CBSE Class 9 Hindi Chapter 3 Upbhoktavad ki Sanskriti (उपभोक्तावाद की संस्कृति) Question Answers (Important) from Kshitij Book
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प्रश्न 1 – लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर – यह कहा जाता है कि उत्पादन हमारे लिए है। हमारे उपभोग के लिए है। हमारे सुख के लिए है। उपभोक्तावाद के कारण ‘सुख’ की व्याख्या बदल गई है। उपभोक्तावाद के अनुसार उपभोग-भोग ही सुख है। नई स्थिति में एक छोटा सा बदलाव आया है। जिसके अनुसार उत्पाद तो हमारे लिए हैं, परन्तु उत्पाद का भोग करते हुए हम यह भूल जाते हैं कि जाने-अनजाने में आज के माहौल में हमारा चरित्र भी बदल रहा है और हम अपने आप को उत्पाद के लिए समर्पित करते जा रहे हैं। लेखक के अनुसार, जीवन में ‘सुख’ का अभिप्राय केवल उपभोग-सुख नहीं है। अन्य प्रकार के मानसिक, शारीरिक और सूक्ष्म आराम भी ‘सुख’ कहलाते हैं। परंतु आजकल लोग केवल उपभोग-सुख को ‘सुख’ कहने लगे हैं।
प्रश्न 2 – आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?
उत्तर – आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को पूरी तरह प्रभावित कर रही है। उपभोक्तावाद के कारण हमारे सीमित संसाधनों की अत्यधिक फ़िजूलखर्ची हो रही है। पश्चिमी खाद्य व्यंजनों या पेय पदार्थों का चाहे जितना भी प्रचार प्रसार किया जाए उनसे हम अपने जीवन की गुणवत्ता को नहीं बड़ा सकते। उपभोक्तावाद के कारण समाज में वर्णों की दूरी बढ़ रही है, सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है। जीवन स्तर का यह बढ़ता अंतर आक्रोश और अशांति को जन्म दे रहा है। जैसे-जैसे दिखावे की यह संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति भी बढ़ेगी। दिखावे की संस्कृति का अनुसरण करते हुए हम अपनी संस्कृति का अस्तित्व खतरे में डाल रहें हैं और अपने लक्ष्य से भी भटकते जा रहे हैं। हम अपनी मर्यादाओं को स्वयं तोड़ रहे हैं, हमारे नैतिक मापदंड ढीले पड़ रहे हैं। व्यक्ति-केंद्रकता बढ़ रही है, स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है। आज व्यक्ति उपभोग को ही सुख समझने लगा है। इस कारण लोग अधिकाधिक वस्तुओं का उपभोग कर लेना चाहते हैं। लोग बहुविज्ञापित वस्तुओं को खरीदकर दिखावा करने लगे हैं। इस संस्कृति से मानवीय संबंध कमजोर हो रहे हैं।
प्रश्न 3 – लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?
उत्तर – लेखक ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती कहा है। और इसके लिए लेखक ने गांधी जी के कथन की पुष्टि करते हुए कहा है कि उपभोक्ता संस्कृति हमारी सामाजिक नींव को हिला रही है। यह एक बड़ा खतरा है। भविष्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती है। कहने का अभिप्राय यह है कि गाँधी जी ने पहले से ही आगाह कर दिया था कि उपभोक्तावाद की संस्कृति को यदि हम अपनाएँगे को हमारी अपनी स्वस्थ संस्कृति का नाश निश्चित है। अपनी बुनियाद पर कायम रहना भविष्य के लिए एक बड़ी चुनौती है।
प्रश्न 4 – आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे है।
उत्तर – उपरोक्त पंक्ति का आशय यह है कि उपभोक्तावादी संस्कृति अधिक से अधिक उपभोग को बढ़ावा देती है। लोग उपभोग को ही सुख मानकर भौतिक साधनों का उपयोग करने लगते हैं। वे बहुविज्ञापित वस्तुओं की ओर आकर्षित होते हैं और वस्तु की गुणवत्ता पर ध्यान दिए बिना उत्पाद के गुलाम बनकर रह जाते हैं। जिसका असर उनके चरित्र पर पड़ता है।
(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।
उत्तर – उपरोक्त पंक्ति का आशय यह है कि लोग समाज में अपनी प्रतिष्ठा दिखाने के लिए तरह-तरह के तौर तरीके व् दिखावटी परिवेश को अपनाते हैं। उनमें कुछ अनुकरणीय होते हैं तो कुछ उपहास का कारण बन जाते हैं। उदाहरण के लिए जिस तरह पश्चिमी देशों में लोग अपने अंतिम संस्कार व् अंतिम विश्राम को अत्यधिक दिखावटी बना चुके हैं, वह हास्यास्पद ही है। और धीरे-धीरे इसका अनुसरण भारत में भी होता दिख रहा है।
रचना और अभिव्यक्ति –
प्रश्न 5 – कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या ना हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं? क्यों?
