देश के दुश्मन पाठ सार

 

PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 19 “Desh Ke Dushman” Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings

 

देश के दुश्मन सार – Here is the PSEB Class 10 Hindi Book Chapter 19 Desh Ke Dushman Summary with detailed explanation of the lesson “Desh Ke Dushman” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary

इस पोस्ट में हम आपके लिए पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड  कक्षा 10 हिंदी पुस्तक के पाठ 19 देश के दुश्मन पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप  इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 देश के दुश्मन पाठ के बारे में जानते हैं।

 

Desh Ke Dushman (देश के दुश्मन) 

By जयनाथ नलिन

 

‘देश के दुश्मन’ नलिन द्वारा लिखित एक अत्यंत प्रेरणादायक देशभक्ति पर आधारित एकांकी है, जिसमें सीमा पर तस्करों से जूझते एक वीर पुलिस अधिकारी जयदेव की साहसिक कथा प्रस्तुत की गई है। इस एकांकी में जयदेव की माँ सुमित्रा, पत्नी नीलम और बहन मीना के माध्यम से सैनिक और पुलिस अधिकारियों के परिवारों की चिंता, त्याग और गर्व की भावना को मार्मिक रूप से दिखाया गया है। लेखक ने इसमें मातृप्रेम, कर्तव्यनिष्ठा और देशप्रेम का सुंदर संगम प्रस्तुत किया है, जो पाठकों को वीरता और त्याग की प्रेरणा देता है।

 

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देश के दुश्मन पाठ सार Desh Ke Dushman Summary

 

‘देश के दुश्मन’ जयनाथ नलिन द्वारा लिखित एक अत्यंत भावनात्मक और प्रेरणादायक देशभक्ति पर आधारित एकांकी है, जिसमें देश के सुरक्षा बलों की निष्ठा, साहस और उनके परिवारों की भावनाओं को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है। इस एकांकी के केंद्र में है डी.एस.पी. जयदेव, जो सीमा पर तस्करों से देश की रक्षा कर रहे हैं। साथ ही, उनकी माता सुमित्रा, पत्नी नीलम और बहन मीना के माध्यम से लेखक ने एक सैनिक या पुलिस अधिकारी के परिवार की मनःस्थिति का यथार्थ चित्रण किया है।

कहानी की शुरुआत जयदेव के घर से होती है। सुमित्रा घर पर अपनी बेटी मीना और बहू नीलम के साथ बैठी हैं। वह चिंतित हैं क्योंकि जयदेव की कोई खबर नहीं आई है। माँ कहती हैं कि अब उनका हृदय इतना दुर्बल हो गया है कि ज़रा सी आशंका से काँप उठता है। उन्होंने अपने पति को पहले ही देश की रक्षा करते हुए खो दिया था, इसलिए अब अपने बेटे की सुरक्षा को लेकर उनका मन हमेशा डर से भरा रहता है। वह कहती हैं कि अगर मेरे जयदेव का ज़रा भी बाल बाँका हो गया तो मैं पलभर भी नहीं जीऊँगी।

इसी बीच चाचा जी आते हैं और पूछते हैं कि भाभी को क्या हुआ। मीना बताती है कि रेडियो पर अभी-अभी खबर आई है कि वाघा बॉर्डर पर स्मगलरों से मुकाबला करते हुए दो सरकारी अफसर मारे गए हैं। यह सुनते ही सुमित्रा को दिल का दौरा जैसा महसूस होता है। वह डर जाती हैं कि कहीं उनका बेटा जयदेव उनमें से एक तो नहीं।

चाचा जी सबको समझाते हैं कि डरने की कोई बात नहीं है। वह बताते हैं कि अखबार में पूरी खबर छपी है और उसमें जयदेव की वीरता की प्रशंसा की गई है। उन्होंने बताया कि जयदेव ने बहादुरी और सूझबूझ से तस्करों का सामना किया, चार तस्करों को गोलियों से मार गिराया और पाँच लाख का सोना बरामद किया। यह सुनकर घर में फिर से खुशी लौट आती है। सुमित्रा के चेहरे पर गर्व की झलक दिखाई देती है और वह गर्व से कहती हैं कि मेरा बहादुर बेटा जयदेव। 

कुछ समय बाद जयदेव स्वयं घर आता है। माँ, पत्नी और बहन उसे देखकर खुशी से भर उठती हैं। सुमित्रा भगवान का धन्यवाद करती हैं कि उनका बेटा सुरक्षित लौट आया। नीलम अपने पति से उलाहना भरे स्वर में पूछती है कि वह छुट्टी पर देर से क्यों आया। जयदेव समझाता है कि उसे छुट्टी रद्द करनी पड़ी क्योंकि उसी समय खबर मिली थी कि कुछ तस्कर रात के अंधेरे में सीमा पार करने वाले हैं। वह कहता है कि वह अपने कर्त्तव्य से मुँह नहीं मोड़ सकता था, इसलिए उसे वहीं रहकर कार्रवाई करनी पड़ी।

इसके बाद मीना अखबार में छपी खबर पढ़कर बताती है कि अमावस की रात थी, अंधेरा बहुत था, तस्करों ने बिजली काट दी थी ताकि पुलिस अंधेरे में फँस जाए। लेकिन जयदेव और उनके साथी सतर्क थे। उन्होंने दूर से एक जीप की लाइट देखी और तुरंत अपने जवानों को तैनात कर दिया। जब तस्कर सीमा पार करने लगे, तब जयदेव ने आदेश दिया कि खबरदार, हैंड्ज़ अप। जवाब में तस्करों ने गोलीबारी शुरू कर दी। पुलिस ने भी मुकाबला किया। लगभग पंद्रह मिनट तक गोलियाँ चलती रहीं। दो पुलिसकर्मी शहीद हुए, लेकिन जयदेव और उनके साथियों ने तस्करों को हरा दिया। तीन तस्कर मारे गए और बाकी भाग गए। उनके पास से पाँच लाख रुपये का सोना बरामद हुआ।

जयदेव की इस बहादुरी की खबर अखबारों और रेडियो में छा गई। डी. सी. साहब जो उनके मित्र भी थे, उन्होंने बताया कि सरकार ने जयदेव को उसके साहस के लिए दस हज़ार रुपये का इनाम देने की घोषणा की। लेकिन जयदेव ने वह राशि अपने पास रखने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि यह इनाम उन शहीद पुलिसकर्मियों की विधवाओं में बाँट दिया जाए, जिन्होंने देश की सेवा करते हुए प्राणों की आहुति दी। जयदेव की यह त्याग भावना सभी अफसरों के लिए प्रेरणा बन जाती है।

एकांकी के अंत में जब डी.सी. जयदेव के घर आते हैं, तो वे जयदेव की वीरता की सराहना करते हैं और कहते हैं कि उन्हें अपने मित्र जयदेव और उसके परिवार पर गर्व है। डी.सी. यह भी बताते हैं कि जयदेव के पिता भी भारत-चीन युद्ध में देश की सीमा की रक्षा करते हुए शहीद हुए थे। इस प्रकार, यह पूरा परिवार देशभक्ति और त्याग की मिसाल बनकर सामने आता है।

इस एकांकी का संदेश बहुत गहरा है। यह हमें सिखाता है कि देशभक्ति केवल सैनिकों का धर्म नहीं, बल्कि हर नागरिक का कर्त्तव्य है। जयदेव की वीरता हमें यह एहसास दिलाती है कि देश की रक्षा के लिए अपना सुख-दुख, परिवार और यहाँ तक कि जीवन तक न्यौछावर करना सच्चे देशभक्त का कर्त्तव्य है। वहीं सुमित्रा जैसी माँ हमें बताती हैं कि सैनिकों की माताएँ भी उतनी ही बहादुर होती हैं, जो अपने बेटे की सुरक्षा के लिए हर पल ईश्वर से प्रार्थना करती हैं, पर कभी भी उनके कर्त्तव्य में बाधा नहीं डालतीं।

अतः ‘देश के दुश्मन’ केवल एक वीरता की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस भावनात्मक संबंध का चित्रण है जो सैनिकों, उनके परिवारों और मातृभूमि के बीच होता है। यह हमें त्याग, साहस और देशभक्ति की सच्ची प्रेरणा देता है।

देश के दुश्मन  पाठ व्याख्या Desh Ke Dushman Lesson Explanation

 

(पात्र परिचय)

सुमित्रा :
मीना और जयदेव की माँ! आयु लगभग ५० वर्ष बाल काले सफेद रंग गेहुंआ सांवला। मुख पर दुख और निराशा की झलक सफेद रंग का कोहनी तक की बाहों वाला ब्लाऊज ; सफेद साड़ी और पैरों में चप्पल हाथ पैर कान सभी आभूषण विहीन लंबा पतला शरीर।

मीना :
सुमित्रा की लड़की तथा जयदेव की छोटी बहन। आयु लगभग २०-२१ वर्ष अर्थशास्त्र की एम. ए. भाग दो की छात्रा। लंबी पतली, रंग गोरा, आँखों में प्रतिभा की ज्योति, मुस्कराता आनन। काले लंबे बाल। सिर के बीचों-बीच मांग और एक वेणी कमीज़-सलवार कलाई में घड़ी। पैरों में काले सैंडल|
शब्दार्थ
आनन- मुख

नीलम :
मीना की भाभी। जयदेव की पत्नी आयु २३-२४ वर्ष। सुन्दर, हँसमुख, मधुर भाषी। आनन पर गुलाबी आभा। विशाल नेत्र, घुंघराले बाल, दो वेणियां, मांग में सिंदूर और माथे पर कुंकुम का गोल टीका। गले में सोने की पतली-सी चेन और हाथों में सोने की दो-दो चूड़ियाँ। हरे गुलाबी बड़े बड़े फूलों वाली छींट की कमीज़-सलवार। पैरों में रंगीन चप्पल। हाथ-पैरों के नाखून गुलाबी रंग से रंजित।
शब्दार्थ-
कुंकुम– सिंदूर
नेत्र- आँख

