हार की जीत पाठ सार

 

CBSE Class 6 Hindi Chapter 4 “Haar Ki Jeet”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book

 

हार की जीत सार – Here is the CBSE Class 6 Hindi Malhar Chapter 4 Haar Ki Jeet Summary with detailed explanation of the lesson ‘Haar Ki Jeet’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

 

इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 6 हिंदी मल्हार के पाठ 4 हार की जीत पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 6 हार की जीत पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Haar Ki Jeet (हार की जीत)

 

“हार की जीत” कहानी के लेखक सुदर्शन जी हैं। यह कहानी मानवीय संवेदनाओं और विश्वास की शक्ति को महत्त्व देती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक जीवन में सच्चाई और विश्वास के महत्त्व को दर्शाते हैं। इस कहानी के पात्रों द्वारा सीख दी गई है कि चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, हमें सच्चाई का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि विश्वास और सच्चाई के सामने कोई भी कठिनाई अधिक समय तक नहीं टिक सकती।

 

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हार की जीत पाठ सार Haar Ki Jeet summary

 

“हार की जीत” कहानी के लेखक ने मानवीय संवेदनाओं और विश्वास की शक्ति को महत्त्व दिया है। कहानी में सीख दी गई है कि चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, हमें सच्चाई का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि विश्वास और सच्चाई के सामने कोई भी कठिनाई अधिक समय तक नहीं टिक सकती। लेखक बताते हैं कि बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर उसी प्रकार की ख़ुशी होती थी जिस तरह माँ को अपने बेटे को देखकर और किसान को अपनी फसल को देखकर ख़ुशी होती है। बाबा भारती का पूजा पाठ के अलावा सारा समय घोड़े के साथ ही गुजारता था। उनका घोड़ा बहुत सुंदर और शक्तिशाली था। बाबा भारती ने उसका नाम सुलतान रखा था, वे अपने हाथों से ही अपने घोड़े की कँघी भी करते थे, वे स्वयं ही उसे दाना खिलाते और उसको देख-देखकर ही खुश होते रहते थे। बाबा भारती ने अपना सब कुछ अपने घोड़े के लिए त्याग दिया था। अपना सब कुछ छोड़कर वे गाँव से बाहर अब एक छोटे-से मंदिर में रहते थे। उन्हें एक भ्र्म अथवा संदेह हो गया था कि वे सुलतान अर्थात अपने घोड़े के बिना नहीं रह सकेंगे। उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू खड्गसिंह था। खड्गसिंह का नाम सुनकर ही लोग काँप जाते थे। सुलतान की प्रशंसा सुनकर उसका मन भी सुलतान को देखने के लिए व्याकुल होने लगा। एक दिन खड्गसिंह बाबा के पास पहुँच गया। बाबा भारती के पूछने पर खड्गसिंह ने सुलतान को देखने की इच्छा जताई। बाबा ने खड्गसिंह को बड़े ही अभिमान से अपना घोड़ा दिखाया। खड्गसिंह ने बड़े आश्चर्य के साथ घोड़ा देखा। खड्गसिंह ने अपनी जिंदगी में ऐसा सुंदर घोड़ा नहीं देखा था। छोटे बच्चों की तरह धैर्यहीन होकर वह बाबा से बोला कि अगर यहाँ आकर भी सुलतान की चाल नहीं देखी तो कोई फायदा नहीं होगा। बाबा ने घोड़े को खोला और बाहर लाए और उछलकर उस पर चढ़ गए, घोड़ा बड़ी तेज़ी से दौड़ने लगा। उसकी चाल को देखकर खड्गसिंह के हृदय में ईर्ष्या जागने लगी। जाते-जाते उसने बाबा भारती से कहा कि वह उस घोड़े को उनके पास नहीं रहने देगा। बाबा भारती उसकी इन बातों से डर गए। उनकी सारी रात घोड़े को बाँधने के स्थान पर सुलतान की रखवाली में कटने लगी थी। हर पल उन्हें खड्गसिंह का भय लगा रहता था, परंतु कई महीने बीत जाने पर भी जब खड्गसिंह नहीं आया तब उन्हें लगने लगा कि खड्गसिंह ने उन्हें डराने के लिए झूठ बोला होगा। बाबा भारती निश्चित हो गए थे। एक शाम को बाबा भारती सुलतान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। अचानक एक ओर से आवाज़ आई कि उस आवाज़ में दर्द भारा था। उन्होंने देखा कि एक अपाहिज एक वृक्ष की छाया में पड़ा दर्द से चिल्ला रहा था। बाबा के पूछने पर उसने बताया कि उसे रामावाला जाना था जो वहाँ से तीन मील दूर था। बाबा घोड़े से उतर गए और अपाहिज को घोड़े पर सवार कर दिया। अचानक उन्हें एक झटका-सा लगा और लगाम उनके हाथ से छूट गई। वह अपाहिज कोई और नहीं डाकू खड्गसिंह ही था। बाबा भारती ने चिल्लाकर खड्गसिंह को रुकने के लिए कहा। खड्गसिंह ठहर कर उनकी बात सुनने लगा। खड्गसिंह ने कहा कि वह यह घोड़ा वापिस नहीं करेगा। बाबा ने प्रार्थना की कि खड्गसिंह इस घटना को किसी के भी सामने प्रकट न करें। खड्गसिंह को समझ नहीं आ रहा था कि बाबा की इस प्रार्थना का उद्देश्य क्या हो सकता है और इससे उनने क्या हासिल होगा। बाबा भारती ने उससे कहा कि यदि लोगों को इस घटना का पता चला तो वे किसी गरीब पर विश्वास नहीं करेंगे। यह कहते-कहते उन्होंने सुलतान की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही न रहा हो। उनके शब्द खड्गसिंह के कानों में उसी प्रकार बार-बार किसी प्रतिध्वनि की तरह सुनाई पड़ रहे थे। वह सोच रहा था कि बाबा के कैसे ऊँचे विचार हैं, कैसा पवित्र भाव है! क्योंकि बाबा को सुलतान से बहुत अधिक प्रेम था, परंतु आज सुलतान को छोड़ते समय उनके मुख पर दुःख की एक रेखा तक दिखाई नहीं पड़ी थी। उन्हें केवल यह विचार था कि कहीं लोगों को इस घटना का पता चल गया तो लोग गरीबों पर विश्वास करना छोड़ न दे। यह सब सोचता हुआ रात के अँधेरे में खड्गसिंह बाबा भारती के मंदिर में पहुँचा। वह धीरे-धीरे घोड़े को बाँधने के स्थान पर पंहुचा और उसके दरवाज़े को खोलने लगा। दरवाजा खुला पड़ा था। एक समय था जब बाबा भारती खुद लाठी लेकर वहाँ पहरा देते थे, परंतु आज उन्हें किसी चोरी, किसी डाके का कोई डर नहीं था। खड्गसिंह ने आगे बढ़कर सुलतान को उसके स्थान पर बाँध दिया और बाहर निकलकर सावधानी से दरवाजा बंद कर दिया। इस समय खड्गसिंह की आँखों में अपनी गलती का एहसास होने पर मन में होने वाला दुःख के आँसू थे। बाबा भारती आदत से मजबूर बिना कुछ सोचे रोज की तरह सुलतान की ओर जाने लगे। परंतु दरवाजे पर पहुँचकर उनको अपनी भूल का एहसास हुआ। परन्तु घोड़े ने अपने स्वामी के पाँवों की आहट को पहचान लिया और वह ज़ोर से आवाज करने लगा। बाबा भारती अपने घोड़े के गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे जैसे कोई पिता बहुत दिन से बिछ्ड़े हुए आपने पुत्र से मिल रहा हो। थोड़ी देर के बाद जब वे अस्तबल से बाहर निकले तो उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे। ये आँसू उसी भूमि पर ठीक उसी जगह गिर रहे थे, जहाँ बाहर निकलने के बाद खड्गसिंह खड़ा होकर रोया था। दोनों के आँसुओं का उस भूमि की मिट्टी पर एक दूसरे के साथ मेल हो गया था।

