ग्राम श्री पाठ सार
CBSE Class 9 Hindi Chapter 11 “Gram Shree”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Kshitij Bhag 1 Book
ग्राम श्री सार – Here is the CBSE Class 9 Hindi Kshitij Bhag 1 Chapter 11 Gram Shree Summary with detailed explanation of the lesson ‘Gram Shree’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 9 हिंदी कोर्स ए क्षितिज भाग 1 के पाठ 11 ग्राम श्री पाठ सार , पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 9 ग्राम श्री पाठ के बारे में जानते हैं।
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Gram Shree (ग्राम श्री )
कवि – सुमित्रानंदन पंत
ग्राम श्री पाठ प्रवेश Gram Shree Introduction
ग्राम श्री कविता में सुमित्रानंदन पंत ने गाँव की प्राकृतिक आकर्षण और सफलता व् उन्नति का मनोहारी वर्णन किया है। खेतों में दूर तक फैली लहलहाती फसलें, फल–फूलों से लदी पेड़ों की डालियाँ और गंगा की रेत से युक्त सुंदरता कवि को रोमांचित करती है। कवि के उसी रोमांच को इस कविता के द्वारा प्रकट करने का प्रयास किया है।
ग्राम श्री पाठ सार Gram Shree Summary
‘ग्राम श्री’ कविता के शीर्षक से ज्ञात होता है कि ‘ग्राम’ का अर्थ है ‘गाँव’ और ‘श्री’ का अर्थ है ‘शोभा’ अर्थात् सुंदरता। इस कविता में कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने गाँव के प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही मनोहारी चित्रण किया है। गाँव में दूर-दूर तक हरे – हरे खेतों में चारों तरफ मलमल के समान कोमल हरियाली फैली हुई है। उस कोमल घास पर सुबह-सुबह जब ओस की बूँदों पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे खेतों की हरियाली के ऊपर चाँदी की कोई साफ व् स्वच्छ जाली बिछी हुई है। तिनकों पर ठहरी हुई ओस की बूँदे, पारदर्शी होने के कारण हरे रंग की दिख देती हैं, और जब तिनके हिलते हैं तो ऐसा लगता है कि उन तिनकों पर हरे रंग की ओस की बूँदे उनका रक्त है जो हवा चलने पर तिनकों से गिर रहा है। खेतों की हरियाली और स्वच्छ आकाश को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश झुककर खेतों की हरियाली के ऊपर अपने नीले रंग के आँचल को बिछा रहा है। खेतों में गेहूँ, जौ की बालियाँ, अरहर और सनई की फलियाँ, सरसों के पीले फूल एवं अलसी की कलियाँ धरती का सौंदर्य बढ़ा रही हैं। विभिन्न रंगों के फूलों के बीच मटर की फसल जब हवा चलने पर हिलती है तो उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे सारी सखियाँ एक – दूसरे से मिलकर हँसी मज़ाक़ कर रही हो। कोमल संदूकों के समान मटर की फलियाँ लटकी हुई हैं जिनमें बीजों की लड़ियाँ छिपी हुई हैं। बसंत ऋतु आने पर हर जगह रंग – बिरंगे सुंदर फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराती हैं। बसंत ऋतु की शुरुआत में आम के पेड़ों की डालियाँ चाँदी और सोने के रंग की कलियों से लद चुकी हैं। पतझड़ के कारण पलाश और पीपल के पेड़ की पत्तियाँ झड़ रही हैं। इन सभी परिवर्तनों को देखकर कोयल भी मदमस्त होकर मधुर संगीत सुना रही है। कटहल पक गए हैं और जामुन कुछ पक गए हैं और कुछ कच्चे हैं। जंगल में बेरों की झाड़ियाँ छोटे – छोटे बेरों से भर गई हैं और झूल रही हैं। इस मौसम में आड़ू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन, मूली आदि कई तरह के फल एवं सब्ज़ियाँ उग चुकी हैं। बसंत ऋतु में अमरुद पक कर मीठे हो चुके