CBSE Class 10 Hindi (Course B) Sparsh Bhag 2 Book Chapter 13 Patjhar Mein Tuti Pattiyan Question Answers from previous years question papers (2019-2025) with Solutions

 

Patjhar Mein Tuti Pattiyan Previous Year Questions with Answers –  Question Answers from Previous years Question papers provide valuable insights into how chapters are typically presented in exams. They are essential for preparing for the CBSE Board Exams, serving as a valuable resource.They can reveal the types of questions commonly asked and highlight the key concepts that require more attention. In this post, we have shared Previous Year Questions for Class 10 Hindi (Course B) Sparsh Bhag 2 Book Chapter 13, “Patjhar Mein Tuti Pattiyan”.

Questions from the Chapter in 2025 Board Exams

 

प्रश्न 1 – ‘झेन की देन’ प्रसंग से लेखक किस तथ्य को उजागर करना चाहता है? (25-30 शब्दों में)

उत्तर – ‘झेन की देन’ प्रसंग से लेखक यह तथ्य उजागर करना चाहते हैं कि जापानियों का ध्यान और शांति की परंपरा मानसिक शांति, आत्म-संयम और संतुलन को बढ़ावा देती है, जो आज की तेज़ और तनावपूर्ण जिंदगी में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह प्रसंग हमें जीवन के प्रति नए दृष्टिकोण और सुकून पाने की दिशा में प्रेरित करता है।

 

प्रश्न 2 – ‘गिनी का सोना’ पाठ में दिए गए प्रसंग के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। (25-30 शब्दों में)

उत्तर – ‘गिन्नी का सोना’ पाठ में लेखक शुद्ध सोने और सोने के सिक्के में अंतर को दर्शाते हुए यह बताते हैं कि उच्च चरित्र में कोई मिलावट नहीं होती, जैसे शुद्ध सोना बिना मिलावट के होता है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने चरित्र में ताँबा अर्थात मिलावटी व्यवहार मिला देते हैं। यह प्रसंग हमें यह समझाने का प्रयास करता है कि जीवन में आदर्शों को महत्व देना चाहिए, न कि केवल व्यावहारिकता को।

 

Questions which came in 2024 Board Exam

 

प्रश्न 1 – ‘झेन की देन’ पाठ में दिमाग को आराम देने के लिए ‘टी. सेरेमनी’ का उल्लेख किया गया है, टी. सेरेमनी का वर्णन करते हुए लिखिए कि क्या हमारे देश में भी इस प्रकार का कोई उत्सव या विधि अपनाई जाती है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – एक शाम को लेखक का जापानी दोस्त उन्हें चा-नो-यू अर्थात जापान के चाय पीने के एक विशेष आयोजन, में ले गया। वह एक छः मंजिल की इमारत थी। उसकी छत पर एक सरकने वाली दीवार थी जिस पर चित्रकारी की गई थी और पत्तों की एक कुटिया बनी हुई थी जिसमें जमीन पर चटाई बिछी हुई थी। उसके बाहर बैडोल-सा मिट्टी का एक पानी भरा हुआ बरतन था। लेखक और उनके मित्र उस पानी से हाथ-पाँव धोकर अंदर गए। अंदर चाय देने वाला एक व्यक्ति था जिसे चानीज कहा जाता है। उन्हें देखकर वह खड़ा हो गया। कमर झुका कर उसने उन्हें प्रणाम किया और बैठने की जगह दिखाई। अँगीठी को जलाया और उस पर चाय बनाने वाला बरतन रख दिया। वह साथ वाले कमरे में गया और कुछ बरतन ले कर आया। फिर तौलिए से बरतन साफ किए। ये सारा काम उस व्यक्ति ने बड़े ही सलीके से पूरा किया। उस जगह का वातावरण इतना अधिक शांत था कि चाय बनाने वाले बरतन में उबलते हुए पानी की आवाज़ें तक सुनाई दे रही थी। 

