CBSE Class 7 Hindi Chapter 4 Pani Re Pani (पानी रे पानी) Question Answers (Important) from Malhar Book
Class 7 Hindi Pani Re Pani Question Answers and NCERT Solutions– Looking for Pani Re Pani question answers for CBSE Class 7 Hindi Malhar Book Chapter 4? Look no further! Our comprehensive compilation of important question answers will help you brush up on your subject knowledge.
सीबीएसई कक्षा 7 हिंदी मल्हार के पाठ 4 पानी रे पानी प्रश्न उत्तर खोज रहे हैं? आगे कोई तलाश नहीं करें! महत्वपूर्ण प्रश्नों का हमारा व्यापक संकलन आपको अपने विषय ज्ञान को बढ़ाने में मदद करेगा। कक्षा 7 के हिंदी प्रश्न उत्तर का अभ्यास करने से परीक्षा में आपके प्रदर्शन में काफी सुधार हो सकता है। हमारे समाधान इस बारे में एक स्पष्ट विचार प्रदान करते हैं कि उत्तरों को प्रभावी ढंग से कैसे लिखा जाए। हमारे पानी रे पानी प्रश्न उत्तरों को अभी एक्सप्लोर करें उच्च अंक प्राप्त करने के अवसरों में सुधार करें।
The questions listed below are based on the latest CBSE exam pattern, wherein we have given NCERT solutions to the chapter’s extract-based questions, multiple choice questions, short answer and long answer questions.
Also, practicing with different kinds of questions can help students learn new ways to solve problems that they may not have seen before. This can ultimately lead to a deeper understanding of the subject matter and better performance on exams.
- Pani Re Pani NCERT Solutions
- Pani Re Pani Extract Based Questions
- Pani Re Pani Multiple Choice Questions
- Pani Re Pani Extra Question Answers
Related:
Pani Re Pani Chapter 4 NCERT Solutions
पाठ से
आइए, अब हम इस पाठ को थोड़ा और निकटता से समझते हैं। आगे दी गई गतिविधियाँ इस कार्य में आपकी सहायता करेंगी।
मेरी समझ से
(क) निम्नलिखित प्रश्नों का सही उत्तर कौन–सा है? उसके सामने तारा ( ) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
(1) हमारा भूजल भंडार निम्नलिखित में से किससे समृद्ध होता है?
- नल सूख जाने से।
- पानी बरसने से।
- तालाब और झीलों से।
- बाढ़ आने से।
उत्तर- तालाब और झीलों से। ★
(2) निम्नलिखित में से कौन–सी बात जल–चक्र से संबंधित है?
- वर्षा जल का संग्रह करना ।
- समुद्र से उठी भाप का बादल बनकर बरसना।
- नदियों का समुद्र में जाकर मिलना।
- बरसात में चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देना।
उत्तर– समुद्र से उठी भाप का बादल बनकर बरसना। ★
(3) “इस बड़ी गलती की सजा अब हम सबको मिल रही है।” यहाँ किस गलती की ओर संकेत किया गया है?
- जल–चक्र की अवधारणा को न समझना।
- आवश्यकता से अधिक पानी का उपयोग करना ।
- तालाबों को कचरे से पाटकर समाप्त करना।
- भूजल भंडारण के विषय में विचार न करना।

उत्तर- तालाबों को कचरे से पाटकर समाप्त करना। ★
(ख) अब अपने मित्रों के साथ संवाद कीजिए और कारण बताइए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुनें?
उत्तर- 1. पाठ में बताया गया है कि जब बारिश होती है, तो तालाब और झीलों में पानी जमा होता है, जो धीरे-धीरे जमीन में रिसकर भूजल भंडार को समृद्ध करता है। इसलिए तालाब और झीलें इसका मुख्य स्रोत हैं, न कि नल सूखना या बाढ़ आना।
2. जल-चक्र की प्रक्रिया में समुद्र से भाप उठती है, वह बादलों में बदलती है और फिर बारिश बनकर धरती पर गिरती है। यही बात पाठ में जल-चक्र के चित्र के साथ समझाई गई है। यह प्रक्रिया जल-चक्र का मूल हिस्सा है।
3. क्योंकि पाठ में साफ बताया गया है कि हमने लालच में आकर तालाबों को मिटा दिया और उन पर मकान, बाजार बना दिए। इसी वजह से आज न गर्मी में पानी मिलता है, न बरसात में राहत। इसलिए यह गलती ही असली कारण है, जिसकी सजा हम सब भुगत रहे हैं।
मिलकर करें मिलान
पाठ में से कुछ शब्द समूह या संदर्भ चुनकर स्तंभ 1 में दिए गए हैं और उनके अर्थ स्तंभ 2 में दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और रेखा खींचकर सही मिलान कीजिए।
| स्तंभ 1 | स्तंभ 2 |
| 1. वर्षा जल संग्रहण | 1. जमीन के नीचे छिपा जल भंडार। |
| 2. जल संकट | 2. वर्षा के जल को प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से (मानवीय प्रयासों से) धरती में संग्रह करना। |
| 3. जल–चक्र | 3. जल की अत्यधिक कमी होना । |
| 4. भूजल | 4. समुद्र से उठी भाप का बादल बनकर पानी में बदलना और वर्षा के द्वारा समुद्र में मिल जाना। |
उत्तर-
| स्तंभ 1 | स्तंभ 2 |
| 1. वर्षा जल संग्रहण | 2. वर्षा के जल को प्राकृतिक अथवा कृत्रिम रूप से (मानवीय प्रयासों से) धरती में संग्रह करना। |
| 2. जल संकट | 3. जल की अत्यधिक कमी होना । |
| 3. जल–चक्र | 4. समुद्र से उठी भाप का बादल बनकर पानी में बदलना और वर्षा के द्वारा समुद्र में मिल जाना। |
| 4. भूजल | 1. जमीन के नीचे छिपा जल भंडार। |
पंक्तियों पर चर्चा
इस पाठ में से चुनकर कुछ पंक्तियाँ नीचे दी गई हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और अपने सहपाठियों से चर्चा कीजिए।
- “पानी आता भी है तो बेवक्त।“
- “देश के कई हिस्सों में तो अकाल जैसे हालात बन जाते है।“
- “कुछ दिनों के लिए सब कुछ थम जाता है।“
- “अकाल और बाढ़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ।“
उत्तर-
1. “पानी आता भी है तो बेवक्त।”
– अब नलों में नियमित रूप से पानी नहीं आता। कभी देर रात तो कभी सुबह-सुबह आता है, जिससे लोगों को परेशानी होती है।
चर्चा- हम सहपाठियों ने इस पंक्ति पर चर्चा करते हुए यह जाना कि पानी की अनियमित आपूर्ति से घर के काम प्रभावित होते हैं। कई बार लोग अपनी नींद छोड़कर पानी भरने को मजबूर हो जाते हैं। यह स्थिति हमारे संसाधनों की अव्यवस्थित व्यवस्था को बताती है।
3. “देश के कई हिस्सों में तो अकाल जैसे हालात बन जाते हैं।”
-देश के कई क्षेत्रों में पानी की इतनी कमी हो जाती है कि लोग जीवन की मूलभूत आवश्यकता ‘जल’ के लिए संघर्ष करने लगते हैं।
चर्चा- हमने बात की कि गर्मियों में कई गाँवों और शहरों में पानी नहीं मिलता, जिससे खेती और पीने के पानी दोनों में संकट उत्पन्न हो जाता है। यह स्थिति जल संरक्षण के प्रति हमारी लापरवाही को बताती है।
3. “कुछ दिनों के लिए सब कुछ थम जाता है।”
-बाढ़ के समय जन-जीवन रुक जाता है – सड़कें, रेलमार्ग, स्कूल आदि सब ठप हो जाते हैं।
चर्चा- हमने चर्चा की कि बाढ़ के समय कैसे हर गतिविधि रुक जाती है और लोग घरों में कैद हो जाते हैं। इससे आर्थिक, सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर बड़ी हानि होती है।
4. “अकाल और बाढ़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।”
-यह कथन बताता है कि पानी की अत्यधिक कमी (अकाल) और अत्यधिक अधिकता (बाढ़), दोनों ही समस्याएँ एक ही मूल कारण ‘जल प्रबंधन की विफलता’ से जुड़ी हैं।
चर्चा- हमने सहपाठियों से बातचीत कर यह समझा कि यदि हम वर्षा जल को सही ढंग से संग्रह करें और भूजल भंडारण करें तो न बाढ़ की समस्या होगी, न अकाल की। यह पंक्ति जल संतुलन के महत्व को उजागर करती है।

