नहीं होना बीमार पाठ सार

CBSE Class 7 Hindi Chapter 5 “Nahi Hona Bimar”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book

 

नहीं होना बीमार सार – Here is the CBSE Class 7 Hindi Malhar Chapter 5 Nahi Hona Bimar Summary with detailed explanation of the lesson ‘Nahi Hona Bimar’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 7 हिंदी मल्हार के पाठ 5 नहीं होना बीमार पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 7 नहीं होना बीमार पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Nahi Hona Bimar (नहीं होना बीमार)

 

लेखक: स्वयं प्रकाश 

 

‘नहीं होना बीमार’ स्वयं प्रकाश द्वारा लिखित एक हास्यप्रद एवं शिक्षाप्रद कहानी है, जिसमें एक बच्चे के माध्यम से यह दिखाया गया है कि बीमारी का बहाना बनाकर स्कूल से छुट्टी लेने की कोशिश कैसे उलटी पड़ जाती है। कहानी में बालमन की जिज्ञासा, कल्पनाशक्ति और अनुभवों को बड़ी सहजता और रोचकता से प्रस्तुत किया गया है। यह अध्याय न केवल मनोरंजन करता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि झूठ बोलने और जिम्मेदारी से बचने का परिणाम अक्सर कष्टदायक होता है।

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नहीं होना बीमार- पाठ सार  Nahi Hona Bimar Summary

 

यह अध्याय एक बच्चे के अनुभवों के माध्यम से यह संदेश देता है कि बीमारी का नाटक करना कभी-कभी खुद के लिए परेशानी का कारण बन सकता है। कहानी की शुरुआत उस दिन से होती है जब लेखक अपनी नानी के साथ सुधाकर काका को अस्पताल में देखने जाता है। वहाँ का शांत, साफ-सुथरा माहौल, आरामदायक बिस्तर और स्वादिष्ट खीर देखकर उसके मन में यह इच्छा जागती है कि काश वह भी बीमार होता।

कुछ दिनों बाद जब उसे स्कूल नहीं जाने का मन होता है और होमवर्क भी अधूरा होता है, तो वह बीमार होने का नाटक करता है। वह सिरदर्द, पेटदर्द और बुखार का बहाना बनाता है। शुरुआत में सब उसकी बातों पर ध्यान देते हैं, लेकिन धीरे-धीरे उसे एहसास होता है कि बीमार होना उतना मज़ेदार नहीं जितना उसने सोचा था। उसे कड़वी दवाइयाँ और काढ़ा पीना पड़ता है, खाना नहीं मिलता, और अकेलेपन व ऊब के कारण उसका मन बेचैन हो उठता है।

दिन भर वह अपने दोस्तों, स्कूल और गली की हलचल को याद करता रहता है। जब भूख के मारे उसकी हालत खराब हो जाती है और वह घर के अन्य सदस्यों को स्वादिष्ट भोजन करते देखता है, तो उसे अपनी गलती का अहसास होता है। अंत में वह इस अनुभव से यह सबक सीखता है कि बीमारी का झूठा बहाना बनाना मूर्खता है और इसके बाद वह कभी भी इस तरह की चालाकी नहीं करेगा।

अंत में, यह कहानी हास्य के माध्यम से जीवन की एक गंभीर बात सिखाती है—ईमानदारी, ज़िम्मेदारी और अनुशासन का महत्व। इस पाठ में लेखक ने बाल मनोविज्ञान को बड़े ही सरल और रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है।

 

नहीं होना बीमार पाठ व्याख्या Nahi Hona Bimar Explanation

 

पाठ
एक दिन मुझे साथ लेकर नानीजी हमारे पड़ोसी सुधाकर काका को देखने गईं, जो बीमार थे। वे अस्पताल में भर्ती थे। अस्पताल जाने का यह मेरा पहला अवसर था।
एक बड़े से वार्ड में कई एक जैसे पलंग लाइन से लगे हुए थे। सब पर एक जैसी सफेद चादर और लाल कंबल । सफेद दीवारें, ऊँची छत, खिड़कियों पर हरे परदे और फर्श एकदम चमकता हुआ। एक पलंग पर सुधाकर काका लेटे हुए थे। एकदम पास पहुँचने पर दिखाई दिया।
हमें देखकर सुधाकर काका जैसे खुश हो गए। नानीजी ने उनके सिर पर हाथ फेरा और उनके सिरहाने खड़ी हो गईं और हालचाल पूछने लगीं।
अस्पताल का माहौल मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था। बड़ी-बड़ी खिड़कियों के पास हरे-हरे पेड़ झूम रहे थे। न ट्रैफिक का शोरगुल, न धूल, न मच्छर-मक्खी…। सिर्फ लोगों के धीरे-धीरे बातचीत करने की धीमी-धीमी गुनगुन । बाकी एकदम शांति।