चाचा :
जयदेव के स्वर्गीय पिता का बचपन का मित्र। आयु ५२-५३ वर्ष। बाल काफी सफेद। चेहरे पर हल्की पतली झुर्रियां। नंगा सिर सफेद पाजामा-कुर्ता। पैरों में मुंडा जूता। आंखों पर चश्मा। कद ५ फीट ५ इंच। शरीर भरा-भरा।

जयदेव :
मीना का बड़ा भाई, नीलम का पति, सुमित्रा का एक मात्र पुत्र। अमृतसर के पास बागाह* बार्डर पर डी०एस०पी० के पद पर नियुक्त। गठीला, स्वस्थ, गोरा, लंबा शरीर। बड़े-बड़े तेजस्वी नेत्र, ऊंचा मस्तक, विशाल वक्षस्थल, काले सघन बाल-न बहुत लंबे, न छोटे काली लंबी भंवे। तनी हुई काली सघन मूंछें। घर आने पर एक सभ्य कुलीन नागरिक के समान पतलून बुश-शर्ट, काला चमचमाता बूट। दाहिने हाथ की कलाई में घड़ी।
* लेखक ने बागाह शब्द का प्रयोग किया किंतु आज वाघा लिखने का प्रचलन है।
शब्दार्थ-
सभ्य- शालीन, सुशील
पतलून- पैंट
मस्तक- माथा

उपायुक्त (डी० सी०) :
उमर लगभग ४० वर्ष। स्वस्थ, भरा-भरा मध्यम लंबाई वाला शरीर। सांवला रंग, गोल चेहरा, ऊंचा मस्तक। नंगा सिर, पीछे को कंघा किये हुए तीन-चार इंच लंबे काले लहराते बाल। टैरीकाट की दालचीनी रंग की बुश-शर्ट और टेरीकॉट की मेंहदी रंग की पतलून। चमचमाते ब्राऊन रंग के बूट। दाहिने हाथ की कलाई में घड़ी-आँखों पर काले गौगल्ज़।

शब्दार्थ-
गौगल्ज़- धूप में लगाया जाने वाला चश्मा

 

पाठ
(मंच – निर्माण)
एक सम्भ्रांत घर का डाइनिंग और ड्राइंग रूम, लंबाई 18 फीट चौड़ाई 14 फीट। चौड़ाई में पिछली, दर्शकों के सामने पड़ने वाली दीवार पर, फर्श से 4 फीट ऊंचा जयदेव के स्वर्गीय पिता का चित्र, जिस पर एक माला टंगी है। धरती पर एक दरी बिछी है। दरी के पिछले भाग पर दीवार से तीन फीट आगे एक गलीचा बिछा है। उसके ऊपर सोफा रखा है। सोफे के दोनों किनारों पर, सोफे और कौचों के मध्य एक-एक छोटी मेज़ रखी है। ड्राईंग रूम की बाईं दीवार में एक द्वार है, जो रसोई घर में खुलता है और दाईं दीवार में एक दरवाजा है, जो सटे हुए कमरे में खुलता है। दोनों पर चंपई रंग के फूलदार पर्दे टंगे हैं। दरवाजों से दो ढाई फीट आगे दोनों दीवारों में खिड़कियां हैं, जिन पर झीने पर्दे पड़े हैं, जिस से सूर्य का हल्का-हल्का प्रकाश भीतर आ जाता है। दाई दीवार के पास एक मेज़ और एक कुर्सी रखी है। मेज पर एक बुकशेल्फ में 7-8 पुस्तकें और एक-दो फाइलें, कलम-दवात आदि सामान रखा है।

शब्दार्थ-
सम्भ्रांत रईस, धनी
डाइनिंग रूम- भोजन करने का कमरा
ड्राइंग रूम- अतिथियों से मिलने का कमरा, बैठक
दर्शक- देखने वाले व्यक्ति, श्रोता या सभा में बैठे लोग
स्वर्गीय- जो अब जीवित नहीं है, दिवंगत
दरी- मोटा कपड़ा जिसे फर्श पर बिछाया जाता है
गलीचा- कालीन
कौच- आराम के लिए लंबा गद्देदार सोफ़ा
चंपई- चंपा के फूल के रंग का, पीला
झीने- पतले, महीन, पारदर्शी
बुकशेल्फ- किताबें रखने की अलमारी या रैक
कलम- लिखने का यंत्र, पेन
दवात- स्याही रखने का बरतन

व्याख्या-स गद्याँश में एक सम्भ्रांत घर के ड्राइंग और डाइनिंग रूम को दिखाया गया है, जिसकी लंबाई 18 फीट और चौड़ाई 14 फीट बताई गई है। यह माप बताती है कि घर का यह हिस्सा काफी विस्तृत और सुसज्जित है। पिछली दीवार पर जयदेव के स्वर्गीय पिता का चित्र टंगा है, जिस पर माला लटकी हुई है। फर्श पर एक दरी बिछी है, जो घर की भारतीयता और सादगी का प्रतीक है। दरी के पिछले भाग में, दीवार से लगभग तीन फीट आगे एक गलीचा बिछा है, जो सजावट और सौंदर्य का अहसास कराता है। उसके ऊपर रखा सोफा आधुनिक जीवनशैली का प्रतीक है, जहाँ परिवार या मेहमान बैठते होंगे। सोफे के दोनों ओर रखी छोटी मेज़ें और कौच घर के सलीके और संतुलन को बताती हैं। कमरे की बाईं दीवार में एक दरवाज़ा है जो रसोई में खुलता है, और दाईं दीवार का दरवाज़ा सटे हुए कमरे में जाता है। दोनों दरवाज़ों पर लगे चंपई रंग के फूलदार पर्दे वातावरण में कोमलता और शांति का भाव लाते हैं। इन दरवाज़ों से दो-ढाई फीट आगे लगी खिड़कियों पर झीने पर्दे हैं, जिनसे छनकर आने वाला सूर्य का हल्का प्रकाश मंच पर एक प्राकृतिक और सौम्य वातावरण उत्पन्न करता है। दाईं दीवार के पास रखी मेज़ और कुर्सी, तथा उस पर रखी सात-आठ पुस्तकें, फाइलें, कलम-दवात आदि यह बताते हैं कि यह घर केवल आराम का नहीं, बल्कि अध्ययन और कार्यशीलता का भी प्रतीक है। संपूर्ण दृश्य एक शिक्षित, सुसंस्कृत, मध्यमवर्गीय परिवार के जीवन और उसके घर के सौंदर्य तथा अनुशासन को अत्यंत सजीव रूप में प्रस्तुत करता है।

 

पाठ
(समय : सुबह के आठ-साढ़े आठ बजे। बसन्त ऋतु का अंतिम भाग। पर्दा उठते ही मीना कंघी करने तथा कॉलेज जाने के लिए आवश्यक सामग्री एकत्र करने में व्यस्त दिखाई देती है।)
नीलम (भीतर रसोई में से) – बस, तैयार है नाश्ता। जब तक तुम अपना पर्स, पैन तैयार करो कि नाश्ता मेज़ पर आया।
मीना – भाभी, बहुत जल्दी जाना है। नाश्ता-वाश्ता कुछ नहीं चाहिए।
नीलम – तो भूखी जाओगी? पांच-छः घंटे किताबों में आँखें गड़ा कर और सिर खपा कर आओगी। फिर आते ही-हाय सिर फटा। हाय आँखें गई। हाथ कमर टूटी-ऐसी क्या आफत आ गई कि नाश्ता तक नहीं।
मीना – (कंघी करते हुए) ठीक नौ बजे यूनिवर्सिटी पहुँचना है। बाहर से अर्थ-शास्त्र के कोई प्रोफेसर आये हैं उनका भाषण होगा – “तस्करी चोर बाज़ारी और आर्थिक व्यवस्था।”
नीलम – अभी तक तो रानी जी की कंघी तक हुई नहीं, और जल्दी ऐसी मचा रखी है; जैसे अब गाड़ी छुटी (नाश्ता लिए प्रवेश करते हुए) और आज तक कोई प्रोफेसर वक्त पर पीरियड लेने आया भी है? (नाश्ता मेज़ पर रखती है।) पीरियड न लेना तो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों की शान है। नाश्ता करके भागो, जल्दी।
मीना – (पर्स और फाइल उठाते हुए) नाश्ता करके बैठूंगी तो यही नौ बज जायेंगे। साढ़े आठ तो हो चुके। अच्छा! लाओ, जल्दी करो।
(चाय पीकर प्याला मेज पर रखती है। किसी के आने का शब्द)
सुमित्रा – (शिथिलता से प्रवेश करते हुए रुआंसे स्वर में) हे भगवान, यह क्या अनर्थ हो गया।(मीना और नीलम उसे पकड़ कर संभालती हैं)
नीलम – क्या हुआ माँ जी?
मीना – इतना घबरा क्यों गई अम्मा?
(उसे लाकर सोफे पर बैठाती है। बाईं ओर नीलम और दाईं ओर मीना बैठती है।)

शब्दार्थ-
बसन्त ऋतु- ऋतुओं में एक ऋतु जिसमें फूल खिलते हैं, मौसम सुहावना होता है
एकत्र करना इकट्ठा करना, जमा करना
व्यस्त- काम में लगा हुआ
रसोई- खाना बनाने का स्थान
सिर खपा कर- कठिन परिश्रम करके, बहुत सोचकर
आफत मुसीबत, परेशानी
यूनिवर्सिटी विश्विद्यालय
प्रोफेसर प्राध्यापक
शान गौरव, गर्व की बात
शिथिलता से कमजोरी या थकान से
रुआंसे स्वर में रोने जैसे स्वर में, भावुक होकर
अनर्थ- बड़ा संकट, दुर्भाग्य