सोच–विचार के
लेख को एक बार पुन: पढ़िए और निम्नलिखित के विषय में पता लगाकर लिखिए।
(क) पाठ में धरती को एक बहुत बड़ी गुल्लक क्यों कहा गया है?
(ख) जल–चक्र की प्रक्रिया कैसे पूरी होती है?
(ग) यदि सारी नदियाँ, झीलें और तालाब सूख जाएँ तो क्या होगा?
(घ) पाठ में पानी को रुपयों से भी कई गुना मूल्यवान क्यों बताया गया है?
उत्तर-
(क) धरती को पाठ में एक बहुत बड़ी गुल्लक इसलिए कहा गया है क्योंकि जैसे हम अपनी छोटी गुल्लक में पैसे जमा करते हैं, वैसे ही धरती की मिट्टी और जलस्रोतों में वर्षा का जल संग्रहित होता है। तालाब, झीलें और अन्य जलस्रोत इस धरती की गुल्लक में जल जमा करने का कार्य करते हैं। यह जल धीरे-धीरे जमीन में रिसकर भूजल भंडार को समृद्ध करता है, जिसे हम पूरे वर्ष उपयोग में लाते हैं।
(ख) जल-चक्र की प्रक्रिया सूर्य की गर्मी से समुद्र का पानी भाप बनकर ऊपर उठने से शुरू होती है। यह भाप बादलों में परिवर्तित होती है और फिर वर्षा के रूप में धरती पर गिरती है। यह जल नदियों, झीलों और तालाबों में बहता है और अंत में फिरसे समुद्र में जाकर मिल जाता है। इस प्रकार जल की यात्रा समुद्र से शुरू होकर फिर समुद्र में समाप्त होती है, और जल-चक्र पूरा होता है।
(ग) यदि सारी नदियाँ, झीलें और तालाब सूख जाएँ तो जल का संचय और भूजल पुनः भरना असंभव हो जाएगा। इससे पीने, सिंचाई और अन्य उपयोगों के लिए पानी की भारी कमी हो जाएगी। अकाल की स्थिति उत्पन्न होगी, खेती प्रभावित होगी, और जन-जीवन संकट में पड़ जाएगा। इसके साथ ही पर्यावरणीय असंतुलन भी उत्पन्न हो सकता है।
(घ) पाठ में पानी को रुपयों से भी कई गुना मूल्यवान इसलिए बताया गया है क्योंकि पानी जीवन की मूलभूत आवश्यकता है। बिना पानी के मनुष्य, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे और संपूर्ण जीवन असंभव है। पैसे से हम चीजें खरीद सकते हैं, परंतु यदि पानी ही न हो तो पैसा भी बेकार हो जाता है। इसलिए लेखक ने पानी की महत्ता को बताने के लिए उसे धन से अधिक मूल्यवान बताया है।
शीर्षक
(क) इस पाठ का शीर्षक ‘पानी रे पानी‘ दिया गया है। पाठ का यह नाम क्यों दिया गया होगा? अपने सहपाठियों के साथ चर्चा करके लिखिए। अपने उत्तर का कारण भी लिखिए।
(ख) आप इस पाठ को क्या नाम देना चाहेंगे? इसका कारण लिखिए।
उत्तर-
(क) पाठ का नाम ‘पानी रे पानी’ इसलिए रखा गया है क्योंकि यह पाठ जल की महत्ता, उसके अभाव और संरक्षण के विषय पर केंद्रित है। लेखक ने बताया है कि कैसे हम वर्षा के जल को सहेजने में असफल रहे हैं, जिसके कारण आज जल संकट जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। यह शीर्षक पाठ में भावनात्मक अपील पैदा करता है और पाठकों का ध्यान पानी की ओर आकर्षित करता है। ‘पानी रे पानी’ एक पुकार की तरह है, जो यह बताती है कि आज हम सब पानी के लिए तरस रहे हैं।
(ख) मैं इस पाठ को नाम देना चाहूँगा – ‘जल बचाओ, जीवन बचाओ’
कारण –
यह शीर्षक पाठ के मुख्य संदेश को और स्पष्ट रूप से दर्शाता है। इसमें बताया गया है कि पानी बचाना केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि जीवन के अस्तित्व का प्रश्न है। यदि हम पानी को नहीं बचाएँगे, तो भविष्य में जीवन संकट में पड़ जाएगा। यह शीर्षक पाठ की चिंता और समाधान दोनों को एक ही वाक्य में समेटता है, जिससे पाठक के मन में पानी के संरक्षण की आवश्यकता गहराई से बैठ जाती है।
शब्दों की बात
बात पर बल देना
- “हमारी यह धरती भी इसी तरह की एक गुल्लक है।“
- “हमारी यह धरती इसी तरह की एक गुल्लक है।“
(क) इन दोनों वाक्यों को ध्यान से पढ़िए। दूसरे वाक्य में कौन–सा शब्द हटा दिया गया है? उस शब्द को हटा देने से वाक्य के अर्थ में क्या अंतर आया है, पहचान कर लिखिए।
उत्तर- दूसरे वाक्य से जो शब्द हटाया गया है, वह है ‘भी’।
पहला वाक्य है — “हमारी यह धरती भी इसी तरह की एक गुल्लक है।”
दूसरा वाक्य है — “हमारी यह धरती इसी तरह की एक गुल्लक है।”
अर्थ में अंतर:
पहले वाक्य में ‘भी’ शब्द यह बताता है कि पहले किसी अन्य वस्तु या उदाहरण को गुल्लक कहा गया है और अब धरती की तुलना भी उसी से की जा रही है। यह तुलना को स्पष्ट और प्रभावी बनाता है।
दूसरे वाक्य में ‘भी’ शब्द नहीं होने से तुलना का भाव कमज़ोर हो जाता है और बात पर विशेष बल नहीं पड़ता। अतः ‘भी’ शब्द की उपस्थिति से वाक्य में ज़्यादा प्रभाव और गहराई आती है।
(ख) पाठ में ऐसे ही कुछ और शब्द भी आए हैं जो अपनी उपस्थिति से वाक्य में विशेष प्रभाव उत्पन्न करते हैं। पाठ को फिर से पढ़िए और इस तरह के शब्दों वाले वाक्यों को चुनकर लिखिए।
उत्तर-
पाठ में कुछ ऐसे शब्द हैं जो अपनी उपस्थिति से वाक्य में विशेष प्रभाव उत्पन्न करते हैं। उदाहरण के रूप में कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं-
1. “लो, फिर बहती हुई एक नदी और उसके किनारे बसा तुम्हारा, हमारा घर, गाँव या शहर।”
‘लो’ शब्द से दृश्य सजीव लगता है।
2. “पानी आता भी है तो बेवक्त।”
‘भी’ शब्द यह बताता है कि पानी की उपलब्धता में कोई नियमितता नहीं है, जो समस्या को और गंभीर बनाता है।
3. “चलो, थोड़ी देर के लिए हम पानी के इस चक्कर को भूल जाएँ…”
‘चलो’ शब्द पाठकों को लेखक की सोच में शामिल करता है।
4. “यह तो अपने आस-पास का हक छीनने जैसा काम है…”
‘तो’ शब्द द्वारा निष्कर्ष पर बल दिया गया है।
5. “लेकिन एक ऐसा भी समय आया जब हम लोग इस छिपे खजाने का महत्व भूल गए।”
‘भी’ और ‘जब’ शब्द मिलकर उस स्थिति की गंभीरता को बताते हैं।

समानार्थी शब्द
नीचे दिए गए वाक्यों में रेखांकित शब्दों के स्थान पर समान अर्थ देने वाले उपयुक्त शब्द लिखिए। इस कार्य के लिए आप बादल में से शब्द चुन सकते हैं।
(क) सूरज की किरणें पड़ते ही फूल खिल उठे।
(ख) समुद्र का पानी भाप बनकर ऊपर जाता है।
(ग) अचानक बादल गरजने लगे।
(घ) जल–चक्र में हवा की भी बहुत बड़ी भूमिका है।
| सूर्य, | मेघ, | भास्कर, |
| पवन, | वारिद, | वायु, |
| दिवाकर, | जलद, | वाष्प, |
| समीर, | दिनकर, | नीरद |


उत्तर-
(क) सूर्य/ भास्कर/ दिनकर/ दिवाकर की किरणें पड़ते ही फूल खिल उठे।
(ख) समुद्र का पानी वाष्प बनकर ऊपर जाता है।
(ग) अचानक मेघ/जलद/वारिद/नीरद गरजने लगे।
(घ) जल–चक्र में पवन/वायु/समीर की भी बहुत बड़ी भूमिका है।
उपसर्ग
“देश के कई हिस्सों में तो अकाल जैसे हालात बन जाते हैं।“
उपर्युक्त वाक्य में रेखांकित शब्द में ‘अ‘ ने ‘काल‘ शब्द में जुड़कर एक नया अर्थ दिया है। काल का अर्थ है— समय, मृत्यु। जबकि अकाल का अर्थ है— कुसमय, सूखा। कुछ शब्दांश किसी शब्द के आरंभ में जुड़कर उसके अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं या कोई विशेषता उत्पन्न कर देते हैं और इस प्रकार नए शब्दों का निर्माण करते हैं। इस तरह के शब्दांश ‘उपसर्ग‘ कहलाते हैं।
आइए, कुछ और उपसर्गों की पहचान करते हैं–

अब आप भी उपसर्ग के प्रयोग से नए शब्द बनाकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए—

उत्तर-

पाठ से आगे
आपकी बात
(क) धरती की गुल्लक में जलराशि की कमी न हो इसके लिए आप क्या–क्या प्रयास कर सकते हैं, अपने सहपाठियों के साथ चर्चा करके लिखिए।
उत्तर-
- वर्षा जल संचयन करना।
- तालाबों, झीलों और कुओं की सफाई और संरक्षण करना।
- घरों में पानी की बर्बादी रोकना — जैसे टपकते नलों को ठीक करना।
- पौधों को सुबह या शाम को पानी देना ताकि पानी जल्दी न सूखे।
- ड्रिप इरिगेशन जैसी तकनीकों का उपयोग करना।
- बाढ़ के पानी को तालाबों में पहुँचाने की व्यवस्था करना।
- सार्वजनिक स्थानों पर लोगों को पानी की महत्ता समझाना और जागरूकता फैलाना।
(ख) इस पाठ में एक छोटे से खंड में जल चक्र की प्रक्रिया को प्रस्तुत किया गया है। उस खंड की पहचान करें और जल–चक्र को चित्र के माध्यम से प्रस्तुत करें।
उत्तर-
जल-चक्र का वर्णन जिस खंड में किया गया है (पाठ से):
“एक नदी पहाड़ से बहकर नीचे उतरती है, अपने साथ बहुत-सा पानी लाती है, फिर कहीं समुंदर में जा मिलती है। कुछ दिन वहाँ रहकर समुंदर का पानी भाप बनकर उड़ जाता है और फिर बादल बनकर धरती पर गिरता है। इस तरह यह चक्र चलता रहता है।”

