CBSE Class 10 Hindi (Course A) Chapter-wise Previous Years Questions (2019) with Solution
Class 10 Hindi (Course B) Question Paper (2019) – Solved Question papers from previous years are very important for preparing for the CBSE Board Exams. It works as a treasure trove. It helps to prepare for the exam precisely. One of key benefits of solving question papers from past board exams is their ability to help identify commonly asked questions. These papers are highly beneficial study resources for students preparing for the upcoming class 10th board examinations. Here we have compiled chapter-wise questions asked in all the sets of CBSE Class 10 Hindi (Course A) question paper (2019).
Kshitij Bhag 2
Chapter 1 – Surdas Ke Pad (लगभग 25-30 शब्दों में )
प्रश्न 1 – “राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।” – भाव स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – “राज धरम तौ यहै ‘सूर’, जो प्रजा न जाहिं सताए।” पंक्ति का भाव यह है कि राजधर्म तो यही कहता है कि प्रजा के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए अथवा न ही सताना चाहिए। गोपियों के अनुसार मथुरा जाते समय श्री कृष्ण उनका मन अपने साथ ले गए थे, जो अब उन्हें वापस चाहिए। गोपियाँ कहती हैं कि श्रीकृष्ण तो दूसरों को अन्याय से बचाते हैं , फिर गोपियों पर अन्याय क्यों कर रहे हैं? क्योंकि राजधर्म तो यही कहता है कि प्रजा के साथ अन्याय नहीं करना चाहिए अथवा न ही सताना चाहिए। इसलिए श्री कृष्ण को योग का संदेश वापस लेकर स्वयं दर्शन के लिए आना चाहिए।
प्रश्न 2 – आशय स्पष्ट कीजिए :
“हरि हैं राजनीति पढ़ि आए ।”
उत्तर – “हरि हैं राजनीति पढ़ि आए ।” पंक्ति का आशय यह है कि गोपियाँ उद्धव को ताना मारती हैं कि श्री कृष्ण ने अब राजनीति पढ़ ली है। जिसके कारण वे और अधिक बुद्धिमान हो गए हैं और अंत में गोपियों द्वारा उद्धव को राजधर्म (प्रजा का हित) याद दिलाया जाना सूरदास की लोकधर्मिता को दर्शाता है। गोपियाँ व्यंग्यपूर्वक उद्धव से कहती हैं कि श्री कृष्ण ने राजनीति का पाठ पढ़ लिया है। जो कि मधुकर अर्थात उद्धव के द्वारा सब समाचार प्राप्त कर लेते हैं और उन्हीं को माध्यम बनाकर संदेश भी भेज देते हैं।
प्रश्न 3 – ‘ऊधो, तुम हौ अति बड़भागी’ कह कर गोपियों ने उद्धव के स्वभाव पर क्या-क्या व्यंग्य किए हैं ?
उत्तर – गोपियाँ उद्धव पर व्यंग करते हुए कह रही हैं कि वे बहुत भाग्यशाली हैं, जो अभी तक श्री कृष्ण के साथ रहते हुए भी उनके प्रेम के बंधन से अछूते हैं और न ही उनके मन में श्रीकृष्ण के प्रति कोई प्रेम-भाव उत्पन्न हुआ है। गोपियाँ उद्धव की तुलना कमल के पत्तों व तेल के मटके के साथ करती हुई कहती हैं कि जिस प्रकार कमल के पत्ते हमेशा जल के अंदर ही रहते हैं, लेकिन उन पर जल के कारण कोई दाग दिखाई नहीं देता अर्थात् वे जल के प्रभाव से अछूती रहती हैं और इसके अतिरिक्त जिस प्रकार तेल से भरी हुई मटकी पानी के मध्य में रहने पर भी उसमें रखा हुआ तेल पानी के प्रभाव से अप्रभावित रहता है, उसी प्रकार श्री कृष्ण के साथ रहने पर भी उद्धव के ऊपर श्रीकृष्ण के प्रेम का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
प्रश्न 4 – उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया?
उत्तर – उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम किया क्योंकि जब श्री कृष्ण मथुरा वापस नहीं आते और उद्धव के द्वारा मथुरा यह संदेश भेजा देते हैं कि वह वापस नहीं आ पाएंगे, तो इस संदेश को सुनकर गोपियाँ टूट-सी गईं और उनकी विरह की व्यथा और बढ़ गई। वे उद्धव से शिकायत करती हैं कि अब वे अपनी यह व्यथा / यह पीड़ा किसे जाकर कहें ? उन्हें यह समझ नहीं आ रहा है। वे अब तक इसी कारण जी रहीं थी कि श्री कृष्ण जल्द ही वापिस आ जाएंगे और वे सिर्फ़ इसी आशा से अपने तन-मन की पीड़ा को सह रही थीं कि जब श्री कृष्ण वापस लौटेंगे , तो वे अपने प्रेम को कृष्ण के समक्ष व्यक्त करेंगी।
प्रश्न 5 – गोपियाँ उद्धव से क्यों कहती हैं – “हरि हैं राजनीति पढ़ि आए”?
उत्तर – गोपियाँ व्यंग्यपूर्वक उद्धव से कहती हैं कि श्री कृष्ण ने राजनीति का पाठ पढ़ लिया है। जो कि मधुकर अर्थात उद्धव के द्वारा सब समाचार प्राप्त कर लेते हैं और उन्हीं को माध्यम बनाकर संदेश भी भेज देते हैं। श्री कृष्ण पहले से ही बहुत चतुर चालाक थे, अब मथुरा पहुँचकर शायद उन्होंने राजनीति शास्त्र भी पढ़ लिया है, जिस के कारण वे और अधिक बुद्धिमान हो गए हैं, जो उन्होंने तुम्हारे द्वारा जोग (योग) का संदेश भेजा है । हे उद्धव ! पहले के लोग बहुत भले थे, जो दूसरों की भलाई करने के लिए दौड़े चले आते थे। यहाँ गोपियाँ श्री कृष्ण की ओर संकेत कर रही हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अब श्री कृष्ण बदल गए हैं।
प्रश्न 6 – गोपियाँ कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम रखती हैं। इस बात को उन्होंने उद्धव के सामने कैसे रखा ?
उत्तर – गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हमारे श्री कृष्ण तो हमारे लिए हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जिस तरह हारिल पक्षी अपने पंजों में लकड़ी को बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़े रहता है , उसे कहीं भी गिरने नहीं देता , उसी प्रकार हमने भी मन , वचन और कर्म से नंद पुत्र श्री कृष्ण को अपने ह्रदय के प्रेम – रूपी पंजों से बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़ा हुआ है अर्थात दृढ़तापूर्वक अपने हृदय में बसाया हुआ है। हम तो जागते सोते , सपने में और दिन – रात कान्हा – कान्हा रटती रहती हैं। इसी के कारण हमें तो जोग का नाम सुनते ही ऐसा लगता है , जैसे मुँह में कड़वी ककड़ी चली गई हो।
प्रश्न 7 – गोपियाँ कृष्ण को हारिल की लकड़ी क्यों मानती हैं ?
उत्तर – गोपियाँ कृष्ण को हारिल की लकड़ी इसलिए मानती हैं क्योंकि जिस तरह हारिल पक्षी अपने पंजों में लकड़ी को बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़े रहता है , उसे कहीं भी गिरने नहीं देता , उसी प्रकार गोपियों ने भी मन , वचन और कर्म से नंद पुत्र श्री कृष्ण को अपने ह्रदय के प्रेम – रूपी पंजों से बड़ी ही ढृढ़ता से पकड़ा हुआ है अर्थात दृढ़तापूर्वक अपने हृदय में बसाया हुआ है।
प्रश्न 8 – गोपियों को उद्धव से क्यों कहना पड़ा – “हरि हैं राजनीति पढ़ि आए” ?
उत्तर – सूरदास के ‘पद’ के अनुसार गोपियों को ऐसा लगता है कि कृष्ण ने राजनीति पढ़ ली है। क्योंकि वे उद्धव के द्वारा सब समाचार प्राप्त कर लेते हैं और उन्हीं को माध्यम बनाकर संदेश वापिस भी भेज देते हैं। गोपियाँ मानती हैं श्री कृष्ण पहले से ही बहुत चतुर चालाक थे, अब मथुरा पहुँचकर शायद उन्होंने राजनीति शास्त्र भी पढ़ लिया है , जिस के कारण वे और अधिक बुद्धिमान हो गए हैं , जो उन्होंने तुम्हारे द्वारा जोग (योग) का संदेश भेजा है। क्योंकि अगर श्रीकृष्ण स्वयं आते तो गोपियाँ उन्हें कभी वापिस नहीं जाने देतीं।
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Chapter 2 – Ram Lakshman Parshuram Samvad (लगभग 25-30 शब्दों में )
प्रश्न 1 – परशुराम क्यों क्रुद्ध थे ? लक्ष्मण ने अंतत: ऐसा क्या कह दिया जिसने क्रोध की आग में आहुति का काम किया ?
उत्तर – जब सीता स्वयंवर में श्री राम द्वारा शिव – धनुष के तोड़े जाने के बाद मुनि परशुराम जी को यह समाचार मिला तो वे क्रोधित होकर वहाँ आते हैं। फिर वे राजसभा की तरफ देखते हुए कहते हैं कि जिसने भी शिव धनुष तोड़ा है वह व्यक्ति खुद बखुद इस समाज से अलग हो जाए, नहीं तो सभा में उपस्थित सभी राजा मारे जाएँगे। परशुराम जी के इन क्रोधपूर्ण वचनों को सुनकर लक्ष्मण जी मुस्कुराए और परशुराम जी का अपमान करते हुए बोले कि बचपन में उन्होंने ऐसे छोटे – छोटे बहुत से धनुष तोड़ डाले थे , किंतु ऐसा क्रोध तो कभी किसी ने नहीं किया। लक्ष्मण जी की व्यंग्य भरी बातें सुनकर परशुराम जी और अधिक क्रोधित हो जाते हैं।
प्रश्न 2 – लक्ष्मण ने वीर पुरुष और कायर में क्या अंतर बताया है ?
उत्तर – लक्ष्मण ने वीर पुरुष के बारे में बताया है कि वीर योद्धा युद्ध-भूमि में अपनी वीरता का प्रदर्शन किया करते हैं, वे बिना बात के अपने बल की डींग नहीं हाँकते। वीर पुरुष में पराक्रम के साथ-साथ सहनशीलता भी होनी चाहिए। उनमें अहंकार नहीं होना चाहिए। और युद्ध भूमि में शत्रु को सामने पाकर अपनी वीरता की प्रशंसा करने वाले पुरुष कायर कहलाते हैं।
प्रश्न 3 – लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई हैं ?
उत्तर – लक्ष्मण ने वीर योद्धा की निम्नलिखित विशेषताएं बताई है –
- वीर पुरुष अपनी महानता का गुणगान खुद नहीं करते।
- युद्धभूमि में शूरवीर युद्ध करते हैं न की अपने प्रताप का गुणगान करते हैं।
- स्वयं किए गए प्रसिद्ध कार्यों पर कभी अभिमान नहीं करते।
- वीर पुरुष किसी के खिलाफ गलत शब्दों का प्रयोग नहीं करते।
- वह अन्याय के विरुद्ध हमेशा खड़े रहते हैं।
- वीर योद्धा शांत , विनम्र , और साहसी हृदय के होते हैं।
प्रश्न 4 – लक्ष्मण ने किन तर्कों से सिद्ध करना चाहा कि धनुष टूट जाने में राम का दोष नहीं है?
उत्तर – परशुराम जी का शिव धनुष की ओर इतना प्रेम देखकर और उसके टूट जाने पर अत्यधिक क्रोधित होता हुआ देख कर लक्ष्मण जी हँसकर परशुराम जी से बोले कि हे देव ! सुनिए , मेरी समझ के अनुसार तो सभी धनुष एक समान ही होते हैं। लक्ष्मण श्रीराम की ओर देखकर बोले कि इस धनुष के टूटने से क्या लाभ है तथा क्या हानि , यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही है। श्री राम जी ने तो इसे केवल छुआ था , लेकिन यह धनुष तो छूते ही टूट गया । फिर इसमें श्री राम जी का क्या दोष है ? मुनिवर ! आप तो बिना किसी कारण के क्रोध कर रहे हैं।
प्रश्न 5 – परशुराम ने अपनी किन विशेषताओं के उल्लेख के द्वारा लक्ष्मण को डराने का प्रयास किया?
