दो बैलों की कथा पाठ सार
CBSE Class 9 Hindi Chapter 1 “Do Bailon Ki Katha”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Kshitij Bhag 1 Book
दो बैलों की कथा सार – Here is the CBSE Class 9 Hindi Kshitij Bhag 1 Chapter 1 Do Bailon Ki Katha Summary with detailed explanation of the lesson ‘Do Bailon Ki Katha’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 9 हिंदी कोर्स ए क्षितिज भाग 1 के पाठ 1 दो बैलों की कथा पाठ सार , पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 9 दो बैलों की कथा पाठ के बारे में जानते हैं।
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दो बैलों की कथा पाठ प्रवेश – Do Bailon Ki Katha Introduction
साहित्यकार प्रेमचंद की कहानी ‘दो बैलों की कथा’ हिंदी साहित्य की एक अमूल्य धरोहर है, जिसमें ग्रामीण जीवन और पशुओं के प्रति मानवीय दृष्टिकोण का अद्भुत चित्रण किया गया है। यह कहानी हीरा और मोती नामक दो बैलों की है, जो न केवल अपने मालिक के प्रति निष्ठा और समर्पण का प्रतीक हैं, बल्कि अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता की भावना को भी सजीव करते हैं। 
कहानी में प्रेमचंद ने बैलों को मानवीय गुणों से विभूषित किया है और उनके माध्यम से सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों को उजागर किया है। दोनों बैल अपने मालिक के साथ दुर्व्यवहार और कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए साहस, दोस्ती और संघर्ष की मिसाल पेश करते हैं। यह कहानी पाठकों को सिखाती है कि केवल इंसान ही नहीं, पशु भी संवेदनशील और सम्मान के अधिकारी हैं।
“दो बैलों की कथा” मानवीय संबंधों, कर्तव्यपरायणता, और स्वतंत्रता की अभिलाषा का एक ऐसा संदेश देती है, जो समाज के हर वर्ग को सोचने पर मजबूर कर देती है। यह कहानी प्रेमचंद की लेखनी की सरलता और गहराई का उत्कृष्ट उदाहरण है।
दो बैलों की कथा सार (Do Bailon Ki Katha Summary )
प्रेमचंद जी द्वारा लिखित कहानी “दो बैलों की कथा” हिंदी साहित्य में सामाजिक और नैतिक मूल्यों का अद्वितीय उदाहरण है। इस कहानी में हीरा और मोती नामक दो बैलों की यात्रा का वर्णन है, जिन्हें उनके मालिक झूरी ने बहुत ही प्यार से पाला है। यह कहानी न केवल पशु-जीवन के संघर्ष और संवेदनाओं को दर्शाती है, बल्कि मानवीय समाज के आचरण और दृष्टिकोण पर भी गहरा प्रभाव डालती है। कहानी में स्वतंत्रता, स्वाभिमान, और संघर्ष की भावना को खूबसूरती से उकेरा गया है।
हीरा और मोती दो बैल हैं जो झूरी नामक किसान के हैं। दोनों बैल मेहनती और अपने काम के प्रति समर्पित हैं। उनकी जोड़ी अपने कार्य में इतनी निपुण है कि किसान उन्हें अपने परिवार का हिस्सा मानता है। दोनों बैलों में गहरी मित्रता है और वे एक-दूसरे के प्रति बहुत स्नेह रखते हैं। उनकी मूक-भाषा में भी एक खास समझ और अपनापन झलकता है।
एक बार झूरी हीरा और मोती को अपने ससुराल भेज देता है। दोनों बैलों को लगता है कि उनके मालिक ने उन्हें बेच दिया है। ससुराल में गया (झूरी का साला) के द्वारा बैलों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। उनसे कठोर श्रम कराया जाता है और उन्हें खाना भी पर्याप्त नहीं दिया जाता। इसके बावजूद, दोनों बैल अपनी परिस्थितियों का सामना साहस और धैर्य के साथ करते हैं।
ससुराल में उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार से थककर हीरा और मोती स्वतंत्रता की चाह में भागने का निर्णय लेते हैं। उनके भागने की योजना उनकी मित्रता और समझदारी को उजागर करती है। वे वहाँ से भागकर झूरी के यहाँ वापस आ जाते हैं जिससे झूरी की पत्नी झूरी को सुनाती है कि ये बैल हैं ही ऐसे कामचोर।
उन्हें पुनः झूरी की ससुराल भेज दिया जाता है। इस बार गया उन्हें बहुत ही मोटी रस्सी से बाँध देता है जिसे वे लाख चबाने पर भी तोड़ नहीं पाते हैं। अंततः एक बालिका उस रस्सी को खोल देती है और हीरा और मोती को भाग जाने को कहती है। रास्ते में वे कई चुनौतियों का सामना करते हैं, जैसे कि भूख, प्यास, और थकावट। लेकिन उनकी आत्मनिर्भरता और आपसी सहयोग उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। वे रास्ता भटक जाते हैं और एक मटर के खेत में घुस जाते हैं और भूखा होने के कारण वे मटर खाते हैं उसी दौरान सामने से आ रहे एक साँड से उनका मुकाबला होता है और वे दोनों उस साँड को भगा देते हैं और उसी बीच कुछ आदमियों द्वारा वे घेर लिए जाते हैं और वे लोग हीरा और मोती को कांजीहौस (जहाँ फालतू घूम रहे जानवरों को रखा जाता है) में दे देते हैं।
वहाँ उन्हें किसी भी तरह का चारा या भोजन नहीं दिया जाता है। लगभग एक सप्ताह तक वे भूखे रहते हैं और वहाँ से भागने का प्रयत्न करते हैं। वे दोनों दीवार में सींग मार-मार कर दीवार गिरा देते हैं जिससे अन्य कैद किये जानवर भाग जाते हैं। परन्तु वे दोनों नहीं भागते हैं क्योंकि मोती हीरा को अकेले छोड़कर नहीं जाना चाहता। क्योंकि हीरा के गले में रस्सी बँधी थी जिसे वे छुड़ा नहीं पा रहे थे। मोती हीरा को छोड़कर नहीं जाना चाहता था।
इस बीच उन दोनों बैलों की नीलामी हो जाती है और उन दोनों को एक दढ़ियल आदमी खरीद लेता है और उन्हें ले जाता है। रास्ते में वह रास्ता दोनों को जाना-पहचाना लगता है और वे रास्ता पहचानते हुए अपने घर की तरफ मुड़ जाते हैं। झूरी द्वार पर बैठा हुआ था। अचानक दोनों बैलों को देखकर वह उन्हें अपने गले से लगा लेता है। अंत में झूरी की पत्नी भी उन्हें माथे पे चूम लेती है।
दो बैलों की कथा पाठ व्याख्या (Do Bailon Ki Katha Lesson Explanation)
1
पाठ- जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को परले दरजे का बेवकूफ़ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते है। गधा सचमुच बेवकूफ़ है, या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता। गायें सींग मारती हैं, ब्याई हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है; किंतु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा। जितना चाहो गरीब को मारो, चाहे जैसी खराब, सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी न दिखाई देगी। वैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता हो; पर हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा। उसके चेहरे पर एक विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है। सुख-दुख, हानि-लाभ, किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषियों-मुनियों के जितने गुण हैं वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं; पर आदमी उसे बेवकूफ़ कहता है। सद्गुणों का इतना अनादर कहीं नहीं देखा। कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है। देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में क्या दुर्दशा हो रही है? क्यों अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता? बेचारे शराब नहीं पीते, चार पैसे कुसमय के लिए बचाकर रखते हैं, जी तोड़कर काम करते हैं, किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं फिर भी बदनाम हैं। कहा जाता है, वे जीवन के आदर्श को नीचा करते हैं। अगर वे भी ईट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते तो शायद सभ्य कहलाने लगते। जापान की मिसाल सामने है। एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया।
शब्दार्थ –
परले दरजे का – ‘परले दर्जे का बेवकूफ़’ एक मुहावरा है जिसका मतलब है सबसे बड़ा बेवकूफ़
पदवी – पहचान योग्य नाम या उपलब्धि
निरापद – सुरक्षित
सहिष्णुता – सहनशीलता
अनायास – बिना प्रयत्न के, सरलता से
वैशाख – भारतीय कैलेंडर का दूसरा महीना
कुलेल (कल्लोल) – क्रीड़ा
विषाद – उदासी
पराकाष्ठा – अंतिम सीमा
दुर्दशा – दुर्गति, दुरावस्था
सभ्य – शिष्ट, सुशील
कदाचित – कभी, शायद
गण्य – गणनीय, सम्मानित
व्याख्या- लेखक गधे के माध्यम से समाज की जटिलताओं और उसके मूल्यों की विडंबना पर गहराई से प्रकाश डालते हैं। गधा, जिसे बुद्धिहीन और मूर्ख समझा जाता है, वास्तव में अपने सीधेपन, सहिष्णुता, और सहनशीलता के कारण इस उपाधि का भागी बनता है। यह तय करना कठिन है कि गधा वाकई मूर्ख है या उसकी सहनशीलता और शांत स्वभाव ने उसे मूर्ख कहलाने जाने की आदत डाल दी है। अन्य जानवर जैसे गाय या कुत्ता, अपनी सीमाओं के भीतर आक्रामकता दिखाते हैं, लेकिन गधा अपने स्वभाव में स्थायी रूप से सहनशील और क्रोधरहित बना रहता है। चाहे उसे कितना भी कष्ट दिया जाए या कितना भी घटिया खाना खिलाया जाए, वह कभी असंतोष व्यक्त नहीं करता। उसका चेहरा हमेशा एक ऐसे दुःख को दर्शाता है, जो मानो यह बताता हो कि उसने जीवन के सुख-दुख को समान रूप से स्वीकार कर लिया है।
गधे का यह स्वभाव उसे ऋषि-मुनियों के गुणों का प्रतीक बनाता है, जैसे कि धैर्य, त्याग, और अहिंसा। लेकिन इसके बावजूद, मनुष्य उसे “मूर्ख” की श्रेणी में रखता है। सीधापन और सहनशीलता, जो आदर्श गुण माने जाने चाहिए, समाज में कमजोरी समझे जाते हैं। इसी संदर्भ में लेखक भारतवासियों की स्थिति का जिक्र करते हैं, जो अफ्रीका और अमेरिका में अपमान और भेदभाव का सामना करते हैं। उनकी सादगी, मेहनत, और संघर्ष-विरोधी स्वभाव को कमजोरी माना जाता है। वे शराब नहीं पीते, बचत करते हैं, लड़ाई-झगड़े से दूर रहते हैं, फिर भी उन्हें सभ्य समाज में प्रवेश नहीं करने दिया जाता।
लेखक ने यह भी बताया है कि सरलता और सहनशीलता का महत्व केवल तब तक समझा जाता है, जब तक वे विरोध और संघर्ष की अनदेखी नहीं करते। उदाहरण के लिए, जापान को सभ्य और शक्तिशाली केवल इसलिए माना गया क्योंकि उसने विजय प्राप्त की और अपने विरोधियों को हराया। लेखक हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वाकई सीधापन और सहनशीलता समाज के लिए सही नहीं है। गधा केवल एक प्रतीक है, जो समाज की उस सोच को चुनौती देता है, जो शांतिपूर्ण और सरल स्वभाव को कमजोरी मानता है।
पाठ- लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है, और वह है ‘बैल’। जिस अर्थ में हम गधे का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में ‘बछिया के ताऊ’ का भी प्रयोग करते हैं। कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफ़ों में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे; मगर हमारा विचार ऐसा नहीं है। बैल कभी-कभी मारता भी है, कभी-कभी अड़ियल बैल भी देखने में आता है। और भी कई रीतियों से अपना असंतोष प्रकट कर देता है; अतएव उसका स्थान गधे से नीचा है।

शब्दार्थ-
सर्वश्रेष्ठ – सब में अच्छा, सर्वोत्तम
अड़ियल- अड़कर चलनेवाला, हठी
रीति– क़ायदा, नियम