व्याख्याइस गद्याँश में सुबह के आठ से साढ़े आठ बजे के बीच का दृश्य दिखाया गया है, जब बसंत ऋतु अपने अंतिम चरण में है। पर्दा उठते ही दर्शक देखते हैं कि मीना अपने कॉलेज जाने की तैयारी में व्यस्त है। वह कंघी कर रही है और कॉलेज के लिए आवश्यक चीजें जैसे पर्स, फाइल आदि इकट्ठा कर रही है। इस समय नीलम, जो रसोई में है, अंदर से आवाज़ लगाती है कि नाश्ता लगभग तैयार है और मीना जब तक अपना पर्स और पेन ठीक करे, तब तक नाश्ता मेज़ पर आ जाएगा। लेकिन मीना जल्दी में होने के कारण कहती है कि उसे नाश्ता नहीं चाहिए क्योंकि उसे बहुत जल्दी कॉलेज पहुँचना है। इस पर नीलम उसे समझाती है कि खाली पेट जाना ठीक नहीं है, क्योंकि पाँच-छः घंटे तक किताबों में आँखें गड़ाकर पढ़ाई करने से सिर दर्द और कमजोरी हो जाएगी। वह थोड़ा व्यंग्य करते हुए कहती है कि फिर लौटकर वही शिकायतें होंगी सिर फट गया, आँखें दुखने लगीं, और कमर टूट गई।
मीना कंघी करते हुए जवाब देती है कि उसे ठीक नौ बजे यूनिवर्सिटी पहुँचना है क्योंकि बाहर से आए अर्थशास्त्र के प्रोफेसर का “तस्करी, चोर बाज़ारी और आर्थिक व्यवस्था” पर भाषण होने वाला है। नीलम हँसते हुए कहती है कि अभी तक तो रानी जी की कंघी पूरी नहीं हुई और इतनी जल्दी मचाई हुई है जैसे ट्रेन छूटने वाली हो, जबकि यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कभी वक्त पर आते ही नहीं। वह नाश्ता लेकर आती है और मीना से कहती है कि जल्दी नाश्ता करके निकलो।
मीना पर्स और फाइल उठाते हुए कहती है कि अगर वह नाश्ता करेगी तो नौ ही बज जाएँगे क्योंकि साढ़े आठ पहले ही हो चुके हैं। फिर वह कहती है कि ठीक है, जल्दी लाओ। वह जल्दी से चाय पीकर प्याला मेज़ पर रख देती है, तभी बाहर से किसी के आने की आहट सुनाई देती है।
तभी सुमित्रा, जो मीना की माँ हैं, बहुत थकी और विचलित अवस्था में अंदर आती हैं। उनके चेहरे पर घबराहट और दुख झलकता है, और वह लगभग रोते हुए कहती हैं कि हे भगवान, यह क्या अनर्थ हो गया। उनकी स्थिति देखकर मीना और नीलम दोनों उन्हें सँभालने के लिए दौड़ती हैं। नीलम चिंतित होकर पूछती है कि क्या हुआ माँ जी, और मीना भी परेशान होकर कहती है कि वह इतनी घबराई हुई क्यों हैं। दोनों उन्हें सहारा देकर सोफे पर बैठाती हैं। नीलम उनके बाईं ओर और मीना दाईं ओर बैठ जाती है।

 

पाठ
नीलम – (सीने पर हाथ रखते हुए) – क्या कोई कष्ट है? धड़कन इतनी तेज क्यों हो गई?
मीना – (नाड़ी पकड़ते हुए) – डॉक्टर को बुलाऊं? हुआ क्या अम्मा?
(दोनों परेशानी और प्रश्नवाचक मुद्रा में एक दूसरे को आँखों में आंखें डालती हैं।)
सुमित्रा – (व्यथित-सी होकर) – कुछ नहीं बेटा, कुछ नहीं। यह खबर सुनने से पहले ही प्राण क्यों नहीं निकल गये? हे भगवान, यह क्या वज्र-पात कर डाला।
नीलम – (घबराहट के साथ) – क्या हुआ माँ जी? क्या हुआ? बताती क्यों नहीं?
मीना – (आतुरता से) आपके घबराने से तो हम भी धीरज खो देंगी। (कंधे पर हाथ रख कर अपनी ओर उन्मुख करते हुए) बताओ भी क्या हुआ? कैसा वज्र-पात?
सुमित्रा – क्या बताऊं? अभी-अभी माधोराम के घर रेडियो पर-खबर सुनते ही छाती क्यों न फट गई!
नीलम – रेडियो पर ……….. रेडियो पर क्या खबर सुनी? बताओ भी माँ जी!
सुमित्रा – बाघा बार्डर पर दो सरकारी अफसर मारे गये। वहीं पर तो मेरा जयदेव भी ………. हे भगवान, मेरे जयदेव की रक्षा करना।
मीना – भैया के बारे में ऐसी अशुभ बात क्यों सोचती हो अम्मा?
नीलम – मरने वालों के नाम तो नहीं आये? फिर वहाँ तो पचासों पुलिस वाले ………….। उनका बाल बांका नहीं हो सकता। भगवान इतना निष्ठुर नहीं।
सुमित्रा – अशुभ नहीं सोचती। भगवान उसे मेरी उमर लगावे। पर कलेजा धक-धक कर रहा है। तुम्हारे पिता जी भी लुटेरों-हत्यारों चीनियों से भारत की सीमा की रक्षा करते हुए बलिदान हुए थे। उनके बाद तुम दोनों को मैंने किन मुसीबतों से पाला है है राम! मेरी तपस्या का यह फल।
मीना – यह तो हमारे कुल के लिए गौरव की बात है कि हमारे पिता मातृभूमि की रक्षा करते हुए स्वर्गवासी हुए। इस बलिदान का बदला भगवान हमें दंड के रूप में नहीं, वरदान के रूप में देगा।
नीलम – बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता, माँ जी! ऐसे दिव्य बलिदान पर तो देवता भी अर्घ्य चढ़ाते हैं। वे भी स्वर्ग में जयजयकार करते हुए देश पर निछावर होने वालों का स्वागत करते हैं।

शब्दार्थ-
कष्ट दुख, पीड़ा या तकलीफ़
नाड़ी पकड़ते हुए नब्ज देखकर स्वास्थ्य की स्थिति जानना
व्यथित-सी होकर दुखी और बेचैन होकर
वज्र-पात- भारी आघात, अचानक दुखद घटना का घटित होना
उन्मुख- किसी चीज़ की ओर निर्देशित
बाघा बॉर्डर- भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित एक प्रसिद्ध सीमा चौकी
बाल बांका नहीं हो सकता- किसी को जरा भी हानि नहीं पहुँचना
निष्ठुर- कठोर हृदय, दया या संवेदना रहित
कलेजा धक-धक करना– भय या चिन्ता से हृदय की गति तेज हो जाना
दिव्य बलिदान श्रेष्ठ और पवित्र त्याग
अर्घ्य चढ़ाते हैं- सम्मानपूर्वक पूजन करना या श्रद्धा व्यक्त करना
निछावर- न्योछावर, बलिहारी
गौरव सम्मान

व्याख्या–  इस अंश में नीलम सुमित्रा की अवस्था देखकर चिंतित हो उठती है। वह सीने पर हाथ रखकर पूछती है कि क्या उन्हें कोई तकलीफ है, क्योंकि उनकी धड़कन बहुत तेज हो गई है। मीना तुरंत उनकी नाड़ी पकड़कर पूछती है कि क्या डॉक्टर को बुलाया जाए, और जानना चाहती है कि आखिर हुआ क्या है। दोनों एक-दूसरे की ओर असमंजस और चिंता से देखती हैं, जैसे किसी अनिष्ट की आशंका हो।
सुमित्रा अत्यंत व्यथित होकर कहती हैं कि कुछ नहीं हुआ, परंतु यह सोचती हैं कि काश यह दुखद समाचार सुनने से पहले ही उनके प्राण निकल जाते। वह ईश्वर से करुण स्वर में कहती हैं कि यह तो जैसे उन पर वज्रपात हो गया। नीलम व्याकुल होकर पूछती है कि आखिर क्या हुआ, वह स्पष्ट क्यों नहीं बतातीं। मीना भी अधीर होकर कहती है कि यदि वह इस तरह घबराती रहेंगी तो उनका भी धैर्य टूट जाएगा, और सुमित्रा के कंधे पर हाथ रखकर आग्रह करती है कि वह बताएँ आखिर क्या अनर्थ हुआ है।
तभी सुमित्रा बताती हैं कि वह अभी-अभी माधोराम के घर रेडियो सुन रही थीं, जहाँ से एक भयंकर खबर मिली कि बाघा बॉर्डर पर दो सरकारी अफसर मारे गए हैं। वह चिंतित होकर कहती हैं कि उनका बेटा जयदेव भी वहीं कार्यरत है और ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि वह उसके प्राणों की रक्षा करे।
यह सुनकर मीना अपनी माँ को समझाती है कि वह इतनी अशुभ बातें न सोचें, जबकि नीलम कहती है कि मरने वालों के नाम तो अभी आए भी नहीं हैं। वहाँ सैकड़ों पुलिसकर्मी तैनात हैं, और उनका जयदेव सुरक्षित होगा क्योंकि भगवान कभी इतने निष्ठुर नहीं हो सकते।
सुमित्रा कहती हैं कि वह अशुभ नहीं सोच रहीं, बल्कि मन का भय और मातृत्व की व्याकुलता उन्हें विचलित कर रही है। वह स्मरण करती हैं कि जयदेव के पिता भी चीन से भारत की सीमा की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे, और उनके बाद उन्होंने अपने बच्चों को बड़े कष्टों में पाला है। वह ईश्वर से करुण स्वर में कहती हैं कि यह उनकी तपस्या का क्या फल है।
इस पर मीना दृढ़ स्वर में कहती है कि यह उनके कुल के लिए गौरव की बात है कि उनके पिता ने मातृभूमि की रक्षा करते हुए प्राण त्यागे। ऐसे बलिदान का फल ईश्वर दंड के रूप में नहीं, वरदान के रूप में देता है। नीलम भी सहमति जताती है और कहती है कि बलिदान कभी व्यर्थ नहीं जाता। देवता भी ऐसे वीरों पर अर्घ्य चढ़ाते हैं और स्वर्ग में जयजयकार करते हुए उनका स्वागत करते हैं।

 

