CBSE Class 10 Hindi Course A Chapter-wise Previous Years Questions (2024) with Solution
Class 10 Hindi (Course A) Question Paper (2024) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 10th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 10 Hindi (Course A) question paper (2024).
Kshitij Bhag 2
Chapter 1 – Surdas Ke Pad
प्रश्न 1 – सूरदास के ‘पद’ के अनुसार गोपियों को ऐसा क्यों लगा कि कृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – सूरदास के ‘पद’ के अनुसार गोपियों को ऐसा लगता है कि कृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है। क्योंकि वे उद्धव के द्वारा सब समाचार प्राप्त कर लेते हैं और उन्हीं को माध्यम बनाकर संदेश वापिस भी भेज देते हैं। गोपियाँ मानती हैं श्री कृष्ण पहले से ही बहुत चतुर चालाक थे, अब मथुरा पहुँचकर शायद उन्होंने राजनीति शास्त्र भी पढ़ लिया है , जिस के कारण वे और अधिक बुद्धिमान हो गए हैं , जो उन्होंने तुम्हारे द्वारा जोग ( योग ) का संदेश भेजा है। क्योंकि अगर श्रीकृष्ण स्वयं आते तो गोपियाँ उन्हें कभी वापिस नहीं जाने देतीं।
प्रश्न 2 – गोपियों ने उद्धव द्वारा बताए गए योग को व्याधि क्यों कहा है? सूरदास के ‘पद’ के आधार पर बताइए। (लगभग 25-30 शब्दों में )
उत्तर – श्री कृष्ण के मथुरा चले जाने पर गोपियाँ पहले से विरहाग्नि में जल रही थीं। वे श्री कृष्ण के प्रेम – संदेश और उनके आने की प्रतीक्षा कर रही थीं। जब श्री कृष्ण मथुरा वापस नहीं आते और उद्धव के द्वारा मथुरा यह संदेश भेजा देते हैं कि वह वापस नहीं आ पाएंगे, तो इस संदेश को सुनकर गोपियाँ टूट – सी गईं और उनकी विरह की व्यथा और बढ़ गई। वे अब तक इसी कारण जी रहीं थी कि श्री कृष्ण जल्द ही वापिस आ जाएंगे और वे सिर्फ़ इसी आशा से अपने तन – मन की पीड़ा को सह रही थीं कि जब श्री कृष्ण वापस लौटेंगे , तो वे अपने प्रेम को कृष्ण के समक्ष व्यक्त करेंगी। उनके हृदय में श्री कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम है , जो कि किसी योग – संदेश द्वारा कम होने वाला नहीं है। बल्कि इससे उनका प्रेम और भी दृढ़ हो जाएगा।
प्रश्न 3 – सूरदास के ‘पद’ में उद्धव के व्यवहार की तुलना किनसे और क्यों की गई है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – उद्धव के व्यवहार की तुलना दो वस्तुओं से की गई है –
कमल के पत्ते से – जो पानी में रहकर भी गीला नहीं होता है।
तेल में डूबी गागर से – जो तेल के कारण पानी से गीली नहीं होती है।
क्योंकि जिस प्रकार कमल के पत्ते हमेशा जल के अंदर ही रहते हैं , लेकिन उन पर जल के कारण कोई दाग दिखाई नहीं देता अर्थात् वे जल के प्रभाव से अछूती रहती हैं और इसके अतिरिक्त जिस प्रकार तेल से भरी हुई मटकी पानी के मध्य में रहने पर भी उसमें रखा हुआ तेल पानी के प्रभाव से अप्रभावित रहता है , उसी प्रकार श्री कृष्ण के साथ रहने पर भी उद्धव के ऊपर श्रीकृष्ण के प्रेम का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
प्रश्न 4 – उद्धव ने गोपियों को समझाने के लिए कौन-सा उपदेश दिया और गोपियों को वह पसंद क्यों नहीं आया? (लगभग 25-30 शब्दों में )
उत्तर – उद्धव गोपियों के पास श्रीकृष्ण द्वारा गोपियों को दिए योग साधना का संदेश लेकर गए थे। उद्धव ने गोपियों को सलाह दी कि वे अपने मन में नियन्त्रण रखें। गोपियों ने इस योग संदेश के स्थान पर प्रेम सन्देश की कल्पना की थी। इस योग संदेश से उनकी सहनशक्ति टूट गई। इस योग संदेश ने गोपियों की विरह अग्नि में घी का काम किया। उद्धव गोपियों को योग मार्ग पर चलने का उपदेश देने लगे, जिससे गोपियों को उद्धव का यह योग संदेश पसंद नहीं आया। क्योंकि वे तो श्रीकृष्ण के वापिस आने की आशा में ही जी रहीं थी।
प्रश्न 5 – सूरदास की गोपियों ने उद्धव को ‘बड़भागी’ किस उद्देश्य से कहा है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – गोपियों ने उद्धव को इसलिए बड़भागी कहा है क्योंकि उद्धव श्रीकृष्ण के प्रेम से दूर हैं। गोपियाँ उद्धव को भाग्यवान कहते हुए व्यंग्य कसती हैं। क्योंकि सुनने में तो उनकी बातें प्रशंसा लग रही हैं किंतु वास्तव में वे कहना चाह रही हैं कि उद्धव बड़े अभागे हैं क्योंकि वे श्री कृष्ण के सानिध्य में रहते हुए भी , श्री कृष्ण के प्रेम का अनुभव नहीं कर सके। न तो वे श्री कृष्ण के हो सके, न श्री कृष्ण को अपना बना सके। क्योंकि जो कोई भी श्री कृष्ण के साथ एक क्षण भी व्यतीत कर लेता है वह कृष्णमय हो जाता है। उन्हें कृष्ण का प्रेम अपने बंधन में न बाँध सका। ऐसे में उद्धव को प्रेम की वैसी पीड़ा नहीं झेलनी पड़ रही है जैसी गोपियाँ झेलने को विवश हैं।
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Chapter 2 – Ram Lakshman Parshuram Samvad
प्रश्न 1 – परशुराम ने किसकी तुलना सहस्रबाहु से की और क्यों? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – परशुराम जी ने शिव जी के धनुष को तोड़ने वाले की तुलना सहस्रबाहु से की। क्योंकि परशुराम जी शिव जी के बहुत बड़े भक्त थे। उनके अनुसार शिव जी के धनुष को तोड़ना अर्थात शिव जी का अपमान करना है। एक सेवक न तो अपने प्रभु का अपमान करता है और न ही किसी के द्वारा अपने प्रभु के अपमान को सहन करता है। परशुराम जी ने सहस्रबाहु द्वारा उनके पिता के अपमान व् कामधेनु को चुराने के दंड स्वरूप उसका वध किया था और वे चाहते थे कि जिसने भी शिव जी का धनुष तोडा है वह स्वयं ही सामने आ जाए ताकि वे उसे भी सज़ा दे सकें।
प्रश्न 2 – ‘रामलक्ष्मण परशुराम संवाद’ कविता के आधार पर लिखिए कि रघुकुल में किस-किस पर वीरता का प्रदर्शन नहीं किया जाता और क्यों? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – ‘रामलक्ष्मण परशुराम संवाद’ कविता के आधार पर रघुकुल की यह परंपरा है कि वे देवता , ब्राह्मण , भगवान के भक्त और गाय , इन सभी पर वीरता नहीं दिखाया करते , क्योंकि इन्हें मारने से पाप लगता है और इनसे हार जाने पर अपकीर्ति अथवा अपयश ( बदनामी ) होता है। इसीलिए यदि इन में से कोई मारें तो भी , रघुकुल की परंपरा के अनुसार इनके पैर पकड़ने चाहिए।
प्रश्न 3 – ‘लक्ष्मण द्वारा परशुराम को चुनौती देने के क्या कारण थे?’ अपने शब्दों में पाठ के आधार पर लिखिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – लक्ष्मण का चरित्र श्रीराम के चरित्र के बिलकुल विपरीत था। जहाँ श्री राम का स्वभाव शांत, सरल व् विनम्र था वहीँ दूसरी ओर लक्ष्मण का स्वभाव उग्र एवं उद्दंड था। लक्ष्मण द्वारा परशुराम जी को चुनौती देने का मुख्य कारण परशुराम जी का शिव धनुष तोड़ने वाले को दंड देने की बात करना था। उनके अनुसार श्री राम ने धनुष नहीं तोड़ा था बल्कि वो तो उनके छूने मात्र से ही टूट गया था इसमें श्रीराम की कोई गलती नहीं थी।
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Chapter 3 – Atmakathya
प्रश्न 1 – ‘आत्म कथ्य’ कविता से ली गई ‘अनंत नीलिमा में असंख्य जीवन इतिहास’ पंक्ति का क्या आशय है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – ‘आत्म कथ्य’ कविता से ली गई ‘अनंत नीलिमा में असंख्य जीवन इतिहास’ पंक्ति का आशय यह है कि गंभीर, अनंत आकाश की नीलिमा में अनेक इतिहास लिखे गए अर्थात् हिंदी साहित्य रूपी इस विशाल विस्तार वाले आकाश में न जाने कितने महान् पुरुषों अर्थात लेखकों के जीवन का इतिहास उनकी आत्मकथा के रूप में मौजूद हैं। उन्हें पढ़कर ऐसा प्रतीत होता है कि वह स्वयं अपना मजाक उड़वाते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि लोग इन महान लेखकों की आत्मकथा को पढ़कर उनकी कमियों का मजाक बनाते हैं।
प्रश्न 2 – ‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि स्वयं को थका हुआ पथिक क्यों कहता है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – ‘आत्मकथ्य’ कविता में कवि स्वयं को थका हुआ पथिक इसलिए कहता है क्योंकि कवि अपनी प्रिय की स्मृति के सहारे जीवन जी रहा है। कवि की पत्नी की मृत्यु युवावस्था में ही हो गई थी। अपनी पत्नी के साथ बिताये मधुर पलों की स्मृतियाँ ही अब कवि के जीवन जीने का एकमात्र सहारा व मार्गदर्शक हैं। जैसे थका हुआ यात्री शेष रास्ता देखते हुए अपनी मंजिल पा जाता है वैसे ही कवि अपनी पत्नी की यादों के सहारे अपना शेष जीवन बिता लेगा। मनुष्य अपनी सुखद स्मृतियों की याद में अपना सारा जीवन व्यतीत कर सकता है। इन सभी से कवि अब थका हुआ अनुभव कर रहा है।
कहने का तात्पर्य यह है कि कवि के अपनी पत्नी के साथ बिताये क्षण ही अब उनके जीने का एकमात्र सहारा हैं। इसीलिए कवि उन्हें किसी के साथ बांटना नहीं चाहते हैं। उन्हें सिर्फ अपने दिल में संजो कर रखना चाहते है।
प्रश्न 3 – ‘आत्मकथ्य’ कविता में आई पंक्ति ‘मुरझाकर गिर रही पत्तियाँ, देखो कितनी आज घनी।’ का आशय स्पष्ट कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में )
उत्तर – ‘आत्मकथ्य’ कविता में आई पंक्ति ‘मुरझाकर गिर रही पत्तियाँ, देखो कितनी आज घनी।’ का आशय यह है कि कवि का जीवन रूपी वृक्ष जो कभी सुख व आनंद रुपी पत्तियों से हरा भरा था। अब वो सभी पत्तियों मुरझा कर एक – एक करके गिर रही हैं। क्योंकि आज कवि के जीवन की परिस्थितियां बदल चुकी है। उनके जीवन में सुख की जगह दुख और निराशा ने ले ली है। और कवि इस वक्त अपने जीवन रूपी वृक्ष में पतझड़ का सामना कर रहे हैं।
