पानी रे पानी पाठ सार
CBSE Class 7 Hindi Chapter 4 “Pani Re Pani”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Malhar Book
पानी रे पानी सार – Here is the CBSE Class 7 Hindi Malhar Chapter 4 Pani Re Pani Summary with detailed explanation of the lesson ‘Pani Re Pani’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 7 हिंदी मल्हार के पाठ 4 पानी रे पानी पाठ सार, पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 7 पानी रे पानी पाठ के बारे में जानते हैं।
Pani Re Pani (पानी रे पानी)
लेखक: अनुपम मिश्र
‘पानी रे पानी’ पाठ में लेखक अनुपम मिश्र हमें पानी की महत्ता और उससे जुड़ी समस्याओं के बारे में सरल और प्रभावशाली ढंग से समझाते हैं। यह अध्याय केवल जल-चक्र की किताबी जानकारी तक सीमित नहीं है, बल्कि आज की ज़मीनी हकीकत से भी जुड़ा है—जहाँ कभी पानी की भारी कमी होती है, तो कभी बाढ़ के रूप में उसकी अधिकता से जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। लेखक हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि जब पानी इतना ज़रूरी है, तो हम इसके संरक्षण को लेकर इतने लापरवाह क्यों हैं। इस पाठ में पानी की समस्या, उसका कारण और समाधान—तीनों को सहज उदाहरणों और जीवन के अनुभवों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
Related:
पानी रे पानी पाठ सार Pani Re Pani Summary
यह पाठ लेखक अनुपम मिश्र द्वारा लिखित है। वे पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य करने वाले महान विचारक थे। उनकी किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’ लोगों को बहुत पसंद आई है। उन्होंने सिखाया कि पुराने तालाबों की मरम्मत और जलस्रोतों की रक्षा कैसे की जाए ताकि हम पानी की इस बड़ी समस्या से बाहर आ सकें।
यह पाठ हमें पानी की असली अहमियत और उसके उपयोग के तरीकों के बारे में बहुत आसान भाषा में समझाता है। स्कूल में हम जल-चक्र के बारे में पढ़ते हैं — कैसे सूरज की गर्मी से समुद्र का पानी भाप बनकर बादलों में बदल जाता है, फिर बारिश होती है और पानी नदियों के रास्ते वापस समुद्र में चला जाता है। यह चक्र तो किताबों में बहुत सुंदर लगता है, पर असली ज़िंदगी में पानी का यह चक्कर अब गड़बड़ हो गया है।
अब हमारे नलों में पानी हमेशा नहीं आता। कई बार पानी बहुत देर रात या सुबह-सुबह आता है। सबको नींद छोड़कर बाल्टियाँ, घड़े भरने पड़ते हैं। कई बार इसी पानी को लेकर झगड़े भी हो जाते हैं। कुछ लोग नलों में मोटर लगाकर ज़्यादा पानी खींच लेते हैं, जिससे दूसरे घरों में पानी नहीं पहुँचता। मजबूरी में सब यही करने लगते हैं और फिर समस्या और बढ़ जाती है। शहरों में तो अब पानी भी बोतलों में बिकने लगा है। दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में गर्मी में पानी की बहुत किल्लत हो जाती है और कई जगह तो हालत अकाल जैसी हो जाती है।
लेकिन जब बारिश होती है, तब सड़कों, घरों, स्कूलों में पानी भर जाता है। रेल की पटरियाँ भी डूब जाती हैं। देश के कई हिस्सों में बाढ़ आ जाती है। यानी कभी बहुत पानी और कभी बिल्कुल नहीं — ये दोनों परेशानियाँ एक ही समस्या के दो रूप हैं। अगर हम समझदारी से काम लें, तो इन दोनों मुश्किलों से बच सकते हैं।
