मीरा के पद पाठ सार
CBSE Class 7 Hindi Chapter 10 “Meera ke Pad”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book
चिड़िया सार – Here is the CBSE Class 7 Hindi Malhar Chapter 10 Meera ke Pad Summary with detailed explanation of the lesson ‘Meera ke Pad’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 7 हिंदी मल्हार के पाठ 10 मीरा के पद पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 7 मीरा के पद पाठ के बारे में जानते हैं।
Meera ke Pad (मीरा के पद)
पाठ में दो पद दिए गए हैं। पहले पद में मीराबाई का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम एवं भक्ति भाव प्रदर्शित हुआ है। मीराबाई ने श्रीकृष्ण के दिव्य एवं मनमोहक रूप का चित्रण किया हैं। दूसरे पद में मीराबाई सावन ऋतु की सौंदर्य और अपने हृदय में उठी प्रभु-प्रेम की उमंग का वर्णन करती हैं। सावन के प्राकृतिक सौंदर्य में उन्हें प्रभु श्रीकृष्ण के आगमन की आहट सुनाई देती है। वे ख़ुशी से प्रभु की महिमा गाने लगती हैं।
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मीरा के पद पाठ सार Meera ke Pad Summary
‘मीरा के पद’ पाठ में मीराबाई के दो पद दिए गए हैं। जिसमें से पहले पद में मीराबाई श्रीकृष्ण के मनमोहक रूप का वर्णन कर रही हैं। मीरा श्रीकृष्ण से निवेदन करती हैं कि श्री कृष्ण उनकी आँखों में बस जाए। मीरा ने श्रीकृष्ण के आकर्षक सौंदर्य का वर्णन नहीं किया है। जिसमें श्री कृष्ण की साँवली सूरत और बड़ी-बड़ी आँखों वाली आकृति, होठों पर अमृत रस बरसाने वाली बाँसुरी, उनके उनके हृदय पर वैजंती माला, कमर पर छोटी-छोटी घंटियों वाली करधनी, उनके पैरों में बंधी पायल का अद्भुत वर्णन किया है। मीरा श्रीकृष्ण को संतों को सुख देने वाले और भक्तों के प्रति स्नेह रखने वाले हैं व् अपने आराध्य मानती हैं।
दूसरे पद में मीराबाई ने वर्णन किया है कि उन्हें किस तरह सावन में श्रीकृष्ण के अगमन का संकेत मिलता है। मीराबाई कहती हैं कि सावन की सुंदर -सुहावनी घटाएँ मीरा के मन को उमंग से भर देती है, और उसी वर्षा की ध्वनि में मीरा को उनके प्रभु श्रीकृष्ण के आगमन का आभास होता है। छोटी-छोटी बूंदें जब बादलों से बरसती हैं, तो ठंडी-ठंडी शीतल हवा से मन आनंदित हो उठता है। मीरा इस सावन के मौसम में अपने प्रिय गिरधर गोपाल को याद करती हुई, आनंद और भक्ति में मग्न होकर प्रभु के मंगल गीत गाने लगती हैं।
मीरा के पद पाठ व्याख्या Meera ke Pad Explanation
(1)
बसो मेरे नैनन में नंदलाल ।
मोहन मूरति साँवरि सूरति, नैना बने विशाल ॥
अधर सुधा रस मुरली राजति, उर वैजंती माल ॥
क्षुद्र घंटिका कटितट सोभित, नूपुर शब्द रसाल ॥
मीरा के प्रभु संतन सुखदाई, भक्त वछल गोपाल ॥
शब्दार्थ –
बसो – बसना, रहना
नैनन – आँख
नंदलाल – नन्द के पुत्र, श्री कृष्ण
मोहन – मन को लुभाने वाला, श्री कृष्ण
मूरति – मूर्ति, आकृति
साँवरि – साँवली (रंग)
सूरति – छवि
अधर – होंठ
सुधा रस – अमृत जैसा रस
मुरली – बाँसुरी
राजति – शोभित होती है
उर – हृदय
वैजंती माल – फूलों की माला (कृष्ण जी की विशेष माला)
क्षुद्र – दरिद्र
घंटिका – छोटी घंटियाँ
कटितट – कमर का किनारा
नूपुर – पायल
रसाल – मधुर
संतन सुखदाई – संतों को सुख देने वाले
