मत बाँधो पाठ सार
CBSE Class 8 Hindi Chapter 7 “Mat Bandho”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book
मत बाँधो सार – Here is the CBSE Class 8 Hindi Malhar Chapter 7 Mat Bandho with detailed explanation of the lesson ‘Mat Bandho’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 8 हिंदी मल्हार के पाठ 7 मत बाँधो पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 8 मत बाँधो पाठ के बारे में जानते हैं।
Mat Bandho (मत बाँधो)
महादेवी वर्मा
‘मत बाँधो’ कविता महादेवी वर्मा द्वारा रचित एक अद्धभुत कविता है। इस कविता में कवियत्री ने सपनों की स्वतंत्रता को आवश्यक बताया है और अनुरोध किया है कि कोई भी सपनों को बाधित न करे। कवियत्री स्पष्ट करती है कि सपने स्वतंत्र होकर ऊँचाइयों तक जाते हैं। लेकिन अगर सपनों को बाधित किया जाए तो उनके पूरे होने की संभावनाएँ खत्म हो जाती हैं। स्वतंत्रता ही सपनों को साकार करने का एक मात्र सहारा है। जब सपनों को स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है तो वे अधिक ऊँचाइयों तक पहुँचते हैं या सफलता को प्राप्त करते हैं। कवियत्री समाज के सभी लोगों से अनुरोध करती है कि सपनों को ऊँचाइयों तक जाने से मत रोको। उन्हें धरती से बाँधकर मत रखो। क्योंकि सपनों को साकार करने के लिए सपनों को स्वतंत्र छोड़ना आवश्यक है।
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मत बाँधो पाठ सार Mat Bandho Summary
‘मत बाँधो’ कविता महादेवी वर्मा द्वारा रचित एक अद्धभुत कविता है। इस कविता में कवियत्री ने सपनों की स्वतंत्रता को आवश्यक बताया है और अनुरोध किया है कि कोई भी सपनों को बाधित न करे। कवियत्री समाज के सभी लोगों से प्रार्थना करती है कि किसी भी बालक या युवा के सपनों के पंखों को मत काटो। उनके सपनों को बाधित मत करो। क्योंकि जिस प्रकार जब किसी पक्षी के पंख काट दिए जाएँ तो वह उड़ नहीं सकता, उसी प्रकार यदि सपनों की उड़ान रोक दी जाए या सपनों को बाधित किया जाए, तो उसकी कल्पनाशीलता और संभावनाएँ समाप्त हो जाएँगी। कवियत्री सुगंध और बीज का उदाहरण देते हुए स्पष्ट करती है की सपने स्वतंत्र होकर ऊँचाइयों तक जाते हैं। लेकिन अगर सपनों को बाधित किया जाए तो उनके पूरे होने की संभावनाएँ खत्म हो जाती हैं। सपनों में आग और घूएँ दोनों की विशेषता होती है अर्थात सपना मनुष्य के मन में विचार की तरह जन्म लेता है और फिर कल्पनाओं की उड़ान भरता हुआ आँखों में सच्चाई बनकर उभरता है। कवियत्री सभी से अनुरोध करती है कि सपनों के उठने (आरोहण) अर्थात उत्पन्न होने और उनके व्यवहार में वापस आने (अवरोहण) अर्थात उसके साकार होने के मार्ग में बाधा न डालें, क्योंकि स्वतंत्रता ही सपनों को साकार करने का एक मात्र सहारा है। जब सपनों को स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है तो वे अधिक ऊँचाइयों तक पहुँचते हैं या सफलता को प्राप्त करते हैं। ऊँचाइयों पर पहुँच कर वे सफल लोगों से सुंदरता व प्रेरणा लेकर ही लौटते हैं। सफल और समृद्ध लोगों से प्रेरणा ले कर अपने सपनों को साकार करके व्यक्ति रचनात्मक और स्वतंत्र विचारों से समाज को सुंदर, समृद्ध और शांतिपूर्ण बना सकता है। कवियत्री समाज के सभी लोगों से अनुरोध करती है कि सपनों को ऊँचाइयों तक जाने से मत रोको। उन्हें धरती से बाँधकर मत रखो। सपनों के पंख मत काटो और सपनों की संभावनाओं को मत बांधों। क्योंकि सपनों को साकार करने के लिए सपनों को स्वतंत्र छोड़ना आवश्यक है।
मत बाँधो पाठ व्याख्या Mat Bandho Explanation
1 –
इन सपनों के पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो!
सौरभ उड़ जाता है नभ में
फिर वह लौट कहाँ आता है?
बीज धूलि में गिर जाता जो
वह नभ में कब उड़ पाता है?
शब्दार्थ –
गति मत बाँधो – बाधित न करो
सौरभ – सुगंध
नभ – आकाश
धूलि – धूल, धरती
व्याख्या – उपरोक्त पद्यांश में कवियत्री समाज के सभी लोगों से प्रार्थना करते हुए कहती है कि किसी भी बालक या युवा के सपनों के पंखों को मत काटो। उनके सपनो को बाधित मत करो। क्योंकि जिस प्रकार जब किसी पक्षी के पंख काट दिए जाएँ तो वह उड़ नहीं सकता, उसी प्रकार यदि सपनों की उड़ान रोक दी जाए या सपनों को बाधित किया जाए, तो उसकी कल्पनाशीलता और संभावनाएँ समाप्त हो जाएँगी। कवियत्री उदाहरण देते हुए कहती हैं कि जब सौरभ यानी सुगंध आसमान में उड़ जाती है, तो वह वापस नहीं लौट पाती। यहाँ सुगंध का आशय समय से लिया गया है। अर्थात जब समय बीत जाता है, तो वह बिता हुआ समय कभी लौट कर नहीं आता। उसी प्रकार उड़ता हुआ बीज यदि धूल में गिर जाता है तो वह फिर से आकाश में नहीं उड़ पाता। यहाँ बीज का अभिप्राय सपनों से है। अर्थात जैसे सपने स्वतंत्र होकर ऊँचाइयों तक जाते हैं। लेकिन अगर सपनों को बाधित किया जाए तो उनके पूरे होने की संभावनाएँ खत्म हो जाती हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि यदि सपनों को स्वतंत्रता न दी जाए तो वे कभी भी अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकते।
2 –
अग्नि सदा धरती पर जलती
धूम गगन में मँडराता है!