उत्तर – कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या ना हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देखकर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं क्योंकि टी.वी. पर दिखाए जाने वाले विज्ञापन बहुत प्रभावशाली होते हैं। हमारी आँखों, कानों व् मन को वे विज्ञापन तरह-तरह के दृश्यों और ध्वनियों के सहारे प्रभावित करते हैं। वस्तुओं में गुणवत्ता न होने पर भी उन्हें आकर्षण तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। इसलिए अनुपयोगी वस्तुएँ भी हमें लालायित कर देती हैं।
प्रश्न 6 – आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।
उत्तर – हमारे अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार उसकी गुणवत्ता होनी चाहिए न कि विज्ञापन। क्योंकि विज्ञापन हमें वस्तुओं की विविधता, मूल्य, उपलब्धता आदि का ज्ञान तो कराते हैं परंतु उनकी गुणवत्ता का ज्ञान हमें उस वस्तु के उपयोग के बाद ही हो सकता है। अतः हमें चाहिए कि हम अपनी बुद्धि-विवेक से काम लें और केवल आवश्यकतानुसार ही वस्तुएँ खरीदें।
प्रश्न 7 – पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही ‘ दिखावे की संस्कृति’ पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर – आज जो दिखावे की संस्कृति पनप रही है। उसका कड़वा सच यह है कि लोग उन्हीं चीजों को अपना रहे हैं, जो सामंती समाज अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए अपना रहा है। यदि सौंदय-प्रसाधन वस्तुओं को देखें तो इनका इस्तेमाल मनुष्यों को सुंदर दिखाने के प्रयास से किया जाता है। पहले यह दिखावा केवल महिलाएँ करती थीं परन्तु आजकल पुरुष भी इस दौड़ में आ गए हैं। नए-नए वस्त्र और फैशनेबल दिखावे की संस्कृति उपभोक्तावाद को ही बढ़ावा दे रही हैं।
आज लोग समय देखने के लिए घड़ी नहीं खरीदते, बल्कि अपनी हैसियत दिखाने के लिए लाखों रुपए की घड़ी पहनते हैं। आज हर चीज एक तरह से पाँच सितारा संस्कृति की हो गई है। जैसे खाने के लिए पाँच-सितारा होटल, इलाज के लिए पाँच सितारा अस्पताल, पढ़ाई के लिए पाँच सितारा सुविधाओं वाले विद्यालय-सब जगह दिखावे का ही साम्राज्य है। यहाँ तक कि लोग अब अपने मरने से पहले ही अपनी अंतिम यात्रा का भव्य प्रबंध किए जा रहे हैं। अपनी कब्र के लिए लाखों रुपए खर्च करने में लगे हैं ताकि वे दुनिया में अपनी हैसियत के लिए पहचाने जा सके। यह दिखावा-संस्कृति मनुष्य को मनुष्य से दूर कर रही है। लोगों के सामाजिक संबंध घटने लगे हैं। मन में अशांति और आक्रोश बढ़ रहा है। हम लक्ष्य से भटक रहे हैं। इन सब को रोका जाना चाहिए। यह भविष्य के लिए अत्यधिक खतरनाक है।
प्रश्न 8 – आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है? अपने अनुभव के आधार पर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर – आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति-रिवाजों और त्योहारों को अनेक प्रकार से प्रभावित कर रही है। हमारे रीति-रिवाज और त्योहार सामाजिक संभावना को बढ़ाने वाले हैं, भेद-भाव को मिटाने वाले हैं और सभी को प्रसन्न एवं आनंदित करने वाले माने गए हैं, परंतु उपभोक्तावादी संस्कृति के प्रभाव से इनमें बदलाव आ गया है। हमारे त्योहार और हम सभी अपने मूल उद्देश्य से भटक गए हैं। उदाहरण के लिए आज रक्षाबंधन के पावन अवसर पर बहन भाई द्वारा दिए गए उपहार का मूल्य आंकलित करती है। उपहार न मिलने पर रिश्तों में खटास तक आ जाती है। दीपावली के त्योहार पर मिट्टी के दीए प्रकाश फैलाने के अलावा समानता दर्शाते थे परंतु आज बिजली की लड़ियों और मिट्टी के दीयों ने अमीर-गरीब का अंतर स्पष्ट कर दिया है। यह हाल अन्य त्योहारों का भी है। कोई भी त्यौहार आज दिखावे की संस्कृति से अपने आप को नहीं बचा पाया है।
Grammar Exercises भाषा – अध्ययन
प्रश्न 9 – धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है।
इस वाक्य में ‘बदल रहा है’ क्रिया है। यह क्रिया कैसे हो रही है- धीरे-धीरे। अतः यहाँ धीरे-धीरे क्रिया-विशेषण है। जो शब्द क्रिया की विशेषता बताते हैं, क्रिया-विशेषण कहलाते है। जहाँ वाक्य में हमें पता चलता है क्रिया कैसे, कब, कितनी और कहाँ हो रही है, वहाँ वह शब्द क्रिया-विशेषण कहलाता है।
(क) ऊपर दिए गए उदाहरण को ध्यान में रखते हुए क्रिया-विशेषण से युक्त पॉंच वाक्य पाठ में से छाँटकर लिखिए।
उत्तर –
- धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। (‘ धीरे-धीरे रीतिवाचक क्रिया-विशेषण) (सब-कुछ ‘परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण’)
- आपको लुभाने की जी-तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती है। (‘निरंतर’ रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
- सामंती संस्कृति के तत्त्वे भारत में पहले भी रहे हैं। (‘पहले’ कालवाचक क्रिया-विशेषण)
- अमरीका में आज जो हो रहा है, कल वह भारत में भी आ सकता है। (आज, कल कालवाचक क्रिया-विशेषण)
- हमारे सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है। (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण)