पाठ
सुमित्रा – गर्व और गौरव की बात तो है, बेटी! पर अब हृदय इतना दुर्बल हो चुका है कि ज़रा सी आशंका से कांप उठती हूँ। तुम्हारे पिता जी के बलिदान पर हृदय पर पत्थर रख लिया था, पर अब हिम्मत टूट चुकी है, देह जर्जर हो चुकी है। अगर मेरे जयदेव का ज़रा भी बाल बांका हो गया…तो…मैं.. (रुआँसी सी होकर) – पल भर भी नहीं जीऊँगी।
नीलम – माँ जी, कुछ नहीं होगा। यों ही आप तो…..
चाचा – (बाहर से पुकार कर) मीना-अरी मीना है क्या…?.
मीना – आओ, चाचा जी।
चाचा – (प्रवेश करके साश्चर्य) – अभी तक यहीं – नौ बज गये! गई नहीं? पढ़ने नहीं जाना? (निकट आकर) अरे! भाभी को क्या हुआ? अचानक यह क्या? क्या कोई तकलीफ़…..?
नीलम – यों ही घबरा गई – दिल धड़कने लगा।
चाचा – (बैठते हुए) – किसी डॉक्टर को बुलाता हूँ। अभी तो चली आ रही थी, माधोराम के घर से। सोचा, पूछ आऊँ, जयदेव की कुशल क्षेम की कोई चिट्ठी-विट्ठी तो नहीं आई। छुट्टी लेकर आने वाला था न?
मीना – आज कल में आते ही होंगे।
सुमित्रा – कल आना था – 15 दिन की छुट्टी पर। पर आता कहाँ से? कोई खबर नहीं। पता नहीं, भगवान की क्या मर्जी है।
चाचा – तो भाभी, इसमें घबराने की क्या बात है? कहीं रास्ते में किसी यार – दोस्त से मिलता रह गया होगा। अफसर जो ठहरा – पल भर में प्रोग्राम बदल सकता है।
मीना – और क्या? सरकारी – नौकरी और कितनी ज़िम्मेदारी की!
सुमित्रा – तो खैर-खबर तो भेज देता।
चाचा – आज कल के बच्चों में यही तो बड़ी लापरवाही है। यह नहीं जानते मां-बाप के दिल पर क्या गुज़रती है। मेरा ही बलुआ देखो…दो-दो महीनों में, वह भी यहाँ से 4-5 चिट्ठी जाने पर एक आध – पत्र लिखता है और उल्टे हमें ही शिक्षा, ‘आप तो यों ही दो-चार दिन में घबरा जाते हैं। काम बहुत रहता है। समय ही नहीं मिलता। और आज कल तो ड्यूटी बड़ी कड़ी है। दम मारने को टाइम नहीं। भला, यह भी कोई बात हुई! निरे बहाने ही चलने लगे हैं।
नीलम – बहाना नहीं, चाचा जी। इन तस्करों से निपटना आसान नहीं – जान पर खेलना पड़ता है।
मीना – कभी-कभी इन लोगों से डाकुओं की तरह भिड़ंत भी हो जाती है – गोलियाँ तक चल जाती हैं।
सुमित्रा – यही तो मैं कहूँ। इसीलिये तो मेरा कलेजा धक्-धक् कर रहा है। न जयदेव आया, न उसकी कोई खैर खबर।

शब्दार्थ-
गर्व-
अभिमान
दुर्बल- कमजोर
आशंका शंका का भाव
बलिदान- त्याग
हृदय पर पत्थर रख लिया था– अत्यधिक दुख को सहन करते हुए मन को कठोर बना लिया था
हिम्मत टूट चुकी है- साहस या आत्मबल समाप्त हो जाना
देह- शरीर
जर्जर- कमजोर
बाल बाँका होना– तनिक भी हानि या चोट पहुँचना
रुआँसी रोने को होने वाली
साश्चर्य आश्चर्य से, हैरानी के भाव से
तकलीफ़ पीड़ा
कुशल क्षेम राजी खुशी
चिट्ठी-विट्ठी पत्र या संदेश
खैर-खबर हालचाल या समाचार
लापरवाही असावधानी या ध्यान न देना
दिल पर क्या गुजरती है– मन में कितना दर्द या चिंता होती है
दम मारने को टाइम नहीं- अत्यधिक व्यस्त होना, विश्राम का समय न मिलना
निरे बहाने- केवल झूठे कारण या बहाने बनाना
तस्करों से निपटना– अपराधियों से मुकाबला करना
भिड़ंत टकराव, संघर्ष या मुठभेड़

व्याख्या- प्रस्तुत अंश में एक माँ की बेचैनी और परिवार के अन्य सदस्यों की सांत्वना को दिखाया गया है। सुमित्रा कहती हैं कि यद्यपि अपने पति के बलिदान पर उन्हें गर्व था, परंतु अब उनका हृदय बहुत दुर्बल हो गया है। अब किसी भी छोटी सी आशंका से वे काँप उठती हैं। वे स्वीकार करती हैं कि जब उनके पति ने देश के लिए प्राण त्यागे, तब उन्होंने अपने ह्रदय पर पत्थर रख लिया था, लेकिन अब उनकी हिम्मत टूट चुकी है और शरीर भी कमजोर हो गया है। वे आँसू भरी आवाज़ में कहती हैं कि अगर उनके बेटे जयदेव को ज़रा सा भी नुकसान हुआ तो वे पल भर भी जीवित नहीं रहेंगी। नीलम उन्हें सांत्वना देने की कोशिश करती है और कहती है कि उन्हें व्यर्थ चिंता नहीं करनी चाहिए। तभी चाचा बाहर से आवाज़ लगाते हुए प्रवेश करते हैं और मीना से पूछते हैं कि वह अब तक घर पर क्यों है, जबकि नौ बज चुके हैं और उसे कॉलेज जाना चाहिए था। वह जब सुमित्रा को व्याकुल अवस्था में देखते हैं तो आश्चर्यचकित होकर पूछते हैं कि क्या हुआ, क्या कोई तकलीफ़ है। नीलम बताती है कि वह यों ही घबरा गई थीं और उनका दिल ज़ोर से धड़कने लगा था।
चाचा बैठकर कहते हैं कि वह किसी डॉक्टर को बुला लाते हैं और बताते हैं कि वह अभी-अभी माधोराम के घर से आ रही थीं, ऐसे अचानक क्या हो गया। वह यह जानने आए थे कि जयदेव की कुशलता की कोई चिट्ठी आई या नहीं, क्योंकि वह छुट्टी लेकर आने वाला था। मीना बताती है कि जयदेव आज या कल में ही आने वाले थे। सुमित्रा व्यथित स्वर में कहती हैं कि उसे कल आना था, पर अभी तक कोई खबर नहीं आई, पता नहीं भगवान की क्या मर्ज़ी है।
चाचा उन्हें समझाते हैं कि इसमें घबराने की कोई बात नहीं। संभव है जयदेव को रास्ते में कोई मित्र मिल गया हो, या किसी सरकारी काम में फँस गया हो। वह कहते हैं कि अफसर लोग पलभर में अपना कार्यक्रम बदल सकते हैं। मीना भी सहमति जताती है कि सरकारी नौकरी में ज़िम्मेदारियाँ बहुत होती हैं। लेकिन सुमित्रा दुख प्रकट करती हैं कि बेटा चाहे व्यस्त हो, पर उसे अपनी खैर-खबर तो भेजनी चाहिए थी। चाचा हँसते हुए कहते हैं कि आजकल के बच्चे बड़े लापरवाह हो गए हैं। वह नहीं जानते कि माँ-बाप के दिल पर कैसी पीड़ा गुजरती है। वे अपने बेटे बलुआ का उदाहरण देते हैं कि वह भी महीनों तक चिट्ठी नहीं लिखता, और जब लिखता है तो उल्टा यही कहता है कि आप तो व्यर्थ ही घबरा जाते हैं, बहुत काम रहता है, समय नहीं मिलता।
इस पर नीलम गंभीर होकर कहती है कि यह कोई बहाना नहीं है, क्योंकि तस्करों से निपटना आसान नहीं होता, पुलिस वालों को जान पर खेलना पड़ता है। मीना भी कहती है कि कभी-कभी उन्हें डाकुओं की तरह भिड़ना पड़ता है और गोलियाँ तक चल जाती हैं।
यह सुनकर सुमित्रा का भय और बढ़ जाता है। वह कहती हैं कि यही कारण है कि उनका कलेजा धकधक कर रहा है। न तो जयदेव आया, न ही उसकी कोई खबर है।

 

पाठ
नीलम – रेडियों पर आज सवेरे खबर आई है कि बाघा बार्डर पर स्मगलरों का मुकाबला करते हुए दो सरकारी अफसर मारे गये। यह खबर सुनकर … तभी से माँ जी को दिल का दौरा सा पड़ने लगा।
मीना – हम बहुत समझा रहे हैं – कि… ।
चाचा – हं-हं-हं वाह री मेरी वीरांगना भाभी! अरे, वह खबर तो मैं भी अभी-अभी सुनकर आया हूँ – पौने नौ वाली खबरों में। जयदेव का बाल भी बाँका नहीं हुआ। दो सरकारी अफसर जो मारे गये, उन में एक हैड कांस्टेबल था और दूसरा सब इंस्पैक्टर।
सुमित्रा – कितने हत्यारे – कसाई हैं, ये स्मगलर! इन बेचारों के बाल बच्चों का क्या होगा? मेरा जयदेव तो…..।
मीना – चाचा कह तो रहे हैं, कि उनका बाल भी बाँका नहीं हुआ।
चाचा – अखबार में भी खबर आ गई। जयदेव की वीरता और सूझ-बूझ की बड़ी प्रशंसा छपी है। उसने तस्करों से किस बहादुरी और चतुराई से मोर्चा लिया; किस तरह उनको मार भगाया और किस तरह उनके चार आदमियों को गोलियों का निशाना बनाया तथा पाँच लाख का सोना उनसे छीन लिया। (अखबार देते हुए) लो, पढ़ लो।
सुमित्रा – (प्रसंन होकर) सच? क्या यह सब सच है? मेरा बहादुर बेटा, जयदेव! अरी मीना, सुना न क्या लिखा है अखबार में? और बेटी नीलू… अपने चाचा जी के लिये कुछ… (अभी लाई कह कर नीलम का प्रस्थान)
चाचा – ना ना भाभी! … बेटी! बहूरानी! नहीं। इस समय तो कुछ भी नहीं। अभी-अभी तो नाश्ता….।
नीलम – (रसोई घर में से) – चाचा जी, ऐसे नहीं जाने देंगे। आपको मेरी सौंगंध, जो…..।
चाचा – तुम लोगों में यहीं बड़ा एब है, बात-बात में सौगंध। एक तो पहले ही पेट तना है, ऊपर से सौगंध।
सुमित्रा – क्या हुआ भैया, बालकों का मन रखना बड़ों का काम है। ये बच्चे जितनी सेवा करेंगे, उतना आप लोगों का आशीर्वाद लेंगे। (मीना चाय की ट्रे मेज पर रख देती है)
चाचा – (चाय पीते हुए) – मीना बेटी, भाभी को अखबार की पूरी खबर सुना देना। यही छोड़े जाता हूँ। जयदेव भी एकाध दिन में आता ही होगा। (प्याला मेज पर रखता है)
मीना – और क्या?
चाचा – अच्छा, मैं चला। (प्रस्थान)

