CBSE Class 9 Hindi Chapter 8 Vaakh (वाख) Question Answers (Important) from Kshitij Book

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Vaakh Chapter 8 NCERT Solutions

 

1. ‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?
उत्तर- ‘रस्सी’ को यहाँ जीवन की सांसों के रूप में बताया गया है। कवयित्री ने इसे कच्चे और कमजोर धागे के रूप में प्रस्तुत किया है, जो यह बताता है कि जीवन बहुत ही नाजुक और अस्थिर है। इस रस्सी के सहारे वह अपनी जीवनरूपी नाव को खींच रही हैं, जो यह संकेत करता है कि मनुष्य का जीवन कठिन परिश्रम और संघर्षों से भरा है। साथ ही, इस कच्ची रस्सी का उल्लेख यह बताने के लिए किया गया है कि जीवन का आधार कितना अस्थायी और कमजोर है, जो किसी भी समय टूट सकता है। यह ईश्वर-प्राप्ति की इच्छा के साथ मानव जीवन की क्षणभंगुरता (कुछ समय तक ही रहने वाला) और संघर्ष को गहराई से व्यक्त करता है। 

2. कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?
उत्तर- कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ हो रहे हैं क्योंकि उनका शरीर कच्ची मिट्टी के सकोरे (मटके) की तरह है, जिससे पानी टपक-टपक कर कम होता जा रहा है। यह दर्शाता है कि जीवन का समय धीरे-धीरे बीत रहा है और वह ईश्वर-प्राप्ति के मार्ग पर पूरी स्थिरता और दृढ़ता से नहीं चल पा रही हैं। उनके प्रयासों में अस्थिरता और संसार की मोह-माया में फंसे होने के कारण उनकी साधना पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पा रही। वह बार-बार प्रयास करती हैं, लेकिन यह महसूस करती हैं कि उनका शरीर और मन दोनों संसार की चीज़ों में उलझे हुए हैं। इस असफलता के कारण उनकी आत्मा में व्याकुलता बढ़ती जा रही है और मुक्ति की उनकी तीव्र इच्छा पूरी नहीं हो पा रही है।

3. कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर- कवयित्री के ‘घर जाने की चाह’ से तात्पर्य उनके परमात्मा से मिलन और मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा से है। यहाँ ‘घर’ शब्द आत्मा के मूल निवास स्थान, अर्थात् ईश्वर या परम सत्य के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त हुआ है। कवयित्री यह महसूस करती हैं कि संसाररूपी भवसागर में उनका जीवन संघर्षों और अस्थिरता से भरा हुआ है। वह सांसारिक मोह-माया और असफल प्रयासों से थक चुकी हैं और अब उनकी आत्मा अपने असली घर, यानी ईश्वर के पास लौटने के लिए तड़प रही है। ‘घर जाने की चाह’ उनके जीवन के अंतिम लक्ष्य, अर्थात् आत्मा और परमात्मा के मिलन की गहरी इच्छा को प्रकट करती है। यह उनकी आध्यात्मिक यात्रा और ईश्वर-प्राप्ति की तीव्र इच्छा का प्रतीक है। 

4. भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
 न खाकर बनेगा अहंकारी।

उत्तर
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई इस पंक्ति में कवयित्री ने गहरे आत्मनिरीक्षण और पश्चाताप को व्यक्त किया है। यहाँ “जेब टटोली” का अर्थ है जीवन के कर्मों और पुण्यों की जाँच करना। “कौड़ी न पाई” यह दर्शाता है कि जीवन में उन्होंने ऐसा कोई पुण्य कार्य या आध्यात्मिक उपलब्धि हासिल नहीं की, जो ईश्वर-प्राप्ति के समय उनके काम आ सके। यह पंक्ति जीवनभर के भटकाव और ईश्वर के मार्ग पर स्थिरता की कमी को व्यक्त करती है। 

(ख) “खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी” यह पंक्ति भोग-विलास और त्याग के बीच संतुलन की आवश्यकता को उजागर करती है। “खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं” का अर्थ है कि यदि कोई व्यक्ति केवल भोग-विलास में लगा रहता है, तो उसे जीवन में कभी भी स्थायी संतोष या आध्यात्मिक उपलब्धि नहीं मिल सकती। दूसरी ओर, “न खाकर बनेगा अहंकारी” यह बताता है कि यदि कोई सब कुछ त्यागकर तपस्या करता है, तो वह अहंकार से भर सकता है, जो ईश्वर-प्राप्ति की राह में सबसे बड़ी बाधा है। इस पंक्ति का भाव यह है कि न तो अत्यधिक भोग और न ही पूर्ण त्याग मनुष्य को सच्ची शांति दे सकते हैं। जीवन में संतुलन और समभाव बनाए रखना ही आत्मिक उन्नति और ईश्वर-प्राप्ति का सही मार्ग है।

5. बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर- बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने संतुलन और समभाव अपनाने का उपाय सुझाया है। उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि न तो भोग-विलास में लिप्त रहना और न ही पूर्ण त्याग करना मनुष्य को ईश्वर-प्राप्ति की ओर ले जा सकता है। ललद्यद कहती हैं कि भोग-विलास से व्यक्ति को कुछ स्थायी रूप से प्राप्त नहीं होता, और त्याग के चरम पर पहुँचकर व्यक्ति अहंकारी हो सकता है, जो ईश्वर तक पहुँचने में बाधा बनता है। इसलिए, उन्होंने समभाव (सुख-दुःख, भोग-त्याग, लाभ-हानि जैसी स्थितियों में संतुलन) का मार्ग अपनाने का सुझाव दिया है। उनके अनुसार, जब व्यक्ति समभाव से जीवन जीता है, तभी उसकी चेतना शुद्ध होती है, और यही शुद्धता उस बंद द्वार (आध्यात्मिक ज्ञान और ईश्वर-प्राप्ति) की साँकल खोलने की कुंजी बनती है।

6. ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?
उत्तर- यह भाव इन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है:
“आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!”
इन पंक्तियों में कवयित्री यह कहती हैं कि जब उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की, तो वह ईश्वर-प्राप्ति की सीधी और सही राह पर थीं। लेकिन सांसारिक भटकाव और मोह-माया के कारण वह उस मार्ग पर स्थिर नहीं रह पाईं। “सुषुम-सेतु पर खड़ी थी” का अर्थ यह है कि वह योग और साधना के माध्यम से आध्यात्मिक जागरण का प्रयास कर रही थीं, लेकिन उनकी साधना में स्थिरता या पूर्णता की कमी थी। “बीत गया दिन आह!” यह दर्शाता है कि कठिन साधना और हठयोग के बावजूद भी वह अपने लक्ष्य, यानी ईश्वर-प्राप्ति, तक नहीं पहुँच पाईं। यह जीवन के समय के बीतने और व्यर्थ प्रयासों का प्रतीक है।

7. ‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
उत्तर- कवयित्री के अनुसार, ‘ज्ञानी’ वह व्यक्ति है जो आत्मज्ञान प्राप्त कर चुका है। उनका अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जिसने स्वयं को, अपनी आत्मा को पहचान लिया है और यह समझ लिया है कि आत्मा और परमात्मा एक ही हैं। कवयित्री यह संदेश देती हैं कि सच्चा ज्ञान केवल बाहरी साधनों से नहीं, बल्कि आत्मा के भीतर झांकने और स्वयं को जानने से प्राप्त होता है। जब व्यक्ति अपने भीतर बसे परमात्मा को पहचान लेता है, तभी वह ईश्वर-प्राप्ति और सच्चे ज्ञान का अधिकारी बनता है। इस संदर्भ में निम्नलिखित पंक्तियों से यह भाव स्पष्ट होता है:
“ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान।”
अर्थात् आत्मा का ज्ञान ही परमात्मा को पहचानने की पहली और अनिवार्य सीढ़ी है।

रचना और अभिव्यक्ति

8. हमारे संतो, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है-

(क) आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है?
उत्तर- भेदभाव के कारण देश और समाज को कई प्रकार की हानियाँ हो रही हैं: 

  1. सामाजिक विभाजन- भेदभाव जाति, धर्म, लिंग और वर्ग के आधार पर समाज को विभाजित करता है, जिससे एकता और सद्भावना समाप्त हो जाते हैं। 
  2. आर्थिक असमानता- भेदभाव के कारण कुछ समुदायों को शिक्षा, रोजगार और संसाधनों में समान अवसर नहीं मिलते, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है। 
  3. प्रतिभा का नुकसान- भेदभाव के कारण योग्य व्यक्तियों को अपने कौशल और योग्यता का प्रदर्शन करने का अवसर नहीं मिलता, जिससे समाज उनकी क्षमता का लाभ नहीं उठा पाता है। 
  4. हिंसा की भावना- भेदभाव से समाज में तनाव, अविश्वास और हिंसा का माहौल बनता है, जो शांति और प्रगति में बाधा उत्पन्न करता है। 
  5. राष्ट्रीय विकास में बाधा- भेदभाव के कारण समाज में असमानता और असंतोष बढ़ता है, जिससे देश की समग्र प्रगति और विकास धीमा हो जाता है।