उत्तर – राम, लक्ष्मण, परशुराम संवाद में परशुराम जी अपना परिचय अत्यधिक क्रोधी स्वभाव वाले व्यक्ति के रूप में देते हैं और बताते हैं कि वे पूरे विश्व में क्षत्रिय कुल के घोर शत्रु के रूप में प्रसिद्ध है।वे लक्ष्मण जी को अपना फरसा दिखाते हैं और कहते हैं कि शायद उन्होंने परशुराम जी के स्वभाव के विषय में नहीं सुना है। वे केवल बालक समझकर लक्ष्मण जी का वध नहीं कर रहे हैं। लक्ष्मण जी उन्हें केवल एक मुनि समझने की भूल न करें। वे बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी स्वभाव के व्यक्ति हैं। उन्होंने अपनी भुजाओं के बल से पृथ्वी को कई बार राजाओं से रहित करके उसे ब्राह्मणों को दान में दे दिया था। अपने फरसे से उन्होंने सहस्रबाहु अर्थात हजारों लोगों की भुजाओं को काट डाला था।
प्रश्न 6 – परशुराम को लक्ष्मण ने वीर योद्धा के क्या लक्षण बताए है?
उत्तर – परशुराम को लक्ष्मण वीर योद्धा के लक्षण बताते हुए कहते हैं कि जो शूरवीर होते हैं वे व्यर्थ में अपनी बड़ाई नहीं करते, बल्कि युद्ध भूमि में अपनी वीरता को सिद्ध करते हैं। शत्रु को युद्ध में उपस्थित पाकर भी अपने प्रताप की व्यर्थ बातें करने वाला कायर ही हो सकता है।
प्रश्न 7 – लक्ष्मण ने धनुष टूटने के किन कारणों की संभावना व्यक्त करते हुए राम को निर्दोष बताया?
उत्तर – परशुराम जी का शिव धनुष की ओर इतना प्रेम देखकर और उसके टूट जाने पर अत्यधिक क्रोधित होता हुआ देख कर लक्ष्मण जी हँसकर परशुराम जी से बोले कि हे देव ! सुनिए , मेरी समझ के अनुसार तो सभी धनुष एक समान ही होते हैं। लक्ष्मण श्रीराम की ओर देखकर बोले कि इस धनुष के टूटने से क्या लाभ है तथा क्या हानि, यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही है। श्री राम जी ने तो इसे केवल छुआ था, लेकिन यह धनुष तो छूते ही टूट गया। इसमें श्री राम जी का कोई दोष नहीं है। इस तरह के तर्क दे कर लक्ष्मण जी ने परशुराम जी के क्रोध को अकारण बताया।
प्रश्न 8 – लक्ष्मण के किन तर्कों ने परशुराम के क्रोध की आग को भड़काया ?
उत्तर – परशुराम जी के क्रोधपूर्ण वचनों को सुनकर लक्ष्मण जी मुस्कुराकर और परशुराम जी का अपमान करते हुए बोले कि बचपन में उन्होंने ऐसे छोटे – छोटे बहुत से धनुष तोड़ डाले थे , किंतु ऐसा क्रोध तो कभी किसी ने नहीं किया। लक्ष्मण जी की व्यंग्य भरी बातें सुनकर परशुराम जी के क्रोध की आग और अधिक भड़क जाती है।
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Chapter 3 – Atmakathya (लगभग 25-30 शब्दों में )
प्रश्न 1 – स्मृति को पाथेय बनाने से जयशंकर प्रसाद का क्या आशय है?
उत्तर – ‘पाथेय’ अर्थात् सहारा। स्मृति को पाथेय बनाने से कवि का आशय अपनी प्रिय की स्मृति के सहारे जीवन जीने से है। कवि की पत्नी की मृत्यु युवावस्था में ही हो गई थी। अपनी पत्नी के साथ बिताये मधुर पलों की स्मृतियाँ ही अब कवि के जीवन जीने का एकमात्र सहारा व मार्गदर्शक हैं। इसीलिए कवि उन्हें किसी के साथ बांटना नहीं चाहते हैं। उन्हें सिर्फ अपने दिल में संजो कर रखना चाहते है। जैसे थका हुआ यात्री शेष रास्ता देखते हुए अपनी मंजिल पा जाता है वैसे ही कवि अपनी पत्नी की यादों के सहारे अपना शेष जीवन बिता लेगा। मनुष्य अपनी सुखद स्मृतियों की याद में अपना सारा जीवन व्यतीत कर सकता है।
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Chapter 4 – Utsah Aur At Nahi Rahi Hai (लगभग 25-30 शब्दों में )
प्रश्न 1 – ‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर वसंत ऋतु की शोभा का वर्णन कीजिए।
उत्तर – वसंत ऋतु में चारों ओर मनमोहक वातावरण होता हैं। सभी पेड़ – पौधों की शाखाओं में नये – नये – कोमल पत्ते निकल आते हैं, जिसके कारण चारों तरफ के पेड़ हरे एवं लाल दिखाई देते हैं क्योंकि पेड़ों पर हरे पत्तों के बीच लाल फूल उग आते हैं। उस समय ऐसा लगते हैं मानो जैसे प्रकृति ने अपने हृदय पर रंग – बिरंगी धीमी खुशबू देने वाली कोई सुंदर सी माला पहन रखी हो। वसंत ऋतु में प्रकृति के कण – कण में अर्थात जगह – जगह इतनी सुंदरता बिखरी पड़ी है कि अब वह इस पृथ्वी में समा नहीं पा रही है। फागुन के महीने में यहाँ प्रकृति में होने वाले बदलावों से सभी प्राणी बेहद ख़ुश हो जाते हैं।
प्रश्न 2 – फागुन में ऐसी क्या बात थी कि कवि की आँख हट नहीं रही, है?
उत्तर – कवि की आँख फागुन की सुंदरता से हट नहीं रही है , क्योंकि फागुन के महीने में प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फागुन बहुत मतवाला, मस्त और शोभाशाली है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। पेड़ों की डालियाँ पत्तों से भरी हुई हैं, पेड़ों पर फूल आ जाने से पेड़ कहीं हरे और कहीं लाल दिखाई दे रहे हैं, उनको देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति ने अपने हृदय पर फूलों की माला पहन राखी हो। फूलों की खुशबू भी पूरे वातावरण में फैल गई है। इसलिए कवि की आँखें फागुन की सुन्दरता से मंत्रमुग्ध होकर उससे हटाने से भी नहीं हटती।
प्रश्न 3 – ‘उत्साह’ कविता में कवि बादल को गरजने के लिए क्यों कहता है ? बादल से कवि की अन्य अपेक्षाएँ क्या हैं ?
उत्तर – ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ जी ने बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के लिए नहीं कहा बल्कि ‘गरजने’ के लिए कहा है, क्योंकि कवि बादलों को क्रांति का सूत्रधार मानता है। ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ जी एक क्रांतिकारी कवि माने जाते हैं। वो अपने विचारों व अपनी कविता के माध्यम से समाज में बदलाव लाना चाहते थे। लोगों की चेतना को जागृत करना चाहते थे। “गरजना” शब्द क्रांति, बदलाव और विद्रोह का प्रतीक है। कवि ने बादल के गरजने के माध्यम से कविता में नूतन विद्रोह का आह्वान किया है।
प्रश्न 4 – ‘उत्साह’ कविता में कवि बादल से क्या अनुरोध करता है ?
उत्तर – कवि बादलों से जोर – जोर से गरजने का निवेदन कर रहे हैं और बादलों से कहते हैं कि हे बादल ! तुम जोरदार गर्जना अर्थात जोरदार आवाज करो और आकाश को चारों तरफ से , पूरी तरह से घेर लो यानि इस पूरे आकाश में भयानक रूप से छा जाओ और फिर जोरदार तरीके से बरसो क्योंकि यह समय शान्त होकर बरसने का नहीं है।
प्रश्न 5 – ‘उत्साह’ कविता का मूल संदेश लिखिए ।
उत्तर – उत्साह कविता में कवि बादलों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि तुम जोरदार गर्जना करो और अपनी गर्जना से सोये हुए लोगों को जागृत करो, उनके अंदर एक नया उत्साह, एक नया जोश भर दो। कवि बादलों को एक कवि के रूप में देखते हैं जो अपनी कविता से धरती को नवजीवन देते हैं क्योंकि बादलों के बरसने के साथ ही धरती पर नया जीवन शुरू होता है। पानी मिलने से बीज अंकुरित होते हैं और नये – नये पौधे उगने शुरू हो जाते हैं। धरती हरी – भरी होनी शुरू हो जाती हैं। लोगों की सोई चेतना भी जागृत होती है। अत्यधिक गर्मी से परेशान लोग जब धरती पर वर्षा हो जाने के बाद भीषण गर्मी से राहत पाते हैं , तो उनका मन फिर से नये उत्साह व उमंग से भर जाता है। इसी कारण कवि बादलों से निवेदन करते हैं कि वो जोरदार बरसात कर धरती को ठंडक दें और लोगों में नया उत्साह भर दे।
प्रश्न 6 – ‘उत्साह’ कविता में ‘नवजीवन वाले’ किसको कहा गया है और क्यों ?
उत्तर – उत्साह कविता में ‘नवजीवन वाले’ शब्द बादलों और कवि के लिए प्रयोग हुआ है। बादल प्यासी धरती पर बरस कर उसे शीतलता देते हैं इसलिए उन्हें ‘नवजीवन वाले’ कहा गया है। और कवि अपनी कविता से क्रान्ति की भावना जाग्रत करके समाज में नई क्रान्ति व् परिवर्तन लाता है। इसलिए ‘उत्साह’ कविता में बादल और कवि दोनों को ‘नवजीवन वाले ‘ कहा गया है।
प्रश्न 7 – फागुन की सुंदरता से कवि की आँख हट क्यों नहीं रही है ?
उत्तर – कवि की आँख फागुन की सुंदरता से हट नहीं रही है, क्योंकि फागुन के महीने में प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फागुन बहुत मतवाला, मस्त और शोभाशाली है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। पेड़ों की डालियाँ पत्तों से भरी हुई हैं, पेड़ों पर फूल आ जाने से पेड़ कहीं हरे और कहीं लाल दिखाई दे रहे हैं, उनको देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति ने अपने हृदय पर फूलों की माला पहन राखी हो। फूलों की खुशबू भी पूरे वातावरण में फैल गई है। इसलिए कवि की आँखें फागुन की सुन्दरता से मंत्रमुग्ध होकर उससे हटाने से भी नहीं हटती।
प्रश्न 8 – ‘निराला’ बादल से रिमझिम बरसने के लिए नहीं गरजकर बरसने के लिए कहते हैं, ऐसा क्यों ?
उत्तर – ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ जी ने बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के लिए नहीं कहा बल्कि ‘गरजने’ के लिए कहा है, क्योंकि कवि बादलों को क्रांति का सूत्रधार मानता है। ‘सूर्यकांत त्रिपाठी निराला’ जी एक क्रांतिकारी कवि माने जाते हैं। वो अपने विचारों व अपनी कविता के माध्यम से समाज में बदलाव लाना चाहते थे। लोगों की चेतना को जागृत करना चाहते थे। “गरजना” शब्द क्रांति, बदलाव और विद्रोह का प्रतीक है। कवि ने बादल के गरजने के माध्यम से कविता में नूतन विद्रोह का आह्वान किया है।
प्रश्न 9 – ‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर फागुन मास के सौंदर्य का वर्णन कीजिए ।
उत्तर – कवि की आँख फागुन की सुंदरता से हट नहीं रही है , क्योंकि फागुन के महीने में प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फागुन बहुत मतवाला , मस्त और शोभाशाली है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। पेड़ों की डालियाँ पत्तों से भरी हुई हैं , पेड़ों पर फूल आ जाने से पेड़ कहीं हरे और कहीं लाल दिखाई दे रहे हैं , उनको देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति ने अपने हृदय पर फूलों की माला पहन राखी हो। फूलों की खुशबू भी पूरे वातावरण में फैल गई है। इसलिए कवि की आँखें फागुन की सुन्दरता से मंत्रमुग्ध होकर उससे हटाने से भी नहीं हटती।
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Chapter 5 – Yah Danturit Muskan Aur Fasal (लगभग 25-30 शब्दों में )
प्रश्न 1 – कवि ने शिशु की मुस्कान को ‘दंतुरित मुस्कान’ क्यों कहा है ? कवि के मन पर उस मुस्कान का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर – कवि ने शिशु की मुस्कान को दंतुरित मुस्कान इसलिए कहा है क्योंकि छोटे शिशु की मुस्कान नए दांतों से सुशोभित होती है। शिशु की दंतुरित मुस्कान कवि के लिए मृतक में भी जान डाल देने वाली है कवि के मन पर शिशु की मुस्कान का यह प्रभाव पड़ता है कि उसे लगता है कि कमल का फूल तालाब को छोड़कर स्वयं उसकी झोपड़ी में आकर खिल गया है। उसके मन में तरह-तरह की कल्पनाएँ आती है। कवि अत्यंत प्रफुल्लित और आश्चर्यचकित है। उसका वात्सल्य जाग उठता है।
प्रश्न 2 – ‘यह दंतुरित मुस्कान’ के आधार पर मुस्कान की दो विशेषताएँ समझाइए ।
उत्तर – नन्हे बच्चे की मन को मोह लेने वाली मुस्कान को कोई पत्थर हृदय वाला व्यक्ति भी देख ले तो , वह भी उसे प्यार किए बिना नहीं रह पाएगा और बच्चे की यह मन को मोह लेने वाली मुस्कान जीवन की कठिनाइयों व परेशानियों से निराश – हताश हो चुके व्यक्तियों को भी एक नई प्रेरणा दे सकती हैं।
प्रश्न 3 – भाव स्पष्ट कीजिए :“छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल ?”