इस पाठ में एक सुंदर उदाहरण दिया गया है गुल्लक का। जैसे हम पैसे जोड़ने के लिए गुल्लक में बचत करते हैं, वैसे ही हमें पानी की भी बचत करनी चाहिए। धरती एक बड़ी गुल्लक की तरह है। बारिश के समय जो तालाब, झीलें, कुएँ आदि हैं, वो इस गुल्लक को भरने का काम करते हैं। बारिश का पानी धीरे-धीरे ज़मीन में जाता है और हमारे लिए भूजल का खजाना बनाता है। यही पानी हम पूरे साल इस्तेमाल कर सकते हैं।
लेकिन हमने गलती की। ज़मीन के लालच में हमने तालाबों को मिटा दिया, कचरा भर दिया, वहाँ मकान, बाज़ार बना दिए। अब गर्मी में नल सूख जाते हैं और बारिश में बस्तियाँ डूब जाती हैं। इसीलिए हमें फिर से अपने जलस्रोतों की देखभाल करनी होगी — तालाबों, झीलों, नदियों की रक्षा करनी होगी। अगर हम जल-चक्र को समझकर बारिश के पानी को सँभालेंगे, भूजल को सुरक्षित रखेंगे, तो कभी भी पानी की कमी नहीं होगी। वरना हम हमेशा इस पानी के चक्कर में फँसे रहेंगे।
पानी रे पानी पाठ व्याख्या Pani Re Pani Lesson Explanation

पाठ
कहाँ से आता है हमारा पानी और फिर कहाँ चला जाता है हमारा पानी? हमने कभी इस बारे में कुछ सोचा है? सोचा तो नहीं होगा शायद, पर इस बारे में पढ़ा जरूर है। भूगोल की किताब पढ़ते समय जल-चक्र जैसी बातें हमें बताई जाती हैं। एक सुंदर-सा चित्र भी होता है, इस पाठ के साथ। सूरज, समुद्र, बादल, हवा, धरती, फिर बरसात की बूँदें और लो फिर बहती हुई एक नदी और उसके किनारे बसा तुम्हारा, हमारा घर, गाँव या शहर। चित्र के दूसरे भाग में यही नदी अपने चारों तरफ का पानी लेकर उसी समुद्र में मिलती दिखती है। चित्र में कुछ तीर भी बने रहते हैं। समुद्र से उठी भाप बादल बनकर पानी में बदलती है और फिर इन तीरों के सहारे जल की यात्रा एक तरफ से शुरू होकर समुद्र में वापिस मिल जाती है। जल-चक्र पूरा हो जाता है। यह तो हुई जल-चक्र की किताबी बात। पर अब तो हम सबके घरों में, स्कूल में, माता-पिता के कार्यालय में, कारखानों और खेतों में पानी का कुछ अजीब-सा चक्कर सामने आने लगा है। नलों में अब पूरे समय पानी नहीं आता। नल खोलो तो उससे पानी के बदले सूँ-सूँ की आवाज आने लगती है। पानी आता भी है तो बेवक्त। कभी देर रात को तो कभी बहुत सबेरे।
शब्दार्थ-
जल-चक्र – पानी के प्राकृतिक प्रवाह की प्रक्रिया जिसमें समुद्र से भाप बनकर बादल बनते हैं, फिर बारिश के रूप में धरती पर गिरते हैं, नदियों के माध्यम से वापस समुद्र में मिल जाते हैं।
भूगोल – पृथ्वी, उसका स्वरूप, जलवायु, प्राकृतिक संसाधनों आदि का अध्ययन करने वाला विषय।
भाप – पानी जब गरमी से गैस में बदल जाता है, तो उसे भाप कहते हैं।
बेवक्त – अनिश्चित समय पर।
सूँ-सूँ की आवाज़ – नल से पानी न आने पर निकलने वाली हवा की आवाज़
कार्यालय – वह स्थान जहाँ कोई व्यक्ति नौकरी या व्यवसाय करता है।
कारखाने – ऐसे स्थान जहाँ चीज़ों का उत्पादन या निर्माण होता है, जैसे फैक्ट्री।
अजीब-सा चक्कर – अनोखी, उलझनभरी स्थिति या समस्या
