उत्साह और अट नहीं रही है पाठ के पाठ सार, पाठ-व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर
Utsah Aur At Nahi Rahi Hai Summary of CBSE Class 10 Hindi (Course A) Kshitij Bhag-2 Chapter 5 and detailed explanation of the lesson along with meanings of difficult words. Here is the complete explanation of the lesson, along with all the exercises, Questions and Answers given at the back of the lesson.
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 10 हिंदी कोर्स ए क्षितिज भाग 2 के पाठ 5 उत्साह और अट नहीं रही है के पाठ प्रवेश , पाठ सार , पाठ व्याख्या , कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 10 उत्साह और अट नहीं रही है पाठ के बारे में जानते हैं।
- उत्साह पाठ सार
- उत्साह पाठ व्याख्या
- उत्साह प्रश्न – अभ्यास ( Question and Answers )
- See Video Explanation of उत्साह और अट नहीं रही है
- अट नहीं रही है पाठ प्रवेश
- अट नहीं रही है पाठ सार
- अट नहीं रही है पाठ व्याख्या
- अट नहीं रही है प्रश्न – अभ्यास (Question and Answers)
उत्साह
कवि परिचय –
कवि – सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
‘ उत्साह ’ कविता ‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ’ जी द्वारा रचित कविता है , जो कि एक आह्वान ( जिसमें विधिक रूप से किसी को आज्ञा देकर बुलाया जाता हो ) गीत है। इसमें कवि ने बादलों का आह्वान किया है। अर्थात बादलों को पुकारा है। कवि ने बादलों को पुनर्जागरण व क्रांति का प्रतीक बनाया है। किसी भी परिवर्तन के लिए पुनर्जागरण की आवश्यकता होती है। इसी कारण गर्मी से परेशान वातावरण में बदलाव के लिए बादल परिवर्तन की क्रांति बनकर गरजते – बरसते हैं तो मौसम सुहावना होता है और गर्मी से व्याकुल प्राणियों को राहत मिलती है। इस तरह बादल क्रांति द्वारा परिवर्तन लाकर पुनर्जागरण का प्रतीक बनते हैं , इसीलिए कवि बादलों का आह्वान कर रहा है। जिससे नए – नए विचारों से धरती पर नया सृजन हो। लोगों के भीतर एक नया जोश , नया उत्साह भरे। लोगों की सोई चेतना जागृत हो।
उत्साह पाठ सार (Introduction)
” उत्साह ” एक आह्वान गीत है अर्थात एक ऐसा गीत है जिसमें अलग – अलग रूप से बादलों को आज्ञा देकर बुलाया जा रहा है। यह गीत बादल को संबोधित है अर्थात इस गीत में बादलों का बोध या ज्ञान कराया गया है। बादल ‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ’ जी का प्रिय विषय है। कहने का तात्पर्य यह है कि ‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ’ जी ने अपनी बहुत सी कविताओं में बादलों का वर्णन किया है। प्रस्तुत कविता में बादल एक तरफ पीड़ित – प्यासे लोगों की इच्छायों को पूरा करने वाला है , तो दूसरी तरफ वही बादल नयी कल्पना और नए अंकुर के लिए विध्वंस , विप्लव और क्रांति चेतना को संभव करने वाला भी है। कवि जीवन को विस्तृत और संपूर्ण दृष्टि से देखता है। कविता में सुंदर कल्पना और क्रांति – चेतना दोनों हैं। सामाजिक क्रांति या बदलाव में साहित्य की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है , निराला इसे ‘ नवजीवन ’ और ‘ नूतन कविता ’ के संदर्भों में देखते हैं।
प्रस्तुत कविता आजादी से पहले लिखी गई है। गुलाम भारत के लोग जब निराश और हताश हो चुके थे। तब उन लोगों में उत्साह जगाने के लिए कवि एक ऐसे कवि को आमंत्रित कर रहे हैं जो अपनी कविता से लोगों को जागृत कर सकें। उनमें नया उत्साह भर सके और उनका खोया हुआ आत्मविश्वास दुबारा लौटा सके।
‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ’ जी ने बादलों पर कई कविताओं की रचना की हैं। प्रस्तुत कविता में ‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ’ जी ने बादलों को दो रूपों में दर्शाया हैं। कवि कहते हैं कि एक तरफ जहाँ बादल बरस कर धरती के प्यासे लोगों की प्यास बुझाते है। धरती को शीतलता प्रदान करते हैं। और जल से ही धरती में नवजीवन को पनपने , फलने – फूलने का मौका मिलता हैं। प्राणी मात्र का जीवन , नये उत्साह से भर जाता हैं। वही दूसरी ओर बादलों को कवि , एक ऐसे कवि के रूप में देखते हैं जो अपनी नई – नई कल्पनाओं से , अपने नए – नए विचारों से धरती पर नया सृजन करेगा। लोगों के भीतर एक नया जोश , नया उत्साह भरेगा। लोगों की सोई चेतना को जागृत करेगा।
उत्साह पाठ व्याख्या (Lesson Explanation)
काव्यांश 1
बादल , गरजो !