(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।
उत्तर- भेदभाव को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रभावी हो सकते हैं: 

  1. शिक्षा का प्रसार- सभी वर्गों को समान और गुणवत्ता वाली शिक्षा उपलब्ध कराई जाए, ताकि भेदभाव की मानसिकता को जड़ से समाप्त किया जा सके। 
  2. सामाजिक जागरूकता- समाज में भेदभाव के दुष्प्रभावों को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए कार्यशालाएँ, संगोष्ठियाँ और सामुदायिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ। 
  3. समान अवसर- रोजगार, शिक्षा और अन्य संसाधनों में सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित किए जाएँ। 
  4. कानूनी प्रावधान- भेदभाव को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए जाएँ और उनका सख्ती से पालन किया जाए। 
  5. धार्मिक और सांस्कृतिक समभाव- सभी धर्मों और संस्कृतियों को सम्मान देने और उन्हें समझने की शिक्षा दी जाए। 
  6. सकारात्मक उदाहरण- समाज में ऐसे व्यक्तियों और संगठनों को बढ़ावा दिया जाए जो समानता और एकता को बढ़ावा देते हों। 
  7. स्वयं से शुरुआत- हर व्यक्ति को खुद से शुरुआत करनी चाहिए और अपने भीतर से भेदभाव की मानसिकता को हटा देना चाहिए। 

भेदभाव को मिटाने के लिए समाज के हर वर्ग को मिलकर प्रयास करना होगा। केवल तभी हम एकता, समता और प्रगति से भरा समाज बना सकते हैं।

 

Class 9 Hindi Vaakh – Extract Based Questions (गद्यांश पर आधारित प्रश्न)

निम्नलिखित पद्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और प्रश्नों के उत्तर दीजिये-

1. रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे।।

1. कवयित्री ने अपने जीवन को किसके समान बताया है?
(क) एक मजबूत रस्सी
(ख) एक कमजोर नाव
(ग) सांसों की कच्ची और कमजोर रस्सी
(घ) मिट्टी के मटके
उत्तर: (ग) सांसों की कच्ची और कमजोर रस्सी

2. कवयित्री किस के लिए प्रार्थना कर रही हैं?
(क) भवसागर पार कराने के लिए
(ख) जीवन को सफल बनाने के लिए
(ग) समय को रोकने के लिए
(घ) शरीर को मजबूत बनाने के लिए
उत्तर: (क) भवसागर पार कराने के लिए

3. ‘पानी टपके कच्चे सकोरे’ का क्या अर्थ है?
(क) शरीर कमजोर हो रहा है
(ख) समय धीरे-धीरे बीत रहा है
(ग) जीवन व्यर्थ जा रहा है
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (घ) उपर्युक्त सभी

4. कवयित्री के अनुसार ‘घर’ का क्या तात्पर्य है?
(क) उनका असली निवास
(ख) परमात्मा के पास पहुँचना
(ग) उनका परिवार
(घ) पृथ्वी पर लौटना
उत्तर: (ख) परमात्मा के पास पहुँचना

5. कवयित्री की व्याकुलता का मुख्य कारण क्या है?
(क) प्रयासों का विफल होना
(ख) सांसारिक मोह
(ग) ईश्वर-प्राप्ति की तीव्र इच्छा
(घ) जीवन का आनंद न लेना
उत्तर: (ग) ईश्वर-प्राप्ति की तीव्र इच्छा

2. खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की।

1. कवयित्री के अनुसार भोग-विलास में लिप्त रहने से क्या प्राप्त होगा?
(क) स्थायी संतुष्टि
(ख) कुछ भी स्थायी रूप से प्राप्त नहीं होगा।
(ग) आत्मज्ञान
(घ) भक्ति
उत्तर: (ख) कुछ भी स्थायी रूप से प्राप्त नहीं होगा।

2. त्याग करने वाले व्यक्ति में कौन सी भावना उत्पन्न हो सकती है?
(क) दया
(ख) संतोष
(ग) अहंकार
(घ) करुणा
उत्तर: (ग) अहंकार