हमारे देश में आपसी मेलजोल बढ़ाने के लिए दिवाली, होली, ईद जैसे त्योहार मनाए जाते हैं और मानसिक शांति के लिए भजन-कीर्तन, मंदिर भ्रमण या योग का सहारा लिया जाता है। 

 

प्रश्न 2 – ‘झेन की देन’ पाठ में लेखक ने भूत और भविष्य की चिंता छोड़ वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी है। इस विषय पर आपके क्या विचार हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

उत्तर – ‘झेन की देन’ पाठ में लेखक हमें बताना चाहते हैं कि हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। क्योंकि बीते हुए समय को हम फिर से जी नहीं सकते और आने वाले समय का हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि वह कैसा होगा। जो समय अभी चल रहा है अर्थात वर्त्तमान, वही सच है। और यह समय कभी न ख़त्म होने वाला और बहुत अधिक फैला हुआ है। क्योंकि हम हमेशा वर्त्तमान में ही रहते हैं। ‘झेन की देन’ पाठ हमें अत्यधिक व्यस्त जीवनशैली और उसके दुष्परिणामों से अवगत करवाता है। अधिक तनाव मनुष्य को पागल बना देता है। इससे बचने का उपाय है मन को शांत रखना। हमें बीते दिनों और भविष्य की कल्पनाओं को भूलकर वर्तमान की वास्तविकता में जीना चाहिए और वर्तमान का भरपूर आनंद लेना चाहिए। मानसिक तनाव से मुक्त होने के लिए मन से चिंता, तनाव और अधिक काम की बोझिलता हटाना आवश्यक है ताकि शांति एवं चैन से जीवन कटे।

 

प्रश्न 3 – ‘झेन की देन’ पाठ में जापानियों के मानसिक रोग का कारण उनका अमेरिका से प्रतिस्पर्धा बताया गया है। आप इस कारण को कितना उचित मानते हैं? आपकी दृष्टि में जीवन में प्रतिस्पर्धा की क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताते हुए कहा कि वहाँ जापान में कोई आराम से नहीं चलता, बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं। कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता, वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। यहाँ तक की जब जापान के लोग कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वे किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से ही बातें करते हैं। जापान के लोग अमेरिका से प्रतियोगिता में लग गए जिसके कारण वे एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही ख़त्म करने की कोशिश करने लगे। ऐसा करने के कारण दिमाग थक जाता है और टेंशन में आ कर पूरा इंजन टूट जाता है। यही कारण है कि जापान के लोगों में मानसिक बिमारी बहुत अधिक फैल गई है। हम इन कारणों से पूरी तरह सहमत हैं। हमारी दृष्टि में जीवन में प्रतिस्पर्धा महत्वपूर्ण है। बिना प्रतिस्पर्धा के आप जीवन में कुछ बड़ा हासिल नहीं कर सकते। किन्तु मानसिक तनाव तक पहुंचना गलत है। अपने शारीरिक व् मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी आवश्यक है। 

 

प्रश्न 4 – ‘गिन्नी का सोना’ पाठ में ‘वे सोने में ताँबा नहीं बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी क़ीमत बढ़ाते थे।’ ― यह कथन किसके लिए कहा गया है और क्यों? इसका तात्पर्य समझाइए।

उत्तर – ‘गिन्नी का सोना’ पाठ में ‘वे सोने में ताँबा नहीं बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी क़ीमत बढ़ाते थे।’ ― यह कथन गाँधी जी के लिए कहा गया है। क्योंकि गाँधी जी ने जीवन भर सत्य और अहिंसा का पालन किया। वे आदर्शों को ऊंचाई तक ले कर जाते थे अर्थात वे सोने में ताँबा मिलकर उसकी कीमत कम नहीं करते थे, बल्कि ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढा देते थे। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। वे किसी भी तरह के आदर्शों में कोई भी व्यावहारिक मिलावट नहीं करते थे बल्कि व्यवहार में आदर्शों को मिलते थे जिससे आदर्श ही सबको दिखे और सब आदर्शों का ही पालन करे और आदर्शों की कीमत बड़े।