व्याख्या– इस अंश में लेखक ने पानी की समस्या को बड़े सरल और प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है। वह सबसे पहले पाठकों से एक बेहद ज़रूरी सवाल पूछता है कि पानी कहाँ से आता है और फिर कहाँ चला जाता है।” यह सवाल हमारे जीवन की एक ऐसी सच्चाई की ओर ध्यान खींचता है, जिस पर हम रोज़ाना निर्भर तो रहते हैं, लेकिन उसके बारे में गंभीरता से सोचते नहीं हैं।
लेखक बताता है कि हम सभी ने स्कूल में भूगोल की किताबों में जल-चक्र के बारे में पढ़ा है। उसमें एक सुंदर चित्र होता है जिसमें दिखाया गया होता है कि सूर्य समुद्र के पानी को गर्म करता है जिससे भाप बनती है, यह भाप बादलों में बदल जाती है, फिर बारिश के रूप में धरती पर गिरती है। बारिश का पानी नदियों में बहता है और ये नदियाँ अंत में फिर से समुद्र में जा मिलती हैं। इस तरह पानी एक चक्र में घूमता रहता है – यही जल-चक्र कहलाता है।
लेकिन लेखक केवल किताबी ज्ञान तक ही सीमित नहीं रहता, वह हमारे वर्तमान जीवन की सच्चाई भी सामने लाता है। आज की वास्तविकता यह है कि पानी अब हमारे घरों, स्कूलों, दफ़्तरों, कारखानों और खेतों में नियमित रूप से नहीं आता। अब नलों से पानी के बजाय केवल हवा की ‘सूँ-सूँ’ आवाज़ सुनाई देती है। और जब पानी आता भी है, तो ऐसा समय चुनता है जब या तो सब गहरी नींद में होते हैं (रात) या कोई जागा ही नहीं होता (बहुत सुबह)।
इस अंश में लेखक जल-संकट की ओर इशारा कर रहे हैं और यह बताना चाह रहे हैं कि हमने केवल जल-चक्र को पढ़ा है, उसे अपने जीवन में समझा और अपनाया नहीं है। जल का महत्व केवल भूगोल की किताबों में नहीं, हमारे दैनिक जीवन में भी है, और हमें इसकी कद्र करनी चाहिए।
पाठ
मीठी नींद छोड़कर घर भर की बालटियाँ, बर्तन और घड़े भरते फिरो । पानी को लेकर कभी-कभी, कहीं-कहीं आपस में तू-तू, मैं-मैं भी होने लगती है।
रोज-रोज के इन झगड़े- टंटों से बचने के लिए कई घरों में लोग नलों के पाइप में मोटर लगवा लेते हैं। इससे कई घरों का पानी खिंचकर एक ही घर में आ जाता है। यह तो अपने आस-पास का हक छीनने जैसा काम है, लेकिन मजबूरी मानकर इस काम को मोहल्ले में कोई एक घर कर बैठे तो फिर और कई घर यही करने लगते हैं। पानी की कमी और बढ़ जाती है। शहरों में तो अब कई चीजों की तरह पानी भी बिकने लगा है। यह कमी गाँव-शहरों में ही नहीं बल्कि हमारे प्रदेशों की राजधानियों में और दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बैंगलोर जैसे बड़े शहरों में भी लोगों को भयानक कष्ट में डाल देती है। देश के कई हिस्सों में तो अकाल जैसी हालत बन जाती है। यह तो हुई गरमी के मौसम की बात।
शब्दार्थ-
मीठी नींद – गहरी और सुखद नींद
तू-तू, मैं-मैं – आपसी झगड़ा या बहस
झगड़े-टंटों – रोजमर्रा के विवाद
मोहल्ला – बस्ती या कॉलोनी; एक ही क्षेत्र में रहने वाले लोगों का समूह
कष्ट – परेशानी, दुख, तकलीफ
अकाल – जब लंबे समय तक बारिश न हो और खेती न हो सके, तब की गंभीर स्थिति, जल और अन्न की भारी कमी।