शब्दार्थ-
अस्पताल – रोगियों के इलाज का स्थान
भर्ती – दाखिल होना
अवसर – मौका
वार्ड – अस्पताल का एक खंड या कमरा जहाँ कई रोगी साथ रहते हैं
पलंग – सोने के लिए लकड़ी या लोहे का बना बिस्तर
सिरहाने – सिर के पास का स्थान, बिस्तर का वह हिस्सा जहाँ सिर रखा जाता है
माहौल – वातावरण
शोरगुल – आवाज़ें, हल्ला
गुनगुन – धीमी आवाज में बातें या गुनगुनाहट

व्याख्या- इस अंश में लेखक अपने बचपन की उस घटना का वर्णन कर रहा है जब वह पहली बार अपनी नानी के साथ अस्पताल गया। नानी उसे अपने पड़ोसी सुधाकर काका को देखने ले गईं, जो बीमार होकर अस्पताल में भर्ती थे। लेखक के लिए यह अनुभव नया था और वह अस्पताल का दृश्य देखकर प्रभावित हुआ।
वह वर्णन करता है कि अस्पताल का बड़ा सा वार्ड कैसा दिख रहा था—सभी पलंग एक जैसे थे, सफेद चादरें, लाल कंबल, ऊँची सफेद दीवारें, हरे परदे, और चमकदार फर्श। यह सब कुछ लेखक को साफ-सुथरा और आकर्षक लगा। जब वह सुधाकर काका के पास पहुँचा, तो वे उन्हें देखकर खुश हो गए। नानीजी ने स्नेहपूर्वक उनके सिर पर हाथ फेरा और उनका हालचाल पूछा।
लेखक को अस्पताल का वातावरण बहुत शांत और सुखद लगा—बाहर झूमते पेड़, न कोई शोर, न धूल-मिट्टी, न मच्छर-मक्खियाँ, बस लोगों की धीमी-धीमी बातचीत की आवाजें और पूरी तरह शांति। यह सब देखकर लेखक के मन में यह विचार आने लगा कि बीमार होना भी शायद अच्छा अनुभव हो सकता है।
यह गद्याँश उस मासूम बालमन की झलक देता है जो बाहरी सुख-सुविधाओं को देखकर वास्तविकता की गहराई नहीं समझ पाता, और उसके मन में बीमार होने की कल्पना अच्छी लगने लगती है।

Nahi Hona Bimar Summary img 3

पाठ
तभी सफेद कपड़ों में एक नर्स आई। नर्स ने नानीजी को देखकर अभिवादन में सिर हिलाया और काका को दवा खिलाई। नानीजी काका के लिए साबूदाने की खीर बनाकर लाई थीं। नर्स से पूछा कि खिला दूँ क्या? नर्स के हाँ कहने पर उसके जाने के बाद नानीजी ने चम्मच से धीरे-धीरे काका को साबूदाने की खीर खिलाई। काका ने बहुत स्वाद लेकर खीर खाई।Nahi Hona Bimar Summary img 2
क्या ठाठ हैं बीमारों के भी। मैंने सोचा …. ठाठ से साफ-सुथरे बिस्तर पर लेटे रहो और साबूदाने की खीर खाते रहो! काश! सुधाकर काका की जगह मैं होता! मैं कब बीमार पहूँगा!
कुछ रोज बाद एक दिन मेरा स्कूल का मन नहीं किया। मैंने होमवर्क भी नहीं किया था। स्कूल जाता तो जरूर सजा मिलती। मैंने सोचा बीमार पड़ने के लिए आज का दिन बिलकुल ठीक रहेगा। चलो बीमार पड़ जाते हैं।
मैं रजाई से निकला ही नहीं । नानीजी उठाने आईं तो मैंने कहा, “मैं आज बीमार हूँ।”