उत्तर – “छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल ?” पंक्ति का भाव यह है कि जीवन की विपरीत परिस्थितियों के कारण कवि का मन बाँस और बबूल की भाँति शुष्क और कठोर हो गया था। बच्चे की मधुर मुस्कुराहट को देखकर उसका मन अथवा स्वभाव भी पिघल कर शेफालिका के फूलों की भाँति सरस और सुंदर हो गया है।
प्रश्न 4 – ‘छू गया तुमसे कि झरने लगे शेफालिका के फूल’ उक्त पंक्ति का आशय नागार्जुन की कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘छू गया तुमसे कि झरने लगे शेफालिका के फूल’ उक्त पंक्ति का आशय यह है कि कवि के उस छोटे से बच्चे के निश्छल चेहरे में वह जादू है कि उसको छू लेने से बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल गिरने लगते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि जीवन की विपरीत परिस्थितियों के कारण कवि का मन बाँस और बबूल की भाँति शुष्क और कठोर हो गया था। बच्चे की मधुर मुस्कुराहट को देखकर उसका मन अथवा स्वभाव भी पिघल कर शेफालिका के फूलों की भाँति सरस और सुंदर हो गया है।
प्रश्न 5 – ‘फ़सल’ कविता में ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा और महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – “हाथों के स्पर्श की गरिमा” और “महिमा” कहकर कवि किसान की अथक मेहनत को सम्मानित करते हैं। क्योंकि किसान की लगन व कठिन परिश्रम के बिना खेतों में फसल नहीं उग सकती हैं। फसल के फलने – फूलने में एक या दो नहीं बल्कि लाखों – करोड़ों किसानों के हाथों के स्पर्श की गरिमा विद्यमान होती है। कवि कहते हैं कि मिट्टी और पानी के पोषक तत्व तथा सूरज की ऊर्जा भी तभी सार्थक होती है, जब किसानों के हाथों का स्पर्श इसे गरिमा प्रदान करता हैं।
प्रश्न 6 – फसल क्या है? – इसको लेकर फसल के बारे में कवि ने क्या-क्या संभावनाएँ व्यक्त की हैं?
उत्तर – कवि के अनुसार नदियों के पानी का जादू फसल के रूप में दिखाई देता हैं क्योंकि बिना पानी के फसल का उगना नामुकिन हैं। करोड़ों किसानों की दिन – रात की मेहनत का नतीजा फसल के रूप में मिलता हैं। असल में संक्षेप में कहा जाए तो फसल करोड़ों किसानों की लगन व मेहनत का नतीजा , नदियों के पानी का जादू, मिट्टी में पाए जाने वाले जरूरी अवयव, सूर्य की किरणें व हवा में पायी जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस के मिलन का नतीजा है। फसल करोड़ों किसानों की लगन व मेहनत का नतीजा, नदियों के पानी का जादू , मिट्टी में पाए जाने वाले जरूरी अवयव, सूर्य की किरणें व हवा में पायी जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस के मिलन का नतीजा है।
प्रश्न 7 – नागार्जुन ने फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ क्यों कहा है ?
उत्तर – “हाथों के स्पर्श की गरिमा” और “महिमा” कहकर कवि किसान की अथक मेहनत को सम्मानित करते हैं। क्योंकि किसान की लगन व कठिन परिश्रम के बिना खेतों में फसल नहीं उग सकती हैं। फसल के फलने – फूलने में एक या दो नहीं बल्कि लाखों – करोड़ों किसानों के हाथों के स्पर्श की गरिमा विद्यमान होती है। कवि कहते हैं कि मिट्टी और पानी के पोषक तत्व तथा सूरज की ऊर्जा भी तभी सार्थक होती है , जब किसानों के हाथों का स्पर्श इसे गरिमा प्रदान करता हैं।
प्रश्न 8 – नागार्जुन की कविता के आधार पर लिखिए कि फसल क्या है?
उत्तर – कवि के अनुसार नदियों के पानी का जादू फसल के रूप दिखाई देता हैं क्योंकि बिना पानी के फसल का उगना नामुकिन हैं। करोड़ों किसानों की दिन – रात की मेहनत का नतीजा फसल के रूप में मिलता हैं। भूरी, काली व खुशबूदार हल्की पीली मिट्टी यानि अलग – अलग प्रकार की मिट्टी के पोषक तत्व और सूरज की किरणें भी अपना रूप बदल कर इन फसलों के अंदर समाहित रहती हैं। क्योंकि सूरज की रोशनी और हवा में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड गैस को अवशोषित कर ही पौधे अपनी पत्तियों के दवारा भोजन बनाते हैं। असल में संक्षेप में कहा जाए तो फसल करोड़ों किसानों की लगन व मेहनत का नतीजा, नदियों के पानी का जादू, मिट्टी में पाए जाने वाले जरूरी अवयव, सूर्य की किरणें व हवा में पायी जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस के मिलन का नतीजा है।
प्रश्न 9 – कवि नागार्जुन ने छोटे बच्चे की मुस्कान देखकर क्या कल्पना की है?
उत्तर – कवि नागार्जुन ने छोटे बच्चे की मुस्कान को देखकर कल्पना की है कि उसकी मुस्कान मृतक प्राणी में भी जीवन का संचालन कर देती है। उसे देखकर पत्थर जैसे कठोर हृदय वाले मनुष्य का मन भी पिघलाकर अति कोमल हो जाता है।
प्रश्न 10 – भाव स्पष्ट कीजिए :
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
उत्तर – कवि जब बच्चे के धूल से सने हुए नन्हें तन को देखता है तो ऐसा लगता है कि मानों कमल के फूल तालाब को छोड़कर कवि की झोंपड़ी में खिल उठते हो। कहने का आशय यह है कि बच्चे के धूल से सने नन्हे से तन को निहारने पर कवि का मन कमल के फूल के समान खिल उठा है अर्थात् प्रसन्न हो गया है।
ऐसा लगता है कि किसी प्राणवान का स्पर्श पाकर ये कठोर चट्टानें पिघलकर जल बन गई होगी। कहने का आशय यह है कि बच्चे की मधुर मुस्कान देख कर पत्थर जैसे कठोर हृदय वाले मनुष्य का मन भी पिघलाकर अति कोमल हो जाता है।
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Chapter 6 – Sangatkar (लगभग 25-30 शब्दों में )
प्रश्न 1 – संगतकार की मनुष्यता किसे कहा गया है ? वह मनुष्यता कैसे बनाए रखता है ?
उत्तर – संगतकार में योग्यता, प्रतिभा, क्षमता और अवसर होने पर भी वह अपनी आवाज़ को मुख्य गायक की आवाज़ से ऊँचा नहीं उठाता है तथा कभी भी अपनी गायिकी को मुख्य गायक के गायन से बेहतर सिद्ध करने का प्रयास नहीं करता है। इसे संगतकार की मनुष्यता कहा गया है। वह यह मनुष्यता मुख्य गायक को सम्मान देते हुए बनाए रखता है।
प्रश्न 2 – संगतकार किसे कहा जाता है उसकी भूमिका क्या होती है?
उत्तर – संगतकार उन व्यक्तियों को कहा जाता है जो मुख्य गायक के सहायक होते हैं। वे मुख्य गायक के स्वर में स्वर मिलाकर उसके गायन को अधिक प्रभावशाली बनाते हैं। वास्तव में संगतकारों के बिना मुख्य गायक की सफलता की कल्पना नहीं की जा सकती है।
प्रश्न 3 – ‘संगतकार’ किन-किन रूपों में मुख्य गायक की सहायता करता है ? कविता के आधार पर उसकी विशेष भूमिका को भी स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – संगतकार कई रूपों में मुख्य गायक की सहायता करता है। वे मुख्य गायक की आवाज़ में अपनी आवाज़ और गूँज को मिलाकर मुख्य गायक की आवाज़ का बल बढ़ाने का काम करते हैं। जब मुख्य गायक गायन की गहराई में चले जाते हैं और मूल स्वर से भटक जाते हैं तब संगतकार स्थायी पंक्ति को पकड़कर मुख्य गायक को वापस मूल स्वर में लाते हैं। जब मुख्य गायक थक जाता है तो उसकी टूटती-बिखरती आवाज़ को बल देकर संगतकार उसे अकेला होने या बिखरने से बचाते हैं। और सदैव उसके साथ होने का एहसास करवाते हैं।
प्रश्न 4 – मँजे हुए प्रतिष्ठित संगीतकार को भी अच्छे संगतकार की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर – मँजे हुए प्रतिष्ठित संगीतकार को भी अच्छे संगतकार की आवश्यकता होती है क्योंकि जब मुख्य संगीतकार अपनी ही धुन में खो जाता है और अपने सुरों से भटकने लग जाता है , तब संगतकार ही अपनी खूबियों का प्रदर्शन करते हुए सब कुछ संभाल लेता है। कभी – कभी मुख्य गायक किसी गाने का अंतरा गाने में इतना मगन (तल्लीन) हो जाता हैं कि वह अपने सुरों से ही भटक जाता हैं। यानि असली सुरों को ही भूल जाता है और अपने ही गीत या ताल में लगने वाले स्वरों के उच्चारण को भूल जाता है। वह संगीत के उस मोड़ पर आ जाता है जहाँ अंत निकट हो। ऐसी स्थिति में संगतकार, जो हमेशा मुख्य सुरों को पकड़े रहता है। वही उस समय सही सरगम को दुबारा पकड़ने में मुख्य गायक की मदद कर उसे उस विकट स्थिति से बाहर लाता है।
प्रश्न 5 – संगतकार मुख्य गायक की सहायता किस प्रकार करता है ?
उत्तर – संगतकार मुख्य गायक के सुर में अपना सुर मिलाकर गाने को प्रभावशाली बनाने में मदद करता है। और जब कभी मुख्य गायक अपनी सुर साधना में खो कर कही भटक जाता हैं और गीत के मुख्य सुरों को भूल जाता हैं तो उस समय यही संगतकार दुबारा मुख्य सुरों को पकड़ने में उसकी मदद करता हैं।
प्रश्न 6 – मुख्य गायक को सफलता के शिखरों पर पहुँचाने में संगतकार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, कैसे ?
उत्तर – संगतकार भी उन्हीं में से एक है जो मुख्य गायक के सुर में अपना सुर मिलाकर गाने को प्रभावशाली बनाने में मदद करता है। और जब कभी मुख्य गायक अपनी सुर साधना में खो कर कही भटक जाता हैं और गीत के मुख्य सुरों को भूल जाता हैं तो उस समय यही संगतकार दुबारा मुख्य सुरों को पकड़ने में उसकी मदद करता हैं। यानि गाना गाते वक्त मुख्य गायक के साथ – साथ संगतकार की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है।
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Chapter 7 – Netaji ka Chashma (लगभग 25-30 शब्दों में )
प्रश्न 1 – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में बच्चों द्वारा मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा लगाना क्या प्रदर्शित करता है?
उत्तर – मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा यह उम्मीद जगाता है कि देश में देश प्रेम एवं देशभक्ति समाप्त नहीं हुई है। देश – भक्ति उम्र की मोहताज नहीं होती। बच्चों द्वारा किया गया कार्य स्वस्थ भविष्य का संकेत है। उनमें राष्ट्र प्रेम के बीज अंकुरित हो रहे हैं।
प्रश्न 2 – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ का संदेश क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ देशभक्ति का संदेश देने वाला पाठ है। यह पाठ सन्देश देता है कि देशभक्ति केवल किसी विशेष भू-भाग से प्रेम करना नहीं, बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक, प्रकृति, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, पर्वत, पहाड़, झरने आदि सभी से प्रेम करना एवं उनकी रक्षा करना है। कैप्टन चश्मे वाले की मूर्ति पर चश्मा लगाना व उसकी मृत्यु के पश्चात् बच्चों द्वारा हाथ से बनाया गया सरकंडे का चश्मा लगाना यह प्रेरणा देता है कि जरूरी नहीं कि हम देश के लिए जान देकर ही देशभक्ति दिखा सकते है। हम छोटे-छोटे कार्यों द्वारा देशभक्ति का परिचय दे सकते हैं। साथ ही यह पाठ हमें देश के प्रति अपना उत्तरदायित्व भी समझाता है।
प्रश्न 3 – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के आधार पर आशय समझाइए- “क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी, जवानी-ज़िंदगी सब कुछ होम देने वालों पर भी हँसती है…।”
उत्तर – “क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी, जवानी-ज़िंदगी सब कुछ होम देने वालों पर भी हँसती है…।” उक्त पंक्ति का आशय यह है कि बहुत से लोगों ने देश के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। कुछ लोग उनके बलिदान की प्रशंसा न करके ऐसे देशभक्तों का उपहास उड़ाते हैं। लोगों में देशभक्ति की ऐसी घटती भावना निश्चित रूप से निंदनीय है। ऐसे लोग इस हद तक स्वार्थी होते हैं कि उनके लिए अपना स्वार्थ ही सर्वोपरि होता है। वे अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिए देशभक्तों का मजाक बनाने को भी तैयार रहते हैं।
प्रश्न 4 – कैप्टन कौन था ? वह मूर्ति के चश्मे को बार-बार क्यों बदल दिया करता था ?