शब्दार्थ- 
स्मगलर तस्कर; जो चोरी-छिपे सीमा पार माल लाते या ले जाते हैं
दिल का दौरा- हृदयाघात जैसा अनुभव होना, हृदय की गति असामान्य हो जाना
वीरांगना- वीर स्त्री
पौने नौ- समय. 8:45 बजे
बाल भी बाँका नहीं हुआ– तनिक भी नुकसान न पहुँचना, पूरी तरह सुरक्षित रहना
हैड कांस्टेबल- पुलिस विभाग में एक पद
सब इंस्पेक्टर- थाने का निरीक्षक या अधिकारी, एक पुलिस पद
हत्यारे कसाई- निर्दयी व्यक्ति, यहाँ स्मगलरों के लिए प्रयोग किया गया
वीरता- साहस
सूझ-बूझ- समझदारी
मोर्चा लिया दुश्मन का सामना किया
बहादुर बेटा साहसी पुत्र
प्रस्थान- किसी का स्थान छोड़कर चले जाना
सौगंध- कसम या शपथ
एब- दोष या कमी, नकारात्मक आदत
पेट तना है- अधिक भोजन करने से भरा हुआ पेट
एकाध- गिनती में बहुत कम, एक आध

व्याख्याप्रस्तुत गद्याँश में नीलम बताती है कि आज सुबह रेडियो पर खबर आई थी कि बाघा बॉर्डर पर तस्करों से मुठभेड़ में दो सरकारी अफसर मारे गए हैं। यह खबर सुनते ही सुमित्रा को ऐसा झटका लगा जैसे दिल का दौरा पड़ गया हो। मीना कहती है कि वह माँ को बहुत समझा रही थीं, लेकिन उनका मन शांत नहीं हो पा रहा था। तभी चाचा हँसते हुए कहते हैं और माहौल को हल्का करते हैं। वह कहते हैं कि वह भी अभी-अभी वही खबर सुनकर आए हैं पौने नौ वाली, समाचारों में यह स्पष्ट बताया गया कि जयदेव पूरी तरह सुरक्षित है। जिन दो अधिकारियों की मृत्यु हुई, उनमें एक हेड कांस्टेबल और दूसरा सब-इंस्पेक्टर था।
यह सुनकर सुमित्रा को कुछ राहत तो मिलती है, पर उनका हृदय अब भी द्रवित है। वह कहती हैं कि ये तस्कर कितने निर्दयी और क्रूर होते हैं जिन्होंने सरकारी अफसरों की जान ले ली, उनके परिवारों का क्या होगा और फिर भी वह तुरंत अपने बेटे जयदेव की चिंता में लौट आती हैं। मीना उन्हें दिलासा देती है कि चाचा कह रहे हैं कि जयदेव सुरक्षित है। चाचा फिर अखबार दिखाते हुए बताते हैं कि जयदेव की वीरता की प्रशंसा अखबार में छपी है। वह बताते हैं कि जयदेव ने किस बहादुरी और चतुराई से तस्करों का सामना किया, कैसे चार अपराधियों को गोली से मार गिराया और पाँच लाख का सोना बरामद किया। वह गर्व से अखबार सुमित्रा को देते हैं और कहते हैं कि लो, पढ़ लो।
सुमित्रा के चेहरे पर अचानक खुशी और गर्व की चमक लौट आती है। वह प्रसन्न होकर कहती हैं कि सच, मेरा बहादुर बेटा जयदेव। वह आनंदित होकर मीना और नीलम से कहती हैं कि वे उन्हें पढ़कर सुनाएँ कि अखबार में उनके बेटे की वीरता का क्या ज़िक्र है। वह नीलम से आग्रह करती हैं कि चाचा जी के लिए कुछ लेकर आएँ। नीलम तुरंत रसोई में चली जाती है। चाचा मुस्कुराते हुए मना करते हैं कि अभी तो उन्होंने नाश्ता किया है और कुछ नहीं लेंगे। लेकिन नीलम रसोई से आवाज़ लगाकर हँसते हुए कहती है कि अगर वह कुछ खाए बिना चले गए तो उन्हें उसकी सौगंध। इस पर चाचा मज़ाक में कहते हैं कि तुम लोगों में यही बुरा एब है कि बात-बात में सौगंध खा लेते हो, पहले ही पेट भरा है, ऊपर से सौगंध।
सुमित्रा स्नेहपूर्वक कहती हैं कि बच्चों का मन रखना बड़ों का कर्त्तव्य है, क्योंकि उनकी सेवा से ही उन्हें आशीर्वाद मिलेगा। इस बीच मीना चाय की ट्रे मेज़ पर रख देती है और चाचा चाय पीते हुए कहते हैं कि मीना अपनी माँ को अखबार की पूरी खबर पढ़कर सुना दे। वह आश्वस्त स्वर में कहते हैं कि जयदेव अब एक-दो दिन में घर आ ही जाएगा। चाय खत्म करके वह प्याला मेज़ पर रखते हैं और विदा लेते हुए कहते हैं कि अब मैं चलता हूँ। 

 

पाठ
मीन – (समाचार सुनाते हुए) – अंधेरी रात थी। तस्करों के गिरोह ने किसी तरह बिजली भी फेल कर दी थी।
सुमित्रा – अच्छा! हाँ, परसों अमावस ही तो थी।
मीना – 2-4 संतरी धीरे-धीरे गश्त लगा रहे थे। और कुछ अफसर और भैया कैंप में चौकन्ने बैठे थे। कुछ देर बाद रात के सन्नाटे में संतरियों ने आकर खबर दी कि सीमा से कुछ मील दूर लाइट सी नज़र आई है। क्षण भर में फिर बंद हो गई।
नीलम – तब इसके बाद क्या हुआ?
मीना – भैया तुरंत टैण्ट से निकले और जवानों को जगह-जगह तैनात कर दिया। कैंप से करीब आधा मील की दूरी पर एक जीप आकर रुकी और 6-7 आदमी उसमें से उतरे।
सुमित्रा – अमावस की घोर अंधियारी में इन लोगों को साँप – बिच्छू का भी डर नहीं लगता। कैसे भयंकर निडर राक्षस है।
नीलम – माँ जी, लाखों रुपये कमाने का लालच इन्हें इतना निडर और अंधा बना देता है कि ये लोग न कानून से और न ही साँप-बिच्छू तथा शेर-चीते से डरते हैं। अपने ही स्वार्थ में लगे होने के कारण ये अपने देश और समाज के हित को भी नहीं देख पाते।
मीना – तो माँ, फिर भैया ने उन पर टार्च से रोशनी डाली और आदेश दिया – “खबरदार! हैंड्ज अप। भागने की कोशिश की तो गोली मार दी जायेगी।” जवाब में उन लोगों ने पुलिस पर गोलियाँ चलानी शुरु कर दीं। पुलिस ने भी गोलियों से जवाब दिया।
सुमित्रा – हे भगवान, इतनी हिम्मत! जयदेव को तो चोट नहीं आई?
मीना – नहीं। पंद्रह मिनट तक गोलियाँ चलती रही। दो पुलिस के आदमी मारे गये और तीन उन के। बाकी 3-4 रात के अंधेरे में छिपकर अपनी जान बचा कर भाग गये। हमारी पुलिस जब लाशों के पास पहुंची तो दो बैग पड़े मिले, जिन में 5 लाख का सोना था।

शब्दार्थ-
तस्करों का गिरोह- अवैध सामान लाने-ले जाने वाले अपराधियों का समूह
अमावस वह रात्रि जब चाँद नहीं निकलता, पूर्ण अंधकार वाली रात
संतरी- चौकीदार या प्रहरी, सीमा या कैंप की सुरक्षा करने वाले सैनिक
गश्त-  पुलिस कर्मचारियों का पहरे के लिए घूमना
चौकन्ने सतर्क
सन्नाटा गहरी शांति, जब कोई आवाज न हो
क्षण भर में- बहुत थोड़े समय में, पलभर में
जवानों को तैनात कर दिया– सैनिकों को अपनी-अपनी जगह पर खड़ा कर दिया
निडर- जिसे डर न लगे
राक्षस- क्रूर व्यक्ति
स्वार्थ केवल अपने हित की चिंता करना
हित भलाई
हैंड्ज़ अप–  हाथ ऊपर करो
भयंकर अत्यंत डरावना या भयावह