प्रश्न 4 – मित्रों द्वारा प्रेरित किए जाने पर भी जयशंकर प्रसाद अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखना चाहते थे? (लगभग 25-30 शब्दों में )
उत्तर – मित्रों द्वारा प्रेरित किए जाने पर भी जयशंकर प्रसाद अपनी आत्मकथ्य लिखने से इसलिए बचना चाहते है क्योंकि उन्हें ऐसा नहीं लगता कि लोग महान लेखकों की आत्मकथा को पढ़कर उनकी कमियों का मजाक बनाते हैं। कवि अपना मज़ाक नहीं बनवाना चाहते। कवि अपने प्रपंची मित्रों की असलियत दुनिया के सामने ला कर, उनको शर्मिंदा नही करना चाहते हैं। और कवि अपनी पत्नी के साथ बिताए हुए मधुर पलों को अपनी “उज्ज्वल गाथा ” के रूप में देखते हैं और उन्हें किसी के साथ बांटना नहीं चाहते हैं। कवि को यह भी लगता है कि उन्होंने अभी तक ऐसी कोई उपलब्धि हासिल भी नहीं की है जिसे पढ़कर किसी को खुशी मिलेगी और उनका जीवन केवल कष्टों से भरा हुआ है अतः वे अपने कष्टों को लोगों को बताना नहीं चाहते।
प्रश्न 5 – ‘आत्मकथ्य’ कविता का रचनाकार अपने जीवन के उज्ज्वल क्षणों-गाथाओं को सबके सामने प्रकट नहीं करना चाहता है। क्यों? कारण सहित स्पष्ट कीजिए।(लगभग 25-30 शब्दों में )
उत्तर – कवि ने अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक जीवन जीने की जो कल्पना की थी, वह उनकी मृत्यु के साथ ही खत्म हो गयी। और उनका सारा जीवन दुखों से भर गया। कवि की पत्नी की मृत्यु युवावस्था में ही हो गई थी। अपनी पत्नी के साथ बिताये मधुर पलों की स्मृतियाँ ही अब कवि के जीवन जीने का एकमात्र सहारा व मार्गदर्शक हैं। इसीलिए वो अपनी पत्नी के साथ बिताए हुए उन मधुर पलों को अपनी “उज्ज्वल गाथा ” के रूप में देखते हैं और उन्हें किसी के साथ बांटना नहीं चाहते हैं। उन्हें सिर्फ अपने दिल में संजो कर रखना चाहते है।
प्रश्न 6 – ‘तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे – यह गागर रीती।’ कहकर कवि अपने जीवन के किस पहलू पर प्रकाश डालना चाहता है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – तुम सुनकर सुख पाओगे, देखोगे – यह गागर रीती।’ कहकर कवि बताना चाहते हैं कि उनका जीवन रूपी वृक्ष जो कभी सुख व आनंद रुपी पत्तियों से हरा भरा था। अब वो सभी पत्तियों मुरझा कर एक – एक करके गिर रही हैं। क्योंकि आज कवि के जीवन की परिस्थितियां बदल चुकी है। उनके जीवन में सुख की जगह दुख और निराशा ने ले ली है। कवि चेतावनी भी देते हैं कि वे कुछ ऐसा भी लिख सकते हैं जिसे पढ़कर कही कोई ऐसा न समझे कि उनके जीवन में जो सुख , खुशियों और आनंद रूपी रस थे , वो उन सभी ने ही खाली किये हैं और कवि का जीवन दुखों से भर दिया है। असल में यह भी कवि का एक तर्क ही है जिसको दे कर वे अपनी आत्मकथा को लिखने से बचना चाहते हैं।
प्रश्न 7 – जयशंकर प्रसाद ने अपनी आत्मकथा न लिखने के क्या कारण गिनवाए हैं? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – जयशंकर प्रसाद ने अपनी आत्मकथा न लिखने के निम्नलिखित कारण गिनवाए हैं –
- उन्हें ऐसा नहीं लगता कि लोग महान लेखकों की आत्मकथा को पढ़कर उनकी कमियों का मजाक बनाते हैं। कवि अपना मज़ाक नहीं बनवाना चाहते।
- कवि अपने प्रपंची मित्रों की असलियत दुनिया के सामने ला कर, उनको शर्मिंदा नही करना चाहते हैं।
- कवि अपनी पत्नी के साथ बिताए हुए मधुर पलों को अपनी “उज्ज्वल गाथा ” के रूप में देखते हैं और उन्हें किसी के साथ बांटना नहीं चाहते हैं।
- कवि को यह भी लगता है कि उन्होंने अभी तक ऐसी कोई उपलब्धि हासिल भी नहीं की है जिसे पढ़कर किसी को खुशी मिलेगी या उसे पढ़ने में रूचि होगी।
- कवि मानते हैं कि उनका जीवन केवल कष्टों से भरा हुआ है अतः वे अपने कष्टों को लोगों को बताना नहीं चाहते।
प्रश्न 8 – यदि जयशंकर प्रसाद अपने जीवन का सार सच्चाई, ईमानदारी से लिखते तो क्या परिणाम हो सकता था? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – यदि जयशंकर प्रसाद अपने जीवन का सार सच्चाई, ईमानदारी से लिखते हैं तो जो कुछ लोगों ने उन्हें धोखे दिए या उनके साथ जो छल – प्रपंच किया हैं। उन सभी के बारे में भी लिखना पड़ेगा और उनके बारे में लिखकर वे उनका मजाक नहीं बनाना चाहते। कहने का तात्पर्य यह है कि कवि अपने प्रपंची मित्रों की असलियत दुनिया के सामने ला कर , उनको शर्मिंदा नही करना चाहते हैं। इसीलिए कवि अपनी आत्मकथा नहीं लिखना चाहते हैं।
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Chapter – 4 Utsah Aur At Nahi Rahi Hai
प्रश्न 1 – ‘उत्साह’ कविता के शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – बादल भयंकर गर्जना के साथ जब बरसते हैं, तो धरती के सभी प्राणियों में एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता है। लोगों का मन एक बार फिर से नए जोश व उत्साह से भर जाता हैं। कवि भी बादलों के माध्यम से लोगों में उत्साह का संचार करना चाहते हैं और समाज में एक नई क्रांति लाने के लिए लोगों को प्रेरित करना चाहते हैं। एक ओर बादलों के गर्जन में उत्साह समाया है , तो दूसरी ओर कवि लोगों में उत्साह का संचार करके क्रांति के लिए तैयार करना चाहते हैं। इसलिए इस कविता का शीर्षक “ उत्साह ” सार्थक सिद्ध होता है।
प्रश्न 2 – फागुन मास में प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन, ‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – फागुन मास के समय प्रकृति हर चीज़ का पुनःनिर्माण करती है। पेड़ – पौधें नए पत्तों , फल और फूलों से लद जाते हैं , इस कारण पूरा वातावरण फूलों की सुगंध से सुगंधित एवं उनके रंग से रंगीन हो जाता है। मौसम सुहावना होता है। आकाश साफ – स्वच्छ होता है। इस मौसम में पक्षी भी आसमान में स्वच्छंद विचरण करते हैं और प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेते हैं। बाग – बगीचों और पक्षियों में उल्लास भर जाता हैं। लोगों में खुशी का माहौल होता है।
प्रश्न 3 – ‘उत्साह’ कविता में कवि ने धाराधर किसे और क्यों कहा है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए कहा है; क्योंकि कवि बादलों को क्रांति का सूत्रधार और गर्जना को विद्रोह का प्रतीक मानता है। कवि बादलों से पौरुष दिखाने की कामना करता है। कवि ने बादल के गरजने के माध्यम से दुखों को दूर करने के लिए क्रांतिकारी शक्ति की आशा की है।
प्रश्न 4 – ‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर ‘कहीं पड़ी है उर में, मंद-गंध-पुष्प-माल’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – ‘अट नहीं रही है’ कविता में ‘कहीं पड़ी है उर में, मंद-गंध-पुष्प-माल’ पंक्ति का आशय यह है कि फागुन मास में जब चारों तरफ पेड़ों पर हरे पत्ते एवं रंग – बिरंगे फूल दिखाई देते हैं तो ऐसा लगता हैं, मानो पेड़ों ने कोई सुंदर, रंगबिरंगी माला पहन रखी हो। इस सुगन्धित पुष्प माला की ख़ुशबू कवि को बहुत ही मनमोहक लगती है।
प्रश्न 5 – ‘उत्साह’ कविता में कवि बादलों की तुलना काले-घुंघराले बालों से क्यों करता है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – ‘उत्साह’ कविता में कवि बादलों की तुलना काले-घुंघराले बालों से करता है क्योंकि बादल आकाश में सुंदर – सुंदर , काले घुंघराले अर्थात गोल – गोल छल्ले के आकार के समान छाए हुए हैं। बादल और काले-घुंघराले बाल दोनों ही जीवन और ऊर्जा के प्रतीक हैं। जो लोगों को संघर्ष करने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देते है।
प्रश्न 6 – ‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर फागुन की शोभा का वर्णन कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – फागुन मास के समय प्रकृति हर चीज़ का पुनःनिर्माण करती है। पेड़ – पौधें नए पत्तों , फल और फूलों से लद जाते हैं , इस कारण पूरा वातावरण फूलों की सुगंध से सुगंधित एवं उनके रंग से रंगीन हो जाता है। मौसम सुहावना होता है। आकाश साफ – स्वच्छ होता है। इस मौसम में पक्षी भी आसमान में स्वच्छंद विचरण करते हैं और प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेते हैं। बाग – बगीचों और पक्षियों में उल्लास भर जाता हैं। लोगों में खुशी का माहौल होता है। इन सभी मायनों में फागुन का सौंदर्य अन्य मास की ऋतुओं से भिन्न होता है।
प्रश्न 7 – क्या आप इस बात से सहमत हैं कि निराला ने ‘उत्साह’ कविता के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन का संदेश दिया है? कारण सहित स्पष्ट कीजिए।(लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – ‘ उत्साह ’ कविता एक आह्वान गीत है। इसमें कवि ने बादलों का आह्वान किया है। अर्थात बादलों को पुकारा है। कवि ने बादलों को पुनर्जागरण व क्रांति का प्रतीक बनाया है। किसी भी परिवर्तन के लिए पुनर्जागरण की आवश्यकता होती है। बादल क्रांति द्वारा परिवर्तन लाकर पुनर्जागरण का प्रतीक बनते हैं , इसीलिए कवि बादलों के द्वारा समाज में नए – नए विचारों का सृजन करना चाहते हैं। लोगों के भीतर एक नया जोश , नया उत्साह भरने का प्रयास करना चाहते हैं। लोगों की सोई चेतना को जागृत करना चाहते हैं और सन्देश देना चाहते हैं कि किसी कार्य को पूरा करने के लिए शरीर में उत्साह होना आवश्यक है और किसी भी विपरीत परिस्थिति में साहस से काम लेना ही समझदारी है।