 

प्रश्न 5 – गाँधी जी के बारे में लोग क्या कहते थे, गाँधी जी ने सदा क्या प्रयास किया? ‘गिन्नी का सोना’ पाठ के संदर्भ में लिखिए।

उत्तर – गाँधी जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। गाँधी जी भी व्यावहारिक आदर्शवादियों में से एक थे। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। यदि गाँधी जी अपने आदर्शों को महत्त्व नहीं देते तो पूरा देश उनके साथ हर समय कंधे-से-कन्धा मिला कर खड़ा न होता। यह बात उनके अहिंसात्मक आंदोलन से स्पष्ट हो जाती है। वह अकेले चलते थे और लाखों लोग उनके पीछे हो जाते थे। नमक का कानून तोड़ने के लिए जब उन्होंने जनता का आह्वान किया तो उनके नेतृत्व में हजारों लोग उनके साथ पैदल ही दांडी यात्रा पर निकल पड़े थे । इसी प्रकार से असहयोग आंदोलन के समय भी उनकी एक आवाज़ पर देश के हजारों नौजवान अपनी पढ़ाई छोड़कर उनके नेतृत्व में आंदोलन के रास्ते पर चल पड़े थे। गाँधी जी ने जीवन भर सत्य और अहिंसा का पालन किया। वे अपनी व्यावहारिकता को जानते थे और उसकी कीमत को भी पहचानते थे। इन्हीं कारणों की वजह से वे अपने अनेक लक्षणों वाले आदर्श चला सके। गाँधी जी कभी भी अपने आदर्शों को अपने व्यवहार पर हावी नहीं होने देते थे। बल्कि वे अपने व्यवहार में ही अपने आदर्शों को रखने की कोशिश करते थे। 

 

प्रश्न 6 – आदर्शवादी लोगों ने समाज के लिए क्या किया है? ‘गिन्नी का सोना’ पाठ के संदर्भ में लिखिए।

उत्तर – हमारे समाज में अगर हमेशा रहने वाले कई मूल्य बचे हैं तो वो सिर्फ आदर्शवादी लोगों के कारण ही बच पाए हैं। खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शों को सबसे आगे रखने वाले लोगों ने किया है। व्यवहारवादी लोग तो केवल अपने आप को आगे लाने में लगे रहते हैं उनको कोई फर्क नहीं पड़ता अगर समाज को नुकसान हो रहा हो।

 

प्रश्न 7 – ‘झेन की देन’ पाठ में लेखक के मित्र द्वारा बताए गए मानसिक रोग के कारणों पर अपनी टिप्पणी कीजिए।

उत्तर – लेखक के मित्र के अनुसार जापानी मानसिक रोग से पीड़ित हैं। इसका कारण उनकी असीमित आकांक्षाएँ, उनको पूरा करने के लिए किया गया भागम-भाग भरा प्रयास, महीने का काम एक दिन में करने की चेष्टा, अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र से प्रतिस्पर्धा आदि है। लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताते हुए कहा कि वहाँ जापान में कोई आराम से नहीं चलता, बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं। कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता, वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। यहाँ तक की जब जापान के लोग कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वे किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से ही बातें करते हैं। जापान के लोग अमेरिका से प्रतियोगिता में लग गए जिसके कारण वे एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही ख़त्म करने की कोशिश करने लगे। ऐसा करने के कारण दिमाग थक जाता है और टेंशन में आ कर पूरा इंजन टूट जाता है। यही कारण है कि जापान के लोगों में मानसिक बिमारी बहुत अधिक फैल गई है। 

 

Questions that appeared in 2023 Board Exams

 

प्रश्न 1 – ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ के लेखक के अनुसार ‘सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए।’ क्या आप लेखक के विचार से सहमत हैं ? अपने पक्ष के समर्थन या विरोध में तर्क सहित उत्तर दीजिए।