व्याख्या- इस अंश में मीना अख़बार की खबर सुमित्रा और नीलम को विस्तार से सुनाती है। वह बताती है कि घटना अंधेरी रात में हुई जब तस्करों के गिरोह ने बिजली काट दी थी ताकि अंधेरे का फायदा उठाया जा सके। सुमित्रा को याद आता है कि एक दिन पहले अमावस्या थी, यानी पूरी अंधियारी रात थी। उस समय कुछ सिपाही गश्त कर रहे थे और अफसर, जिनमें जयदेव भी शामिल था, कैंप में सतर्क बैठे थे। तभी संतरियों ने सूचना दी कि सीमा से कुछ मील दूर एक हल्की सी रोशनी दिखाई दी थी जो तुरंत गायब हो गई। जयदेव ने तत्परता दिखाते हुए जवानों को सही जगहों पर तैनात कर दिया। थोड़ी देर में एक जीप रुकी और उसमें से 6-7 तस्कर निकले। सुमित्रा यह सुनकर कहती है कि ऐसे लोगों को न साँप-बिच्छू का डर होता है, न अंधेरे का, ये निडर राक्षस हैं। नीलम समझाती है कि लालच इन्हें इतना अंधा बना देता है कि ये कानून और खतरे की परवाह नहीं करते और देशहित को भी भूल जाते हैं। आगे मीना बताती है कि जयदेव ने बहादुरी से टॉर्च की रोशनी डालते हुए आदेश दिया कि हाँथ ऊपर कर लो और भागने की कोशिश की तो गोली मार दी जाएगी। जवाब में तस्करों ने गोलीबारी शुरू कर दी, और पुलिस ने भी डटकर मुकाबला किया। लगभग पंद्रह मिनट तक गोलियाँ चलती रहीं, जिसमें दो पुलिसकर्मी और तीन तस्कर मारे गए। बाकी कुछ अंधेरे में भाग निकले। जब पुलिस ने स्थल की तलाशी ली, तो दो बैग मिले जिनमें पाँच लाख रुपये का सोना था। यह सब सुनकर सुमित्रा को अपने बेटे की वीरता पर गर्व होता है और वह भगवान का धन्यवाद करती है कि जयदेव सुरक्षित है।

 

पाठ
जयदेव – (सहसा प्रवेश करके) क्या गप्पें मार रही है? यह रिसर्च हो रही है यूनिवर्सिटी में?
मीना – (दौड़कर जयदेव की ओर जाते हुए) भैय्या! अम्मा! भैय्या! (जाकर उस से लिपट जाती है। माँ भी फुर्ती से उठती है “मेरा बेटा” कहकर आलिंगन के लिए बांहें फैलाती है और जयदेव तेजी से आकर उसकी बांहों में बंध जाता है। नीलम शर्मीली ढली पलकों से अभिवादन करती है। कुछ क्षण बाद माँ के आलिंगन से मुक्त होकर)
जयदेव – (नीलम से) – नमस्ते, जनाब!
नीलम – चलो, हम नहीं बोलते। न कोई चिट्ठी न पत्री, न खैर-खबर। सबको मुसीबत में डाल दिया। माँ जी तो इतना घबरा गई कि दिल का दौरा ही….।
मीना – और क्या? छुट्टी लिये तीन दिन हो गये और अब आये हैं, श्रीमान जी! सबको परेशान कर मारा!
जयदेव – तुम लोगों को बे-बात घबराना आता है! आखिर ऐसी क्या मुसीबत आ गई जो सभी इतना परेशान …..।
नीलम – स्मगलरों के साथ मुठभेड़ में दो पुलिस वाले मारे गये थे, न?
जयदेव – हाँ, तब?
मीना – यह खबर सुनकर अम्मा को तो दिल का दौरा ही पड़ गया। वह तो अच्छा हुआ जो अचानक ही चाचा जी आ गये। यह अखबार भी दे गये, जिससे सच्ची खबर का पता चल जाये।
नीलम – जब इन्हें विश्वास हो गया कि आप कुशल से हैं, तब कहीं जी ठिकाने आया।
जयदेव – वाह, मेरी प्यारी अम्मा! (कहकर उससे लिपट जाता है। सुमित्रा की आँखों में प्रेम के आँसू छलक उठते हैं।)
सुमित्रा – (हथेली से आँसू पोंछते हुए) – अरे खड़ा कब तक रहेगा? बैठ जा, बेटा, सफर करके आया है, थक गया होगा।
(उसे कंधे से पकड़ कर सोफे पर बैठाती है) जा बेटी, नीलू जयदेव के लिये चाय तैयार कर। मैं तब तक मंदिर में जा कर भगवान के चरणों में माथा टेक आऊं।

शब्दार्थ-
सहसा- अचानक, एकाएक
गप्पें- व्यर्थ या मनोरंजक बातें
रिसर्च शोध कार्य
फुर्ती से- जल्दी, तत्परता से
आलिंगन गले लगाना
बांहें हाथ
शर्मीली- संकोची, लज्जाशील
अभिवादन नमस्कार करना
जनाब- सम्मानपूर्वक सम्बोधन
चिट्ठी-पत्री- पत्र या संदेश
बे-बात- बिना कारण, व्यर्थ
मुठभेड़ टकराव

व्याख्या- इस अंश में मीना, नीलम और सुमित्रा तीनों तभी प्रसन्नता और आश्चर्य से भर उठती हैं जब जयदेव अचानक घर लौट आता है। जयदेव मज़ाकिया लहजे में कहता है कि क्या गप्पें मार रही है, यह यूनिवर्सिटी में रिसर्च हो रही है। जिससे घर का माहौल तुरंत हल्का और हँसमुख बन जाता है। मीना दौड़कर जयदेव से लिपट जाती है, और सुमित्रा प्रेम और मातृवात्सल्य से भरकर अपने बेटे को गले लगा लेती है। नीलम संकोच से झुकी पलकों के साथ उसका अभिवादन करती है। जब जयदेव हँसते हुए नीलम से कहता है कि नमस्ते जनाब तब नीलम उसे हल्की नाराज़गी और प्यार भरे लहजे में उलाहना देती है कि उसने कोई चिट्ठी तक नहीं भेजी, जिससे माँ इतनी घबरा गईं कि उन्हें दिल का दौरा तक पड़ गया। मीना भी उसे छेड़ते हुए कहती है कि छुट्टी लिए तीन दिन हो चुके हैं, और अब जाकर दर्शन दिए हैं। जयदेव मुस्कुराते हुए कहता है कि वे लोग ज़रा-ज़रा सी बात पर घबरा जाते हैं, पर जब नीलम बताती है कि स्मगलरों से हुई मुठभेड़ में दो पुलिसवाले मारे गए थे, तब जयदेव समझता है कि उनकी चिंता वाजिब थी। मीना बताती है कि यह सुनकर माँ को बहुत धक्का लगा था, लेकिन चाचा जी का समय पर आना और अख़बार की सही खबर दिखाने से उन्हें राहत मिली।
जयदेव माँ को ‘मेरी प्यारी अम्मा’ कहकर फिर गले लगा लेता है, और सुमित्रा की आँखों से प्रेम और सुकून के आँसू झरने लगते हैं। सुमित्रा स्नेहपूर्वक उसके आँसू पोंछते हुए कहती है कि बेटा थका होगा, बैठ जाए। वह खुद मंदिर जाकर भगवान के चरणों में माथा टेकना चाहती है, अपने बेटे की सुरक्षित वापसी के लिए आभार व्यक्त करने। नीलम से वह प्यार से कहती है कि वह जयदेव के लिए चाय बना दे। 

 

पाठ
(सुमित्रा प्रस्थान करती है। ‘चाय ले आऊं’ कहते हुए नीलम उठना चाहती है। जयदेव उसे रोक लेता है।)
जयदेव – अभी रहने दो। सब साथ पियेंगे। और रास्ते भर चाय ही चाय पीता आया हूँ।
नीलम – थोड़ी देर अपने भाई साहब की वीरता की गप्पें सुन लो। पेट में बहादुरी की अनेक कहानियाँ भरी है, वे बाहर निकलें, तभी तो चाय के लिए जगह बने।
मीना – तुम सुनो अपने पतिदेव की कहानियाँ। मुझे तो क्लास अटैंड करनी है। (पर्स हिलाती हुई प्रस्थान करती है।)
नीलम – (मान भरी मुद्रा में) – अब बताइये, इतने दिन कहाँ लगाये? यहाँ तो राह देखते – देखते आँखे पथरा गई, वहां जनाब को परवाह तक नहीं कि किसी के दिल पर क्या बीत रही है।
जयदेव – चाहे कभी याद भी न किया हो कि हम पर वहां क्या बीतती है। रात दिन प्राणों की आशंका…..। स्मगलरों तस्कारों से प्राणों की बाजी…।
नीलम – (उलाहने भरे स्वर में) – अरे जाओ भी! मर्दों का दिल तो पत्थर होता है। और विशेष कर रात-दिन चोर डाकुओं तथा मौत से खेलने वालों, और गोलियों की बौछार करने वालों का।नारी का हृदय सदा प्रेम से लबालब रहता है। उस के मन में सदा अपने पति की प्रतिमा स्थापित रहती है। हां, बाकायदे, कैफियत दीजिये कि तीन दिन लेट क्यों हो गये?
जयदेव – मैं जो कहूंगा खुदा को हाज़िर नाज़िर जान कर कहूँगा। सरकार के दरबार में अपनी जानकारी के मुताबिक कोई बात गलत नहीं कहूँगा।
नीलम – हाँ, दीजिए सही-सही बयान तीन दिन लेट क्यों हुए?
जयदेव – हुआ यह कि घर की ओर आने से दो-तीन घंटे पहले गुप्तचरों ने समाचार दिया कि रात की अंधेरी में पुलिस पिकिट से एक डेढ़ मील दक्षिण की तरफ से, कुछ लोग बार्डर पार करने वाले हैं। ऐसा शक है कि वे सोना स्मगल करके ला रहे हैं।
नीलम – अच्छा! आप की सी. आई. डी. इतनी सतर्क है – इतनी तेज़ है! यह जानकर सचमुच बड़ी प्रसंनता होती है।
जयदेव – यह मौका हाथ से न निकल जाये, यह सोच कर मैंने छुट्टी कैंसिल करा ली। इन बदमाशों को पकड़ने का पक्का इरादा किया। भाग्य ने साथ दिया। जो अंदाज़ा हमने लगाया था, वही हुआ। आधी रात के बाद वे हमारी चौकी से दो मील दूर एक खतरनाक घने ढाक के ऊबड़-खाबड़ रास्ते से बार्डर पार करने लगे – तभी हमने उन्हें चैलेंज किया। उन्होंने बदले में गोलियाँ चलायीं, जिससे हम घबरा जायें और उन्हें बचकर भागने का मौका मिल जाये?