(ग) अपने द्वारा बनाए गए जल चक्र के चित्र का विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर- सूरज की गर्मी से समुद्र का पानी भाप बनकर ऊपर उठता है और बादल बनता है। फिर वह बादल वर्षा के रूप में धरती पर गिरता है। यह पानी पहाड़ों से बहकर नदियों के ज़रिए खेतों और जलस्रोतों तक पहुँचता है और अंत में फिर समुद्र में मिल जाता है। यही जल-चक्र है — यह धरती की “गुल्लक” को भरने की प्रक्रिया है।
सृजन
(क) कल्पना कीजिए कि किसी दिन आपके घर में पानी नहीं आया। आपको विद्यालय जाना है। आपके घर के समीप ही एक सार्वजनिक नल है। आप बालटी आदि लेकर वहाँ पहुँचते हैं और ठीक उसी समय आपके पड़ोसी भी पानी लेने पहुँच जाते हैं। आप दोनों ही अपनी-अपनी बालटी पहले भरना चाहते हैं। ऐसी परिस्थिति में आपस में किसी प्रकार का विवाद ( तू-तू मैं-मैं ) न हो, यह ध्यान में रखते हुए पाँच संदेश वाक्य (स्लोगन) तैयार कीजिए।
उत्तर-
- “पानी लो बारी-बारी, मत करो तकरार हमारी-तुम्हारी।”
- “थोड़ा सब्र, थोड़ा साथ, मिल-जुल कर हो हर बात।”
- “पानी भरना काम है रोज़ का, लेकिन झगड़ा क्यों हो हर रोज़ का”
- “थोड़ा धैर्य, थोड़ा प्यार – यही है पड़ोसी व्यवहार।”
- “झगड़ा नहीं, प्यार दिखाओ, पहले तुम, फिर मैं – यही समझदारी अपनाओ।”
(ख) “सूरज, समुद्र, बादल, हवा, धरती, फिर बरसात की बूँदें और फिर बहती हुई एक नदी और उसके किनारे बसा तुम्हारा, हमारा घर, गाँव या शहर।”
इस वाक्य को पढ़कर आपके सामने कोई एक चित्र उभर आया होगा, उस चित्र को बनाकर रंग भरिए।


पानी रे पानी
नीचे हम सबकी दिनचर्या से जुड़ी कुछ गतिविधियों के चित्र हैं। उन चित्रों पर बातचीत कीजिए जो धरती पर पानी के संकट को कम करने में सहायक हैं और उन चित्रों पर भी बात करें जो पानी की गुल्लक को जल्दी ही खाली कर रहे हैं।

उत्तर


सबका पानी
‘सभी को अपनी आवश्यकता के अनुसार पर्याप्त पानी कैसे मिले‘ इस विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन करें। परिचर्चा के मुख्य बिंदुओं को आधार बनाते हुए रिपोर्ट तैयार करें।
रिपोर्ट
विषय: सबका पानी – सभी को अपनी आवश्यकता के अनुसार पर्याप्त पानी कैसे मिले
स्थान: विद्यालय का सभागार
तिथि: 1 जून 2025
आयोजक: विज्ञान एवं पर्यावरण क्लब
विद्यालय में ‘सबका पानी’ विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया, जिसमें कक्षा 6 से 8 तक के विद्यार्थियों, शिक्षकों और पर्यावरण विशेषज्ञों ने भाग लिया। परिचर्चा का उद्देश्य यह समझना था कि किस प्रकार जल संसाधनों का सही उपयोग हो ताकि सभी को आवश्यकता अनुसार पानी मिल सके।
परिचर्चा के मुख्य बिंदु:
- पानी का समान वितरण
- जल स्रोतों का संरक्षण
- वर्षा जल संचयन
- जल का पुनः उपयोग
- पानी की बर्बादी पर रोक
- सामूहिक जिम्मेदारी
परिचर्चा में विद्यार्थियों ने जल की महत्ता को गहराई से समझा और यह संकल्प लिया कि वे स्वयं पानी की बचत करेंगे और दूसरों को भी जागरूक करेंगे। कार्यक्रम का समापन विद्यालय प्राचार्य के प्रेरणादायक भाषण से हुआ, जिसमें उन्होंने जल को ‘राष्ट्रीय धरोहर’ बताते हुए उसके संरक्षण का आह्वान किया।
दैनिक कार्यों में पानी
(क) क्या आपने कभी यह जानने का प्रयास किया है कि आपके घर में एक दिन में औसतन कितना पानी खर्च होता है? अपने घर में पानी के उपयोग से जुड़ी एक तालिका बनाइए। इस तालिका के आधार पर पता लगाइए–
- घर के कार्यों में एक दिन में लगभग कितना पानी खर्च होता है? (बालटी, घड़े या किसी अन्य बर्तन को मापक बना सकते हैं)
- आपके माँ और पिता या घर के अन्य सदस्य पानी बचाने के लिए क्या–क्या उपाय करते हैं?
उत्तर-
घर में पानी के उपयोग की तालिका (एक दिन का औसत अनुमान)
| कार्य | पानी की मात्रा (बालटी/घड़ा) | प्रयोग की आवृत्ति | कुल पानी (प्रतिदिन) |
| नहाना | 2 बालटी प्रति व्यक्ति | 4 व्यक्ति × 1 बार | 8 बालटी |
| कपड़े धोना | 4 बालटी | 1 बार | 4 बालटी |
| बर्तन धोना | 3 बालटी | 3 बार | 9 बालटी |
| खाना पकाना व पीने के लिए | 2 घड़ा | 3 बार | 6 घड़ा |
| शौचालय उपयोग | 1 बालटी प्रति व्यक्ति | 4 व्यक्ति × 2 बार | 8 बालटी |
| पौधों को पानी देना | 2 बालटी | 1 बार | 2 बालटी |
| फर्श/घर साफ करना | 2 बालटी | 1 बार | 2 बालटी |
अनुमानित कुल पानी प्रति दिन:
= 33 बालटी + 6 घड़ा
(यदि 1 घड़ा = 1 बालटी मानें तो कुल = 39 बालटी प्रतिदिन)
घर में पानी बचाने के उपाय:
- बर्तन और कपड़े धोते समय नल को ज़रूरत अनुसार खोलना
- वर्षा जल को संग्रहित करना और पौधों में उपयोग करना
- नहाने के लिए बालटी का प्रयोग, शावर से परहेज़
- लीक होते नलों की मरम्मत समय पर कराना
- बचे हुए RO के पानी से फर्श या बर्तन धोना
(ख) क्या आपको अपनी आवश्यकतानुसार पानी उपलब्ध हो जाता है? यदि हाँ, तो कैसे? यदि नहीं, तो क्यों?
उत्तर-
हाँ, मेरे घर में आवश्यकतानुसार पानी उपलब्ध हो जाता है, क्योंकि—
- नियमित रूप से जल आपूर्ति होती है
- पानी स्टोर करने के लिए टंकी एवं ड्रम लगे हैं
- वर्षा जल संग्रह करने की व्यवस्था भी है
(यदि नहीं होता) तो कारण हो सकते हैं:
- सीमित जल स्रोत
- गर्मियों में जल संकट
- नल समय पर न आना
(ग) आपके घर में दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पानी का संचयन कैसे और किन पात्रों में किया जाता है?
उत्तर-
पानी के संचयन के तरीके-
- छत पर एक बड़ी प्लास्टिक की टंकी
- बाथरूम में छोटी टंकियाँ
- रसोई में स्टील/प्लास्टिक के घड़े
- वर्षा जल के लिए ड्रम
- RO का बचा हुआ पानी बाल्टियों में संग्रहित कर पौधों या सफाई में उपयोग
जन–सुविधा के रूप में जल
नीचे दिए गए चित्रों को ध्यान से देखिए–