प्रश्न 8 – ‘अट नहीं रही हैं’ कविता के आधार पर लिखिए कि फागुन मास के प्राकृतिक सौंदर्य का मानव मन पर क्या प्रभाव पड़ता है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – फागुन मास में प्रकृति के कण – कण में अर्थात जगह – जगह इतनी सुंदरता बिखरी पड़ी है कि अब वह इस पृथ्वी में समा नहीं पा रही है। चारों तरफ पेड़ों पर हरे पत्ते एवं रंग – बिरंगे फूल दिखाई दे रहे हैं और ऐसा लग रहा हैं, मानो पेड़ों ने कोई सुंदर, रंगबिरंगी माला पहन रखी हो। इस सुगन्धित पुष्प माला की ख़ुशबू कवि को बहुत ही मनमोहक लग रही है। कवि के अनुसार, फागुन के महीने में यहाँ प्रकृति में होने वाले बदलावों से सभी प्राणी बेहद ख़ुश हो जाते हैं। कविता में कवि स्वयं भी बहुत ही खुश लग रहे हैं।
प्रश्न 9 – ‘उत्साह’ शीर्षक की सार्थकता पर प्रकाश डालिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – बादल भयंकर गर्जना के साथ जब बरसते हैं , तो धरती के सभी प्राणियों में एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता है। लोगों का मन एक बार फिर से नए जोश व उत्साह से भर जाता हैं। कवि भी बादलों के माध्यम से लोगों में उत्साह का संचार करना चाहते हैं और समाज में एक नई क्रांति लाने के लिए लोगों को प्रेरित करना चाहते हैं। एक ओर बादलों के गर्जन में उत्साह समाया है , तो दूसरी ओर कवि लोगों में उत्साह का संचार करके क्रांति के लिए तैयार करना चाहते हैं। इसलिए इस कविता का शीर्षक “ उत्साह ” सार्थक सिद्ध होता है।
प्रश्न 10 – फागुन की किन विशेषताओं का वर्णन कवि ने ‘अट नहीं रहीं हैं’ – कविता में किया है। अपने शब्दों में लिखिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – कवि ने ‘अट नहीं रहीं हैं’ – कविता में फागुन की निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन किया है –
- फागुन के समय प्रकृति अपने चरम सौंदर्य पर होती है और मस्ती से इठलाती है।
- फागुन के समय पेड़ हरियाली से भर जाते हैं और उन पर रंग-बिरंगे सुगन्धित फूल उग जाते हैं।
- फागुन माह में ऐसा लगता हैं मानो प्रकृति एक बार फिर दुल्हन की तरह सज धज कर तैयार हो गयी हैं क्योंकि वसंत ऋतु के आगमन से सभी पेड़-पौधे नई-नई कोपलों व रंग-बिरंगे फूलों से लद जाते हैं।
- फागुन माह में हर तरफ सुंदरता बिखरी पड़ी होती है और वह इतनी अधिक होती है कि उस पर से नजर हटाने को मन ही नहीं करता।
प्रश्न 11 – कवि बादलों से गरजने का अनुरोध क्यों करता है? ‘उत्साह’ कविता के आधार पर लिखिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – कवि बादलों से जोर – जोर से गरजने का निवेदन कर रहे हैं और बादलों से कहते हैं कि हे बादल ! तुम जोरदार गर्जना अर्थात जोरदार आवाज करो और आकाश को चारों तरफ से , पूरी तरह से घेर लो यानि इस पूरे आकाश में भयानक रूप से छा जाओ और फिर जोरदार तरीके से बरसो क्योंकियह समय शान्त होकर बरसने का नहीं हैं।
प्रश्न 12 – कवि बादलों को ‘नवजीवन वाले’ कहकर क्यों संबोधित करता है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – कवि बादलों को एक कवि के रूप में देखते हैं जो अपनी कविता से धरती को नवजीवन देते हैं क्योंकि बादलों के बरसने के साथ ही धरती पर नया जीवन शुरु होता हैं। पानी मिलने से बीज अंकुरित होते हैं और नये – नये पौधें उगने शुरू हो जाते हैं। धरती हरी – भरी होनी शुरू हो जाती हैं। लोगों की सोई चेतना भी जागृत होती है।
प्रश्न 13 – निराला ने फागुन मास के सौंदर्य का वर्णन किया है। आप फागुन में अपने आस-पास के सौंदर्य का वर्णन कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – प्रस्तुत कविता ‘अट नहीं रही है’ में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने फागुन के सब ओर फैले सौन्दर्य और मन को मोहने वीले रूप के प्रभाव को दर्शाया है। फागुन के सौंदर्य का वर्णन अत्यधिक अद्धभुत तरीके से किया है। वसंत को घर – घर में फैला हुआ दिखाया है। कवि ने पेड़ों पर आए नए पत्ते एवं फूलों का अद्धभुत सुंदरता से वर्णन किया है , फूलों से फैलने वाली मनमोहक सुगंध का, वृक्षों पर आए नए फलों का , आसमान में उड़ते हुए पक्षियों का , खेत – खलियान में आई हुई फसल का, चारों तरफ से फैली हुई हरियाली से लोगों में आए हुए उल्लास के माध्यम से प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किया है।
हमारे आस-पास भी फागुन मास के समय पेड़ – पौधें नए पत्तों , फल और फूलों से लद जाते हैं। मौसम सुहावना होता है। आकाश साफ – स्वच्छ होता है। इस मौसम में पक्षी भी आसमान में स्वच्छंद विचरण करते हैं और प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेते हैं। बाग – बगीचों और पक्षियों में उल्लास भर जाता हैं। लोगों में खुशी का माहौल होता है।
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Chapter -5 Yah Danturit Muskan Aur Fasal
प्रश्न 1 – ‘फसल’ कविता में कवि ने फसल के बारे में क्या कहा है? फसल उपजाने में अपेक्षित तत्त्वों का उल्लेख कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – कवि के अनुसार नदियों के पानी का जादू फसल के रूप दिखाई देता हैं क्योंकि बिना पानी के फसल का उगना नामुकिन हैं। करोड़ों किसानों की दिन – रात की मेहनत का नतीजा फसल के रूप में मिलता हैं। किसान की मेहनत के साथ – साथ पानी , मिट्टी का गुणवत्तापूरक , अलग – अलग तरह की मिट्टी में अलग- अलग तरह के पोषक तत्व , पौधों को बढ़ने के लिए सूरज की किरणें व कार्बन डाइऑक्साइड गैस आदि की आवश्यकता होती है। करोड़ों किसानों की दिन- रात की मेहनत , नदियों के पानी का जादू , भूरी , काली व खुशबूदार मिट्टी यानि अलग – अलग प्रकार की मिट्टी के पोषक तत्व और सूरज की किरणें भी अपना रूप बदल कर इन फसलों के अंदर समाहित रहती हैं। ये सभी फसल उगाने के लिए बहुत आवश्यक हैं।
प्रश्न 2 – ‘फसल’ का सृजन कब संभव है? पठित कविता के आधार लिखिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – एक नहीं दो नहीं बल्कि लाखों-करोड़ों हाथों के अथक परिश्रम का परिणाम से एक अच्छी फसल तैयार होती है। अर्थात हजारों खेतों पर दुनिया भर के लाखों-करोड़ों किसान दिन रात मेहनत करते हैं। अपनी फसल की देखभाल करते हैं। उसको समय-समय पर खाद, पानी और जरूरी पोषक तत्व देते हैं। तब जाकर कहीं फसल खेतों पर लहलहा उठती है। अच्छी फसल उगाने के लिए खेतों की मिट्टी अच्छी होनी चाहिए। इसीलिए एक या दो नहीं बल्कि हजारों खेतों की उपजाऊ मिट्टी के पोषक तत्व भी इन फसलों के अंदर छुपे हुए हैं।
प्रश्न 3 – “बच्चे के निकट आने और उसका स्नेह पाने के लिए सान्निध्य आवश्यक है।” का भाव “यह दंतुरित मुसकान” कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – “यह दंतुरित मुस्कान” कविता के अनुसार, बच्चे के निकट आने और उसका स्नेह पाने के लिए सान्निध्य आवश्यक है। एक बच्चे की मुस्कान को देखकर , हम अपने सब दुःख भूल जाते हैं और हमारा अंतर्मन प्रसन्न हो जाता है। कवि काफी लम्बे समय के बाद अपने घर लौटता है और उनकी मुलाकात उनके 6 से 8 महीने के बच्चे से पहली बार होती है। बच्चा बहुत छोटा होने के कारण अपने पिता से लम्बे समय तक दूर रहने के कारण पहचान नहीं पता है। वह अपलक देखता हुआ पिता को पहचानने की कोशिश करता है। जबकि माँ के सानिध्य में रहकर वह माँ के करीब रहता है। इसी कारण कविता में कहा गया है कि बच्चे के निकट आने और उसका स्नेह पाने के लिए सान्निध्य आवश्यक है।
प्रश्न 4 – फसल को ढेर सारी नदियों के पानी का जादू क्यों कहा गया है? कविता के आधार पर लिखिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – एक या दो नहीं बल्कि अनेक नदियों का पानी अपना जादुई असर दिखाता है, तब जाकर फसल पैदा होती हैं। एक नहीं दो नहीं बल्कि लाखों-करोड़ों हाथों के अथक परिश्रम का परिणाम से एक अच्छी फसल तैयार होती है। अर्थात हजारों खेतों पर दुनिया भर के लाखों-करोड़ों किसान दिन रात मेहनत करते हैं। अपनी फसल की देखभाल करते हैं। उसको समय-समय पर खाद, पानी और जरूरी पोषक तत्व देते हैं। तब जाकर कहीं फसल खेतों पर लहलहा उठती है। अच्छी फसल उगाने के लिए खेतों की मिट्टी अच्छी होनी चाहिए। इसीलिए एक या दो नहीं बल्कि हजारों खेतों की उपजाऊ मिट्टी के पोषक तत्व भी इन फसलों के अंदर छुपे हुए हैं। क्योंकि मिट्टी की विशेषताएं भी फसलों की गुणवत्ता को प्रभावित करती है।
प्रश्न 5 – ‘फसल’ कविता सामूहिक कार्य का अच्छा उदाहरण है – इस कथन पर टिप्पणी लिखिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – फसल कविता में फसल के बढ़ने को सामूहिक कार्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कविता में फसल को न केवल एक व्यक्ति के प्रयास बल्कि कई तत्वों के सहयोग से उगते हुए दिखाकर सामूहिक कार्य का अच्छा उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। जैसे –
- फसल को जीवन देने में एक नहीं बल्कि कई नदियों के जल का योगदान होता है।
- एक नहीं बल्कि हज़ारों किसानों की मेहनत और उसकी देखभाल से फसल की गुणवत्ता बढ़ती है।
- अच्छी मिट्टी में मौजूद न जाने कितने खनिज भी फसल के अच्छे विकास में सहायक होते है।
- प्राकृतिक तत्व जैसे सूरज की किरणें और हवा की थिरकन भी फसल के विकास में भूमिका निभाते हैं।
इस प्रकार, फसल कविता में दिखाया गया है कि फसल का उत्पादन कई अलग-अलग तत्वों के सहयोग से संभव होता है, जो सामूहिक प्रयास का एक अच्छा उदाहरण है।