व्याख्या- इस गद्याँश में पानी की गंभीर समस्या को उजागर किया गया है। लेखक बताता है कि गर्मी के मौसम में पानी की इतनी किल्लत हो जाती है कि लोगों को मीठी नींद छोड़कर सुबह-सवेरे उठकर बालटियाँ, बर्तन और घड़े लेकर पानी भरने के लिए दौड़ना पड़ता है। पानी के लिए आपस में झगड़े भी होने लगते हैं — कहीं तू-तू, मैं-मैं होती है तो कहीं लड़ाइयाँ तक हो जाती हैं। इन रोज़ाना के झगड़ों से बचने के लिए कुछ लोग अपने घरों में मोटर लगवाकर पाइप से ज़्यादा पानी खींच लेते हैं, जिससे आसपास के घरों को पानी नहीं मिल पाता। यह दूसरों के हक को छीनने जैसा है, पर जब एक घर ऐसा करता है तो बाकी लोग भी मजबूरी में यही करने लगते हैं, जिससे पानी की कमी और भी बढ़ जाती है। अब तो हाल यह है कि शहरों में पानी भी एक व्यापार बन गया है — पैसे देकर खरीदना पड़ता है। यह समस्या सिर्फ गाँवों या छोटे शहरों तक सीमित नहीं है, बल्कि दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और बैंगलोर, चेन्नई जैसे बड़े महानगरों तक में भी लोग पानी की भारी कमी से जूझते हैं। देश के कई हिस्सों में तो हालात सूखे जैसे बन जाते हैं। यह स्थिति विशेष रूप से गर्मियों में और भी विकराल हो जाती है।

पाठ
लेकिन बरसात के मौसम में क्या होता है? लो, सब तरफ पानी ही बहने लगता है। हमारे-तुम्हारे घर, स्कूल, सड़कों, रेल की पटरियों पर पानी भर जाता है। देश के कई भाग बाढ़ में डूब जाते हैं। यह बाढ़ न गाँवों को छोड़ती है और न मुंबई जैसे बड़े शहरों को। कुछ दिनों के लिए सब कुछ थम जाता है, सब कुछ बह जाता है।
ये हालात हमें बताते हैं कि पानी का बेहद कम हो जाना और पानी का बेहद ज्यादा हो जाना, यानी अकाल और बाढ़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि हम इन दोनों को ठीक से समझ सकें और सँभाल लें तो इन कई समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।
चलो, थोड़ी देर के लिए हम पानी के इस चक्कर को भूल जाएँ और याद करें अपनी गुल्लक को। जब भी हमें कोई पैसा देता है, हम खुश होकर, दौड़कर उसे झट से अपनी गुल्लक डाल देते हैं। एक रुपया, दो रुपया, पाँच रुपया, कभी सिक्के, तो कभी छोटे-बड़े नोट सब इसमें धीरे-धीरे जमा होते जाते हैं। फिर जब कभी हमें कुछ पैसों की जरूरत पड़ती है तो इस गुल्लक की बचत का उपयोग कर लेते हैं।
शब्दार्थ-
पटरियाँ – रेल की पटरियाँ; वे लोहे की लाइनें जिन पर ट्रेन चलती है।
बाढ़ – अत्यधिक वर्षा के कारण जब जल स्तर का बढ़ना
थम जाता है – रुक जाता है
एक ही सिक्के के दो पहलू – एक ही समस्या के दो उल्टे रूप या पक्ष, यहाँ बाढ़ और अकाल की तुलना की गई है।
गुल्लक – बच्चों द्वारा पैसे जमा करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली छोटी मटकी या डिब्बी।
झट से – तुरंत
सिक्के – धातु के बने छोटे पैसे
बचत – बचाया हुआ पैसा
व्याख्या- इस अंश में लेखक बरसात के मौसम में पानी की स्थिति का वर्णन करता है। जहाँ गर्मियों में पानी की भयंकर कमी होती है, वहीं बरसात के मौसम में हर जगह पानी ही पानी हो जाता है — घरों, स्कूलों, सड़कों, रेलवे पटरियों तक में पानी भर जाता है। देश के कई हिस्सों में बाढ़ की स्थिति बन जाती है। यह बाढ़ न सिर्फ गाँवों को प्रभावित करती है बल्कि मुंबई जैसे बड़े महानगरों को भी अपनी चपेट में ले लेती है। इस वजह से जनजीवन ठप पड़ जाता है और कई बार जन-धन की हानि भी होती है।