इन चित्रों के आधार पर जल आपूर्ति की स्थिति के बारे में अपने साथियों से चर्चा कीजिए और उसका विवरण लिखिए।
उत्तर-
चर्चा के मुख्य बिंदु-
जल संकट की गंभीरता:
- कई स्थानों पर पानी की भारी कमी है, जिससे लोग लंबी लाइन में खड़े होकर पानी भरने को मजबूर हैं।
- चित्रों में देखा जा सकता है कि कुछ क्षेत्रों में टैंकर या ट्रेन से पानी पहुँचाया जा रहा है, जो आपातकालीन जल आपूर्ति की स्थिति को बताता है।
जल की असमान उपलब्धता:
- कुछ लोग नदी, तालाब या अन्य प्राकृतिक स्रोतों से पानी भर रहे हैं, जबकि कुछ क्षेत्रों में पाइपलाइन या नल की सुविधा नहीं है।
- महिलाएँ सिर पर या कंधों पर पानी ढोकर ला रही हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी पानी लाना एक कठिन कार्य है।
सरकारी प्रयास:
- ‘जल ट्रेन’ और टैंकर जैसी सेवाएँ यह दिखाती हैं कि सरकार पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विशेष उपाय कर रही है।
जल संरक्षण की आवश्यकता:
- जल की सीमित उपलब्धता हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जल को व्यर्थ नहीं बहाना चाहिए और हमें जल संरक्षण के उपाय अपनाने चाहिए।
विवरण (रिपोर्ट)-
- इन चित्रों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि भारत के कई हिस्सों में जल संकट एक गंभीर समस्या बन चुका है। कहीं लोग टैंकर से पानी भरने को मजबूर हैं, तो कहीं महिलाएँ मीलों दूर से सिर पर पानी ढोकर ला रही हैं। जल की अनुपलब्धता के कारण सरकार को टैंकर और रेलगाड़ियों के माध्यम से जल की आपूर्ति करनी पड़ रही है।
- कुछ लोग अब भी तालाब, नदी या पोखरों से पानी भरते हैं, जो स्वच्छता की दृष्टि से चिंताजनक है। इससे यह बात सामने आती है कि जल की उपलब्धता असमान है और इसके लिए योजनाबद्ध प्रयासों की आवश्यकता है।
- हमें जल संरक्षण की दिशा में सामूहिक प्रयास करने चाहिए जैसे वर्षा जल संचयन, रिसाइकलिंग, जल की बचत आदि ताकि ‘सबका पानी, सबके लिए’ सुनिश्चित हो सके।
बिन पानी सब सून
(क) पाठ में भूजल स्तर के कम होने के कुछ कारण बताए गए हैं, जैसे – तालाबों में कचरा फेंककर भरना आदि। भूजल स्तर कम होने के और क्या–क्या कारण हो सकते हैं? पता लगाइए और कक्षा में प्रस्तुत कीजिए। (इसके लिए आप अपने सहपाठियों, शिक्षकों और घर के सदस्यों की सहायता भी ले सकते हैं।)
उत्तर-
भूजल स्तर कम होने के अन्य कारण-
- अत्यधिक बोरवेलों का उपयोग- हर घर या खेत के लिए बोरवेल खोदने से भूजल अत्यधिक खिंच जाता है।
- वर्षा जल का संग्रह न होना- बारिश का पानी ज़मीन में नहीं समा पाता क्योंकि जगह-जगह सीमेंट-कंक्रीट बिछा हुआ है।
- वनों की कटाई (वृक्षों की कमी)- पेड़ वर्षा जल को भूमि में समाहित करने में मदद करते हैं, पेड़ों की कमी से जल भूमि में नहीं जाता।
- तालाब, झीलें और कुएँ सूखना या पाट देना- जल संचयन के पारंपरिक साधनों को नजरअंदाज करना।
- जल का अनियंत्रित दोहन- खेती, उद्योगों और घरेलू कार्यों में पानी की अत्यधिक बर्बादी।
(ख) भूजल स्तर की कमी से हमें आजकल किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है?
उत्तर-
- पीने के पानी की कमी- नलों और हैंडपंपों से पानी नहीं आता या बहुत गहरा खोदना पड़ता है।
- खेती पर प्रभाव- सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता कम हो जाती है जिससे फसलें प्रभावित होती हैं।
- स्वास्थ्य समस्याएँ- गहराई से निकला पानी कई बार दूषित होता है, जिससे बीमारियाँ होती हैं।
- जल विवाद- सीमित संसाधन के कारण लोगों में आपसी झगड़े होते हैं।
- मूल्य में वृद्धि- पानी खरीदने की नौबत आ जाती है जिससे आर्थिक बोझ बढ़ता है।
(ग) आपके विद्यालय, गाँव या शहर के स्थानीय प्रशासन द्वारा भूजल स्तर बढ़ाने के लिए क्या–क्या प्रयास किए जा रहे हैं, पता लगाकर लिखिए।
उत्तर- भूजल स्तर बढ़ाने के लिए प्रशासनिक प्रयास-
- वर्षा जल संचयन योजना- कई विद्यालयों, सरकारी भवनों और मोहल्लों में टंकी और पाइप के माध्यम से बारिश के पानी को जमीन में भेजने की व्यवस्था।
- सार्वजनिक तालाबों का पुनर्जीवन- पुराने तालाबों और कुओं की सफाई और गहरीकरण कराया जा रहा है।
- जल चेतना अभियान- लोगों को जल बचाने और संचयन के लिए जागरूक किया जा रहा है।
- स्कूलों में जागरूकता कार्यक्रम- विद्यार्थियों को जल संरक्षण के महत्व पर पोस्टर, निबंध, भाषण आदि के माध्यम से शिक्षित किया जा रहा है।
- ‘कैच द रेन’ अभियान- जहाँ वर्षा हो वहीं उसे संचित करने का प्रयास।

यह भी जानें
जल संग्रहण टंकी
वर्षा के जल को एकत्र करना और उसका भंडारण करके बाद में प्रयोग करना जल की उपलब्धता में वृद्धि करने का एक उपाय है। इस उपाय द्वारा वर्षा का जल एकत्र करने को ‘वर्षा जल संग्रहण‘ कहते हैं। वर्षा जल संग्रहण का मूल उद्देश्य यही है कि “जल जहाँ गिरे वहीं एकत्र कीजिए।” वर्षा जल संग्रहण की एक तकनीक इस प्रकार है– छत के ऊपर वर्षा जल संग्रहण
इस प्रणाली में भवनों की छत पर एकत्रित वर्षा जल को पाइप द्वारा भंडारण टंकी में पहुँचाया जाता है। इस जल में छत पर उपस्थित मिट्टी के कण मिल जाते हैं। अत: इसका उपयोग करने से पहले इसे स्वच्छ करना आवश्यक होता है।
अपने घर या विद्यालय के आस–पास, मुहल्ले या गाँव में पता लगाइए कि वर्षा जल संग्रहण की कोई विधि अपनाई जा रही है या नहीं? यदि हाँ, तो कौन–सी विधि है? उसके विषय में लिखिए। यदि नहीं, तो अपने शिक्षक या परिजनों की सहायता से इस विषय में समाचार पत्र के संपादक को एक पत्र लिखिए।
उत्तर- वर्षा जल संग्रहण विधि का विवरण –
मेरे विद्यालय/घर के पास वर्षा जल संग्रहण की व्यवस्था की गई है। इसमें छत पर गिरने वाला वर्षा जल पाइप के माध्यम से एक बड़ी टंकी या भूमिगत टांकी में इकट्ठा किया जाता है। यह टंकी सीमेंट और ईंटों से बनी है और इसके पहले छन्ने के लिए जाली और बालू-कोयले का फिल्टर लगाया गया है। इस पानी को बाद में पेड़-पौधों की सिंचाई, सफाई, और बागवानी जैसे कार्यों में उपयोग किया जाता है। यह विधि वर्षा के पानी को व्यर्थ बहने से रोकती है और भूजल स्तर को बढ़ाने में सहायक है।
(B) यदि वर्षा जल संग्रहण की कोई व्यवस्था नहीं है:
सम्पादक को पत्र –
आनंद विहार
आगरा, उ. प्र.
01 जून 2025
संपादक महोदय,
दैनिक समाचार
आगरा, उ. प्र.
विषय: वर्षा जल संग्रहण प्रणाली स्थापित करने की आवश्यकता पर ध्यान दिलाना।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके समाचार पत्र के माध्यम से प्रशासन और नागरिकों का ध्यान वर्षा जल संग्रहण की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। हमारे मुहल्ले में अभी तक वर्षा जल संग्रहण की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। प्रतिवर्ष भारी वर्षा का पानी व्यर्थ बह जाता है जबकि हमें पीने और अन्य उपयोगों के लिए पानी की कमी का सामना करना पड़ता है।
यदि छतों पर वर्षा जल एकत्र कर उसे भूमिगत टंकी में संग्रहित किया जाए, तो इसका उपयोग वर्ष भर किया जा सकता है। यह न केवल जल संकट को कम करेगा बल्कि भूजल स्तर को बढ़ाने में भी सहायक होगा।
आपसे अनुरोध है कि इस महत्वपूर्ण विषय को अपने समाचार पत्र में स्थान दें ताकि संबंधित अधिकारी और आम जनता जागरूक हो सकें।
सादर,
दिलीप
आज की पहेली
जल के प्राकृतिक स्रोत हैं— वर्षा, नदी, झील और तालाब। दिए गए वर्ग में जल और इन प्राकृतिक स्रोतों के समानार्थी शब्द ढूँढ़िए और लिखिए।

