चेतक की वीरता सार
CBSE Class 6 Hindi Chapter 11 “Chetak Ki Veerta”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book
चेतक की वीरता सार – Here is the CBSE Class 6 Hindi Malhar Chapter 11 Chetak Ki Veerta Summary with detailed explanation of the lesson ‘Chetak Ki Veerta’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 6 हिंदी मल्हार के पाठ 11 चेतक की वीरता पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 6 चेतक की वीरता पाठ के बारे में जानते हैं।
Chetak Ki Veerta
Shyam Narayan Pandey
‘चेतक की वीरता’ कविता ‘हल्दीघाटी’ नामक कविता का एक अंश है। इसमें कवि ने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता का गुणगान किया है। इस कविता का मुख्य रस ‘वीर रस’ है और इसमें चेतक के अदम्य साहस और युद्धभूमि में उसके कौशल का अद्धभुत तरीके से वर्णन किया गया है।
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कवि परिचय –
इस कविता के रचयिता श्याम नारायण पाण्डेय हैं। उनका जन्म 1907 ई. हुआ था। श्यामनारायण पाण्डेय जी वीर रस की कविताओं के लिए चर्चित हैं। उनकी सर्वाधिक लोकप्रिय रचना है- ‘हल्दीधाटी’। इसका प्रकाशन 1939 में हुआ था। ‘चेतक की वीरता’ कविता उन्हीं की रचना ‘हल्दीघाटी’ कविता का एक अंश मात्र है। इस रचना ने स्वतंत्रता सेनानियों में सांस्कृतिक एकता और उत्साह का संचार कर दिया था। पाण्डेय जी का निधन 1991 ई. में हुआ।
चेतक की वीरता पाठ सार – Chetak Ki Veerta Summary
‘चेतक की वीरता’ कविता में कवि राणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता का गुणगान कर रहे है। महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक युद्धभूमि में सबसे विशेष प्रदर्शन कर रहा था जिस कारण वह सबसे अनोखा घोड़ा प्रतीत हो रहा था। चेतक हवा से भी तेज दौड़ता था। चेतक के शरीर पर कभी भी राणा प्रताप का चाबुक नहीं पड़ता था क्योंकि वह सदैव सावधान रहता था और अपने स्वामी की आज्ञा को भली भाँति समझता था चेतक को दौड़ता हुआ देखकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह आसमान का घोड़ा हो। वह इतना तेज़ दौड़ता था कि कोई भी उसका मुकाबला नहीं कर पता था। हवा के कारण लगाम के हिलने को चेतक राणा प्रताप का इशारा समझता था और हवा से भी तेज़ दौड़ लगाना शुरू कर देता था। चेतक इतना समझदार था कि राणा प्रताप की आँख की पुतली के घूमने को उनका इशारा समझकर मुड़ जाता था। राणा प्रताप का घोड़ा चेतक युद्धभूमि में भयानक भालों के बीच से भी मानो उड़कर निकल जाता था। वह बिना डरे ढालों की परवाह किए बिना, तलवारों के बीच में भी तेज़ी से दौड़ कर निकल जाता था। युद्ध-भूमि में ऐसी कोई जगह नहीं होती थी जहाँ वह नहीं होता अर्थात् वह युद्धभूमि में बिना डरे सभी जगह पहुँच जाता था। जब वह दौड़ता था तब वह तेज बढ़ती नदी के समान लहराता हुआ प्रतीत होता था। युद्धभूमि में वह तो शत्रु सेना पर बादल की तरह छा जाता था। शत्रुओं के भाले और तरकश युद्धभूमि में गिर गए और घोड़े के पैरों की टापों से उनका सारा शरीर घायल हो गय़ा। घोड़े के ऐसे रंग-ढंग देखकर शत्रुओं का दल भी हैरान रह गया।
चेतक की वीरता पाठ व्याख्या Chetak Ki Veerta Lesson Explanation
1 –
रण-बीच चौकड़ी भर-भरकर
चेतक बन गया निराला था।
राणा प्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा को पाला था।
गिरता न कभी चेतक-तन पर
राणा प्रताप का कोड़ा था।
वह दौड़ रहा अरि-मस्तक पर
या आसमान पर घोड़ा था।
शब्दार्थ –
रण – युद्ध
चौकड़ी भर-भरकर – छलाँग लगाकर
निराला – विशेष
पाला – प्रतियोगिता
तन – शरीर
कोड़ा – चाबुक
अरि – शत्रु
मस्तक – माथा
व्याख्या – प्रस्तुत काव्यांश में कवि राणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता का गुणगान करते हुए बताता है कि महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक युद्धभूमि में चौकड़ी भरकर अर्थात छलाँगे मारकर सबसे विशेष बन गया था। अर्थात चेतक युद्धभूमि में सबसे विशेष प्रदर्शन कर रहा था जिस कारण वह सबसे अनोखा घोड़ा प्रतीत हो रहा था। चेतक इतनी तेज दौड़ लगाता था कि लगता था जैसे उसकी हवा के साथ प्रतियोगिता हो रही हो। अर्थात वह हवा से भी तेज दौड़ता था। चेतक के शरीर पर कभी भी राणा प्रताप का चाबुक नहीं पड़ता था क्योंकि वह सदैव सावधान रहता था और अपने स्वामी की आज्ञा को भली भाँति समझता था जिस कारण राणा प्रताप को कभी उसके शरीर पर चाबुक मारने की नौबत ही नहीं आती थी। चेतक को दौड़ता हुआ देखकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह शत्रुओं के मस्तक पर दौड़ लगा रहा हो। वह आसमान का घोड़ा प्रतीत होता था। कहने का आशय यह है कि चेतक शत्रुओं के सिर पर से ऐसे एक छोर से दूसरे छोर तक ऐसे दौड़ता था मानो वह आसमान में दौड़ लगा रहा हो। अर्थात वह इतना तेज़ दौड़ता था कि कोई भी उसका मुकाबला नहीं कर पता था।