Desh Ke Dushman Summary img 1

नीलम – तब वे भाग क्यों न गये?
जयदेव – भागने की कोशिश तो की। हमारी चुनौती सुनकर वे अपनी जीप लेकर भागने लगे। लेकिन हमारी दो तीन जीपों ने उनका पीछा किया। मैंने ऐसा निशाना मारा कि उनकी जीप का पहिया उड़ गया। वह लुढ़क कर एक खड्डे में जा गिरी। कोई चारा न देख जीप से उतर कर उन्होंने गोलियाँ चलानी शुरु कीं। हमारे जवानों ने भी……. टेलीफोन की घंटी बजती है। मोर्चाबन्दी कर ली। देखना, कौन है? (नीलम उठकर टेलीफोन सुनती है)

शब्दार्थ-
प्रस्थान चले जाना
बहादुरी साहस, वीरता
अटैंड- उपस्थित होना, भाग लेना
मान भरी मुद्रा हल्का रूठाना, नाराज़गी का भाव
राह देखते-देखते– प्रतीक्षा करते-करते
आँखे पथरा गई– बहुत देर इंतज़ार करते-करते थक जाना
परवाह- चिंता, ध्यान
प्राणों की आशंका- जीवन को खतरा होने की संभावना
प्राणों की बाजी- जान जोखिम में डालना
उलाहने भरे स्वर– शिकायत भरे शब्द
लबालब- पूरी तरह भरा हुआ
प्रतिमा- मूर्ति, प्रतीक रूप
बाकायदा ढंग से
कैफियत- हाल समाचार, विवरण
हाज़ि-नाज़िर- साक्षी, उपस्थित और गवाह
दरबार- अदालत, न्यायालय
गुप्तचर जासूस
पुलिस पिकिट–  पुलिस का घेरा
सतर्क- चौकन्ना
बार्डर सीमा रेखा
कैंसिल रद्द
इरादा- निश्चय, संकल्प
अंदाज़ा अनुमान
घना- सघन, बहुत अधिक पेड़ों वाला
ऊबड़-खाबड़- असमतल, कठिन रास्ता
चैलेंज किया ललकारा
चुनौती- ललकार
खड्डे में- गड्ढे में
मोर्चाबन्दी- किसी शत्रु के आक्रमण को रोकने या बचाव के लिए तैयारी करना

व्याख्या- सुमित्रा मंदिर जाने के लिए उठती है और नीलम चाय लाने के लिए उठने ही वाली होती है कि जयदेव उसे रोकते हुए कहता है कि अभी रहने दो, सब साथ में चाय पिएंगे क्योंकि वह रास्ते भर चाय ही पीता आया है। नीलम हँसते हुए कहती है कि पहले अपने भाई साहब की वीरता की गप्पें सुन लेते हैं, पेट में बहादुरी की इतनी कहानियाँ भरी हैं, वे बाहर निकलेंगी तभी तो चाय के लिए जगह बनेगी। मीना मज़ाक में अपनी भाभी से कहती है कि तुम अपने पतिदेव की कहानियाँ सुनो, मेरी क्लास है और मैं अटेंड करने जा रही हूँ। वह पर्स हिलाते हुए चली जाती है।
मीना के जाने के बाद नीलम मान भरी मुद्रा में कहती है कि अब बताइए, इतने दिन कहाँ लगाए। यहाँ तो राह देखते-देखते आँखें पथरा गईं, वहाँ जनाब को परवाह तक नहीं कि किसी के दिल पर क्या बीत रही है। जयदेव शांत स्वर में कहता है कि चाहे कभी याद भी न किया हो, पर वहाँ हम पर क्या बीतती है, यह कौन समझेगा। रात-दिन जान का खतरा, स्मगलरों और तस्करों से प्राणों की बाज़ी लगी रहती है।
नीलम उलाहने भरे स्वर में कहती है कि मर्दों का दिल तो पत्थर का होता है, खासकर उन लोगों का जो दिन-रात चोर-डाकुओं और मौत से खेलते रहते हैं। नारी का हृदय सदा प्रेम से भरा होता है, उसके मन में तो अपने पति की प्रतिमा सदा बसी रहती है। फिर वह सख्ती से पूछती है। अब बाकायदे बताइए कि तीन दिन लेट क्यों हो गए।
जयदेव मुस्कुराते हुए कहता है कि जो भी कहेगा, खुदा को हाज़िर-नाज़िर जानकर सच ही कहेगा। वह बताता है कि घर आने से दो-तीन घंटे पहले गुप्तचरों ने सूचना दी थी कि रात के अंधेरे में पुलिस पिकेट से एक-दो मील दक्षिण की ओर कुछ लोग बार्डर पार करने वाले हैं और शक है कि वे सोना स्मगल कर रहे हैं। नीलम उत्साहित होकर कहती है कि आपकी सी.आई.डी. तो बहुत सतर्क और तेज़ है, यह जानकर सचमुच खुशी होती है। जयदेव आगे कहता है कि उसने सोचा, यह मौका हाथ से न निकल जाए, इसलिए छुट्टी कैंसिल करा ली और बदमाशों को पकड़ने का पक्का इरादा किया। भाग्य ने भी साथ दिया। आधी रात के बाद वे लोग चौकी से दो मील दूर एक खतरनाक, घने, ऊबड़-खाबड़ रास्ते से बार्डर पार करने लगते हैं। तभी वे उन्हें चैलेंज करते हैं, लेकिन जवाब में तस्कर गोलियाँ चलानी शुरू कर देते हैं ताकि पुलिस घबरा जाए और वे भाग सकें।
नीलम जिज्ञासापूर्वक पूछती है कि तब वे भागे क्यों नहीं? जयदेव बताता है कि उन्होंने कोशिश की, लेकिन पुलिस की दो-तीन जीपों ने उनका पीछा किया। उसने ऐसा निशाना मारा कि उनकी जीप का पहिया उड़ जाता है और वह खड्डे में जा गिरती है। कोई चारा न देखकर वे जीप से उतरकर गोलियाँ चलाने लगते हैं। हमारे जवान भी मोर्चा संभाल लेते हैं। तभी टेलीफोन की घंटी बज उठती है, और जयदेव कहता है कि देखो, कौन है। नीलम उठकर टेलीफोन सुनने चली जाती है।

 

पाठ
नीलम – (टेलीफोन पर हथेली रखकर जयदेव से) डी. सी. साहब है। पूछ रहे हैं, आप आ गये कि नहीं? अभी मिलने आना चाहते हैं।
जयदेव – आ जायें।
नीलम – (टेलीफोन पर) आ जाइये। वह आप की प्रतीक्षा करेंगे। (टेलीफोन रख कर पास आते हुए) अभी सफर के कपड़े तक तो बदले नहीं, हाथ मुँह को पानी तक छुआया नहीं। यह भी
कोई बात है ! कह देते, अभी ज़रा थका हूँ, दोपहर बाद आ जायें।
जयदेव – पुलिस और सेना में भी थकना! यह एक डिसक्वालिफिकेशन है। हां, यह कह देता तो शायद अधिक उपयुक्त था कि मैं अभी अपनी प्राण प्रिया से बातें कर रहा हूँ इसलिये……
नीलम – चलो हटो। ज्यादा बातें न बनाया करो। जाके दो-दो महीने कभी चिट्ठी तक तो……….  (कार के आने की और रुकने की आवाज)
लगता है, वह आ भी गये।
सुमित्रा – (प्रवेश करते हुए) – अरे अभी तुम ने चाय-वाय कुछ नहीं पिलाई। मैं ही चलती हूँ रसोई में….!
नीलम – (सकपकाकर उठते हुए) – नहीं, माँ जी! आप नहीं -! मैं…. मैं जरा बातों में …….अभी बना कर लाई।
(दोनों जाने लगती हैं। डी. सी. का प्रवेश। जयदेव फुर्ती से उठकर स्वागत के लिए बढ़ता है। दोनों मुड़कर उनकी ओर देखकर रसोई में चली जाती हैं।)
डी. सी. – बधाई, मि. देव! (हाथ मिलाने को आगे बढ़ता है)
जयदेव – (हाथ मिलाते हुए) – थैंक्यू, सर।
डी. सी. – सर बैठा होगा ऑफिस की कुर्सी में। खबरदार जो यहाँ सर वर कहा। मैं वही तुम्हारा बचपन का दोस्त और क्लास मेट हूँ, जिससे बिना हाथापाई किये तुम्हें रोटी हजम नहीं होती
थी।
जयदेव – बिल्कुल! बिल्कुल! असल में यह सर कहने कहलाने की तो आदत सी पड़ गई हैं। खैर, सुनाओ भाभी और बेटा ठीक हैं? कब ट्रांसफर हुआ?
(दोनों आकर सोफे पर बैठ जाते हैं)
डी. सी. – अभी चार पांच दिन हुए।
(नीलम और सुमित्रा चाय लाती है। डी. सी. खड़ा होकर)
नमस्ते माँ जी। नमस्ते भाभी।
सुमित्रा – (मेज़ पर सामान रखते हुए) – जीते रहो, बेटा।
नीलम – (मेज़ पर सामान रखते हुए) – नमस्ते!