उत्तर-

खोजबीन के लिए
पानी से संबंधित गीत या कविताओं का संकलन कीजिए और इनमें से कुछ को अपनी कक्षा में प्रस्तुत कीजिए। इसके लिए आप अपने परिजनों एवं शिक्षक अथवा पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता भी ले सकते हैं।
उत्तर-
1
देखो पानी का यह रूप,
कभी शांत, कभी तीव्र रूप।
बादल बनकर बरसता,
नदी बनकर बहता।
मानव इसको सहेज न पाया,
वर्षा में फिर अकाल आया।
2
पानी ही जीवन का सार,
बिन इसके सूना संसार।
सागर लहरें उठाए,
नदियाँ कल-कल गाए।
यह झरनों का मीठा जल,
धरती को रखे निर्मल।
3
जल से जीवन पलता है,
हर जीव जल में चलता है।
बिन जल सूखी धरती होगी,
हरियाली भी मरती होगी।
इस जल को व्यर्थ न जाने दो,
हर बूँद बचाने का व्रत लो।
4
पहाड़ों से फूटती धाराएँ,
संगीतमय सुरों में गाएँ।
निर्मल, पावन, स्वच्छ सलिल,
धरती पर बरसाएँ नील।
नदियों का यह अमृत जल,
हर जीवन को करता सफल।
5
पानी रे पानी तेरा रंग कैसा,
जिसमें मिला दो लगे उस जैसा।
चमकता है मोती सा,
फिर भी रहता है रेशम जैसा।
सबको जीवन देने वाला,
खुद रूप रंग से न्यारा।
झरोखे से
आपने तालाबों और नदियों से रिसकर धरती रूपी गुल्लक में जमा होने वाले पानी के संबंध में यह रोचक लेख पढ़ा। अब आप तालाबों के बनने के इतिहास के विषय में अनुपम मिश्र के एक लेख ‘पाल के किनारे रखा इतिहास‘ का अंश पढ़िए।
पाल के किनारे रखा इतिहास
“अच्छे–अच्छे काम करते जाना“, राजा ने कूड़न किसान से कहा था। कूड़न, बुढ़ान, सरमन और कौंराई थे चार भाई। चारों सुबह जल्दी उठकर अपनेदोपहर को कूड़न की बेटी आती, पोटली में खाना लेकर।
पर काम करने जाते।एक दिन घर से खेत जाते समय बेटी को एक नुकीले पत्थर से ठोकर लग गई। उसे बहुत गुस्सा आया। उसने अपनी दराँती से उस पत्थर को उखाड़ने की कोशिश की। पर लो, उसकी दराँती तो पत्थर पर पड़ते ही लोहे से सोने में बदल गई। और फिर बदलती जाती हैं इस लम्बे किस्से की घटनाएँ बड़ी तेजी से। पत्थर उठाकर लड़की भागी–भागी खेत पर आती है। अपने पिता और चाचाओं को सब कुछ एक साँस में बता देती है। चारों भाइयों की साँस भी अटक जाती है। जल्दी–जल्दी सब घर लौटते हैं। उन्हें मालूम पड़ चुका है कि उनके हाथ में कोई साधारण पत्थर नहीं है, पारस है। वे लोहे की जिस चीज को छूते हैं, वह सोना बनकर उनकी आँखों में चमक भर देती है।
पर आँखों की यह चमक ज्यादा देर तक नहीं टिक पाती। कूड़न को लगता है कि देर–सबेर राजा तक यह बात पहुँच ही जाएगी और तब पारस छिन जाएगा। तो क्या यह ज्यादा अच्छा नहीं होगा कि वे खुद जाकर राजा को सब कुछ बता दे।
किस्सा आगे बढ़ता है। फिर जो कुछ घटता है, वह लोहे को नहीं बल्कि समाज को पारस से छुआने का किस्सा बन जाता है।
राजा न पारस लेता है, न सोना। सब कुछ कूड़न को वापस देते हुए कहता है, “जाओ इससे अच्छे–अच्छे काम करते जाना, तालाब बनाते जाना।“
यह कहानी सच्ची है, ऐतिहासिक है— नहीं मालूम। पर देश के मध्य भाग में एक बहुत बड़े हिस्से में यह इतिहास को अँगूठा दिखाती हुई लोगों के मन में रमी हुई है। यहीं के पाटन नामक क्षेत्र में चार बहुत बड़े तालाब आज भी मिलते हैं और इस कहानी को इतिहास की कसौटी पर कसने वालों को लजाते हैं— चारों तालाब इन्हीं चारों भाइयों के नाम पर हैं। बूढ़ा सागर है, मझगवाँ में सरमन सागर है, कुआँग्राम में कौंराई सागर है तथा कुंडम गांव में कुंडम सागर। सन 1907 में गजेटियर के माध्यम से इस देश का इतिहास लिखने के लिए घूम रहे एक अंग्रेज ने भी इस इलाके में कई लोगों से यह किस्सा सुना था और फिर देखा–परखा था इन चार बड़े तालाबों को। तब भी सरमन सागर इतना बड़ा था कि उसके किनारे पर तीन बड़े–बड़े गाँव बसे थे और तीनों गाँव इस तालाब को अपने–अपने नामों से बाँट लेते थे। पर वह विशाल ताल तीनों गाँवों को जोड़ता था और सरमन सागर की तरह स्मरण किया जाता था। इतिहास ने सरमन, बुढ़ान, कौंराई और कूड़न को याद नहीं रखा लेकिन इन लोगों ने तालाब बनाएऔर इतिहास को उनके किनारे पर रख दिया था।
देश के मध्य भाग में, ठीक हृदय में धड़काने वाला यह किस्सा उत्तर–दक्षिण, पूरब–पश्चिम–चारों तरफ किसी न किसी रूप में फैला हुआ मिल सकता है और इसी के साथ मिलते हैं सैंकड़ों, हजारों तालाब | इनकी कोई ठीक गिनती नहीं है। इन अनगिनत तालाबों को गिनने वाले नहीं, इन्हें तो बनाने वाले लोग आते रहे और तालाब बनते रहे।
किसी तालाब को राजा ने बनाया तो किसी को रानी ने, किसी को किसी साधारण गृहस्थ ने तो किसी को किसी असाधारण साधु–संत ने जिस किसी ने भी तालाब बनाया, वह महाराज या महात्मा ही कहलाया। एक कृतज्ञ समाज तालाब बनाने वालों को अमर बनाता था और लोग भी तालाब बनाकर समाज के प्रतिअपनी कृतज्ञता ज्ञापित करते थे।

साझी समझ
‘पानी रे पानी‘ और ‘पाल के किनारे रखा इतिहास‘ में आपको कौन–कौन सी बातें समान लगीं? उनके विषय में अपने सहपाठियों के साथ चर्चा कीजिए।
उत्तर-
समानताएँ-
- जल का महत्व- दोनों पाठ यह समझाते हैं कि जल जीवन का आधार है। जल के बिना जीवन संभव नहीं है, इसलिए इसका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।
- जल-संचय की परंपरा- ‘पानी रे पानी’ में वर्षा जल संग्रहण और भूजल स्तर की बात की गई है, जबकि ‘पाल के किनारे रखा इतिहास’ में ऐतिहासिक तालाबों के निर्माण का उल्लेख है। दोनों में पारंपरिक जल संग्रहण पद्धतियों की सराहना की गई है।
- सामुदायिक भागीदारी- इन दोनों में बताया गया है कि पहले समय में समाज के लोग मिलकर जल संरचनाएँ बनाते थे। चाहे वह तालाब हो या पाल – यह सामूहिक श्रम और सहभागिता का परिणाम होता था।
- प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान- ‘पाल के किनारे रखा इतिहास’ में पारस पत्थर मिलने पर भी राजा द्वारा उसका दुरुपयोग न करना और लोगों को अच्छे कामों की प्रेरणा देना यह दिखाता है कि प्रकृति के उपहार का उपयोग जन-कल्याण के लिए होना चाहिए। यह भावना ‘पानी रे पानी’ में भी झलकती है।
- जल संरक्षण = सांस्कृतिक धरोहर- दोनों पाठ यह दर्शाते हैं कि जल संरक्षण सिर्फ एक संसाधन बचाने का काम नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, इतिहास और परंपरा का हिस्सा है।
पढ़ने के लिए
विश्वेश्वरैया