2 –
जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड़ जाता था।
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड़ जाता था।
कौशल दिखलाया चालों में
उड़ गया भयानक भालों में।
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौड़ा करवालों में।
शब्दार्थ –
तनिक – जरा सा, थोडा
बाग –लगाम
सवार – वह जो घोड़े पर चढ़ा हो, अश्वारोही
पुतली – आँख का काल भाग
फिरी – घूमना
कौशल -कुशलता
भाला – एक शस्त्र
निर्भीक – निडर
ढाल – हथियार का वार रोकने वाला अस्त्र
सरपट – घोड़े के भागने की बहुत तेज़ गति
करवाल – तलवार
व्याख्या – प्रस्तुत काव्यांश में कवि राणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता का गुणगान करते हुए बताता है कि यदि थोड़ी सी भी हवा से उसकी लगाम हिल जाती थी तो वह इसे अपने ऊपर बैठे सवार अर्थात राणा प्रताप का इशारा समझकर उन्हें हवा में ले उड़ता था। कहने का आशय यह है कि हवा के कारण लगाम के हिलने को चेतक राणा प्रताप का इशारा समझता था और हवा से भी तेज़ दौड़ लगाना शुरू कर देता था। चेतक इतना समझदार था कि राणा प्रताप की आँख की पुतली के घूमने को उनका इशारा समझकर मुड़ जाता था। राणा प्रताप का घोड़ा चेतक युद्धभूमि में अपनी चाल के हुनर का परिचय देते हुए भयानक भालों के बीच से भी मानो उड़कर निकल जाता था। वह बिना डरे ढालों की परवाह किए बिना उनमें से निकल जाता था। वह तलवारों के बीच में भी तेज़ी से दौड़ कर निकल जाता था। कहने का आशय यह है कि चेतक को कहीं भी कोई बाधा रोक नहीं पाती थी। वह युद्धभूमि में अपना पूरा युद्ध-कौशल दिखाता था।
3 –
है यहीं रहा, अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा है वहाँ नहीं।
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि-मस्तक पर कहाँ नहीं।
बढ़ते नद-सा वह लहर गया
वह गया गया फिर ठहर गया।
विकराल बज्र-मय बादल-सा
अरि की सेना पर घहर गया।
भाला गिर गया, गिरा निषंग,
हय-टापों से खन गया अंग।
वैरी-समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग।
शब्दार्थ –
अरि-मस्तक – शत्रु का माथा
नद -नदी
विकराल – भीषण, भयंकर
बज्र-मय – पत्थर-सा कठोर, उग्र
घहर – गरज, गंभीर आवाज
निषंग – तरकश, तूणीर
हय – घोड़ा
टाप – घोड़े के पैरों का निचला हिस्सा
खन गया – घायल हो गया
वैरी – शत्रु
दंग – हैरान
व्याख्या – प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने राणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता का गुणगान करते हुए बताया है कि राणा प्रताप के घोड़े चेतक की एक महत्पूर्ण विशेषता यह थी कि वह युद्धभूमि में एक जगह नहीं टिकता था। कभी वह युद्धभूमि में एक क्षण एक जगह दिखता तो दूसरे क्षण वहाँ नहीं मिलता। वह जहाँ दिखता था दूसरे ही क्षण वह वहाँ नहीं होता। युद्ध-भूमि में ऐसी कोई जगह नहीं होती थी जहाँ वह नहीं होता अर्थात् वह युद्धभूमि में बिना डरे सभी जगह पहुँच जाता था। ऐसा प्रतीत होता था जैसे युद्धक्षेत्र में वह प्रत्येक शत्रु के मस्तक पर विराजमान हो। जब वह दौड़ता था तब वह तेज बढ़ती नदी के समान लहराता हुआ प्रतीत होता था। युद्धभूमि में कभी कभी दौड़ते-दौड़ते वह कहीं-कहीं ठहर भी जाता था। फिर वह शत्रु-सेना पर भयानक बादल बनकर बज्र के सामान टूट पड़ता था अर्थात वह तो शत्रु सेना पर बादल की तरह छा जाता था। शत्रुओं के भाले और तरकश युद्धभूमि में गिर गए और घोड़े के पैरों की टापों से उनका सारा शरीर घायल हो गय़ा। घोड़े के ऐसे रंग-ढंग देखकर शत्रुओं का दल भी हैरान रह गया।
निष्कर्ष (Conclusion)
‘चेतक की वीरता’ कविता ‘हल्दीघाटी’ नामक कविता का एक अंश है। इसमें कवि ने महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की वीरता का गुणगान किया है। इस कविता का मुख्य रस ‘वीर रस’ है और इसमें चेतक के अदम्य साहस और युद्धभूमि में उसके कौशल का अद्धभुत तरीके से वर्णन किया गया है। चेतक की वीरता, साहस व् निडरता का वर्णन कवि ने अत्यंत सुंदर तरीके से किया है। इस लेख में पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, प्रश्नोत्तर, अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न, पठित पद्यांश व् बहुविकल्पात्मक प्रश्न दिए गए हैं। यह लेख विद्यार्थियों को पाठ को अच्छे से समझने में सहायक है। विद्यार्थी अपनी परीक्षा के लिए इस लेख की सहायता ले सकते हैं।