वाख पाठ सार
CBSE Class 9 Hindi Chapter 8 “Vaakh”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Kshitij Bhag 1 Book
वाख सार – Here is the CBSE Class 9 Hindi Kshitij Bhag 1 Chapter 8 Vaakh Summary with detailed explanation of the lesson ‘Premchand Ke Phate Joote’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 9 हिंदी कोर्स ए क्षितिज भाग 1 के पाठ 8 वाख पाठ सार , पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 9 वाख पाठ के बारे में जानते हैं।
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Vaakh (वाख)
वाख पाठ परिचय Vaakh Introduction
‘वाख’ काव्य परंपरा कश्मीरी संत कवयित्री ललद्यद द्वारा रचित है, जो भक्ति, दर्शन और मानवता के रहस्यमय संदेशों से भरी हुई है। वाख का मुख्य उद्देश्य मानव को आत्मा और परमात्मा के गहरे संबंध का बोध कराना और मोहमाया से मुक्त कर आत्मज्ञान और ईश्वर-प्राप्ति की राह दिखाना है।
कुल मिलाकर, वाख केवल एक काव्य रूप नहीं है, बल्कि यह आत्मा के ईश्वर के प्रति समर्पण की वह आवाज है, जो जीवन की सच्चाई को उजागर करती है और इंसान को अपने भीतर झाँकने के लिए प्रेरित करती है।
वाख पाठ सार Vaakh summary
कवयित्री वाख के माध्यम से आत्मा और परमात्मा के गहन संबंध को उजागर करती हैं।
कवयित्री अपने जीवनरूपी नाव को सांसों की कच्ची रस्सी से खींच रही है और ईश्वर से प्रार्थना कर रही है कि वे उसे संसाररूपी सागर पार करवाएँ। वह अपने प्रयासों को फालतू मानती है और अपनी आत्मा की परमात्मा से मिलने की इच्छा को व्यक्त करती है।
वह संदेश देती हैं कि न तो भोग-विलासिता में लगे रहकर कुछ प्राप्त होगा और न ही त्याग में अहंकार से ईश्वर की प्राप्ति संभव है। परमात्मा को पाने के लिए समभाव अपनाना होगा, तभी ईश्वर का मार्ग खुलेगा।
कवयित्री अपने जीवन के अनुभव साझा करते हुए कहती है कि वह सीधे मार्ग से चली थी, लेकिन संसार की मोहमाया में उलझकर अपने मार्ग से भटक गई। जीवनभर साधना में लगी रही, परंतु अब मृत्यु निकट है, और उसके पास पुण्यकर्म की पूंजी नहीं है। यह स्थिति उसे पछतावे से भर देती है।
अंत में कवयित्री ईश्वर को सर्वव्यापी बताते हुए कहती है कि वह हर जड़-चेतन में वास करता है। मनुष्य को जाति-धर्म के भेदभाव से ऊपर उठकर आत्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए, क्योंकि आत्मा में ही परमात्मा का निवास है।
कवयित्री ने आत्मा, परमात्मा, भोग-विलासिता, त्याग, और आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया है। यह काव्य मनुष्य को अपने भीतर झाँकने और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने का संदेश देता है।
वाख पद्यांश का भावार्थ Vaakh Lesson explanation with word meanings
1
रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव।
जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार।
पानी टपके कच्चे सकोरे, व्यर्थ प्रयास हो रहे मेरे।
जी में उठती रह-रह हूक, घर जाने की चाह है घेरे।।
शब्दार्थ-
वाख – वाणी, शब्द या कथन, यह चार पंक्तियों में बद्ध कश्मीरी शैली की गेय रचना है।
रस्सी कच्चे धागे की – कमज़ोर और नाशवान सहारे
कच्चे सकोरे – स्वाभाविक रूप से कमज़ोर
नाव – जीवन रूपी नाव
हूक- तड़प
चाह- इच्छा।
भावार्थ- इन पंक्तियों में कवयित्री ने मानव जीवन के नष्ट होने और ईश्वर-प्राप्ति की तीव्र आकांक्षा को व्यक्त किया है। वह कहती हैं कि उनका जीवन एक नाव की तरह है, जिसे वह सांसों की कच्ची और कमजोर रस्सी के सहारे खींच रही हैं। यह दर्शाता है कि जीवन कितना नाजुक और अस्थिर है। कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती हैं कि वह उनकी पुकार सुनें और संसाररूपी भवसागर को पार करा दें।
वह यह भी महसूस करती हैं कि उनका शरीर कच्ची मिट्टी से बने सकोरे (मटके) की तरह है, जिससे पानी टपक-टपक कर कम होता जा रहा है। इसका अर्थ यह है कि समय धीरे-धीरे बीत रहा है और उनके प्रयास व्यर्थ जा रहे हैं। इस असफलता के कारण उनकी आत्मा में व्याकुलता बढ़ती जा रही है, और बार-बार यह तड़प उठती है कि वह अपने असली घर, अर्थात् परमात्मा के पास जल्द ही पहुँच जाएँ।
2
खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं,
न खाकर बनेगा अहंकारी।
सम खा तभी होगा समभावी,
खुलेगी साँकल बंद द्वार की।
शब्दार्थ-
सम (शम) – अंत:करण तथा बाह्य-इंद्रियों का निग्रह
समभावी – समानता की भावना
खुलेगी साँकल बंद द्वार की – चेतना व्यापक होगी, मन मुक्त होगा
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने भोग-विलास और त्याग के चरम पर जाकर मनुष्य के जीवन के सही मार्ग को उजागर किया है। वह कहती हैं कि यदि कोई व्यक्ति केवल भोग-विलास में लिप्त रहता है, तो उसे जीवन में कुछ भी स्थायी रूप से प्राप्त नहीं होगा। सांसारिक सुख-सुविधाएँ उसे कभी संतुष्टि नहीं दे पाएंगी। वहीं, यदि कोई व्यक्ति सब कुछ त्यागकर तपस्या करता है, तो वह अहंकार से भर सकता है, जो ईश्वर-प्राप्ति की राह में सबसे बड़ा बाधक है।
कवयित्री यह समझाती हैं कि भोग और त्याग के बीच मध्य मार्ग अपनाना ही सही राह है। जब व्यक्ति सुख-दुःख, भोग-त्याग, लाभ-हानि जैसी स्थितियों से ऊपर उठकर समभाव (संतुलन) अपनाता है, तब उसकी चेतना में शुद्धता आती है। यही समभाव ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग है, और इसी से जीवन के बंद द्वार (आध्यात्मिक ज्ञान और ईश्वर-प्राप्ति का द्वार) खुलते हैं। इस प्रकार, जीवन में संतुलन बनाए रखना सबसे बड़ा आध्यात्मिक गुण है।
3
आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दूँ, क्या उतराई ?