3. कवयित्री के अनुसार जीवन का सही मार्ग क्या है?
(क) भोग और त्याग के बीच संतुलन बनाना
(ख) केवल त्याग करना
(ग) केवल भोग-विलास करना
(घ) सांसारिक सुखों को त्याग देना
उत्तर: (क) भोग और त्याग के बीच संतुलन बनाना

4. ‘साँकल बंद द्वार की’ का तात्पर्य क्या है?
(क) भौतिक सुख प्राप्त करना
(ख) आध्यात्मिक ज्ञान और ईश्वर-प्राप्ति का द्वार
(ग) सांसारिक बंदिशें तोड़ना
(घ) जीवन में संतुलन लाना
उत्तर: (ख) आध्यात्मिक ज्ञान और ईश्वर-प्राप्ति का द्वार

5. समभाव अपनाने से क्या होता है?
(क) सांसारिक दुख बढ़ते हैं
(ख) भोग-विलास की प्राप्ति होती है
(ग) व्यक्ति अहंकारी बनता है
(घ) चेतना शुद्ध होती है
उत्तर: (घ) चेतना शुद्ध होती है

3.आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूँ, क्या उतराई ?

प्रश्न 1: कवयित्री किस “सीधी राह” की बात कर रही हैं?
उत्तर: कवयित्री “सीधी राह” से ईश्वर-प्राप्ति और आध्यात्मिक मार्ग की बात कर रही हैं। यह वह सच्चा और स्पष्ट मार्ग है, जिस पर चलकर व्यक्ति सांसारिक मोह-माया से मुक्त होकर आत्मिक शांति प्राप्त करता है।

प्रश्न 2: “सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!” का क्या अर्थ है?
उत्तर: इस पंक्ति में कवयित्री कहती हैं कि वह सुषुम्ना नाड़ी (आध्यात्मिक जागरण का मार्ग) के द्वार पर खड़ी रहीं, लेकिन स्थिरता और सही दिशा की कमी के कारण उन्होंने उस मार्ग पर आगे बढ़ने का अवसर खो दिया। समय बीतता गया, और उन्होंने आत्मिक विकास के लिए कुछ ख़ास नहीं किया।

प्रश्न 3: कवयित्री “जेब टटोली, कौड़ी न पाई” से क्या व्यक्त करना चाहती हैं?
उत्तर: “जेब टटोली, कौड़ी न पाई” का अर्थ है कि कवयित्री ने अपने जीवन को आत्मनिरीक्षण के रूप में देखा, लेकिन उन्हें एहसास हुआ कि उन्होंने जीवन में पुण्यकर्म या आध्यात्मिक पूंजी नहीं कमाई है, जो ईश्वर के सामने प्रस्तुत कर सकें।

प्रश्न 4: “माझी को दूँ, क्या उतराई?” इस वाक्य में “माझी” से कवयित्री क्या संकेत करती हैं?
उत्तर: “माझी” से कवयित्री ईश्वर का संकेत करती हैं, जो व्यक्ति को भवसागर पार कराने वाले मार्गदर्शक हैं। वह पूछती हैं कि उनके पास ऐसा क्या है, जिसे वह ईश्वर को भेंट कर सकें, क्योंकि उनके पास पुण्यकर्म की पूंजी नहीं है।

प्रश्न 5: प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री किस भाव को व्यक्त कर रही हैं?
उत्तर: इन पंक्तियों में कवयित्री गहरे आत्मनिरीक्षण, पश्चाताप और असंतोष को व्यक्त कर रही हैं। उन्होंने जीवन में ईश्वर-प्राप्ति और आध्यात्मिक साधना के लिए सही दिशा में प्रयास नहीं किए, और अब उन्हें पछतावा है कि उनके पास जीवन के अंत में कोई पुण्यकर्म नहीं है।

4. थल-थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान।

प्रश्न 1: कवयित्री ने “शिव” शब्द का क्या अर्थ बताया है?
उत्तर: कवयित्री ने “शिव” शब्द का अर्थ ईश्वर से जोड़ा है। उनके अनुसार, शिव सर्वव्यापी हैं और प्रत्येक स्थान, हर कण में उनका वास है।