 

हार की जीत पाठ व्याख्या  Haar Ki Jeet Explanation

 

पाठ –   माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवत भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके में न था। बाबा भारती उसे सुलतान कह कर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते और देख-देखकर प्रसन्न होते थे। उन्होंने रुपया, माल, असबाब, ज़मीन आदि अपना सब-कुछ छोड़ दिया था, यहाँ तक कि उन्हें नगर के जीवन से भी घृणा थी। अब गाँव से बाहर एक छोटे-से मंदिर में रहते और भगवान का भजन करते थे। “मैं सुलतान के बिना नहीं रह सकूँगा”, उन्हें ऐसी भ्रांति-सी हो गई थी। वे उसकी चाल पर लट्टू थे। कहते, “ऐसे चलता है जैसे मोर घटा को देखकर नाच रहा हो।” जब तक संध्या समय सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील का चक्कर न लगा लेते, उन्हें चैन न आता। 

Haar Ki Jeet Summary image 1

शब्दार्थ –
आनंद – ख़ुशी
भगवत – परमेश्वर, भगवान
भजन – पूजा, उपासना
अर्पण – दान, प्रदान, बलिदान
बलवान – शक्तिशाली, हष्टपुष्ट, बलशाली
खरहरा – लोहे से बनाई जाने वाली चौकोर आकार की कंघी जिससे घोड़े के शरीर की धूल साफ़ की जाती है
माल – क्रय-विक्रय की वस्तुएँ
असबाब – सामान एवं सामग्री, माल एवं संपत्ति
घृणा – नफ़रत
भ्रांति-सी – संदेह, संशय, शक, भ्र्म
लट्टू – मोहित
घटा – बादल
संध्या – शाम
चैन – आराम