उत्तर – ‘पतझर में टूटी पत्तियाँ’ के लेखक के अनुसार ‘सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए।’ हम लेखक की इस बात से सहमत हैं क्योंकि हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। क्योंकि बीते हुए समय को हम फिर से जी नहीं सकते और आने वाले समय का हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि वह कैसा होगा। जो समय अभी चल रहा है अर्थात वर्त्तमान, वही सच है। और यह समय कभी न ख़त्म होने वाला और बहुत अधिक फैला हुआ है। क्योंकि हम हमेशा वर्त्तमान में ही रहते हैं। हमें बीते दिनों और भविष्य की कल्पनाओं को भूलकर वर्तमान की वास्तविकता में जीना चाहिए और वर्तमान का भरपूर आनंद लेना चाहिए। 

 

Questions which came in 2022 Board Exam

 

प्रश्न 1 – लेखक का जापानी मित्र उसे कहाँ ले गया? वहाँ के वातावरण से लेखक क्यों प्रभावित हुआ? ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर – लेखक का जापानी दोस्त उन्हें चा-नो-यू अर्थात जापान के चाय पीने के एक विशेष आयोजन में ले गया। लेखक और उनका मित्र चाय पिने के आयोजन के लिए जहाँ गए थे वह एक छः मंजिल की इमारत थी। उसकी छत पर एक सरकने वाली दीवार थी जिस पर चित्रकारी की गई थी और पत्तों की एक कुटिया बनी हुई थी जिसमें जमीन पर चटाई बिछी हुई थी। उसके बाहर बैडोल-सा मिट्टी का एक पानी भरा हुआ बरतन धोने के लिए रखा हुआ था। अंदर चाय देने वाले व्यक्ति ने खड़े होकर कमर झुका कर उन्हें प्रणाम करके, बैठने की जगह दिखाई। चाय बनाने वाले ने चाय तैयार की और फिर उन प्यालों को लेखक और उनके मित्र के सामने रख दिया। जापान में इस चाय समारोह की सबसे खास बात शांति होती है। इसलिए वहाँ तीन से ज्यादा व्यक्तियों को नहीं माना जाता। वे करीब डेढ़ घंटे तक प्यालों से चाय को धीरे-धीरे पीते रहे। पहले दस-पंद्रह मिनट तो लेखक को बहुत परेशानी हुई। लेकिन धीरे -धीरे लेखक ने महसूस किया कि उनके दिमाग की रफ़्तार कम होने लेगी है। और कुछ समय बाद तो लगा कि दिमाग बिलकुल बंद ही हो गया है। तनाव को दूर करने के इस तरीके से लेखक बहुत प्रभावित हुआ।

प्रश्न 2 – ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर बताइए कि पर्णकुटी में चाय पीने के बाद लेखक ने स्वयं में क्या-क्या परिवर्तन महसूस किए।
उत्तर – जापान में इस चाय समारोह की सबसे खास बात शांति होती है। चाय के प्यालों में दो-दो घूँट से ज्यादा चाय नहीं होती। लेखक और उनके मित्र करीब डेढ़ घंटे तक प्यालों से चाय को धीरे-धीरे पीते रहे। पहले दस-पंद्रह मिनट तो लेखक को बहुत परेशानी हुई। जीना किसे कहते यह लेखक को चाय समारोह वाले दिन मालूम हुआ। जापानियों को ध्यान लगाने की यह परंपरा विरासत में देन में मिली है। लेकिन धीरे -धीरे लेखक ने महसूस किया कि उनके दिमाग की रफ़्तार कम होने लगी है। और कुछ समय बाद तो लगा कि दिमाग बिलकुल बंद ही हो गया है। लेखक को लगा जैसे वह कभी न ख़त्म होने वाले समय में जी रहा है। यहाँ तक की लेखक का मन इतना शांत हो गया था की बाहर की शांति भी शोर लग रही थी। 