(ख) धीरे-धीरे, ज़ोर से, लगातार, हमेशा, आजकल, कम, ज़्यादा, यहॉं, उधर, बाहर- इन क्रिया-विशेषण शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाइए।
उत्तर –
- धीरे-धीरे – आज भ्रष्टाचार धीरे-धीरे पूरे विश्व में फैल रहा है।
- जोर-से – अचानक जोर-से बादल गरजे।
- लगातार – कल से लगातार बर्फ गिर रही है।
- हमेशा – झूठ हमेशा लम्बे समय तक नहीं टिकता।
- आजकल – आजकल विज्ञापनों का प्रचार और प्रसार बढ़ता जा रहा है।
- कम – भारत में अशिक्षा कम होती जा रही है।
- ज्यादा – हिमाचल प्रदेश में अन्य राज्यों की अपेक्षा ज्यादा ठण्ड है।
- यहाँ – कल तुम यहाँ आकर सामान ले जाना।
- उधर – मैंने जानबूझकर उधर नहीं देखा।
- बाहर – तुम चुपचाप बाहर चले जाओ।
(ग) नीचे दिए गए वाक्यों में से क्रिया-विशेषण और विशेषण शब्द छाँटकर अलग लिखिए-
(1) कल रात से निरंतर बारिश हो रही है।
उत्तर – निरंतर, (रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
(2) पेड़ पर लगे पके आम देखकर बच्चों के मुँह में पानी आ गया।
उत्तर – पके (विशेषण)
(3) रसोईघर से आती पुलाव की हलकी खुशबू से मुझे ज़ोरों की भूख लग आई।
उत्तर – हलकी (विशेषण) कल रात कल रात (कालवाचक क्रियाविशेषण) जोरों की (रीतिवाचक क्रिया-विशेषण)
(4) उतना ही खाओ जितनी भूख है।
उत्तर – उतना, जितनी (परिमाणवाचक क्रिया-विशेषण) मुँह में (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)
(5) विलासिता की वस्तुओं से आजकल बाज़ार भरा पड़ा है।
उत्तर – आजकल (कालवाचक क्रिया-विशेषण) बाज़ार (स्थानवाचक क्रिया-विशेषण)
Class 9 Hindi Upbhoktavad ki Sanskriti – Extract Based Questions (गद्यांश पर आधारित प्रश्न)
नीचे दिए गए गद्यांश को पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
1 – धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। एक नयी जीवन-शैली अपना वर्चस्व स्थापित कर रही है। उसके साथ आ रहा है एक नया जीवन-दर्शन-उपभोक्तावाद की दर्शन। उत्पादन बढ़ाने पर ज़ोर है चारों ओर। यह उत्पादन आपके लिए है; आपके भोग के लिए है, आपके सुख के लिए है। ‘सुख’ की व्याख्या बदल गई है। उपभोग-भोग ही सुख है। एक सूक्ष्म बदलाव आया है नई स्थिति में। उत्पाद तो आपके लिए हैं, पर आप यह भूल जाते हैं कि जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
विलासिता की सामग्रियों से बाज़ार भरा पड़ा है, जो आपको लुभाने की जी तोड़ कोशिश में निरंतर लगी रहती हैं। दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुओं को ही लीजिए। टूथ-पेस्ट चाहिए? यह दाँतों को मोती जैसा चमकीला बनाता है, यह मुँह की दुर्गंध हटाता है। यह मसूड़ों को मज़बूत करता है और यह ‘पूर्ण सुरक्षा’ देता है। वह सब करके जो तीन-चार पेस्ट अलग-अलग करते हैं, किसी पेस्ट का ‘मैजिक’ फ़ार्मूला है। कोई बबूल या नीम के गुणों से भरपूर है, कोई ऋषि-मुनियों द्वारा स्वीकृत तथा मान्य वनस्पति और खनिज तत्वों के मिश्रण से बना है। जो चाहे चुन लीजिए।
प्रश्न 1 – गद्यांश में नई जीवन शैली से क्या अभिप्राय है?
(क) वर्चस्व स्थापित करने से
(ख) जीवन-दर्शन से
(ग) उपभोक्तावाद से
(घ) विलासिता से
उत्तर – (ग) उपभोक्तावाद से
प्रश्न 2 – ‘सुख’ की व्याख्या किसके कारण बदल गई है?
(क) उत्पादन के
(ख) उपभोक्तावाद के
(ग) चरित्र के
(घ) मानसिकता के
उत्तर – (ख) उपभोक्तावाद के
प्रश्न 3 – हमें टूथ-पेस्ट क्यों चाहिए?
(क) दाँतों को मोती जैसा चमकीला बनाने के लिए
(ख) मुँह की दुर्गंध हटाने के लिए
(ग) मुँह की ‘पूर्ण सुरक्षा’ देने के लिए
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4 – धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। वाक्य में क्रिया विशेषण क्या है?
(क) धीरे-धीरे
(ख) सब कुछ
(ग) बदल रहा है
(घ) कुछ बदल
उत्तर – (क) धीरे-धीरे
प्रश्न 5 – वर्चस्व का क्या अर्थ है?
(क) अस्तित्व
(ख) अस्मियता
(ग) प्रधानता
(घ) अप्रधानता
उत्तर – (ग) प्रधानता
2 – सौंदर्य प्रसाधनों की भीड़ तो चमत्कृत कर देनेवाली है–हर माह उसमें नए-नए उत्पाद जुड़ते जाते हैं। साबुन ही देखिए। एक में हलकी खुशबू है, दूसरे में तेज़। एक दिनभर आपके शरीर को तरोताज़ा रखता है, दूसरा पसीना रोकता है, तीसरा जर्म्स से आपकी रक्षा करता है। यह लीजिए सिने स्टार्स के सौंदर्य का रहस्य, उनका मनपसंद साबुन। सच्चाई का अर्थ समझना चाहते हैं, यह लीजिए। शरीर को पवित्र रखना चाहते हैं। यह लीजिए शुद्ध गंगाजल में बनी साबुन। चमड़ी को नर्म रखने के लिए यह लीजिए-महँगी है, पर आपके सौंदर्य में निखार ला देगी। संभ्रांत महिलाओं की ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हज़ार की सौंदर्य सामग्री होना तो मामूली बात है। पेरिस से परफ़्यूम मँगाइए, इतना ही और खर्च हो जाएगा ये प्रतिष्ठा-चिह्न हैं, समाज में आपकी हैसियत जताते हैं। पुरुष भी इस दौड़ में पीछे नहीं है। पहले उनका काम साबुन और तेल से चल जाता था। आफ़्टर शेव और कोलोन बाद में आए। अब तो इस सूची में दर्जन-दो दर्जन चीज़ें और जुड़ गई हैं।
प्रश्न 1 – हर माह किसमें नए-नए उत्पाद जुड़ते जाते हैं?