व्याख्या- लेखक ने गधे के “छोटे भाई” बैल की तुलना करते हुए दोनों के स्वभाव और गुणों पर व्यंग्यात्मक (ताना मारते हुए) ढंग से चर्चा की है। बैल को गधे की तुलना में थोड़ा कम मूर्ख बताया गया है। गधा पूरी तरह से सहनशील और न गुस्सा करने वाला होता है, जबकि बैल में असंतोष प्रकट करने की क्षमता होती है। यह असंतोष वह कभी मारने के रूप में, कभी अड़ियल स्वभाव दिखाकर, और अन्य तरीकों से व्यक्त करता है।
“बछिया के ताऊ” जैसे मुहावरे का उल्लेख यह दर्शाता है कि बैल को समाज में जिद्दी या अड़ियल प्रवृत्ति का प्रतीक माना जाता है, जबकि गधे को पूरी तरह से भोलेपन और मूर्खता का। लेखक के अनुसार, बैल का स्वभाव उसे गधे की तुलना में कम सहनशील बनाता है, और इसीलिए गधे को सहनशीलता और त्याग का सबसे ऊँचा प्रतीक मानते हुए बैल का स्थान उससे नीचे रखा गया है।
पाठ- झूरी काछी के दोनों बैलों के नाम थे हीरा और मोती। दोनों पछाईं जाति के थे–देखने में सुंदर, काम में चौकस, डील में ऊँचे। बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे। एक, दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सुँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे–विग्रह के नाते से नहीं , केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्ठता होते ही धौल-धप्पा, होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हलकी-सी रहती है, जिस पर ज़्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गरदन हिला-हिलाकर चलते, उस वक्त हर एक की यही चेष्टा होती थी कि ज़्यादा-से-ज़्यादा बोझ मेरी ही गरदन पर रहे। दिन-भर के बाद दोपहर या संध्या को दोनों खुलते, तो एक-दूसरे को चाट-चूटकर अपनी थकान मिटा लिया करते। नाँद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते साथ नाँद में मुँह डालते और साथ ही बैठते थे। एक मुँह हटा लेता, तो दूसरा भी हटा लेता था।
शब्दार्थ –
पछाई – पालतू पशुओं की एक नस्ल
चौकस- ठीक, दुरुस्त
डील– क़द, व्यक्तित्व
मूक- भाषा- बिना शब्दों या उच्चारण की भाषा
गुप्त – छिपा हुआ, अपरिचित
विग्रह – अलगाव
विनोद – मनोरंजन, क्रीड़ा
आत्मीयता- अपनापन
घनिष्ठता – गहरी दोस्ती
धौल-धप्पा- दोस्ताना हाथा पाई
चेष्टा – कोशिश
नाँद – गाय को चारा देने का पात्र
व्याख्या- लेखक ने झूरी काछी के दो बैलों, हीरा और मोती, की मित्रता, समझदारी को बहुत भावुक और सजीव रूप में प्रस्तुत किया गया है। दोनों बैल न केवल देखने में सुंदर और काम में बहुत अच्छे थे, बल्कि उनके स्वभाव में एक ऐसा अनकहा भाईचारा था, जो उन्हें अनोखा बनाता है। साथ रहते-रहते उनमें ऐसी घनिष्ठता हो गई थी कि वे बिना बोले एक-दूसरे के मन की बात समझ लेते थे। लेखक ने यह संकेत दिया है कि यह गुप्त शक्ति मनुष्यों में नहीं होती, जो बैलों को एक-दूसरे से जोड़ती है।
हीरा और मोती अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए एक-दूसरे को चाटते और सूँघते थे। कभी-कभी वे सींग मिलाकर खेलते थे, लेकिन यह किसी लड़ाई का हिस्सा नहीं था, बल्कि उनकी दोस्ती और अपनेपन का प्रतीक था। लेखक ने इसे दोस्तों के बीच होने वाले धौल-धप्पे से जोड़ा है, जो घनिष्ठ मित्रता का एक साधारण रूप है। यह बताता है कि गहरे संबंधों में ऐसी हल्की छेड़छाड़ और खेलना-कूदना विश्वास और अपनापन बढ़ाता है।
हल या गाड़ी में जोतने के समय दोनों बैल अपनी पूरी (दम) से काम करते थे और हर एक यह कोशिश करता था कि ज्यादा बोझ उसकी गरदन पर रहे। यह उनकी जिम्मेदारी और त्याग की भावना को दर्शाता है। दिनभर के काम के बाद जब उन्हें आराम मिलता, तो वे एक-दूसरे को चाट-चूटकर अपनी थकान मिटाते। उनके हर कार्य—जैसे नाँद (चारा खाने का बड़ा बर्तन) में साथ खाना, साथ उठना और साथ बैठना—उनकी गहरी मित्रता और आपसी समझ को दर्शाती है।
पाठ- संयोग की बात, झूरी ने एक बार गोईं को ससुराल भेज दिया। बैलों को क्या मालूम, वे क्यों भेजे जा रहे हैं। समझे, मालिक ने हमें बेच दिया। अपना यों बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा, कौन जाने, पर झूरी के साले गया को घर तक गोईं ले जाने में दाँतों पसीना आ गया। पीछे से हाँकता तो दोनों दाएँ-बाएँ भागते, पगहिया पकड़कर आगे से खींचता, तो दोनों पीछे को ज़ोर लगाते। मारता तो दोनों सींग नीचे करके हुँकारते। अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती, तो झूरी से पूछते-तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो? हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। अगर इतनी मेहनत से काम न चलता था तो और काम ले लेते। हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था। हमने कभी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। तुमने जो कुछ खिलाया, वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस ज़ालिम के हाथ क्यों बेच दिया?
शब्दार्थ –
गोईं – जोड़ी
हुँकार- ललकारने का शब्द
पगहिया – पशु बाँधने की रस्सी
ज़ालिम- ज़ुल्म करने वाला, अत्याचारी
व्याख्या- लेखक ने बैलों की भावनाओं और उनके मालिक के प्रति प्रेम और लगाव से उजागर किया है। झूरी ने बैलों को अपने ससुराल भेज दिया, लेकिन बैलों को यह समझ नहीं आया कि उन्हें क्यों भेजा जा रहा है। उनके भोले मन में यह धारणा बन गई कि मालिक ने उन्हें बेच दिया है। बैल, जो अपने मालिक के लिए कार्य करते थे, इस बदलाव को समझ नहीं पाए। वे अपने मन में सवाल कर रहे थे कि क्या उनका इस तरह बेचा जाना सही था।
गया, जो झूरी का साला था, उन्हें ससुराल ले जाने की कोशिश करता है, लेकिन बैलों की नाराजगी और असहयोग से उसे बहुत परेशानी होती है। बैल कभी दाएँ-बाएँ भागते, कभी पीछे हटते और कभी सींग नीचे करके हुँकारते। यह उनके भीतर उमड़ती नाराजगी और असहमति का प्रतीक है। अगर बैलों के पास वाणी होती, तो वे झूरी से अपने मन की बात कहते। वे पूछते कि आखिर क्यों उन्हें उनकी सेवा और समर्पण के बावजूद पराया कर दिया गया।
वे मालिक से पूछते कि अगर उनकी मेहनत से काम नहीं चलता था, तो वे और अधिक मेहनत करवा लेते। उन्हें झूरी की सेवा में मर जाना भी स्वीकार होता, लेकिन उन्हें “जालिम” के हाथों सौंपना उनके लिए असहनीय था। यह भावना दर्शाती है कि बैलों के मन में अपने मालिक के प्रति कितना गहरा प्रेम और वफादारी थी।
पाठ- संध्या समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे। दिन-भर के भूखे थे, लेकिन जब नाँद में लगाए गए, तो एक ने भी उसमें मुँह न डाला। दिल भारी हो रहा था। जिसे उन्होंने अपना घर समझ रखा था, वह आज उनसे छूट गया था। यह नया घर, नया गाँव, नए आदमी, उन्हें बेगानों-से लगते थे।
दोनों ने अपनी मूक-भाषा में सलाह की, एक-दूसरे को कनखियों से देखा और लेट गए। जब गाँव में सोता पड़ गया, तो दोनों नें ज़ोर मारकर पगहे तुड़ा डाले और घर की तरफ़ चले। पगहे बहुत मज़बूत थे। अनुमान न हो सकता था कि कोई बैल उन्हें तोड़ सकेगा; पर इन दोनों में इस समय दूनी शक्ति आ गई थी। एक-एक झटके में रस्सियाँ टूट गई।
शब्दार्थ-
कनखी- तिरछी नज़र से देखना
सोता पड़ गया- माहौल शान्त हो गया
पगहे- पशुओं के गले में बाँधी जानेवाली रस्सी
व्याख्या- दिन भर भूखे रहने के बाद भी, जब उन दोनों बैलों को नाँद में खाना दिया गया, तो उन्होंने उसमें मुँह नहीं डाला। इसका कारण केवल शारीरिक थकान नहीं था, बल्कि उनके दिल पर छाया हुआ भारीपन था। उन्होंने जिस स्थान को अपना घर माना था, उससे अचानक छूट जाना उनके लिए धक्का लगने जैसा था। नया घर, नया गाँव, और नए लोग उनके लिए अजनबी और बेगाने थे। यह उनका अपने पुराने जीवन और परिचित वातावरण से गहरा जुड़ाव और लगाव दिखाता है।
एक-दूसरे को तिरछी नज़र से देखना और फिर लेट जाना उनकी असहायता और दुख को व्यक्त करता है। लेकिन इस दुख में भी उन्होंने हार नहीं मानी।
जब गाँव में सब सो गए, तो दोनों ने मिलकर पगहे तोड़ने का फैसला किया। उनके भीतर अपने घर लौटने की तीव्र लालसा ने उन्हें अद्भुत शक्ति दी। ये पगहे, जो बहुत मज़बूत थे और जिन्हें तोड़ पाना मुश्किल था, उनकी इच्छाशक्ति के आगे टिक नहीं सके।
पाठ- झूरी प्रात:काल सोकर उठा, तो देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। दोनों की गरदनों में आधा-आधा गराँव लटक रहा है। घुटने तक पाँव कीचड़ से भरे हैं और दोनों की आँखों में विद्रोहमय स्नेह झलक रहा है।
झूरी बैलों को देखकर स्नेह से गदगद हो गया। दौड़कर उन्हें गले लगा लिया। प्रेमालिंगन और चुंबन का वह दृश्य बड़ा ही मनोहर था।
घर और गाँव के लड़के जमा हो गए और तालियाँ बजा-बजाकर उनका स्वागत करने लगे। गाँव के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्त्वपूर्ण थी। बाल-सभा ने निश्चय किया, दोनों पशु-वीरों को अभिनंदन-पत्र देना चाहिए। कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़, कोई चोकर, कोई भूसी।
एक बालक ने कहा-ऐसे बैल किसी के पास न होंगे।
दूसरे ने समर्थन किया-इतनी दूर से दोनों अकेले चले आए।
तीसरा बोला-बैल नहीं हैं वे, उस जनम के आदमी हैं।
इसका प्रतिवाद करने का किसी को साहस न हुआ।
शब्दार्थ –
चरनी- पशुओं के चरने का स्थान
गराँव– पशुओं के गले में बाँधी जानेवाली दोहरी रस्सी।
विद्रोहमय- उपद्रव युक्त
प्रेमालिंगन- प्रेम में गले लगाना
प्रतिवाद- विरोध
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में झूरी के बैलों, हीरा और मोती, के प्रति उनके प्रेम, बैलों की वफादारी और गाँव के बच्चों का बेलों के प्रति प्रेम दिखाया गया है। जब झूरी सुबह उठता है, तो बैलों को वापस अपनी चरनी (चारा चरने का स्थान) पर खड़ा देखकर वह बहुत खुश हो जाता है। दोनों बैलों की गर्दनों पर अधूरे रस्से (गराँव) लटक रहे थे, पैर कीचड़ से भरे थे, और उनकी आँखों में विद्रोह और प्रेम का अद्भुत सम्मिलन झलक रहा था । यह दृश्य उनके संघर्ष और अपने मालिक के प्रति अटूट लगाव को दर्शाता है।
झूरी का अपने बैलों को गले लगाना और उनके प्रति प्रेमपूर्ण भावनाएँ, मानवीय और पशु संबंधों की गहराई को उजागर करती हैं। यह दृश्य न केवल झूरी के लिए भावुक है, बल्कि गाँव के बच्चों के लिए भी प्रेरणादायक बन जाता है। बच्चे बैलों का स्वागत तालियों और उत्साह के साथ करते हैं, और उनकी इस वापसी को गाँव की एक महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में देखते हैं।
गाँव के बच्चों की बाल-सभा बैलों को “पशु-वीर” कहकर उनका सम्मान करती है और उन्हें अभिनंदन-पत्र देने की बात करती है। बच्चे अपने घर से रोटियाँ, गुड़, चोकर, और भूसी लाकर बैलों का सत्कार करते हैं, जो उनके बालमन की सहज प्रेम भावना और प्रशंसा को दर्शाता है।
जब एक बच्चा बैलों को “पिछले जनम के आदमी” कहता है, तो यह उनकी समझ को दर्शाता है।
पाठ- झूरी की स्त्री ने बैलों को द्वार पर देखा, तो जल उठी। बोली-कैसे नमकहराम बैल हैं कि एक दिन वहाँ काम न किया; भाग खड़े हुए।
झूरी अपने बैलों पर यह आक्षेप न सुन सका-नमकहराम क्यों हैं? चारा-दाना न दिया होगा, तो क्या करते?