भक्त वछल – भक्तों से प्रेम करने वाले
गोपाल – श्रीकृष्ण (गायों के रक्षक)
व्याख्या – प्रस्तुत पद में मीराबाई श्रीकृष्ण के मनमोहक रूप का वर्णन कर रही हैं। मीरा श्रीकृष्ण से निवेदन करती हैं कि श्री कृष्ण उनकी आँखों में बस जाए। मीरा अपने आराध्य श्रीकृष्ण के आकर्षक सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि श्री कृष्ण की साँवली सूरत और बड़ी-बड़ी आँखों वाली आकृति मन को मोहित करने वाली है। उनके होठों पर अमृत रस बरसाने वाली बाँसुरी सुशोभित रहती है। उनके हृदय पर वैजंती माला और कमर पर छोटी-छोटी घंटियों वाली करधनी शोभा बढ़ाती हैं। उनके पैरों में बंधी पायल अत्यंत मधुर ध्वनि उत्पन करती हैं। मीरा कहती हैं कि जो संतों को सुख देने वाले और भक्तों के प्रति स्नेह रखने वाले हैं, ऐसे गोपाल (गौओं के रक्षक) अर्थात श्री कृष्ण ही उनके आराध्य हैं।
(2)
बरसे बदरिया सावन की, सावन की मन भावन की।
सावन में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुनी हरि आवन की ॥
उमड़ घुमड़ चहुँ दिश से आया, दामिन दम कै झर लावन की।
नन्हीं नन्हीं बूँदन मेहा बरसे, शीतल पवन सोहावन की ॥
मीरा के प्रभु गिरधरनागर, आनंद मंगल गावन की ॥

शब्दार्थ –
बरसे – वर्षा की रिमझिम ध्वनि
बदरिया – बादलों की गड़गड़ाहट की ध्वनि
मन भावन – मन को भाने वाली
उमग्यो – उमंग से भरा हुआ
भनक – आभास
आवन की – आने की
उमड़ घुमड़ – बादलों की गरजने और मँडराने की गूँज
चहुँ दिश से – चारों दिशाओं से
दामिन दम – बिजली की चमक और उसकी आवाज़
झर लावन की – झरने की तरह गिरती वर्षा की ध्वनि
नन्हीं-नन्हीं बूँदन – वर्षा की छोटी-छोटी बूँदें|
शीतल पवन – ठंडी हवा
सोहावन – सुहावना
गावन की – गाने की क्रिया
व्याख्या – प्रस्तुत पद में मीराबाई ने वर्णन किया है कि उन्हें किस तरह सावन में श्रीकृष्ण के अगमन का संकेत मिलता है। मीराबाई कहती हैं कि सावन की सुंदर -सुहावनी घटाएँ बरसने लगी हैं। सावन की ऋतु मन को अत्यंत प्रसन्न करने वाली होती है। सावन में वर्षा ऋतु का दृश्य मीरा के मन को उमंग से भर देता है, और उसी वर्षा की ध्वनि में मीरा को उनके प्रभु श्रीकृष्ण के आगमन का आभास होता है। कहने का आशय यह है कि बादलों की गरज और बूँदों की रिमझिम में मीरा को श्रीकृष्ण के आने की आहट सुनाई देती है। सावन चारों दिशाओं से गरजता बरसता हुआ आता है, साथ ही बिजली की चमक (दामिन) और बूँदों की झड़ी को भी साथ लता है। जो मीरा के मन में प्रभु की उपस्थिति का संकेत देती हैं। छोटी-छोटी बूंदें जब बादलों से बरसती हैं, तो ठंडी-ठंडी शीतल हवा से मन आनंदित हो उठता है। मीरा इस सावन के मौसम में अपने प्रिय गिरधर गोपाल को याद करती हुई, आनंद और भक्ति में मग्न होकर प्रभु के मंगल गीत गाने लगती हैं।
निष्कर्ष –
पाठ में दो पद दिए गए हैं। पहले पद में मीराबाई का श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम एवं भक्ति भाव प्रदर्शित हुआ है। दूसरे पद में मीराबाई सावन ऋतु की सौंदर्य और अपने हृदय में उठी प्रभु-प्रेम की उमंग का वर्णन करती हैं। वे ख़ुशी से प्रभु की महिमा गाने लगती हैं। इस लेख में पाठ प्रवेश, पाठ सार, शब्दार्थ सहित व्याख्या दिए गए हैं जो कक्षा 7 के विद्यार्थियों को परीक्षा में सहायक हैं।