घेर घेर घोर गगन , धाराधर ओ !
ललित ललित , काले घुंघराले ,
बाल कल्पना के – से पाले ,
विद्युत छबि उर में , कवि नवजीवन वाले !
वज्र छिपा , नूतन कविता
फिर भर दो –
बादल गरजो !
शब्दार्थ
गरजो – जोरदार गर्जना ( जोरदार आवाज करना )
घेर घेर – पूरी तरह से घेर लेना
घोर – भयङ्कर
गगन – आकाश
धाराधर – बादल
ललित ललित – सुंदर – सुंदर
घुंघराले – गोल – गोल छल्ले का सा आकार
बाल कल्पना – छोटे बच्चों की कल्पनाएँ ( इच्छाएँ )
के – से पाले – की तरह बदलना
विद्युत – बिजली
छबि – चित्र , चलचित्र , प्रतिच्छाया , तसवीर
उर – हृदय , मन , चित्त
नवजीवन – नया जीवन
वज्र – कठोर
नूतन – नया
नोट – उपरोक्त काव्यांश में कवि “ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ” ने उस समय का वर्णन अत्याधिक खूबसूरती के साथ किया हैं। जब बारिश होने से पहले पूरा आकाश गहरे काले बादलों से घिर जाता हैं और बार – बार आकाशीय बिजली चमकने लगती है। कवि बादलों से जोर – जोर से गरजने का निवेदन करते हैं। यहाँ पर कवि ने बादलों के रूप सौंदर्य का वर्णन भी अद्धभुत तरीके से किया है और उनकी तुलना किसी छोटे बच्चे की कल्पना से की हैं। कवि कहते हैं कि बादल धरती के सभी प्राणियों को नया जीवन प्रदान करते हैं और यह हमारे अंदर के सोये हुए साहस को भी जगाते हैं। इस काव्यांश में कवि ने बादलों को उस कवि की भाँति बताया है जो , एक नई कविता का निर्माण करने वाला है।
व्याख्या – कवि बादलों से जोर – जोर से गरजने का निवेदन करते हुए बादलों से कहते हैं कि हे बादल ! तुम जोरदार गर्जना अर्थात जोरदार आवाज करो और आकाश को चारों तरफ से , पूरी तरह से घेर लो यानि इस पूरे आकाश में भयानक रूप से छा जाओ और फिर जोरदार तरीके से बरसो क्योंकि यह समय शान्त होकर बरसने का नहीं हैं। कवि बादलों के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सुंदर – सुंदर , काले घुंघराले अर्थात गोल – गोल छल्ले के आकार के समान बादलों , तुम किसी छोटे बच्चे की कल्पना की तरह हो। कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे छोटे बच्चों की कल्पनाएँ ( इच्छाएँ ) पल – पल बदलती रहती हैं तथा हर पल उनके मन में नई – नई बातें या कल्पनाएँ जन्म लेती हैं। ठीक उसी प्रकार तुम भी अर्थात बादल भी आकाश में हर पल अपना रूप यानि आकार बदल रहे हो। कवि आगे बादलों से कहते हैं कि तुम अपने हृदय में बिजली के समान ऊर्जा वाले विचारों को जन्म दो और फिर उनसे एक नई कविता का सृजन करो। कवि ने बादलों की तुलना कवि से की है क्योंकि जिस प्रकार बादल धरती के सभी प्राणियों को नया जीवन प्रदान करते हैं , उसी प्रकार कवि भी हमारे अंदर के सोये हुए साहस को जगाते हैं। कवि बादलों से निवेदन करते हुए कहते हैं कि बादलों तुम अपनी कविता से निराश , हताश लोगों के मन में एक नई आशा का संचार कर दो। बादल जोरदार आवाज के साथ गरजो ताकि लोगों में फिर से नया उत्साह भर जाए।