प्रश्न 3 – आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में मानसिक रोग से ग्रसित लोगों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। आपके विचार से इसके कौन-कौन से कारण हो सकते हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है? ‘झेन की देन’ पाठ के संदर्भ में लिखिए।
उत्तर – ‘झेन की देन’ पाठ हमें अत्यधिक व्यस्त जीवनशैली और उसके दुष्परिणामों से अवगत करवाता है। आज की भाग-दौड़ भरी ज़िन्दगी में मानसिक रोग से ग्रसित लोगों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इसका सबसे बड़ा कारण है लोगों का जरुरत से अधिक दिमाग को थकाना। काम को अपनी जिंदगी से भी अधिक महत्त्व देना जिससे काम के बोझ के कारण तनाव बढ़ जाता है। अधिक तनाव मनुष्य को पागल बना देता है। इससे बचने का उपाय है मन को शांत रखना। हमें बीते दिनों और भविष्य की कल्पनाओं को भूलकर वर्तमान की वास्तविकता में जीना चाहिए और वर्तमान का भरपूर आनंद लेना चाहिए। मानसिक तनाव से मुक्त होने के लिए मन से चिंता, तनाव और अधिक काम की बोझिलता हटाना आवश्यक है ताकि शांति एवं चैन से जीवन कटे।

प्रश्न 4 – “हमारे सामने जो वर्तमान क्षण है वही सत्य है। उसी में जीना चाहिए।” ‘झेन की देन’ पाठ से उद्धृत लेखक का यह कथन वर्तमान परिस्थितियों में कहाँ तक सत्य है? क्या आप इससे सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर – “हमारे सामने जो वर्तमान क्षण है वही सत्य है। उसी में जीना चाहिए।” ‘झेन की देन’ पाठ से उद्धृत लेखक का यह कथन वर्तमान परिस्थितियों में बहुत अधिक हद तक सत्य है। हम इस कथन से सहमत हैं। हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। क्योंकि बीते हुए समय को हम फिर से जी नहीं सकते और आने वाले समय का हम अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि वह कैसा होगा। जो समय अभी चल रहा है अर्थात वर्त्तमान, वही सच है। और यह समय कभी न ख़त्म होने वाला और बहुत अधिक फैला हुआ है। क्योंकि हम हमेशा वर्त्तमान में ही रहते हैं।

Questions from the Chapter in 2020 Board Exams

 

प्रश्न 1 – ‘गिन्नी का सोना’ पाठ में शुद्ध आदर्श की तुलना शुद्ध सोने से क्यों की गई है?

उत्तर – शुद्ध सोने में चमक होती है और आदर्श भी शुद्ध सोने की तरह चमकदार और महत्वपूर्ण मूल्यों से भरा होता है। ताँबे से सोना मजबूत तो होता है परन्तु उसकी शुद्धता समाप्त हो जाती है। इसी प्रकार व्यावहारिकता के कारण आदर्श समाप्त हो जाते हैं परन्तु यदि सही ढंग से व्यावहारिकता और आदर्शों को मिलाया जाये तो जीवन में बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है।

 

प्रश्न 2 – जापान में चाय पीना एक ‘सेरेमनी’ क्यों है?

उत्तर – ‘झेन की देन’ पाठ हमें अत्यधिक व्यस्त जीवनशैली और उसके दुष्परिणामों से अवगत कराता है। पाठ में जापानियों की व्यस्त दिनचर्या से उत्पन्न मनोरोग की चर्चा करते हुए वहाँ की ‘टी-सेरेमनी’ के माध्यम से मानसिक तनाव से मुक्त होने का संकेत करते हुए यह संदेश दिया है कि अधिक तनाव मनुष्य को पागल बना देता है। इससे बचने का उपाय है मन को शांत रखना। बीते दिनों और भविष्य की कल्पनाओं को भूलकर वर्तमान की वास्तविकता में जीना और वर्तमान का भरपूर आनंद लेना। इसके लिए मन से चिंता, तनाव और अधिक काम की बोझिलता हटाना आवश्यक है ताकि शांति एवं चैन से जीवन कटे।

 

प्रश्न 3 – चा-नो-यू की पूरी प्रक्रिया का वर्णन अपने शब्दों में करते हुए लिखिए कि उसे झेन परंपरा की अनोखी देन क्यों कहा गया है?

