वर्षा-बहार पाठ सार
CBSE Class 7 Hindi Chapter 7 “Varsha Bahar”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book
वर्षा-बहार सार – Here is the CBSE Class 7 Hindi Malhar Chapter 7 Varsha Bahar Summary with detailed explanation of the lesson ‘Varsha Bahar’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 7 हिंदी मल्हार के पाठ 7 वर्षा-बहार पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 7 वर्षा-बहार पाठ के बारे में जानते हैं।
Varsha Bahar (वर्षा-बहार)
लेखक: मुकुटधर पांडेय
वर्षा ऋतु पर आधारित यह कविता मुकुटधर पांडेय द्वारा रचित है जो प्रकृति की अनुपम छटा और उसके प्रभावों को सुंदर शब्दों में प्रस्तुत करती है। कवि ने बादलों की गड़गड़ाहट, बिजली की चमक, झरनों की बहती धाराओं, और ठंडी हवा से लेकर मोर, मेंढक, पपीहे तथा किसानों तक – सभी दृश्य और भावों को चित्रात्मक शैली में व्यक्त किया है। यह रचना केवल एक ऋतु का वर्णन नहीं, बल्कि वर्षा से जुड़ी सजीवता, उल्लास और सौंदर्य का उत्सव है।
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वर्षा-बहार पाठ सार Varsha Bahar Summary
यह कविता वर्षा ऋतु की मनोहारी छवि और उसकी सजीवता को अत्यंत सरस और चित्रात्मक रूप में प्रस्तुत करती है। कवि वर्षा ऋतु की शुरुआत से लेकर उसके प्रभावों तक का वर्णन बहुत ही सजीव शैली में करते हैं। कविता की शुरुआत में कवि बताते हैं कि वर्षा की बहार सबके मन को लुभा रही है। आकाश में घनघोर बादल छाए हुए हैं और वहाँ की छटा अनूठी और दर्शनीय बन गई है। बिजली की चमक और बादलों की तेज गड़गड़ाहट वातावरण को रहस्यमय और रोमांचक बना रही है। झरने उफन कर बहने लगे हैं, जिससे प्रकृति की शोभा और अधिक निखर गई है।
वर्षा ऋतु के आगमन से चारों ओर ठंडी और सुहावनी हवा बह रही है। पेड़ों की डालियाँ मंद पवन के कारण झूमने लगी हैं। बाग-बगिचों में काम करने वाली मालिनें वर्षा की ठंडक और वातावरण की ताजगी से प्रसन्न होकर मधुर गीत गा रही हैं। तालाबों में रहने वाले जलचर जैसे मछलियाँ, कछुए, आदि प्राणी भी पानी से भरपूर अपने घरों में आनंद का अनुभव कर रहे हैं। पपीहे, जिनका वर्षा से विशेष संबंध होता है, खुशी-खुशी इधर-उधर उड़ते फिर रहे हैं और गर्मी की तपन को भूलकर शीतलता का अनुभव कर रहे हैं।
जंगल का दृश्य भी अत्यंत मनोरम हो उठा है। वन में सभी मोर अपने पंख फैलाकर नृत्य कर रहे हैं। वर्षा की फुहारों के साथ वे प्रकृति के संगीत पर थिरक रहे हैं। वहीं मेंढक अपनी टर्र-टर्र की आवाज में जैसे वर्षा का स्वागत गीत गा रहे हैं। ये ध्वनियाँ वर्षा ऋतु की पहचान हैं और उनके गीतों में एक प्रकार की सरलता और सहजता होती है जो सुनने में मनभावन लगती है।
वर्षा ऋतु में फूल भी खिल उठते हैं। गुलाब का फूल अपनी सुंदरता और मधुर सुगंध से वातावरण को सुगंधित कर रहा है। बागों और उद्यानों में एक सुखमय और आमोद-प्रमोद का वातावरण बन गया है। सभी जीव-जंतु और पौधे इस ऋतु की ताजगी और ठंडक का आनंद ले रहे हैं।
आकाश में बादल इस प्रकार चल रहे हैं मानो एक पँक्ति में हंसों का झुंड उड़ रहा हो। यह दृश्य अत्यंत शांतिपूर्ण और सुंदर प्रतीत होता है। खेतों में काम करने वाले किसान भी इस ऋतु से अत्यंत प्रसन्न हैं। वर्षा उनके लिए खुशहाली और फसल का प्रतीक होती है। वे खेतों में काम करते हुए खुशी से गीत गाते हैं जो उनके परिश्रम में मिठास घोलते हैं।
अंत में कवि कहते हैं कि वर्षा ऋतु धरती के लिए एक अनुपम और अनोखी सौगात है। इसकी बहार सम्पूर्ण जगत की शोभा का आधार है। यदि वर्षा न हो, तो जीवन ठहर सा जाए, प्रकृति मुरझा जाए, और मानव जीवन संकट में पड़ जाए। इसीलिए कवि इस ऋतु को प्रकृति की सुंदरतम देन मानते हैं, जो सभी प्राणियों को आनंद, ताजगी और नवजीवन प्रदान करती है।
वर्षा-बहार पाठ व्याख्या Varsha Bahar Explanation
1
वर्षा-बहार सब के मन को लुभा रही है।
नभ में छटा अनूठी, घनघोर छा रही है।
बिजली चमक रही है, बादल गरज रहे हैं।
पानी बरस रहा है, झरने भी ये बहे हैं।
शब्दार्थ-
वर्षा-बहार – वर्षा ऋतु की सुंदरता, वर्षा का सौंदर्य
लुभा रही है – आकर्षित कर रही है