भावार्थ – इस काव्यांश में कवि बादलों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि तुम जोरदार गर्जना करो और अपनी गर्जना से सोये हुए लोगों को जागृत करो , उनके अंदर एक नया उत्साह , एक नया जोश भर दो। कवि बादलों को एक कवि के रूप में देखते हैं जो अपनी कविता से धरती को नवजीवन देते हैं क्योंकि बादलों के बरसने के साथ ही धरती पर नया जीवन शुरु होता हैं। पानी मिलने से बीज अंकुरित होते हैं और नये – नये पौधें उगने शुरू हो जाते हैं। धरती हरी – भरी होनी शुरू हो जाती हैं। लोगों की सोई चेतना भी जागृत होती है।
काव्यांश – 2
विकल विकल , उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन ,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन !
तप्त धरा , जल से फिर
शीतल कर दो
बादल , गरजो !
शब्दार्थ
विकल – व्याकुल , विह्वल , बेचैन , अधीर
उन्मन – अनमना , उदास , अनमनापन
विश्व – संसार
निदाघ – गरमी , ताप , वह मौसम या समय जब कड़ी धूप होती है
सकल – सब
जन – लोग
अज्ञात – जो ज्ञात न हो , जिसके बारे में पता न हो
अनंत – जिसका कोई अन्त न हो
घन – मेघ , बादल
तप्त धरा – तपती धरती , गर्म धरती
शीतल – ठंडा , शीत उत्पन्न करने वाला , सर्द , जो ठंडक उत्पन्न करता हो
नोट – उपरोक्त काव्यांश में कवि “ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी ” ने तपती गर्मी से बेहाल लोगों के मन की स्थिति का वर्णन किया है।
व्याख्या – अत्यधिक गर्मी से परेशान लोगों के मन की स्थिति का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि संसार के सभी लोग अत्यधिक गर्मी के कारण बेहाल है , व्याकुल है और अत्यधिक गर्मी के कारण अब उनका मन कहीं नहीं लग रहा है। अज्ञात दिशा से आये हुए (यहां पर बादलों को अज्ञात दिशा से आया हुआ इसलिए कहा गया हैं क्योंकि बादलों के आने की कोई निश्चित दिशा नहीं होती हैं। वो किसी भी दिशा से आ सकते हैं)। और पूरे आकाश पर छाये हुए घने काले बादलों तुम घनघोर वर्षा कर , तपती धरती को अपने जल से शीतल कर दो। बादलो , तुम जोरदार आवाज के साथ गरजो और लोगों के मन में नया उत्साह भर दो।
भावार्थ – अत्यधिक गर्मी से परेशान लोग जब धरती पर वर्षा हो जाने के बाद भीषण गर्मी से राहत पाते हैं , तो उनका मन फिर से नये उत्साह व उमंग से भर जाता है। इसी कारण कवि बादलों से निवेदन करते हैं कि वो जोरदार बरसात कर धरती को ठंडक दें और लोगों में नया उत्साह भर दे।
उत्साह प्रश्न – अभ्यास (Question Answers)
प्रश्न 1 – कवि बादल से फुहार , रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘ गरजने ‘ के लिए कहता है , क्यों ?