व्याख्या – लेखक बताते हैं कि जिस तरह माँ को अपने बेटे को देखकर ख़ुशी होती है और किसान को अपने फसल से भरे लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद व् ख़ुशी बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर होती थी। बाबा भारती का भगवान् का भजन करने के बाद जो समय बचता था, वह समय उनके घोड़े को समर्पित हो जाता। अर्थात पूजा पाठ के अलावा सारा समय बाबा भारती अपने घोड़े के साथ ही गुजारते थे। बाबा भारती का वह घोड़ा बहुत सुंदर था और साथ ही साथ बहुत शक्तिशाली भी था। उस घोड़े के जैसा कोई दूसरा घोड़ा सारे इलाके में नहीं था। बाबा भारती ने उसका नाम सुलतान रखा था, वे अपने हाथों से ही अपने घोड़े की कँघी भी करते थे, वे स्वयं ही उसे दाना खिलाते और उसको देख-देखकर ही खुश होते रहते थे। बाबा भारती ने अपना रुपया, क्रय-विक्रय की वस्तुएँ, सामान-सामग्री एवं संपत्ति, ज़मीन आदि अपना सब-कुछ छोड़ दिया था, यहाँ तक कि उन्हें नगर के जीवन से भी नफ़रत हो गई थी। कहने का आशय यह है कि बाबा भारती ने अपना सब कुछ अपने घोड़े के लिए त्याग दिया था। अपना सब कुछ छोड़कर वे गाँव से बाहर अब एक छोटे-से मंदिर में रहते थे और भगवान का भजन करते रहते थे। उन्हें एक भ्र्म अथवा संदेह हो गया था कि वे सुलतान अर्थात अपने घोड़े के बिना नहीं रह सकेंगे। वे अपने घोड़े के चलने के ढंग पर मोहित थे। वे कहते थे कि उनका घोडा ऐसे चलता है जैसे मोर बादल को देखकर नाच रहा हो। जब तक शाम के समय सुलतान पर चढ़कर बाबा भारती आठ-दस मील का चक्कर नहीं लगाते थे, उन्हें आराम अथवा सुकून नहीं मिलता था।

 

पाठ – खड्गसिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर काँपते थे। होते-होते सुलतान की कीर्ति उसके कानों तक भी पहुँची। उसका हृदय उसे देखने के लिए अधीर हो उठा। एक दिन वह दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुँचा और नमस्कार करके बैठ गया। बाबा भारती ने पूछा, “खड्गसिंह, क्या हाल है?”
खड्गसिंह ने सिर झुकाकर उत्तर दिया, “आपकी दया है।”
“कहो, इधर कैसे आ गए?”
“सुलतान की चाह खींच लाई।”
“विचित्र जानवर है। देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे।”
“मैंने भी बड़ी प्रशंसा सुनी है।”
“उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी!”
“कहते हैं देखने में भी बहुत सुंदर है।”
“क्या कहना! जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है।”
“बहुत दिनों से अभिलाषा थी, आज उपस्थित हो सका हूँ।

शब्दार्थ –
कीर्ति – ख्याति , बड़ाई
अधीर – बेचैन , व्याकुल , विह्वल, चंचल , अस्थिर
चाह – इच्छा
विचित्र – अनोखा
मोह – प्रेम, प्यार
छवि – आकृति, सौंदर्य
अंकित – चिह्नित
अभिलाषा – इच्छा
उपस्थित – विद्यमान, मौजूद, हाज़िर

व्याख्याजिस इलाके में बाबा भारती रहते थे उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू खड्गसिंह था। खड्गसिंह का नाम सुनकर ही लोग काँप जाते थे। सुलतान की प्रशंसा फैलते-फैलते खड्गसिंह के कानों तक भी पहुँच गई। उसका मन भी सुलतान को देखने के लिए व्याकुल होने लगा। एक दिन खड्गसिंह दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुँचा और उनको नमस्कार करके उनके पास बैठ गया। बाबा भारती ने खड्गसिंह का हाल पूछा तो  खड्गसिंह ने सिर झुकाकर उनकी बात का उत्तर दिया। बाबा भारती के पूछने पर कि खड्गसिंह उनके पास क्यों आया है। तो खड्गसिंह कहता है कि सुलतान को देखने की इच्छा उसे उनके पास खींच लाई है। बाबा भारती कहते हैं कि सुलतान एक अनोखा जानवर है। खड्गसिंह उसे देखेगा तो खुश हो जाएगा। खड्गसिंह ही कहता है कि उसने भी सुलतान की बहुत प्रशंसा सुनी है। बाबा भारती सुलतान की चाल की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि सुलतान की चाल से खड्गसिंह को स्नेह हो जाएगा। खड्गसिंह कहता है कि उसने सुना है सुलतान देखने में भी बहुत सुंदर है। इस पर बाबा भारती कहते हैं कि जो सुलतान को एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी सूरत चिह्नित हो जाती है। अर्थात एक बार देखने से ही लोगों के मन में सुल्तान का चित्र बस जाता है। खड्गसिंह भी कहता है कि उसकी बहुत दिनों से सुलतान को देखने की इच्छा थी, लेकिन वह आज हाजिर हो सका है।