स्त्री ने रोब के साथ कहा-बस, तुम्हीं तो बैलों को खिलाना जानते हो, और तो सभी पानी पिला-पिलाकर रखते हैं।
झूरी ने चिढ़ाया-चारा मिलता तो क्यों भागते ?
स्त्री चिढ़ी-भागे इसलिए कि वे लोग तुम-जैसे बुद्धुओं की तरह बैलों को सहलाते नहीं। खिलाते हैं, तो रगड़कर जोतते भी हैं। ये दोनों ठहरे कामचोर, भाग निकले। अब देखूँ, कहाँ से खली और चोकर मिलता है! सूखे भूसे के सिवा कुछ न दूँगी, खाएँ चाहें मरें।
वही हुआ। मजूर की कड़ी ताकीद कर दी गई कि बैलों को खाली सूखा भूसा दिया जाए।
बैलों ने नाँद में मुँह डाला, तो फीका-फीका। न कोई चिकनाहट, न कोई रस! क्या खाएँ? आशा-भरी आँखों से द्वार की ओर ताकने लगे।
झूरी ने मजूर से कहा-थोड़ी-सी खली क्यों नहीं डाल देता बे?
‘मालकिन मुझे मार ही डालेंगी। ‘
‘चुराकर डाल आ।’
‘न दादा, पीछे से तुम भी उन्हीं की-सी कहोगे।’
शब्दार्थ-
नमकहराम- उपकार न माननेवाला
आक्षेप- दोष लगाना
मजूर की कड़ी ताकीद- मजदूर को चौकन्ना करना
व्याख्या- लेखक ने झूरी की पत्नी और झूरी के बीच बैलों के प्रति व्यवहार को दिखाया है। जब झूरी की पत्नी बैलों को द्वार पर देखती है, तो वह नाराजगी व्यक्त करती है और उन्हें “नमकहराम” कहती है। उसकी नजर में बैलों का भाग जाना उनकी कामचोरी का संकेत है, जबकि झूरी इसे उनके प्रति हुई लापरवाही का परिणाम मानता है। झूरी अपनी पत्नी के इस आरोप को सहन नहीं कर पाता और बैलों का बचाव करते हुए कहता है कि उन्हें सही खाना नहीं दिया गया होगा, इसलिए वे भाग गए। वहीं पत्नी का तर्क यह है कि बैलों को खिलाने-पिलाने के बावजूद उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, और वे लोग बैलों को सहलाने का झूरी जैसा व्यवहार नहीं करते। वह बैलों को “कामचोर” कहती है और गुस्से में यह निर्णय लेती है कि अब उन्हें केवल सूखा भूसा ही दिया जाएगा।
जब बैलों को केवल सूखा भूसा मिलता है, तो वे नाँद में मुँह डालते तो हैं, लेकिन उसमें न कोई स्वाद है, न कोई चिकनाहट। उनकी आशा-भरी नजरें झूरी की ओर देखती हैं, मानो उनसे मदद की अपेक्षा कर रही हों। झूरी को बैलों की यह हालत देखी नहीं जाती और वह मजदूर से थोड़ी खली डालने के लिए कहता है। लेकिन मजूर, मालकिन के डर से ऐसा करने से इनकार कर देता है और कहता है कि बाद में झूरी भी मालकिन की तरह उसे डाँट सकते हैं।
2
पाठ- दूसरे दिन झूरी का साला फिर आया और बैलों को ले चला। अबकी उसने दोनों को गाड़ी में जोता।
दो-चार बार मोती ने गाड़ी को सड़क की खाई में गिराना चाहा; पर हीरा ने संभाल लिया। वह ज़्यादा सहनशील था।
संध्या-समय घर पहुँचकर उसने दोनों को मोटी रस्सियों से बाँधा और कल की शरारत का मज़ा चखाया। फिर वही सूखा भूसा डाल दिया। अपने दोनों बैलों को खली, चूनी सब कुछ दी।
दोनों बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था। झूरी इन्हें फूल के छड़ी से भी न छूता था। उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे। यहाँ मार पड़ी। आहत-सम्मान की व्यथा तो थी ही, उस पर मिला सूखा भूसा!
नाँद की तरफ आँखें तक न उँठाई।
शब्दार्थ-
खाई- बहुत गहरा गड्ढा
चूनी- गेहूँ, चावल आदि का छोटा कण
टिटकार – मुँह से निकलने वाला टिक-टिक का शब्द
आहत- घायल, ज़ख्मी
व्यथा- आंतरिक क्लेश या दुःख
व्याख्या- झूरी का साला बैलों को फिर से ले जाता है और इस बार उन्हें गाड़ी में जोतता है। यात्रा के दौरान मोती, जो स्वभाव से अधिक उग्र और विद्रोही था, गाड़ी को खाई में गिराने की कोशिश करता है, लेकिन हीरा, अपनी सहनशीलता और संतुलित स्वभाव के कारण, स्थिति को संभाल लेता है। यह घटना दोनों बैलों के व्यक्तित्व के अंतर को उजागर करती है।
शाम को जब बैल नए घर पहुँचते हैं, तो झूरी का साला उनकी शरारत के लिए उन्हें मोटी रस्सियों से बाँध देता है और मारकर सजा देता है। यह उनके स्वाभिमान और आदर के लिए बड़ा आघात (धक्का) था। झूरी ने कभी उन्हें इस तरह छुआ तक नहीं था; उसकी आवाज़ भर से वे काम करने के लिए तत्पर हो जाते थे। झूरी के स्नेह और सम्मान के अभ्यस्त (अच्छी तरह सीखा हुआ) ये बैल अब इस कठोर व्यवहार और अपमान को सहन नहीं कर पा रहे थे।
इस पर उन्हें फिर वही सूखा भूसा दिया गया, जबकि झूरी के पास रहते हुए वे खली और चूनी जैसे पोषणयुक्त आहार पाते थे। उनका यह अपमान और अनुचित व्यवहार उनके लिए असहनीय हो गया। नाँद की तरफ देखने तक की उनकी अनिच्छा यह दिखाती है कि वे न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से भी आहत थे।
पाठ- दूसरे दिन गया ने बैलों को हल में जोता, पर इन दोनों ने जैसे पाँव न उठाने की कसम खा ली थी। वह मारते-मारते थक गया; पर दोनों ने पाँव न उठाया। एक बार जब उस निर्दयी ने हीरा की नाक पर खूब डंडे जमाए, तो मोती का गुस्सा काबू के बाहर हो गया। हल लेकर भागा। हल रस्सी, जुआ, जोत, सब टूट-टाट कर बराबर हो गया। गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ न होतीं, तो दोनों पकड़ाई में न आते।
हीरा ने मूक-भाषा में कहा-भागना व्यर्थ है।
मोती ने उत्तर दिया-तुम्हारी तो इसने जान ही ले ली थी।
‘अबकी बड़ी मार पड़ेगी।’
‘पड़ने दो, बैल का जन्म लिया है, तो मार से कहाँ तक बचेंगे?’
‘गया दो, आदमियों के साथ दौड़ा आ रहा है। दोनों के हाथों में लाठियाँ हैं।’
मोती बोला-कहो तो दिखा दूँ कुछ मज़ा मैं भी। लाठी लेकर आ रहा है।
हीरा ने समझाया-नहीं भाई! खड़े हो जाओ।
‘मुझे मारेगा, तो मैं भी एक-दो को गिरा दूँगा!’