लेखक यहाँ इस बात पर ज़ोर देता है कि पानी की यह दोनों स्थितियाँ — कमी (अकाल) और अधिकता (बाढ़) — एक ही समस्या के दो पक्ष हैं। अगर हम इसे समझें और सही तरीकों से प्रबंधन करें, तो हम कई परेशानियों से बच सकते हैं।
लेखक फिर एक सुंदर उदाहरण देता है — गुल्लक का। जैसे हम पैसों की गुल्लक में थोड़ी-थोड़ी बचत करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर उसी बचत से काम चलाते हैं, वैसे ही अगर हम पानी को भी थोड़ा-थोड़ा संजो कर रखें (जैसे वर्षा जल संचयन), तो जल संकट से निपट सकते हैं। यह उदाहरण यह बताता है कि समझदारी से और योजना बनाकर पानी को संरक्षित किया जाए तो अकाल और बाढ़ जैसी समस्याएँ कम हो सकती हैं।
पाठ
हमारी यह धरती भी इसी तरह की खूब बड़ी गुल्लक है। मिट्टी की बनी इस विशाल गुल्लक में प्रकृति वर्षा के मौसम में खूब पानी बरसाती है। तब रुपयों से में भी कई गुना कीमती इस वर्षा को हमें इस बड़ी गुल्लक जमा कर लेना चाहिए। हमारे गाँव में, शहर में जो छोटे-बड़े तालाब, झील आदि हैं, वे धरती की गुल्लक में पानी भरने का काम करते हैं। इनमें जमा पानी जमीन के नीचे छिपे जल के भंडार में धीरे-धीरे रिसकर, छनकर जा मिलता है। इससे हमारा भूजल भंडार समृद्ध होता जाता है। पानी का यह खजाना हमें दिखता नहीं, लेकिन इसी खजाने से हम बरसात का मौसम बीत जाने के बाद पूरे साल भर तक अपने उपयोग के लिए घर में, खेतों में, पाठशाला में पानी निकाल सकते हैं। लेकिन एक ऐसा भी आया जब हम लोग इस छिपे खजाने का महत्व भूल गए और जमीन के लालच में हमने अपने तालाबों को कचरे से पाटकर, भरकर समतल बना दिया। देखते-ही-देखते इन पर तो कहीं मकान, कहीं बाजार, स्टेडियम और सिनेमा आदि खड़े हो गए।

शब्दार्थ-
विशाल – बहुत बड़ी
प्रकृति – प्राकृतिक शक्ति या वातावरण, यहाँ बारिश करने वाली प्राकृतिक व्यवस्था।
भंडार – संग्रह, भरी हुई मात्रा
रिसकर – धीरे-धीरे टपककर
छनकर – छानकर, फ़िल्टर होकर
भूजल – ज़मीन के अंदर का जल, जिसे कुंए या बोरवेल से निकाला जाता है
समृद्ध – संपन्न, भरपूर
खजाना – अमूल्य संग्रह
पाठशाला – स्कूल, विद्यालय
महत्व – महत्ता, मूल्य, उपयोगिता
लालच – अधिक पाने की इच्छा, स्वार्थ
कचरे से पाटकर – कूड़ा-कचरा डालकर भर देना
समतल – सपाट
व्याख्या- इस अंश में लेखक धरती को एक विशाल गुल्लक की संज्ञा देता है और इसे एक सुंदर रूपक के माध्यम से समझाता है। जैसे हम अपनी गुल्लक में पैसे जमा करते हैं, वैसे ही धरती की यह ‘मिट्टी की बनी गुल्लक’ वर्षा के मौसम में पानी जमा करती है। वर्षा जल को रुपए से कहीं अधिक कीमती बताते हुए लेखक हमें यह सीख देता है कि हमें इस बहुमूल्य पानी को बचाकर रखना चाहिए।
गाँवों और शहरों में मौजूद तालाब, झीलें और अन्य जलस्रोत इस धरती की गुल्लक में पानी भरने का काम करते हैं। इन जलस्रोतों में जो पानी जमा होता है, वह धीरे-धीरे जमीन में रिसकर भूजल भंडार को समृद्ध करता है। यह भूजल हमें सीधे दिखाई नहीं देता, लेकिन बरसात के बाद पूरा साल हम इसी छिपे हुए जलस्रोत से घर, खेत और स्कूल जैसी जगहों पर पानी प्राप्त करते हैं।