सपनों में दोनों ही गति हैं
उड़ कर आँखों में आता है!
इसका आरोहण मत रोको
इसका अवरोहण मत बाँधो !
शब्दार्थ –
अग्नि – आग
सदा – हमेशा
धूम – धूआँ
गगन – आकाश
मँडराता – घूमता
गति – अवस्था
आरोहण – चढ़ना, ऊपर को जाना
अवरोहण – उतरने की क्रिया, पतन, नीचे की ओर आना
व्याख्या – कवियत्री उदाहरण देते हुए कहती हैं कि आग हमेशा धरती पर ही जलती है और उससे उत्पन्न होने वाला धूआँ आकाश में घूमता रहता है। सपनों में इन दोनों की विशेषता होती है यानी ऊपर उठने (आरोहण) की और नीचे आने (अवरोहण) की। कहने का आशय यह है कि सपना मनुष्य के मन में विचार की तरह जन्म लेता है और फिर कल्पनाओं की उड़ान भरता हुआ आँखों में सच्चाई बनकर उभरता है। कवियत्री सभी से अनुरोध करती है कि सपनों के उठने (आरोहण) अर्थात उत्पन्न होने और उनके व्यवहार में वापस आने (अवरोहण) अर्थात उसके साकार होने के मार्ग में बाधा न डालें, क्योंकि स्वतंत्रता ही सपनों को साकार करने का एक मात्र सहारा है।
3 –
मुक्त गगन में विचरण कर यह
तारों में फिर मिल जायेगा,
मेघों से रंग औ’ किरणों से
दीप्ति लिए भू पर आयेगा।
स्वर्ग बनाने का फिर कोई शिल्प
भूमि को सिखलायेगा !
शब्दार्थ –
मुक्त – आजाद
गगन – आकाश
विचरण – घूमना
मेघों – बादलों
औ’ – और
दीप्ति – तेज, आभा
भू – धरती
शिल्प – कला
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवियत्री सपनों के बारे में बताती हुई कहती है कि सपने, जब स्वतंत्र होते हैं, तो वे तारों तक पहुँच जाते हैं अर्थात जब सपनों को स्वतंत्र छोड़ दिया जाता है तो वे अधिक ऊँचाइयों तक पहुँचते हैं या सफलता को प्राप्त करते हैं। वे बादलों से रंग और किरणों से तेज लेकर ही धरती पर उतारते हैं अर्थात ऊँचाइयों पर पहुँच कर वे सफल लोगों से सुंदरता व प्रेरणा लेकर ही लौटते हैं। स्वतन्त्र सपने धरती पर उतरकर धरती को स्वर्ग मनाने की कला सिखाएँगे। अर्थात सफल और समृद्ध लोगों से प्रेरणा ले कर अपने सपनों को साकार करके व्यक्ति रचनात्मक और स्वतंत्र विचारों से समाज को सुंदर, समृद्ध और शांतिपूर्ण बना सकता है।
4 –
नभ तक जाने से मत रोको
धरती से इसको मत बाँधो !
इन सपनों के पंख न काटो
इन सपनों की गति मत बाँधो !
शब्दार्थ –
नभ – आकाश
गति मत बाँधो – बाधित न करो
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवियत्री समाज के सभी लोगों से अनुरोध करती है कि सपनों को ऊँचाइयों तक जाने से मत रोको। उन्हें धरती से बाँधकर मत रखो। सपनों के पंख मत काटो और सपनों की संभावनाओं को मत बांधों। क्योंकि किसी पक्षी के पंख काट दिए जाएँ तो वह उड़ नहीं सकता, वैसे ही अगर हम किसी के सपनों को बाधित करें तो उसकी कल्पनाशीलता और संभावनाएँ समाप्त हो जाएँगी। कहने का आशय यह है कि सपनों को साकार करने के लिए सपनों को स्वतंत्र छोड़ना आवश्यक है।
Conclusion
‘मत बाँधो’ कविता महादेवी वर्मा द्वारा रचित एक अद्धभुत कविता है। इस कविता में कवियत्री ने सपनों की स्वतंत्रता को आवश्यक बताया है और अनुरोध किया है कि कोई भी सपनों को बाधित न करे। कवियत्री स्पष्ट करती है कि सपने स्वतंत्र होकर ऊँचाइयों तक जाते हैं। लेकिन अगर सपनों को बाधित किया जाए तो उनके पूरे होने की संभावनाएँ खत्म हो जाती हैं। स्वतंत्रता ही सपनों को साकार करने का एक मात्र सहारा है। कक्षा 8 हिंदी की मल्हार पुस्तक के पाठ 7 – मत बाँधो की इस पोस्ट में सार, व्याख्या और शब्दार्थ दिए गए हैं। छात्र इसकी मदद से पाठ को तैयार करके परीक्षा में पूर्ण अंक प्राप्त कर सकते हैं।