उत्तर – कैप्टन एक देशभक्त व्यक्ति था और शहीदों के प्रति आदरभाव रखने वाला व्यक्ति था। जब चौराहे पर नेताजी की मूर्ति बनवाई गई तो उसमें मूर्तिकार चश्मा लगाना भूल गया था जिससे कैप्टन को नेताजी की चश्माविहीन मूर्ति देखकर दुख होता था। वह मूर्ति पर अपनी दूकान से कोई एक चश्मा लगा देता था पर किसी ग्राहक द्वारा वैसा ही चश्मा माँगे जाने पर उसे मूर्ति से उतारकर ग्राहक को दे देता था और मूर्ति पर दूसरा चश्मा लगा दिया करता था।
प्रश्न 5 – यह क्यों कहा गया है कि महत्त्व मूर्ति के रंग-रूप या कद का नहीं, उस भावना का है ? ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के आधार पर लिखिए ।
उत्तर – महत्व मूर्ति के रंग-रूप या कद का नहीं, उस भावना का है, जिस भावना से मूर्ति का निर्माण हुआ था। ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ में शहर के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर जो नेताजी की मूर्ति लगाई गई थी वह मूर्ति संगमरमर की थी। दो फुट ऊँची, फ़ौजी वर्दी में नेताजी सुंदर लग रहे थे। मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो… याद आने लगते थे। परन्तु उस मूर्ति में एक कमी थी। नेताजी का चश्मा नहीं बनाया गया था। इस कमी को रियल चश्मा पहनाकर कैप्टन ने पूरा कर दिया था। कैप्टन के इस कार्य के माध्यम से लोगों में जो देशप्रेम और देशभक्ति की भावना पैदा हो रही थी तथा नेताओं के प्रति जो श्रद्धा और सम्मान जागृत हो रहा था, वह सबसे महत्त्वपूर्ण था।
प्रश्न 6 – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के कैप्टेन के स्वभाव की दो विशेषताएँ समझाइए ।
उत्तर – नेताजी का चश्मा पाठ के कैप्टन के स्वभाव की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
1 – वह साहसी, निडर व् सच्चा देशभक्त है।
2 – उसमे नेतृत्व करने की क्षमता है। क्योंकि उसकी देखा देखी में बच्चे भी उसकी तरह शहीदों का सम्मान करना सीख लेते हैं।
प्रश्न 7 – आप अभी फौजी नहीं, विद्यार्थी हैं। आपका देश-प्रेम किन रूपों में प्रकट होता है ? ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ से हमें देश प्रेम व् देश भक्ति की सही राह मिलती है। देशभक्ति सिद्ध करने के लिए आवश्यक नहीं है कि हमें फ़ौज में भर्ती होना है। यदि हम विद्यार्थी भी हैं तब भी हम अपनी देशभक्ति देश से जुड़ी चीजों का सम्मान करके कर सकते हैं। देश की सम्पति की रक्षा करके, शहीदों का सम्मान करके, देश के विकास में योगदान करके भी हम देश प्रेम सिद्ध कर सकते हैं।
प्रश्न 8 – सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले को लोग कैप्टेन क्यों कहते थे ?
उत्तर – सेनानी न होते हुए भी लोग चश्मेवाले को कैप्टन इसलिए कहते थे , क्योंकि कैप्टन चश्मे वाले में नेताजी के प्रति अगाध लगाव एवं श्रद्धा भाव था। वह शहीदों एवं देशभक्तों के अलावा अपने देश से उसी तरह लगाव रखता था जैसा कि फ़ौजी व्यक्ति रखते हैं। उसमें देश प्रेम एवं देशभक्ति का भाव कूट-कूटकर भरा था। वह नेताजी की मूर्ति को बिना चश्मे के देखकर दुखी होता था। और कभी भी नेता जी की मूर्ति को बिना चश्मे के नहीं रहने देता था।
प्रश्न 9 – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ से हमें क्या प्रेरणा प्राप्त होती है ?
उत्तर – ‘नेताजी का चश्मा’ पाठ देशभक्ति की प्रेरणा जागृत करने वाला पाठ है। इस पाठ से प्रेरणा मिलती है कि देशभक्ति केवल किसी विशेष भू-भाग से प्रेम करना नहीं, बल्कि देश के प्रत्येक नागरिक, प्रकृति, जीव-जंतु, पशु-पक्षी, पर्वत, पहाड़, झरने आदि सभी से प्रेम करना एवं उनकी रक्षा करना है। कैप्टन चश्मे वाले की मूर्ति पर चश्मा लगाना व उसकी मृत्यु के पश्चात् बच्चों द्वारा हाथ से बनाया गया सरकंडे का चश्मा लगाना यह प्रेरणा देता है कि जरूरी नहीं कि हम देश के लिए जान देकर ही देशभक्ति दिखा सकते है। हम छोटे-छोटे कार्यों द्वारा देशभक्ति का परिचय दे सकते हैं। साथ ही यह पाठ हमें देश के प्रति अपना उत्तरदायित्व भी समझाता है।
प्रश्न 10 – पंद्रह दिन बाद हालदार बाबू उस कस्बे में क्यों नहीं रुकना चाहते थे ? फिर भी अचानक रुककर भावुक क्यों हो गए ?
उत्तर – हालदार साहब इसलिए मायूस हो गए थे , क्योंकि वे सोचते थे कि कस्बे के बीचों बीच में नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति अवश्य ही विद्यमान होगी, लेकिन उन की आँखों पर चश्मा नहीं होगा। क्योंकि जब मास्टर ने मूर्ति बनाई तब वह बनाना भूल गया। और उसकी इस कमी को कैप्टन पूरी करता था लेकिन अब तो कैप्टन भी मर गया। देशभक्त हालदार साहब को नेताजी की चश्माविहीन मूर्ति उदास कर देती थी।
प्रश्न 11 – हालदार साहब ने जब मूर्ति के नीचे मूर्तिकार ‘मास्टर मोतीलाल’ पढ़ा तब उन्होंने क्या-क्या सोचा ?
उत्तर – लेखक को लगता है कि अंत में उस कस्बे के एक मात्र हाई स्कूल के एक मात्र ड्राइंग मास्टर को ही मूर्ति काम सौंप दिया गया होगा क्योंकि मूर्ति के नीचे जिस मूर्तिकार का नाम लिखा गया है वह मोतीलाल है और लेखक ने उस मूर्तिकार को हाई स्कूल का ड्राइंग मास्टर इसलिए माना है क्योंकि कोई भी मूर्तिकार किसी महान व्यक्ति की मूर्ति बनाते हुए कोई गलती नहीं करेगा और लेखक मानते है कि उन मास्टर जी को यह काम इसलिए सौंपा गया होगा क्योंकि उन्होंने महीने-भर में मूर्ति बनाकर ‘पटक देने’ का विश्वास दिलाया होगा।
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Chapter 8 – Balgobin Bhagat (लगभग 25-30 शब्दों में )
प्रश्न 1 – गर्मियों की उमसभरी शामें बालगोबिन भगत प्राय: कैसे बिताते थे ?
उत्तर – गर्मियों की उमसभरी शाम में बालगोबिन भगत अपने घर के आँगन में आसन जमा बैठते। गाँव के उनके कुछ प्रेमी भी जुट जाते। खँजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती। एक पद बालगोबिन भगत कह जाते, उनकी प्रेमी-मंडली उसे दुहराती, तिहराती। धीरे-धीरे स्वर ऊँचा होने लगता-एक निश्चित ताल, एक निश्चित गति से। धीरे-धीरे मन तन पर हावी हो जाता। होते-होते, एक क्षण ऐसा आता कि बीच में खँजड़ी लिए बालगोबिन भगत नाच उठते थे और उनके साथ ही सबके तन और मन नृत्यशील हो उठते थे। सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत हो जाता था।
प्रश्न 2 – बालगोबिन भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेला क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी ?
उत्तर – भगत की पुत्रवधू उन्हें इसलिए अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि भगत के इकलौते पुत्र और उसके पति की मृत्यु के बाद भगत अकेले पड़ गए थे। स्वयं भगत वृद्धावस्था में हैं। वे नेम – धर्म का पालन करने वाले इंसान हैं , जो अपने स्वास्थ्य की तनिक भी चिंता नहीं करते हैं। वह वृद्धावस्था में अकेले पड़े भगत की सेवा करना चाहती थी और उनकी सेवा करके अपना जीवन बिताना चाहती थी।
प्रश्न 3 – बालगोबिन भगत अपने सुस्त और बोधे से बेटे के साथ कैसा व्यवहार करते थे और क्यों?
उत्तर – बालगोबिने भगत का इकलौता बेटा कुछ सुस्त और बोदा-सा था। बालगोबिन भगत का मानना था कि ऐसे व्यक्तियों को अधिक प्यार और स्नेह की आवश्यकता होती है। जो लोग मानसिक रूप से सुस्त और बोदा होते हैं माता पिता के उनके प्रति कर्तव्य और भी बढ़ जाते हैं। उनका मानना था कि ऐसे लोग निगरानी और मुहब्बत के ज्यादा हकदार होते हैं। वे प्रेम और ममता के अधिकारी सामान्य लोगों से ज्यादा होते हैं। यदि ऐसे बच्चों का तिरस्कार किया जाए तो उनमें असुरक्षा व हीनता की भावना जन्म लेगी एवं उनका भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।
प्रश्न 4 – बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के आश्चर्य का कारण क्यों थी?
उत्तर – बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के लिए कुतूहल का कारण थी। वे अत्यंत सादगी , सरलता और नि:स्वार्थ भाव से जीवन जीते थे। उनके पास जो कुछ था , उसी में काम चलाया करते थे। वे किसी की वस्तु को बिना पूछे उपयोग में न लाते थे। इस नियम का वे अत्यधिक बारीकी से पालन करते थे , वे दूसरे के खेत में शौच के लिए भी न बैठते थे। इसके अलावा दाँत किटकिटा देने वाली सर्दियों की भोर में खुले आसमान के नीचे पोखरे पर बैठकर गाना , उससे पहले दो कोस जाकर नदी स्नान करने जैसे कार्य लोगों के आश्चर्य का कारण थी।
प्रश्न 5 – बालगोबिन भगत के व्यक्तित्व की दो विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर – बालगोबिन भगत सदैव खरी – खरी बातें कहते थे। वे झूठ नहीं बोलते थे। वे किसी की वस्तु को बिना पूछे प्रयोग नहीं करते थे। वे खामखाह किसी से झगड़ा नहीं करते थे। वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में रहते थे। वे अपनी उपज को कबीरपंथी मठ पर चढ़ावा के रूप में दे देते थे। वहाँ से जो कुछ प्रसाद रूप में मिलता था उसी में परिवार का निर्वाह करते थे।
प्रश्न 6 – दो उदाहरण दीजिए जिनसे आपको लगा हो कि बालगोबिन भगत सामाजिक रूढ़ियों से न बँधकर प्रगतिशील विचारों का परिचय देते हैं ।
उत्तर – ‘बालगोबिन भगत’ पाठ में बालगोबिन भगत सामाजिक रूढ़ियों से न बँधकर प्रगतिशील विचारों का परिचय देते हैं। इसके दो उदाहरण निम्नलिखित हैं –
पहला उदाहरण, जब बालगोबिन भगत के इकलौते बेटे की मृत्यु हुई तो उन्होंने अपनी पतोहू को उसका जीवन सवारने के लिए दूसरा विवाह करने की आज्ञा दी। और दूसरा उदाहरण, बालगोबिन भगत ने अपने इकलौते बेटे का अंतिम संस्कार अपनी पतोहू के हाथों से करवाया।
प्रश्न 7 – बालगोबिन भगत को किन विशेषताओं के कारण साधु कहा जाता था ?