शब्दार्थ-
गई न सीधी राह – जीवन में सांसारिक छ्ल-छद्मों के रास्ते पर चल रही
सुषुम-सेतु – सुषुम्ना नाड़ी रूपी पुल, हठयोग में शरीर की तीन प्रधान नाड़ियों में से एक नाड़ी (सुषुम्ना), जो नासिक के मध्य भाग (ब्रह्मरंध्र) में स्थित है।
जेब टटोली – आत्मालोचन किया
कौड़ी न पाई – कुछ प्राप्त न हुआ
माझी – ईश्वर, गुरु, नाविक
उतराई – सद्कर्म रूपी मेहताना
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने गहरे आत्मनिरीक्षण और पश्चाताप को व्यक्त किया है। वह कहती हैं कि जब वह संसार में आईं, तो उनका मार्ग सीधा और स्पष्ट था, अर्थात् वह ईश्वर-प्राप्ति की सच्ची राह पर थीं। लेकिन संसार की मोहमाया और भौतिक इच्छाओं के चक्कर में पड़कर वह अपने मार्ग से भटक गईं।
वह कहती हैं कि उन्होंने जीवनभर साधना और आध्यात्मिक प्रयास किए, लेकिन इन प्रयासों में स्थिरता या सही दिशा की कमी रही। सुषुम-सेतु (सुषुम्ना नाड़ी, जो योग और कुंडलिनी जागरण का मार्ग है) पर खड़ी रहीं, लेकिन समय बीतता गया, और अब मृत्यु का समय भी पास है।
जब वह अपने बिताए हुए जीवन को देखती हैं, तो उन्हें महसूस होता है कि उनके पास पुण्यकर्म (आध्यात्मिक पूंजी) नहीं है। अब जब वह भवसागर पार कराने वाले माझी (ईश्वर) के सामने खड़ी हैं, तो उनके पास उन्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है। यह स्थिति उनके मन में गहरे पछतावे और असंतोष को जन्म देती है।
4
थल-थल में बसता है शिव ही,
भेद न कर क्या हिंदू-मुसलमां।
ज्ञानी है तो स्वयं को जान,
वही है साहिब से पहचान।
शब्दार्थ-
थल-थल – सर्वत्र
शिव – ईश्वर
साहिब – स्वामी, ईश्वर
भावार्थ- प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री ने ईश्वर के सर्वव्यापक स्वरूप और मानवता के लिए एकता का संदेश दिया है। वह कहती हैं कि शिव (ईश्वर) हर स्थान पर मौजूद हैं, चाहे वह जड़ (हमारा शरीर है, जो नश्वर है) हो या चेतन (हमारी आत्मा है)। इसका अर्थ है कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त हैं और हर जगह उनका वास है। वह मनुष्य को जाति और धर्म के भेदभाव से ऊपर उठने का संदेश देती हैं। हिंदू-मुसलमान के आधार पर खुद को अलग-अलग मानना, ईश्वर की व्यापकता को न समझ पाने का प्रतीक है। ईश्वर को जानने के लिए यह आवश्यक है कि पहले मनुष्य खुद को पहचाने।
कवयित्री का यह कहना है कि आत्मा में ही परमात्मा का निवास है। जब व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त कर लेता है, तब उसे परमात्मा का सच्चा ज्ञान हो जाता है। आत्मा को समझने और पहचानने के बाद ही ईश्वर को समझा जा सकता है।
Conclusion
दिए गए पोस्ट में हमने काव्य खण्ड ‘वाख’ का सारांश, पद्यांशों का भावार्थ और शब्दार्थ को जाना। ये पाठ कक्षा 9 हिंदी अ के पाठ्यक्रम में क्षितिज पुस्तक से लिया गया है। इसमें कवयित्री ललद्यद ने मानव को आत्मा और परमात्मा के गहरे संबंध का बोध कराने का प्रयास किया है और ईश्वर-प्राप्ति की राह को दिखाया है। इस पोस्ट को पढ़ने से विद्यार्थी अच्छी तरह से सीख पाएँगे कि पाठ में किस विषय के बारे में बताया गया है। परीक्षाओं में प्रश्नों को आसानी से हल करने में भी विद्यार्थियों के लिए यह पोस्ट सहायक है।