का हार पहन रखा हो। भारत ने विश्व गुरु बन कर पूरे विश्व को अपने ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित किया है। भारत द्वारा फैलाए गए ज्ञान के प्रकाश से पूरे विश्व से अज्ञानता के अंधकार का विनाश हुआ। भारतीयों ने शस्त्रों के बल पर कभी किसी दूसरे देश को जीतने का प्रयास नहीं किया, भारत में प्राचीन काल से ही लोगों के मन में धर्म की भावना रही है। भारतीय संस्कृति में सम्राट भी भिक्षुक बन कर रहे हैं और घर-घर में दया का उपदेश देते रहे हैं। भारत ने यूनान को ज्ञान, विज्ञान, दर्शन से अवगत कराया। भारत ने चीन को धर्म की दृष्टि दी। अर्थात धार्मिक विचार, ध्यान, अहिंसा आदि भारत से बौद्ध धर्म और धार्मिक दर्शन द्वारा चीन पहुँचा। भारत से ही स्वर्ण-भूमि अर्थात बर्मा (म्यांमार) को केवल धन ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक, नैतिक मूल्यों जैसे बहुमूल्य रत्न भी मिले हैं। भारत ने ही श्रीलंका को शील अर्थात नैतिकता, चरित्र और संस्कृति की रचना भी दी।
भारत ने किसी पर बलपूर्वक अपना अधिकार स्थापित नहीं किया है। प्रकृति ने भारत को अपने संसाधनों से परिपूर्ण रखा है। भारत के लोग भारत में ही जन्में हैं वे कहीं और से आ कर भारत में नहीं बसे बल्कि भारत में बाहर से अनेक शरणार्थी आए और भारत में ही बस गए। भारतीयों ने अनेक जन-समुदायों को पनपते और समृद्ध होते हुए भी देखा है और उनका विनाश होते हुए भी देखा है। तूफानों, भारी वर्षा और भयानक हवाओं का भी सामना किया है। अनेक विपरीत परिस्थितियों व् भीषण विनाश के समय को हँस कर झेलने वाले वीर इस भारत की भूमि पर पले हैं। भारत में पैदा होने वाले पुत्र सदा से चरित्रवान रहे है। भारतीयों में वीरता की कभी कमी नहीं रही है। भारतीयों के स्वभाव में हमेशा से विनम्रता का भाव रहा है। भारतीयों ने कभी अपनी महानता का घमंड नहीं दिखाया है। अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व रहा है। भारत के वासी कभी भी किसी को दुखी या निर्धन नहीं देख सकते है अर्थात भारतीय सदा दीन-दुखियों की सेवा करने के लिए तैयार रहते है। भारतीयों द्वारा इकठ्ठे किए गए उनके धन में भी दान का एक भाग सदा रहता है और अतिथियों को भारत में भगवान् के बराबर माना जाता है। भारतीय अपने वचन को निभाने के लिए अपना जीवन भी त्याग सकते है। भारतीयों के हृदय में शक्ति व् पराक्रम भरा रहता है, आज भी वही देश है और भारतीयों में वही साहस और ज्ञान है, जो सदियों पहले था। वही शान्ति और शक्ति है जो हमारे पूर्वज आर्यों में थी क्योंकि हम उन्हीं की संतानें हैं। हम अपना जीवन इस भारत वर्ष के लिए अर्पित करते हैं। हम घमंड और ख़ुशी में अपना जीवन, अपना सब कुछ इस भारत वर्ष पर न्योछावर करते हैं क्योंकि भारत ने सम्पूर्ण संसार को सिर्फ भौतिक या सांसारिक वस्तुएँ नहीं दीं, बल्कि पूरे विश्व को धर्म, ज्ञान, नैतिकता, और संस्कृति की अमूल्य धरोहर सौंपी है।
हमारा प्यारा भारत वर्ष पाठ व्याख्या Hamara Pyara Bharat Varsh Explanation
1 –
हिमालय के आंगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार,
उस ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक हार।
जगे हम, लगे जगाने विश्व लोक में फैला फिर आलोक,
व्योम-तम-पुंज हुआ तब नष्ट, अखिल संसृति हो उठी अशोक।
विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम,
भिक्षुक हो कर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम।
शब्दार्थ –
उपहार – भेंट
अभिनंदन – स्वागत
हीरक हार – हीरों का हार (अर्थात प्रातः की चमकती ओस)
आलोक – प्रकाश
व्योम-तम-पुंज – आकाश पर अंधेरे का जमघट
अखिल – संपूर्ण
संसृति – सृष्टि, संसार
अशोक – शोक हीन
भिक्षुक होकर… – सम्राट अशोक बौद्ध बने थे
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि भारत की महिमा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि उषा की पहली किरण मानो हिमालय के आंगन में हमारे लिए किसी उपहार की तरह हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि भारत में उषा की पहली किरण हिमालय पर किसी उपहार की तरह अपने दर्शन देती है। सुबह की किरण हंसते हुए भारत का स्वागत करती है और हिमालय पर सूर्य की किरण पड़ने के कारण ओस की बूंदें चमकने लगती है। जिससे ऐसा आभास होता है जैसे हिमालय ने हीरों का हार पहन रखा हो।