उत्तर – जापान में चाय पीने की एक विधि है। जापानी में जिसे चा-नो-यू कहते हैं। इस विधि में शांति को प्रमुखता दी जाती है। इसलिए चाय पीने के स्थान पर एक साथ तीन लोगों से अधिक को प्रवेश नहीं दिया जाता है। एक बहुमंजिला इमारत की छत पर दफ़्ती दीवारों तथा चटाई की ज़मीन वाली एक सुंदर पर्णकुटी बनी होती है। बाहर मिट्टी के बर्तन में पानी भरा होता है। हाथ-पाँव धोकर और तौलिए से पोंछकर अंदर प्रवेश किया जाता है। चानीज़ अँगीठी सुलगाकर चाय तैयार करता है। बर्तन तौलिए से साफ़ करके चाय को प्यालों में डाल कर अतिथि के सामने लाता है। प्याले में दो घूँट से अधिक चाय नहीं होती। वहाँ ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद चाय पी जाती है। करीब डेढ़ घंटे तक चुसकियों का यह सिलसिला चलता रहता है। इससे चाय पीने वाले व्यक्ति के दिमाग की रफ़्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ने लगती है। और वह अनंतकाल में जीने लगता है। लेखक ने इसे झेन की अनोखी देन इसलिए कहा है, क्योंकि इस प्रक्रिया के माध्यम से लेखक को यह आभास हुआ था कि जीना किसे कहते हैं अर्थात यह प्रक्रिया वर्तमान में जीना सिखाती है। इसलिए यह झेन की अनोखी परंपरा है।

 

प्रश्न 4 – वर्तमान समय में शाश्वत मूल्यों की क्या उपयोगिता है? ‘गिन्नी का सोना’ पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर – हमारे विचार से – सत्य, अहिंसा, दया, प्रेम, भाईचारा, त्याग, परोपकार, मीठी वाणी, मानवीयता इत्यादि ये मूल्य शाश्वत हैं। वर्तमान समाज में इन मूल्यों की प्रासंगिकता अर्थात महत्व बहुत अधिक है। जहाँ- जहाँ और जब-जब इन मूल्यों का पालन नहीं किया गया है वहाँ तब-तब समाज का नैतिक पतन हुआ है। सबसे महत्पूर्ण बात तो यह है कि खुद भी तरक्की करो और अपने साथ-साथ दूसरों को भी आगे ले चलो और ये काम हमेशा से ही आदर्शो को सबसे आगे रखने वाले लोगों ने किया है।

 

प्रश्न 5 – जापान में अधिकांश लोगों के मनोरुग्ण होने के क्या कारण हैं? तनाव से मुक्ति दिलाने में झेन परंपरा की चा-नो-यू विधि किस प्रकार सहायक है?

उत्तर – जापान में चाय पीने की एक विधि है। जापानी में जिसे चा-नो-यू कहते हैं। इस विधि में शांति को प्रमुखता दी जाती है। इसलिए चाय पीने के स्थान पर एक साथ तीन लोगों से अधिक को प्रवेश नहीं दिया जाता है। एक बहुमंजिला इमारत की छत पर दफ़्ती दीवारों तथा चटाई की ज़मीन वाली एक सुंदर पर्णकुटी बानी होती है। बाहर मिट्टी के बर्तन में पानी भरा होता है। हाथ-पाँव धोकर और तौलिए से पोंछकर अंदर प्रवेश किया जाता है। चानीज़ अँगीठी सुलगाकर चाय तैयार करता है। बर्तन तौलिए से साफ़ करके चाय को प्यालों में डाल कर अतिथि के सामने लता है। प्याले में दो घूँट से अधिक चाय नहीं होती। वहाँ ओठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद चाय पी जीती है। करीब डेढ़ घंटे तक चुसकियों का यह सिलसिला चलता रहता है। इससे चाय पीने वाले व्यक्ति के दिमाग की रफ़्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ने लगती है। और वह अनंतकाल में जीने लगता है। लेखक ने इसे झेन की अनोखी देन इसलिए कहा है, क्योंकि इस प्रक्रिया के माध्यम से लेखक को यह आभास हुआ था कि जीना किसे कहते हैं अर्थात यह प्रक्रिया वर्तमान में जीना सिखाती है। इसलिए यह झेन की अनोखी परंपरा है।