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Chapter -6 Sangatkar
प्रश्न 1 – संगतकार की आवाज़ में हिचक की अनुभूति कब होती है? ‘संगतकार’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – जब भी संगतकार मुख्य गायक के स्वर में अपना स्वर मिलता है यानि उसके साथ गाना गाता है तो उसकी आवाज में एक संकोच साफ सुनाई देता है। और उसकी हमेशा यही कोशिश रहती है कि उसकी आवाज मुख्य गायक की आवाज से धीमी रहे। अर्थात उसका स्वर भूल कर भी मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा न हो जाए इसका ध्यान वह बहुत अच्छे से रखता है।
प्रश्न 2 – ‘संगतकार’ कविता में ‘आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ’ – किस संदर्भ में कहा गया है? कारण सहित स्पष्ट कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – ‘संगतकार’ कविता में ‘आवाज़ से राख जैसा कुछ गिरता हुआ’ कहने का तात्पर्य यह है कि जब कभी मुख्य गायक संगीत शास्त्र से संबंधित विधा का प्रयोग करके ऊंचे स्वर में गाता है तो उसका गला बैठने लगता है। उससे सुर सँभलते नहीं हैं। तब गायक को ऐसा लगने लगता है जैसे कि अब उससे आगे गाया नहीं जाएगा। उसके भीतर निराशा छाने लगती है। उसका मनोबल खत्म होने लगता है। उसकी आवाज कांपने लगती हैं जिससे उसके मन की निराशा व हताशा प्रकट होने लगती है।
प्रश्न 3 – संगतकार मुख्य गायक का साथ कब और क्यों देता है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – कभी – कभी मुख्य गायक अपने द्वारा गायी गई पंक्तियों को दोहराना नहीं चाहता जिस वजह से वह अपनी लय से भटकने लगता है , तभी मुख्य गायक का साथ देने संगतकार आ जाता है और मुख्य गायक को हौसला देता है कि जब – जब भी वह डगमगाएगा उसका साथ देने के लिए वह हमेशा उसके साथ है और जो पंक्तियाँ मुख्य गायक गा चूका है उन पंक्तियों को भी दोहराया जा सकता है।
प्रश्न 4 – ‘संगतकार’ कविता के संदर्भ में लिखिए कि संगतकार कौन होता है? उसके द्वारा किस प्राचीन परंपरा का निर्वाह किया जाता है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – किसी भी गीत को बनाते वक्त मुख्य गायक के साथ – साथ अनेक लोग जैसे संगीतकार , गीतकार , अनेक वाद्य यंत्र वादक अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संगतकार भी उन्हीं में से एक है जो मुख्य गायक के सुर में अपना सुर मिलाकर गाने को प्रभावशाली बनाने में मदद करता है। संगतकार प्राचीन संगीत परम्परा का निर्वाह करता है और जब कभी मुख्य गायक अपनी सुर साधना में खो कर कही भटक जाता हैं और गीत के मुख्य सुरों को भूल जाता हैं तो उस समय यही संगतकार दुबारा मुख्य सुरों को पकड़ने में उसकी मदद करता हैं।
प्रश्न 5 – संगतकार द्वारा अपनी आवाज़ को ऊँचा न उठाने की कोशिश उसकी नाकामयाबी क्यों नहीं है? ‘संगतकार’ कविता के संदर्भ में लिखिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – जब भी संगतकार मुख्य गायक के स्वर में अपना स्वर मिलता है यानि उसके साथ गाना गाता है तो उसकी आवाज में एक संकोच साफ सुनाई देता है। उसका स्वर भूल कर भी मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा न हो जाए इसका ध्यान वह बहुत अच्छे से रखता है। लेकिन हमें इसे संगतकार की कमजोरी या असफलता नही माननी चाहिए क्योंकि वह मुख्य गायक के प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए ऐसा करता है। कहने का तात्पर्य यह है कि अपना स्वर ऊँचा कर वह मुख्य गायक के सम्मान को ठेस नही पहुँचाना चाहता है। संगतकार जान – बूझकर अपने स्वर को मुख्य गायक के स्वर से ऊँचा नहीं होने देते हैं। यह संगतकार द्वारा अपनी प्रतिभा का त्याग है जो योग्यता और सामर्थ्य होने पर भी मुख्य गायक की सफलता में बाधक नहीं बनता है और मानवता का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करता है।
प्रश्न 6 – संगतकार गायक को कब और कैसे यह अहसास दिलाता है कि वह अकेला नहीं है? स्पष्ट कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – कभी – कभी संगतकार मुख्य गायक को यह बताने के लिए भी उसके स्वर में अपना स्वर मिलाता है कि वह अकेला नहीं है। कोई है जो उसका साथ हर वक्त देता है। कभी – कभी मुख्य गायक अपने द्वारा गायी गई पंक्तियों को दोहराना नहीं चाहता जिस वजह से वह अपनी लय से भटकने लगता है , तभी मुख्य गायक का साथ देने संगतकार आ जाता है और मुख्य गायक को हौसला देता है कि जब – जब भी वह डगमगाएगा उसका साथ देने के लिए वह हमेशा उसके साथ है और जो पंक्तियाँ मुख्य गायक गा चूका है उन पंक्तियों को भी दोहराया जा सकता है।
प्रश्न 7 – ‘मुख्य गायक-गायिकाओं की सफलता उनके संगतकारों पर निर्भर करती है।’ स्पष्ट कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – ‘मुख्य गायक-गायिकाओं की सफलता उनके संगतकारों पर निर्भर करती है’ इसका तात्पर्य यह है कि मुख्य गायक या गायिका के सफल प्रदर्शन में उनके साथ उनका सहयोग करने वाले कलाकारों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। संगतकार संगीत की लय और ताल को बेहतर बनाने में मुख्य गायक-गायिकाओं की सहायता करते हैं, जिससे मुख्य गायक-गायिकाओं की प्रस्तुति और अधिक प्रभावशाली होती है। गायक-गायिकाओं के लय से भटकने पर भी संगतकार उन्हें वापिस लय में लाने में मदद करते हैं।
प्रश्न 8 – संगतकार की भूमिका पर कविता के संदर्भ में अपने विचार लिखिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – संगतकार कविता में कवि कहते हैं कि किसी भी गीत को बनाते वक्त मुख्य गायक के साथ – साथ अनेक लोग जैसे संगीतकार , गीतकार , अनेक वाद्य यंत्र वादक अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संगतकार भी उन्हीं में से एक है जो मुख्य गायक के सुर में अपना सुर मिलाकर गाने को प्रभावशाली बनाने में मदद करता है। और जब कभी मुख्य गायक अपनी सुर साधना में खो कर कही भटक जाता हैं और गीत के मुख्य सुरों को भूल जाता हैं तो उस समय यही संगतकार दुबारा मुख्य सुरों को पकड़ने में उसकी मदद करता हैं। यानि गाना गाते वक्त मुख्य गायक के साथ – साथ संगतकार की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है।
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Chapter -7 Netaji ka Chashma
प्रश्न 1 – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के संदर्भ में लिखिए कि पान वाले ने कैप्टन को ‘पागल’ क्यों कहा? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – कैप्टन फेरी लगाकर चश्मे बेचने वाला एक मरियल और लँगड़ा-सा व्यक्ति था, जो हाथ में संदूकची और एक बाँस में चश्मे के फ्रेम टाँगे घूमा करता था। कैप्टन देशभक्त तथा शहीदों के प्रति आदरभाव रखने वाला व्यक्ति था। वह नेताजी की चश्माविहीन मूर्ति देखकर दुखी होता था। वह मूर्ति पर चश्मा लगा देता था पर किसी ग्राहक द्वारा वैसा ही चश्मा माँगे जाने पर उतारकर उसे दे देता था और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा दिया करता था। उसकी इसी हरकत को देखकर पानवाला उसे पागल कहता था।
प्रश्न 2 – वैसे तो पान वाला कैप्टन का मज़ाक बनाता था परंतु हालदार साहब को उसकी मृत्यु की बात बताते हुए वह उदास क्यों हो गया? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – पानवाला हमेशा ही कैप्टन चश्मेवाले का मज़ाक उड़ाया करता था, जिससे ऐसा लगता था, कि जैसे उसके अंदर न तो देशभक्ति का भाव नहीं है और न ही किसी व्यक्ति के प्रति हमदर्दी। पर जब कैप्टन मर जाता है तब उसके देशप्रेम की झलक मिलती है। वह कैप्टन जैसे देशभक्त व्यक्ति की मृत्यु से दुखी होकर हालदार को जब उसकी मृत्यु की सूचना देता है तो उसकी आँखें भर आती हैं।
प्रश्न 3 – पार्कों में, सड़कों के किनारे, चौराहों पर उपेक्षित पड़ी मूर्तियाँ अक्सर देखी जा सकती हैं। ऐसी मूर्तियों के रख-रखाव का उत्तरदायित्व किसका है? ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के संदर्भ में उदाहरण सहित लिखिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – पार्कों में, सड़कों के किनारे, चौराहों पर उपेक्षित पड़ी मूर्तियाँ अक्सर देखी जा सकती हैं। ऐसी मूर्तियों के रख-रखाव का उत्तरदायित्व हम सभी नागरिकों का है। प्रसिद्ध व्यक्तियों की मूर्ति प्रायः कस्बों, चौराहों, महानगरों या शहरों में लगाई जाती हैं। ऐसी मूर्तियाँ लगाने का उद्देश्य सजावटी न होकर उद्देश्यपूर्ण होता है। पार्कों में, सड़कों के किनारे, चौराहों पर लगी समाज सेवी या अन्य उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्ति की प्रतिमा के प्रति हमारा तथा अन्य लोगों का उत्तरदायित्व बनता है कि हम उसकी साफ़-सफ़ाई करवाएँ और मूर्ति के प्रति सम्मान का भाव बनाए रखें। जैसे नेताजी का चश्मा’ पाठ में कैप्टन नेताजी की मूर्ति का आदर करता है।
प्रश्न 4 – हम कैसे कह सकते हैं कि पानवाला कैप्टन का मित्र था? ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के आधार पर लिखिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – हम यह कह सकते हैं कि पानवाला कैप्टन का मित्र था क्योंकि उसने ही हालदार साहब को कैप्टन की देशभक्ति और नेता जी की मूर्ति के प्रति उसके व्यवहार के बारे में बताया। पानवाले ने भले ही मज़ाकिया अंदाज में बताया था कि कैप्टन चश्मेवाला नेताजी की मूर्ति पर चश्मा बदलता था परन्तु जब कैप्टन की मृत्यु हो गई, तो पानवाले ने उदासी के साथ यह खबर हालदार साहब को दी थी। इस प्रकार हम पानवाले की बातें और व्यवहार से कह सकते है कि वह कैप्टन के प्रति स्नेह और सम्मान रखता था और उसका मित्र था।