प्रश्न 2: कवयित्री ने मनुष्यों को किस भेदभाव से ऊपर उठने का संदेश दिया है?
उत्तर: कवयित्री ने हिंदू और मुसलमान के बीच के भेदभाव से ऊपर उठने का संदेश दिया है। वह कहती हैं कि ईश्वर के स्वरूप को समझने के लिए इन जातिगत और धार्मिक भेदों को समाप्त करना चाहिए।

प्रश्न 3: आत्मज्ञान का ईश्वर की पहचान से क्या संबंध है?
उत्तर: कवयित्री के अनुसार, आत्मज्ञान ही ईश्वर की पहचान का पहला कदम है। जब मनुष्य स्वयं को जान लेता है, तभी वह ईश्वर के व्यापक और सच्चे स्वरूप को समझ सकता है।

प्रश्न 4: “थल-थल में बसता है शिव ही” का क्या भावार्थ है?
उत्तर: “थल-थल में बसता है शिव ही” का अर्थ है कि ईश्वर हर जगह विद्यमान हैं। वह केवल किसी विशेष स्थान पर सीमित नहीं हैं, बल्कि हर जड़ और चेतन में उनका निवास है।

प्रश्न 5: कवयित्री का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: कवयित्री का मुख्य संदेश यह है कि मनुष्य जाति, धर्म और भेदभाव से ऊपर उठे। ईश्वर को जानने के लिए आत्मज्ञान आवश्यक है, क्योंकि आत्मा में ही परमात्मा का निवास है। यह एकता और मानवता का संदेश देता है।

Class 9 Hindi A Kshitij Lesson 8 Vaakh Multiple choice Questions (बहुविकल्पीय प्रश्न)

1. “रस्सी कच्चे धागे की” का क्या अर्थ है?
(क) मजबूत सहारा
(ख) कमजोर और अस्थिर सहारा
(ग) आत्मविश्वास
(घ) साधना का मार्ग
उत्तर- (ख) कमजोर और अस्थिर सहारा

2. कवयित्री ने “कच्चे सकोरे” के द्वारा क्या दर्शाया है?
(क) जीवन की स्थिरता
(ख) जीवन की नश्वरता
(ग) तपस्या का महत्व
(घ) साधना का अंत
उत्तर- (ख) जीवन की नश्वरता

3. “भवसागर” से तात्पर्य है-
(क) नदी
(ख) अध्यात्म
(ग) स्वर्ग
(घ) संसार
उत्तर- (घ) संसार

4. कवयित्री का “घर जाने” से क्या तात्पर्य है?
(क) अपने गांव लौटना
(ख) ईश्वर में लीन होना
(ग) परिवार से मिलना
(घ) साधना करना
उत्तर- (ख) ईश्वर में लीन होना

5. “समभावी” का क्या अर्थ है?
(क) समानता की भावना
(ख) परोपकार करना
(ग) तपस्या करना
(घ) दया दिखाना
उत्तर- (क) समानता की भावना

6. “खुलेगी साँकल बंद द्वार की” पंक्ति का अर्थ है-
(क) मुक्ति प्राप्त करना
(ख) यात्रा का शुरू होना
(ग) भौतिक सुख पाना
(घ) साधना शुरू करना
उत्तर- (क) मुक्ति प्राप्त करना

7. वाख में “सुषुम-सेतु” किससे संबंधित है?
(क) योग और साधना
(ख) सांसारिक सुख
(ग) आत्मा का बंधन
(घ) भौतिक संसार
उत्तर– (क) योग और साधना

8. “जेब टटोली, कौड़ी न पाई” का अर्थ है?
(क) आर्थिक कठिनाई
(ख) आत्मालोचन और आत्मज्ञान का अभाव
(ग) भौतिक सुख की कमी
(घ) साधना का अंत
उत्तर– (ख) आत्मालोचन और आत्मज्ञान का अभाव

9. “ज्ञानी है तो स्वयं को जान” का मुख्य संदेश क्या है?
(क) दूसरों को पहचानना
(ख) पूजा-अर्चना करना
(ग) भक्ति करना
(घ) आत्मज्ञान प्राप्त करना
उत्तर- (घ) आत्मज्ञान प्राप्त करना

10. “खाकर कुछ पाएगा नहीं” का क्या अर्थ है?
(क) भोग-विलास से संतुष्टि नहीं मिलती
(ख) त्याग से ईश्वर प्राप्त होता है
(ग) खाना छोड़ना चाहिए
(घ) मनुष्य को भूखा रहना चाहिए
उत्तर– (क) भोग-विलास से संतुष्टि नहीं मिलती