हैं। बेर भी पककर सुनहरे रंग के हो गए हैं। छोटे-छोटे आँवलों के कारण पेड़ की पूरी डाल ऐसी लदी हुई है, जैसे किसी गहने में मोती जड़े होते हैं। पालक की फसल पूरे खेत में लहलहा रही है और धनिये की सुगंध तो भी पूरे वातावरण में फैली हुई है। लौकी और सेम की बेलें भी खेतों में फैल गई हैं। मखमल की तरह कोमल टमाटर भी पककर लाल हो गए हैं। और हरी मिर्चों के गुच्छे किसी बड़ी हरी थैली की तरह लग रहे हैं। गंगा के किनारे की रेत पर लहरों के निशान इस प्रकार दिखाई दे रहे हैं जैसे बालू पर कई साँपों ने अपने निशान छोड़ दिए हों। उस रेत पर पड़ती सूर्य की किरणों के कारण वह रेत इंद्रधनुष के सात रंगों के समान सतरंगी नज़र आ रहा है। गंगा के तट पर बिछी घास और तरबूजों की खेती बहुत ही सुंदर दिखाई दे रही है। गंगा के तट पर बगुले अपने पंजों से कलँगी को ऐसे सँवार रहे हैं, मानो वे कंघी कर रहे हों। चक्रवाक अथवा चकवा पक्षी जल में तैर रहे हैं और मगरौठी पक्षी गीली रेत में आराम से सोए हुए हैं। सर्दी की धूप में जब सूर्य की किरणें खेतों की हरियाली पर पड़ती हैं, तो वह इस तरह चमक उठती है, मानो वह बहुत खुश है। सर्दी की रातें ओस के कारण भीगी हुई प्रतीत होती हैं, और तारों को देखकर लगता है मानो वे किसी सपने में खोये हुए हैं। गाँव में हर तरफ़ हरियाली फैली हुई ऐसी लग रही है जैसे हरे रंग के रत्न ‘पन्नों’ से भरा कोई डिब्बा खुल गया हो जिस पर ‘नीलम’ रूपी नीले रंग के रत्न के समान नीले आकाश ने अपनी चादर ओढ़ा रखी हो। इस प्रकार शीत ऋतु के अंत में गाँव के वातावरण में ऐसी सुंदर व् सौम्य शांति फैली हुई है, जो अपनी सुंदरता से सभी का मन मोह रही है।
ग्राम श्री पाठ व्याख्या Gram Shree Lesson Explanation
1 –
फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली!
तिनकों के हरे हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भू तल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक!
शब्दार्थ –
तलक – तक
रवि – सूर्य
उजली – साफ़, स्वच्छ
तन – शरीर
हिल – हिलना
हरित – हरा
रुधिर – खून
झलक – झलकना, गिरना
श्यामल – साँवली
भू – भूमि, मिट्टी
नभ – आकाश
चिर – हमेशा
निर्मल – साफ़
नील – नीला
फलक – सतह
व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि सुमित्रानंदन पंत जी ने गाँव के प्राकृतिक सौंदर्य का बड़ा ही सुंदर चित्रण किया है। गाँव में दूर-दूर तक हरे – हरे खेतों में चारों तरफ मलमल के समान कोमल हरियाली फैली हुई है। उस कोमल घास पर सुबह-सुबह जब ओस की बूँदों पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे खेतों की हरियाली के ऊपर चाँदी की कोई साफ व् स्वच्छ जाली बिछी हुई है।
हरे-हरे तिनकों के हरे-हरे शरीर जब हवा से हिलते हैं, तब उनके हरे रंग का रक्त मानो झलक पड़ता है। कहने का तात्पर्य यह है कि तिनकों पर ठहरी हुई ओस की बूँदे, पारदर्शी होने के कारण हरे रंग की दिख देती हैं, और जब तिनके हिलते हैं तो ऐसा लगता है कि उन तिनकों पर हरे रंग की ओस की बूँदे उनका रक्त है जो हवा चलने पर तिनकों से गिर रहा है।
साँवली मिट्टी वाली धरती पर नीला स्वच्छ आकाश सदा झुका रहता है। कहने का तात्पर्य यह है कि खेतों की हरियाली और स्वच्छ आकाश को देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि आकाश झुककर खेतों की हरियाली के ऊपर अपने नीले रंग के आँचल को बिछा रहा है।
2 –
रोमांचित सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली!