प्रश्न 5 – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में कैप्टन नेताजी की मूर्ति पर अनजाने में चश्मा लगाकर और उसके जाने के बाद बच्चे उस पर चश्मा लगाकर अपनी देशभक्ति को प्रगट करते हैं। आप अपनी देशभक्ति को किन-किन कार्यों/व्यवहार के माध्यम से प्रकट करते हैं? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में कैप्टन नेताजी की मूर्ति पर अनजाने में चश्मा लगाकर और उसके जाने के बाद बच्चे उस पर चश्मा लगाकर अपनी देशभक्ति को प्रगट करते हैं। जिस प्रकार सीमा पर तैनात फ़ौजी देशप्रेम का परिचय देते हैं। हम लोग भी विभिन्न कार्यों के माध्यम से देश प्रेम को प्रकट कर सकते हैं। हम सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने से बच सकते हैं, प्रदूषण को रोकने में योगदान कर सकते हैं, वृक्ष लगाकर लोगों को जागरूक कर सकते हैं, अपने आस-पास की सफ़ाई रखकर – कूड़ा इधरउधर न फेंककर , पानी के स्रोतों व् भूमि को दूषित होने से बचा सकते हैं, जल की समस्या को दूर करने के उपाय कर सकते हैं, शहीदों एवं देशभक्तों के प्रति सम्मान रखकर आने वाली पीढ़ी को उनके बारे में बता सकते हैं इत्यादि।
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Chapter -8 Balgobin Bhagat
प्रश्न 1 – “बालगोबिन भगत के स्वरों में एक विशेष प्रकार का आकर्षण था।” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – बालगोबिन भगत सुमधुर कंठ से इस तरह गाते थे कि कबीर के सीधे – सादे पद भी उनके मुँह से निकलकर सजीव हो उठते थे। उनके गीत सुनकर बच्चे झूम उठते थे , स्त्रियों के होंठ गुनगुनाने लगते थे और काम करने वालों के कदम लय – ताल से उठने लगते थे। इसके अलावा भादों की अर्धरात्रि में उनका गान सुनकर उसी तरह चौंक उठते थे , जैसे अँधेरी रात में बिजली चमकने से लोग चौंक कर सजग हो जाते हैं।
प्रश्न 2 – गंगा-स्नान के लिए आने-जाने के दौरान चार-पाँच दिनों तक बालगोबिन भगत उपवास क्यों रखते थे? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – बालगोबिन भगत प्रति वर्ष अपने घर से तीस कोस दूर गंगा स्नान को जाते थे। इस यात्रा में चार-पाँच दिन लग जाते थे। भगत इतने स्वाभिमानी थे कि पैदल आते-जाते किंतु किसी का सहारा न लेते। वे मानते थे कि साधु को संबल लेने का के या हक। इसी प्रकार वे रास्ते में उपवास कर लेते पर किसी से माँगकर न खाते क्योंकि वे कहते थे कि गृहस्थ किसी से भिक्षा क्यों माँगे। इस प्रकार उन्होंने साधु और गृहस्थ होने के स्वाभिमान को बनाए रखा।
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Chapter-9 Lakhnavi Andaz
प्रश्न 1 – ‘लखनवी अंदाज’ पाठ के लेखक को ऐसा क्यों लगा कि उनकी उपस्थिति ने नवाब साहब को असहज कर दिया? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – लेखक सोचने लगे कि हो सकता है कि , नवाब साहब ने बिलकुल अकेले यात्रा करने के अंदाजे से और बचत करने के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीद लिया होगा और नवाब लोग हमेशा प्रथम दर्ज़े में ही सफर करते थे और उन नवाब साहब को लेखक ने दूसरे दर्ज़े में सफ़र करते देख लिया था तो लेखक के अनुसार हो सकता है कि इस कारण उनको हिचकिचाहट हो रही हो। या फिर हो सकता है कि अकेले सफर में वक्त काटने के लिए ही उन नवाब साहब ने खीरे खरीदे होंगे और अब किसी सफेद कपड़े पहने हुए व्यक्ति अर्थात लेखक के सामने खीरा कैसे खाएँ , यह सोच कर ही शायद उन्हें परेशानी हो रही हो ?
प्रश्न 2 – ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ का लेखक, डिब्बे में नवाब साहब की उपस्थिति से असहज क्यों हो गया? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – लेखक, डिब्बे में नवाब साहब की उपस्थिति से असहज हो गया क्योंकि लेखक ने अंदाज़ा लगाया था कि लोकल ट्रेन का वह सेकंड क्लास का छोटा डिब्बा खाली होगा परन्तु लेखक के अंदाज़े के विपरीत वह डिब्बा खाली नहीं था। उस डिब्बे के एक बर्थ पर लखनऊ के नवाबी परिवार से सम्बन्ध रखने वाले एक सफेद कपड़े पहने हुए सज्जन व्यक्ति बहुत सुविधा से पालथी मार कर बैठे हुए थे।
प्रश्न 3 – ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ में लेखक किन विशेष कारणों से सेकेंड क्लास में यात्रा करने का निर्णय लेता है? क्या वह अपने उद्देश्य में सफल हो पाता है? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – लेखक ने टिकट सेकंड क्लास का ले लिया ताकि वे अपनी नयी कहानी के संबंध में सोच सके और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य का नज़ारा भी ले सकें , इसलिए भीड़ से बचकर , शोरगुल से रहित ऐसा स्थान जहाँ कोई न हो। लेखक ने अंदाज़ा लगाया था कि लोकल ट्रेन का वह सेकंड क्लास का छोटा डिब्बा खाली होगा परन्तु लेखक के अंदाज़े के विपरीत वह डिब्बा खाली नहीं था। उस डिब्बे के एक बर्थ पर लखनऊ के नवाबी परिवार से सम्बन्ध रखने वाले एक सफेद कपड़े पहने हुए सज्जन व्यक्ति बहुत सुविधा से पालथी मार कर बैठे हुए थे।
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Chapter -10 Ek Kahani Yeh Bhi
प्रश्न 1 – ‘एक कहानी यह भी’ की लेखिका के जीवन से आपको क्या प्रेरणा मिलती है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – लेखिका के जीवन से हमें कठिनाइयों के बावजूद आत्मनिर्भरता, शिक्षा की महत्ता, और सामाजिक बदलाव के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा मिलती है। उन्होंने अपनी आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों को पार करके खुद को स्थापित किया और अपने परिवार की जटिलताओं से सीख लेकर आगे बढ़ी।
प्रश्न 2 – ‘एक कहानी यह भी’ पाठ की लेखिका मन्नू भंडारी के अपने क्षेत्र में सफलता की ऊँचाइयों को छूने के बावजूद हीन-भाव से न उबर पाने का क्या कारण था? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – आज भी जब कोई लेखिका का परिचय करवाते समय जब कुछ विशेषता लगाकर लेखिका की लेखक संबंधी महत्वपूर्ण सफलताओं का ज़िक्र करने लगता है तो लेखिका झिझक और हिचकिचाहट से सिमट ही नहीं जाती बल्कि गड़ने – गड़ने को हो जाती हैं। अर्थात लेखिका अपनी सफलताओं का जिक्र सुनते समय झिझक जाती हैं। इसका कारण बताते हुए लेखिका कहती हैं कि शायद अचेतन मन में किसी पर्त के नीचे अब भी कोई हीन – भावना दबी हुई है जिसके चलते लेखिका को अपनी किसी भी उपलब्धि पर भरोसा नहीं हो पता है। सब कुछ लेखिका को ऐसा लगता है जैसे सब कुछ लेखिका को किस्मत मिल गया है।
प्रश्न 3 – ‘एक कहानी यह भी’ से लिया गया ‘निहायत असहाय मज़बूरी में लिपटा उनका यह त्याग कभी मेरा आदर्श नहीं बन सका।’ – यह कथन किसके लिए कहा गया है और क्यों? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – ‘एक कहानी यह भी’ से लिया गया ‘निहायत असहाय मज़बूरी में लिपटा उनका यह त्याग कभी मेरा आदर्श नहीं बन सका।’ – यह कथन लेखिका ने अपनी माँ के लिए कहा क्योंकि लेखिका की माँ ने अपनी पूरी ज़िदगी में अपने लिए कभी कुछ नहीं माँगा , कुछ नहीं चाहा केवल सबको दिया ही दिया। अर्थात लेखिका की माँ हमेशा सबकी इच्छाओं को पूरा करने में लगी रहती थी कभी अपनी इच्छाओं पर ध्यान नहीं देती थी। भले ही लेखिका और उनके भाई – बहिनों का सारा लगाव उनकी माँ के साथ था लेकिन बहुत अधिक मजबूर और निराश्रय अर्थात मजबूरी में लिपटा उनका त्याग कभी लेखिका के लिए आदर्श नहीं बन सका। कहने का तात्पर्य यह है कि उनका त्याग , उनकी सहनशीलता और क्षमाशीलता लेखिका अपने व्यवहार में शामिल नहीं कर सकीं।
प्रश्न 4 – ‘एक कहानी यह भी’ पाठ में ‘धरती से कुछ ज्यादा ही धैर्य और सहनशक्ति थी शायद उनमें’ – यह कथन किसके लिए कहा गया है और क्यों? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – अपनी माँ के धैर्य , शांति और सब्र की तुलना लेखिका धरती से करती हैं और धरती को सबसे ज्यादा सहनशील माना जाता है और लेखिका की माँ में भी सहनशक्ति बहुत ज्यादा थी। लेखिका की माँ उनके पिता जी के हर अत्याचार और कठोर व्यवहार को इस तरह स्वीकार करती थी जैसे वे उनके इस तरह के व्यवहार को प्राप्त करने के योग्य हो और लेखिका की माँ अपने बच्चों की हर फ़रमाइश और ज़िद को चाहे वो फ़रमाइश सही हो या नहीं , अपना फर्ज समझकर बडे़ सरल और साधारण भाव से स्वीकार करती थीं। लेखिका की माँ ने अपनी पूरी ज़िदगी में अपने लिए कभी कुछ नहीं माँगा , कुछ नहीं चाहा केवल सबको दिया ही दिया। उनका त्याग , उनकी सहनशीलता और क्षमाशीलता लेखिका अपने व्यवहार में शामिल नहीं कर सकीं।
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Chapter-11 Naubatkhane Mein Ibadat