आकाश में अँधेरा छाया हुआ था। बादल आकाश में मँडराते हुए एक–दूसरे से टकरा जाते तो बिजली चमक उठती और गर्जन होता। फिर मूसलाधार वर्षा होने लगी। कुछ ही देर में गड्ढे और नालियाँ पानी से भर गईं।
छः वर्षीय विश्वेश्वरैया अपने घर के बरामदे में खड़ा इस दृश्य को निहार रहा था। गली में पंक्तियों में खड़े पेड़ बारिश में धुल जाने के कारण साफ व सुंदर दिखाई दे रहे थे। पत्तियों और टहनियों से पानी की बूँदें टप–टप गिर रही थीं। थोड़ी ही दूरी पर हरे–भरे धान के खेत लहलहा रहे थे।
जहाँ विश्वेश्वरैया खड़ा था वहीं निकट की नाली का पानी उमड़–घुमड़ रहा था। उसमें भँवर भी उठ रहे थे। उसने एक जलप्रपात का रूप धारण कर लिया था। वह एक बहुत ही बड़े पत्थर को अपने साथ बहा कर ले जा रहा था जिससे उसकी शक्ति का प्रदर्शन होता था। विश्वेश्वरैया ने हवा और सूर्य की शक्ति को भी देखा था। सामूहिक रूप से वे प्रकृति की असीम शक्ति की ओर संकेत कर रहे थे। ‘प्रकृति शक्ति है। मुझे प्रकृति के बारे में सब कुछ जानना चाहिए‘ वह छोटा–सा लड़का बुदबुदाया।
फिर उसने थोड़ी दूरी पर, निर्भीकता से मूसलाधार वर्षा में खड़ी एक आकृति को ताड़पत्र की छतरी हाथ में लिए देखा। वह उसे तुरंत पहचान गया। उसके कपड़े फटे हुए थे। वह कमजोर और भूखी लग रही थी। वह एक झोंपड़ी में रहती थी। उसके बच्चे कभी स्कूल नहीं जाते। वह गरीब थी। विश्वेश्वरैया ने सोचा ‘वह इतनी गरीब क्यों है?”
उन्होंने बड़ी गंभीरता से प्रकृति और गरीबी के कारण के बारे में जानने का प्रयास किया।
वह परिवार के बड़ों से इन बातों का उत्तर जानना चाहते थे। वह अपने अध्यापकों से भी जिरह करते। वह उनसे प्रकृति के बारे में पूछते – ऊर्जा के कौन से प्रचलित स्रोत हैं? कैसे इस ऊर्जा को पकड़ कर इस्तेमाल में लाया जा सकता है?
वह यह भी पूछते कि आखिर इतने लोग गरीब क्यों हैं? नौकरानी फटी साड़ी क्यों पहनती है? वह झोपड़ी में क्यों रहती है? क्या उसे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहिए?
धीरे–धीरे इस लड़के को प्रकृति और जीवन के बारे में अंतर्दृष्टि प्राप्त होने लगी। उन्हें महसूस हुआ कि ज्ञान असीमित है। उसे बिना रुके, सीखते रहना होगा। तभी उन्हें उन प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं जो उन्होंने उठाए थे। उन्होंने निश्चय किया कि वह जीवनपर्यंत तक छात्र बने रहेंगे क्योंकि बहुत कुछ सीखना बाकी है। इसी संकल्प में उनकी महानता की कुंजी थी।
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (जो अब कर्नाटक में है) के मुद्देनाहल्ली नामक स्थान पर 15 सितंबर 1861 को हुआ था। उनके पिता वैद्य थे। वर्षों पहले उनके पूर्वज आंध्र प्रदेश के मोक्षगुंडम से यहाँ आए और मैसूर में बस गए थे।
दो वर्ष की आयु से ही उनका परिचय रामायण, महाभारत और पंचतंत्र की कहानियों से हो गया था। ये कहानियाँ हर रात घर की वृद्ध महिलाएँ उन्हें सुनाती थीं। कहानियाँ शिक्षाप्रद व मनोरंजक थीं। इन कहानियों से विश्वेश्वरैया ने ईमानदारी, दया और अनुशासन जै मूल मानवीय मूल्यों को आत्मसात किया। विश्वेश्वरैया चिकबल्लापुर के मिडिल व हाईस्कूल में पढ़े। जब उन्हें ‘गाड सेव द किंग‘ (ईश्वर राजा को सुरक्षित रखे) वाला गीत गाने को कहा गया तो उन्हें पता चला कि भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश है, अपने मामलों में भी भारतीयों को कुछ कहने का अधिकार न था। भारत की अधिकांश संपत्ति विदेशियों ने हड़प ली थी।
क्या उनके घर में काम करने वाली नौकरानी विदेशी शासन के कारण गरीब है? यह प्रश्न विश्वेश्वरैया के मस्तिष्क में उमड़ता–घुमड़ता रहा। राष्ट्रीयता की चिंगारी जल उठी थी और उनके जीवन में यह अंत समय तक जलती रही। विश्वेश्वरैया जब केवल चौदह वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। क्या वह अपनी पढ़ाई जारी रखें? इस प्रश्न पर तब विचार–विमर्श हुआ जब उन्होंने अपनी माँ से कहा, “अम्मा, क्या मैं बंगलौर जा सकता हूँ? मैं वहाँ मामा रामैया के यहाँ रह सकता हूँ। वहाँ मैं कॉलेज में प्रवेश ले लूँगा।”
पर बेटा… तुम्हारे मामा अमीर नहीं हैं। तुम उन पर बोझ क्यों बनना चाहते हो?” उनकी माँ ने तर्क किया।
“अम्मा… मैं अपनी जरूरतों के लिए स्वयं कमाऊँगा। मैं बच्चों को ट्यूशन पढ़ा दूँगा। अपनी फीस देने और पुस्तकें खरीदने के लिए मैं काफी धन कमा लूँगा। मेरे ख्याल से मेरे पास कुछ पैसे बच भी जाएँगे, जिन्हें मैं मामा को दे दूँगा,” विश्वेश्वरैया ने समझाया।
उनके पास हर प्रश्न का उत्तर था— समाधान ढूँढ़ने की क्षमता उनके पूरे जीवन में लगातार विकसित होती रही और इस कारण वह एक व्यावहारिक व्यक्ति बन गए। यह उनके जीवन का सार था और उनका संदेश था पहले जानो, फिर करो। बड़े होकर यही विश्वेश्वरैया एक महान इंजीनियर बने।
आर. के. मूर्ति (अनुवाद – सुमन जैन)
Class 7 Hindi Pani Re Pani– Extract Based Questions (गद्यांश पर आधारित प्रश्न)
निम्नलिखित गद्याँशों को ध्यानपूर्वक पढ़िए व प्रश्नों के उत्तर दीजिये-
1
कहाँ से आता है हमारा पानी और फिर कहाँ चला जाता है हमारा पानी? हमने कभी इस बारे में कुछ सोचा है? सोचा तो नहीं होगा शायद, पर इस बारे में पढ़ा जरूर है। भूगोल की किताब पढ़ते समय जल-चक्र जैसी बातें हमें बताई जाती हैं। एक सुंदर-सा चित्र भी होता है, इस पाठ के साथ। सूरज, समुद्र, बादल, हवा, धरती, फिर बरसात की बूँदें और लो फिर बहती हुई एक नदी और उसके किनारे बसा तुम्हारा, हमारा घर, गाँव या शहर। चित्र के दूसरे भाग में यही नदी अपने चारों तरफ का पानी लेकर उसी समुद्र में मिलती दिखती है। चित्र में कुछ तीर भी बने रहते हैं। समुद्र से उठी भाप बादल बनकर पानी में बदलती है और फिर इन तीरों के सहारे जल की यात्रा एक तरफ से शुरू होकर समुद्र में वापिस मिल जाती है। जल-चक्र पूरा हो जाता है। यह तो हुई जल-चक्र की किताबी बात। पर अब तो हम सबके घरों में, स्कूल में, माता-पिता के कार्यालय में, कारखानों और खेतों में पानी का कुछ अजीब-सा चक्कर सामने आने लगा है। नलों में अब पूरे समय पानी नहीं आता। नल खोलो तो उससे पानी के बदले सूँ-सूँ की आवाज आने लगती है। पानी आता भी है तो बेवक्त। कभी देर रात को तो कभी बहुत सबेरे।
1. जल-चक्र का चित्र किस विषय की पुस्तक में मिलता है?
(क) गणित
(ख) भूगोल
(ग) विज्ञान
(घ) नागरिक शास्त्र
उत्तर – (ख) भूगोल
2. जल-चक्र की प्रक्रिया में कौन-सा तत्व सबसे पहले आता है?
(क) नदी
(ख) समुद्र
(ग) सूरज
(घ) बारिश
उत्तर – (ग) सूरज
3. वर्तमान में पानी की कौन-सी समस्या सामने आ रही है?
(क) नल से अधिक पानी आना
(ख) समय पर पानी मिलना
(ग) हर समय पानी मिलना
(घ) नलों में बेवक्त और कम पानी आना
उत्तर – (घ) नलों में बेवक्त और कम पानी आना
4. जल-चक्र की प्रक्रिया क्या होती है?
उत्तर- जल-चक्र प्रकृति में पानी के निरंतर घूमते रहने की प्रक्रिया है। इसमें समुद्र से सूरज की गर्मी से भाप उठती है, जो बादलों का रूप लेती है। फिर यह भाप वर्षा के रूप में धरती पर गिरती है और नदियों के माध्यम से पुनः समुद्र में मिल जाती है। यह प्रक्रिया लगातार चलती रहती है और जल का संतुलन बनाए रखती है। यह हमें भूगोल की किताबों में चित्रों द्वारा समझाई जाती है।
5. वर्तमान समय में पानी की क्या स्थिति देखी जा रही है?
उत्तर– आजकल पानी की स्थिति चिंताजनक होती जा रही है। घरों, स्कूलों, कार्यालयों और खेतों में अब नलों से नियमित रूप से पानी नहीं आता। कभी देर रात तो कभी बहुत सुबह पानी आता है। नल खोलने पर अक्सर पानी की जगह सूँ-सूँ की आवाज सुनाई देती है। यह दर्शाता है कि जल प्रबंधन में गड़बड़ी है और पानी की कमी बढ़ रही है। इससे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कठिनाइयाँ उत्पन्न हो रही हैं।
2
मीठी नींद छोड़कर घर भर की बालटियाँ, बर्तन और घड़े भरते फिरो । पानी को लेकर कभी-कभी, कहीं-कहीं आपस में तू-तू, मैं-मैं भी होने लगती है।
