हिंदी जन की बोली पाठ सार
JKBOSE Class 10 Hindi Chapter 13 “Hindi Jan Ki Boli”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Bhaskar Bhag 2 Book
हिंदी जन की बोली सार – Here is the JKBOSE Class 10 Hindi Bhaskar Bhag 2 Book Chapter 13 Hindi Jan Ki Boli Summary with detailed explanation of the lesson “Hindi Jan Ki Boli” along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए जम्मू और कश्मीर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड कक्षा 10 हिंदी भास्कर भाग 2 के पाठ 13 हिंदी जन की बोली पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 हिंदी जन की बोली पाठ के बारे में जानते हैं।
Hindi Jan Ki Boli (हिंदी जन की बोली )
BY गिरिजाकुमार माथुर
(हिंदी– भाषा भारत के जन–जन की भाषा है । यह यहाँ की सभी भाषाओं को अपनी सगी बहन मानती है। इसने तत्सम तद्भव, देशी, विदेशी शब्दों को अपने में संजो कर रखा है यह समाज में व्याप्त ऊँच–नीच के भेद–भाव को समाप्त करती है।)
“हिंदी जन की बोली” कविता सुप्रसिद्ध कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित है, जो पाठ्यपुस्तक ‘भास्कर भाग 2’ में संकलित है। यह कविता हिंदी भाषा की जनप्रियता और राष्ट्रीय एकता में उसके योगदान को रेखांकित करती है। कवि ने हिंदी को मात्र एक भाषा नहीं, बल्कि भारत की आत्मा, संवेदनाओं की डोर, और सांस्कृतिक सेतु के रूप में प्रस्तुत किया है।
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हिंदी जन की बोली- कविता सार Hindi Jan Ki Boli Summary
गिरिजाकुमार माथुर की कविता “हिंदी जन की बोली” में हिंदी भाषा की सुंदरता को बहुत ही सरल, भावनात्मक और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कवि बताते हैं कि हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं है, यह भारत की आत्मा, भारतवासियों की जुबान, और दिलों को जोड़ने वाली डोर है।
हिंदी वह भाषा है जो देश की सभी भाषाओं को अपनी सगी बहन मानती है न किसी से द्वेष करती है, न किसी को छोटा या पराया समझती है। वह चाहती है कि सभी बोलियाँ फलें-फूलें, और आपस में प्रेम और समझ बढ़े। हिंदी का सपना है कि देश में एकता हो, भाईचारा हो और कोई किसी को नीचा न समझे।
कवि बताते हैं कि हिंदी तत्सम (संस्कृत के शुद्ध शब्द), तद्भव (संस्कृत शब्दों का बदला हुआ रूप), देशी (लोक से आए शब्द) और यहाँ तक कि विदेशी (अंग्रेज़ी, फारसी, अरबी आदि) शब्दों को भी खुले मन से अपनाती है। वह जैसी बोली जाती है, वैसी ही मधुर और अपनापन लिए होती है, चाहे वह बंबई की “खाली-पीली” हो या बंगाल की “भालो-बाशी”, हर जगह की मिट्टी में वह घुल-मिल जाती है।
कविता यह भी कहती है कि हिंदी सिर्फ पढ़ने-पढ़ाने की भाषा नहीं, बल्कि वह समाज को बदलने वाली ताकत है। वह ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, पढ़े हुए अनपढ़ों के बीच भेदभाव नहीं करती, बल्कि सबको एक साथ जोड़ने का काम करती है। यह भाषा गंगा और कावेरी जैसी नदियों को एक धारा में मिला देती है, वह पूरब और पश्चिम को कमल की पंखुड़ियों की तरह एक केंद्र से जोड़ती है।
हिंदी का रूप हर प्रदेश में अलग हो सकता है, लेकिन उसकी भावना एक है। प्रेम, अपनापन, समानता और एकता की भावना है। यही बात इस कविता के माध्यम से कवि हमें समझाना चाहते हैं कि हिंदी केवल भाषा नहीं, हमारी संस्कृति, हमारी पहचान और हमारे मन की आवाज़ है।
हिंदी जन की बोली पाठ व्याख्या Hindi Jan Ki Boli Explanation
1
एक डोर में सबको जो है बाँधती-
वह हिंदी है
