आदमी का अनुपात पाठ सार
CBSE Class 8 Hindi Chapter 9 “Aadami Ka Anupat”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book
नए मेहमान सार – Here is the CBSE Class 8 Hindi Malhar Chapter 9 Aadami Ka Anupat with detailed explanation of the lesson ‘Naye Mehman’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 8 हिंदी मल्हार के पाठ 9 आदमी का अनुपात पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 8 एक टोकरी भर मिट्टी पाठ के बारे में जानते हैं।
Aadami Ka Anupat (आदमी का अनुपात)
गिरिजा कुमार माथुर
“आदमी का अनुपात” कविता के माध्यम से कवि बताना चाहता है कि आदमी ब्रह्मांड के विशाल आकार के मुकाबले बहुत छोटा है, लेकिन फिर भी वह अपने अंदर ईर्ष्या, घमंड, स्वार्थ, नफरत और अविश्वास भर कर जीता है। इतना छोटा होने के बावजूद भी वह दूसरों पर शासन करने की इच्छा रखता है। कवि हमें समझाना चाहते हैं कि जब पूरी पृथ्वी और ब्रह्मांड इतने बड़े होने पर भी एक दूसरे से द्वेष नहीं रखते, तो हमें भी आपस में लड़ने के बजाय मिल-जुलकर रहना चाहिए।
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आदमी का अनुपात पाठ सार Aadami Ka Anupat Summary
“आदमी का अनुपात” कविता में कवि संदेश देते हैं कि भले ही हम छोटे हों, लेकिन हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इंसान को घमंड और झगड़े छोड़कर मिल-जुलकर रहना चाहिए। कवि कहते हैं कि दो व्यक्ति एक कमरे में रहते हैं, और वे आकार में उस कमरे से छोटे हैं। कमरा एक घर का हिस्सा है, वह घर मोहल्ले में, मोहल्ला नगर, नगर प्रदेश में, प्रदेश देश में और कई देश मिलकर एक पृथ्वी पर स्थित हैं। आकाश में चमकने वाले अनगिनत तारों और ग्रहों में हमारी पृथ्वी बहुत छोटी सी है, परन्तु उन करोड़ों में केवल पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जो सभी प्राणियों को अपने अंदर समेटे हुए हैं। यह पृथ्वी अंतरिक्ष में स्थित आकाशगंगा (नभ गंगा) के गोल घेरे का हिस्सा है। अंतरिक्ष में लाखों ब्रह्मांड और हर ब्रह्मांड की अपनी कई पृथ्वियाँ, भूमियाँ और सृष्टियाँ हैं। यह “अनुपात” है, जो दिखाता है कि मनुष्य और उसकी पृथ्वी, इस ब्रह्मांड की विशालता के समक्ष कितने छोटे हैं। यह ब्रह्मांड मनुष्यों से बहुत विशाल है। इतने विशाल ब्रह्मांड में छोटा-सा होने के बावजूद भी मनुष्य के भीतर ईर्ष्या, अहंकार, स्वार्थ, नफरत और अविश्वास भरे हुए हैं। वह अपने चारों ओर परत-दर-परत इस तरह दीवारें खड़ी करके खुद को दूसरों से अलग और बड़ा व् दूसरों का मालिक समझता है। देशों के बीच तो दूरी सभी समझते ही है, पर एक छोटे से कमरे में रहने वाले दो मनुष्य भी अपनी-अपनी अलग दुनिया बना लेते हैं।
आदमी का अनुपात पाठ व्याख्या Aadami Ka Anupat Explanation
1 –
दो व्यक्ति कमरे में
कमरे से छोटे-
कमरा है घर में
घर है मुहल्ले में
मुहल्ला नगर में
नगर है प्रदेश में
प्रदेश कई देश में
देश कई पृथ्वी पर
शब्दार्थ –
कमरा – घर का वह भाग जहाँ लोग रहते व् काम करते हैं, चारों ओर से दीवारों से घिरी छायादार बड़ी कोठरी, कक्ष
मुहल्ला – शहर या कस्बे का एक भाग
नगर – शहर, कस्बे से बड़ी बस्ती, (सिटी)
प्रदेश – किसी देश का वह बड़ा भाग जो भाषा, रीति आदि की दृष्टि से उसी देश के अन्य भागों से भिन्न हो या राज्य, (स्टेट)
देश – एक क्षेत्र जिसके अपने शासन और सीमाएं होती हैं
पृथ्वी – हमारा ग्रह, जिस पर हम रहते हैं
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि दो व्यक्ति एक कमरे में रहते हैं, और वे आकार में उस कमरे से छोटे हैं। वह चारों ओर से दीवारों से घिरा छायादार कक्ष एक घर का हिस्सा मात्र है, वह घर मोहल्ले अर्थात कस्बे का एक भाग है, मोहल्ला नगर अर्थात शहर में है, नगर प्रदेश अर्थात राज्य में है, प्रदेश देश में है और कई देश मिलकर एक पृथ्वी पर स्थित हैं। उपरोक्त पंक्तियों से पता चलता है कि मनुष्य इस विशाल दुनिया का बस एक बहुत छोटा सा हिस्सा मात्र है।