 

पाठ – बाबा भारती और खड्गसिंह दोनों अस्तबल में पहुँचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से, खड्गसिंह ने घोड़ा देखा आश्चर्य से। उसने सैकेड़ों घोड़े देखे थे, परंतु ऐसा बाँका घोड़ा उसकी आँखों से कभी न गुजरा था। सोचने लगा, ‘भाग्य की बात है। ऐसा घोड़ा खड्गसिंह के पास होना चाहिए था। इस साधु को ऐसी चीज़ों से क्या लाभ?’ कुछ देर तक आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रहा। इसके पश्चात उसके हृदय में हलचल होने लगी। बालकों की-सी अधीरता से बोला, “परंतु बाबाजी, इसकी चाल न देखी तो क्या?”
बाबा भारती भी मनुष्य ही थे। अपनी चीज़ की प्रशंसा दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय भी अधीर हो गया। घोड़े को खोलकर बाहर लाए और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगे। एकाएक उचककर सवार हो गए, घोड़ा हवा से बातें करने लगा। उसकी चाल को देखकर खड्गसिंह के हृदय पर साँप लोट गया। वह डाकू था और जो वस्तु उसे पसंद आ जाए उस पर वह अपना अधिकार समझता था। उसके पास बाहुबल था, आदमी थे और बेरहमी थी। जाते-जाते उसने कहा, “बाबाजी, मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूँगा।”
बाबा भारती डर गए। अब उन्हें रात को नींद न आती। सारी रात अस्तबल की रखवाली में कटने लगी। प्रतिक्षण खड्गसिंह का भय लगा रहता, परंतु कई मास बीत गए और वह न आया। यहाँ तक कि बाबा भारती कुछ असावधान हो गए और इस भय को स्वप्न के भय की नाईं मिथ्या समझने लगे। 

शब्दार्थ –
अस्तबल – घोड़े को रखने का स्थान
घमंड – अहंकार, अभिमान
आश्चर्य – अचरज, अचंभा, हैरानी
बाँका – अच्छा
पश्चात – बाद में
हलचल – ख़लबली, घबराहट, तोड़-फोड़, उपद्रव
अधीरता – आतुर, धैर्यहीन
अधीर – व्याकुल
उचककर – उछलकर
हृदय पर साँप लोटना –  ईर्ष्या करना , किसी से जलन होना
बाहुबल – मज़बूत बाँहोंवाला, जिसकी भुजाएँ शक्तिशाली हों
बेरहमी – निर्दयता, दयाशून्यता, निष्ठुरता
प्रतिक्षण – हर पल
मास – महीना
नाईं मिथ्या – डराने के लिए बोला गया झूठ 

व्याख्याखड्गसिंह के घोड़े को देखने की इच्छा पूर्ति के लिए बाबा भारती और खड्गसिंह दोनों घोड़ों को बाँधने के स्थान पर पहुँचे। बाबा ने खड्गसिंह को बड़े ही अभिमान से अपना घोड़ा दिखाया। खड्गसिंह ने बड़े आश्चर्य के साथ घोड़ा देखा। उसने सैकेड़ों घोड़े देखे थे, परंतु ऐसा सुन्दर व् अच्छा  घोड़ा उसकी आँखों के सामने से कभी नहीं गुजरा था। अर्थात खड्गसिंह ने अपनी जिंदगी में ऐसा सुंदर घोड़ा नहीं देखा था। उसे देखकर वह सोचने लगा कि यह सब भाग्य की बात है। क्योंकि ऐसा घोड़ा तो खड्गसिंह के पास होना चाहिए था। इस साधु अर्थात बाबा भारती को ऐसी चीज़ों से कोई लाभ नहीं है। कुछ देर तक खड्गसिंह आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रहा। लेकिन कुछ समय बाद उसके हृदय में ख़लबली होने लगी। छोटे बच्चों की तरह धैर्यहीन होकर वह बाबा से बोला कि अगर यहाँ आकर भी सुलतान की चाल नहीं देखी तो कोई फायदा नहीं होगा। बाबा भारती भी इंसान ही थे। अपनी चीज़ की प्रशंसा दूसरे के मुँह से सुनने के लिए उनका हृदय भी बैचैन हो गया। उन्होंने घोड़े को खोला और बाहर लाए और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगे। फिर अचानक उछलकर उस पर चढ़ गए, घोड़ा हवा से बातें करने लगा। अर्थात घोड़ा बड़ी तेज़ी से दौड़ने लगा। उसकी चाल को देखकर खड्गसिंह के हृदय में ईर्ष्या जागने लगी। वह डाकू था, जिसके कारण जिस भी वस्तु को वह पसंद करता था, उस पर वह अपना ही अधिकार समझता था। उसके पास मज़बूत भुजाओं वाले कई आदमी थे, जो बहुत ही निर्दयी थे। जिनके बल पर जाते-जाते उसने बाबा भारती से कहा कि वह उस घोड़े को उनके पास नहीं रहने देगा। अर्थात वह सुलतान को उनसे छीन लेगा। बाबा भारती उसकी इन बातों से डर गए। अब उन्हें रात को नींद नहीं आती थी। उनकी सारी रात घोड़े को बाँधने के स्थान पर सुलतान की रखवाली में कटने लगी थी। हर पल उन्हें खड्गसिंह का भय लगा रहता था, परंतु कई महीने बीत जाने पर भी जब खड्गसिंह नहीं आया तब बाबा भारती कुछ असावधान हो गए और अपने दर को किसी सपने के डर की तरह समझने लगे। अर्थात उन्हें लगने लगा कि खड्गसिंह ने उन्हें डराने के लिए झूठ बोला होगा।