हर भाषा को सगी बहन जो मानती
वह हिंदी है
भरी-पुरी हों सभी बोलियाँ
यही कामना हिंदी है
गहरी हो पहचान आपसी
यही साधना हिंदी है
शब्दार्थ-
सगी – बहुत करीबी
कामना – इच्छा, अभिलाषा
साधना – तपस्या
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्कर’ भाग 2 में उद्धृत कविता ‘हिंदी जन की बोली’ से ली गयीं हैं। इस कविता के रचयिता ‘गिरिजाकुमार माथुर’ हैं।
संदर्भ– प्रस्तुत पँक्तियों में हिंदी भाषा की महत्ता, उसकी समरसता, और उसके समाज को एक सूत्र में बाँधने वाले गुणों का वर्णन किया गया है।
व्याख्या- कवि कहते हैं कि हिंदी वह भाषा है जो पूरे देश के लोगों को एक डोर में बाँधने का कार्य करती है। यह भाषा भारत की सभी भाषाओं को अपनी सगी बहन मानती है, अर्थात् किसी भी भाषा को तुच्छ नहीं समझती। हिंदी की कामना है कि सभी बोलियाँ समृद्ध और फलती-फूलती रहें। वह चाहती है कि समाज में आपसी पहचान और आत्मीयता की भावना गहरी हो, जिससे एकता और भाईचारे को बढ़ावा मिले। हिंदी की यही साधना है कि समाज में समता, मेल-जोल, और भाषायी सौहार्द्र बढ़ता रहे।
2
सौत विदेशी रहे न रानी
यही भावना हिंदी है
तत्सम, तद्भव, देश- विदेशी
सब रंगों को अपनाती
जैसे आप बोलना चाहें
वही मधुर, वह मनभाती
नए अर्थ के रूप धारती
हर प्रदेश की माटी पर
शब्दार्थ-
सौत – पति की दूसरी पत्नी, यहाँ प्रतीकात्मक रूप में प्रतिद्वंद्वी भाषा
तत्सम – संस्कृत से ज्यों के त्यों लिए गए शब्द (जैसे- अग्नि, जल)
तद्भव – प्राकृत या अपभ्रंश से विकसित शब्द (जैसे- आग, पानी)
देशी – स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा के शब्द
विदेशी – विदेशों से लिए गए शब्द (जैसे- स्कूल, कलम)
अपनाती – ग्रहण करती
मधुर – मीठा
मनभाती – मन को अच्छी लगने वाली, आकर्षक
रूप धारती – नया रूप लेती है
प्रदेश – राज्य, क्षेत्र
माटी – मिट्टी
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्कर’ भाग 2 में उद्धृत कविता ‘हिंदी जन की बोली’ से ली गयीं हैं। इस कविता के रचयिता ‘गिरिजाकुमार माथुर’ हैं।
सन्दर्भ- प्रस्तुत पँक्तियों में कवि ने हिंदी भाषा के स्वरूप, लोक-स्वीकृति और लचीलेपन की विशेषताओं का उल्लेख किया है।
व्याख्या– कवि कहते हैं कि हिंदी भाषा की भावना में न तो कोई सौत है और न ही वह विदेशी को रानी मानती है अर्थात् हिंदी न तो किसी अन्य भाषा से ईर्ष्या करती है, न ही किसी विदेशी भाषा को खुद से ऊँचा मानती है। यह सब भाषाओं को सम्मान देती है। हिंदी भाषा तत्सम (संस्कृतनिष्ठ), तद्भव (प्राकृत-अपभ्रंश मूल), देशी (स्थानीय), और विदेशी (अरबी, फारसी, अंग्रेज़ी आदि) शब्दों को सहजता से अपनाती है।
हिंदी जैसी आप बोलना चाहें, वैसी ही मधुर और प्रिय लगती है, चाहे वह शुद्ध साहित्यिक हो या बोलचाल की। यह भाषा विभिन्न प्रदेशों की मिट्टी में ढलकर नए अर्थ, नए रूप और नई शैली ग्रहण कर लेती है।
3
“खाली-पीली-बोम-मारती”
बंबई की चौपाटी पर
चौरंघी से चली नवेली
प्रीति पियासी हिंदी है
बहुत-बहुत तुम हमको लगती
“भालो – बाशी” हिंदी है
उच्च वर्ग की प्रिय अंग्रेज़ी
हिंदी जन की बोली है
शब्दार्थ-
खाली-पीली-बोम-मारती – बिना किसी आधार के बढ़ा चढ़ा कर बोलना
बंबई – मुंबई शहर का पुराना नाम
चौपाटी – मुंबई का प्रसिद्ध समुद्र तट
चौरंघी – कोलकाता का प्रसिद्ध क्षेत्र
नवेली – नई
प्रीति पियासी – प्रेम की प्यासी
भालो-बाशी – अच्छी, प्यारी
जन – साधारण लोग
जन की बोली – आम जनता द्वारा बोली जाने वाली भाषा, लोकभाषा
प्रसंग– प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्कर’ भाग 2 में उद्धृत कविता ‘हिंदी जन की बोली’ से ली गयीं हैं। इस कविता के रचयिता ‘गिरिजाकुमार माथुर’ हैं।