शब्दार्थ –
वसुधा – धन देने वाला
बाली – फली, फसल
सनई – एक पौधा जिसकी छाल के रेशे से रस्सी बनाई जाती है
किंकिंणी – वह करधनी जिसमें छोटे-छोटे घुँघरू लगे हों
भीनी – हल्दी और मीठी (खुशबू)
तैलाक्त – जिसमें तेल लगा हो, तैलयुक्त
हरित – हरा
धरा – पृथ्वी, धरती, जमीन
नीलम – एक प्रकार का रत्न
तीसी – अलसी
व्याख्या – कवि कहता है कि धरती बहुत अधिक प्रसन्न लग रही है क्योंकि खेतों में जौ और गेहूँ की फ़सल में बीज आ गए हैं अर्थात् जौ और गेहूँ की फ़सल पक गई है। अरहर और सनई की पकी फ़सलों पर पीले रंग के फूल किसी सोने की करघनी जैसे लग रहे हैं, जिन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे धरती रूपी युवती ने कमर में करघनी पहनी हुई है, जिसके कारण उसकी सुंदरता और अधिक बढ़ रही है। सरसों के पीले फूलों के खिल जाने से हवा में तेल युक्त सुगंध बह रही है। हरे खेतों में कहीं-कहीं खिले अलसी के नीले फूल नीलम रूपी रत्न के समान चमक रहे हैं, जो हरी-भरी धरती की सुंदरता को बढ़ाने का काम कर रहे हैं। कहने का आशय यह है कि खेतों में गेहूँ, जौ की बालियाँ, अरहर और सनई की फलियाँ, सरसों के पीले फूल एवं अलसी की कलियाँ धरती का सौंदर्य बढ़ा रही हैं।
3 –
रंग रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती हैं रंग रंग की तितली
रंग रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हैं फूल स्वयं
उड़ उड़ वृंतों से वृंतों पर!
शब्दार्थ –
रिलमिल – मिलझुल कर
मखमली – कोमल
पेटियों – संदूकों
छीमियाँ – फलियाँ
वृंत – डंठल
व्याख्या – कवि कहता है कि विभिन्न रंगों के फूलों के बीच मटर की फसल जब हवा चलने पर हिलती है तो उन्हें देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे सारी सखियाँ एक – दूसरे से मिलकर हँसी मज़ाक़ कर रही हो। कोमल संदूकों के समान मटर की फलियाँ लटकी हुई हैं जिनमें बीजों की लड़ियाँ छिपी हुई हैं। बसंत ऋतु आने पर हर जगह रंग – बिरंगे सुंदर फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराती हैं। अर्थात तितलियाँ एक फूल से दूसरे फूल तक उड़-उड़कर जाती हैं। हवा चलने पर लहलहाते फूलों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए फूल स्वयं उठ – उठ कर दूसरे फूलों के डंठलों से गले मिल रहे हों।
4 –
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली!
शब्दार्थ –
रजत – चांदी
स्वर्ण – सोना
मंजरी – नया निकला हुआ कोमल पत्ता
आम्र – आम
तरु – पेड़
ढाक – पलाश का वृक्ष
कोकिला – कोयल
मतवाली – मदमस्त
मुकुलित – आधे पके – आधे कच्चे
दाड़िम – अनार
व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि बसंत-ऋतु का सुंदर वर्णन करते हुए कहता है कि बसंत ऋतु की शुरुआत में आम के पेड़ों की डालियाँ चाँदी और सोने के रंग की कलियों से लद चुकी हैं। पतझड़ के कारण पलाश और पीपल के पेड़ की पत्तियाँ झड़ रही हैं। इन सभी परिवर्तनों को देखकर कोयल भी मदमस्त होकर मधुर संगीत सुना रही है। कटहल पक गए हैं जिनके कारण उसकी महक पूरे वातावरण में फैल गई है और जामुन कुछ पक गए हैं और कुछ कच्चे हैं। जंगल में बेरों की झाड़ियाँ छोटे – छोटे बेरों से भर गई हैं और झूल रही हैं। इस मौसम में आड़ू, नींबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन, मूली आदि कई तरह के फल एवं सब्ज़ियाँ उग चुकी हैं।
5 –
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल लाल चित्तियाँ पड़ी,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी!
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ’ सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली!