प्रश्न 1 – बिस्मिल्ला खाँ का जीवन वर्तमान और भावी पीढ़ी को क्या संदेश देता है?(लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म अर्थात् मुस्लिम धर्म के प्रति समर्पित इंसान थे। वे नमाज़ पढ़ते , सिजदा करते और खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगते थे। इसके अलावा वे हज़रत इमाम हुसैन की शहादत पर दस दिनों तक शोक प्रकट करते थे तथा आठ किलोमीटर पैदल चलते हुए रोते हुए नौहा बजाया करते थे। इसी तरह वे काशी में रहते हुए गंगामैया , बालाजी और बाबा विश्वनाथ के प्रति असीम आस्था रखते थे। वे हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित शास्त्रीय गायन में भी उपस्थित रहते थे। इन प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली – जुली संस्कृति के प्रतीक थे। बिस्मिल्ला खाँ के जीवन से वर्तमान और भावी पीढ़ी को यही सीख लेने की आवश्यकता है।
प्रश्न 2 – ‘शहनाई’ क्या है? भारतीय संगीत में इसका क्या महत्त्व है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – संगीत शास्त्रों के अनुसार ‘ सुषिर – वाद्यों ’ अर्थात संगीत में वह यंत्र जो वायु के जोर से बजता है , शहनाई को भी इसमें गिना जाता है। शहनाई, बाँसुरी, श्रृंगी आदि सुषिर वाद्य के अंतर्गत आते हैं। अरब देश में फूँककर बजाए जाने वाले वाद्य जिसमें नाड़ी अर्थात नरकट या रीड होती है , को ‘ नय ’ बोलते हैं और शहनाई को ‘ शाहेनय ’ अर्थात् ‘ सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि् दी गई है। शहनाई सबसे सुरीली और कर्ण प्रिय आवाज वाली होती है , इसलिए उसे ‘ सुषिर वाद्यों में शाह की उपाधि दी गई।
प्रश्न 3 – ‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ में काशी के प्राचीन और पारंपरिक संगीत का विवरण प्रस्तुत कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – काशी में हज़ारों सालों का इतिहास है जिसमें पंडित कंठे महाराज हैं , विद्याधरी हैं , बड़े रामदास जी हैं , मौजुद्दीन खाँ हैं व इन सब के जिनके हृदय में सौंदर्य – प्रेम – भक्ति – कला आदि के प्रति अनुराग है , उनसे कृतज्ञ अथवा अहसानमंद होने वाला अनगिनत जन – समूह है। यह एक अलग काशी है जिसका अपना अलग शिष्टाचार है , अपनी बोली और अपने विशेष व् प्रसिद्ध लोग हैं। इनके अपने उत्सव हैं , अपना गम है। अपना सेहरा – बन्ना और अपना नौहा।
प्रश्न 4 – ‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ में काशी को संस्कृति की पाठशाला क्यों कहा गया है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – लेखक कहते हैं कि काशी संस्कृति की पाठशाला है। शास्त्रों में काशी आनंदकानन के नाम से सम्मानित है। काशी में कलाधर हनुमान व नृत्य – विश्वनाथ हैं। काशी में बिस्मिल्ला खाँ हैं। आप काशी में संगीत को भक्ति से , भक्ति को किसी भी धर्म के कलाकार से , कजरी को चैती से , विश्वनाथ को विशालाक्षी से , बिस्मिल्ला खाँ को गंगाद्वार से अलग करके नहीं देख सकते। कहने का अभिप्राय यह है कि काशी हर तरह से अलग है , काशी की अपनी ही अलग पहचान है जिसको आप बदल कर नहीं देख सकते क्योंकि काशी की हर एक चीज़ किसी न किसी से जुड़ी हुई है।
प्रश्न 5 – बिस्मिल्ला खाँ के जीवन में रसूलनबाई और बतूलनबाई का क्या महत्त्व है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर से भी हमेशा कोई न कोई संगीत सुनाई पड़ता रहता था और रसूलन और बतूलन जब गाती थी तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती थी। एक प्रकार से यह कहा जा सकता है कि उनकी कच्ची या कम उम्र में जो प्रत्यक्ष ज्ञान या तज़ुर्बा या एक्सपीरिएंस की स्लेट पर संगीत प्रेरणा की वर्णमाला रसूलनबाई और बतूलनबाई ने ही नक्काशी करके बनाई थी। कहने का तात्पर्य यह है कि अमीरुद्दीन अथवा बिस्मिल्ला खाँ के अनुसार रसूलनबाई और बतूलनबाई के द्वारा ही उन्हें संगीत का आरंभिक ज्ञान प्राप्त हुआ है।
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Chapter -12 Sanskriti
प्रश्न 1 – संस्कृति और सभ्यता अलग-अलग कैसे हैं? पठित पाठ ‘संस्कृति’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – जिस योग्यता , क्षमता या बुद्धिमानी से , अथवा जिस स्वभाव , आदत या आचार – व्यवहार के कारण अथवा जिस प्रेरणा या उमंग के बल पर आग का व सुई – धागे का आविष्कार हुआ है , वह किसी व्यक्ति विशेष की संस्कृति कही जाती है ; और उस संस्कृति द्वारा जो आविष्कार हुआ , अथवा जो चीज़ उस व्यक्ति ने अपने तथा दूसरों के लिए आविष्कृत की है , उसका नाम है सभ्यता। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी व्यक्ति की योग्यता , स्वभाव या आचार – व्यवहार को उसकी संस्कृति कहा जाता है और उस योग्यता , स्वभाव अथवा आचार – व्यवहार के द्वारा जो सर्व कल्याण को ध्यान में रखते हुए आविष्कार किया जाता है वह सभ्यता कहा जाता है।
प्रश्न 2 – सुसंस्कृत व्यक्ति किसे कहा जा सकता है? ‘संस्कृति’ पाठ के आधार पर लिखिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण अर्थात ग्रैविटेशन के सिद्धांत अथवा प्रिंसिपल का आविष्कार किया। इसलिए वह संस्कृत मानव था। आज के युग का प्राकृतिक नियमों के सिद्धांतों के विज्ञान का विद्यार्थी न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण को तो भली-भाँती समझता है ही, उसके साथ उसे और भी अनेक बातों का ज्ञान प्राप्त है जिनसे शायद न्यूटन अपरिचित ही रहा। अर्थात आज के विद्यार्थी को भले ही गुर्त्वाकर्षण के साथ – साथ कई सिद्धांत और बातें पता हों लेकिन ऐसा होने पर भी हम आज के भौतिक विज्ञान के विद्यार्थी को न्यूटन की अपेक्षा अधिक सभ्य भले ही कह सकते है पर न्यूटन जितना संस्कृत नहीं कह सकते। क्योंकि न्यूटन ने अपनी योग्यता , स्वभाव या आचार – व्यवहार का इस्तेमाल करके नए तथ्य का आविष्कार किया जबकि आज के विद्यार्थियों को ये आविष्कार बिना किसी कोशिश के ही प्राप्त हुए हैं।
प्रश्न 3 – ‘संस्कृति’ पाठ के आधार पर सभ्यता और संस्कृति के बीच के अंतर को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – जिस योग्यता , क्षमता या बुद्धिमानी से , अथवा जिस स्वभाव , आदत या आचार – व्यवहार के कारण अथवा जिस प्रेरणा या उमंग के बल पर आग का व सुई – धागे का आविष्कार हुआ है , वह किसी व्यक्ति विशेष की संस्कृति कही जाती है ; और उस संस्कृति द्वारा जो आविष्कार हुआ , अथवा जो चीज़ उस व्यक्ति ने अपने तथा दूसरों के लिए आविष्कृत की है , उसका नाम है सभ्यता। कहने का तात्पर्य यह है कि किसी व्यक्ति की योग्यता , स्वभाव या आचार – व्यवहार को उसकी संस्कृति कहा जाता है और उस योग्यता , स्वभाव अथवा आचार – व्यवहार के द्वारा जो सर्व कल्याण को ध्यान में रखते हुए आविष्कार किया जाता है वह सभ्यता कहा जाता है।
प्रश्न 4 – क्या संस्कृति के समान असंस्कृति भी होती है? स्पष्ट कीजिए। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – जिन साधनों का निर्माण व्यक्ति ने विनाश के लिए कर लिया है तथा जिनसे वह विनाश भी कर रहा है वह उसकी संस्कृति है या असंस्कृति और उसकी सभ्यता है या असभ्यता। संस्कृति का यदि कल्याण की भावना से नाता टूट जाएगा तो वह असंस्कृति होकर ही रहेगी और ऐसी संस्कृति का अवश्यंभावी अर्थात जिसके होने की पूरी संभावना हो ऐसा परिणाम असभ्यता के अतिरिक्त दूसरा क्या होगा ? कहने का अभिप्राय यह है कि यदि कल्याण भावना से कोई आविष्कार किया गया है तो वह संस्कृति है परन्तु यदि कल्याण की भावना निहित नहीं है तो वह असंस्कृति ही होगी।
प्रश्न 5 – कौसल्यायन जी ने ‘संस्कृति’ किसे कहा है? (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – हमारी समझ में मानव संस्कृति की जो योग्यता आग व सुई – धागे का आविष्कार कराती है ; वह भी संस्कृति है और जो योग्यता तारों की जानकारी कराती है , वह भी संस्कृति है ; और जो योग्यता किसी महामानव से सब कुछ अर्थात सारी धन – संपत्ति , अमूल्य निधि या पदार्थ का त्याग कराती है , वह भी संस्कृति है। कहने का अभिप्राय यह है कि जो भी योग्यता दूसरों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए कोई आविष्कार करवाती है या किसी नए तथ्य की जानकारी उपलब्ध करवाती है वह संस्कृति है।
प्रश्न 6 – ‘संस्कृति’ पाठ के संदर्भ में लिखिए कि आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराने वाली मानव की योग्यता को संस्कृति कहा जाना चाहिए या असंस्कृति। (लगभग 25-30 शब्दों में)
उत्तर – संस्कृति का कल्याण की भावना से गहरा नाता है। इसे कल्याण से अलग कर के नहीं देखा जा सकता। यह भावना मनुष्य को मानवता हेतु उपयोगी तथ्यों का आविष्कार करने के लिए प्रेरित करती है। ऐसे में कोई व्यक्ति जब अपनी योग्यता का प्रयोग आत्मविनाश के साधनों की खोज करने में करता है और उससे आत्मविनाश करता है तब यह असंस्कृति बन जाती है। ऐसी संस्कृति में जब कल्याण की भावना नहीं होती है तब वह असंस्कृति का रूप ले लेती है।
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Kritika Bhag 2
ch-1 Mata Ka Aanchal
प्रश्न 1 – ‘माता का अँचल’ पाठ में जिस ग्राम्य जीवन और संस्कृति का उल्लेख है, उसमें वर्तमान में क्या अंतर आया है? क्या उस अंतर को आप सकारात्मक मानते हैं? (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – ‘माता का अँचल’ पाठ में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में हमें अनेक तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं –
- तीस के दशक में समूह-संस्कृति, आत्मीय स्नेह और समूह में रहा करते थे।
- आज घर-पड़ोसियों की सीमाएँ सिमट गई हैं। घरों के आगे चबूतरों का बनाया जाना लगभग समाप्त हो गया है।
- आज परिवारों में एकल संस्कृति ने जन्म ले लिया, जिससे बच्चे अब समूह में खेलते हुए दिखाई नहीं देते।