संदर्भ- प्रस्तुत पँक्तियों में कवि यह बताना चाहते हैं कि हिंदी देश के आम लोगों की भाषा है, जिसमें हर वर्ग, क्षेत्र और संस्कृति की छाया दिखाई देती है।
व्याख्या– कवि कहते हैं कि हिंदी कोई कृत्रिम या बनावटी भाषा नहीं, बल्कि वह जीवंत भाषा है जो आम जनजीवन से जुड़ी है। “खाली-पीली-बोम-मारती” जैसी पंक्ति में बंबई (अब मुंबई) की बोलचाल और मस्ती भरी भाषा के बारे में बताया गया है, जो हिंदी को और भी रंगीन बना देती है। हिंदी बंबई की चौपाटी पर गूंजती है, तो कलकत्ता की चौरंगी लेन से होते हुए वहाँ की मिठास भी समेट लाती है।
कवि उसे “भालो-बाशी” हिंदी कहते हैं अर्थात् हिंदी को सब बहुत प्रेम करते हैं।
कवि अंत में कहते हैं कि जहाँ अंग्रेज़ी उच्च वर्ग की प्रिय भाषा बन गई है, वहीं हिंदी आज भी आम जनता की भाषा “जन की बोली” बनी हुई है, जिसमें आत्मीयता, अपनापन और लोक की सुगंध है।
4
वर्ग-भेद को खत्म करेगी
हिंदी वह हमजोली है
सागर में मिलती धाराएँ,
हिंदी सबकी संगम है
शब्द, नाद, लिपि से भी आगे
एक भरोसा अनुपम है
गंगा, कावेरी की धारा
साथ मिलाती हिंदी है
पूरब-पश्चिम
कमल-पंखुरी सेतु बनाती
हिंदी है।
शब्दार्थ-
वर्ग-भेद – समाज में ऊँच-नीच या अमीर-गरीब का अंतर
हमजोली – साथ निभाने वाली
संगम – मिलन स्थल
नाद – ध्वनि
लिपि – लेखन की शैली या अक्षरों का रूप
भरोसा – विश्वास
अनुपम – बेजोड़, बहुत अच्छा
कमल-पंखुरी सेतु – कमल की पंखुड़ियों का पुल
प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भास्कर’ भाग 2 में उद्धृत कविता ‘हिंदी जन की बोली’ से ली गयीं हैं। इस कविता के रचयिता ‘गिरिजाकुमार माथुर’ हैं।
संदर्भ- प्रस्तुत पँक्तियों में बताया गया है कि हिंदी केवल बात-चीत का माध्यम नहीं, बल्कि भारत की विविधता में एकता को सहेजने वाली शक्ति है।
व्याख्या- कवि कहते हैं कि हिंदी वह हमजोली भाषा है जो समाज में व्याप्त वर्ग-भेद यानी ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, पढ़े-ग़ैर पढ़े जैसे सामाजिक अंतर को मिटाने में सक्षम है। यह भाषा सबके बीच सेतु बनती है। जैसे नदियाँ सागर में मिलकर एक हो जाती हैं, वैसे ही भारत की अनेक भाषाएँ और बोलियाँ हिंदी में मिलकर एक सांस्कृतिक संगम बनाती हैं।
कवि आगे कहते हैं कि हिंदी केवल शब्द, नाद (ध्वनि), और लिपि तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक अद्भुत विश्वास है जो भारत की आत्मा को जोड़ता है। यह भाषा गंगा और कावेरी यानी उत्तर और दक्षिण की नदियों की तरह भौगोलिक और सांस्कृतिक दूरी को मिटाकर पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधती है।
अंत में, पूरब-पश्चिम और कमल-पंखुरी जैसे प्रतीकों से कवि यह बताते हैं कि हिंदी देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों को एक सेतु (पुल) के रूप में जोड़ती है जैसे कमल की पंखुड़ियाँ एक केंद्र से जुड़ी होती हैं, वैसे ही हिंदी विविधता को एक केंद्र बिंदु से बाँधती है।
Conclusion
इस पोस्ट में हमने ‘हिंदी जन की बोली’ कविता का साराँश, पद्यांश व्याख्या और शब्दार्थ को जाना। यह कविता कक्षा 10 हिंदी के पाठ्यक्रम में भास्कर पुस्तक के भाग 2 से ली गयी है। यह कविता कवि गिरिजाकुमार माथुर द्वारा रचित है। इस कविता में ‘हिंदी’ भाषा की उपयोगिता के साथ-साथ उसकी महत्ता का वर्णन किया गया है। यह पोस्ट विद्यार्थियों को कविता को गहराई से समझने में मदद करेगा और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने में भी सहायक सिद्ध होगा।