शब्दार्थ-
नर्स – अस्पताल में रोगियों की देखभाल करने वाली महिला
अभिवादन – नमस्कार, सम्मान प्रकट करने की क्रिया
ठाठ – आराम, सुख-सुविधा
काश – इच्छा प्रकट करने वाला शब्द
होमवर्क – स्कूल का दिया गया घर का कार्य

व्याख्याइस गद्याँश में लेखक अपनी मासूम बाल-सोच को व्यक्त करता है। अस्पताल में सुधाकर काका की देखभाल देखकर उसका बालमन भ्रमित हो जाता है और वह बीमार होने को एक आरामदायक स्थिति समझने लगता है।
कहानी में आगे बताया गया है कि एक सफेद कपड़ों में नर्स आती है, जो सुधाकर काका को दवा देती है और नानी को देखकर सिर हिलाकर नमस्कार करती है। नानीजी उनके लिए साबूदाने की खीर लेकर आई थीं, और नर्स की अनुमति से उन्होंने वह खीर धीरे-धीरे काका को खिलाई। काका ने बड़े स्वाद से वह खीर खाई। यह दृश्य लेखक को बहुत सुखद और आकर्षक लगता है।
इस अनुभव से लेखक के मन में यह ख्याल आता है कि बीमारों के ठाठ हैं। यानी बीमार होना भी एक आरामदायक और सुखद स्थिति लगती है—साफ-सुथरा बिस्तर, स्वादिष्ट खाना, और सबका ध्यान। बालमन की इसी मासूम कल्पना से प्रेरित होकर वह सोचता है कि सुधाकर काका की जगह मैं होता।
कुछ दिन बाद, जब लेखक का स्कूल जाने का मन नहीं होता और होमवर्क भी अधूरा होता है, तो वह सोचता है कि आज बीमार पड़ जाना ही अच्छा रहेगा, ताकि स्कूल से बचा जा सके। इसलिए वह रजाई से नहीं निकलता और जब नानीजी उठाने आती हैं, तो वह कहता है कि वह आज बीमार है।
यह अंश बच्चों की भोली सोच और कल्पनाशक्ति को बताता है, जिसमें वे सच्चाई की गहराई को न समझकर बाहरी सुख-सुविधाओं के आधार पर निष्कर्ष निकाल लेते हैं।

पाठ
“क्या हो गया?”
“मेरे सिर में दर्द हो रहा है। पेट भी दुख रहा है और मुझे बुखार भी है।”Nahi Hona Bimar Summary img 1
नानीजी चली गई।
मैं रजाई में पड़ा पड़ा घर में चल रही गतिविधियों का अनुमान लगाता रहा। अब छोटे मामा नहाकर निकले। अब कुसुम मौसी रोज की तरह नाश्ता छोड़कर कॉलेज बस पकड़ने भागीं। अब मुन्नू अपना जूता ढूँढ रहा है। अब छोटे मामा ने साइकिल उठाई। अब सब चले गए। अब घर में मैं अकेला रह गया।
पता नहीं कब झपकी-सी आ गई।
तभी नानाजी आए। “क्या हो गया? क्या हो गया?”
“बुखार आ गया।” मैंने कराहते हुए कहा।
“देखें!” नानाजी ने रजाई हटाकर मेरा माथा छुआ। पेट देखा और नब्ज देखने लगे।
इस बीच नानीजी भी आ गईं। “क्या हुआ?”, नानीजी ने पूछा।
“बुखार तो नहीं है।” नानाजी बोले।
“आपको पता नहीं चल रहा । थर्मामीटर लगाकर देखिए। ” मैंने कहा ।

शब्दार्थ-
बुखार – शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होना, रोग का लक्षण
गतिविधियाँ – क्रियाएँ, काम-काज
अनुमान लगाना – अंदाज़ा लगाना, बिना देखे समझने की कोशिश करना
झपकी – थोड़ी देर की नींद
कराहते हुए – दर्द या दुख प्रकट करते हुए धीमी आवाज़ में बोलना
नब्ज देखना – हाथ की नस की गति से शरीर की हालत जानना
थर्मामीटर – शरीर का तापमान मापने का उपकरण