(क) बाज़ार में
(ख) साबुन में
(ग) सौंदर्य प्रसाधनों में
(घ) परफ़्यूम में
उत्तर – (ग) सौंदर्य प्रसाधनों में
प्रश्न 2 – पहले उनका काम साबुन और तेल से चल जाता था। वाक्य में क्रिया क्या है?
(क) पहले उनका काम
(ख) चल जाता था
(ग) साबुन और तेल
(घ) काम साबुन और तेल से
उत्तर – (ख) चल जाता था
प्रश्न 3 – संभ्रांत महिलाओं का अर्थ क्या है?
(क) भ्रष्ट महिलाएँ
(ख) काम-काजी महिलाएँ
(ग) भ्रमण प्रिय महिलाएँ
(घ) संपन्न परिवारों की महिलाएँ
उत्तर – (घ) संपन्न परिवारों की महिलाएँ
प्रश्न 4 – “प्रतिष्ठ-चिन्ह’ का तात्पर्य क्या है?
(क) उत्पाद का सूचक
(ख) मान-सम्मान का सूचक
(ग) प्रतिभा का सूचक
(घ) कोई समारक
उत्तर – (ख) मान-सम्मान का सूचक
प्रश्न 5 – आधुनिक युग में महिलाओं के साथ-साथ पुरुष किसमें पीछे नहीं हैं?
(क) जीवन शैली बदलने में
(ख) भोग करने में
(ग) सौंदर्य-सामग्री का उपयोग करने में
(घ) सम्पूर्ण कार्य समाप्त करने में
उत्तर – (ग) सौंदर्य-सामग्री का उपयोग करने में
3 –
जगह-जगह बुटीक खुल गए हैं, नए-नए डिज़ाइन के परिधान बाज़ार में आ गए हैं। ये ट्रेंडी हैं और महँगे भी। पिछले वर्ष के फ़ैशन इस वर्ष? शर्म की बात है। घड़ी पहले समय दिखाती थी। उससे यदि यही काम लेना हो तो चार-पाँच सौ में मिल जाएगी। हैसियत जताने के लिए आप पचास-साठ हज़ार से लाख-डेढ़ लाख की घड़ी भी ले सकते हैं। संगीत की समझ हो या नहीं, कीमती म्यूज़िक सिस्टम ज़रूरी है। कोई बात नहीं यदि आप उसे ठीक तरह चला भी न सकें। कंप्यूटर काम के लिए तो खरीदे ही जाते हैं, महज़ दिखावे के लिए उन्हें खरीदनेवालों की संख्या भी कम नहीं है। खाने के लिए पाँच सितारा होटल हैं। वहाँ तो अब विवाह भी होने लगे हैं। बीमार पड़ने पर पाँच सितारा अस्पतालों में आइए। सुख-सुविधाओं और अच्छे इलाज के अतिरिक्त यह अनुभव-काफ़ी समय तक चर्चा का विषय भी रहेगा, पढ़ाई के लिए पाँच सितारा पब्लिक स्कूल हैं, शीघ्र ही शायद कॉलेज और यूनिवर्सिटी भी बन जाए। भारत में तो यह स्थिति अभी नहीं आई पर अमरीका और यूरोप के कुछ देशों में आप मरने के पहले ही अपने अंतिम संस्कार और अनंत विश्राम का प्रबंध भी कर सकते हैं-एक कीमत पर। आपकी कब्र के आसपास सदा हरी घास होगी, मनचाहे फूल होंगे। चाहें तो वहाँ फव्वारे होंगे और मंद ध्वनि में निरंतर संगीत भी। कल भारत में भी यह संभव हो सकता है। अमरीका में आज जो हो रहा है, वह कल भारत में भी आ सकता है। प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते है। चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो। यह है एक छोटी-सी झलक उपभोक्तावादी समाज की । यह विशिष्टजन का समाज है पर सामान्यजन भी इसे ललचाई निगाहों से देखते है। उनकी दृष्टी में, एक विज्ञापन की भाषा में, यही है राइट च्वाइस बेबी।
प्रश्न 1 – गद्यांश में किसे शर्म की बात कही गई है?
(क) पिछले वर्ष के फ़ैशन को दोहराने को
(ख) उपभोक्तावाद को
(ग) फ़ैशन करने को
(घ) समय पर काम करने को
– (क) पिछले वर्ष के फ़ैशन को दोहराने को
प्रश्न 2 – घड़ी कैसे उत्तर हैसियत जताने के लिए उपयोग की जाती है?
(क) समय दिखाकर
(ख) चार-पाँच सौ वाली पहनकर
(ग) पचास-साठ हज़ार से लाख-डेढ़ लाख की घड़ी पहनकर
(घ) दीवार पर टाँग कर
उत्तर – (ग) पचास-साठ हज़ार से लाख-डेढ़ लाख की घड़ी पहनकर
प्रश्न 3 – दिखावे के लिए क्या काम किए जाते हैं?
(क) पचास-साठ हज़ार से लाख-डेढ़ लाख की घड़ी पहनी जाती है
(ख) संगीत की समझ हो या नहीं, कीमती म्यूज़िक सिस्टम लिया जाता है
(ग) खाने व् इलाज के लिए पाँच सितारा होटल व् अस्पताल का प्रयोग किया जाता है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 4 – दिखावटी लोग बीमार पड़ने पर पाँच सितारा अस्पतालों में क्यों जाते हैं ?
(क) सुख-सुविधाओं के लिए
(ख) अच्छे इलाज के लिए
(ग) इस अनुभव को काफ़ी समय तक चर्चा का विषय बनाए रखने के लिए
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 5 – सामान्यजन भी इसे ललचाई निगाहों से देखते है। वाक्य में क्रिया क्या है?
