मेघ आए पाठ सार
CBSE Class 9 Hindi Chapter 12 “Megh Aaye”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Kshitij Bhag 1 Book
मेघ आए सार – Here is the CBSE Class 9 Hindi Kshitij Bhag 1 Chapter 12 Megh AayeSummary with detailed explanation of the lesson ‘Megh Aaye’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 9 हिंदी कोर्स ए क्षितिज भाग 1 के पाठ 12 मेघ आए पाठ सार , पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 9 मेघ आए पाठ के बारे में जानते हैं।
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Megh Aaye (मेघ आए)
मेघ आए – पाठ परिचय Megh Aaye Introduction
‘मेघ आए’ कविता सुप्रसिद्ध कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने मेघों के आगमन को एक विशेष अतिथि के स्वागत के रूप में प्रस्तुत किया है। ग्रामीण परिवेश में जब कोई विशेष अतिथि, जैसे दामाद, आता है तो गाँव में उल्लास और उमंग का वातावरण बन जाता है। उसी प्रकार, कवि ने मेघों के आगमन को प्रकृति के उल्लास से जोड़ा है। इस कविता में मानवीकरण एवं रूपक के माध्यम से वर्षा ऋतु के आगमन का सुंदर चित्रण किया गया है।
मेघ आए पाठ साराँश Megh Aaye Summary
कवि ने वर्षा ऋतु के आगमन को मानवीय भावनाओं से जोड़कर एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत किया है। वर्षा को ऐसे दिखाया गया है जैसे कोई बहुत प्रिय अतिथि (जिसे दामाद के रूप में यहाँ बताया गया है), लंबे समय बाद गाँव में आया हो। जब बादल सज-धजकर आते हैं, तो ठंडी हवा नाचती-गाती चलती है, जैसे किसी खास मेहमान की खबर पूरे गाँव में फैला रही हो। लोग खुशी से अपने घरों की खिड़कियाँ और दरवाज़े खोलकर इस सुंदर नज़ारे का आनंद लेते हैं, जैसे किसी प्रियजन के स्वागत में उत्साहित हों।
जब आँधी चलती है, तो धूल इस तरह उड़ती है मानो गाँव की महिलाएँ घाघरा उठाकर दौड़ रही हों। पेड़ भी झुककर बादलों को देखने की कोशिश कर रहे हैं, जैसे कोई उत्सुक व्यक्ति दूर से आने वाले अतिथि को देखने के लिए गर्दन उचकाए। नदी रूपी महिलाएँ भी ठिठककर बादलों को तिरछी नज़रों से देख रही है, जैसे उसने संकोच में अपना घूँघट हल्का-सा सरका लिया हो। पूरा वातावरण उल्लास और उमंग से भर जाता है, जैसे सभी प्रकृति के तत्व बादलों का स्वागत करने के लिए उत्सुक हों।
बूढ़ा पीपल झुककर बादलों का स्वागत करता है, जैसे घर के बुजुर्ग दामाद का स्वागत करते हैं। वहीं, बेल (लता) मानो नखरे से कह रही हो कि इतने दिनों बाद ही तुम्हें हमारी याद आई? तालाब भी खुशी से भरकर बादलों के लिए पानी से भरी परात लेकर खड़ा है, जैसे कोई मेहमान के पाँव धोने के लिए जल लाता हो।
सबसे सुंदर दृश्य तब बनता है जब बिजली चमकती है और प्रेमिका को विश्वास हो जाता है कि उसका प्रियतम (बादल) सच में आ गया है। पहले उसे संदेह था, लेकिन प्रियतम को सामने देखकर उसकी आँखों से प्रेम के आँसू छलक पड़ते हैं। मिलन की इस खुशी में मानो प्रकृति भी बहक उठती है, और बारिश की बूँदें झर-झर पृथ्वी पर गिरने लगती हैं। इस प्रकार, कवि ने वर्षा ऋतु को एक सुखद पुनर्मिलन के रूप में दर्शाया है, जिसमें प्रेम, उलाहना, उत्साह और आनंद के भाव स्पष्ट रूप से झलकते हैं।
इस प्रकार, कविता में वर्षा के आगमन का एक उत्सव के रूप में चित्रण किया गया है।
मेघ आए व्याख्या Megh Aaye Lesson Explanation
1
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के ।
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाज़े-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
शब्दार्थ-
मेघ – बादल
बन-ठन के, सँवर के – सजे-धजे, सुंदर रूप में
बयार – ठंडी हवा
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली – वर्षा के आगमन की खुशी में हवा बहने लगी, शहरी मेहमान के आगमन की खबर सारे गाँव में तेज़ी से फैल गई
पाहुन – अतिथि (विशेष रूप से दामाद)
व्याख्या- प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने वर्षा ऋतु के आगमन पर गाँव में उत्पन्न होने वाले आनंद और उत्साह का सजीव चित्रण किया है। कवि ने बादलों को एक विशेष अतिथि के रूप में प्रस्तुत किया है, जो बड़े बन-ठनकर गाँव में आए हैं, जैसे कोई दामाद अपने ससुराल सज-धज कर आता है। उनके स्वागत में ठंडी हवा नाचती-गाती चल रही है, मानो उनके आगमन का संदेश पूरे गाँव में फैला रही हो। बादलों के आगमन से गाँव में उमंग की लहर दौड़ जाती है, लोग उत्सुकता से अपने घरों की खिड़कियाँ और दरवाज़े खोलकर इस प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेने लगते हैं, जैसे किसी सम्मानित मेहमान के स्वागत में पूरा गाँव उमंग से भर उठता है।