 

पाठ – संध्या का समय था। बाबा भारती सुलतान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। इस समय उनकी आँखों में चमक थी, मुख पर प्रसन्नता। कभी घोड़े के शरीर को देखते, कभी उसके रंग को और मन में फूले न समाते थे।Haar Ki Jeet Summary image 2
सहसा एक ओर से आवाज़ आई, “ओ बाबा, इस कंगले की सुनते जाना।”
आवाज़ में करुणा थी। बाबा ने घोड़े को रोक लिया। देखा, एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा है। बोले, “क्यों तुम्हें क्या कष्ट है?”
अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा, “बाबा, मैं दुखियारा हूँ। मुझ पर दया करो। रामावाला यहाँ से तीन मील है, मुझे वहाँ जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा।”
“वहाँ तुम्हारा कौन है?”
“दुर्गादत्त वैद्य का नाम आपने सुना होगा। मैं उनका सौतेला भाई हूँ।”
बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे। सहसा उन्हें एक झटका-सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तनकर बैठा है और घोड़े को दौड़ाए लिए जा रहा है। उनके मुख से भय,  विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख निकल गई। वह अपाहिज डाकू खड्गसिंह था। बाबा भारती कुछ देर तक चुप रहे और कुछ समय पश्चात कुछ निश्चय करके पूरे बल से चिल्लाकर बोले, “ज़रा ठहर जाओ।”

शब्दार्थ –
संध्या – शाम
फूले न समाना – अत्यधिक प्रसन्न होना
सहसा – अचानक
कंगले – अभागा, गरीब, दरिद्र, बेचारा
करुणा – दर्द, पीड़ा
अपाहिज – काम करने के अयोग्य, जो काम न कर सके
कराहना – दर्द में चिलाना
कष्ट – दुख, तकलीफ़
दुखियारा – दुखी, दुःख का मारा
लगाम – घोड़े के मुँह में लगाया जाने वाला वह ढाँचा जिसके दोनों ओर रस्से या चमड़े के तस्मे बँधे रहते हैं, बागडोर
विस्मय – आश्चर्य से भरपूर, आश्चर्यचकित 

व्याख्याखड्गसिंह सुलतान को लेने नहीं आएगा यह सोच के बाबा भारती निश्चित हो गए थे। एक शाम को बाबा भारती सुलतान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। इस समय उनकी आँखों में एक अनोखी चमक थी, और उनके मुख पर ख़ुशी साफ झलक रही थी। वे कभी घोड़े के शरीर को देख रहे थे और कभी उसके रंग को निहार कर अत्यधिक प्रसन्न हो रहे थे। अचानक एक ओर से आवाज़ आई कि बाबा इस बेचारे गरीब दुखयारे की सुनते जाओ। उस आवाज़ में दर्द भारा था। उस आवाज को सुनकर बाबा ने घोड़े को रोक लिया। उन्होंने देखा कि एक अपाहिज एक वृक्ष की छाया में पड़ा दर्द से चिल्ला रहा था। बाबा के पूछने पर कि उसे क्या तकलीफ है, उस अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा कि वह दुःख का मारा व्यक्ति है। बाबा उस पर दया करें क्योंकि उसे रामावाला जाना था जो वहाँ से तीन मील दूर था। उसने बाबा से प्रार्थना की कि वे उसे घोड़े पर चढ़ा लें, भगवान् उनका भला करेगा। बाबा के पूछने पर कि उसका रामावाला कौन है, उस अपाहिज ने बताया कि रामावाला के दुर्गादत्त वैद्य उसके सौतेले भाई हैं। बाबा भारती भी उसकी बात सुन कर घोड़े से उतर गए और अपाहिज को घोड़े पर सवार कर दिया। वे स्वयं घोड़े की लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे। अचानक उन्हें एक झटका-सा लगा और लगाम उनके हाथ से छूट गई। जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तनकर बैठा है और घोड़े को दौड़ाए लिए जा रहा है, तब उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उनके मुख से भय, आश्चर्य और निराशा से मिली-झूली हुई एक चीख निकल गई। वह अपाहिज कोई और नहीं डाकू खड्गसिंह ही था। बाबा भारती सब कुछ देखकर कुछ देर तक चुप रहे और कुछ समय बाद कुछ निश्चय करके पूरे बल से चिल्लाकर खड्गसिंह को रुकने के लिए कहने लगे।