(क) सामान्यजन
(ख) ललचाई निगाहें
(ग) देखते है
(घ) ललचाई निगाहों से देखते है।
उत्तर – (ग) देखते है
4 – हम सांस्कृतिक आस्मिता की बात कितनी ही करें; परंपराओं का अवमूल्यन हुआ है, आस्थाओं का क्षरण हुआ है। कड़वा सच तो यह है कि हम बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं, पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश बन रहे हैं। हमारी नई संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है। हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं। प्रतिष्ठा की अंधी प्रतिस्पर्धा में जो अपना है उसे खोकर छद्म आधुनिकता की गिरफ़्त में आते जा रहे हैं। संस्कृति की नियंत्रक शक्तियों के क्षीण हो जाने के कारण हम दिग्भ्रमित हो रहे हैं। हमारा समाज ही अन्य-निर्देशित होता जा रहा है। विज्ञापन और प्रसार के सुक्ष्म तंत्र हमारी मानसिकता बदल रहे हैं। उनमें सम्मोहन की शक्ति है, वशीकरण की भी।
प्रश्न 1 – परंपराओं का अवमूल्यन व् आस्थाओं का क्षरण किसके कारण हुआ है?
(क) सांस्कृतिक ऑस्मियता के
(ख) सामंती समाज के
(ग) उपभोक्तावाद के
(घ) अंधी प्रतिस्पर्धा के
उत्तर – (ग) उपभोक्तावाद के
प्रश्न 2 – गद्यांश के अनुसार कड़वा सच क्या है?
(क) हम बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं
(ख) हम पश्चिम के सांस्कृतिक उपनिवेश बन रहे हैं
(ग) हम आधुनिकता के झूठे प्रतिमान अपनाते जा रहे हैं
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 3 – मानदंड के लिए गद्यांश में किस शब्द का प्रयोग हुआ है?
(क) प्रतिस्पर्धा
(ख) प्रतिष्ठा
(ग) प्रतिमान
(घ) उपनिवेश
उत्तर – (ग) प्रतिमान
प्रश्न 4 – छद्म आधुनिकता से क्या आशय है?
(क) अनन्त आधुनिकता
(ख) बनावटी आधुनिकता
(ग) सफल आधुनिकता
(घ) पश्चिमी आधुनिकता
उत्तर – (ख) बनावटी आधुनिकता
प्रश्न 5 – हमारे दिग्भ्रमित होने के क्या कारण हैं?
(क) संस्कृति की नियंत्रक शक्तियों के क्षीण हो जाने के कारण
(ख) समाज के अन्य-निर्देशित होने के कारण
(ग) विज्ञापन और प्रसार के सूक्ष्म तंत्र के कारण
(घ) विज्ञापन और प्रसार की सम्मोहन शक्ति के कारण
उत्तर – (क) संस्कृति की नियंत्रक शक्तियों के क्षीण हो जाने के कारण
Class 9 Hindi A Kshitij Lesson 3 Upbhoktavad ki Sanskriti Multiple choice Questions (बहुविकल्पीय प्रश्न)
प्रश्न 1 – लेखक ने “उपभोक्तावाद की नई संस्कृति” को क्या बताया है?
(क) उन्नति की संस्कृति
(ख) दिखावे की संस्कृति
(ग) पतन की संस्कृति
(घ) सामाजिक मेलमिलाप की संस्कृति
उत्तर – (ख) दिखावे की संस्कृति
प्रश्न 2 – पाठ के अनुसार, आधुनिक बाजार कैसी सामग्रियों से भरा पड़ा है?
(क) सौंदर्यपूर्ण
(ख) बेफज़ूल
(ग) अंधाधुंध
(घ) विलासितापूर्ण
उत्तर – (घ) विलासितापूर्ण
प्रश्न 3 – लेखक ने हमारी नई संस्कृति को कैसा बताया है?
(क) पश्चिमी संस्कृति
(ख) वैदिक संस्कृति
(ग) अनुकरण की संस्कृति
(घ) सामाजिक संस्कृति
उत्तर – (ग) अनुकरण की संस्कृति
प्रश्न 4 – पाठ के अनुसार, जीवन में अब “सुख” क्या है ?
(क) उपभोग का भोग करना ही सुख हैं
(ख) उपभोग का भोग करना ही सुख नहीं हैं
(ग) अनुकरण की संस्कृति ही सुख हैं
(घ) पश्चिमी दिखावे को अपनाना ही सुख हैं
उत्तर – (क) उपभोग का भोग करना ही सुख हैं
प्रश्न 5 – उपभोक्तावाद की संस्कृति को बढ़ाने में किसका बहुत बड़ा योगदान है?
(क) सामंतों का
(ख) विज्ञापनों का
(ग) सम्मोहन का
(घ) वशीकरण का
उत्तर – (ख) विज्ञापनों का
प्रश्न 6 – सम्मोहन और वशीकरण की शक्ति किसमें मौजूद है?
(क) उपनिवेशवाद में
(ख) उपभोक्तावाद में
(ग) विज्ञापनों में
(घ) नई संस्कृति में
उत्तर – (ग) विज्ञापनों में
प्रश्न 7 – पाठ में किनकी भीड़ को चमत्कृत कर देने वाली बताया गया है?
(क) सौंदर्य प्रसाधनों की
(ख) सामंती समाज की
(ग) संभ्रांत महिलाओं की
(घ) विज्ञापनों की
उत्तर – (क) सौंदर्य प्रसाधनों की
प्रश्न 8 – “संभ्रांत महिलाओं” , से लेखक का क्या तात्पर्य है?
(क) निम्न कुल की महिलाएं
(ख) अमीर महिलाएं
(ग) संस्कृति को बढ़ावा देने वाली महिलाएं
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (ख) अमीर महिलाएं
प्रश्न 9 – उपभोक्तावाद के कारण अब पुरुष भी किस दौड़ में शामिल हो गए हैं?
(क) धन कमाने की
(ख) उच्च वर्ग का दिखावा करने की
(ग) सामाजिक बुराइयों को अपनाने की
(घ) सौंदर्य प्रसाधन उपयोग करने की
उत्तर – (घ) सौंदर्य प्रसाधन उपयोग करने की
प्रश्न 10 – आधुनिक समाज में सामान्य लोग किन्हें ललचाई नजरों से देखते हैं?