‘नहीं। हमारी जाति का यह धर्म नहीं है।’
मोती दिल में ऐंठकर रह गया। गया आ पहुँचा और दोनों को पकड़ कर ले चला। कुशल हुई कि उसने इस वक्त मारपीट न की, नहीं तो मोती भी पलट पड़ता। उसके तेवर देखकर गया और उसके सहायक समझ गए कि इस वक्त टाल जाना ही मसलहत है।
शब्दार्थ –
मूक-भाषा- शब्द रहित भाषा, बिना उच्चारण की भाषा
व्यर्थ- बेकार, फालतू
ऐंठकर- घमंड दिखाकर
तेवर- क्रोध दिखाकर
टाल जाना– टरकाना, हटाना
मसलहत – हितकर
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में बैलों की सहनशीलता, विद्रोह, और उनके भीतर का संवाद एक मानवीय नजरिये से प्रस्तुत किया गया है। जब गया ने बैलों को हल में जोता, तो उन्होंने जैसे पाँव न उठाने की कसम खा ली। यह उनके भीतर जमा हुए अपमान और क्रोध का सीधा संकेत था। गया ने उन्हें मारकर काम पर लगाने की कोशिश की, लेकिन दोनों बैलों ने हिलने से इनकार कर दिया।
हीरा और मोती के स्वभाव का अंतर उस समय स्पष्ट हो गया जब गया ने हीरा की नाक पर डंडे मारे। मोती का गुस्सा इस अत्याचार को सहन नहीं कर सका, और वह हल लेकर भाग खड़ा हुआ। इस विद्रोह में हल, रस्सियाँ, जुआ, सब टूट गए। हालांकि, मोटी रस्सियों के कारण दोनों पकड़े गए।
पकड़े जाने के बाद, हीरा और मोती के बीच जो बातचीत होती है, वह उनके व्यक्तित्व और आदर्श को दर्शाता है। हीरा शांत और समझदार स्वभाव का है। वह मोती से कहता है कि भागना व्यर्थ है और हमें मार को स्वीकार करना पड़ेगा। दूसरी ओर, मोती विद्रोही और आक्रामक है। वह लड़ने और अपना गुस्सा दिखाने को तैयार है, लेकिन हीरा उसे समझाता है कि उनकी जाति (बैल समुदाय) का धर्म हिंसा नहीं है।
जब गया और उसके साथी लाठियाँ लेकर आए, तो मोती का क्रोध और बढ़ गया, लेकिन हीरा ने उसे शांत रहने के लिए राजी किया। गया और उसके सहायक मोती के तेवर देखकर डर गए और स्थिति को टालना ही उचित समझा।
पाठ- आज दोनों के सामने फिर वही सूखा भूसा लाया गया। दोनों चुपचाप खड़े रहे। घर के लोग भोजन करने लगे। उस वक्त छोटी-सी लड़की दो रोटियाँ लिए निकली, और दोनों के मुँह में देकर चली गई। उस एक रोटी से इनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानो भोजन, मिल गया। यहाँ भी किसी सज्जन का वास है। लड़की भैरो की थी। उसकी माँ मर चुकी थी। सौतेली माँ उसे मारती रहती थी, इसलिए इन बैलों से उसे एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी।
दोनों दिन-भर जोते जाते, डंडे खाते, अड़ते। शाम को थान पर बाँध दिए जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती।
प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी कि दो-दो गाल सूखा भूसा खाकर भी दोनों दुर्बल न होते थे, मगर दोनों की आँखों में, रोम-रोम में विद्रोह भरा हुआ था।
शब्दार्थ-
आत्मीयता- अपनापन
बरकत- वृद्धि, लाभ
विद्रोह- उपद्रव, क्रांति
व्याख्या- लेखक ने बैलों के प्रति छोटी बच्ची के स्नेह और उनके भीतर जमा विद्रोह का सजीव चित्रण किया है। दोनों बैलों को फिर से सूखा भूसा दिया गया, लेकिन उन्होंने उसे नहीं खाया। यह उनकी निराशा और अपमान का प्रतीक था। घर के लोग आराम से भोजन कर रहे थे, लेकिन बैल अपनी भूख और दुर्दशा के साथ खड़े रहे। इसी दौरान एक छोटी लड़की आई, जिसने चुपचाप दो रोटियाँ उनके मुँह में डाल दीं।
हालाँकि यह रोटियाँ उनकी भूख को शांत करने के लिए पर्याप्त नहीं थीं, लेकिन उनमें छिपे प्रेम और स्नेह ने उनके घायल हृदय को राहत दी। यह बच्ची भैरो की बेटी थी, जिसकी अपनी सौतेली माँ से दुर्दशा हो रही थी। उसे बैलों के प्रति अपनापन और जुड़ाव महसूस हुआ क्योंकि वह खुद भी प्रताड़ित (सताई हुई) थी।
दिनभर के कठोर परिश्रम, डंडों की मार, और सूखा भूसा खाने के बावजूद, यह छोटी बच्ची रात को आकर उन्हें प्रेम से रोटियाँ देती थी। इस स्नेह के कारण, बैल शारीरिक रूप से दुर्बल नहीं होते थे। यह प्रेम उनके लिए जीवन देने वाली शक्ति बन गया।
लेकिन बैलों के इस सहनशीलता भरे जीवन में भीतर ही भीतर विद्रोह पनप रहा था। उनके हर रोम में, उनकी आँखों में उस अन्याय और अत्याचार के खिलाफ एक गहरी नाराजगी थी, जो उनके साथ किया जा रहा था। यह विद्रोह उनके स्वाभिमान और स्वतंत्रता की भावना को व्यक्त करता है।
पाठ- एक दिन मोती ने मूक-भाषा में कहा-अब तो नहीं सहा जाता, हीरा!
‘क्या करना चाहते हो?’
‘एकाध को सींगों पर उठाकर फेंक दूँगा।’
‘लेकिन जानते हो, वह प्यारी लड़की, जो हमें रोटियाँ खिलाती है, उसी की लड़की है, जो इस घर का मालिक है। यह बेचारी अनाथ न हो जाएगी?’
‘तो मालकिन को न फेंक दूँ। वही तो उस लड़की को मारती है।’
‘लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूलै जाते हो।’
‘तुम तो किसी तरह निकलने ही नहीं देते। बताओ, तुड़ाकर भाग चलें।’
‘हाँ, यह मैं स्वीकार करता हूँ, लेकिन इतनी मोटी रस्सी टूटेगी कैसे?’
‘इसका एक उपाय है। पहले रस्सी को थोड़ा-सा चबा लो। फिर एक झटके में जाती है।’
रात को जब बालिका रोटियाँ खिलाकर चली गई, दोनों रस्सियाँ चबाने लगे, पर मोटी रस्सी मुँह में न आती थी। बेचारे बार-बार ज़ोर लगाकर रह जाते थे।
सहसा घर का द्वार खुला और वही लड़की निकली। दोनों सिर झुकाकर उसका हाथ चाटने लगे। दोनों की पूँछें खड़ी हो गईं। उसने उनके माथे सहलाए और बोली-खोले देती हूँ। चुपके से भाग जाओ, नहीं तो यहाँ लोग मार डालेंगे। आज घर में सलाह हो रही है कि इनकी नाकों में नाथ डाल दी जाए।
उसने गराँव खोल दिया, पर दोनों चुपचाप खड़े रहे।
शब्दार्थ –
मूक-भाषा- शब्द रहित भाषा, बिना उच्चारण के मन ही मन बातचीत
एकाध- गिनती में बहुत कम, एक आध।
गराँव – फुँदेदार रस्सी जो बैल आदि के गले में पहनाई जाती है।
व्याख्या- लेखक ने बैलों की भावनाएँ, विद्रोह, और अपने प्रति अन्याय के खिलाफ खड़े होने की तीव्र इच्छा का भावुक चित्रण किया है। मोती, जो स्वभाव से विद्रोही और आक्रामक है, हीरा से कहता है कि अब वह अन्याय सहन नहीं कर सकता। वह किसी को सींगों पर उठाकर फेंकने की योजना बनाता है। लेकिन हीरा, जो शांत और विवेकशील है, उसे यह याद दिलाता है कि ऐसा करने से उस लड़की पर असर पड़ेगा जो रोज़ उन्हें रोटियाँ खिलाती है। वह लड़की अपने परिवार में पहले से ही अनाथ जैसी स्थिति में है और उसका भविष्य खतरे में पड़ सकता है।
मोती मालकिन पर हमला करने का सुझाव देता है, क्योंकि वही उस लड़की को प्रताड़ित (मारती-पीटती) करती है। लेकिन हीरा उसे समझाता है कि औरतों पर हमला करना उनकी जाति (बैल समुदाय) के धर्म के खिलाफ है। जब मोती अपनी विद्रोही स्वभाव के साथ आगे बढ़ने की बात करता है, तो हीरा उसे एक सुझाव देता है—भागने का। दोनों सहमत होते हैं कि रस्सी तोड़कर भागा जाए। लेकिन समस्या यह है कि मोटी रस्सियाँ इतनी मजबूत हैं कि चबाने की कोशिश करने के बावजूद वे उन्हें तोड़ नहीं पाते।
उन्हीं क्षणों में, वह छोटी लड़की आती है, जिसने हमेशा बैलों के साथ सहानुभूति और स्नेह दिखाया है। बैलों का लड़की को देखकर सिर झुकाना और उसके हाथ चाटना उनके गहरे आभार और प्रेम को दर्शाता है। लड़की, बैलों की दुर्दशा को समझते हुए, उन्हें आज़ाद करने का निर्णय लेती है। वह उन्हें बताती है कि घर में सलाह हो रही है कि उनकी नाक में नाथ डाल दी जाए, जो उनके लिए और अधिक पीड़ादायक होगा। इसलिए वह चुपके से उनकी रस्सियाँ खोल देती है और भागने का सुझाव देती है। लेकिन बैल, जो अपने भीतर गहरे विद्रोह और स्वतंत्रता की इच्छा रखते हैं, फिर भी खड़े रहते हैं, शायद लड़की के प्रति अपने स्नेह और उसकी भलाई का विचार उन्हें आगे बढ़ने से रोक देता है।
पाठ- मोती ने अपनी भाषा में पूछा-अब चलते क्यों नहीं?
हीरा ने कहा-चलें तो लेकिन कल इस अनाथ पर आफत आएगी। सब इसी पर संदेह करेंगे। सहसा बालिका चिल्लाई-दोनों फूफावाले बैल भागे जा रहे हैं। ओ दादा! दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, जल्दी दौड़ो।
गया हड़बड़ाकर भीतर से निकला और बैलों को पकड़ने चला। वे दोनों भागे। गया ने पीछा किया। और भी तेज़ हुए। गया ने शोर मचाया। फिर गाँव के कुछ आदमियों को भी साथ लेने के लिए लौटा। दोनों मित्रों को भागने का मौका मिल गया। सीधे दौड़ते चले गए। यहाँ तक कि मार्ग का ज्ञान न रहा। जिस परिचित मार्ग से आए थे, उसका यहाँ पता न था। नए-नए गाँव मिलने लगे। तब दोनों एक खेत के किनारे खड़े होकर सोचने लगे, अब क्या करना चाहिए।
हीरा ने कहा-मालूम होता है, राह भूल गए।
‘तुम भी बेतहाशा भागे। वहीं उसे मार गिराना था।’
‘उसे मार गिराते, तो दुनिया क्या कहती? वह अपना धर्म छोड़ दे, लेकिन हम अपना धर्म क्यों छोड़ें?’