2
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूँघट सरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
शब्दार्थ-
पेड़ झुक झाँकने लगे – पेड़ हवा में झुककर बादलों को देखने लगे
गरदन उचकाए – उत्सुकतापूर्वक सिर उठाना
धूल भागी घाघरा उठाए – धूल तेज़ हवा में उड़ने लगी, जैसे स्त्रियाँ घाघरा संभालकर दौड़ रहीं हों
बाँकी चितवन – बाँकपन लिए दृष्टि , तिरछी नज़र
नदी ठिठकी – नदी का जल थम-सा गया
घूँघट सरके – संकोचवश घूँघट थोड़ा हट गया
व्याख्या- कवि वर्षा ऋतु के आगमन को एक सुंदर दृश्य के रूप में प्रस्तुत करते हैं। बादलों के छाने और आँधी चलने पर धूल इस तरह उड़ने लगती है, जैसे गाँव की महिलाएँ घाघरा उठाकर दौड़ रही हों। हवा के प्रभाव से पेड़ झुककर ऐसे प्रतीत होते हैं मानो वे अपनी गर्दन उठा उठाकर उत्सुकता से मेहमान (बादलों) को देखने का प्रयास कर रहे हों। वहीं, नदी रूपी औरतें ठिठककर संकोच भरी नजरों से बादलों को निहार रही है, जैसे कि उन लोगों ने अपना घूँघट हल्का-सा सरका लिया हो। इस प्रकार, पूरे प्राकृतिक वातावरण में उल्लास और उत्सुकता का भाव उमड़ आया है, जो बादलों के आगमन को एक स्वागत करने योग्य अवसर के रूप में दर्शाता है।
3
बूँढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’-
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
शब्दार्थ-
बूँढ़े पीपल – पुराना (बूढ़ा) पीपल का पेड़
जुहार करना – आदर के साथ झुककर नमस्कार करना
बरस बाद सुधि लीन्हीं – कई वर्षों बाद याद किया
अकुलाई लता – व्याकुल लता (बेल)
ओट हो किवार की – दरवाजे की आड़ में छिपकर
हरसाया ताल – प्रसन्न हुआ तालाब
पानी परात भर के – पानी से भरी परात (बर्तन) लाया
व्याख्या- कवि ने वर्षा ऋतु के आगमन को मानवीय भावनाओं से जोड़कर उसका सुंदर चित्रण किया है। जिस प्रकार कोई दामाद लंबे समय बाद ससुराल लौटता है, तो परिवार के बड़े-बुजुर्ग झुककर उसका आदरपूर्वक स्वागत करते हैं, वैसे ही बूढ़ा पीपल भी झुककर बादलों का अभिवादन करता है। वहीं, लता रूपी नवविवाहिता मानो दरवाजे की ओट से नखरे से कह रही हो— “इतने दिनों बाद ही तुम्हें हमारी याद आई?” इसी खुशी में तालाब भी उमंग से भरकर अतिथि का स्वागत करने के लिए पानी से परात भर लाया है, जैसे कोई मेहमान के पाँव धोने के लिए जल लाता हो। इस प्रकार, कवि ने प्रकृति के माध्यम से बादलों के स्वागत को एक पारिवारिक मिलन की तरह दर्शाया है, जिसमें प्रेम, उलाहना, और उत्साह का भाव स्पष्ट रूप से झलकता है।
4
क्षितिज अटारी गहराई दामिनि दमकी,
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’,
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
शब्दार्थ-
क्षितिज-अटारी गहराई – अटारी पर पहुँचे अतिथि की भाँति क्षितिज पर बादल छा गए
दामिनी दमकी – बिजली चमकी , तन-मन आभा से चमक उठा
क्षमा करो गाँव खुल गई अब भरम की – बादल नहीं बरसेगा का श्रम टूट गया, प्रियतम अपनी प्रिया से अब मिलने नहीं आएगा – यह श्रम टूट गया
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके – मेघ झर-झर बरसने लगे, प्रिया-प्रियतम के मिलन से खुशी के आँसू छलक उठे
व्याख्या- कवि ने यहाँ बादलों के आगमन को प्रियतम के आगमन से जोड़ा है। अब तक प्रेमिका को उनके आने की सूचना मात्र एक भ्रम लग रही थी, लेकिन जब बादल क्षितिज रूपी अटारी तक पहुँच जाते हैं और बिजली चमक उठती है, तो मानो उसके हृदय में भी प्रेम की चिंगारी जाग उठती है। प्रियतम को सामने देखकर उसका सारा संदेह दूर हो जाता है, और वह मन ही मन अपने संकोच व अविश्वास के लिए क्षमा माँगने लगती है। फिर मिलन की इस अपार खुशी में, जैसे बाँध टूट जाता है और प्रेम के अश्रु झर-झर बहने लगते हैं, ठीक वैसे ही वर्षा की बूँदें पृथ्वी पर बरसने लगती हैं, जो मिलन की मधुरता को और भी गहरा बना देती हैं।
Conclusion
इस पोस्ट में हमने ‘मेघ आए’ नामक कविता का सारांश, पाठ व्याख्या और शब्दार्थ को विस्तार से समझा। यह कविता क्षितिज पुस्तक में शामिल है और कक्षा 9 हिंदी ‘अ’ के पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण भाग है। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा रचित इस कविता में मेघों के आगमन का सौंदर्यपूर्ण और जीवंत चित्रण किया गया है। इस पोस्ट को पढ़कर विद्यार्थी न केवल कविता की विषयवस्तु को बेहतर समझ सकेंगे, बल्कि इससे उन्हें परीक्षा में सटीक उत्तर लिखने और महत्वपूर्ण बिंदुओं को याद रखने में भी सहायता मिलेगी।