 

पाठ – खड्गसिंह ने यह आवाज़ सुनकर घोड़ा रोक लिया और उसकी गर्दन पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, “बाबाजी, यह घोड़ा अब न दूँगा।”
“परंतु एक बात सुनते जाओ।”Haar Ki Jeet Summary image 3
खड्गसिंह ठहर गया।
बाबा भारती ने निकट जाकर उसकी ओर ऐसी आँखों से देखा जैसे बकरा कसाई की ओर देखता है और कहा, “यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका है। मैं तुमसे इसे वापस करने के लिए न कहूँगा। परंतु खड्गसिंह, केवल एक प्रार्थना करता हूँ, इसे अस्वीकार न करना; नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।”
“बाबाजी, आज्ञा कीजिए। मैं आपका दास हूँ, केवल यह घोड़ा न दूँगा।”
“अब घोड़े का नाम न लो। मैं तुमसे इस विषय में कुछ न कहूँगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।”
खड्गसिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। उसे लगा था कि उसे घोड़े को लेकर यहाँ से भागना पड़ेगा, परंतु बाबा भारती ने स्वयं उसे कहा कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। इससे क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है? खड्गसिंह ने बहुत सोचा, बहुत सिर मारा, परंतु कुछ समझ न सका। हारकर उसने अपनी आँखें बाबा भारती के मुख पर गड़ा दीं और पुछा, “बाबाजी, इसमें आपको क्या डर है?”
सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया, “लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे किसी गरीब पर विश्वास न करेंगे। दुनिया से विश्वास उठ जाएगा।” यह कहते-कहते उन्होंने सुलतान की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही न रहा हो।

शब्दार्थ –
प्रयोजन – उद्देश्य, अभिप्राय, मतलब, गरज, आशय
सिद्ध – प्राप्त, सफल, हासिल, उपलब्ध
बहुत सिर मारना – बहुत दिमाग लगाकर परेशान होना या बहुत प्रयत्न करना 

व्याख्या – जब खड्गसिंह, बाबा भारती का घोड़ा ले जा रहा था तो बाबा ने उसे आवाज देकर रुकने के कहा। खड्गसिंह ने भी उनकी आवाज़ सुनकर घोड़ा रोक लिया और घोड़े की गर्दन पर प्यार से हाथ फेरते हुए बाबा से कहा कि अब यह घोड़ा वह उन्हें वापिस नहीं देगा। बाबा ने उससे कहा कि परंतु वह उनकी एक बात सुनते जाए। खड्गसिंह ठहर कर उनकी बात सुनने लगा। बाबा भारती ने नजदीक जाकर उसकी ओर ऐसी आँखों से देखा जैसे एक बकरा कसाई की ओर देखता है (अर्थात जैसे बकरे को पता होता है कि कसाई उसे नहीं छोड़ेगा वैसे ही बाबा को पता था कि खड़गसिंह उनके घोड़े को नहीं छोड़ने वाला) और उन्होंने कहा कि अब यह घोड़ा उसका हो चुका है। वे उससे घोड़ा वापस करने के लिए नहीं कहेंगे। परंतु उन्होंने खड्गसिंह से एक प्रार्थना की और उस प्रार्थना को स्वीकार करने को कहा। और यदि खड्गसिंह उनकी प्रार्थना को स्वीकार नहीं करेगा तो उनका दिल टूट जाएगा। खड्गसिंह ने भी कहा कि बाबा केवल आज्ञा करें वह उनकी सभी बातें मानेगा, केवल घोड़ा वापिस नहीं करेगा। बाबा ने उसे अब घोड़े का नाम न लेने को कहा। वे घोड़े के विषय में उससे कुछ नहीं कहने वाले थे। उनकी प्रार्थना केवल यह थी कि खड्गसिंह इस घटना को किसी के भी सामने प्रकट न करे। यह सुनकर खड्गसिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। उसे लगा था कि बाबा उससे घोड़े को वापिस माँगने की प्रार्थना करेंगे और उसे घोड़े को लेकर यहाँ से भागना पड़ेगा, परंतु बाबा भारती ने स्वयं उसे कहा कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करें। खड्गसिंह को समझ नहीं आ रहा था कि बाबा की इस प्रार्थना का उद्देश्य क्या हो सकता है और इससे उनने क्या हासिल होगा। खड्गसिंह ने बहुत सोचा, बहुत दिमाग लगाकर परेशान हो गया, परंतु कुछ समझ न सका। हारकर उसने अपनी आँखें बाबा भारती के मुख पर गड़ा दीं और उनसे पुछा कि इस घटना के सभी को पता चलने से उन्हें क्या डर है। यह सुनकर बाबा भारती ने उससे कहा कि यदि लोगों को इस घटना का पता चला तो वे किसी गरीब पर विश्वास नहीं करेंगे। उनका दुनिया से विश्वास उठ जाएगा। यह कहते-कहते उन्होंने सुलतान की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही न रहा हो। कहने का आशय यह है कि खड्गसिंह ने एक गरीब दुखयारे का वेश धारण करके बाबा के साथ छल किया था और अगर लोगों को पता चलता तो वे कभी भविष्य में किसी गरीब दुखयारे की सहायता करने से भी कतराएंगे।