उत्तर – ‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ‘ जी ने बादल से फुहार , रिमझिम या बरसने के लिए नहीं कहा बल्कि ‘ गरजने ’ के लिए कहा है , क्योंकि कवि बादलों को क्रांति का सूत्रधार मानता है। ‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ‘ जी एक क्रांतिकारी कवि माने जाते हैं। वो अपने विचारों व अपनी कविता के माध्यम से समाज में बदलाव लाना चाहते थे। लोगों की चेतना को जागृत करना चाहते थे। “ गरजना ” शब्द क्रांति , बदलाव और विद्रोह का प्रतीक है। कवि ने बादल के गरजने के माध्यम से कविता में नूतन विद्रोह का आह्वान किया है।
प्रश्न 2 – कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है ?
उत्तर – बादल भयंकर गर्जना के साथ जब बरसते हैं , तो धरती के सभी प्राणियों में एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता है। लोगों का मन एक बार फिर से नए जोश व उत्साह से भर जाता हैं। कवि भी बादलों के माध्यम से लोगों में उत्साह का संचार करना चाहते हैं और समाज में एक नई क्रांति लाने के लिए लोगों को प्रेरित करना चाहते हैं। एक ओर बादलों के गर्जन में उत्साह समाया है , तो दूसरी ओर कवि लोगों में उत्साह का संचार करके क्रांति के लिए तैयार करना चाहते हैं। इसलिए इस कविता का शीर्षक “ उत्साह ” रखा गया है।
प्रश्न 3 – कविता में बादल किन – किन अर्थों की ओर संकेत करता है ?
उत्तर – इस कविता में बादल निम्न अर्थों की ओर संकेत करते है –
- बादलों में जल बरसाने की असीम शक्ति होती है , जिस कारण धरती के प्राणियों में नवजीवन का संचार होता है।
- बादल पीड़ित – प्यासे जन की आकाँक्षा को पूरा करने वाला है।
- बादल तपती गर्मी से परेशान लोगों की प्यास बुझाकर उनके मन को एक नए उत्साह व उमंग से भर देता है।
- बादल जोरदार ढंग से गर्जना कर लोगों के अंदर की क्रांतिकारी चेतना को जागृत करने का काम करते हैं।
- बादलों के अंदर नवसृजन करने की असीम शक्ति होती है।
- बादल कवि में उत्साह और संघर्ष भर कविता में नया जीवन लाने में सक्रिय है।
प्रश्न 4. शब्दों का ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो , नाद – सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन – से शब्द हैं जिनमें नाद – सौंदर्य मौजूद हैं , छाँटकर लिखें।
उत्तर – ‘ उत्साह ’ कविता में नाद सौंदर्य वाले शब्द निम्नलिखित हैं –
- बादल गरजो !
- घेर घेर घोर गगन , धाराधर ओ !