(क) संभ्रांत वर्ग को
(ख) निम्न वर्ग को
(ग) संभ्रांत महिलाओं को
(घ) संभ्रांत पुरुषों को
उत्तर – (क) संभ्रांत वर्ग को
प्रश्न 11 – “दिखावे की संस्कृति” से किस प्रकार के नकारात्मक पक्षों में बढ़ोतरी दिख रही है?
(क) समाज में विभिन्न तरह की विषमतायें बढ़ाती है
(ख) सामाजिक दूरी बढ़ाती है।
(ग) अपनी भारतीय संस्कृति के आदर्शों का हनन होता है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 12 – समाज में लगातार किनके बीच दूरी बढ़ती जा रही हैं?
(क) समाज के विभिन्न वर्गों के
(ख) उच्च और निम्न वर्गों के
(ग) निम्न और सामान्य वर्गों के
(घ) सामान्य और उच्च वर्गों के
उत्तर – (क) समाज के विभिन्न वर्गों के
प्रश्न 13 – पाठ में कहाँ बताया गया है कि मरने से पहले ही लोग अपने अंतिम संस्कार और कब्र का भी प्रबंध करके जाने लगे हैं?
(क) जापान और यूरोप में
(ख) अमेरिका और जापान में
(ग) अमेरिका और यूरोप में
(घ) अमेरिका और भारत में
उत्तर – (ग) अमेरिका और यूरोप में
प्रश्न 14 – “दिखावे की संस्कृति” के कारण क्या हानि होती है?
(क) समाज में अशांति फैलती है
(ख) अपनी भारतीय संस्कृति के आदर्शों का ह्रास होता है
(ग) जीवन के नैतिक मूल्यों का नाश होता है
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (घ) उपरोक्त सभी
प्रश्न 15 – दिखावटी संस्कृति को अपनाने के चक्कर में लोग क्या भूलते जा रहे हैं?
(क) अपनी भारतीय संस्कृति के आदर्शो व जीवन के नैतिक मूल्यों को
(ख) पश्चिमी संस्कृति के आदर्शों को
(ग) जीवन के मौलिक अधिकारों को
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (क) अपनी भारतीय संस्कृति के आदर्शो व जीवन के नैतिक मूल्यों को
प्रश्न 16 – हम किसकी अंधी प्रतिस्पर्धा में दौड़ रहे हैं?
(क) मान -सम्मान और प्रतिष्ठा की
(ख) दिखावे और प्रतिष्ठा की
(ग) उपभोक्तावाद की
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (क) मान -सम्मान और प्रतिष्ठा की
प्रश्न 17 – हम आधुनिकता के कैसे मापदंड स्थापित कर रहे हैं?
(क) नए और सच्चे
(ख) पुराने और सच्चे
(ग) नए और झूठे
(घ) प्रतिष्ठित
उत्तर – (ग) नए और झूठे
प्रश्न 18 – गांधीजी के अनुसार हमें किन के लिए दरवाजे खिड़कियां खुली रखनी चाहिए?
(क) दिखावटी सांस्कृतिक प्रभावों के लिए
(ख) स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों के लिए
(ग) पाश्चात्य सांस्कृतिक प्रभावों के लिए
(घ) अस्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों के लिए
उत्तर – (ख) स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों के लिए
प्रश्न 19 – लेखक के अनुसार हम किसके उपनिवेश बन गए हैं?
(क) यूरोपीय संस्कृति के
(ख) भारतीय संस्कृति के
(ग) अमेरिकी संस्कृति के
(घ) पाश्चात्य संस्कृति के
उत्तर – (घ) पाश्चात्य संस्कृति के
प्रश्न 20 – पाठ के आधार पर बताइए कि हमारी सामाजिक नींव को किस संस्कृति ने हिला कर रख दिया हैं?
(क) उपभोक्तावादी संस्कृति
(ख) भारतीय संस्कृति
(ग) पाश्चात्य संस्कृति
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर – (क) उपभोक्तावादी संस्कृति
Upbhoktavad ki Sanskriti Extra Question Answers (अतिरिक्त प्रश्न उत्तर)
नीचे दिया गए प्रश्नों का उत्तर लिखिए –
प्रश्न 1 – उपभोक्तावाद का दर्शन क्या है?