लेकिन समय के साथ हम इस प्राकृतिक खजाने का महत्व भूल गए। लोगों ने लालचवश जमीन के लिए तालाबों और जलस्रोतों को भरकर वहाँ मकान, बाज़ार, स्टेडियम और सिनेमाघर बना दिए। तालाबों को कचरा डालकर पाट दिया गया। नतीजा यह हुआ कि जल संचयन की प्राकृतिक व्यवस्था नष्ट हो गई, जिससे भूजल स्तर गिरता गया और पानी की समस्या गंभीर होती चली गई।
पाठ
इस बड़ी गलती की सजा अब हम सबको मिल रही है। गर्मी के दिनों में हमारे नल सूख जाते हैं और बरसात के दिनों में हमारी बस्तियाँ डूबने लगती हैं। इसीलिए यदि हमें अकाल और बाढ़ से बचना है तो अपने आस-पास के जलस्रोतों की, तालाबों की और नदियों आदि की रखवाली अच्छे ढंग से करनी पड़ेगी।
जल-चक्र हम ठीक से समझें, जब बरसात हो तो उसे थाम लें, अपना भूजल भंडार सुरक्षित रखें, अपनी गुल्लक भरते रहें, तभी हमें जरूरत के समय पानी की कोई कमी नहीं आएगी। यदि हमने जल-चक्र का ठीक उपयोग नहीं किया तो हम पानी के चक्कर में फँसते चले जाएँगे।

शब्दार्थ-
बस्तियाँ – गाँव, मोहल्ले
जलस्रोत – पानी के स्रोत, जैसे तालाब, नदी, झरना आदि।
रखवाली – संरक्षण, सुरक्षा करना
थाम लेना – रोक लेना
भूजल भंडार – जमीन के नीचे जमा पानी का संग्रह
व्याख्या- इस अंश में लेखक बताता है कि प्रकृति के साथ की गई हमारी बड़ी गलती — अर्थात् जलस्रोतों को नष्ट करना और वर्षा जल का संचयन न करना — अब हमें भारी सजा के रूप में भुगतनी पड़ रही है। गर्मी के दिनों में हमारे घरों के नल सूख जाते हैं, और जब बरसात आती है तो हमारी बस्तियाँ पानी में डूब जाती हैं। यह सब हमारे द्वारा जल-चक्र की उपेक्षा और जल-संरक्षण में लापरवाही का परिणाम है।
लेखक स्पष्ट करता है कि अगर हमें अकाल और बाढ़ जैसी आपदाओं से बचना है, तो हमें अपने आस-पास के जलस्रोतों — जैसे तालाब, नदियाँ और झीलें — की सही देखभाल करनी होगी। हमें वर्षा के समय जल को रोकना और उसे धरती की ‘गुल्लक’ यानी भूजल भंडार में जमा करना सीखना होगा। यदि हम इस जल-चक्र को समझकर सही उपयोग करेंगे, तो हमें साल भर पानी की कोई कमी नहीं होगी।
लेकिन अगर हमने इसे नजरअंदाज किया और पानी को बचाने की ओर ध्यान नहीं दिया, तो हम पानी की कमी और अधिकता दोनों की चपेट में आकर हमेशा के लिए परेशानी में फँसते रहेंगे।
Conclusion
दिए गए पोस्ट में हमने ‘पानी रे पानी’ नामक पाठ के सारांश, पाठ व्याख्या और शब्दार्थ को जाना। यह पाठ कक्षा 7 हिंदी के पाठ्यक्रम में मल्हार पुस्तक से लिया गया है। यह पाठ पर्यावरणविद अनुपम मिश्र द्वारा लिखा गया है, जिसमें जल-चक्र, पानी की कमी, बाढ़, भूजल संरक्षण और वर्षा जल संचयन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इस पाठ के माध्यम से हमें जल के महत्त्व और उसके संरक्षण की आवश्यकता का बोध होता है। यह पोस्ट विद्यार्थियों को पाठ को गहराई से समझने में मदद करेगा और परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देने में भी सहायक सिद्ध होगा।