उत्तर – बालगोबिन भगत बेटा – पतोहू से युक्त परिवार , खेतीबारी और साफ़ – सुथरा मकान रखने वाले गृहस्थ थे, फिर भी उनका आचरण साधुओं जैसा था। वह सदैव खरी – खरी बातें कहते थे। वे झूठ नहीं बोलते थे। वे किसी की वस्तु को बिना पूछे प्रयोग नहीं करते थे। वे खामखाह किसी से झगड़ा नहीं करते थे। वे अत्यंत साधारण वेशभूषा में रहते थे। वे अपनी उपज को कबीरपंथी मठ पर चढ़ावा के रूप में दे देते थे। वहाँ से जो कुछ प्रसाद रूप में मिलता था उसी में परिवार का निर्वाह करते थे।
प्रश्न 8 – बालगोबिन भगत की पतोहू भाई के साथ क्यों नहीं जाना चाहती थी ? अंतत: उसे क्यों जाना पड़ा ?
उत्तर – जैसे ही पितरों अथवा मृत व्यक्तियों के लिए किया जाने वाला धार्मिक कर्मकांड , पिंडदान, अन्नदान आदि का समय पूरा हुआ , वैसे ही अपनी बहु के भाई को बुलाकर उसे उसके साथ कर दिया , और यह आदेश दिया कि इसकी दूसरी शादी कर देना। किन्तु उनकी बहु रो – रोकर कहती रही कि वह चली जाएगी तो बुढ़ापे में कौन बाल गोबिन भगत के लिए भोजन बनाएगा , यदि कभी बीमार पड़े , तो कोई उन्हें चुल्लू भर – पानी देने वाला भी नहीं होगा। वह बाल गोबिन भगत के पैर पड़ती रही कि वह उसे अपने चरणों से अलग न करे ! लेकिन भगत का निर्णय अटल था। उन्होंने अपनी बहस का अंत करते हुए कहा कि वह चली जाए , नहीं तो वे ही इस घर को छोड़कर चले जाएंगे। अब इस तरह की बात के आगे बेचारी पतोहू की एक न चली। कहने का तात्पर्य यह है कि न चाहते हुए भी बाल गोबिन भगत की बहु को उन्हें बुढ़ापे में अकेले छोड़ कर जाना पड़ा।
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Chapter 9 – Lakhnavi Andaz (लगभग 25-30 शब्दों में )
प्रश्न 1 – ‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने यात्रा करने के लिए सेकंड क्लास का टिकट क्यों खरीदा?
उत्तर – लेखक बताते हैं कि आराम से अगर लोकल ट्रेन के सेकंड क्लास में जाना हो तो उसके लिए कीमत भी अधिक लगती है। लेखक को बहुत दूर तो जाना नहीं था। लेकिन लेखक ने टिकट सेकंड क्लास का ही ले लिया ताकि वे अपनी नयी कहानी के संबंध में सोच सके और खिड़की से प्राकृतिक दृश्य का नज़ारा भी ले सकें , इसलिए भीड़ से बचकर , शोरगुल से रहित ऐसा स्थान जहाँ कोई न हो , लेखक ने चुना।
प्रश्न 2 – ‘लखनवी अंदाज़’ के पात्र नवाब साहब के व्यवहार पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर – नवाब साहब के व्यवहार में तहजीब, नजाकत के साथ-साथ दिखावेपन की झलक दिखती है। उनमें नवाबी अकड़ थी जिस कारण वह स्वयं को दूसरों से अधिक शिष्ट व शालीन दिखाना चाहते हैं। खीरा पसंद होते हुए भी कहीं लेखक उन्हें तुच्छ न समझ ले इसलिए खीरे की गंध को ग्रहण कर स्वाद का आनन्द लेकर बाहर फेंक दिया जो बहुत ही हास्यास्पद लगता है। परन्तु अपनी खानदानी नवाबी और दिखावटी जीवनशैली द्वारा वे स्वयं को गर्वित महसूस करते हैं। और स्वयं को दूसरों से अधिक उच्च समझते हैं।
प्रश्न 3 – खीरा काटने में नवाब साहब की विशेषज्ञता का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए ।
उत्तर – नवाब साहब ने पहले खीरों को अच्छे से धोया और पोंछ कर सुखाया और फिर तौलिये को बिछा कर साफ खीरे उस पर सजा दिए। तत्पश्रात खीरों को फांकों में काटा और उस पर नमक और लाल मिर्च की सुखी बुरक दी। बड़े इत्मीनान से खीरों को सूँघा और बिना खाये ही रसास्वादन करके सभी खीरों को खिड़की से बाहर फेंक दिया।
प्रश्न 4 – नवाब साहब ने खीरा खाने की पूरी तैयारी की और उसके बाद उसे बिना खाए फेंक दिया । इस नवाबी व्यवहार पर टिप्पणी कीजिए ।
उत्तर – नवाब साहब ने यत्नपूर्वक खीरा काटकर नमक – मिर्च छिड़का और सूँघ कर खिड़की से बाहर फेंक दिया। उनका ऐसा करना उनकी नवाबी ठसक दिखाता है। वे लोगों के कार्य व्यवहार से हटकर अलग कार्य करके अपनी नवाबी दिखाने की कोशिश करते हैं। उनका ऐसा करना उनके अमीर स्वभाव और नवाबीपन दिखाने की प्रकृति या स्वभाव को इंगित करता है।
प्रश्न 5 – नवाब साहब के किन हाव-भावों से लेखक को अनुभव हुआ कि वे बातचीत करने को तनिक भी उत्सुक नहीं हैं ? ‘लखनवी अंदाज’ पाठ के आधार पर लिखिए ।
उत्तर – भीड़ से बचकर यात्रा करने के उद्देश्य से जब लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ा तो देखा उसमें एक नवाब साहब पहले से बैठे थे। लेखक को देखकर उन नवाब साहब ने कुछ ऐसे हाव – भाव दिखाए जिनको देखकर लेखक ने जान लिया कि नवाब साहब उनसे बातचीत करने के इच्छुक नहीं हैं।
वे हाव – भाव थे –
नवाब साहब के चिंतन में व्यवधान पड़ा , जिससे उनके चेहरे पर व्यवधान के भाव उभर आए।
नवाब साहब की आँखों में असंतोष का भाव उभर आया।
उन्होंने लेखक से बातचीत करने की पहल नहीं की।
लेखक की ओर देखने के बजाए वे खिड़की से बाहर देखते रहे।
कुछ देर बाद वे डिब्बे की स्थिति को देखने लगे।
प्रश्न 6 – ‘लखनवी अंदाज़’ में नवाब साहब के द्वारा खीरे को छीलने और परोसने का जो सूक्ष्म वर्णन लेखक ने किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर – नवाब साहब ने पहले खीरों को अच्छे से धोया और पोंछ कर सुखाया और फिर तौलिये को बिछा कर साफ खीरे उस पर सजा दिए। तत्पश्रात खीरों को फांकों में काटा और उस पर नमक और लाल मिर्च की सुखी बुरक दी। बड़े इत्मीनान से खीरों को सूँघा और बिना खाये ही रसास्वादन करके सभी खीरों को खिड़की से बाहर फेंक दिया।
प्रश्न 7 – नवाब साहब ने खीरों को सूँघा और खिड़की से बाहर फेंक दिया। नवाब साहब के इस व्यवहार को उचित या अनुचित कैसे ठहराएँगे ?
उत्तर – नवाब साहब ने यत्नपूर्वक खीरा काटकर नमक – मिर्च छिड़का और सूँघ कर खिड़की से बाहर फेंक दिया। उनका ऐसा करना उनकी नवाबी ठसक दिखाता है। वे लोगों के कार्य व्यवहार से हटकर अलग कार्य करके अपनी नवाबी दिखाने की कोशिश करते हैं। उनका ऐसा करना उनके अमीर स्वभाव और नवाबीपन दिखाने की प्रकृति या स्वभाव को दर्शाता है। नवाब साहब का यह व्यवहार बिलकुल अनुचित था क्योंकि केवल अपनी झूठी शान दिखाने के लिए उन्होंने खाने का अपमान किया और पैसे भी बर्बाद किया। जबकि उन्हें खीरे बहुत पसंद थे।
प्रश्न 8 – ‘लखनवी अंदाज़’ को रोचक कहानी बनाने वाली कोई दो बातें लिखिए ।
उत्तर – ‘लखनवी अंदाज़’ को रोचक कहानी बनाने वाली दो बातें निम्नलिखित हैं –
पहली नवाब साहब का खीरे छिलने, काटने व् बिना खाए ही फ़ेंक देना।
दूसरा लेखक का नवाब साहब को सब कार्य करते हुए तिरछी निगाहों से देखना व् सभी बातों का रोचक ढंग से वर्णन करना।
प्रश्न 9 – आप कैसे कह सकते हैं कि नवाब साहब को लेखक यशपाल का डिब्बे में आना पसंद नहीं आया ?
उत्तर – लेखक के डिब्बे में अचानक से कूद जाने के कारण नवाब साहब के ध्यान में बाधा या अड़चन पड़ गई थी , जिस कारण नवाब साहब की नाराज़गी साफ़ दिखाई दे रही थी। लेखक नवाब साहब की नाराज़गी को देख कर सोचने लगे कि , हो सकता है , वे नवाब साहब भी किसी कहानी के लिए कुछ सोच रहे हों या ऐसा भी हो सकता है कि लेखक ने नवाब साहब को खीरे – जैसी तुच्छ वस्तु का शौक करते देख लिया था और इसी हिचकिचाहट के कारण वे नाराज़गी में हों। उन नवाब साहब ने लेखक के साथ सफ़र करने के लिए किसी भी प्रकार की कोई ख़ुशी जाहिर नहीं की।
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Chapter 10 – Ek Kahani Yeh Bhi (लगभग 25-30 शब्दों में )
प्रश्न 1 – मन्नू भंडारी याद करती हैं कि उनके बचपन में पूरा मोहल्ला उनका घर होता था। लेखिका ने वर्तमान स्थिति के बारे में क्या कहा है ?
उत्तर – जहाँ लेखिका के भाइयों के खेल की गतिविधियों का दायरा घर के बाहर ही अधिक रहता था और लेखिका और उनकी बहन के खेल की गतिविधियों की सीमा घर के अंदर तक ही थी। लेखिका बताती कि भले ही उस ज़माने में लड़कियों को उतनी अधिक आज़ादी नहीं थी परन्तु उस जमाने की एक अच्छी बात यह थी कि उस ज़माने में एक घर की दीवारें घर तक ही समाप्त नहीं हो जाती थीं बल्कि पूरे मोहल्ले तक फैली रहती थीं इसलिए मोहल्ले के किसी भी घर में जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी, बल्कि कुछ घर तो परिवार का हिस्सा ही थे। लेखिका आज के वर्तमान समय की बात करते हुए कहती हैं कि आज तो लेखिका को बड़ी प्रबलता के साथ यह महसूस होता है कि अपनी ज़िदगी खुद जीने के इस वर्तमान समय या युग में दबाव ने महानगरों के फ़्लैट में रहने वालों को हमारे इस पीढ़ी दर पीढ़ी होने वाले ‘पड़ोस – कल्चर’ से बिलकुल अलग करके हम सभी को कितना संकीर्ण, असहाय और असुरक्षित बना दिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि लेखिका पुराने समय के ‘पड़ोस – कल्चर’ को आज के फ़्लैट सिस्टम से बहुत अधिक अच्छा और सुरक्षित मानती हैं।
प्रश्न 2 – मन्नू भंडारी का अपने पिता से जो वैचारिक मतभेद था उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – लेखिका और उसके पिता के विचारों में कुछ समानता के साथ – साथ असमानता भी थी। लेखिका के पिता में विशिष्ट बनने और बनाने की चाह थी पर वे चाहते थे कि यह सब घर की चारदीवारी में रहकर हो , जो संभव नहीं था। वे नहीं चाहते थे कि लेखिका सड़कों पर लड़कों के साथ हाथ उठा – उठाकर नारे लगाए , जुलूस निकालकर हड़ताल करे। दूसरी ओर लेखिका को अपनी घर की चारदीवारी तक सीमित आज़ादी पसंद नहीं थी। उन्हें पता था कि यदि वे अपनी जिंदगी में कुछ ख़ास करना चाहती हैं तो उन्हें घर की चारदीवारी से बाहर निकलना ही पड़ेगा। यही वैचारिक टकराहट लेखिका और उनके पिता जी के मध्य टकराव का कारण था।
प्रश्न 3 – पाठ के आधार पर मन्नू भंडारी की माँ के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर – लेखिका अपनी माँ की धैर्य, शांति और सब्र की तुलना धरती से करती हैं और धरती को सबसे ज्यादा सहनशील माना जाता है और लेखिका की माँ में भी सहनशक्ति बहुत ज्यादा थी। लेखिका की माँ उनके पिता जी के हर अत्याचार और कठोर व्यवहार को इस तरह स्वीकार करती थी जैसे वे उनके इस तरह के व्यवहार को प्राप्त करने के योग्य हो और लेखिका की माँ अपने बच्चों की हर फ़रमाइश और ज़िद को चाहे वो फ़रमाइश सही हो या नहीं, अपना फर्ज समझकर बडे़ सरल और साधारण भाव से स्वीकार करती थीं। लेखिका की माँ ने अपनी पूरी ज़िदगी में अपने लिए कभी कुछ नहीं माँगा , कुछ नहीं चाहा केवल सबको दिया ही दिया। उनका त्याग, उनकी सहनशीलता और क्षमाशीलता लेखिका अपने व्यवहार में शामिल नहीं कर सकीं।
प्रश्न 4 – मन्नू भंडारी के पिता के दकियानूसी मित्र ने उन्हें क्या बताया कि वे भड़क उठे?