- ललित ललित , काले घुंघराले , बाल कल्पना के – से पाले।
- विद्युत छबि उर में।
- विकल विकल , उन्मन थे उन्मन।
See Video Explanation of उत्साह और अट नहीं रही है
अट नहीं रही है
अट नहीं रही है पाठ प्रवेश
महाकवि ‘ सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ‘ जी की कविता ‘ अट नहीं रही है ‘ फागुन की उन्माद को प्रकट करती है। कवि फागुन की हर तरफ फैली सुंदरता को अनेक तरीकों से देखा रहे हैं। कवि अपनी कविता में कहते हैं कि जब मन प्रसन्न हो तो हर तरफ फागुन का ही सौंदर्य और उल्लास दिखाई पड़ता है। ‘ सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ‘ जी के द्वारा सुंदर शब्दों के चुनाव एवं लय ने कविता को भी फागुन की ही तरह सुन्दर एवं ललित बना दिया है।
अट नहीं रही है पाठ सार (Introduction)
‘अट नहीं रही है’ कविता में फागुन महीने के सौंदर्य का वर्णन है। इस महीने में प्राकृतिक सौंदर्य कहीं भी नहीं समा रहा है और धरती पर बाहर बिखर गया है। इस महीने सुगंधित हवाएँ वातावरण को महका रही हैं। इस समय प्रकृति अपने चरम सौंदर्य पर होती है और मस्ती से इठलाती है। पेड़ों पर आए लाल – हरे पत्ते और फूलों से यह सौंदर्य और भी बढ़ गया है। इससे मन में उमंगें उड़ान भरने लगी हैं। फागुन का सौंदर्य अन्य ऋतुओं और महीनों से बढ़कर होता है। इस समय चारों ओर हरियाली छा जाती है। खेतों में कुछ फसलें पकने को तैयार होती हैं। सरसों के पीले फूलों की चादर बिछ जाती है। लताएँ और डालियाँ रंग – बिरंगे फूलों से सज जाती हैं। प्राणियों का मन उल्लासमय हुआ जाता है। ऐसा लगता है कि इस महीने में प्राकृतिक सौंदर्य छलक उठा है। कवि के अनुसार फागुन मास में प्रकृति इतनी सुन्दर नजर आती है कि उस पर से नजर हटाने को मन ही नहीं करता। फागुन के महीने में प्रकृति में होने वाले बदलावों से सभी प्राणी बेहद ख़ुश हो जाते हैं। कविता में कवि स्वयं भी बहुत ही खुश लग रहे हैं। फागुन माह में ऐसा लगता हैं मानो प्रकृति एक बार फिर दुल्हन की तरह सज धज कर तैयार हो गयी हैं क्योंकि वसंत ऋतु के आगमन से सभी पेड़ – पौधे नई – नई कोपलों ( नई कोमल पत्तियों ) व रंग – बिरंगे फूलों से लद जाते हैं। और जब भी हवा चलती हैं तो सारा वातावरण उन फूलों की मधुर खुशबू से महक उठता हैं। पेड़ों पर नए पत्ते निकल आए हैं , जो कई रंगों के हैं। कहीं – कहीं पर कुछ पेड़ों में लगता है कि धीमी – धीमी खुशबू देने वाले फूलों की माला लटकी हुई है। हर तरफ सुंदरता बिखरी पड़ी है और वह इतनी अधिक है कि धरा पर समा नहीं रही है। ‘ उड़ने को नभ में तुम पर – पर कर देते हो ’ से ज्ञात होता है कि फागुन में चारों ओर इस तरह सौंदर्य फैल जाता है कि वातावरण मनोरम बन जाता है। रंग – बिरंगे फूलों के खुशबू से हवा में मादकता घुल जाती है। ऐसे में लोगों का मन कल्पनाओं में खोकर उड़ान भरने लगता है।फागुन महीने में तेज हवाएँ चलती हैं जिनसे पत्तियों की सरसराहट के बीच साँय – साँय की आवाज़ आती है। इसे सुनकर ऐसा लगता है , मानो फागुन साँस ले रहा है। कवि इन हवाओं में फागुन के साँस लेने की कल्पना कर रहा है। इस तरह कवि ने फागुन का मानवीकरण किया है।
अट नहीं रही है पाठ व्याख्या (Lesson Explanation)
काव्यांश 1
अट नहीं रही है
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