व्याख्या- इस अंश में लेखक अपने मासूम और चालाक बालमन का चित्रण करता है। उसने स्कूल से बचने के लिए झूठ ही बीमारी का बहाना बनाया है। जब नानीजी लेखक से पूछती हैं कि क्या हो गया। तो वह तुरंत कई शिकायतें गिना देता है—सिर दर्द, पेट दर्द और बुखार, ताकि उसकी बीमारी पर विश्वास हो जाए।
नानीजी उसकी बात सुनकर चली जाती हैं, और अब वह रजाई में पड़े-पड़े घर के वातावरण की कल्पना करने लगता है—कौन क्या कर रहा है, छोटे मामा नहाकर निकले, रोज की तरह कुसुम मौसी नाश्ता छोड़कर कॉलेज के लिए भागी, मुन्नू स्कूल जाने के लिए अपना जूता ढूँढ रहा है, छोटे मामा ने साइकल उठाई आदि। वह जानता है कि अब सब अपने-अपने काम पर निकल जाएँगे और वह अकेला घर में रहेगा।
कुछ देर बाद उसे झपकी आ जाती है। तभी नानाजी आते हैं और उससे पूछते हैं कि क्या हो गया है। लेखक कराहते हुए जवाब देता है कि बुखार आ गया है। नानाजी उसकी हालत जाँचने लगते हैं। माथा छूते हैं, पेट देखते हैं और नब्ज भी टटोलते हैं।
इसी बीच नानीजी भी आ जाती हैं और फिर से पूछती हैं कि क्या हुआ। नानाजी कहते हैं कि बुखार तो नहीं है, लेकिन लेखक इस बात को मानने को तैयार नहीं होता। वह कहता है—”आपको पता नहीं चल रहा, थर्मामीटर लगाकर देखिए।”
यह अंश बच्चों की उस भोली मगर चतुर सोच को बताता है, जिसमें वे अपने मन की बात मनवाने के लिए हर संभव उपाय करते हैं। लेखक बीमारी का नाटक करके स्कूल से बचने की कोशिश कर रहा है, लेकिन घर के बड़ों की समझदारी के आगे उसकी योजना धीरे-धीरे खुलती जा रही है।

पाठ
मुझे पता था घर में कोई नहीं है। थर्मामीटर लगा भी लिया तो देखेगा कौन? पर खुद को बीमार साबित करने के लिए यह चाल अच्छी थी। बहुत ढूँढा गया पर थर्मामीटर मिला ही नहीं। शायद कोई माँगकर ले गया था।
फिर नानाजी की आवाज आई, “ले, पुड़िया खा ले।” न चाहते हुए भी मुझे कड़वी पुड़िया खानी पड़ी और काढ़े जैसी चाय पीनी पड़ी। फिर नानाजी बोले, “आज इसे खाने को मत देना। आराम करने दो। शाम को देखेंगे।”
दोनों चले गए।
मैं पता नहीं कब नींद में गुडुप हो गया।
कुछ देर बाद जब मेरी आँख खुली मुझे बड़ी तेज इच्छा हुई कि इसी समय बाहर निकलकर दिन की रोशनी में अपनी गली की चहल-पहल देखूँ । देखा जाए कि चंदूभाई ड्राइक्लीनर क्या कर रहे हैं? तेजराम की दुकान पर कितने ग्राहक बैठे हैं? महेश घी सेंटर ने मलाई का भगोना आँच पर चढ़ाया या नहीं और टेलीफोन के तारों पर कितनी चिड़िया बैठी हैं? लेकिन मजबूरी थी। चाहे जितनी ऊब हो, लेटे ही रहना था।
कुछ देर इधर-उधर की, स्कूल की, दोस्तों की बातें सोचता रहा… फिर लेटे-लेटे पीठ दुखने लगी तो उठकर बैठ गया। लेकिन बाहर कुछ आहट होते ही फिर से लेट गया।

शब्दार्थ-
चाल – तरकीब, युक्ति
पुड़िया – कागज़ में लिपटी हुई दवाई
काढ़ा – औषधीय जड़ी-बूटियों से बना गरम पेय
गुडुप हो गया – अचानक गहरी नींद में सो जाना
चहल-पहल – हलचल
ड्राइक्लीनर – कपड़े साफ़ करने वाला व्यक्ति या दुकान
ग्राहक – खरीदने वाला व्यक्ति
आँच – आग की गर्मी
मजबूरी – विवशता, करना ही पड़े ऐसा हाल
ऊब – बोरियत, थकावट या अरुचि महसूस होना
आहट – हल्की आवाज़