उत्तर – जब मन्नू भंडारी मुख्य बाजार के चौराहे पर भाषण दे रहीं थी, तब लेखिका के पिता जी के बहुत ही रुढ़िवादी या पुराने ख़याल या विचारों के एक मित्र ने लेखिका को भाषण देते हुए देख लिया था। लेखिका के पिता जी लेखिका पर विश्वास करने लगे थे, इसी विश्वास को तोड़ने का काम लेखिका के पिता जी के उन मित्र ने लेखिका के घर आ कर लेखिका के पिता जी से लेखिका की शिकायत करके किया। उन्होंने लेखिका के पिता को भड़काते हुए बहुत सी बातें सुनाई जैसे – लेखिका अर्थात मन्नू की तो मत मारी गई है पर लेखिका के पिता जी अर्थात भंडारी जी को तो बुद्धि से काम लेना चाहिए। यह तो ठीक है कि लेखिका के पिता जी ने अपनी लड़कियों को आज़ादी दी है , लेकिन लेखिका न जाने कैसे – कैसे उलटे – सीधे लड़कों के साथ हड़तालें करवाती , हुड़दंग मचाती फिर रही है। उनके और लेखिका के पिता जी के घरों की लड़कियों को यह सब शोभा नहीं देता। क्या लेखिका के पिता जी को कोई मान – मर्यादा , इज़्ज़त – आबरू का खयाल नहीं रह गया है।
प्रश्न 5 – मन्नू भंडारी और उनके पिता के बीच मतभेद के दो कारण लिखिए ।
उत्तर – लेखिका और उसके पिता के मतभेदों और टकराहट का मुख्य कारण उनके विचारों का परस्पर विरोधी होना था। एक ओर लेखिका के पिता चाहते थे कि उनकी बेटी देश और समाज के हालातों से परिचित हो, प्रगतिशील सोचवाली बने, लेकिन वह उसे घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखना चाहते थे। लेखिका को अपने पिता की यह सीमा स्वीकार नहीं थी। लेखिका के पिता को यह स्वीकार नहीं था कि उनकी बेटी लड़कों के साथ शहर की सड़कों पर नारे लगाती, हड़ताल कराती और जुलूस निकालती घूमे। इनके अतिरिक्त लेखिका ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध राजेन्द्र यादव से विवाह किया था जो मन्नू भंडारी और उनके पिता के बीच मतभेद का एक मुख्य कारण था।
प्रश्न 6 – मन्नू भंडारी के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का प्रभाव किस रूप में पड़ा ?
उत्तर – लेखिका के व्यक्तित्व पर मुख्यतया दो लोगों का प्रभाव पड़ा, जिन्होंने उसके व्यक्तित्व को गहराई तक प्रभावित किया। ये दोनों लोग हैं – लेखिका के पिता जी और प्राध्यापिका शीला अग्रवाल जी।
पिता जी का प्रभाव – लेखिका के व्यक्तित्व पर उसके पिता जी का नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों रूपों में प्रभाव पड़ा। लेखिका के पिता का स्वभाव शक्की हो गया था क्योंकि उन्होंने जिन लोगों पर आँख बंद करके भरोसा किया था उन्होंने उनके साथ विश्वासघात किया। इसका परिणाम यह हुआ कि वे परिवार के सदस्यों को भी शक की दृष्टि से देखते थे और इसका प्रभाव लेखिका के मन में भी पड़ा , क्योंकि जब कोई लेखिका के काम को ले कर उनकी तारीफ़ करता था तो लेखिका को भी शक्क होता था की कहीं वो उनका मजाक तो नहीं बना रहा है। सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए तो लेखिका के पिता जी ने लेखिका को राजनैतिक परिस्थितियों से अवगत कराया तथा देश के प्रति जागरूक करते हुए सक्रिय भागीदारी निभाने के योग्य बनाया।
प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का प्रभाव – लेखिका के व्यक्तित्व को उभारने में शीला अग्रवाल का महत्त्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने लेखिका की साहित्यिक समझ का दायरा बढ़ाया और अच्छी पुस्तकों को चुनकर पढ़ने में मदद की। इसके अलावा उन्होंने लेखिका में वह साहस एवं आत्मविश्वास भर दिया जिससे उसकी रगों में बहता खून लावे में बदल गया।
प्रश्न 7 – मन्नू भंडारी के पिता उन्हें किससे दूर रखना चाहते थे और क्यों ?
उत्तर – लड़कियों को जिस उम्र में स्कूली शिक्षा के साथ – साथ सलीकेदार गृहिणी और हर काम को श्रेष्ठ तरीके से ने में योग्य, खाना बनाने की कला में निपुण बनाने के उपाय सिखाए जाते थे, लेखिका के पिता जी इस बात पर बार – बार ज़ोर देते रहते थे, कि लेखिका रसोई से दूर ही रहे। क्योंकि रसोई को लेखिका के पिता जी भटियारखाना कहते थे और उनके हिसाब से वहाँ रहना अपनी क्षमता और प्रतिभा को भट्टी में झोंकना था। अर्थात लेखिका के पिता जी का मानना था कि अगर लडकियां केवल रसोई में ही रहेंगी तो भले ही वे अच्छी गृहणी के हर कार्य में निपुण हो जाएँ पर उनके अंदर के सभी गुण और योग्यताएँ समाप्त हो जाती हैं और वे एक छोटे से दायरे तक ही सिमित रह जाती हैं।
प्रश्न 8 – वह कौन-सी घटना थी जिसके कारण मन्नू भंडारी को अपने आँख-कानों पर विश्वास नहीं हो पाया ?
उत्तर – लेखिका राजनैतिक कार्यक्रमों में बढ़ – चढ़कर भाग ले रही थी। इस कारण लेखिका के कॉलेज की प्रिंसिपल ने उसके पिता जी के पास पत्र भेजा जिसमें अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की बात लिखी गई थी। यह पढ़कर लेखिका के पिता जी गुस्से में आ गए थे। वे लेखिका को बुरा – भला बड़बड़ाते हुए कॉलेज गए थे। कॉलेज की प्रिंसिपल ने जब बताया कि मन्नू के एक इशारे पर लड़कियाँ कक्षाओं को छोड़ कर बाहर आ जाती हैं और नारे लगाती हुई प्रदर्शन करने लगती हैं तो लेखिका के पिता जी ने कहा कि यह तो देश की माँग है। उन्होंने घर पहुँच कर हर्ष से गदगद होकर जब यही बात लेखिका की माँ को बताई और लेखिका की माँ ने यही बात लेखिका को बताई, इस बात को सुनकर लेखिका को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो पाया था।
प्रश्न 9 – मन्नू भंडारी की माँ का त्याग उनका आदर्श नहीं बन सका, क्यों ?
उत्तर – लेखिका की माँ हमेशा सबकी इच्छाओं को पूरा करने में लगी रहती थी कभी अपनी इच्छाओं पर ध्यान नहीं देती थी। भले ही लेखिका और उनके भाई – बहिनों का सारा लगाव उनकी माँ के साथ था लेकिन बहुत अधिक मजबूर और निराश्रय अर्थात मजबूरी में लिपटा उनका त्याग कभी लेखिका के लिए आदर्श नहीं बन सका। कहने का तात्पर्य यह है कि उनका त्याग , उनकी सहनशीलता और क्षमाशीलता लेखिका अपने व्यवहार में शामिल नहीं कर सकीं।
प्रश्न 10 – मन्नू भंडारी के पिता के स्वभाव में क्रोध और शक्कीपन आने के कुछ कारणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – लेखिका के पिता जी को किन्ही परायों ने नहीं बल्कि उनके अपनों ने ही धोखा दिया था और लेखिका अंदाजा लगाते हुए कहती हैं कि अपनों के हाथों धोखा खाने की न जाने कैसी गहरी चोटें होंगी , जिन्होंने आँख बंद करके सबका विश्वास करने वाले उनके पिता जी को बाद के दिनों में इतना संदेह करने वाला बना दिया था कि कभी – कभी लेखिका और उनके भाई – बहन और माँ भी उसकी चपेट में आते ही रहते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि लेखिका के पिता पहले सभी पर विश्वास करते थे परन्तु अपनों से धोखा खाने के बाद कभी – कभी लेखिका के पिता कुछ बातों पर अपने ही परिवार के लोगों पर भी संदेह करने लग गए थे।
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Chapter 11 – Naubatkhane Mein Ibadat (30-40 शब्दों में)
प्रश्न 1 – लेखक ने बिस्मिल्ला खाँ को वास्तविक अर्थों में सच्चा इंसान क्यों माना है?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ हिंदू – मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। उन्हें धार्मिक कट्टरता छू भी न गई थी। वे खुदा और हज़रत इमाम हुसैन के प्रति जैसी आस्था एवं श्रद्धा रखते थे। वैसी ही श्रद्धा एवं आस्था गंगामैया , बालाजी , बाबा विश्वनाथ के प्रति भी रखते थे। वे काशी की गंगा – जमुनी संस्कृति में विश्वास रखते थे। इन प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ सच्चे इंसान थे।
प्रश्न 2 – कैसे कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली-जुली संस्कृति के प्रतीक थे?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ अपने धर्म अर्थात् मुस्लिम धर्म के प्रति समर्पित इंसान थे। वे नमाज़ पढ़ते , सिजदा करते और खुदा से सच्चे सुर की नेमत माँगते थे। इसके अलावा वे हज़रत इमाम हुसैन की शहादत पर दस दिनों तक शोक प्रकट करते थे तथा आठ किलोमीटर पैदल चलते हुए रोते हुए नौहा बजाया करते थे। इसी तरह वे काशी में रहते हुए गंगामैया, बालाजी और बाबा विश्वनाथ के प्रति असीम आस्था रखते थे। वे हनुमान जयंती के अवसर पर आयोजित शास्त्रीय गायन में भी उपस्थित रहते थे। इन प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ मिली – जुली संस्कृति के प्रतीक थे।
प्रश्न 3 – बिस्मिल्ला खाँ जीवन भर ईश्वर से क्या माँगते रहे और क्यों ? इससे उनकी किस विशेषता का पता चलता है ?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ ने अपनी पूरी जिंदगी में ईश्वर से अपने संगीत की समृद्धि के अलावा कुछ नहीं माँगा। वे हमेशा नमाज़ के बाद सज़दे में गिड़गिड़ाते थे कि मेरे मालिक एक सुर बख्श दे। सुर में वह गुण व् योग्यता पैदा कर कि आँखों से सच्चे मोती की तरह लगातार आँसू निकल आएँ। बिस्मिल्ला खाँ को यह भरोसा था कि कभी न कभी ईश्वर उन पर यूँ ही दयालु व् दयावान होगा और अपनी झोली से सुर का फल निकालकर बिस्मिल्ला खाँ की ओर उछालेगा, और फिर कहेगा कि ले जा अमीरुद्दीन इसको खा ले और कर ले अपनी इच्छा को पूरी। इससे बिस्मिल्ला खाँ के बारे में पता चलता है कि उन्हें अपनी शहनाई बजाने में किसी प्रकार का घमंड नहीं था बल्कि वे तो सारा दिन रियास करते रहते थे। वे एक सच्चे संगीतज्ञ थे।
प्रश्न 4 – बिस्मिल्लाह खाँ को भारत रत्न का सम्मान क्यों मिला था ? उनके रहन-सहन की सादगी का एक उदाहरण दीजिए |
उत्तर – बिस्मिल्लाह खाँ को भारत रत्न का सम्मान अद्धभुत शहनाई वादक के रूप में मिला था। इसके बावजूद भी वे बहुत सादगी से रहते थे। उनके रहन-सहन की सादगी का एक उदाहरण इस प्रकार है कि एक दिन बिस्मिल्ला खाँ के एक शिष्य ने डरते – डरते बिस्मिल्ला खाँ साहब को टोका कि आपको भारत सरकार का सर्वोच्च सम्मान अर्थात भारतरत्न भी मिल चुका है , यह फटी धोती न पहना करें। अच्छा नहीं लगता , जब भी कोई आता है आप इसी फटी धोती में सबसे मिलते हैं।” उस शिष्य की बात सुनकर बिस्मिल्ला खाँ साहब मुसकराए। दुलार व् वात्सल्य से भरकर उस शिष्य से बोले कि ये जो भारतरत्न उनको मिला है न यह शहनाई पर मिला है, उनकी लंगोटी पर नहीं। अगर वे भी सब लोगों की तरह बनावटी शृंगार देखते रहते, तो पूरी उमर ही बीत जाती, और शहनाई की तो फिर बात ही छोड़ो। तब क्या वे खाक रियाज़ कर पाते। कहने का तात्पर्य यह है कि बिस्मिल्ला खाँ साहब बहुत ही सीधे – साढ़े व्यक्ति थे। वे कोई भी दिखावा करना सही नहीं समझते थे। वे केवल अपने रियाज़ को ही महत्वपूर्ण मानते थे।
प्रश्न 5 – बिस्मिल्ला खाँ को काशी में कौन-सी कमियाँ खलती थीं ?