शब्दार्थ
अट – बाधा , रुकावट
आभा – चमक
फागुन – शिशिर ऋतु का दूसरा महीना , माघ के बाद का मास
तन – शरीर
सट – समाना
नोट – होली के वक्त जो मौसम होता है, उसे फागुन कहते हैं। उस समय प्रकृति अपने चरम सौंदर्य पर होती है और मस्ती से इठलाती है। फागुन के समय पेड़ हरियाली से भर जाते हैं और उन पर रंग-बिरंगे सुगन्धित फूल उग जाते हैं। इसी कारण जब हवा चलती है, तो फूलों की नशीली ख़ुशबू उसमें घुल जाती है। इस हवा में सारे लोगों पर भी मस्ती छा जाती है, वो काबू में नहीं कर पाते और मस्ती में झूमने लगते हैं।
व्याख्या – प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ‘ जी ने फागुन माह में आने वाली वसंत ऋतु का वर्णन बहुत ही खूबसूरत ढंग से किया है। कवि कहते हैं कि फागुन की आभा अर्थात सुंदरता इतनी अधिक है कि उस पर से नजर हटाने को मन ही नहीं करता। अर्थात कोई भी अपने आप को उसका आनंद लेने से रोक नहीं पा रहा है। फागुन की सुंदरता प्रकृति में समा नहीं पा रही है यानि वसंत ऋतु में प्रकृति बहुत सुंदर लग रही हैं।
भावार्थ – कवि के अनुसार फागुन मास में प्रकृति इतनी सुन्दर नजर आती है कि उस पर से नजर हटाने को मन ही नहीं करता। फागुन के महीने में प्रकृति में होने वाले बदलावों से सभी प्राणी बेहद ख़ुश हो जाते हैं। कविता में कवि स्वयं भी बहुत ही खुश लग रहे हैं।
काव्यांश 2
कहीं साँस लेते हो ,
घर – घर भर देते हो ,
उड़ने को नभ में तुम
पर – पर कर देते हो ,
आँख हटाता हूँ तो
हट नहीं रही है।
शब्दार्थ
नभ – आकाश , आसमान
पर – पंख
नोट – फागुन माह में ऐसा लगता हैं मानो प्रकृति एक बार फिर दुल्हन की तरह सज धज कर तैयार हो गयी हैं क्योंकि वसंत ऋतु के आगमन से सभी पेड़ – पौधे नई – नई कोपलों ( नई कोमल पत्तियों ) व रंग – बिरंगे फूलों से लद जाते हैं। और जब भी हवा चलती हैं तो सारा वातावरण उन फूलों की मधुर खुशबू से महक उठता हैं।
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि ‘ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ‘ जी ने उस समय का वर्णन किया हैं जब वसंत ऋतु में हर ओर हरियाली और फूलों की खुशबु फैल जाती है। उस समय कवि को ऐसा लगता हैं मानो जैसे फागुन ख़ुद सांस ले रहा हो और सुगन्धित वातावरण से हर घर को महका रहा हो। कवि आगे कहते हैं कि कभी – कभी मुझे ऐसा एहसास होता है जैसे तुम ( फागुन माह ) आसमान में उड़ने के लिए अपने पंख फड़फड़ा रहे हो। कवि वसंत ऋतु की सुंदरता पर मोहित हैं। इसीलिए वो कहते हैं कि मैं अपनी आँखें तुमसे हटाना तो चाहता हूँ लेकिन मेरी आँखें तुम पर से हट ही नहीं रही हैं।
भावार्थ – इस काव्यांश में कवि कहते हैं कि घर – घर में उगे हुए पेड़ों पर रंग – बिरंगे फूल खिले हुए हैं। उन फूलों की ख़ुशबू हवा में यूँ बह रही है, मानो फागुन ख़ुद सांस ले रहा हो। इस तरह फागुन का महीना पूरे वातावरण को आनंद से भर देता है। इसी आनंद में झूमते हुए पक्षी आकाश में अपने पंख फैला कर उड़ने लगते हैं। यह मनोरम दृश्य और मस्ती से भरी हवाएं हमारे अंदर भी हलचल पैदा कर देती हैं। यह दृश्य हमें इतना अच्छा लगता है कि हम अपनी आँख इससे हटा ही नहीं पाते। यहाँ पर फागुन माह का मानवीकरण किया गया हैं।
काव्यांश 3
पत्तों से लदी डाल
कहीं हरी , कहीं लाल ,