दोनों भूख से व्याकुल हो रहे थे। खेत में मटर खड़ी थी। चरने लगे। रह-रहकर आहट ले लेते थे, कोई आता तो नहीं है।
जब पेट भर गया, दोनों ने आजादी का अनुभव किया, तो मस्त होकर उछलने-कूदने लगे। पहले दोनों ने डकार ली। फिर सींग मिलाए और एक-दूसरे को ठेलने लगे। मोती ने हीरा को कई कदम पीछे हटा दिया, यहाँ तक कि वह खाई में गिर गया। तब उसे भी क्रोध आया। संभलकर उठा और फिर मोती से मिल गया। मोती ने देखा-खेल में झगड़ा हुआ चाहता है, तो किनारे हट गया।
शब्दार्थ-
बेतहाशा-बिना सोचे-समझे
व्याकुल- बेचैन, परेशान
ठेलने लगे– ढकेलने लगे
व्याख्या- लेखक ने हीरा और मोती के बीच बात-चीत और उनके भागने के बाद की घटनाओं को बेहद सजीव और मानवीय दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया है। जब लड़की ने बैलों को आज़ाद किया, तो मोती उत्सुक था कि वे तुरंत भाग जाएं, लेकिन हीरा ने उसे याद दिलाया कि अगर वे भाग गए, तो इस अनाथ लड़की पर आफत आ सकती है। लड़की के प्रति उनकी सहानुभूति और कृतज्ञता उन्हें तुरंत निर्णय लेने से रोकती है।
लेकिन जैसे ही लड़की ने चिल्लाकर लोगों को आवाज़ दी कि बैल भाग रहे हैं, हीरा और मोती का विद्रोही स्वभाव जाग गया। वे तेज़ी से भागने लगे। गया ने उनका पीछा करने की कोशिश की, लेकिन बैलों की गति और अधिक बढ़ गई। जब गया मदद लेने के लिए गाँव के लोगों के पास लौटा, तब दोनों को भागने का अच्छा मौका मिल गया।
भागते-भागते वे इतनी दूर निकल गए कि परिचित मार्ग भूल गए और अजनबी गाँवों में जा पहुँचे। वे भूख से व्याकुल हो गए और एक खेत में मटर की फसल देखकर उसे चरने लगे। इस दौरान उनकी सतर्कता बनी रही, क्योंकि वे जानते थे कि कोई उन्हें पकड़ने आ सकता है।
खेत में पेट भरने के बाद दोनों ने पहली बार आज़ादी का अनुभव किया। वे खुशी से उछलने-कूदने लगे, जो उनके स्वतंत्रता के उत्साह और नए जीवन के आनंद को दर्शाता है। खेल-खेल में जब उन्होंने सींग मिलाए, तो मोती ने अपनी ताकत दिखाते हुए हीरा को पीछे धकेल दिया, जिससे वह खाई में गिर गया। यह घटना उनके रिश्ते की गहराई को दर्शाती है, जिसमें दोस्ती के साथ हल्का-फुल्का मनमुटाव भी है।
लेकिन हीरा ने भी मोती को चुनौती दी, और खेल में झगड़े की संभावना बनने लगी। मोती ने स्थिति को भांपकर झगड़े से किनारा कर लिया। यह दिखाता है कि मोती विद्रोही होने के बावजूद समझदार भी है और अपने साथी के साथ गहरा जुड़ाव रखता है।
3
पाठ- अरे! यह क्या? कोई साँड डौंकता चला आ रहा है। हाँ, साँड ही है। वह सामने आ पहुँचा। दोनों मित्र बगलें झाँक रहे हैं। साँड पूरा हाथी है। उससे भिड़ना जान से हाथ धोना है; लेकिन न भिड़ने पर भी जान बचती नहीं नज़र आती। इन्हीं की तरफ़ आ भी रहा है। कितनी भयंकर सूरत है!
मोती ने मूक-भाषा में कहा-बुरे फँसे। जान बचेगी? कोई उपाय सोचो।
हीरा ने चिंतित स्वर में कहा-अपने घमंड में भूला हुआ है। आरजू-विनती न सुनेगा।
‘भाग क्यों न चलें?’
‘भागना कायरता है।’
‘तो फिर यहीं मरो। बंदा तो नौ-दो-ग्यारह होता है।’
‘और जो दौड़ाए?’
‘तो फिर कोई उपाय सोचो जल्द! ‘
‘उपाय यही है कि उस पर दोनों जने एक साथ चोट करें? मैं आगे से रगेदता हूँ, तुम पीछे से रगेदो, दोहरी मार पड़ेगी, तो भाग खड़ा होगा। मेरी ओर झपटे, तुम बगल से उसके पेट में सींग घुसेड़ देना। जान जोखिम है; पर दूसरा उपाय नहीं है।’
शब्दार्थ –
मूक-भाषा- जिसमें शब्द नहीं है न उच्चारण
आरजू- विनय, विनती
नौ-दो-ग्यारह- किसी जगह से तुरंत भाग जाना या तेज़ी से गायब हो जाना
रगेदना – खदेड़ना
जोखिम- खतरा, संकट
व्याख्या- हीरा और मोती एक नई चुनौती का सामना करते हैं जब उनके सामने एक विशाल और भयंकर साँड आ खड़ा होता है। साँड की ताकत को देखकर दोनों घबरा जाते हैं। उन्हें यह एहसास हो जाता है कि साँड से न भिड़ने पर भी उनकी जान नहीं बच सकती। इस संकट की घड़ी में दोनों मित्र आपस में विचार-विमर्श करते हैं, जिसमें उनके स्वभाव और सोचने-समझने की गहराई स्पष्ट होती है।
मोती, जो स्वभाव से अधिक विद्रोही और तुरन्त निर्णय लेने वाला है, घबराहट में पूछता है कि जान बचाने का कोई उपाय है। हीरा, जो शांत है, परिस्थिति को समझते हुए कहता है कि साँड अपने अहंकार में चूर है और किसी विनती को नहीं सुनेगा। मोती तुरंत भागने का सुझाव देता है, लेकिन हीरा इसे कायरता मानता है। इस पर मोती कहता है कि अगर ऐसा है, तो यहीं मरने के लिए तैयार हो जाओ।
हीरा जल्द ही एक रणनीति सुझाता है, जिसमें दोनों को मिलकर साँड का सामना करना है। उसकी योजना यह है कि दोनों एक साथ साँड पर हमला करें। हीरा सामने से साँड को भड़काएगा, जबकि मोती बगल से उसकी कमजोरी (पेट) पर वार करेगा। यह योजना जोखिम भरी है, लेकिन उनके पास और कोई विकल्प नहीं है।
पाठ- दोनों मित्र जान हथेलियों पर लेकर लपके। साँड को भी संगठित शत्रुओं से लड़ने का तजरबा न था। वह तो एक शत्रु से मल्लयुद्ध करने का आदी था। ज्यों ही हीरा पर झपटा, मोती ने पीछे से दौड़ाया। साँड उसकी तरफ़ मुड़ा, तो हीरा ने रगेदा। साँड चाहता था कि एक-एक करके दोनों को गिरा ले; पर ये दोनों भी उस्ताद थे। उसे वह अवसर न देते थे। एक बार साँड झल्लाकर हीरा का अंत कर देने के लिए चला कि मोती ने बगल से आकर पेट में सींग भोंक दिया। साँड क्रोध में आकर पीछे फिरा तो हीरा ने दूसरे पहलू में सींग चुभा दिया। आखिर बेचारा ज़ख्मी होकर भागा और दोनों मित्रों ने दूर तक उसका पीछा किया। यहाँ तक कि साँड बेदम होकर गिर पड़ा। तब दोनों ने उसे छोड़ दिया।
शब्दार्थ –
लपके- अचानक तेजी से आगे बड़े
तजरबा– अनुभव
मल्लयुद्ध – कुश्ती
रगेदा- बल प्रयोग करते हुए भगाना, खदेड़ना
बेदम- दम रहित, जिसमें जान ही न बची हो
व्याख्या- लेखक ने हीरा और मोती की साहसिकता और संगठन का चित्रण किया है, जहाँ वे अपनी जान जोखिम में डालकर एक विशाल और भयंकर साँड का सामना करते हैं। दोनों मित्र अपनी योजना के अनुसार संगठित रूप से साँड पर हमला करते हैं। साँड, जो अब तक एक-एक शत्रु से लड़ने का आदी था, संगठित हमले का सामना नहीं कर पाता। जैसे ही वह हीरा पर झपटा, मोती ने पीछे से उस पर हमला किया। जब साँड मोती की ओर मुड़ा, तो हीरा ने अपनी बारी का फायदा उठाकर उसे दौड़ा दिया।
साँड लगातार कोशिश करता रहा कि वह एक-एक करके दोनों बैलों को गिरा ले, लेकिन हीरा और मोती की सूझबूझ और सामंजस्य उसे ऐसा करने का मौका नहीं देते। दोनों मित्र अपनी रणनीति में माहिर साबित होते हैं। जब साँड ने हीरा को निशाना बनाने की कोशिश की, तो मोती ने उसका ध्यान भटकाते हुए उसकी बगल पर हमला कर दिया। साँड क्रोध में पलटा, तो हीरा ने भी दूसरी तरफ से उसे चोट पहुँचाई।
इस बार-बार के संगठित हमलों से साँड कमजोर पड़ने लगा। आखिरकार, पेट में लगी चोटों से घायल होकर वह बेदम होकर भागा। हीरा और मोती ने अपनी जीत की पुष्टि करते हुए उसका पीछा किया, जब तक कि वह पूरी तरह गिर नहीं गया। अपनी विजय सुनिश्चित करने के बाद, उन्होंने साँड को वहीं छोड़ दिया और आगे बढ़ गए।
पाठ- दोनों मित्र विजय के नशे में झूमते चले जाते थे।
मोती ने अपनी सांकेतिक भाषा में कहा-मेरा जी तो चाहता था कि बच्चा को मार ही डालूँ।
हीरा ने तिरस्कार किया-गिरे हुए बैरी पर सींग न चलाना चाहिए।
‘यह सब ढोंग है। बैरी को ऐसा मारना चाहिए कि फिर न उठे।’
‘अब घर कैसे पहुँचेंगे, वह सोचो।’
‘पहले कुछ खा लें, तो सोचें।’
सामने मटर का खेत था ही। मोती उसमें घुस गया। हीरा मना करता रहा, पर उसने एक न सुनी। अभी दो ही चार ग्रास खाए थे कि दो आदमी लाठियाँ लिए दौड़ पड़े और दोनों मित्रों को घेर लिया। हीरा तो मेड़ पर था, निकल गया। मोती सींचे हुए खेत में था। उसके खुर कीचड़ में धँसने लगे। न भाग सका। पकड़ लिया। हीरा ने देखा, संगी संकट में हैं, तो लौट पड़ा। फँसेंगे तो दोनों फँसेंगे। रखवालों ने उसे भी पकड़ लिया।
प्रात:काल दोनों मित्र कांजीहौस में बंद कर दिए गए।
शब्दार्थ –
सांकेतिक भाषा- ऐसी भाषा जिसमें शब्दों का उपयोग नहीं किया गया हो
तिरस्कार- अपमान, अनादर
बैरी- दुश्मन, शत्रु
ग्रास– कौर, निवाला
खुर- नख, सींगवाले पशुओं के पैरों का अगला सिरा
कांजीहौस (काइन हाउस) – मवेशीखाना, वह बाड़ा जिसमें दूसरे का खेत आदि खाने वाले या लावारिस चौपाये बंद किए जाते हैं और कुछ दंड लेकर छोड़े या नीलाम किए जाते हैं।
व्याख्या- दोनों मित्र ख़ुशी से नशे में झूमते हुए चले जा रहे थे। मोती ने अपनी भाषा में यह कहा कि वह बच्चा को मार डालना चाहता था। हीरा, जो मोती का साथ दे रहा था, ने उसकी निंदा करते हुए कहा कि गिरे हुए दुश्मन पर अत्याचार नहीं करना चाहिए। फिर मोती ने अपने विचारों को और ज़ोर देकर कहा कि दुश्मन को ऐसा मारना चाहिए कि वह फिर कभी उठ न पाए।
बात-चीत करते-करते उन्हें भूख लगने लगती है, और अचानक वे दोनों एक मटर के खेत के पास पहुँचते हैं। मोती वहाँ घुस जाता है और खाने के लिए मटर तोड़ने लगता है, जबकि हीरा उसे मना करता है। फिर खेत में रखवाले आते हैं, और हीरा तो भाग जाता है, लेकिन मोती कीचड़ में फंस जाता है और उसे पकड़ लिया जाता है। जब हीरा देखता है कि उसका मित्र संकट में है, तो वह वापस लौट आता है और दोनों को पकड़ लिया जाता है। अंत में, दोनों को प्रात:काल कांजीहौस में बंद कर दिया जाता है।
इसमें दोस्ती की एक मिसाल दिखाई गई है, जिसमें हीरा ने मोती को संकट में देखकर अपनी जान की परवाह किए बिना उसे बचाने की कोशिश की।
4
पाठ- दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार ऐसा साबिका पड़ा कि सारा दिन बीत गया और खाने को एक तिनका भी न मिला। समझ ही में न आता था, यह कैसा स्वामी है। इससे तो गया फिर भी अच्छा था। यहाँ कई भैंसें थीं, कई बकरियाँ, कई घोड़े, कई गधे; पर किसी के सामने चारा न था, सब ज़मीन पर मुरदों की तरह पड़े थे। कई तो इतने कमज़ोर हो गए थे कि खड़े भी न हों सकते थे। सारा दिन दोनों मित्र फाटक की ओर टकटकी लगाए ताकते रहे; पर कोई चारा लेकर आता न दिखाई दिया। तब दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी शुरू की, पर इससे क्या तृप्ति होती?