रोज-रोज के इन झगड़े- टंटों से बचने के लिए कई घरों में लोग नलों के पाइप में मोटर लगवा लेते हैं। इससे कई घरों का पानी खिंचकर एक ही घर में आ जाता है। यह तो अपने आस-पास का हक छीनने जैसा काम है, लेकिन मजबूरी मानकर इस काम को मोहल्ले में कोई एक घर कर बैठे तो फिर और कई घर यही करने लगते हैं। पानी की कमी और बढ़ जाती है। शहरों में तो अब कई चीजों की तरह पानी भी बिकने लगा है। यह कमी गाँव-शहरों में ही नहीं बल्कि हमारे प्रदेशों की राजधानियों में और दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बैंगलोर जैसे बड़े शहरों में भी लोगों को भयानक कष्ट में डाल देती है। देश के कई हिस्सों में तो अकाल जैसी हालत बन जाती है। यह तो हुई गरमी के मौसम की बात।
1. लोग मीठी नींद छोड़कर क्या काम करने लगते हैं?
(क) खेतों में काम करने
(ख) स्कूल जाने
(ग) बालटी, बर्तन और घड़े भरने
(घ) अख़बार पढ़ने
उत्तर – (ग) बालटी, बर्तन और घड़े भरने
2. नलों में मोटर लगाने से क्या प्रभाव पड़ता है?
(क) बिजली की खपत बढ़ जाती है
(ख) एक घर सारा पानी खींच लेता है
(ग) सभी घरों को पर्याप्त पानी मिल जाता है
(घ) पानी की आपूर्ति सुधर जाती है
उत्तर – (ख) एक घर सारा पानी खींच लेता है
3. पानी की समस्या किन क्षेत्रों में देखी जा रही है?
(क) केवल गाँवों में
(ख) केवल शहरों में
(ग) केवल बड़े महानगरों में
(घ) गाँवों, शहरों और महानगरों सभी में
उत्तर – (घ) गाँवों, शहरों और महानगरों सभी में
4. अकाल जैसी हालत कहाँ बन जाती है?
उत्तर – देश के कई हिस्सों में अकाल जैसी हालत बन जाती है।
5. नलों में मोटर लगाने से क्या समस्याएँ उत्पन्न होती हैं?
उत्तर – जब कुछ लोग नलों में मोटर लगाकर पानी खींचते हैं, तो मोहल्ले के अन्य घरों को पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता। यह दूसरों के अधिकार पर कब्जा करने जैसा है। एक बार कोई ऐसा करता है, तो और लोग भी वही करने लगते हैं, जिससे पानी की कमी और अधिक बढ़ जाती है।
3
लेकिन बरसात के मौसम में क्या होता है? लो, सब तरफ पानी ही बहने लगता है। हमारे-तुम्हारे घर, स्कूल, सड़कों, रेल की पटरियों पर पानी भर जाता है। देश के कई भाग बाढ़ में डूब जाते हैं। यह बाढ़ न गाँवों को छोड़ती है और न मुंबई जैसे बड़े शहरों को। कुछ दिनों के लिए सब कुछ थम जाता है, सब कुछ बह जाता है।
ये हालात हमें बताते हैं कि पानी का बेहद कम हो जाना और पानी का बेहद ज्यादा हो जाना, यानी अकाल और बाढ़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि हम इन दोनों को ठीक से समझ सकें और सँभाल लें तो इन कई समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।
चलो, थोड़ी देर के लिए हम पानी के इस चक्कर को भूल जाएँ और याद करें अपनी गुल्लक को। जब भी हमें कोई पैसा देता है, हम खुश होकर, दौड़कर उसे झट से अपनी गुल्लक डाल देते हैं। एक रुपया, दो रुपया, पाँच रुपया, कभी सिक्के, तो कभी छोटे-बड़े नोट सब इसमें धीरे-धीरे जमा होते जाते हैं। फिर जब कभी हमें कुछ पैसों की जरूरत पड़ती है तो इस गुल्लक की बचत का उपयोग कर लेते हैं।
1. बरसात के मौसम में किस प्रकार की समस्या उत्पन्न होती है?
(क) केवल गर्मी की समस्या
(ख) सूखा पड़ता है
(ग) हर जगह पानी भर जाता है
(घ) बिजली चली जाती है
उत्तर – (ग) हर जगह पानी भर जाता है
2. अकाल और बाढ़ को लेखक ने किसके दो पहलू बताया है?
(क) समस्या और समाधान
(ख) गर्मी और सर्दी
(ग) वर्षा और धूप
(घ) एक ही सिक्के के दो पहलू
उत्तर – (घ) एक ही सिक्के के दो पहलू
3. गुल्लक का उदाहरण किस बात को समझाने के लिए दिया गया है?
(क) पैसे बचाने के लिए
(ख) जल-संचयन की आवश्यकता को समझाने के लिए
(ग) खरीदारी करने के लिए
(घ) बच्चों की आदतों को समझाने के लिए
उत्तर – (ख) जल-संचयन की आवश्यकता को समझाने के लिए
4. गद्याँश के अनुसार किन दो बातों को समझने की बात कही गयी है?
उत्तर – पानी का बेहद कम हो जाना और पानी का बेहद ज्यादा हो जाना, यानी अकाल और बाढ़ एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यदि हम इन दोनों को ठीक से समझ सकें और सँभाल लें तो इन कई समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है।
5. धीरे-धीरे किस तरह का शब्द है?
उत्तर – धीरे-धीरे पुनरुक्ति शब्द है। पुनरुक्ति शब्द का अर्थ होता है एक ही शब्द का बार-बार प्रयोग। उदाहरण के लिए, ‘बार-बार’, ‘जाते-जाते’, खाते-खाते आदि पुनरुक्ति शब्द हैं।
4
हमारी यह धरती भी इसी तरह की खूब बड़ी गुल्लक है। मिट्टी की बनी इस विशाल गुल्लक में प्रकृति वर्षा के मौसम में खूब पानी बरसाती है। तब रुपयों से में भी कई गुना कीमती इस वर्षा को हमें इस बड़ी गुल्लक जमा कर लेना चाहिए। हमारे गाँव में, शहर में जो छोटे-बड़े तालाब, झील आदि हैं, वे धरती की गुल्लक में पानी भरने का काम करते हैं। इनमें जमा पानी जमीन के नीचे छिपे जल के भंडार में धीरे-धीरे रिसकर, छनकर जा मिलता है। इससे हमारा भूजल भंडार समृद्ध होता जाता है। पानी का यह खजाना हमें दिखता नहीं, लेकिन इसी खजाने से हम बरसात का मौसम बीत जाने के बाद पूरे साल भर तक अपने उपयोग के लिए घर में, खेतों में, पाठशाला में पानी निकाल सकते हैं। लेकिन एक ऐसा भी आया जब हम लोग इस छिपे खजाने का महत्व भूल गए और जमीन के लालच में हमने अपने तालाबों को कचरे से पाटकर, भरकर समतल बना दिया। देखते-ही-देखते इन पर तो कहीं मकान, कहीं बाजार, स्टेडियम और सिनेमा आदि खड़े हो गए।
1. लेखक के अनुसार धरती किसके समान है?
(क) समुद्र के
(ख) नदी के
(ग) गुल्लक के
(घ) कुएँ के
उत्तर – (ग) गुल्लक के
2. तालाबों और झीलों का मुख्य कार्य क्या बताया गया है?
(क) खेल का मैदान बनाना
(ख) वर्षा जल को इकट्ठा कर भूजल में मिलाना
(ग) लोगों को नहाने की सुविधा देना
(घ) शहर को सुंदर बनाना
उत्तर – (ख) वर्षा जल को इकट्ठा कर भूजल में मिलाना
3. लोगों ने जल के छिपे खजाने को क्यों नष्ट किया?
(क) पानी की कमी से
(ख) तालाब सूखने के कारण
(ग) खेती के लिए
(घ) मकान बनाने के लालच में
उत्तर – (घ) मकान बनाने के लालच में
4. लेखक ने धरती को गुल्लक क्यों कहा है?
उत्तर – लेखक ने धरती को एक बड़ी गुल्लक इसलिए कहा है क्योंकि जैसे हम गुल्लक में पैसे जमा करते हैं, वैसे ही वर्षा के समय जल धरती में संग्रहित हो जाता है। तालाबों और झीलों के माध्यम से यह पानी जमीन के अंदर रिसकर भूजल का हिस्सा बनता है। यह भूजल हमें बाद में पूरे साल उपयोग के लिए मिलता है।
5. तालाबों और झीलों का जल भूजल में कैसे बदलता है?
उत्तर – तालाबों और झीलों में वर्षा का पानी इकट्ठा होता है, जो धीरे-धीरे मिट्टी से छनकर नीचे की ओर रिसता है। यह जल धरती के नीचे छिपे जल भंडार में मिल जाता है। इस प्रक्रिया से भूजल समृद्ध होता है। यही पानी बाद में कुओं, नलों, और पंपों के माध्यम से घर, खेत, स्कूल आदि में उपयोग होता है। इसलिए तालाबों की उपस्थिति जल-संरक्षण के लिए बहुत आवश्यक है।
Class 7 Hindi Malhar Lesson 4 Pani Re Pani Multiple choice Questions (बहुविकल्पीय प्रश्न)
1.वर्षा का जल किस माध्यम से धरती के नीचे जाता है?
(क) नदियों से
(ख) टैंक से
(ग) रिसकर और छनकर
(घ) बाल्टी से
उत्तर – (ग) रिसकर और छनकर
2. जल-चक्र की जानकारी हमें कहाँ से मिलती है?
(क) हिंदी की किताब से
(ख) भूगोल की किताब से
(ग) विज्ञान की किताब से
(घ) गणित की किताब से
उत्तर – (ख) भूगोल की किताब से
3. जल-चक्र में समुद्र से क्या उठता है?
(क) धूल
(ख) बालू
(ग) भाप
(घ) तूफ़ान
उत्तर – (ग) भाप
4. जल-चक्र में पानी अंततः कहाँ पहुँचता है?
(क) समुद्र
(ख) तालाब
(ग) नदी
(घ) झील
उत्तर – (क) समुद्र
5. पानी को बेचने की प्रक्रिया किस स्थान पर देखने को मिलती है?
(क) गाँवों में
(ख) खेतों में
(ग) पहाड़ों में
(घ) शहरों में
उत्तर – (घ) शहरों में
6. नलों में पानी कब आता है?