कहीं पड़ी है उर में
मंद गंध पुष्प माल ,
पाट – पाट शोभा श्री
पट नहीं रही है।
शब्दार्थ
लदी – भरी
डाल – पेड़ की शाखा
उर – हृदय
मंद – धीमे , धीरे
गंध – खुशबू , सुगंध
पुष्प माल – फूलों की माला
पाट – पाट – जगह – जगह
शोभा श्री – सौन्दर्य से भरपूर
पट – समाना
नोट – पेड़ों पर नए पत्ते निकल आए हैं , जो कई रंगों के हैं। कहीं – कहीं पर कुछ पेड़ों में लगता है कि धीमी – धीमी खुशबू देने वाले फूलों की माला लटकी हुई है। हर तरफ सुंदरता बिखरी पड़ी है और वह इतनी अधिक है कि धरा पर समा नहीं रही है।
व्याख्या – वसंत ऋतु में चारों ओर के मनमोहक वातावरण का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि सभी पेड़ – पौधों की शाखाओं में नये – नये – कोमल पत्ते निकल आते हैं , जिसके कारण चारों तरफ के पेड़ हरे एवं लाल दिखाई दे रहे हैं क्योंकि पेड़ों पर हरे पत्तों के बीच लाल फूल उग आते हैं। कवि उस समय की कल्पना करते हुए कहते हैं कि ऐसा लग रहा हैं मानो जैसे प्रकृति ने अपने हृदय पर रंग – बिरंगी धीमी खुशबू देने वाली कोई सुंदर सी माला पहन रखी हो।
कवि के अनुसार वसंत ऋतु में प्रकृति के कण – कण में अर्थात जगह – जगह इतनी सुंदरता बिखरी पड़ी है कि अब वह इस पृथ्वी में समा नहीं पा रही है ।
भावार्थ – कवि के अनुसार फागुन मास में प्रकृति की सुन्दरता अत्यधिक बढ़ जाती है। चारों तरफ पेड़ों पर हरे पत्ते एवं रंग – बिरंगे फूल दिखाई दे रहे हैं और ऐसा लग रहा हैं, मानो पेड़ों ने कोई सुंदर, रंगबिरंगी माला पहन रखी हो। इस सुगन्धित पुष्प माला की ख़ुशबू कवि को बहुत ही मनमोहक लग रही है। कवि के अनुसार, फागुन के महीने में यहाँ प्रकृति में होने वाले बदलावों से सभी प्राणी बेहद ख़ुश हो जाते हैं। कविता में कवि स्वयं भी बहुत ही खुश लग रहे हैं। यहाँ भी मानवीकरण अलंकार का प्रयोग किया गया हैं।
अट नहीं रही है प्रश्न – अभ्यास (Question and Answers)
प्रश्न 1 – छायावाद की एक खास विशेषता है , अंतर मन के भावों का बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन – किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है ? लिखिए।
उत्तर – कविता की निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है –
आभा फागुन की तन
सट नहीं रही है।
और
कहीं सांस लेते हो
घर घर भर देते हो
उड़ने को नभ में तुम
पर पर कर देते हो
यह पंक्तियाँ फागुन और मानव मन दोनों के लिए प्रयुक्त हुई हैं।
प्रश्न 2 – कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है ?
उत्तर – कवि की आँख फागुन की सुंदरता से हट नहीं रही है , क्योंकि फागुन के महीने में प्राकृतिक सौंदर्य अपने चरम पर होता है। फागुन बहुत मतवाला , मस्त और शोभाशाली है। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली है। पेड़ों की डालियाँ पत्तों से भरी हुई हैं , पेड़ों पर फूल आ जाने से पेड़ कहीं हरे और कहीं लाल दिखाई दे रहे हैं , उनको देख कर ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति ने अपने हृदय पर फूलों की माला पहन राखी हों। फूलों की खुशबू भी पूरे वातावरण में फैल गई है। इसलिए कवि की आँखें फागुन की सुन्दरता से मंत्रमुग्ध होकर उससे हटाने से भी नहीं हटती।
प्रश्न 3 – प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है ?