उत्तर – हमारे चारों ओर धीरे-धीरे सब कुछ बदल रहा है। जीवन जीने का एक नया तरीका अपनी प्रधानता सुनिश्चित कर रहा है। इस तरीके के साथ एक नया जीवन-दर्शन आ रहा है, जिसे उपभोक्तावाद का दर्शन कहा जाता है। इसमें चारों ओर केवल उत्पादन बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाता है।
प्रश्न 2 – उपभोक्तावाद के अनुसार सुख को परिभाषित कीजिए।
उत्तर – उपभोक्तावाद में चारों ओर केवल उत्पादन बढ़ाने पर ज़ोर दिया जाता है। यह कहा जाता है कि यह उत्पादन हमारे लिए है। हमारे उपभोग के लिए है। हमारे सुख के लिए है। उपभोक्तावाद के कारण ‘सुख’ की व्याख्या बदल गई है। उपभोक्तावाद के अनुसार उपभोग-भोग ही सुख है। नई स्थिति में एक छोटा सा बदलाव आया है। जिसके अनुसार उत्पाद तो हमारे लिए हैं, परन्तु उत्पाद का भोग करते हुए हम यह भूल जाते हैं कि जाने-अनजाने में आज के माहौल में हमारा चरित्र भी बदल रहा है और हम अपने आप को उत्पाद के लिए समर्पित करते जा रहे हैं।
प्रश्न 3 – विलासिता पूर्ण सामग्रियाँ हमें अपनी और खींचती हैं। उदाहरण दे कर समझाइए।
उत्तर – बहुत महँगी या अधिक सुख-सुविधा की वस्तुओं की सामग्रियों से बाज़ार भरा पड़ा है, जो हमें अपनी ओर खींचने की जी तोड़ कोशिश में लगातार लगी रहती हैं। उदाहरण के लिए आप जीवन में हर रोज़ काम आने वाली वस्तुओं को ही लीजिए। जैसे हमें हर रोज टूथ-पेस्ट चाहिए क्योंकि यह दाँतों को मोती जैसा चमकीला बनाता है, यह मुँह से आने वाली दुर्गध को हटाता है। यह हमारे मसूड़ों को मज़बूत करता है। एक तरह से यह हमारे मुहँ को ‘पूर्ण सुरक्षा’ देता है। अब बाज़ार में तीन-चार पेस्ट अलग-अलग तरह से प्रस्तुत किए जाते हैं, किसी पेस्ट का ‘मैजिक’ फ़ार्मूला है। कोई बबूल या नीम के गुणों से भरपूर है, कोई ऋषि-मुनियों द्वारा स्वीकार किया गया है तथा उनके द्वारा मानी गई वनस्पति और खनिज तत्वों के मिश्रण से बना है। अब आप पर निर्भर करता है आप इनमें से जो चाहे चुन लीजिए।
प्रश्न 4 – विज्ञापन किस तरह आपको आकर्षित करते हैं उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर – बहुविज्ञापित चीजों की सूची बनाई जाए तो वह बहुत लंबी हो सकती है। सुंदरता बढ़ाने वाली सामग्री की भीड़ तो आश्चर्यचकित कर देने वाली है – क्योंकि हर महीने उसमें नए-नए उत्पाद जुड़ते जाते हैं। आप साबुन का ही उदाहरण देख सकते हैं। एक साबुन में हलकी खुशबू है तो दूसरे में तेज़। एक दिनभर आपके शरीर को तरोताज़ा रखने का दावा करता है, तो दूसरा पसीना रोकने का, तीसरा जर्म्स से आपकी रक्षा करने का दवा करता है। किसी-किसी साबुन के विज्ञापन में उसे सिनेमा स्टार्स के सौंदर्य का रहस्य बतलाया जाता है और उनका मनपसंद साबुन कह कर उसका प्रचार किया जाता है। अगर आप सच्चाई जानना चाहते हैं, तो और भी उदहारण हैं। जैसे शरीर को पवित्र रखना चाहते हैं तो शुद्ध गंगाजल में बनी साबुन भी बाज़ार में है। चमड़ी को नर्म रखने के लिए भी साबुन है, वह महँगी बताई जाती है, पर दवा करती है कि आपके सौंदर्य में निखार ला देगी। इस तरह एक साधारण साबुन का बहुविज्ञापन करके ग्राहकों को आकर्षित किया जाता है।
प्रश्न 5 – अपनी हैसियत को बनाए रहने के लिए लोग क्या-क्या करते हैं?
उत्तर – अपनी हैसियत को बढ़ाने के लिए प्रतिष्ठित या सम्मानित महिलाएँ अपनी ड्रेसिंग टेबल पर तीस-तीस हज़ार की सौंदर्य सामग्री रखती हैं। वे पेरिस से परफ़्यूम मँगवाती हैं, चाहे इसमें कितना ही अतिरिक्त खर्च हो जाए। क्योंकि उनके अनुसार इस तरह की सामग्री उनके प्रतिष्ठा-चिह्न हैं, जो समाज में उनकी हैसियत बताते हैं। अब पुरुष भी इस दौड़ में पीछे नहीं है। पहले उनका काम साबुन और तेल से चल जाता था। अब उनकी सूची में भी आफ़्टर शेव और कोलोन जैसी दर्जन-दो दर्जन चीज़ें और जुड़ गई हैं। लोग बुटीक (वस्त्रालय) से नए-नए डिज़ाइन के वस्त्र महँगे दामों में खरीदते हैं। हैसियत जताने के लिए लोग पचास-साठ हज़ार से लाख-डेढ़ लाख की घड़ी भी ले सकते हैं। संगीत की समझ हो या नहीं, दिखावटी समाज में कीमती म्यूज़िक सिस्टम ज़रूर खरीदते है। फिर भले ही उन्हें ठीक तरह से चला भी न सकें। कंप्यूटर काम के लिए तो खरीदे ही जाते हैं, परन्तु महज़ दिखावे के लिए भी खरीदने वालों की संख्या कम नहीं है। खाना खाने के लिए महँगे होटल में जाते हैं। हैसियत जताने के लिए बीमार पड़ने पर महँगेअस्पतालों में जाया जाता है। पढ़ाई के लिए महँगे पब्लिक स्कूल , कॉलेज और यूनिवर्सिटी में बच्चों को पढ़ाया जाता है। एक कीमत अदा करने पर अमरीका और यूरोप के कुछ देशों में तो मरने के पहले ही लोग अपने अंतिम संस्कार का प्रबंध भी कर लेते हैं। ताकि उनके मरने पर भी उनकी दिखावटी हैसियत में कोई कमी न आए।
प्रश्न 6 – दिखावे की संस्कृति किस तरह हास्यास्पद हो सकती है?