नभ – आकाश
छटा – दृश्य, शोभा, सुंदरता
अनूठी – अद्वितीय, एकदम अलग और सुंदर
घनघोर – घने और गहरे
छा रही है – फैल रही है
बिजली – आकाशीय चमक, विद्युत
गरज रहे हैं – तेज आवाज के साथ गूंज रहे हैं
बरस रहा है – गिर रहा है (वर्षा होना)
व्याख्या – कवि बताते हैं कि वर्षा ऋतु की यह मनमोहक छटा सभी के मन को आकर्षित कर रही है। आकाश में घने काले बादलों ने अद्वितीय दृश्य रचा है। बिजली की चमक और बादलों की गड़गड़ाहट वातावरण को और भी रोमांचक बना रही है। लगातार होती वर्षा से झरने उफान मारते हुए बह रहे हैं, जो दृश्य को और सुंदर बना रहे हैं।
2
चलती हवा है ठंडी, हिलती हैं डालियाँ सब
बागों में गीत सुंदर, गाती हैं मालिनें अब
तालों में जीव जलचर, अति हैं प्रसन्न होते
फिरते लखो पपीहे, हैं ग्रीष्म ताप खोते।
शब्दार्थ-
चलती हवा – बहती हुई वायु
ठंडी – शीतल
डालियाँ – पेड़ की शाखाएँ
बागों – बग़ीचों, उद्यानों
गीत सुंदर – मधुर और प्यारे गीत
मालिनें – बागों में काम करने वाली स्त्रियाँ, माली की स्त्री
तालों – तालाबों
जीव जलचर – जल में रहने वाले प्राणी, जैसे- मछलियाँ, मेंढक आदि
अति प्रसन्न होते – बहुत प्रसन्न होते हैं, अत्यधिक खुश होते हैं
फिरते – घूमते, इधर-उधर उड़ते
लखो – अनेक, असंख्य
पपीहे – एक प्रकार का पक्षी जो वर्षा ऋतु में कूकता है
ग्रीष्म ताप – गर्मी की गर्म लहर या तपन
व्याख्या – कवि कहते हैं कि वर्षा ऋतु की ठंडी हवा के चलते पेड़ों की शाखाएँ हिल रही हैं। बाग-बगिचों में मालिनें प्रसन्न होकर मधुर गीत गा रही हैं। तालाबों में रहने वाले जलचर जीव आनंदित हैं और चारों ओर पपीहे घूमते हुए अपनी गर्मी की थकान को मिटाते दिख रहे हैं।

3
करते हैं नृत्य वन में, देखो ये मोर सारे
मेंढक लुभा रहे हैं, गाकर सुगीत प्यारे।
खिलता गुलाब कैसा, सौरभ उड़ा रहा है,
में खूब सुख से, आमोद छा रहा है।
शब्दार्थ-
नृत्य – नाच, नाचना
वन – जंगल
लुभा रहे हैं – आकर्षित कर रहे हैं, मन मोह रहे हैं
सुगीत प्यारे – सुंदर और मनभावन गीत
सौरभ – खुशबू, सुगंध
उड़ा रहा है – फैला रहा है
सुख से – आनंदपूर्वक, प्रसन्नता के साथ
आमोद – प्रसन्नता, सुख का वातावरण
छा रहा है – फैल रहा है, भर गया है
व्याख्या – कवि कहते हैं कि वर्षा के मौसम में वन के सभी मोर आनंदपूर्वक नृत्य कर रहे हैं। मेंढक अपनी टर्र-टर्र की आवाज में मनमोहक गीत गा रहे हैं। गुलाब के खिले फूल अपनी मधुर सुगंध से वातावरण को महका रहे हैं। चारों ओर वर्षा के इस सौंदर्य के सुख से प्रसन्नता की भावना छाई हुई है।
4
चलते हैं हंस कहीं पर, बाँधे कतार सुंदर
गाते हैं गीत कैसे लेते किसान मनहर ।
इस भाँति है अनोखी, वर्षा बहार भू पर
सारे जगत की शोभा, निर्भर है इसके ऊपर।
शब्दार्थ-
चलते हैं – आगे बढ़ते हैं, उड़ते हुए जाते हैं
हंस – एक प्रकार का सुंदर पक्षी, यहाँ बादलों का रूपक
कतार – पंक्ति
गीत – गाने, मधुर स्वर
मनहर – मन को हर्षित करने वाले, मनभावन
भाँति – प्रकार, तरह
अनोखी – विशेष, अद्वितीय
वर्षा बहार – वर्षा ऋतु की सुंदरता, वर्षा का सौंदर्य
भू पर – पृथ्वी पर, धरती पर
सारे जगत – पूरा संसार
शोभा – सुंदरता, आकर्षण
निर्भर है – आश्रित है, टिकी हुई है
व्याख्या- कवि कहते हैं कि आकाश में बादल ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानो सुंदर पंक्तियों में हंस उड़ रहे हों। किसान खेतों में खुशी से मधुर गीत गा रहे हैं। इस प्रकार वर्षा ऋतु अपनी विशेषता के कारण धरती पर अद्वितीय बहार लेकर आती है, और संपूर्ण जगत की शोभा इसी पर आधारित है।
Conclusion
दिए गए पोस्ट में हमने ‘वर्षा-बहार’ नामक कविता का साराँश, पाठ व्याख्या और शब्दार्थ को जाना। यह पाठ कक्षा 7 हिंदी के पाठ्यक्रम में मल्हार पुस्तक से लिया गया है। यह कविता मुकुटधर पांडेय द्वारा रचित है।
इस कविता में वर्षा ऋतु की मनोहारी छवि और उसकी सजीवता को बहुत ही सरस और चित्रात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
यह पोस्ट विद्यार्थियों को पाठ को गहराई से समझने में मदद करेगा और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में भी सहायक सिद्ध होगा।

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