उत्तर – प्रस्तुत कविता ‘अट नहीं रही है’ में कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी ने फागुन के सब ओर फैले सौन्दर्य और मन को मोहने वीले रूप के प्रभाव को दर्शाया है। फागुन के सौंदर्य का वर्णन अत्यधिक अद्धभुत तरीके से किया है। वसंत को घर – घर में फैला हुआ दिखाया है। यहाँ ‘ घर – घर भर देते हो ‘ में फूलों की शोभा की और संकेत किया गया है और मन में उठी खुशी को भी दर्शाया गया है। ‘ उड़ने को पर – पर करना ‘ भी ऐसा सांकेतिक प्रयोग है। यह पक्षियों की उड़ान पर भी लागू होता है और मन की उमंग पर भी। सौंदर्य से आँख न हटा पाना भी उसके विस्तार की झलक देता है। कवि ने पेड़ों पर आए नए पत्ते एवं फूलों का अद्धभुत सुंदरता से वर्णन किया है , फूलों से फैलने वाली मनमोहक सुगंध का , वृक्षों पर आए नए फलों का , आसमान में उड़ते हुए पक्षियों का , खेत – खलियान में आई हुई फसल का , चारों तरफ से फैली हुई हरियाली से लोगों में आए हुए उल्लास के माध्यम से प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किया है।
प्रश्न 4 – फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है ?
उत्तर – फागुन मास के समय प्रकृति हर चीज़ का पुनःनिर्माण करती है। पेड़ – पौधें नए पत्तों , फल और फूलों से लद जाते हैं , इस कारण पूरा वातावरण फूलों की सुगंध से सुगंधित एवं उनके रंग से रंगीन हो जाता है। मौसम सुहावना होता है। आकाश साफ – स्वच्छ होता है। इस मौसम में पक्षी भी आसमान में स्वच्छंद विचरण करते हैं और प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेते हैं। बाग – बगीचों और पक्षियों में उल्लास भर जाता हैं। लोगों में खुशी का माहौल होता है। इन सभी मायनों में फागुन का सौंदर्य अन्य मास की ऋतुओं से भिन्न होता है।
प्रश्न 5 – इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य शिल्प की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर – महाकवि ‘ सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ‘ जी छायावाद के प्रमुख कवि माने जाते हैं। छायावाद की प्रमुख विशेषताएँ हैं – प्रकृति चित्रण और प्राकृतिक उपादानों का मानवीकरण। अर्थात यह छायावाद के अनुरूप प्रकृति का चित्रण करते हैं ,और प्रकृति में व्याप्त निर्जीव वस्तुओं को एक सजीव वस्तु के रूप में दिखाते हैं। ‘ उत्साह ‘ और ‘ अट नहीं रही है ‘ दोनों ही कविताओं में प्राकृतिक उपादानों का चित्रण और मानवीकरण हुआ है। इनकी कविता ” उत्साह ” इनके समाज के प्रति गहन चिंतन एवं बादलों के मानवीकरण को प्रदर्शित करती है , वहीं दूसरी कविता ” अट नहीं रही है ” में फागुन मास के समय में आए परिवर्तनों को प्रदर्शित करती है , एवं फागुन को एक उत्सुक मनुष्य के रूप में प्रदर्शित करती है , जो इधर – उधर विचरण करना चाहता है। इनकी कविताओं में छायावाद की अन्य विशेषताएं जैसे गेयता , प्रवाहमयता और अलंकार योजना इत्यादि भी है। निराला जी की कविताओं में खड़ी बोली , जनमानस में व्याप्त शब्दों का सुंदर प्रयोग किया गया है। इनकी कविता समाज में नई चेतना जगाने का प्रयास करती है। भाषा सरल, सहज, सुबोध और प्रवाहमयी है।
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