उत्तर – दिखावे की संस्कृति कई बार हास्यास्पद हो सकती है। जैसे प्रतिष्ठित लोगों द्वारा पेरिस से परफ़्यूम मँगवाना, डिज़ाइनर के नाम पर महँगे दामों में वस्त्र खरीदना। हैसियत जताने के लिए पचास-साठ हज़ार से लाख-डेढ़ लाख की घड़ी लेना। संगीत की समझ हो या नहीं, दिखावटी समाज में कीमती म्यूज़िक सिस्टम खरीदना। महज़ दिखावे के लिए कंप्यूटर खरीदने वालों की संख्या भी कम नहीं है। खाना खाने के लिए पाँच सितारा होटल में जाना, बीमार पड़ने पर पाँच सितारा अस्पतालों में जाना, हैसियत जताने के लिए, पढ़ाई के लिए पाँच सितारा पब्लिक स्कूल और यहाँ तक की एक कीमत अदा करने पर अमरीका और यूरोप के कुछ देशों में आप मरने के पहले ही अपने अंतिम संस्कार और अनंत विश्राम का प्रबंध भी कर सकते हैं। आप कुछ कीमत पर पहले से ही प्रबंध कर सकते हैं कि आपकी कब्र के आसपास सदा हरी घास होगी, और मनचाहे फूल वहाँ होंगे। चाहें तो वहाँ फव्वारे भी लगवा सकते हैं और मंद ध्वनि में निरंतर संगीत भी चलवा सकते हैं। चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।
प्रश्न 7 – उपभोक्ता संस्कृति का विकास भारत में क्यों हो रहा है?
उत्तर – उपभोक्तावादी समाज विशिष्टजन का समाज है परन्तु सामान्यजन भी इसे ललचाई निगाहों से देखते है। सामंति संस्कृति के तत्व भारत में पहले भी रहे हैं। और उपभोक्तावाद इस संस्कृति से जुड़ा रहा है। आज सामंत बदल गए हैं, सामंति संस्कृति का मुहावरा बदल गया है। कहने का अभिप्राय यह है कि सामंति संस्कृति भारत में पहले से ही मौजूद रही है केवल उपभोक्तावाद के कारण सामंति संस्कृति में कुछ बदलाव हुए हैं। उपभोक्ता संस्कृति का विकास भारत में होने का प्रमुख कारण यह है कि सामान्य लोग, विशिष्टजनों की जीवन-शैली से प्रभावित होते जाते हैं। बहुविज्ञापित वस्तुएँ भी उन्हें अपनी ओर आकर्षित करती हैं।
प्रश्न 8 – उपभोक्तावाद के कारण किस तरह की हानि का सामना करना पड़ रहा है?
उत्तर – हम चाहे सांस्कृतिक अस्तित्व की कितनी ही बात कर लें, इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि उपभोक्तावाद के कारण परंपराओं के मूल्य का खण्डन हुआ है और आस्थाओं का नाश भी हुआ है। यह एक कड़वा सच है कि हम बौद्धिक दासता स्वीकार कर रहे हैं और हम अपनी संस्कृति को छोड़ कर पश्चिमी संस्कृति को अपना रहे हैं। हम जिस संस्कृति को अपना रहे हैं वह नई संस्कृति अनुकरण की संस्कृति है। अर्थात हम केवल पश्चिमी संस्कृति का अनुसरण करते जा रहे हैं। हम आधुनिकता के झूठे मापदंडों को अपनाते जा रहे हैं। प्रतिष्ठा या मान-सम्मान की अंधी दौड़ में हम अपनों को पीछे छोड़कर बनावटी आधुनिकता की गिरफ़्त में आते जा रहे हैं। संस्कृति की नियंत्रक शक्तियों के कारण ही हम अपनी परम्पराओं से जुड़े थे किन्तु इस शक्ति के कमज़ोर हो जाने के कारण हम सही रास्ते से भटकते जा रहे हैं। हमारा समाज ही दूसरों के द्वारा निर्देशित होता जा रहा है। विज्ञापन और प्रसार के सुक्ष्म तंत्र के कारण हमारी मानसिकता बदल रही है। विज्ञापन और प्रसार में सम्मोहन की शक्ति है, जिसके कारण हम उनके वश में होते जा रहे हैं।
प्रश्न 9 – उपभोक्तावाद की संस्कृति के फैलाव का परिणाम क्या होगा?
उत्तर – उपभोक्तावाद की संस्कृति के फैलाव के परिणामों की बात की जाए तो यह विषय अत्यंत गंभीर चिंता का विषय है। क्योंकि हम जानते हैं कि हमारे पास संसाधन सिमित हैं। किन्तु उपभोक्तावाद के कारण हमारे सीमित संसाधनों की अत्यधिक फ़िजूलखर्ची हो रही है। पश्चिमी खाद्य व्यंजनों या पेय पदार्थों का चाहे जितना भी प्रचार प्रसार किया जाए उनसे हम अपने जीवन की गुणवत्ता को नहीं बड़ा सकते। उपभोक्तावाद के कारण समाज में वर्णों की दूरी बढ़ रही है, सामाजिक सरोकारों में कमी आ रही है। जीवन स्तर का यह बढ़ता अंतर आक्रोश और अशांति को जन्म दे रहा है। जैसे-जैसे दिखावे की यह संस्कृति फैलेगी, सामाजिक अशांति भी बढ़ेगी।
प्रश्न 10 – उपभोक्तावाद के कारण हमारी सांस्कृतिक अस्मिता पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर – उपभोक्तावाद के कारण हमारी सांस्कृतिक अस्मिता का ह्रास हो रहा है। दिखावे की संस्कृति का अनुसरण करते हुए हम अपनी संस्कृति का अस्तित्व खतरे में डाल रहें हैं और अपने लक्ष्य से भी भटकते जा रहे हैं। उपभोक्तावाद के कारण जो हमने विकास के विशाल उद्देश्य रखे थे हम उनसे पीछे हट रहे हैं, हम झूठे संतोष के तात्कालिक लक्ष्यों का पीछा कर रहे हैं। हम अपनी मर्यादाओं को स्वयं तोड़ रहे हैं, हमारे नैतिक मापदंड ढीले पड़ रहे हैं। व्यक्ति-केंद्रकता बढ़ रही है, स्वार्थ परमार्थ पर हावी हो रहा है। इन प्रभावों के कारण गाँधी जी ने पहले से ही आगाह कर दिया था कि उपभोक्तावाद की संस्कृति को यदि हम अपनाएँगे को हमारी अपनी स्वस्थ संस्कृति का नाश निश्चित है। अपनी बुनियाद पर कायम रहना भविष्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती है।