शब्दार्थ –
चित्तियाँ – दाग
सुनहले – सुनहरे
अँवली – छोटा आँवला
महमह – सुगंध या ख़ुशबू के साथ
मिरचों – मिर्च
व्याख्या – कवि कहता है कि बसंत ऋतु आने के कारण पीले और मीठे अमरुद पक चुके हैं और उनपर लाल-लाल निशान या दाग भी दिखाई दे रहे हैं। अर्थात अमरुद पक कर मीठे हो चुके हैं। बेर भी पककर सुनहरे रंग के हो गए हैं। छोटे-छोटे आँवलों के कारण पेड़ की पूरी डाल ऐसी लदी हुई है, जैसे किसी गहने में मोती जड़े होते हैं। पालक की फसल पूरे खेत में लहलहा रही है और धनिये की सुगंध तो भी पूरे वातावरण में फैली हुई है। लौकी और सेम की बेलें भी खेतों में फैल गई हैं। मखमल की तरह कोमल टमाटर भी पककर लाल हो गए हैं। और हरी मिर्चों के गुच्छे किसी बड़ी हरी थैली की तरह लग रहे हैं।
6 –
बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूजों की खेती;
अँगुली की कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!
शब्दार्थ –
अंकित – निशान किया हुआ , दागदार , चिह्नित
सतरंगी – सात रंग की
सरपत – घास-पात
सुरखाब – चक्रवाक पक्षी
पुलिन – नदी आदि का तट, तीर, किनारा
मगरौठी – एक जलपक्षी
व्याख्या – कवि के अनुसार, गंगा के किनारे की रेत पर लहरों के निशान इस प्रकार दिखाई दे रहे हैं जैसे बालू पर कई साँपों ने अपने निशान छोड़ दिए हों अर्थात कई साँप उस रेट पर से गए हों। उस रेत पर पड़ती सूर्य की किरणों के कारण वह रेत इंद्रधनुष के सात रंगों के समान सतरंगी नज़र आ रहा है। गंगा के तट पर बिछी घास और तरबूजों की खेती बहुत ही सुंदर दिखाई दे रही है। गंगा के तट पर बगुले अपने पंजों से कलँगी को ऐसे सँवार रहे हैं, मानो वे कंघी कर रहे हों। चक्रवाक अथवा चकवा पक्षी जल में तैर रहे हैं और मगरौठी पक्षी गीली रेत में आराम से सोए हुए हैं।
7 –
हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में-से खोए-
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम-
जिस पर नीलम नभ आच्छादन-
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन!
शब्दार्थ –
हिम-आतप – सर्दी की धूप
अँधियाली – आधी रात का समा
निशि – रात
तारक – तारे
मरकत – पन्ना नामक रत्न
नीलम – ‘नीलम’ रूपी नीले रंग का रत्न
आच्छादन – छाया हुआ
निरुपम – जिसकी कोई उपमा न हो, अतुलनीय, बेजोड़
हिमांत – शीत ऋतु का अंत
स्निग्ध – सुंदर, सौम्य
हरता – आकर्षित करना
व्याख्या – कवि कहता है कि सर्दी की धूप में जब सूर्य की किरणें खेतों की हरियाली पर पड़ती हैं, तो वह इस तरह चमक उठती है, मानो वह बहुत खुश है और इसी ख़ुशी के कारण कवि को वह सुख से सोती हुए प्रतीत हो रही है। सर्दी की रातें ओस के कारण भीगी हुई प्रतीत होती हैं, और तारों को देखकर लगता है मानो वे किसी सपने में खोये हुए हैं। गाँव में हर तरफ़ हरियाली फैली हुई ऐसी लग रही है जैसे हरे रंग के रत्न ‘पन्नों’ से भरा कोई डिब्बा खुल गया हो जिस पर ‘नीलम’ रूपी नीले रंग के रत्न के समान नीले आकाश ने अपनी चादर ओढ़ा रखी हो। इस प्रकार शीत ऋतु के अंत में गाँव के वातावरण में ऐसी सुंदर व् सौम्य शांति फैली हुई है, जो अपनी सुंदरता से सभी का मन मोह रही है।
Conclusion
ग्राम श्री कविता में सुमित्रानंदन पंत ने गाँव की प्राकृतिक आकर्षण और सफलता व् उन्नति का अत्यधिक सुंदर वर्णन किया है। खेतों में दूर तक फैली लहलहाती हरी फसलें, फल-फूलों से लदी पेड़ों की डालियाँ और गंगा की रेत से युक्त सुंदरता कवि के साथ-साथ पाठकों को भी रोमांचित करती है। कवि ने उसी रोमांच को इस कविता के द्वारा प्रकट करने का प्रयास किया है। इस लेख में पाठ सार, व्याख्या, शब्दार्थ दिए गए हैं। यह लेख विद्यार्थियों को पाठ को अच्छे से समझने में सहायक है। विद्यार्थी अपनी परीक्षा के लिए इस लेख की सहायता ले सकते हैं।