व्याख्या- इस अंश में लेखक उस स्थिति का वर्णन करता है जब उसने झूठ में बीमार होने का नाटक रचा हुआ है। उसे पता है कि घर में कोई नहीं है, और भले ही थर्मामीटर मिल भी जाए, उसे देखकर बीमारी की पुष्टि करने वाला कोई नहीं है। फिर भी वह यह सोचता है कि अगर थर्मामीटर से तापमान दिखा दिया जाए तो उसकी ‘बीमारी’ पर ज्यादा विश्वास हो जाएगा। यह उसकी बाल-सोच की चालाकी बताता है।
थर्मामीटर बहुत ढूंढा गया, पर मिला नहीं। शायद किसी ने मांगकर ले लिया था। तभी नानाजी आते हैं और कहते हैं कि दबाई की पुड़िया खा लो। अब लेखक की चाल उसी पर भारी पड़ने लगती है। उसे बीमारी का नाटक करने की कीमत चुकानी पड़ती है, उसे कड़वी दवा और काढ़े जैसी चाय पीनी पड़ती है, जो उसे बिल्कुल पसंद नहीं। फिर नानाजी कहते हैं कि उसे खाना नहीं देना और आराम करने देना है। यह सुनकर लेखक अकेला रह जाता है।
कुछ समय बाद वह नींद में डूब जाता है। जब उसकी नींद खुलती है, तो उसका मन बहुत बेचैन हो उठता है। वह बाहर जाना चाहता है, गली की चहल-पहल देखना चाहता है, चंदूभाई ड्राइक्लीनर, तेजराम की दुकान, महेश घी सेंटर, ग्राहक और तारों पर बैठी चिड़ियों को देखना चाहता है। लेकिन बीमारी का नाटक अब उसे उसी के जाल में फँसा रहा है। चाहे जितनी भी ऊब हो, उसे लेटे ही रहना पड़ रहा है ताकि कोई उसकी सच्चाई न पकड़ ले।
फिर वह स्कूल और दोस्तों की बातें सोचने लगता है, और जब बहुत देर लेटे-लेटे पीठ दुखने लगती है तो बैठ जाता है। लेकिन जैसे ही उसे बाहर कोई आवाज सुनाई देती है, वह फिर से लेट जाता है—ताकि उसकी बीमारी का नाटक चलता रहे।
यह अंश बच्चों की कल्पनाशीलता, मासूम चालाकी और झूठ बोलने की परेशानियों को बहुत ही रोचक और यथार्थ तरीके से प्रस्तुत करता है।

पाठ
नानाजी आए। बोले – “अब कैसा है सिरदर्द?” मैंने कहा, “ठीक है” फिर भी एक पुड़िया और खिला गए ।
अचानक मुझे भूख-सी लगी। फल या साबूदाने की खीर मिलने की उम्मीद की तो सुबह ही हत्या हो चुकी थी। अब नानीजी से जाकर कहूँ कि भूख लग रही है तो वे क्या करेंगी? ज्यादा से ज्यादा यही कि दूध पी ले। या नानाजी से पूछने चली जाएँगी – वो कह रहा है भूख लगी है। और फिर नानाजी क्या कहेंगे? वही जो सुबह कह रहे थे – तबियत ढीली हो तो सबसे अच्छा उपाय है भूखे रहना। इससे सारे विकार निकल जाएँगे।
क्या मुसीबत है! पड़े रहो! आखिर कब तक कोई पड़ा रह सकता है? इससे तो स्कूल चला जाता तो ही ठीक रहता। सजा मिलती तो मिल जाती। कितना मजा आता जब रिसेस में ठेले पर जाकर नमक मिर्च लगे अमरूद खाते कटर-कटर ।
फिर झपकी लग गई।

शब्दार्थ-
उम्मीद – आशा
तबियत ढीली – स्वास्थ्य ठीक न होना
विकार – शरीर की अशुद्धियाँ या रोग के कारण
रिसेस – स्कूल में मिलने वाला मध्यांतर का समय
झपकी – हल्की नींद