(क) हर समय
(ख) केवल दोपहर को
(ग) बेवक्त, कभी देर रात या सुबह
(घ) केवल शाम को
उत्तर – (ग) बेवक्त, कभी देर रात या सुबह
7. धरती की गुल्लक में पानी कैसे जमा होता है?
(क) पंखे से
(ख) वर्षा से
(ग) पाइप से
(घ) कुएँ से
उत्तर – (ख) वर्षा से
8. ‘पानी रे पानी’ पाठ के लेखक/लेखिका कौन हैं?
(क) अनुपम मिश्र
(ख) श्यामसुंदर दास
(ग) मैथलीशरण गुप्त
(घ) महादेवी वर्मा
उत्तर – (क) अनुपम मिश्र
9. धरती की गुल्लक में जमा पानी किसके लिए उपयोगी होता है?
(क) नदियों के लिए
(ख) समुद्र के लिए
(ग) हमारे वर्ष भर के उपयोग के लिए
(घ) केवल जानवरों के लिए
उत्तर – (ग) हमारे वर्ष भर के उपयोग के लिए
10. वर्षा का जल कहाँ जमा करना चाहिए?
(क) नदियों में
(ख) तालाबों और झीलों में
(ग) समुद्र में
(घ) छतों पर
उत्तर – (ख) तालाबों और झीलों में
11. भूजल भंडार किससे समृद्ध होता है?
(क) धरती में रिसे हुए पानी से
(ख) भूमिगत चट्टानों से
(ग) वाष्प से
(घ) नदियों से
उत्तर – (क) धरती में रिसे हुए पानी से
12. तालाब पाटने के बाद क्या बना दिया गया?
(क) कुएँ
(ख) नहरें
(ग) मकान, स्टेडियम, सिनेमा
(घ) जंगल
उत्तर – (ग) मकान, स्टेडियम, सिनेमा
13. किस मौसम में पानी का अधिक बहाव देखा जाता है?
(क) गर्मी में
(ख) वर्षा ऋतु में
(ग) शरद ऋतु में
(घ) बसंत ऋतु में
उत्तर – (ख) वर्षा ऋतु में
14. बाढ़ किसे नहीं छोड़ती?
(क) गाँवों को
(ख) शहरों को
(ग) केवल स्कूलों को
(घ) गाँव और शहर दोनों को
उत्तर – (घ) गाँव और शहर दोनों को
15. ‘आज भी खरे हैं तालाब’ किसकी पुस्तक है?
(क) महात्मा गांधी
(ख) अनुपम मिश्र
(ग) पं. नेहरू
(घ) रविंद्रनाथ टैगोर
उत्तर – (ख) अनुपम मिश्र
16. पानी की कमी से बचने का उपाय क्या बताया गया है?
(क) अधिक पानी बेचना
(ख) जल चक्र की अनदेखी करना
(ग) जल चक्र को समझना और भूजल सुरक्षित रखना
(घ) केवल मोटर लगाना
उत्तर – (ग) जल चक्र को समझना और भूजल सुरक्षित रखना
17. लेखक ने जल को किससे अधिक कीमती बताया है?
(क) धातुओं से
(ख) पैसों से
(ग) हीरे से
(घ) कपड़ों से
उत्तर – (ख) पैसों से
18. तालाबों का क्या कार्य होता है?
(क) बिजली उत्पन्न करना
(ख) जल को साफ करना
(ग) धरती की गुल्लक भरना
(घ) पशुओं को नहलाना
उत्तर – (ग) धरती की गुल्लक भरना
19. यदि हम जल-चक्र का उपयोग ठीक से न करें तो क्या होगा?
(क) वर्षा रुक जाएगी
(ख) हम पानी के चक्कर में फँसते जाएँगे
(ग) जल स्वचालित हो जाएगा
(घ) समुद्र सूख जाएगा
उत्तर – (ख) हम पानी के चक्कर में फँसते जाएँगे
20. लेखक अनुपम मिश्र किस क्षेत्र से जुड़े थे?
(क) राजनीति
(ख) चिकित्सा
(ग) पर्यावरण
(घ) खेल
उत्तर – (ग) पर्यावरण
Pani Re Pani Extra Question Answers (अतिरिक्त प्रश्न उत्तर)
Answer the following ques.
1. जल-चक्र क्या है और इसमें कौन-कौन से तत्व शामिल होते हैं?
उत्तर- जल-चक्र पानी के प्राकृतिक संचरण की प्रक्रिया है जिसमें सूर्य, समुद्र, भाप, बादल, हवा, धरती और वर्षा शामिल होते हैं। यह चक्र समुद्र से भाप के उठने से शुरू होता है, फिर वह बादल बनती है और वर्षा के रूप में धरती पर गिरती है। नदी बनकर पानी पुनः समुद्र में मिल जाता है। यह प्रक्रिया बार-बार चलती रहती है और पृथ्वी पर जल संतुलन बनाए रखती है।
2. जल-चक्र की किताबी जानकारी और हमारी वास्तविकता में क्या अंतर है?
उत्तर– किताबों में जल-चक्र एक सुंदर चित्र और सरल प्रक्रिया के रूप में दिखाया जाता है, परंतु वास्तविकता में यह प्रक्रिया जटिल और असंतुलित होती जा रही है। अब हमारे नलों में नियमित पानी नहीं आता, कभी देर रात तो कभी सुबह-सुबह आता है। कभी-कभी पानी न मिलने पर झगड़े भी होते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि जल-चक्र की सैद्धांतिक जानकारी से अधिक ज़रूरी है उसके वास्तविक उपयोग और संरक्षण की समझ।
3. धरती को ‘गुल्लक’ क्यों कहा गया है?
उत्तर– धरती को ‘गुल्लक’ इसलिए कहा गया है क्योंकि यह वर्षा के जल को संग्रहित करती है। जब वर्षा होती है तो उसका जल तालाबों, झीलों और अन्य जलस्रोतों के माध्यम से मिट्टी में रिसता है और भूजल भंडार को समृद्ध करता है। यह जल हमारी आँखों से तो नहीं दिखता, लेकिन भविष्य में यह हमारे जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होता है। यह उदाहरण हमें जल संरक्षण की महत्ता समझाता है।
4. भूजल भंडार क्या है और इसका क्या महत्व है?
उत्तर– भूजल भंडार वह जल होता है जो धरती की सतह के नीचे मिट्टी और चट्टानों में जमा होता है। यह वर्षा के जल से धीरे-धीरे भरता है जब पानी मिट्टी में रिसता है। इसका उपयोग हम नलों, कुओं और ट्यूबवेल्स के माध्यम से करते हैं। यह जल वर्षभर हमारे घरेलू, कृषि और औद्योगिक कार्यों में सहायक होता है। यदि यह भंडार सूख जाए तो हमें गंभीर जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
5. लेखक ने अकाल और बाढ़ को एक ही सिक्के के दो पहलू क्यों कहा है?
उत्तर- लेखक का मानना है कि जब जल प्रबंधन ठीक से नहीं होता, तब या तो पानी बहुत अधिक हो जाता है (बाढ़) या बहुत कम (अकाल)। ये दोनों स्थितियाँ प्राकृतिक असंतुलन के संकेत हैं। यदि हम जल-चक्र को ठीक से समझें और वर्षा के जल को संरक्षित करें तो इन समस्याओं से बचा जा सकता है। इस प्रकार, जल का अधिक या कम होना एक ही मूल समस्या ‘जल-संरक्षण की अनदेखी’ का परिणाम है।
6. हम पानी के चक्कर में कैसे फँसते जा रहे हैं?
उत्तर– जब हम जल-चक्र को ठीक से नहीं समझते और उसका सही उपयोग नहीं करते, तब हम लगातार जल संकट का सामना करते हैं। कभी पानी बहुत कम होता है (अकाल), कभी बहुत अधिक (बाढ़)। हम नलों से पानी पाने के लिए परेशान रहते हैं, दूसरों का हिस्सा छीन लेते हैं, और अंततः जल-संकट में फँस जाते हैं। इससे बाहर निकलने का एकमात्र उपाय है—जल को समझना, उसका संरक्षण करना।
7. लेखक ने पानी की बचत को बच्चों के दृष्टिकोण से कैसे समझाया है?
उत्तर- लेखक ने पानी की बचत को बच्चों की गुल्लक के उदाहरण से समझाया है। जैसे बच्चे रुपए पैसे गुल्लक में जमा करते हैं और ज़रूरत पर उपयोग करते हैं, वैसे ही वर्षा का जल भी तालाबों और झीलों में जमा किया जाना चाहिए। इससे भूजल भंडार भरता है और भविष्य में जल की कमी नहीं होती। यह उदाहरण सरल और प्रभावशाली है, जो बच्चों को जल संरक्षण की ओर प्रेरित करता है।
8. लेखक ने वर्षा जल को रुपए से भी कीमती क्यों कहा है?
उत्तर- लेखक का मानना है कि वर्षा जल हमारी जरूरतों के लिए अत्यंत आवश्यक है और इसका महत्व रुपए से भी अधिक है। यदि हम इसका संरक्षण करें तो यह पूरे वर्ष हमें जल संकट से बचा सकता है। रुपए की तरह, वर्षा जल भी एक बचत है जिसे हम भविष्य के उपयोग के लिए संचित कर सकते हैं। यह तुलना बच्चों और पाठकों को जल की महत्ता सरल और प्रभावशाली ढंग से समझाती है।
9. लेखक अनुपम मिश्र कौन थे और उनका योगदान क्या है?
उत्तर– अनुपम मिश्र एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद, लेखक, संपादक और छायाकार थे। उन्होंने जल संरक्षण और पारंपरिक जलस्रोतों के पुनरुद्धार के लिए कई प्रयोगात्मक कार्य किए। उनकी पुस्तक ‘आज भी खरे हैं तालाब’ जल संरक्षण पर आधारित एक महत्त्वपूर्ण कृति है। वे गाँधी मार्ग नामक पत्रिका के संस्थापक और संपादक भी थे। उन्होंने अपने लेखन और शोध कार्यों के माध्यम से लोगों को जल और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक किया।
10. लेखक के अनुसार हमारी सबसे बड़ी गलती क्या रही है?
उत्तर- लेखक के अनुसार हमारी सबसे बड़ी गलती यह रही कि हमने तालाबों को कचरे से भरकर समतल बना दिया और वहाँ भवन, बाजार, स्टेडियम जैसे निर्माण कर लिए। इससे जल संग्रहण की प्राकृतिक व्यवस्था नष्ट हो गई और भूजल भंडार सूखने लगे। इसका परिणाम यह हुआ कि गर्मियों में नल सूखने लगे और बरसात में बस्तियाँ डूबने लगीं। यह गलती अब पूरे समाज को भुगतनी पड़ रही है।