11. “न खाकर बनेगा अहंकारी” से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?
(क) त्याग से ईश्वर प्राप्त होता है
(ख) भूखा रहना श्रेष्ठ है
(ग) त्याग से अहंकार पैदा होता है
(घ) भोजन करना आवश्यक है
उत्तर- (ग) त्याग से अहंकार पैदा होता है

12. “शिव” शब्द से कवयित्री का क्या तात्पर्य है?
(क) भगवान शिव
(ख) ईश्वर का सार्वभौमिक रूप
(ग) ब्राह्मण धर्म
(घ) भक्ति का एक प्रकार
उत्तर– (ख) ईश्वर का सार्वभौमिक रूप

13. “भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां” का मुख्य संदेश क्या है?
(क) धार्मिक एकता
(ख) जाति विभाजन
(ग) समाज सुधार
(घ) पूजा-अर्चना
उत्तर- (क) धार्मिक एकता

14. कवयित्री के अनुसार, ईश्वर को जानने का पहला कदम क्या है?
(क) भक्ति
(ख) पूजा
(ग) आत्मज्ञान
(घ) साधना
उत्तर- (ग) आत्मज्ञान

15. “पानी टपके कच्चे सकोरे” का प्रतीकात्मक अर्थ क्या है?
(क) समय का धीरे-धीरे समाप्त होना
(ख) जीवन का अस्थिर होना
(ग) भौतिक सुख का अभाव
(घ) साधना का अंत
उत्तर- (क) समय का धीरे-धीरे समाप्त होना

16. “घर जाने की चाह” से कवयित्री का क्या तात्पर्य है?
(क) अपने परिवार से मिलना
(ख) ईश्वर में लीन होना
(ग) तपस्या का अंत
(घ) भौतिक सुख पाना
उत्तर- (ख) ईश्वर में लीन होना

17. कवयित्री ने “माझी” को किसका प्रतीक माना है?
(क) संत
(ख) गुरु या ईश्वर
(ग) द्वार
(घ) पथदर्शक
उत्तर- (ख) गुरु या ईश्वर

18. “कौड़ी न पाई” का क्या तात्पर्य है?
(क) आर्थिक अभाव
(ख) पुण्यकर्म की कमी
(ग) भक्ति का अभाव
(घ) सांसारिक सुख का अभाव
उत्तर- (ख) पुण्यकर्म की कमी

19. कवयित्री का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(क) धार्मिक भेदभाव समाप्त करना
(ख) ईश्वर की सार्वभौमिकता को समझाना
(ग) आत्मज्ञान का महत्व समझाना
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर– (घ) उपर्युक्त सभी

20. ‘वाख’ क्या है?
(क) पद्य
(ख) डायरी
(ग) संस्मरण
(घ) कहानी
उत्तर- (क) पद्य

 

Vaakh Extra Question Answers (अतिरिक्त प्रश्न उत्तर)

1. कवयित्री अपनी नाव को किससे खींच रही हैं, और इसका क्या अर्थ है?
उत्तर: कवयित्री अपनी नाव को कच्चे धागे की रस्सी से खींच रही हैं। इसका अर्थ यह है कि जीवन कमजोर और अस्थिर है। यह नाव जीवन का प्रतीक है, जिसे वह सांसों की कमजोर डोरी से आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं। यह जीवन के नष्ट होने को दर्शाता है, जिससे पता चलता है कि इंसान के प्रयास सीमित और पल भर के हैं।

2. ‘रस्सी कच्चे धागे की’ का क्या अर्थ है, और यह मानव जीवन को कैसे दर्शाता है?
उत्तर: ‘रस्सी कच्चे धागे की’ यह मानव जीवन को दर्शाता है क्योंकि मनुष्य अपने जीवन को सांसों की कमजोर डोर से चलाता है। यह दिखाता है कि जीवन बहुत अस्थिर है, और किसी भी समय समाप्त हो सकता है। इसलिए, कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि वे उनकी मदद करें और उन्हें भवसागर से पार कराएँ।

3. ‘कच्चे सकोरे’ का क्या अर्थ है, और यह जीवन के किस पहलू को दर्शाता है?
उत्तर: ‘कच्चे सकोरे’ का अर्थ कमजोर और जल्दी नष्ट हो जाने वाली वस्तु से है। यह जीवन को पल भर में नष्ट होने वाले स्वभाव को दर्शाता है। जैसे कच्चे सकोरे से पानी टपकता रहता है, वैसे ही समय धीरे-धीरे बीतता रहता है। कवयित्री यह बताना चाहती हैं कि शरीर भी नश्वर है और धीरे-धीरे खत्म हो जाता है।