व्याख्याइस अंश में लेखक की झूठी बीमारी की कहानी आगे बढ़ती है। नानाजी फिर आते हैं और पूछते हैं कि अब सिरदर्द कैसा है। लेखक जवाब देता है सिर दर्द अब ठीक है। लेकिन फिर भी नानाजी उसे एक और कड़वी पुड़िया खिला देते हैं। अब लेखक को अपने झूठ की सजा भुगतनी पड़ रही है।
उसे भूख लगने लगती है, और वह सोचता है कि शायद उसे फल या साबूदाने की खीर खाने को मिलेगी, लेकिन वह तो सुबह ही झूठ बोलने की सजा में छिन चुका है। अब अगर वह नानीजी से कहे कि भूख लगी है, तो वे क्या करेंगी। ज्यादा से ज्यादा दूध दे देंगी या फिर नानाजी से पूछने जाएँगी। और नानाजी वही कहेंगे जो सुबह कहा था कि बीमारी में भूखे रहना ही सबसे अच्छा उपाय है, इससे सारे विकार निकल जाते हैं।
लेखक अब पछताने लगता है। उसे लगने लगता है कि वह झूठ बोलकर मुसीबत में फँस गया है, बस ऐसे ही पड़े रहो और कुछ भी न खा सको। अब उसे एहसास होता है कि स्कूल चला जाता तो बेहतर होता, भले ही सजा मिलती। कम से कम रिसेस में ठेले पर अमरूद तो खा सकता था! वह उस स्वाद की कल्पना करता है, नमक मिर्च लगे अमरूद जिसे वह कटर-कटर करके खता है। इस बात से पता चलता है कि झूठे आराम की जगह स्कूल की भागदौड़ और चटपटे स्वाद की याद उसे ज्यादा भा रही है।
अंत में वह फिर झपकी में डूब जाता है। यह सब लेखक के पश्चाताप और बालमन की मासूम कल्पनाओं को दर्शाता है। यह अंश सिखाता है कि झूठ बोलकर मिली राहत, अक्सर तकलीफ का कारण बन जाती है।

पाठ
लेकिन भूख के कारण ठीक से नींद भी नहीं आ रही थी। और आँख जरा लगती भी तो खाने ही खाने की चीजें दिखाई देतीं। गरमागरम खस्ता कचौड़ी…. मावे की बर्फी… बेसन की चिक्की….. गोलगप्पे। और सबसे ऊपर साबूदाने की खीर ! पता नहीं क्यों साबूदाने की खीर सिर्फ उपवास और बीमारी में ही बनाई जाती है। जैसे गुझिया सिर्फ होली – दिवाली और पंजीरी सिर्फ पूर्णिमा के दिन ही बनाई जाती है। क्यों? क्या ये चीजें जब इच्छा हो तब नहीं बनाई जा सकतीं। कोई मना करता है?
हे भगवान! यह तो अच्छी खासी बोरियत हो गई । पूरा दिन कोई कैसे लेटा रहे? और शाम को…। क्या शाम को भी नानाजी बाहर जाने देंगे? सारे बच्चे हल्ला मचाते हुए आँगन में खेल रहे होंगे और मैं बिस्तर में पड़ा झख मार रहा होऊँगा। अक्लमन्द ! और बनो बीमार । और आज दिया गया होमवर्क ! किससे कॉपी माँगोगे? मैं रुआँसा हो गया।
पास के कमरे में होती खटर पटर से अंदाजा हुआ कि मुन्नू स्कूल से आ गया है। तो क्या एक बज गया? अब बरतनों की आवाज आ रही है। शायद सब लोग खाना खाने बैठ रहे हैं। मुन्नू एक बार भी मुझे देखने नहीं आया। आया भी होगा तो दबे पाँव आया होगा और मुझे सोता लौट गया होगा।

शब्दार्थ-
खस्ता कचौड़ी – कुरकुरी और स्वादिष्ट कचौड़ी
बेसन की चिक्की – बेसन और गुड़ से बनी कुरकुरी मिठाई
उपवास – व्रत, भूखे रहना धार्मिक या स्वास्थ्य कारणों से
गुझिया – पकवान, त्योहारों में बनाई जाती है
झख मार रहा होऊँगा – व्यर्थ में समय काट रहा होऊँगा
अक्लमन्द – समझदार
रुआँसा – रोने की स्थिति में, भावुक या दुखी होना