- आज बच्चों के खेलने की सामग्री और खेल बदल चुके हैं। खेल खर्चीले हो गए हैं। जो परिवार खर्च नहीं कर पाते हैं वे बच्चों को हीन-भावना से बचाने के लिए समूह में जाने से रोकते हैं।
- आज की नई संस्कृति बच्चों को धूल-मिट्टी से बचना चाहती है। जिससे आज के बच्चे धूल-मिट्टी से परिचय खोते जा रहे हैं।
- पहले लोग सीधा-साधा बनावट विहीन जीवन जीते थे आज बिलकुल विपरीत हैं।
- तीस के दशक में लोग बीमारियों व् चोटों का घरेलु इलाज करते थे जिससे शरीर रसायनों से बचा रहता था।
- आज के समय में किसानों की संख्या घटती जा रही है जिस कारण लोगों को साधारण चीजों के लिए भी दूसरों पर आश्रित होना पद रहा है।
प्रश्न 2 – भोलानाथ और उसके दोस्तों के खेल आज के बच्चों के खेलों से किस रूप में भिन्न है? आपको दोनों में से कौन से खेल अधिक पसंद हैं और क्यों?(लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री से हमारे खेल और खेल सामग्रियों में बहुत अधिक अंतर आ गया है। भोलानाथ के समय में बच्चे आँगन व् खेत में पड़ी हुई किसी भी वस्तु को उठा कर उसे ही खेल का आधार बना लिया करते थे। वे खेत की मिट्टी, पत्थर, लकड़ी ,पेड़ों के पत्तों व् घर के टूटे-फूटे सामान से ही खेलते व् खुश हो जाते थे। पहले लोगों में भी दूर पड़ोस तक आत्मीय संबंध थे, जिससे बच्चों को दूर तक खेलने की स्वच्छंदता थी। खेल की सामग्रियाँ बच्चे खुद से तैयार करते थे।
परन्तु आज भोलानाथ के समय से बिलकुल भिन्न खेल और खेल सामग्री हैं और सबसे महत्वपूर्ण बच्चों की सुरक्षा हर समय अभिभावकों की चिंता का विषय है। आज खेल सामग्री का निर्माण बच्चे स्वयं नहीं करते बल्कि खिलौनों को बाज़ार से खरीद कर लाते है। बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए खेलने की समय-सीमा भी तय कर दी जाती है। अतः स्वच्छंदता नहीं होती है। अब की पीढ़ी खेलने के लिए वीडियो गेम, क्रिकेट, वॉलीबॉल, फुटबॉल, बैस बॉल जैसी आदि चीजों से खेलते हैं। ऐसा लगता है जैसे आज के बच्चों का धूल-मिट्टी से कोई सम्बन्ध ही नहीं रहा है।
प्रश्न 3 – ‘माता का अँचल’ पाठ में वर्णित बच्चों के खेल अलग थे और वर्तमान काल में अलग हैं। दोनों में भिन्नता का विवरण देते हुए अपने विचार भी लिखिए।(लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री से हमारे खेल और खेल सामग्रियों में बहुत अधिक अंतर आ गया है। भोलानाथ के समय में बच्चे आँगन व् खेत में पड़ी हुई किसी भी वस्तु को उठा कर उसे ही खेल का आधार बना लिया करते थे। वे खेत की मिट्टी, पत्थर, लकड़ी ,पेड़ों के पत्तों व् घर के टूटे-फूटे सामान से ही खेलते व् खुश हो जाते थे। पहले लोगों में भी दूर पड़ोस तक आत्मीय संबंध थे, जिससे बच्चों को दूर तक खेलने की स्वच्छंदता थी। खेल की सामग्रियाँ बच्चे खुद से तैयार करते थे।
परन्तु आज भोलानाथ के समय से बिलकुल भिन्न खेल और खेल सामग्री हैं और सबसे महत्वपूर्ण बच्चों की सुरक्षा हर समय अभिभावकों की चिंता का विषय है। आज खेल सामग्री का निर्माण बच्चे स्वयं नहीं करते बल्कि खिलौनों को बाज़ार से खरीद कर लाते है। बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए खेलने की समय-सीमा भी तय कर दी जाती है। अतः स्वच्छंदता नहीं होती है। अब की पीढ़ी खेलने के लिए वीडियो गेम, क्रिकेट, वॉलीबॉल, फुटबॉल, बैस बॉल जैसी आदि चीजों से खेलते हैं। ऐसा लगता है जैसे आज के बच्चों का धूल-मिट्टी से कोई सम्बन्ध ही नहीं रहा है।
प्रश्न 4 – ‘माता का अँचल’ पाठ में वह कौन-सा प्रसंग है जिसमें भोलानाथ माँ की गोद में छिप जाता है? उस समय माँ की स्थिति, प्रतिक्रिया और मनोभाव का उल्लेख कीजिए। (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – जब भोलानाथ और उनके साथी चूहों के बिल से पानी डालने लगे। तो उस बिल से साँप निकल आया। रोते-चिल्लाते भोलानाथ और उनके साथी बेतहाशा भाग चले! कोई औंध गिरा, कोई अंटाचिट। किसी का सिर फूटा, किसी के दाँत टूटे। सभी गिरते-पड़ते भागे। भोलानाथ का सारा शरीर लहूलुहान हो गया। पैरों के तलवे काँटों से छलनी हो गए। भोलानाथ एक सुर से दौड़े हुए आए और घर में घुस गए। उस समय भोलानाथ के बाबू जी बैठक के बरामदे में बैठकर हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। उन्होंने भोलानाथ को बहुत पुकारा पर उनकी अनसुनी करके भोलानाथ दौड़ते हुए मइयाँ के पास ही चले गए। जाकर उसी की गोद में शरण ली। भोलानाथ को डर से काँपते देखकर लेखक की माँ भी जोर से रो पड़ी और सब काम छोड़ बैठी। भोलानाथ को दर्द में देख वह भी दर्द से सहर गई। झटपट हल्दी पीसकर लेखक के घावों पर थोपी गई। घर में कुहराम मच गया। भोलानाथ केवल धीमे सुर से फ्साँ…स…साँय् कहते हुए मइयाँ के आँचल में लुके चले जाते थे। भोलानाथ के डर से काँपते हुए ओंठों को मइयाँ बार-बार देखकर रोती और बड़े लाड़ से भोलानाथ को गले लगा लेती थी।
प्रश्न 5 – ‘माता का अँचल’ पाठ में तारकेश्वरनाथ की अपने पिता के साथ बचपन में घटित किसी घटना का उल्लेख करते हुए आप स्वयं के बाल्य जीवन के वृत्तांत की किसी घटना का उल्लेख कीजिए। (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – भोलानाथ के पिता सुबह के समय जल्दी उठकर, सुबह का अपना नित्य कर्म कर – नहाकर पूजा करने बैठ जाते थे। भोलानाथ बचपन से ही अपने पिता के साथ ही रहते थे। भोलानाथ के पिता पूजा-पाठ करने के बाद राम-राम लिखने लगते थे। फिर पाँच सौ बार कागज़ के छोटे – छोटे टुकड़ों पर राम – नाम लिखकर आटे की गोलियों में लपेटते और उन गोलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते थे। भोलानाथ उस समय बाबूजी के कंधे पर बैठे रहते थे। जब वह गंगा में एक – एक आटे की गोलियाँ फेंककर मछलियों को खिलाने लगते तब भी भोलानाथ उनके कंधे पर ही बैठे – बैठे हँसा करते थे। जब वह मछलियों को खाना खिलाकर घर की ओर लौटने लगते तब बीच रास्ते में झुके हुए पेड़ों की डालों पर लेखक को बिठाकर झूला झुलाते थे।
पिता जी के साथ बचपन में जब मेले देखने जाया करते थे तो अधिक भीड़ होने के कारण पिता जी हमें अपने कंधे पर बैठा कर पूरा मेला घुमाते थे।
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Chapter -2 Saana Saana Hath Jodi
प्रश्न 1 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ में लेखिका को कब और क्यों लगा कि तमाम भौगोलिक विविधता और वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद भारत की आत्मा एक ही है? (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका ने उसके बारे में पूछा तो पता चला कि यह धर्म-चक्र है। इसे प्रेयर व्हील भी कहा जाता है। इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। लेखिका को यह सुन कर एक बात समझ में आई कि चाहे मैदान हो या पहाड़, सभी वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद इस देश की आत्मा एक जैसी। लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की अवधारणाएँ और कल्पनाएँ एक जैसी ही हैं।
प्रश्न 2 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ में आई पंक्ति – ‘इन पत्थरों को तोड़ती पहाड़िनों के हाथों में पड़े ठाठे, एक ही कहानी कह रहे थे’ – के माध्यम से लेखिका क्या कहना चाहती है? उन श्रम-सुंदरियों के जीवन के बारे में अपने विचार भी लिखिए। (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – किसी भी देश की आमजनता देश की आर्थिक प्रगति में बहुत अधिक अप्रत्यक्ष योगदान देती है। अप्रत्यक्ष इसलिए क्योंकि आम जनता जितना अधिक परिश्रम करती है उन्हें उसका आधा पारिश्रमिक भी नहीं दिया जाता। परन्तु फिर भी वे कठिन से कठिन काम को अपना कर्तव्य समझ कर पूरा व् निष्ठा से करते हैं। आम जनता के इस वर्ग में मज़दूर, ड्राइवर, बोझ उठाने वाले, फेरीवाले, कृषि कार्यों से जुड़े लोग इत्यादि आते हैं। उदाहरण के तौर पर अपनी यूमथांग की यात्रा में लेखिका ने देखा कि पहाड़ी मजदूर औरतें पत्थर तोड़कर पर्यटकों के आवागमन के लिए रास्ते बना रही हैं। इससे यहाँ पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी जिसका सीधा-सा असर देश की प्रगति पर पड़ेगा। इस रास्ते को बनाने के कार्य में कई मजदूर अपनी जान भी गवा देते हैं। इसी प्रकार प्रत्येक कार्यों में शामिल आम जनता राष्ट्र की प्रगति में अपना बहुमूल्य योगदान देते हैं।
प्रश्न 3 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर लिखिए कि श्वेत और रंगीन पताकाओं के बारे में जितेन नार्गे ने क्या जानकारी दी। (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – लेखिका व् उनकी टीम पहाड़ी रास्तों पर जब आगे बढ़ने लगे तो उन्हें एक जगह दिखाई दी जहाँ एक पंक्ति में सफेद-सफेद बौद्ध पताकाएँ लगी हुई थी। ये पताकायें किसी ध्वज की तरह लहरा रही थी। शांति और अहिंसा की प्रतीक इन पताकाओं पर मंत्र लिखे हुए थे। कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है। जब भी किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है, उसकी आत्मा की शांति के लिए शहर से दूर किसी भी पवित्र स्थान पर एक सौ आठ सफेद पताकाएँ फहरा दी जाती हैं। और इन्हें कभी उतारा नहीं जाता है, ये धीरे-धीरे अपने आप ही नष्ट हो जाती हैं। कभी कबार किसी नए कार्य की शुरुआत में भी ये पताकाएँ लगा दी जाती हैं केवल अंतर् इतना होता है कि वे रंगीन होती हैं।