उत्तर – समय के साथ – साथ काशी में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं जो बिस्मिल्ला खाँ को दुखी करते हैं , जैसे –
पक्का महाल से मलाई बरफ़ वाले गायब हो रहे हैं।
कुलसुम की कचौड़ियाँ और जलेबियाँ अब नहीं मिलती है।
संगीत और साहित्य के प्रति लोगों में वैसा मान – सम्मान नहीं रहा।
गायकों के मन में संगतकारों के प्रति सम्मान भाव नहीं रहा।
हिंदू – मुसलमानों में सांप्रदायिक सद्भाव में कमी आ गई है।
प्रश्न 6 – बिस्मिल्ला खाँ को मंगलध्वनि का नायक क्यों कहा गया है ?
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक इसलिए कहा गया है क्योंकि शहनाई की ध्वनि मंगलदायी मानी जाती है। इसका वादन मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। अर्थात शहनाई को केवल शुभ कार्य या कल्याण अवसरों पर ही बजाय जाता है। बिस्मिल्ला खाँ अस्सी वर्ष की आयु तक शहनाई बजाते रहे। उनकी गणना भारत के सर्वश्रेष्ठ शहनाई वादक के रूप में की जाती है। उन्होंने शहनाई को भारत ही नहीं विश्व में लोकप्रिय बनाया। इसलिए बिस्मिल्ला खाँ को शहनाई की मंगल ध्वनि का नायक कहा गया है।
प्रश्न 7 – “एक बड़े कलाकार का सहज मानवीय रूप मुहर्रम के अवसर पर आसानी से दिख जाता है ।” बिस्मिल्ला खाँ के बारे में यह क्यों कहा गया है ?
उत्तर – “एक बड़े कलाकार का सहज मानवीय रूप मुहर्रम के अवसर पर आसानी से दिख जाता है ।” इस दिन खाँ साहब खड़े होकर शहनाई बजाते हैं व दालमंडी में फातमान के करीब आठ किलोमीटर की दूरी तक पैदल रोते हुए , मृतक के लिए शोक मनाते हुए जाते हैं। इस दिन कोई राग नहीं बजता। राग – रागिनियों को अदा करना या बजाने का इस दिन निषेध् होता है। सभी शिया मुसलमानों की आँखें इमाम हुसैन और उनके परिवार के लोगों के शहीद होने पर नम रहती हैं। इन दस दिनों में मातम या शोक मनाया जाता है। हज़ारों आँखें नम होती है। हज़ार वर्ष की परंपरा फिर से जीवित होती है। मुहर्रम समाप्त होता है। एक बड़े कलाकार का साधारण मानवीय रूप ऐसे अवसर पर आसानी से दिख जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि बिस्मिल्ला खाँ जैसे बड़े कलाकार भी अपने रीती – रिवाजों को शिदद्त से निभाते हैं।
प्रश्न 8 – भारतरत्न बिस्मिल्ला खाँ सरल-सहज व्यक्ति थे, दो उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए ।
उत्तर – बिस्मिल्ला खाँ हिंदू – मुस्लिम एकता के प्रतीक थे। उन्हें धार्मिक कट्टरता छू भी न गई थी। वे खुदा और हज़रत इमाम हुसैन के प्रति जैसी आस्था एवं श्रद्धा रखते थे। वैसी ही श्रद्धा एवं आस्था गंगामैया , बालाजी , बाबा विश्वनाथ के प्रति भी रखते थे। वे काशी की गंगा – जमुनी संस्कृति में विश्वास रखते थे। इन प्रसंगों के आधार पर हम कह सकते हैं कि बिस्मिल्ला खाँ सच्चे इंसान थे।
प्रश्न 9 – कैसे कह सकते हैं कि “काशी संस्कृति की प्रयोगशाला” है ? ‘नौबतख़ाने में इबादत’ पाठ के आधार पर लिखिए ।
उत्तर – काशी संस्कृति की पाठशाला है क्योंकि काशी में संगीत की एक अद्भुत परंपरा रही है। बड़े-बड़े रसिक कण्ठे महाराज ने भी यहीं सबको संस्कृति का पाठ पढ़ाया। काशी में बाबा विश्वनाथ हैं, संकटमोचक हनुमान का मंदिर है। खानपान, उत्सव और अन्य सामाजिक परम्पराएँ भी विद्यमान है। काशी में गंगा जमुनी संस्कृति है इसको शास्त्रों में आनंद कानन के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हजारों साल का इतिहास छिपा हुआ है।
प्रश्न 10 – ‘नौबतखाने में इबादत’ पाठ के आधार पर डुमराँव गाँव की प्रसिद्धि के दो कारणों का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर – शहनाई की दुनिया में डुमराँव को याद किए जाने के मुख्यतया दो कारण हैं –
शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड, नरकट जो की एक घास है जिसके पौधे का तना खोखला गाँठ वाला होता है, उससे बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इस रीड के बिना शहनाई बजना मुश्किल है।
शहनाई की मंगल ध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ की जन्मस्थली डुमराँव ही है।
प्रश्न 11 – किशोर अमीरुद्दीन को बालाजी के मंदिर तक जाने के लिए कौन-सा रास्ता प्रिय था और क्यों ?
उत्तर – बालाजी मंदिर में बिस्मिल्ला खाँ को नौबतखाने अपने संगीत के अभ्यास के लिए जाना पड़ता था। मगर बालाजी मंदिर तक जाने का एक रास्ता था , यह रास्ता रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर के पास से होकर जाता था। इस रास्ते से अमीरुद्दीन को जाना अच्छा लगता था। इसका कारण यह था कि इस रास्ते से न जाने कितने तरह के बोल – बनाव कभी ठुमरी, कभी टप्पे, कभी दादरा के द्वारा मंदिर के दरवाजे तक पहुँचते रहते थे। कहने का तात्पर्य यह है कि रसूलनबाई और बतूलनबाई के घर से भी हमेशा कोई न कोई संगीत सुनाई पड़ता रहता था और रसूलन और बतूलन जब गाती थी तब अमीरुद्दीन को खुशी मिलती थी।
प्रश्न 12 – डुमराँव से अमीरुद्दीन के संबंधों को समझाइए ।
उत्तर – शहनाई बजाने के लिए रीड का प्रयोग होता है। रीड अंदर से पोली होती है जिसके सहारे शहनाई को फूँका जाता है। रीड, नरकट जो की एक घास है जिसके पौधे का तना खोखला गाँठ वाला होता है, उससे बनाई जाती है जो डुमराँव में मुख्यतः सोन नदी के किनारों पर पाई जाती है। इस रीड के बिना शहनाई बजना मुश्किल है। शहनाई की मंगल ध्वनि के नायक बिस्मिल्ला खाँ की जन्मस्थली डुमराँव ही है।
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Kritika Bhag 2
Chapter 1 – Mata Ka Aanchal ( लगभग 50-60 शब्दों में )
प्रश्न 1 – ‘माता का आँचल’ नामक पाठ में लेखक ने तत्कालीन समाज के पारिवारिक परिवेश का जो चित्रण किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर – माता का अंचल ग्रामीण संस्कृति पर आधारित लेखक के बचपन का संस्मरण है उस समय के सामाजिक परिवेश में बच्चों का बचपन बहुत ही स्वच्छंद और आनंदमय होता था। पारिवारिक स्नेह तथा पिता पुत्र के प्रति अगाध प्रेम था। लेखक भोलानाथ ने उस समय का वर्णन किया है कि उनका अधिक समय पिता के साथ ही बीतता था माता से सिर्फ दूध पीने का नाता था। सारा दिन भोलानाथ अपने मित्रों के साथ खेल तमाशों में व्यस्त रहता। पिता भी उसकी हर गतिविधि में शामिल रहते। परन्तु जब संकट आया तो भोलानाथ माँ की शरण में जा छुपता क्योंकि हर बच्चे को लगता है कि संकट के समय माँ का अंचल ही उसके लिए सबसे सुरक्षित और महफूज जगह है। बच्चों की शरारतों तथा धार्मिक वातावरण का वर्णन भी किया है।
प्रश्न 2 – ‘माता का आँचल’ पाठ की दो बातों का उल्लेख कीजिए जो आपको अच्छी लगी हों। इनसे आपको क्या प्रेरणा मिली ?