व्याख्याइस अंश में लेखक की झूठी बीमारी की असली सज़ा सामने आने लगती है। वह लेटा हुआ है लेकिन भूख के कारण नींद भी नहीं आ रही। जब भी थोड़ी सी आँख लगती है, तो उसे खाने की चीजें सपने में दिखाई देती हैं जैसे- गरमागरम खस्ता कचौड़ी, मावे की बर्फी, बेसन की चिक्की, गोलगप्पे और सबसे ऊपर साबूदाने की खीर। लेखक को लगता है कि यह खीर केवल बीमारी और उपवास में ही क्यों बनाई जाती है, जबकि इसे कभी भी बनाया जा सकता है। ठीक वैसे ही जैसे गुझिया सिर्फ होली पर और पंजीरी सिर्फ पूर्णिमा तक ही क्यों सीमित है। यह बालमन की सोच है, जो नियमों और परंपराओं पर सवाल करता है।
लेखक अब अत्यधिक बोरियत महसूस कर रहा है। पूरा दिन लेटे रहना उसे बहुत मुश्किल लग रहा है। उसे चिंता है कि शाम को भी क्या नानाजी उसे बाहर खेलने देंगे? बाहर बाकी बच्चे मस्ती कर रहे होंगे और वह बिस्तर में पड़ा-पड़ा पछता रहा होगा। अब वह खुद को ही ताना मारता है,अक्लमन्द, और बनो बीमार। यह उसकी आत्मग्लानि को बताता है।
फिर उसे स्कूल के होमवर्क की याद आती है। वह सोचता है कि अगर आज का काम नहीं मिलेगा तो कल कौन उसे कॉपी देगा। अब वह रोने के कगार पर पहुँच गया है। यह दिखाता है कि उसका झूठ उसे मानसिक रूप से भी बेचैन कर रहा है।
फिर वह सुनता है कि मुन्नू स्कूल से आ गया है, यानी दोपहर का एक बज गया है। रसोई से बर्तनों की आवाज आ रही है मतलब घर में सब खाना खा रहे हैं, लेकिन कोई उसकी परवाह नहीं कर रहा। मुन्नू भी उसे देखने नहीं आया, शायद आया भी होगा, लेकिन चुपचाप देखकर लौट गया होगा यह सोचकर कि वह सो रहा है।
यह अंश लेखक की झूठ से उपजी परेशानी, अकेलापन, भूख और पछतावे को दर्शाता है। यह भी दिखाता है कि जो चीजें पहले आकर्षक लगती हैं, झूठ बोलकर जब वही हकीकत बनती हैं तो उनमें आनंद नहीं, सिर्फ दुख और ऊब बचती है।

पाठ
…वो खाना खा रहे हैं। चबाने की आवाजें आ रही हैं। देखो! उन्होंने एक बार भी आकर नहीं पूछा कि तू क्या खाएगा? पूछते तो मैं साबूदाने की खीर ही तो माँगता। कोई ताजमहल तो नहीं माँग लेता। लेकिन नहीं। भूखे रहो !! इससे सारे विकार निकल जाएँगे। विकार निकल जाएँ बस। चाहे इस चक्कर में तुम खुद शिकार हो जाओ।
… आज क्या खाना बना होगा? खुशबू तो दाल-चावल की आ रही है। अरहर की दाल में हींग -जीरे का बघार और ऊपर से बारीक कटा हरा धनिया और आधा चम्मच देसी घी। फिर उसमें उन्होंने नीबू निचोड़ा होगा। थोड़ा-सा इस बीमार को भी दे दे कोई।
….लेकिन खुशबू तो किसी और चीज की है। क्या हरी मिर्च तली गई है? उसे दाल-चावल में मसलकर खा रहे हैं। जब रहा नहीं गया तो मैं रजाई फेंककर खड़ा हो गया। दबे पाँव दरवाजे तक गया और चुपके से झाँककर देखा।
हाँ, दाल-चावल, तली हुई हरी मिर्च।
लेकिन मुन्नू आम चूस रहा था। आम ! इस मौसम में! जरूर बंबई वाले चाचाजी ने भेजे होंगे। कैसे चूस रहा है। पूरी गुठली मुँह में ठूंसे। जैसे आम कभी देखे न हों। भुक्कड़ कहीं का। पूरा हाथ भी सान रहा है।
मैं जलन, गुस्से और कुढ़न में पाँव पटकता वापस बिस्तर में आ गया। उस पूरे दिन मुझे भूखे पेट ही रहना पड़ा। सारे विकार निकल गए।
इसके बाद स्कूल से छुट्टी मारने के लिए मैंने बीमारी का बहाना कभी नहीं बनाया।