2 –
अनगिन नक्षत्रों में
पृथ्वी एक छोटी
करोड़ों में एक ही
सबको समेटे है
परिधि नभ गंगा की
लाखों ब्रह्मांडों में
अपना एक ब्रह्मांड
हर ब्रह्मांड में
कितनी ही पृथ्वियाँ
कितनी ही भूमियाँ
कितनी ही सृष्टियाँ”
यह है अनुपात
शब्दार्थ –
अनगिन – जिनकी गिनती न की जा सके
नक्षत्र – आकाश में चमकने वाले तारे या तारामंडल
करोड़ – सौ लाख की संख्या
समेटना – इकट्ठा करना, बटोरना
परिधि – बाहरी सीमा, गोल घेरा, वृत्त की रेखा
नभ – आकाश, गगन, अंबर
गंगा – भारत की प्रसिद्ध नदी, कविता में इसका उपयोग विशालता और सीमा के अर्थ में हुआ है
लाख – हजार का सौ गुणा
ब्रह्मांड – जिसमें कई आकाशगंगाएँ और ग्रह शामिल हैं या सम्पूर्ण सृष्टि
सृष्टि – जगत, विश्व, संसार
अनुपात – कोई चीज़ दूसरी चीज़ के साथ तुलना या माप का संबंध
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि बताते हैं कि आकाश में चमकने वाले अनगिनत तारों और ग्रहों में हमारी पृथ्वी बहुत छोटी सी है, परन्तु उन करोड़ों तारों और ग्रहों में केवल पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जो सभी प्राणियों को अपने अंदर समेटे हुए है। यह पृथ्वी अंतरिक्ष में स्थित आकाशगंगा (नभ गंगा) के गोल घेरे का हिस्सा है, जिसमें अनगिनत तारे व् ग्रह हैं। इसके अलावा, अंतरिक्ष में लाखों ब्रह्मांड हैं, और हर ब्रह्मांड की अपनी कई पृथ्वियाँ, भूमियाँ और सृष्टियाँ हैं। यह “अनुपात” है, जो दिखाता है कि मनुष्य और उसकी पृथ्वी, इस ब्रह्मांड की विशालता के समक्ष कितने छोटे हैं।
3 –
आदमी का विराट से
इस पर भी आदमी
ईर्ष्या, अहं, स्वार्थ, घृणा, अविश्वास
संख्यातीत शंख सी दीवारें उठाता है
अपने को दूजे का स्वामी बताता है
देशों की कौन कहे
एक कमरे में
दो दुनिया रचाता है
शब्दार्थ –
विराट – बहुत बड़ा या विशाल
ईर्ष्या – द्वेष, दूसरों की उपलब्धियों या खुशियों से जलन
अहं – अहंकार, गर्व, घमंड, अकड़
स्वार्थ – वह सोच जो केवल अपने हित के लिए हो
घृणा – नफरत या घिन
अविश्वास – भरोसे का अभाव, शंका, संदेह
संख्यातीत – बहुत, अनगिनत, असंख्य
शंख – समुद्र में उत्पन्न एक जंतु, (कविता में) एक प्रकार का समुद्री शंख जो दीवार के रूप में इस्तेमाल किया गया है
दूजे – दूसरा
रचाता है – बनाता है, निर्मित करता है
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि यह ब्रह्मांड मनुष्यों से बहुत विशाल है। इतने विशाल ब्रह्मांड में छोटा-सा होने के बावजूद भी मनुष्य के भीतर दूसरों की उपलब्धियों या खुशियों से जलन, अहंकार, स्वार्थ, नफरत और अविश्वास या संदेह भरे हुए हैं। वह अपने चारों ओर परत-दर-परत इस तरह दीवारें खड़ी करता जाता है, मानो वह अपने आप को दूसरों से अलग और बड़ा मानता है। वह खुद को दूसरों का मालिक समझता है। देशों के बीच तो दूरी सभी समझते ही है, पर एक छोटे से कमरे में रहने वाले दो मनुष्य भी अपनी-अपनी अलग दुनिया बना लेते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य अपने आप को दूसरे से अलग और बड़ा समझता है, जिस वजह से एक कमरे में रहने वाले दो व्यक्ति भी मिलझुल कर नहीं रह पाते।
Conclusion
“आदमी का अनुपात” कविता के माध्यम से कवि मनुष्य को समझाना चाहता है कि ब्रह्मांड के विशाल आकार के मुकाबले वह बहुत छोटा है, लेकिन फिर भी वह अपने अंदर ईर्ष्या, घमंड, स्वार्थ, नफरत और अविश्वास भर कर जीता है। इतना छोटा होने के बावजूद भी वह दूसरों पर शासन करने की इच्छा रखता है। कवि हमें समझाना चाहते हैं कि जब पूरी पृथ्वी और ब्रह्मांड इतने बड़े होने पर भी एक दूसरे से द्वेष नहीं रखते, तो हमें भी आपस में लड़ने के बजाय मिल-जुलकर रहना चाहिए। कक्षा 8 हिंदी की मल्हार पुस्तक के पाठ 9 – आदमी का अनुपात की इस पोस्ट में सार, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। छात्र इसकी मदद से पाठ को तैयार करके परीक्षा में पूर्ण अंक प्राप्त कर सकते हैं।