शब्दार्थ –
साबिका – वास्ता, सरोकार
फाटक- बड़ा दरवाज़ा
तृप्ति- आवश्यकता पूरी होने पर मिलनेवाली मानसिक शांति।
व्याख्या- हीरा और मोती के साथ पहली बार ऐसा हुआ कि पूरे दिन उन्हें खाने के लिए कुछ भी नहीं मिला। वे सोचने लगे कि यह कैसा स्वामी है, जो उनकी देखभाल नहीं करता। उनकी पिछली जगह (गया के यहाँ) की तुलना में यह स्थिति और भी खराब थी। यहाँ अन्य जानवर जैसे भैंसें, बकरियाँ, घोड़े, और गधे भी थे, लेकिन किसी के सामने चारा नहीं था। सब जानवर भूख से बेहाल होकर ज़मीन पर गिरे पड़े थे। कुछ तो इतने कमज़ोर हो गए थे कि खड़े भी नहीं हो पा रहे थे।
हीरा और मोती पूरे दिन फाटक की तरफ उम्मीद भरी नज़रों से देखते रहे, लेकिन कोई उनके लिए चारा लेकर नहीं आया। भूख से परेशान होकर उन्होंने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटना शुरू कर दिया, लेकिन इससे उनकी भूख शांत नहीं हो सकी।
पाठ- रात को भी जब कुछ भोजन न मिला, तो हीरा के दिल में विद्रोह की ज्वाला दहक उठी। मोती से बोला-अब तो नहीं रहा जाता मोती!
मोती ने सिर लटकाए हुए जवाब दिया-मुझे तो मालूम होता है, प्राण निकल रहे हैं।
‘इतनी जल्द हिम्मत न हारो भाई! यहाँ से भागने का कोई उपाय निकालना चाहिए।’
‘आओ दीवार तोड़ डालें।’
‘मुझसे तो अब कुछ नहीं होगा।’
‘बस इसी बूते पर अकड़ते थे!’
‘सारी अकड़ निकल गई।’
बाड़े की दीवार कच्ची थी। हीरा मज़बूत तो था ही, अपने नुकीले सींग दीवार में गड़ा दिए और ज़ोर मारा, तो मिट्टी का एक चिप्पड़ निकल आया। फिर तो उसका साहस बढ़ा। इसने दौड़-दौड़कर दीवार पर चोटें कीं और हर चोट में थोड़ी-थोड़ी मिट्टी गिराने लगा।
उसी समय कांजीहौस का चौकीदार लालटेन लेकर जानवरों की हाज़िरी लेने आ निकला। हीरा का उजड्डपन देखकर उसने उसे कई डंडे रसीद किए और मोटी-सी रस्सी से बाँध दिया।
शब्दार्थ-
विद्रोह- उपद्रव, क्रांति
बूते पर– ताकत पर, बल पर
चिप्पड़- छोटा टुकड़ा, छाल
कांजीहौस- आवारा और लावारिस पशुओं को बंद करने की जगह
उजड्डपन– असभ्यता, उद्दंडता
व्याख्या- हीरा और मोती भूख और उत्पीड़न के खिलाफ विद्रोह करते हैं। हीरा को जब रात तक कुछ खाने को नहीं मिला, तो वह सहन ना कर सका और उसके भीतर विद्रोह की भावना जाग उठी। उसने अपने साथी मोती से कहा कि अब इस स्थिति को और बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
मोती ने निराशा भरे स्वर में जवाब दिया कि उसे तो ऐसा लग रहा है कि उसके प्राण निकल रहे हैं। हीरा ने उसे हिम्मत न हारने को कहा और भागने का कोई उपाय निकालने की बात की। मोती ने दीवार तोड़ने का सुझाव दिया, लेकिन कमजोरी और भूख के कारण उसमें ताकत नहीं बची थी। हीरा ने मोती को ताना देते हुए कहा कि अब उसकी सारी अकड़ निकल गई है। इसके बाद, हीरा ने खुद दीवार तोड़ने का प्रयास शुरू कर दिया। बाड़े की दीवार कच्ची मिट्टी की थी। हीरा ने अपने नुकीले सींगों से दीवार पर चोट की और धीरे-धीरे मिट्टी गिरने लगी। वह बार-बार दौड़कर दीवार पर प्रहार करता रहा और उसकी कोशिशों से दीवार कमजोर होने लगी। लेकिन इसी बीच कांजीहौस का चौकीदार लालटेन लेकर जानवरों की गिनती करने आ गया। उसने हीरा की यह हरकत देखकर उसे डंडों से पीटा और उसे मोटी रस्सी से बाँध दिया।
पाठ- मोती ने पड़े-पड़े कहा-आखिर मार खाई, क्या मिला?
‘अपने बूते-भर ज़ोर तो मार दिया।’
‘ऐसा ज़ोर मारना किस काम का कि और बंधन में पड़ गए।’
‘ज़ोर तो मारता ही जाऊँगा, चाहे कितने ही बंधन पड़ते जाएँ।’
‘जान से हाथ धोना पड़ेगा।’
‘कुछ परवाह नहीं। यों भी तो मरना ही है। सोचो, दीवार खुद जाती, तो कितनी जानें बच जातीं। इतने भाई यहाँ बंद हैं। किसी की देह में जान नहीं है। दो-चार दिन और यही हाल रहा, तो सब मर जाएँगे।’
‘हाँ, यह बात तो है। अच्छा, तो ला, फिर मैं भी ज़ोर लगाता हूँ।’
मोती ने भी दीवार में उसी जगह सींग मारा। थोड़ी-सी मिट्टी गिरी और फिर हिम्मत बढ़ी। फिर तो वह दीवार में सींग लगाकर इस तरह ज़ोर करने लगा, मानो किसी प्रतिद्वंद्वी से लड़ रहा है। आखिर कोई दो घंटे की ज़ोर-आज़माई के बाद दीवार ऊपर से लगभग एक हाथ गिर गई। उसने दूनी शक्ति से दूसरा धक्का मारा, तो आधी दीवार गिर पड़ी।
शब्दार्थ-
बूते-भर- सामर्थ्य के अंदर या हदों के अंदर
प्रतिद्वंद्वी- मुकाबला करनेवाला
आज़माना- जाँचना, परखना
व्याख्या- इस अंश में हीरा और मोती के संवाद से उनके संघर्ष, हिम्मत, और सहानुभूति का वर्णन किया गया है। मोती ने हीरा से कहा कि उसकी कोशिश का क्या फायदा, जब उसे और भी बंधन में जकड़ दिया गया। हीरा ने जवाब दिया कि उसने अपनी पूरी कोशिश कर ली, भले ही नतीजा बुरा हुआ। मोती ने इसे व्यर्थ मानते हुए कहा कि ऐसी कोशिश का क्या फायदा, जो परेशानी बढ़ा दे। लेकिन हीरा ने दृढ़ता से कहा कि वह चाहे जितने भी बंधन में जकड़ दिया जाए, वह अपनी ताकत से लड़ता रहेगा। हीरा ने तर्क दिया कि यदि दीवार टूट जाती, तो वे सिर्फ खुद को नहीं, बल्कि अन्य सभी जानवरों को भी बचा सकते थे। उसने बताया कि यहाँ बंद बाकी जानवरों की हालत इतनी खराब है कि यदि यही हाल रहा, तो वे कुछ ही दिनों में मर जायेंगे। हीरा की बातों से प्रेरित होकर मोती ने भी दीवार तोड़ने में उसका साथ देने का फैसला किया। उसने अपनी ताकत जुटाई और दीवार में सींग मारना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे मिट्टी गिरने लगी, उनका उत्साह बढ़ता गया। मोती दीवार पर पूरे जोश से प्रहार करने लगा, मानो वह किसी दुश्मन से लड़ रहा हो।
लगभग दो घंटे की मेहनत के बाद, दोनों ने मिलकर दीवार का एक बड़ा हिस्सा गिरा दिया। उनकी दृढ़ता और सहयोग के कारण दीवार लगभग आधी गिर गई। यह बात बताती है कि जब सहयोग और संघर्ष का भाव हो, तो असंभव-सी लगने वाली परिस्थितियों को भी बदला जा सकता है। हीरा का साहस और मोती की अंत में जागी हुई हिम्मत यह सिखाती है कि कठिनाईयों के बावजूद, जब तक हम प्रयास करते हैं, तब तक उम्मीद बनी रहती है।
पाठ- दीवार का गिरना था कि अधमरे-से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे। तीनों घोड़ियाँ सरपट भाग निकलीं फिर बकरियाँ निकलीं। इसके बाद भैंसें भी खिसक गई; पर गधे अभी तक ज्यों-के-त्यों खड़े थे।
हीरा ने पूछा-तुम दोनों क्यों नहीं भाग जाते?
एक गधे ने कहा-जो कहीं फिर पकड़ लिए जाएँ!