शब्दार्थ-
उपयुक्त-
उचित, ठीक
प्राण प्रिया अत्यंत प्रिय पत्नी
डिसक्वालिफिकेशन– अयोग्यता
सकपकाकर घबरा कर, हड़बड़ी में
प्रवेश- अंदर आना
बधाई शुभकामना, अभिनंदन
थैंक्यू- धन्यवाद
खबरदार- चेतावनी या मना करने का भाव
क्लास मेट सहपाठी
हाथापाई झगड़ा, हाथ से लड़ाई
रोटी हजम नहीं होती थी- बिना झगड़े चैन नहीं पड़ता था
ट्रांसफर- स्थानांतरण, पद बदलना

व्याख्याप्रस्तुत गद्याँश में नीलम टेलीफोन पर बात कर रही होती है। वह अपनी हथेली टेलीफोन पर रखकर जयदेव से कहती है कि डी.सी. साहब पूछ रहे हैं कि क्या वह आ गए हैं, और वे अभी मिलने आना चाहते हैं। जयदेव अनुमति देते हुए कहता है कि उन्हें आने दिया जाए। नीलम फिर टेलीफोन पर कहती है कि वे आ सकते हैं, जयदेव उनकी प्रतीक्षा करेंगे। फोन रखने के बाद वह जयदेव से शिकायत करती है कि उन्होंने अभी सफर के कपड़े तक नहीं बदले, न हाथ-मुँह धोया है, और फिर भी मिलने की अनुमति दे दी। वह कहती है कि उन्हें कहना चाहिए था कि वे थके हुए हैं और दोपहर बाद मिलने आएँ।
जयदेव मुस्कराकर जवाब देता है कि पुलिस और सेना में थकान दिखाना कमजोरी मानी जाती है। वह मज़ाक में कहता है कि बेहतर होता अगर वह कह देते कि वह अपनी प्राणप्रिय से बातें कर रहे हैं। इस पर नीलम झल्लाकर कहती है कि उन्हें ज़्यादा बातें नहीं बनानी चाहिए, क्योंकि वे जब दो-दो महीने बाहर रहते हैं तो एक चिट्ठी तक नहीं लिखते। तभी कार के आने और रुकने की आवाज़ सुनाई देती है, और नीलम को लगता है कि डी.सी. साहब आ गए हैं।
तभी सुमित्रा कमरे में प्रवेश करती है और कहती है कि अभी तक उन्होंने चाय नहीं पिलाई, वह खुद रसोई में जाकर बना लाती है। नीलम सकपकाकर कहती है कि माँ जी को कष्ट नहीं करना चाहिए, वह खुद अभी चाय बना लाती है। दोनों रसोई की ओर जाने लगती हैं तभी डी.सी. साहब कमरे में प्रवेश करते हैं। जयदेव फुर्ती से उठकर उनका स्वागत करता है। सुमित्रा और नीलम मुड़कर उन्हें देखती हैं और रसोई में चली जाती हैं।
डी.सी. जयदेव को बधाई देते हुए हाथ मिलाने के लिए आगे बढ़ते हैं, और जयदेव भी आभार प्रकट करते हुए उनसे हाथ मिलाता है। डी.सी. मज़ाक में कहते हैं कि ‘सर’ तो ऑफिस की कुर्सी पर बैठा होता है, यहाँ वे उसके बचपन के दोस्त और सहपाठी हैं, जिसके बिना झगड़ा किए जयदेव को रोटी हजम नहीं होती थी। जयदेव हँसकर कहता है कि ‘सर’ कहने की आदत पड़ गई है, और फिर पूछता है कि भाभी और बेटा कैसे हैं और कब उनका ट्रांसफर हुआ। दोनों सोफे पर बैठ जाते हैं। डी.सी. बताते हैं कि उनका ट्रांसफर चार-पाँच दिन पहले ही हुआ है।
तभी नीलम और सुमित्रा चाय लेकर आती हैं। डी.सी. खड़े होकर दोनों को नमस्ते करता है। सुमित्रा उसे आशीर्वाद देती है और नीलम मुस्कराकर नमस्ते करती है। 

 

पाठ
डी. सी. – माँ जी, मैं अपने लंगोटिये यार की वीरता और सूझ बूझ पर आपको और भाभी को बधाई देने आया हूँ। साथ ही एक खुशी की खबर भी…. आज शाम हम शहर की तरफ से देव का सम्मान कर रहे हैं। साथ ही………..
जयदेव – (बीच में ही टोककर) – यार, इसकी क्या जरूरत है?
डी. सी. – मेरी तरफ से नहीं, यह गवर्नर साहब का फोन आया है। साथ ही दस हज़ार का इनाम भी उसी स्वागत सभा में घोषित किया जायेगा।
(जयदेव विचार मग्न हो जाता है)
सुमित्रा – (खुशी से) अच्छा!
जयदेव – तो मेरी ओर से घोषणा कर देना कि यह रुपया दोनों मृत पुलिस अफसरों की विधवा पत्नियों में आधा-आधा बाँट दिया जाये।
डी. सी. – अरे देव। यह तुम क्या कहते हो? दस हज़ार की रकम पर यों ही ठोकर मार रहे हो। क्यों माँ जी, यह ठीक है क्या?
सुमित्रा – बेटा, यह ठीक है कि दस हजार की रकम कम नहीं होती। लेकिन उन विधवाओं और मृत अफसरों के परिवारों के बारे में भी तो सोचो, उनकी क्या हालत होगी?
नीलम – मैं अपने पति की वीरता पर ही नहीं, उनके त्याग और उन की करुणा पर भी गर्व कर सकती हूँ। यह उनके कुल की मर्यादा है।
डी. सी. – सचमुच, आज मैं अपनी पूज्य माँ पर, अपनी प्यारी भाभी पर, अपने लंगोटिये यार पर गर्व से छाती फुला सकता हूं। देव, तुम्हारा त्याग सचमुच अन्य अफसरों के लिये अनुकरणीय है। अच्छा! मैं चलता हूँ (सुमित्रा से चिपट कर) मेरी प्यारी मां!
सुमित्रा – (प्यार से कमर पर हाथ फेरती है) जियो मेरे बेटे! दोनों भाइयों की लंबी उमर हो! (डी. सी. जाने के लिए उठ खड़ा होता है। सब लोग खड़े हो जाते हैं। एक दूसरे का अभिवादन करते हुए डी. सी. को विदा देते हैं।)

शब्दार्थ-
लंगोटिये यार बहुत घनिष्ठ, बचपन का मित्र
सम्मान- आदर
टोककर- बीच में बोलकर, रोकते हुए
गवर्नर साहब- राज्यपाल, प्रदेश के सर्वोच्च पदाधिकारी
विचार मग्न- सोच में डूबा हुआ
विधवा पत्नियाँ जिनके पति की मृत्यु हो चुकी है
रकम- धनराशि, पैसा
ठोकर मारना अस्वीकार करना, त्याग देना
मर्यादा- कुल या परिवार की प्रतिष्ठा और गरिमा
करुणा- दया
गर्व से छाती फुलाना– अत्यंत गर्व महसूस करना
अनुकरणीय- जिसे देखकर अन्य लोग प्रेरणा लें
पूज्य आदरणीय, सम्माननीय
अभिवादन- नमस्कार या प्रणाम 

व्याख्या- इस अंश में डी.सी. सुमित्रा को संबोधित करते हुए कहते हैं कि वह अपने पुराने मित्र जयदेव की वीरता और सूझबूझ पर उन्हें और नीलम भाभी को बधाई देने आए हैं। साथ ही वह यह भी बताते हैं कि उनके पास एक खुशी की खबर है कि आज शाम शहर की ओर से जयदेव का सार्वजनिक रूप से सम्मान किया जाएगा। जयदेव तुरंत बीच में बोल उठता है और कहता है कि इस सब की कोई आवश्यकता नहीं है। तब डी.सी. स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि यह उसकी व्यक्तिगत पहल नहीं है, बल्कि गवर्नर साहब का आदेश है। साथ ही, सम्मान समारोह में दस हजार रुपये का इनाम भी घोषित किया जाएगा। यह सुनकर जयदेव कुछ देर के लिए विचारमग्न हो जाता है।
सुमित्रा खुशी से कहती हैं कि यह तो बहुत अच्छा है, लेकिन जयदेव गंभीर होकर कहता है कि उसकी ओर से घोषणा कर दी जाए कि यह दस हजार रुपये उन दो मृत पुलिस अधिकारियों की विधवा पत्नियों में बराबर बाँट दिए जाएँ। यह सुनकर डी.सी. हैरान हो जाता है और कहता है कि वह दस हजार रुपये जैसी बड़ी रकम को इतनी सहजता से ठुकरा रहा है, क्या यह ठीक होगा।
सुमित्रा समझदारी से कहती हैं कि हाँ, यह सच है कि दस हजार रुपये बहुत बड़ी रकम है, लेकिन उन विधवाओं और मृत अफसरों के परिवारों की स्थिति पर भी विचार करना चाहिए, जो इस समय दुख में हैं। नीलम भावुक होकर कहती है कि उसे अपने पति की वीरता पर ही नहीं, बल्कि उनके त्याग और करुणा पर भी गर्व है, यही उनके परिवार की मर्यादा है।
डी.सी. प्रभावित होकर कहता है कि आज वह सुमित्रा जैसी माँ, नीलम जैसी भाभी और जयदेव जैसे मित्र पर गर्व महसूस करता है। वह कहता है कि जयदेव का त्याग अन्य अफसरों के लिए प्रेरणादायक उदाहरण है। फिर वह उठकर जाने की तैयारी करता है, सुमित्रा के पास जाकर उन्हें स्नेहपूर्वक गले लगाता है और ‘मेरी प्यारी माँ’ कहता है। सुमित्रा उसके सिर पर हाथ फेरते हुए आशीर्वाद देती हैं और कहती हैं कि जियो मेरे बेटे, दोनों भाइयों की लंबी उम्र हो। इसके बाद डी.सी. जाने के लिए उठते हैं, और सभी लोग खड़े होकर एक-दूसरे का अभिवादन करते हुए उसे विदा करते हैं। 

 

Conclusion

इस पोस्ट में ‘देश के दुश्मन’ पाठ का सारांश, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। यह पाठ PSEB कक्षा 10 के पाठ्यक्रम में हिंदी की पाठ्यपुस्तक से लिया गया है। जयनाथ नलिन द्वारा लिखित यह एकांकी अत्यंत प्रेरणादायक देशभक्ति पर आधारित है, जिसमें सीमा पर तस्करों से जूझते एक वीर पुलिस अधिकारी जयदेव की साहसिक कथा प्रस्तुत की गई है। यह पोस्ट विद्यार्थियों को पाठ को सरलता से समझने, उसके मुख्य संदेश को ग्रहण करने और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में सहायक सिद्ध होगा।