कवि कहते हैं कि सबसे पहले ज्ञान हमारे भारत देश में ही जागृत हुआ था। भारत ने विश्व गुरु बन कर पूरे विश्व को अपने ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित किया है। विश्व में सब जगह अज्ञान रूपी अंधकार छाया हुआ था। भारत द्वारा फैलाए गए ज्ञान के प्रकाश के कारण ही पूरे विश्व से अज्ञानता के अंधकार का विनाश हुआ और पूरी सृष्टि के दुख दर्द मानो उस ज्ञान से दूर हो गए।
भारतीयों ने शस्त्रों के बल पर कभी किसी दूसरे देश को जीतने का प्रयास नहीं किया, बल्कि हमेशा धर्म के मार्ग पर चल कर ही, प्रेमभाव से सम्पूर्ण धरती पर इतिहास रचे हैं। अर्थात भारत में प्राचीन काल से ही लोगों के मन में धर्म की भावना रही है। भारतीय संस्कृति में सम्राट भी भिक्षुक बन कर रहे हैं और घर-घर में दया का उपदेश देते रहे हैं। उदाहरण के लिए – सम्राट अशोक बौद्ध बने थे और लोक कल्याण में अपना जीवन अर्पित कर दिया था।
2 –
यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि,
मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि।
किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं,
हमारी जन्म भूमि थी यही कहीं से हम आए थे नहीं।
जातियों का उत्थान, पतन, आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीरन,
खड़े देखा, झेला, हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर।
शब्दार्थ –
यवन – यूनान (ग्रीस नामक देश )
स्वर्ण – सोना
रत्न – आभूषण
शील – नैतिकता
सिंहल – श्रीलंका
छीना – जोर जबरदस्ती किसी की वस्तु हथियाना
पालना – परवरिश करना, देख-भाल करना
उत्थान – उन्नति
पतन – बर्बादी
आँधियाँ – तूफान
झड़ी – लगातार होने वाली वर्षा
प्रचंड – भंयकर, भीषण
समीरन -हवा
झेला – सामना करना
प्रलय – भीषण विपत्ति या विनाश का समय
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि कहते हैं कि भारत की संस्कृति ऐसी रही है कि भारत ने विश्व को कुछ न कुछ मूल्यवान प्रदान किया है। जैसे भारत ने यूनान को दया का दान दिया। अर्थात चंद्रगुप्त ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान भारत में छिपकर प्रवेश करने वाले यवन (यूनानी) सम्राट सिकंदर को तलवार – युद्ध में हराकर फिर जीवित छोड़ दिया था । भारत ने चीन को धर्म की दृष्टि दी। अर्थात धार्मिक विचार, ध्यान, अहिंसा आदि भारत से बौद्ध धर्म और धार्मिक दर्शन द्वारा चीन पहुँचा। भारत से ही स्वर्ण-भूमि अर्थात बर्मा देश (म्यांमार) (भारत का एक पूर्वी पड़ोसी देश) को केवल धन ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक, नैतिक मूल्यों जैसे बहुमूल्य रत्न (बौद्ध तथा जैन धर्म में दर्शन, ज्ञान और चरित्र, तीन “रत्न”) भी मिले हैं। भारत ने ही श्रीलंका को शील अर्थात सदाचार की रचना भी दी। बौद्ध धर्म में “अस्तेय यानी चोरी न करना, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, सत्य, नशीली वस्तुओं का त्याग ” इत्यादि पाँच सदाचार माने गए हैं।
कवि भारत की महानता सिद्ध करते हुए कहते हैं कि भारतीयों ने कभी किसी से जोर-जबरदस्ती कोई चीज़ नहीं ली है। अर्थात भारत ने किसी पर बलपूर्वक अपना अधिकार स्थापित नहीं किया है। प्रकृति ने भारत को अपने संसाधनों से परिपूर्ण रखा है। कहने का अभिप्राय यह है कि प्रकृति द्वारा भारत को इतना सम्पन्न किया गया है कि भारत को कभी किसी दूसरे देश से कोई आवश्यकता नहीं पड़ी। हम (आर्य) भारत के ही मूल निवासी हैं। कुछ इतिहासकारों की यह मान्यता कि आर्य मध्य एशिया से आकर भारत में बसे, कवि जयशंकर प्रसाद को स्वीकार नहीं । दुसरा अर्थ यह भी है कि भारत के लोग भारत में ही जन्में हैं वे कहीं और से आ कर भारत में नहीं बसे बल्कि भारत में बाहर से अनेक शरणार्थी आए और भारत में ही बस गए।