 

प्रश्न 6 – लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि लेखक ने ऐसा क्यों कहा होगा। ‘झेन की देन’ पाठ के आधार पर लिखिए।

उत्तर – लेखक के अनुसार सत्य केवल वर्तमान है, उसी में जीना चाहिए। हम लोग या तो बीते हुए दिनों में रहते हैं या आने वाले दिनों में। जबकि दोनों ही समय झूठे होते हैं। वो इसलिए क्योंकि एक बीत चुका होता है और दूसरा अभी आया भी नहीं होता। तो बात आती है कि सच क्या है तो इस बात पर लेखक कहते हैं कि जो समय अभी चल रहा है वही सच है।

 

प्रश्न 7 – जापान में मानसिक रोग बढ़ने के क्या-क्या कारण बताए गए हैं? इसके समाधान में ‘चा-नो-यू’ कैसे सहायक है? “झेन की देन” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर – लेखक के मित्र ने मानसिक रोग के कारण बताते हुए कहा कि वहाँ जापान में कोई आराम से नहीं चलता, बल्कि दौड़ता है अर्थात सब एक दूसरे से आगे जाने की सोच रखते हैं। कोई भी व्यक्ति आराम से बात नहीं करता, वे लोग केवल काम की ही बात करते हैं। यहाँ तक की जब जापान के लोग कभी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं तो वे किसी और से नहीं बल्कि अपने आप से ही बातें करते हैं। जापान के लोग अमेरिका से प्रतियोगिता में लग गए जिसके कारण वे एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही ख़त्म करने की कोशिश करने लगे। ऐसा करने के कारण दिमाग थक जाता है और टेंशन में आ कर पूरा इंजन टूट जाता है। यही कारण है कि जापान के लोगों में मानसिक बिमारी बहुत अधिक फैल गई है। हम इन कारणों से पूरी तरह सहमत हैं।

 

प्रश्न 8 – गिन्नी का सोना और शुद्ध सोना में क्या अंतर है? इस चर्चा में गांधी जी का नाम लेखक ने क्यों लिया है?

उत्तर – गिन्नी का सोना शुद्ध सोना नहीं होता बल्कि इसमें तांबे का मिश्रण होता है। यही कारण है कि उसमें ज्यादा चमक होती है और शुद्ध सोने की अपेक्षा मजबूती अधिक होती है। अतः इसकी उपयोगिता भी अधिक होती है। गिन्नी के सोने की इन्हीं विशेषताओं के कारण अधिकांशत: इसी सोने के आभूषण बनवाए जाते हैं।

 गाँधी जी कभी भी अपने आदर्शों को अपने व्यवहार पर हावी नहीं होने देते थे । बल्कि वे अपने व्यवहार में ही अपने आदर्शों को रखने की कोशिश करते थे। वे किसी भी तरह के आदर्शों में कोई भी व्यावहारिक मिलावट नहीं करते थे बल्कि व्यव्हार में आदर्शों को मिलाते थे जिससे आदर्श ही सबको दिखे और सब आदर्शों का ही पालन करे और आदर्शों की कीमत बढ़े। वे शुद्ध सोने में तांबा नहीं, ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे। उसी प्रकार आदर्श को क्रियान्वित करने के लिए व्यवहारिकता की आवश्यकता होती है।

 

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