 

पाठ –  बाबा भारती चले गए। परंतु उनके शब्द खड्गसिंह के कानों में उसी प्रकार गूँज रहे थे। सोचता था, ‘कैसे ऊँचे विचार हैं, कैसा पवित्र भाव है! उन्हें इस घोड़े से प्रेम था, इसे देखकर उनका मुख फुल की नाईं खिल जाता था। कहते थे, “इसके बिना मैं रह न सकूँगा।” इसकी रखवाली में वे कई रात सोए नहीं। भजन-भक्ति न कर रखवाली करते रहे। परंतु आज उनके मुख पर दुःख की रेखा तक खाई न पड़ती थी। उन्हें केवल यह खयाल था कि कहीं लोग गरीबों पर विश्वास करना न छोड़ दे।”

रात के अँधेरे में खड्गसिंह बाबा भारती के मंदिर में पहुँचा। चारों ओर सन्नाटा था। आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे। थोड़ी दूर पर गाँवों के कुत्ते भौंक रहे थे। मंदिर के अंदर कोई शब्द सुनाई न देता था। खड्गसिंह सुलतान की बाग पकड़े हुए था। वह धीरे-धीरे अस्तबल के फाटक पर पहुँचा। फाटक खुला पड़ा था। किसी समय वहाँ बाबा भारती स्वयं लाठी लेकर पहरा देते थे, परंतु आज उन्हें किसी चोरी, किसी डाके का भय न था। खड्गसिंह ने आगे बढ़कर सुलतान को उसके स्थान पर बाँध दिया और बाहर निकलकर सावधानी से फाटक बंद कर दिया। इस समय उसकी आँखों में पश्चाताप के आँसू थे।

शब्दार्थ –
गूँज – प्रतिध्वनि
नाईं – तरह
खयाल – विचार
सन्नाटा – गहरी शान्ति
टिमटिमाना – जगमगाना
बाग – लगाम
फाटक – दरवाजा
पश्चाताप – अपनी गलती का एहसास होने पर मन में होने वाला दुःख

व्याख्या – सुलतान को खड्गसिंह के हवाले करके बाबा भारती चले गए। परंतु उनके शब्द खड्गसिंह के कानों में उसी प्रकार बार-बार किसी प्रतिध्वनि की तरह सुनाई पड़ रहे थे। वह सोच रहा था कि बाबा के कैसे ऊँचे विचार हैं, कैसा पवित्र भाव है! क्योंकि बाबा को सुलतान से इतना अधिक प्रेम था, कि उसे देखकर उनका मुख किसी फूल की तरह खिल जाता था। वे कहते थे कि सुलतान के बिना वे नहीं रह सकते। जब खड्गसिंह ने सुलतान को लेने की बात कही थी तब वे सुलतान की रखवाली में कई रात सोए नहीं थे। उन्होंने भजन-भक्ति छोड़ कर केवल रखवाली का काम किया था। परंतु आज सुलतान को छोड़ते समय उनके मुख पर दुःख की एक रेखा तक दिखाई नहीं पड़ी थी। उन्हें केवल यह विचार था कि कहीं लोगों को इस घटना का पता चल गया तो लोग गरीबों पर विश्वास करना छोड़ न दे। यह सब सोचता हुआ रात के अँधेरे में खड्गसिंह बाबा भारती के मंदिर में पहुँचा। चारों ओर गहरी शान्ति थी। आकाश में तारे जगमगा रहे थे। थोड़ी दूर पर गाँवों के कुत्ते भौंक रहे थे। मंदिर के अंदर से कोई शब्द सुनाई नहीं दे रहा था। खड्गसिंह सुलतान की डोर पकड़े हुए था। वह धीरे-धीरे घोड़े को बाँधने के स्थान पर पंहुचा और उसके दरवाज़े को खोलने लगा। दरवाजा खुला पड़ा था। एक समय था जब बाबा भारती खुद लाठी लेकर वहाँ पहरा देते थे, परंतु आज उन्हें किसी चोरी, किसी डाके का कोई डर नहीं था। खड्गसिंह ने आगे बढ़कर सुलतान को उसके स्थान पर बाँध दिया और बाहर निकलकर सावधानी से दरवाजा बंद कर दिया। इस समय खड्गसिंह की आँखों में अपनी गलती का एहसास होने पर मन में होने वाला दुःख के आँसू थे।