कवि कहते हैं कि भारतीयों ने अनेक जन-समुदायों को पनपते और समृद्ध होते हुए भी देखा है और उनका विनाश होते हुए भी देखा है। तूफानों, भारी वर्षा और भयानक हवाओं का भी सामना किया है। अनेक विपरीत परिस्थितियों व् भीषण विनाश के समय को हँस कर झेलने वाले वीर इस भारत की भूमि पर पले हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि भारत जैसे विविध संस्कृति वाले देश ने हर तरह के बुरे समय व् परिस्थितियों का सामना किया है और डट कर हमेशा खड़ा रहा है।
3 –
चरित के पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न,
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न।
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव,
वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा में रहती थी टेक।
वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान,
वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य – संतान।
जिएँ तो सदा उसी के लिए, यही अभिमान रहे, यह हर्ष,
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारत वर्ष ।
शब्दार्थ –
चरित – अच्छे चरित्र वाला
पूत – बेटा, पुत्र
नम्रता – सम्मान के साथ, विनम्रतापूर्वक
गौरव – सम्मान, आदर, इज़्ज़त
विपन्न – अभावग्रस्त, निर्धन
संचय – संग्रह
टेक – आग्रह, अभ्यास
दिव्य – अलौकिक, भव्य
अभिमान – घमंड, अहंकार
निछावर – त्याग
सर्वस्व – सब कुछ
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में भारत के गौरवशाली अतीत का बहुत सुन्दर वर्णन किया गया है। कवि कहते हैं कि भारत में पैदा होने वाले पुत्र सदा से चरित्रवान रहे है। भारतीयों की भुजाओं में भरपूर शक्ति रही है। अर्थात भारतीयों में वीरता की कभी कमी नहीं रही। भारतीयों के स्वभाव में हमेशा से विनम्रता का भाव रहा है। प्रत्येक भारतीयों के दिल में इस बात का अभिमान है कि भारतीयों के मन में हमेशा से सभी के लिए इज्ज़त, सम्मान व् आदर रहा है। कहने का अभिप्राय यह है कि भारतीयों ने कभी अपनी महानता का घमंड नहीं दिखाया है। अपनी सभ्यता और संस्कृति पर गर्व रहा है। भारत के वासी कभी भी किसी को दुखी या निर्धन नहीं देख सकते है अर्थात भारतीय सदा दिन-दुखियों की सेवा करने के लिए तैयार रहते है। भारतीयों द्वारा इकठ्ठे किए गए उनके धन में भी दान का एक भाग सदा रहता है और अथितियों को भारत में भगवान् के बराबर माना जाता है। भारतीय अपने वचन को निभाने के लिए अपना जीवन भी त्याग सकते है। भारतीयों के हृदय में शक्ति व् पराक्रम भरा रहता है और भारतीय अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहते हैं।
आज भी हमारे भीतर पूर्वजों का वही रक्त है, आज भी देश वही है, हमारे साहस में भी कोई कमी नहीं है और हमारा ज्ञान भी उन्हीं की देन है। हमारे भीतर भी वही शान्ति और शक्ति है जो हमारे पूर्वज आर्यों में थी क्योंकि हम उन्हीं की संतानें हैं।
हम अपना जीवन इस भारत वर्ष के लिए अर्पित करते हैं। हम घमंड और ख़ुशी में अपना जीवन, अपना सब कुछ इस भारत वर्ष पर न्योछावर करते हैं क्योंकि भारत ने सम्पूर्ण संसार को सिर्फ भौतिक या सांसारिक वस्तुएँ नहीं दीं, बल्कि पूरे विश्व को धर्म, ज्ञान, नैतिकता, और संस्कृति की अमूल्य धरोहर सौंपी है।
Conclusion
हमारा प्यारा भारतवर्ष शीर्षक कविता जय शंकर प्रसाद जी द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने भारत की प्राचीन संस्कृति एवं गौरवशाली इतिहास का गुण-गान किया है। भारतवासियों ने समस्त विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैलाया है। हमारा देश सदैव अहिंसा और शांति का पुजारी रहा है। हमने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया। भारत सदा से ही आर्यों की जन्म भूमि रहा है, वे कहीं बाहर से नहीं आए। हम कभी किसी को दुखी नहीं देख सकते। हम अपने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने का संकल्प रखते हैं। इस लेख में पाठ प्रवेश, पाठ सार, शब्दार्थ सहित व्याख्या दिए गए हैं। विद्यार्थी इस लेख के जरिए अपनी कठिनाइयों को हल कर सकते हैं।