उत्तर – ‘माता का अंचल’ पाठ बच्चों के बचपन की एक झलक है। इस पाठ में बच्चों के स्वच्छंद बचपन का वर्णन है कि किस प्रकार वे अपने हमजोलियों के बीच मिट्टी में ही, बिना खेल खिलौनों के अपना जीवन बिताते हैं। इस पाठ की बहुत सी बातें हमें अच्छी लगी जैसे – पिताजी का भोलेनाथ के हर खेल में शामिल होना और हर खेल पर अपनी बच्चों सी टिप्पणी देना। जब चूहे के बिल में से साँप निकल आया और दहशत में आकर संकट के समय भोलेनाथ का माँ के आँचल में जाकर छुप जाना मन को आनंदित करने वाला दृश्य है। इस पाठ में बहुत से प्रसंग गुदगुदाने वाले भी हैं। जैसे – पिता का इस प्रकार बच्चा बन जाना बहुत सुखद अनुभव है जो सभी पाठकों को आनंदित करता है।
प्रश्न 3 – ‘माता का आँचल’ पाठ के आधार पर बच्चों के प्रति माता-पिता के वात्सल्य को अपने शब्दों में लिखिए ।
उत्तर – प्रस्तुत पाठ में भोलानाथ के पिता एक सजग व स्नेही पिता के रूप में हैं। उनके दिन का आरम्भ भोलानाथ के साथ शुरू होता है। उसे नहलाकर पूजा पाठ कराना, उसको अपने साथ कंधे पर बिठा कर घुमाने ले जाना, उसके व् उसके साथियों के साथ बच्चा बनकर खेलना व उसकी बालसुलभ क्रीड़ा से प्रसन्न होना, उनके स्नेह व प्रेम को व्यक्त करता है। बच्चे की ज़रा सी भी पीड़ा उनसे देखी नहीं जाती। गुरु जी द्वारा सजा दिए जाने पर वह उनसे माफी माँग कर अपने साथ ही ले आते हैं। इस तरह के व्यवहार से उनका भोलानाथ के लिए असीम प्रेम व सजगता झलकती है।
भोलानाथ की माता भी वात्सल्य व ममत्व से भरपूर है। भोलानाथ को भोजन कराने के लिए उनका तरह-तरह से स्वांग रचना एक स्नेही माता की ओर संकेत करता है। जो अपने पुत्र को भोजन कराने के लिए चिंतित है। दूसरी ओर उसको लहूलुहान व भय से काँपता देखकर माँ भी स्वयं रोने व चिल्लाने लगती है। अपने पुत्र की ऐसी स्थिति देखकर माँ का हृदय भी दुख से भर जाता है। वह अपने सारे काम छोड़कर अपने पुत्र को अपनी बाँहों में भरकर उसको सांत्वना देने का प्रयास करती है। अपने आँचल से उसके शरीर को साफ करती है, इससे उनकी माँ का अपने पुत्र के प्रति असीम प्रेम, ममत्व व वात्सल्य का पता चलता है।
प्रश्न 4 – ‘माता का आँचल’ पाठ से ऐसे दो प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों ।
उत्तर – प्रस्तुत पाठ में ऐसे बहुत से प्रसंग है जो हमारे दिल को खुश कर जाते हैं –
जैसे भोलानाथ जब अपने पिता की गोद में बैठा कर आईने में अपने प्रतिबिम्ब को देखकर खुश होता है। और जब पिता ने रामायण पाठ छोड़कर उसे देखा तो कैसे शर्माकर व मुस्कुराकर आईना रख देता है। यहाँ लेखक ने बच्चों का अपने अक्ष के प्रति जिज्ञासा भाव का और उसका शर्माकर आईना रखने का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है।
दूसरा प्रसंग जब बच्चों द्वारा बारात का नाटक रचते हुए बारात द्वारा एक कोने से दूसरे कोने तक दुल्हन को लिवा लाना व पिता द्वारा दुल्हन का घूंघट उठाने पर सब बच्चों का शर्माकर खिलखिला कर भाग जाने का वर्णन भी अत्यधिक मनोहर है।
प्रश्न 5 – ऐसा क्यों होता है कि विपत्ति के समय बच्चा पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है ? सोदाहरण समझाइए ।
उत्तर – बच्चे के पिता बच्चे के द्वारा खेले जाने वाले प्रत्येक खेल में शामिल होने का प्रयास करते थे। वे प्रयास करते थे कि किसी-न-किसी प्रकार अधिकांश समय वे अपने बच्चे के साथ रहे। अतः यह स्वाभाविक था कि बच्चे को अपने पिता से अधिक लगाव था। उसके पिता उसके संग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते थे। भोलानाथ अपने पिता से अपार स्नेह करता था पर जब उस पर विपदा आई तो उसे जो शांति व प्रेम की छाया अपनी माँ की गोद में जाकर मिली वह शायद उसे पिता से प्राप्त नहीं हो पाती। क्योंकि एक पिता चाहे अपनी संतान से कितना भी प्रेम करता हो पर जो आत्मीय सुख माँ की छाया अथवा गोद में प्राप्त होता है वह पिता से प्राप्त नहीं होता। माँ के आँचल में बच्चा स्वयं को सुरक्षित महसूस करता है। यही कारण था कि प्रस्तुत पाठ में बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव होने पर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है।
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Chapter 2 – Saana Saana Hath Jodi ( लगभग 50-60 शब्दों में )
प्रश्न 1 – सिक्किम के युवती के कथन में ‘मै इंडियन हूं’ से स्पष्ट होता है कि अपनी जाति, धर्म – क्षेत्र और संप्रदाय से अधिक महत्वपूर्ण राष्ट्र है। आप किस प्रकार राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य निभाकर देश के प्रति अपना प्रेम प्रकट कर सकते है? समझाइए।
उत्तर – सिक्किम के युवती के कथन में ‘मै इंडियन हूं’ से स्पष्ट होता है कि अपनी जाति, धर्म – क्षेत्र और संप्रदाय से अधिक महत्वपूर्ण राष्ट्र है। हम अपने राष्ट्र की सम्पदा को अपनी सम्पदा मान कर उसकी रक्षा करके अपना कर्तव्य निभा सकते हैं। अपने राष्ट्र में आए बाहर से अतिथियों का सत्कार करके भी हम अपने राष्ट्र के प्रति प्रेम को दिखा सकते हैं। अपने राष्ट्र को प्रदूषण जैसी समस्या से छुटकारा दिलाने में योगदान दे सकते हैं। राष्ट्र की सुंदरता को निखारने व् शिक्षा को बल दे कर अपने राष्ट्र की निरक्षरता को समाप्त करने में अपनी भूमिका अदा कर सकते हैं।
प्रश्न 2 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ के आधार पर लिखिए कि देश की सीमा पर सैनिक किस प्रकार की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति भारतीय युवकों का क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
उत्तर – देश की सीमाओं पर बैठे फौजी उन सभी कठिनाइयों से जूझते हैं जो सामान्य जीवन जीने वाले व्यक्ति उम्मीद भी नहीं कर सकते। कड़कड़ाती ठंड जहाँ तापमान माइनस में चला जाता है, जहाँ पेट्रोल को छोड़ सब कुछ जम जाता है, वहाँ भी फौजी तैनात रहते हैं और हम आराम से अपने घरों पर बैठे रहते हैं। इसी तरह वे शरीर को तपा देने वाली गर्मियों के दिनों में रेगिस्तान जैसी जगहों पर भी अनेक विषमताओं से जूझते हुए कठिनाइयों का सामना करते हैं। कभी सघन जंगलों में, बरसात में भीगते हुए, खतरनाक जानवरों का सामना कर हमें सुरक्षित जीवन जीने का अवसर देते हैं।
हमें चाहिए कि हम उनके व उनके परिवार वालों के प्रति सदैव सम्माननीय व्यवहार करें। जिस तरह वह अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हैं, हमें उनके परिवार वालों का ध्यान रख उसी तरह अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। सदैव उनको अपने से पहले प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि एक फौजी भी हमारी सुरक्षा को सबसे पहले प्राथमिकता देता है फिर चाहे उसे अपनी जान का दाव ही क्यों न खेलना पड़े।
प्रश्न 3 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ के आधार पर गंगतोक के मार्ग के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन कीजिए जिसे देखकर लेखिका को अनुभव हुआ – “जीवन का आनंद है यही चलायमान सौंदर्य!”
उत्तर – लेखिका गैंगटॉक की प्राकृतिक सुंदरता को देखकर बहुत हैरान थी उन्हें ऐसा लगा रहा था जैसे आसमान उलटा हो गया हो और सारे तारे बिखरकर नीचे टिमटिमा रहे हों। दूर पहाड़ के आस-पास के समतल मैदानी भू-भाग पर सितारों के गुच्छे रोशनियों की एक झालर के लग रहे थे। लेखिका को यह सब समझ में नहीं आ रहा था। लेखिका जो दृश्य देख रही थी वह रात में जगमगाता गैंगटॉक शहर था। लेखिका ने पाया कि इतिहास और वर्तमान के संधि-स्थल पर खड़ा परिश्रमी बादशाहों का वह एक ऐसा शहर था जिसका सब कुछ सुंदर था। चाहे वह वहां की सुबह हो , शाम हो या रात हो। और वह रहस्य से भरी हुई सितारों भरी रात लेखिका के मन को इस तरह मुग्ध कर रही थी, कि उन जादू भरे क्षणों में लेखिका को अपना सब कुछ ठहरा हुआ प्रतीत हो रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे लेखिका की बुद्धि, स्मृति और आस-पास का सब कुछ व्यर्थ है।
प्रश्न 4 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर लिखिए कि हमारे सैनिक सीमाओं पर कैसे कष्ट उठाते हैं और उनके प्रति हमारा क्या कर्तव्य है।
उत्तर – देश की सीमाओं पर बैठे फौजी उन सभी कठिनाइयों से जूझते हैं जो सामान्य जीवन जीने वाले व्यक्ति उम्मीद भी नहीं कर सकते। कड़कड़ाती ठंड जहाँ तापमान माइनस में चला जाता है, जहाँ पेट्रोल को छोड़ सब कुछ जम जाता है, वहाँ भी फौजी तैनात रहते हैं और हम आराम से अपने घरों पर बैठे रहते हैं। इसी तरह वे शरीर को तपा देने वाली गर्मियों के दिनों में रेगिस्तान जैसी जगहों पर भी अनेक विषमताओं से जूझते हुए कठिनाइयों का सामना करते हैं। कभी सघन जंगलों में, बरसात में भीगते हुए, खतरनाक जानवरों का सामना कर हमें सुरक्षित जीवन जीने का अवसर देते हैं।
हमें चाहिए कि हम उनके व उनके परिवार वालों के प्रति सदैव सम्माननीय व्यवहार करें। जिस तरह वह अपने कर्त्तव्यों का पालन करते हैं, हमें उनके परिवार वालों का ध्यान रख उसी तरह अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। सदैव उनको अपने से पहले प्राथमिकता देनी चाहिए क्योंकि एक फौजी भी हमारी सुरक्षा को सबसे पहले प्राथमिकता देता है फिर चाहे उसे अपनी जान का दाव ही क्यों न खेलना पड़े।
प्रश्न 5 – ‘साना-साना हाथ जोड़ि’ पाठ में जितेन नार्गे की भूमिका पर विचार करते हुए लिखिए कि एक कुशल गाइड में किन गुणों की अपेक्षा की जाती है ।
उत्तर – जितेन नार्गे लेखिका का ड्राइवर कम गाइड था। वह नेपाल से कुछ दिन पहले आया था जिसे नेपाल और सिक्किम की अच्छी जानकारी थी। वह सिक्किम व् उसके क्षेत्र-से अच्छी तरह परिचित था। वह ड्राइवर के साथ-साथ गाइड का कार्य कर रहा था। उसमें प्रायः गाइड के वे सभी गुण विद्यमान थे जो एक अच्छे गाइड में होने चाहिए। जैसे-
- एक कुशल गाइड में उस स्थान की भौगोलिक, प्राकृतिक और सामाजिक जानकारी होनी चाहिए, जो नार्गे में उचित रूप से विद्यमान थी।
- एक कुशल गाइड को इस बात की अच्छे से जानकारी होनी चाहिए कि कहाँ रुकना है? यह निर्णय करने में वह स्वयं ही समर्थ होना चाहिए। उसे कुछ सलाह देने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
- गाइड में सैलानियों को प्रभावित करने की रोचक शैली होनी चाहिए ।
- एक सुयोग्य गाइड क्षेत्र के जन-जीवन की गतिविधियों की भी जानकारी रखता है और संवेदनशील भी होता है।
- कुशल गाइड की वाणी प्रभावशाली होनी चाहिए। ताकि वह अपनी वाक्पटुता से पर्यटन स्थलों के प्रति जिज्ञासा बनाए रख सके।
- कुशल गाइड को इतना सक्षम होना चाहिए कि वह भ्र्मणकर्ताओं के सभी प्रश्नों के उत्तर दे सकें।
प्रश्न 6 – प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है और मानव को जल संचय के लिए कौन-कौन से कदम उठाने चाहिए ?
उत्तर – प्रकृति ने जल-संचय की बड़ी अद्भुत व्यवस्था की है। प्रकृति, सर्दियों के समय में पहाड़ों पर बर्फ बरसा देती है और जब गर्मी शुरू हो जाती है तो उस बर्फ को पिघला कर नदियों को जल से भर देती है। जिससे गर्मी से व्याकुल लोगों को गर्मियों में जल की कमी नहीं होती। यदि प्रकृति ने बर्फ के माध्यम से जल संचय की व्यवस्था ना की होती तो हमारे जीवन के लिए आवश्यक जल की आपूर्ति सम्भव नहीं थी। प्रकृति सर्दियों में पर्वत शिखरों पर बर्फ के रूप में गिरकर जल का भंडारण करती है। जो गर्मियों में जलधारा बनकर प्यास बुझाते हैं। नदियों के रूप में बहती यह जलधारा अपने किनारे बसे नगर-गाँवों में जल-संसाधन के रूप में तथा नहरों के द्वारा एक विस्तृत क्षेत्र में सिंचाई करती हैं और अंततः सागर में जाकर मिल जाती हैं। सागर से जलवाष्प बादल के रूप में उड़ते हैं, जो मैदानी क्षेत्रों में वर्षा तथा पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ के रूप में बरसते हैं। इस प्रकार ‘जल-चक्र’ द्वारा प्रकृति ने जल-संचयन तथा वितरण की व्यवस्था की है।
प्रश्न 7 – जितेन नोर्गे ने सिक्किम की प्रकृति और भौगोलिक स्थिति के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं ? ‘साना साना हाथ जोड़ि’ पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर – जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दीं –
- सिक्किम में गंतोक से लेकर यूमथांग तक घाटियों के सारे रास्ते हिमालय की अत्यधिक गहरी घाटियों और अत्यधिक घनी फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी।
- शांत और अहिंसा के मंत्र लिखी पताकाएँ पहाड़ी रास्तों पर फहराई बुद्धिस्ट की मृत्यु व नए कार्य की शुरुआत पर फहराई जाती हैं शां
- जब यहाँ किसी बुद्ध के अनुयायी की मौत होती है तो श्वेत पताकाएँ लगाई जाती हैं। इनकी संख्या 108 होती हैं।
- रंगीन पताकाएँ किस नए कार्य के शुरू होने पर लगाई जाती हैं।
- यहाँ के प्रसिद्ध स्थल कवी-लोंग-स्टॉक- में ‘गाइड’ फिल्म की शूटिंग हुई थी।
- यहाँ धर्मचक्र अर्थात् प्रेयर व्हील भी हैं। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं।
- यह पहाड़ी इलाका है। यहाँ के लोग मेहनतकश लोग हैं व जीवन काफी मुश्किलों भरा है। यही कारण है कि यहाँ कोई भी चिकना-चर्बीला आदमी नहीं मिलता है।
- यहाँ की युवतियाँ बोकु नाम का सिक्किम परिधान डालती हैं। जिसमें उनके सौंदर्य की छटा निराली होती है।
- यहाँ के घर, घाटियों में ताश के घरों की तरह पेड़ के बीच छोटे-छोटे होते हैं।
- बच्चों को लगभग 3 किलोमीटर चढाई करके पढ़ाई के लिए जाना पड़ता है क्योंकि दूर-दूर तक कोई स्कूल नहीं है।
- नार्गे ने उत्साहित होकर ‘कटाओ’ के बारे में बताया कि ‘कटाओ हिंदुस्तान का स्विट्जरलैंड है।”
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