‘तो क्या हरज है। अभी तो भागने का अवसर है।’
‘हमें तो डर लगता है, हम यहीं पड़े रहेंगे।’
आधी रात से ऊपर जा चुकी थी। दोनों गधे अभी तक खड़े सोच रहे थे कि भागें या न भागें, और मोती अपने मित्र की रस्सी तोड़ने में लगा हुआ था। जब वह हार गया, तो हीरा ने कहा-तुम जाओ, मुझे यहीं पड़ा रहने दो। शायद कहीं भेंट हो जाए।
मोती ने आँखों में आँसू लाकर कहा-तुम मुझे इतना स्वार्थी समझते हो, हीरा? हम और तुम इतने दिनों एक साथ रहे हैं। आज तुम विपत्ति में पड़ गए, तो मैं तुम्हें छोड़कर अलग हो जाऊँ।
हीरा ने कहा-बहुत मार पड़ेगी। लोग समझ जाएँगे, यह तुम्हारी शरारत है।
मोती गर्व से बोला-जिस अपराध के लिए तुम्हारे गले में बंधन पड़ा, उसके लिए अगर मुझ पर मार पड़े, तो क्या चिंता! इतना तो हो ही गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगे।
यह कहते हुए मोती ने दोनों गधों को सींगों से मार मारकर बाड़े के बाहर निकाला और तब अपने बंधु के पास आकर सो रहा।
भोर होते ही मुंशी और चौकीदार तथा अन्य कर्मचारियों में कैसी खलबली मची, इसके लिखने की ज़रूरत नहीं। बस, इतना ही काफ़ी है कि मोती की खूब मरम्मत हुई और उसे भी मोटी रस्सी से बाँध दिया गया।
शब्दार्थ-
अधमरा- लगभग मरने की स्थिति में पहुँचा हुआ
चेत- होश, बोध
हरज- आपत्ति
स्वार्थी- अपना ही मतलब देखनेवाला
खलबली- हलचल होना, हल्ला होना
मरम्मत- बिगड़ी वस्तु को सुधारना, शारीरिक दण्ड
व्याख्या- दीवार गिरते ही कांजीहौस (जहाँ फालतू घूम रहे पशुओं को रखा जाता है) में पड़े अधमरे जानवर जैसे फिर से जी उठे। तीन घोड़ियाँ तुरंत तेज़ी से भाग निकलीं, उनके बाद बकरियाँ और फिर भैंसें भी चली गईं। लेकिन गधे वहीं खड़े रहे, न भागे और न ही हिले। यह देख हीरा ने उनसे पूछा कि वे क्यों नहीं भाग रहे। एक गधे ने डरते हुए कहा कि अगर उन्हें फिर से पकड़ लिया गया तो क्या होगा। हीरा ने उन्हें समझाया कि अभी तो भागने का मौका है, तो इसका फायदा उठाना चाहिए। लेकिन गधों ने डर के कारण वहीं रुकने का फैसला किया।
आधी रात बीत चुकी थी, लेकिन दोनों गधे अभी तक सोच में पड़े थे कि भागें या न भागें। इस बीच, मोती लगातार हीरा की रस्सी तोड़ने की कोशिश कर रहा था। जब वह असफल हो गया, तो हीरा ने उससे कहा कि वह खुद भाग जाए और उसे वहीं छोड़ दे। हीरा ने यह भी कहा कि शायद किस्मत से कहीं मुलाकात हो जाए। मोती ने यह सुनकर भावुक हो कहा कि क्या हीरा उसे इतना स्वार्थी समझता है कि वह उसे दुःख में छोड़कर भाग जाए। उसने याद दिलाया कि वे इतने दिनों से साथ हैं और अब वह उसे छोड़कर अलग नहीं हो सकता।
हीरा ने मोती को चेतावनी दी कि अगर वह रुकता है तो लोगों को समझ में आ जाएगा कि यह सब उसकी शरारत है और उसे बहुत मार पड़ेगी। लेकिन मोती ने गर्व से कहा कि जिस अपराध के लिए हीरा पर बंधन डाला गया, अगर उसे भी उसी कारण से मार पड़ी तो वह इसकी चिंता नहीं करेगा। उसने यह भी कहा कि कम से कम उनकी कोशिश से नौ-दस जानवरों की जान बच गई, जो उन्हें आशीर्वाद देंगे। इसके बाद, मोती ने गधों को सींगों से धक्का देकर बाड़े से बाहर निकाल दिया ताकि वे भी आज़ादी पा सकें। फिर वह अपने मित्र हीरा के पास आकर सो गया।
सुबह होते ही, मुंशी, चौकीदार और अन्य कर्मचारी बाड़े में मची भगदड़ देखकर हैरान रह गए। क्या हुआ, यह देखने में वे लग गए। मोती को इस शरारत के लिए बुरी तरह मारा गया और उसे मोटी रस्सी से बाँध दिया गया। यह घटना मोती के साहस, त्याग, और मित्रता के प्रति उसकी गहरी निष्ठा को दर्शाती है।
5
पाठ- एक सप्ताह तक दोनों मित्र वहाँ बँधे पड़े रहे। किसी ने चारे का एक तृण भी न डाला। हाँ, एक बार पानी दिखा दिया जाता था। यही उनका आधार था। दोनों इतने दुर्बल हो गए थे कि उठा तक न जाता था, ठठरियाँ निकल आई थीं।
एक दिन बाड़ें के सामने डुग्गी बजने लगी और दोपहर होते-होते वहाँ पचास-साठ आदमी जमा हो गए। तब दोनों मित्र निकाले गए और उनकी देखभाल होने लगी। लोग आ-आकर उनकी सूरत देखते और मन फीका करके चले जाते। ऐसे मृतक बैलों का कौन खरीदार होता?
सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यंत कठोर, आया और दोनों मित्रों के कूल्हों में उँगली गोदकर मुंशी जी से बातें करने लगा। उसका चेहरा देखकर अंतर्ज्ञान से दोनों मित्रों के दिल काँप उठे। वह कौन है और उन्हें क्यों टटोल रहा है, इस विषय में उन्हें कोई संदेह न हुआ। दोनों ने एक-दूसरे को भीत नेत्रों से देखा और सिर झुका लिया।
शब्दार्थ-
ठठरियाँ– बैलों का शरीर शव समान हो गया था, हड्डियाँ निकल आयीं थी
मृतक – मारा हुआ
मुद्रा- सिक्का, पैसा
अंतर्ज्ञान– मन का ज्ञान, बोध
भीत नेत्र– डरी हुई आँखें
व्याख्या- इस अंश में हीरा और मोती की कठिन परिस्थितियों और उनके भविष्य को लेकर बढ़ती आशंका का चित्रण किया गया है। दोनों मित्र पूरे एक सप्ताह तक बंधे रहे, इस दौरान उन्हें चारा तो दूर, पानी भी बड़ी मुश्किल से दिया जाता था। उनकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि वे उठने की भी शक्ति खो बैठे थे। उनकी दुबली-पतली देह से हड्डियाँ झलकने लगी थीं, मानो उनकी जान निकालने का ही इंतजार हो।
एक दिन, बाड़े के सामने डुग्गी बजाई गई और धीरे-धीरे वहाँ पचास-साठ लोग जमा हो गए। दोपहर तक दोनों बैलों को बाड़े से बाहर निकाला गया और उनकी देखभाल शुरू हुई। लोग उन्हें देखने आते, उनकी दयनीय स्थिति पर सोचते और निराश होकर लौट जाते। कोई भी उनकी दुर्गति देखकर इन्हें खरीदने का इच्छुक नहीं था।
तभी वहाँ एक कठोर चेहरे वाला दढ़ियल व्यक्ति आया। उसकी लाल आँखें और रुपये-पैसे उसकी निर्दयता का परिचय दे रही थीं। वह मुंशी से बातें करते हुए दोनों बैलों के कूल्हों में उँगली गोदकर उनकी जाँच करने लगा। इस व्यक्ति का चेहरा देखकर हीरा और मोती के दिल अंदर से काँप उठे। उन्हें उसकी मन की बात और अपनी आने वाली कठिनाईयों का अंदाजा हो गया। उन्होंने एक-दूसरे को भयभीत नजरों से देखा, मानो अपने दुख को साझा कर रहे हों, और फिर निराशा में सिर झुका लिया।
यह दृश्य उनकी असहायता और उस निर्दयी दुनिया की ओर इशारा करता है, जहाँ जानवरों की भावनाओं और उनके दर्द को कोई समझने वाला नहीं।
पाठ- हीरा ने कहा-गया के घर से नाहक भागे। अब जान न बचेगी।
मोती ने अश्रद्धा के भाव से उत्तर दिया-कहते हैं, भगवान सबके ऊपर दया करते हैं। उन्हें हमारे ऊपर क्यों दया नहीं आती?
‘भगवान के लिए हमारा मरना-जीना दोनों बराबर है। चलो, अच्छा ही है, कुछ दिन उसके पास तो रहेंगे। एक बार भगवान ने उस लड़की के रूप में हमें बचाया था। क्या अब न बचाएँगे?’
‘यह आदमी छुरी चलाएगा। देख लेना।’
‘तो क्या चिंता है? माँस, खाल, सींग, हड्डी सब किसी-न-किसी काम आ जाएँगे।’
नीलाम हो जाने के बाद दोनों मित्र उस दढ़ियल के साथ चले। दोनों की बोटी-बोटी कॉंप रही धी। बेचारे पाँव तक न उठा सकते थे, पर भय के मारे गिरते-पड़ते भागे जाते थे; क्योंकि वह ज़रा भी चाल धीमी हो जाने पर ज़ोर से डंडा जमा देता था।
राह में गाय-बैलों का एक रेवड़ हरे-हरे हार में चरता नज़र आया। सभी जानवर प्रसन्न थे, चिकने, चपल। कोई उछलता था, कोई आनंद से बैठा पागुर करता था। कितना सुखी जीवन था इनका; पर कितने स्वार्थी हैं सब। किसी को चिंता नहीं कि उनके दो भाई बधिक के हाथ पड़े कैसे दुखी हैं।
शब्दार्थ –
नाहक- व्यर्थ, फालतू में
रेवड़ – पशुओं का झुंड
पागुर- पागुर- जुगाली (पशुओं द्वारा थोड़ा-थोड़ा चारा चबाना)
व्याख्या- हीरा और मोती की बातचीत उनके जीवन की कठोर सच्चाई और आने वाले संकटों की ओर इशारा करती है। हीरा पछतावे के स्वर में कहता है कि वे गया के घर से नाहक भागे थे और अब उनकी जान बचनी मुश्किल है। मोती ने इस पर भगवान के न्याय पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर भगवान सभी पर दया करते हैं, तो उन पर क्यों नहीं करते।
हीरा ने निराशा भरे लेकिन स्वीकारोक्ति के भाव से कहा कि भगवान के लिए उनका मरना या जीना समान है। फिर उसने अपने पुराने अनुभव का ज़िक्र करते हुए कहा कि एक बार भगवान ने उस लड़की के रूप में उनकी जान बचाई थी, तो शायद इस बार भी बचा लें। लेकिन मोती ने आशंका जताई कि यह दढ़ियल आदमी निश्चित रूप से उन पर छुरी चलाएगा। हीरा ने शांत भाव से उत्तर दिया कि अगर ऐसा होता भी है, तो भी उनकी हर चीज़—माँस, खाल, सींग, और हड्डी—किसी न किसी काम आ ही जाएगी।
नीलाम होने के बाद, दोनों बैल उस दढ़ियल के साथ चल पड़े। उनकी हालत इतनी खराब थी कि उनका शरीर काँप रहा था, और वे ठीक से चल भी नहीं पा रहे थे। लेकिन डर और डंडे के डरावने वारों के कारण वे गिरते-पड़ते तेज़ी से भागने की कोशिश कर रहे थे।
रास्ते में उन्हें एक गाय-बैलों का झुंड दिखा, जो हरे-भरे चारागाह में मस्ती से चर रहा था। सभी जानवर खुशहाल और स्वस्थ थे, कोई उछल रहा था, तो कोई आराम से बैठकर चारा चबा रहा था। यह दृश्य देख हीरा और मोती के मन में यह ख्याल आया कि इन जानवरों का जीवन कितना सुखी और निश्चिंत है, लेकिन साथ ही वे कितने स्वार्थी भी हैं। किसी को यह चिंता नहीं कि उनके जैसे दो भाई, जो कभी उसी तरह खुश थे, अब बधिक के हाथों पड़े दुखी और भयभीत हैं।
यह अंश जानवरों की पीड़ा, उनकी असहायता और मनुष्य की स्वार्थपूर्ण प्रवृत्ति का मार्मिक चित्रण करता है।
पाठ- सहसा दोनों को ऐसा मालूम हुआ कि यह परिचित राह है। हाँ, इसी रास्ते से गया उन्हें ले गया था। वही खेत, वही बाग, वही गाँव मिलने लगे। प्रतिक्षण उनकी चाल तेज़ होने लगी। सारी थकान, सारी दुर्बलता गायब हो गई। आह? यह लो! अपना ही हार आ गया। इसी कुएँ पर हम पुर चलाने आया करते थे, यही कुआँ है।
मोती ने कहा-हमारा घर नगीच आ गया।
हीरा बोला-भगवान की दया है।
‘मैं तो अब घर भागता हूँ।’
‘यह जाने देगा?’