प्रश्न 4 – तिस्ता नदी और ‘सेवन सिस्टर्स वॉटर फॉल’ के प्राकृतिक सौंदर्य को लेखिका ने किस प्रकार चित्रित किया है? ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ – पाठ के संदर्भ में लिखिए। (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – तिस्ता नदी के किनारे पर बसे लकड़ी के एक छोटे-से घर में लेखिका और उनके साथी ठहरे हुए थे। लेखिका मुँह-हाथ धोकर तुरंत ही तिस्ता नदी के किनारे बिखरे पत्थरों पर बैठ गई थी। उसके सामने बहुत ऊपर से बहता झरना नीचे कल-कल बहती तिस्ता नदी में मिल रहा था। धीमी, हलकी हवा बह रही थी। पेड़-पौधे झूम रहे थे। चाँद को गहरे बादलों की परत ने ढक रखा था। बाहर से पक्षी और लोग अपने घरों को लौट रहे थे। वातावरण में अद्भुत शांति फैली हुई थी। मंदिर की घंटियों की ध्वनि ऐसी लग रही थी जैसे घुँघरुओं की रुनझुनाहट हो रही हो। ऐसा मनमोहक दृश्य देखकर लेखिका की आँखें स्वतः ही भर आईं थी। लेखिका को ऐसा लग रहा था जैसे उनके अंदर ज्ञान का नन्हा-सा बोधिसत्व उगने लगा हो। वहाँ लेखिका को सुख शांति और सुकून मिल रहा था।
प्रश्न 5 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ में आए – ‘मैडम यह धर्म चक्र है। प्रेयर व्हील। इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।’ जितेन के इस कथन पर लेखिका के दिल और दिमाग का कौन-सा चक्र घूम गया? लेखिका के विचारों पर टिप्पणी कीजिए। (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – लेखिका ने देखा कि एक कुटिया के भीतर एक घूमता चक्र था। उसके बारे में जब लेखिका ने नार्गे से पूछा तो वह कहने लगा कि मैडम यह धर्म चक्र है। इसे प्रेयर व्हील भी कहा जाता है। इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। लेखिका को यह सुन कर एक बात समझ में आई कि चाहे मैदान हो या पहाड़, सभी वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद इस देश की आत्मा एक जैसी। लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास, पाप-पुण्य की अवधारणाएँ और कल्पनाएँ एक जैसी ही हैं।
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Chapter -3 Main Kyon Likhta Hun
प्रश्न 1 – ‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ के आधार पर तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए कि क्या एक रचनाकार और उसकी रचनाएँ बाहरी दबाव से भी प्रभावित हो सकती हैं? आपकी दृष्टि में वे कौन-से बाहरी दबाव हैं जो रचनाकार की रचना को प्रभावित करते हैं? (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – कुछ रचनाकारों की रचनाओं में स्वयं की अनुभूति से उत्पन्न विचार और कुछ अनुभवों से प्राप्त विचारों को लिखा जाता है। इसके साथ कुछ बाह्य दबाव भी उपस्थित हो जाते हैं जिससे लेखक लिखने के लिए प्रेरित हो उठता है। ये बाह्य-दबाव निम्नलिखित हैं-
संपादकों के आग्रह
प्रकाशक की माँगें
सामाजिक परिस्थितियाँ
आर्थिक सुविधा की आकांक्षा
विशिष्ट के पक्ष में विचारों को प्रस्तुत करने का दबाव
बाह्य दबाव केवल लेखन से जुड़े रचनाकारों को ही प्रभावित नहीं करते बल्कि बाहरी दबाव सभी प्रकार के कलाकारों को प्रेरित करते हैं। उदाहरण स्वरूप अधिकतर अभिनेता, गायक, नर्तक, कलाकार अपने दर्शकों, आयोजकों, श्रोताओं की माँग पर कला-प्रदर्शन करते हैं। बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशक यदि उम्रदराज़ अभिनेताओं को अभिनय करने का अनुरोध न करें तो शायद उम्र हो जाने के साथ वे आराम करना चाहें। गायक, नर्तक आदि कलाकारों को भी यदि
बाह्य दबाव न हों तो शायद ही वे 50-60 की उम्र के बाद काम करना चाहें।
प्रश्न 2 – एक कृतिकार के लेखन और रचना के पीछे क्या-क्या कारण हो सकते हैं? ‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – लेखक को लगता है कि वह, यह जानने के लिए लिखने के लिए प्रेरित होता है कि वह आखिर लिखता क्यों है। क्योंकि लेखक के मुताबिक़ जब तक वह कुछ लिखेगा नहीं वह नहीं जान पाएगा कि लिखने के लिए उसकी क्या प्रेरणा है। स्पष्ट रूप से समझना हो तो लेखक दो कारणों से लिखता है – भीतरी लाचारी से। कभी-कभी कवि के मन में ऐसे अनुभव जाग उठते है कि वह उसे अभिव्यक्त करने के लिए व्याकुल हो उठता है।
कभी-कभी वह संपादकों के आग्रह से, प्रकाशक की माँगों से तथा आर्थिक सुविधाओं के लिए भी लिखता है। परंतु दूसरा कारण उसके लिए जरूरी नहीं है। पहला कारण अर्थात् मन की व्याकुलता ही उसके लेखन का मूल कारण बनती है।
प्रश्न 3 – ‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ के आधार पर अनुभव और अनुभूति का अंतर स्पष्ट करते हुए लिखिए कि लेखक ने अपनी जापान यात्रा के दौरान हिरोशिमा में सब कुछ देखकर भी तत्काल क्यों नहीं लिखा? अणु-विस्फोट की अनुभूति लेखक को कब हुई? (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – लेखक बताते है कि उन्होंने हिरोशिमा में सब देखकर भी तुरंत उसी समय कुछ नहीं लिखा, क्योंकि अभी उन्हें अपने सामने अनुभव की कमी थी। एक दिन वहीं सड़क पर घूमते हुए लेखक ने देखा कि एक जले हुए पत्थर पर एक लंबी उजली छाया है जिसे देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे विस्फोट के समय कोई वहाँ खड़ा रहा होगा और विस्फोट से बिखरे हुए रेडियम-धर्मी पदार्थ की किरणें उसमें बंद हो होंगी। लेखक ने उस पत्थर पर पड़े किसी व्यक्ति के जलने के निशान से हिरोशिमा ने हुए रेडियम-धर्मी विस्फोट की पूरी दुखांत घटना का विवरण सनझ लिया। उस क्षण में अणु-विस्फोट लेखक के प्रत्यक्ष अनुभव में आ गया। एक अर्थ में लेखक स्वयं हिरोशिमा के विस्फोट को भोगने वाला बन गया। अर्थात सब कुछ अपनी आँखों से देखने पर लेखक को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह भी अणु-विस्फोट के शिकार हुए व्यक्तियों में से एक है। इसी अनुभव में से लेखक में वह लाचारी जागी। लेखक के भीतर की बेचैनी बुद्धि के क्षेत्र से बढ़कर अब संवेदना के क्षेत्र में आ गई थी। फिर धीरे-धीरे लेखक उससे अपने को अलग कर सका और अचानक एक दिन लेखक ने हिरोशिमा पर कविता लिखी। यह कविता लेखक ने जापान में नहीं लिखी बल्कि जब वे भारत लौट आए थे तब रेलगाड़ी में बैठे-बैठे उन्होंने वह कविता लिखी थी। लेखक कहते हैं कि उन्हें इससे कोई मतलब नहीं है कि उनकी यह कविता अच्छी है या बुरी है। यह कविता लेखक के मन के बेहद निकट है, क्योंकि वह लेखक के अनुभव से उत्पन्न हुई है।
प्रश्न 4 – ‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ के संदर्भ में यदि आप चाहते हैं कि विज्ञान का केवल सदुपयोग ही हो, उसके लिए अपने सुझाव दीजिए। (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – एक संवेदनशील युवा नागरिक होने के कारण विज्ञान का दुरुपयोग रोकने के लिए हमारी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए निम्नलिखित कार्य करते हुए हम अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकते हैं –
- प्रदूषण फैलाने तथा बढ़ाने वाले जितने भी कारण है जैसे – प्लास्टिक, कूड़ा-कचरा आदि के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए कार्यक्रम किए जा सकते हैं।
- लोगों से अनुरोध किया जा सकता है कि पर्यावरण के लिए प्लास्टिक जैसी हानिकारक वस्तुओं का उपयोग न करें ।
- विज्ञान के बनाए हथियारों का प्रयोग यथासंभव मानवता की भलाई के लिए ही करें, मनुष्यों के विनाश के लिए नहीं।
- विज्ञान की चिकित्सीय खोज का दुरुपयोग न करें।
- सामाजिक विषमता तथा लिंगानुपात में असमानता के बारे में आम जनता का जागरूक करने का प्रयास किया जा सकता है।
- टी.वी. पर प्रसारित अश्लील कार्यक्रमों का खुलकर विरोध करना चाहिए। धार्मिक व् आध्यात्मिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देना चाहिए।
- समाज के लिए उपयोगी कार्यक्रमों के प्रसारण करना चाहिए।
- विज्ञान के दुरुपयोग के परिणामों को बताकर लोगों को जागरूक बनाने में योगदान देना चाहिए।
प्रश्न 5 – ‘मैं क्यों लिखता हूँ’ पाठ के आधार पर लिखिए कि लेखक को जापान जाने पर हिरोशिमा की घटना का प्रत्यक्ष अनुभव कैसे हुआ। इस अनुभव का लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा? अपने शब्दों में लिखिए। (लगभग 50- 60 शब्दों में)
उत्तर – जब लेखक को जापान जाने का मौका मिला, तब वे हिरोशिमा के साथ-साथ उस अस्पताल में भी गए, जहाँ रेडियम-पदार्थ से घायल लोग वर्षों से कष्ट में जी रहे थे। इस प्रकार लेखक को अणु-बम के विस्फोट से हुए परिवर्तनों का प्रत्यक्ष अनुभव भी हुआ-परन्तु अनुभव से ऐहसास ज्यादा मायने रखता है, कम-से-कम लेखक के लिए तो इस घटना का एहसास अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अनुभव किसी घटित हुई घटना का होता है, पर एहसास संवेदना और कल्पना के सहारे उस सत्य को आत्मसात् कर लेती है जो वास्तव में लेखक या रचनाकार के साथ घटित नहीं हुआ है। जो घटना कभी आँखों के सामने नहीं घटी, जो घटना किसी ऐसे व्यक्ति के अनुभव में नहीं आई, जो उस घटना में शामिल हो, वही घटना जब आत्मा के सामने, चमकते हुए प्रकाश के रूप में आ जाती है, तब वह घटना उस व्यक्ति के लिए अनुभूति-प्रत्यक्ष हो जाती है। अर्थात जब कोई ऐसी घटना जो आंखों के सामने न हुई हो, उस घटना का एहसास जब अनुभव रूप में हो जाता है तब अनुभव प्रत्यक्ष हो जाता है।
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