4. कवयित्री के मन में किस बात की हूक उठती है और क्यों?
उत्तर: कवयित्री के मन में अपने असली घर यानी परमात्मा तक पहुँचने की हूक उठती है। उन्हें एहसास होता है कि यह दुनिया अस्थायी है, और उनका शरीर भी धीरे-धीरे कमजोर हो रहा है। वह चाहती हैं कि ईश्वर उन्हें संसार के दुखों से मुक्त करें और उन्हें आध्यात्मिक शांति प्राप्त हो। इसलिए, उनके मन में बार-बार यह तड़प उठती है कि वे ईश्वर से मिल जाएँ।

5. कवयित्री खाने और न खाने को किस तरह से देखती हैं?
उत्तर: कवयित्री कहती हैं कि अधिक खाने से कुछ भी प्राप्त नहीं होता, और न खाने से अहंकार बढ़ता है। संतुलित आहार और संतुलित जीवन ही सही मार्ग है। यदि व्यक्ति जरूरत से ज्यादा भोग-विलास में लिप्त रहता है, तो उसे सच्चा सुख नहीं मिलता। वहीं, अगर वह सब कुछ त्याग देता है, तो उसमें अहंकार आ सकता है। इसलिए, संतुलित जीवन से ही सच्ची शांति और आध्यात्मिक सफलता मिलती है।

6. कवयित्री ने सुषुम-सेतु का क्या अर्थ बताया है?
उत्तर: सुषुम-सेतु का अर्थ सुषुम्ना नाड़ी से है, जो योग और ध्यान का एक महत्वपूर्ण मार्ग है। यह आत्मा और परमात्मा को जोड़ने का पुल माना जाता है। कवयित्री कहती हैं कि वह इस पुल पर खड़ी थीं, लेकिन समय बीत गया और उन्हें कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। यह आत्मनिरीक्षण का प्रतीक है, जो यह दर्शाता है कि व्यक्ति को समय रहते आध्यात्मिक साधना करनी चाहिए।

7. कवयित्री ने माझी किसे कहा है और क्यों?
उत्तर: कवयित्री ने माझी को ईश्वर या गुरु के रूप में देखा है। माझी वही होता है जो नाव को पार कराता है। जीवन भी एक नाव की तरह है, जिसे भवसागर से पार कराने के लिए ईश्वर या सच्चे गुरु की आवश्यकता होती है। कवयित्री यह कहना चाहती हैं कि बिना सच्चे मार्गदर्शन के जीवन को सफलतापूर्वक पार करना कठिन है।

8. ‘ज्ञानी है तो स्वयं को जान’ इस पंक्ति का क्या संदेश है?
उत्तर: इस पंक्ति का संदेश है कि सच्चा ज्ञान आत्म-ज्ञान से ही प्राप्त होता है। यदि कोई व्यक्ति सच में ज्ञानी बनना चाहता है, तो उसे पहले खुद को समझना होगा। जब वह अपनी आत्मा की पहचान कर लेता है, तभी उसे परमात्मा का सच्चा ज्ञान प्राप्त होता है। बाहरी ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण आत्मज्ञान है।

9. कवयित्री जाति और धर्म के भेद को क्यों गलत मानती हैं?
उत्तर: कवयित्री मानती हैं कि जाति और धर्म का भेद केवल भ्रम है। ईश्वर किसी एक धर्म या जाति तक सीमित नहीं हैं। वे हर इंसान में समान रूप से मौजूद हैं। इसलिए, हमें इन भेदों से ऊपर उठकर सबको समान दृष्टि से देखना चाहिए और आत्मज्ञान के मार्ग पर चलना चाहिए।

10. इस कविता का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: इस कविता का मुख्य संदेश यह है कि जीवन अस्थिर और नष्ट होने वाला है। भोग-विलास और त्याग दोनों के चरम से बचकर संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। आत्म-ज्ञान और ईश्वर-प्राप्ति के लिए मोह-माया से ऊपर उठना चाहिए। जाति-धर्म के भेद को भूलकर सभी को समान दृष्टि से देखना चाहिए। ईश्वर हर जगह हैं, और सच्ची भक्ति से ही उनका अनुभव किया जा सकता है।