 

पाठ –  रात्रि का तीसरा पहर बीत चुका था। चौथा पहर आरंभ होते ही बाबा भारती ने अपनी कुटिया से बाहर निकल ठंडे जल से स्नान किया। उसके पश्चात, इस प्रकार जैसे कोई स्वप्न में चल रहा हो, उनके पाँव अस्तबल की ओर बढ़े। परंतु फाटक पर पहुँचकर उनको अपनी भूल प्रतीत हुई। साथ ही घोर निराशा ने पाँव को मन-मन-भर का भारी बना दिया। वे वहीं रुक गए। घोड़े ने अपने स्वामी के पाँवों की चाप को पहचान लिया और ज़ोर से हिनहिनाया। अब बाबा भारती आश्चर्य और प्रसनता से दौड़ते हुए अंदर घुसे और अपने घोड़े के गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे मानो कोई पिता बहुत दिन से बिछ्ड़े पुत्र से मिल रहा हो। बार-बार उसकी पीठ पर हाथ फेरते, बार-बार उसके मुँह पर थपकियाँ देते। और कहते थे, “अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।”

थोड़ी देर के बाद जब वह अस्तबल से बाहर निकले तो उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे। ये आँसू उसी भूमि पर ठीक उसी जगह गिर रहे थे, जहाँ बाहर निकलने के बाद खड्गसिंह खड़ा होकर रोया था। दोनों के आँसुओं का उस भूमि की मिट्टी पर परस्पर मेल हो गया।

शब्दार्थ –
पहर –  समय की एक इकाई
कुटिया – झोंपड़ी
मन-मन-भर – (मन-तौल मापक) अत्यधिक भारी
घोर – अत्यधिक
पाँवों की चाप – पाँव की आहट
हिनहिनाना – घोड़े की आवाज
परस्पर – एक दूसरे के साथ, आपस में

व्याख्या – रात का तीसरा पहर बीत चुका था। चौथा पहर के आरंभ होते ही बाबा भारती ने अपनी कुटिया से बाहर निकल ठंडे पानी से स्नान किया। उसके बाद रोज़ की तरह जैसे कोई सपने में चल रहा हो, उनके पाँव घोड़े को बाँधने के स्थान की ओर बढ़े। अर्थात बाबा भारती आदत से मजबूर बिना कुछ सोचे रोज की तरह सुलतान की ओर जाने लगे। परंतु दरवाजे पर पहुँचकर उनको अपनी भूल का एहसास हुआ। इसके साथ ही उन्हें अत्यधिक दुःख भी हुआ और उनके पाँव को उनके दुःख ने अत्यधिक भारी बना दिया। वे दरवाजे पर ही रुक गए। परन्तु घोड़े ने अपने स्वामी के पाँवों की आहट को पहचान लिया और वह ज़ोर से आवाज करने लगा। अब बाबा भारती आश्चर्य और प्रसन्नता से दौड़ते हुए अंदर घुसे और अपने घोड़े के गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे जैसे कोई पिता बहुत दिन से बिछ्ड़े हुए आपने पुत्र से मिल रहा हो। वे बार-बार उसकी पीठ पर हाथ फेर रहे थे और बार-बार सुल्तान के मुँह पर थपकियाँ देते हुए कह रहे थे कि अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा। थोड़ी देर के बाद जब वे अस्तबल से बाहर निकले तो उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे। ये आँसू उसी भूमि पर ठीक उसी जगह गिर रहे थे, जहाँ बाहर निकलने के बाद खड्गसिंह खड़ा होकर रोया था। दोनों के आँसुओं का उस भूमि की मिट्टी पर एक दूसरे के साथ मेल हो गया था।

 

Conclusion

“हार की जीत” कहानी के लेखक सुदर्शन जी ने कहानी में मानवीय संवेदनाओं और विश्वास की शक्ति को महत्त्व दिया गया है। इस कहानी के माध्यम से लेखक जीवन में सच्चाई और विश्वास की सीख देते हुए समझया है कि हमें सच्चाई का साथ नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि विश्वास और सच्चाई के सामने कोई भी कठिनाई अधिक समय तक नहीं टिक सकती।ये पाठ कक्षा  की मल्हार पुस्तक से लिया गया है।  इस लेख में पाठ सार, पाठ व्याख्या दिए गए हैं। यह लेख विद्यार्थियों को पाठ को अच्छे से समझने में सहायक है। विद्यार्थी अपनी परीक्षा के लिए इस लेख की सहायता ले सकते हैं।