शब्दार्थ-
खुशबू – महक
मसलकर – दबाकर, चटनी की तरह मिलाकर
दबे पाँव – बिना आवाज़ किए धीरे-धीरे
चुपके से – चोरी-छिपे, धीरे से
गुठली – फल का बीज
ठूंसे – ठूँस देना, जबरन भर लेना
भुक्कड़ – जो हर समय खाने के बारे में सोचता है
सान रहा है – मसल रहा है, फैला रहा है
जलन – ईर्ष्या
कुढ़न – मन की बेचैनी या चिढ़
विकार – शरीर के दोष या बुरे तत्व

व्याख्या- इस अंश में लेखक की झूठी बीमारी की सज़ा अपने चरम पर पहुँचती है। वह भूखा है और बिस्तर में पड़ा-पड़ा घरवालों की खाने की आवाजें सुन रहा है। उसे दुख और गुस्सा है कि किसी ने उससे यह भी नहीं पूछा कि उसे कुछ खाना है या नहीं। वह सोचता है कि अगर पूछते, तो वह सिर्फ साबूदाने की खीर ही माँगता, कोई ताजमहल तो नहीं माँग लेता। यह उसकी हास्यात्मक और व्यंग्यपूर्ण सोच को बताता है।
उसे दाल-चावल और तली हरी मिर्च की खुशबू आ रही है। वह भोजन की कल्पना करता है कि अरहर की दाल में हींग-जीरे का तड़का, हरा धनिया, देसी घी और नींबू। उसकी भूख और बढ़ जाती है। वह खुद को रोक नहीं पाता और धीरे से उठकर दरवाज़े तक जाकर झाँकता है। वहाँ उसे मुन्नू आम चूसते हुए दिखता है। आम देखकर उसकी ईर्ष्या और चिढ़ और भी बढ़ जाती है। वह मुन्नू को ‘भुक्खड़’ कहता है और उसकी तरह आम खाने को तरसता है।
वह गुस्से में पाँव पटकता हुआ वापस बिस्तर पर आ जाता है, लेकिन दिनभर उसे भूखा रहना पड़ता है। अंत में लेखक कहता है कि सारे विकार निकल गए। यह कथन व्यंग्य से भरा है। यह उस विचार का मज़ाक उड़ाता है कि बीमारी में भूखा रहना शरीर के विकारों को दूर करता है। असल में, लेखक का अनुभव ये रहा कि भूखे रहना सिर्फ कष्ट, पछतावा और बोरियत लाता है।
अंत में लेखक कहता है कि इसके बाद स्कूल से छुट्टी मारने के लिए मैंने बीमारी का बहाना कभी नहीं बनाया। लेखक को यह सबक मिल गया कि झूठ बोलकर बीमारी का नाटक करना केवल भूख, ऊब, अपमान और पछतावे का कारण बनता है।
इस गद्याँश को हास्य और व्यंग्य के साथ प्रस्तुत किया गया है।

Conclusion

दिए गए पोस्ट में हमने ‘नहीं होना बीमार’ नामक पाठ के सारांश, पाठ व्याख्या और शब्दार्थ को जाना। यह पाठ कक्षा 7 हिंदी के पाठ्यक्रम में मल्हार पुस्तक से लिया गया है। यह पाठ स्वयं प्रकाश द्वारा लिखित है।
इस पाठ में बताया गया है कि कैसे एक बच्चा बीमारी का बहाना बनाकर स्कूल न जाने की योजना बनाता है, लेकिन दिनभर बिस्तर पर पड़े-पड़े उसे भूख, ऊब, उपेक्षा और पछतावे का अनुभव होता है। अंत में उसे समझ में आता है कि झूठ बोलकर बीमारी का नाटक करना सही नहीं है और यह केवल परेशानी का कारण बनता है। यह पाठ न केवल हास्यपूर्ण ढंग से लिखा गया है, बल्कि इसमें बच्चों को ईमानदारी, जीवन की वास्तविकता और अनुशासन का भी महत्वपूर्ण संदेश मिलता है।
यह पोस्ट विद्यार्थियों को पाठ को गहराई से समझने में मदद करेगा और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में भी सहायक सिद्ध होगा।