‘इसे मैं मार गिराता हूँ।’
‘नहीं-नहीं, दौड़कर थान पर चलो। वहाँ से हम आगे न जाएँगे।’
दोनों उन्मत्त होकर बछड़ों की भाँति कुलेलें करते हुए घर की ओर दौंड़े। वह हमारा थान है। दोनों दौड़कर अपने थान पर आए और खड़े हो गए। दढ़ियल भी पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था।
शब्दार्थ –
परिचित राह- जाना पहचाना रास्ता
प्रतिक्षण– हर एक पल
उन्मत्त – मतवाला
कुलेलें- मजे में खेलना
थान – पशुओं के बाँधे जाने की जगह
व्याख्या- हीरा और मोती को अचानक एहसास हुआ कि वे जिस रास्ते से जा रहे हैं, वह उन्हें पहचाना हुआ लग रहा है। धीरे-धीरे उन्हें यकीन हुआ कि यह वही रास्ता है, जिससे होकर गया उन्हें ले गया था। उनके चारों ओर वही खेत, बाग, और गाँव नजर आने लगे, जिन्हें वे पहले देख चुके थे। इस पहचान ने उनमें एक नई ऊर्जा भर दी। उनकी थकान और दुर्बलता मानो पल भर में गायब हो गई।
जैसे ही उन्होंने अपने हार (खेत) को देखा, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हीरा ने कुएँ को देखकर पहचान लिया कि यही वह कुआँ है, जहाँ वे पानी खींचने आते थे। मोती ने खुश होकर कहा कि उनका घर अब पास ही है। हीरा ने इसे भगवान की दया माना।
मोती ने तुरंत कहा कि वह अब घर भागने वाला है। लेकिन हीरा ने उसे बताया कि दढ़ियल ऐसा करने नहीं देगा। मोती ने साहसपूर्वक कहा कि वह दढ़ियल को मार गिराएगा, लेकिन हीरा ने समझदारी दिखाते हुए सुझाव दिया कि वे सीधे अपने थान (स्थायी जगह) पर भागें, जहाँ से आगे वे नहीं जाएंगे।
दोनों बैल खुशी से बछड़ों की तरह उछलते-कूदते अपने घर की ओर दौड़ पड़े। उन्होंने अपने थान को पहचान लिया और वहाँ पहुँचकर खड़े हो गए। इस बीच दढ़ियल भी उनके पीछे भागते हुए आ रहा था, लेकिन दोनों मित्र अपने घर की ओर दौड़ने में इतने आनंदित थे कि किसी और बात की चिंता उन्हें नहीं थी।
पाठ- झूरी द्वार पर बैठा धूप खा रहा था। बैलों को देखते ही दौड़ा और उन्हें बारी-बारी से गले लगाने लगा। मित्रों की आँखों से आनंद के आँसू बहने लगे। एक झूरी का हाथ चाट रहा था।
दढ़ियल ने जाकर बैलों की रस्सियाँ पकड़ लीं।
झूरी ने कहा-मेरे बैल हैं।
‘तुम्हारे बैल कैसे? मैं मवेशीखाने से नीलाम लिए आता हूँ।’
‘मैं तो समझा हूँ चुराए लिए आते हो! चुपके से चले जाओ। मेरे बैल हैं। मैं बेचूँगा तो बिकेंगे। किसी को मेरे बैल नीलाम करने का क्या अख्तियार है?’
‘जाकर थाने में रपट कर दूँगा।’
‘मेरे बैल हैं। इसका सबूत यह है कि मेरे द्वार पर खड़े हैं।’
दढ़ियल झल्लाकर बैलों को ज़बरदस्ती पकड़ ले जाने के लिए बढ़ा। उसी वक्त मोती ने सींग चलाया। दढ़ियल पीछे हटा। मोती ने पीछा किया। दढ़ियल भागा। मोती पीछे दौड़ा। गाँव के बाहर निकल जाने पर वह रुका; पर खड़ा दढ़ियल का रास्ता देख रहा था, दढ़ियले दूर खड़ा धमकियाँ दे रहा था, गालियाँ निकाल रहा था, पत्थर फेंक रहा था। और मोती विजयी शूर की भाँति उसका रास्ता रोके खड़ा था। गाँव के लोग यह तमाशा देखते थे और हँसते थे।
जब दढ़ियल हारकर चला गया, तो मोती अकड़ता हुआ लौटा।
हीरा ने कहा-मैं डर रहा था कि कहीं तुम गुस्से में आकर मार न बैठो।
‘अगर वह मुझे पकड़ता, तो मैं बे-मारे न छोड़ता।’
‘अब न आएगा।’
‘आएगा तो दूर ही से खबर लूँगा। देखूँ, कैसे ले जाता है।’
‘जो गोली मरवा दे?’
‘मर जाऊँगा, पर उसके काम तो न आऊँगा।’
‘हमारी जान को कोई जान ही नहीं समझता।’
‘इसीलिए कि हम इतने सीधे हैं।’
ज़रा देर में नाँदों में खली, भूसा, चोकर और दाना भर दिया गया और दोनों मित्र खाने लगे। झूरी खड़ा दोनों को सहला रहा था और बीसों लड़के तमाशा देख रहे थे। सारे गाँव में उछाह-सा मालूम होता था।
उसी समय मालकिन ने आकर दोनों के माथे चूम लिए।
शब्दार्थ –
मवेशीखाना- पशुबंदी गृह
शूर- बहादुर
उछाह – उत्सव, आनंद
व्याख्या- झूरी अपने घर के द्वार पर धूप का आनंद ले रहा था, जब उसने अपने प्रिय बैलों, हीरा और मोती, को आते देखा। वह खुशी से दौड़कर उनके पास गया और उन्हें गले से लगा लिया। हीरा और मोती भी इतने आनंदित हुए कि उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। मोती खुशी के मारे झूरी के हाथ चाटने लगा।
लेकिन उनकी खुशी में खलल डालते हुए दढ़ियल वहाँ पहुँच गया और बैलों की रस्सियाँ पकड़ने लगा। उसने दावा किया कि ये बैल अब उसके हैं क्योंकि वह उन्हें मवेशीखाने (जहाँ पशुओं को बंद रखते हैं) से नीलामी में खरीदकर लाया है। झूरी ने तर्क दिया कि ये बैल उसके हैं और वह किसी को अपने बैल नीलाम करने की इजाजत नहीं देता। उसने दढ़ियल को झिड़कते हुए कहा कि बैल उसके द्वार पर खड़े हैं, जो इस बात का सबूत है कि वे उसके हैं।
दढ़ियल ने बैलों को जबरदस्ती ले जाने की कोशिश की, लेकिन तभी मोती ने अपनी ताकत दिखाते हुए सींग से उसे पीछे धकेल दिया। दढ़ियल डरकर भागने लगा, और मोती उसे गाँव के बाहर तक दौड़ाता रहा। दढ़ियल ने गुस्से में पत्थर फेंके और गालियाँ दीं, लेकिन मोती बिना डरे विजयी योद्धा की तरह खड़ा रहा, उसका रास्ता रोके। गाँव के लोग यह तमाशा देखकर हँस रहे थे।
आखिरकार, हार मानकर दढ़ियल वापस लौट गया। मोती अकड़ते हुए विजेता की तरह गाँव में लौटा। हीरा ने मोती से कहा कि उसे डर था कि कहीं गुस्से में आकर वह दढ़ियल को मार न डाले। मोती ने गर्व से कहा कि अगर दढ़ियल उसे पकड़ता, तो वह उसे यूँ ही छोड़ता नहीं।
झूरी ने अपने बैलों के लिए नाँदों में खली, भूसा, चोकर, और दाना भर दिया। दोनों मित्र खाने में जुट गए, जबकि झूरी उन्हें सहला रहा था। इस दृश्य को देखने के लिए गाँव के बच्चे इकट्ठा हो गए, और पूरा गाँव इस खुशी में सराबोर हो गया।
उसी समय झूरी की पत्नी भी आई और दोनों बैलों के माथे को प्यार से चूम लिया। यह क्षण स्नेह, अपनत्व और खुशी का प्रतीक था, जो इस पूरे घटनाक्रम को एक सुखद अंत देता है।
Conclusion
दिए गए पोस्ट में हमने ‘दो बैलों की कथा’ नामक कहानी का सारांश, पाठ व्याख्या और शब्दार्थ को जाना। ये पाठ कक्षा 9 हिंदी अ के पाठ्यक्रम में क्षितिज पुस्तक से लिया गया है। मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी इस कहानी से हमें पशुओं के प्रति मानवीय दृष्टिकोण का अद्भुत चित्रण देखने को मिलता है। इस पोस्ट की सहायता से विद्यार्थी पाठ को अच्छे से समझ सकते हैं और इम्तेहान में प्रश्नों के हल अच्छे से लिख सकने में सहायता प्रदान होगी।
I just had been reading the explanation of this lesson,I liked it ,it was easy to read n understand
Thank you
Thank you, you liked our lessons
Very bad chapter by munsihi Prem Chand . One reason for bad is ,my tution teacher is not so good at explaining.thankyou