साँवले सपनों की याद पाठ सार
CBSE Class 9 Hindi Chapter 4 “Sawle Sapno Ki Yaad”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Kshitij Bhag 1 Book
साँवले सपनों की याद सार– Here is the CBSE Class 9 Hindi Kshitij Bhag 1 Chapter 4 Sawle Sapno Ki Yaad Summary with detailed explanation of the lesson ‘Sawle Sapno Ki Yaad’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
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Sawle Sapno Ki Yaad (साँवले सपनों की याद)
साँवले सपनों की याद- पाठ परिचय (Sawle Sapno Ki Yaad Introduction)
यह अध्याय साँवले सपनों की याद प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ और प्रकृति प्रेमी डॉ. सालिम अली की कहानी बताता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन पक्षियों का
अध्ययन करने और प्रकृति की रक्षा करने में बिताया। उनकी यात्रा को एक सुंदर सपने की तरह दिखाया गया है, जो जीवन और मृत्यु की शांत घाटियों से होकर गुजरता है। सालिम अली की पक्षियों और पर्यावरण के प्रति समर्पित भावना ने उन्हें खास बना दिया।
साँवले सपनों की याद- पाठ सार (Sawle Sapno Ki Yaad Summary)
डॉ. सालिम अली भारत के महान पक्षी वैज्ञानिक और प्रकृति प्रेमी थे। उन्होंने अपना जीवन पक्षियों और पर्यावरण के अध्ययन (पढ़ाई) और उसकी देखभाल में लगा दिया। बचपन में, उनकी एयरगन से घायल होकर गिरी एक छोटी गोरैया (चिड़िया) ने उनके अंदर पक्षियों के लिए एक अलग ही प्रेम जगाया। इस घटना ने मानों उनका जीवन ही बदल दिया। उन्होंने पक्षियों की दुनिया को करीब से समझा और उनकी रक्षा के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया।
सालिम अली का मानना था कि लोग पक्षियों और प्रकृति को इंसान के नजरिये से नहीं, बल्कि प्रकृति के नजरिये से देखें। उन्होंने कहा था कि जैसे लोग जंगल, पहाड़, झरने और नदियों को केवल एक संसाधन (प्रकृति से मिली चीज़ें) के रूप में देखते हैं, वैसे ही पक्षियों को भी उनके उपयोग करने के आधार पर मानते हैं। लेकिन वास्तव में, पक्षियों की मधुर आवाज़ और उनकी सुंदरता प्रकृति का वह संगीत है, जो हमें अंदर से आनंदित कर सकती है। सालिम अली इस बात को समझते थे और लोगों को प्रकृति के इस पहलू से जोड़ने की कोशिश करते थे।
उनकी जीवन यात्रा कुछ अलग ही थी। उन्होंने न केवल पक्षियों के बारे में गहरी खोज की, बल्कि उन्होंने पर्यावरण को बचाने के महत्व को भी समाज के सामने रखा। उन्होंने केरल की ‘साइलेंट वैली’ को औद्योगिक विकास (उत्पादन से जुड़े काम को और बढ़ाना) के कारण नष्ट होने से बचाने के लिए प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से मुलाकात की। उन्होंने पर्यावरण को भविष्य में होने वाले खतरों के बारे में इस तरह बताया कि चौधरी साहब की आँखें नम (आँसू आने लगे) हो गईं।
सालिम अली की पत्नी तहमीना ने भी उनके काम में उनका पूरा साथ दिया। उनकी मदद से सालिम अली को प्रकृति को समझने और एक नई दुनिया बनाने में मदद मिली। उनकी दूरबीन हमेशा उनकी आँखों पर रहती थी, और वह प्रकृति के हर कोने में छुपे हुए पक्षियों की खोज में रहते थे। उनकी मौत के बाद ही उनकी दूरबीन उनके हाथों से हटी।
सालिम अली के जीवन की सबसे बड़ी सीख यह थी कि हमें प्रकृति से सीखना चाहिए और उसके साथ सामंजस्य (तालमेल) बनाकर रहना चाहिए। उन्होंने पक्षियों को न केवल वैज्ञानिक की नज़र से देखा, बल्कि उन्हें प्रेम और सम्मान भी दिया। उनकी आत्मकथा ‘फॉल ऑफ ए स्पैरो’ उनके जीवन के अनुभवों और पक्षियों के प्रति उनके लगाव को बताती है।
आज सालिम अली हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें और उनका काम हमें यह सिखाता है कि प्रकृति हमारी माँ है, और हमें उसकी देखभाल करनी चाहिए। उनका जीवन हमें प्रेरणा देता है कि हम पर्यावरण को बचाने और पक्षियों की रक्षा के लिए कोशिश करें। प्रकृति और पक्षियों के लिए अपना पूरा जीवन लगा देना उन्हें प्रकृति के प्रेमियों के लिए एक आदर्श बनाता है।
डॉ. सालिम अली की विरासत हमें यह एहसास कराती है कि प्रकृति के बिना हमारा अस्तित्व ( मौजूदगी, जीवन) अधूरा है। उनकी दूरबीन भले ही अब शांत हो गई हो, लेकिन उनके सपनों और कोशिशों की गूँज हमेशा हमें प्रेरणा देती रहेगी।
साँवले सपनों की याद पाठ व्याख्या (Sawle Sapno Ki Yaad Lesson Explanation)
पाठ- सुनहरे परिंदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ़ अग्रसर है। कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है।
इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफ़र का बोझ उठाए। लेकिन यह सफ़र पिछले तमाम सफ़रों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की ज़िंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वो उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो ज़िंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो। कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा!
शब्दार्थ-
हुजूम – जनसमूह, भीड़
वादी – घाटी
परिंदों- पक्षी
साँवले– हल्का काला
अग्रसर – आगे बढ़ा हुआ
सैलानी- सैर का शौकीन
पलायन – दूसरी, जगह चले जाना, भागना
विलीन – अदृश्य होना, लुप्त हो जाना
हरारत – उष्णता या गर्मी, हल्का बुखार
व्याख्या- लेखक के अनुसार सुंदर और सुनहरे पंखों वाले परिंदों के साथ, सालिम अली जैसे महान व्यक्ति अपने सपनों और जीवन की यात्रा पूरी कर रहे हैं। यह यात्रा जीवन से मृत्यु की शांति भरी घाटी की ओर बढ़ रही है, जिसे कोई रोक नहीं सकता।
सालिम अली इस समूह के आगे-आगे चल रहे हैं, जैसे कोई यात्री अपने सफर का बोझ अपने कंधों पर उठाए चलता है। लेकिन यह सफर उनके पहले के सभी सफरों से अलग है। वह अब भीड़-भाड़ और तनाव भरी जिंदगी से दूर होकर अपने अंतिम पड़ाव (आखिरी ठिकाना) की ओर जा रहे हैं।
इस यात्रा की लेखक ने उस पक्षी से तुलना की है, जो अपना अंतिम गीत गाकर शांत हो जाता है और प्रकृति में विलीन हो जाता है। भले ही कोई अपनी सारी कोशिशें कर ले, वह पक्षी फिर से वापस आकर अपने गीत नहीं गा सकता। यही सालिम अली के जीवन का आखिरी चरण था, जहाँ वह हमेशा के लिए प्रकृति का हिस्सा बन गए।
पाठ- मुझे नहीं लगता, कोई इस सोए हुए पक्षी को जगाना चाहेगा। वर्षों पूर्व, खुद सालिम अली ने कहा था कि लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से देखना चाहते हैं। यह उनकी भूल है, ठीक उसी तरह, जैसे जंगलों और पहाड़ों, झरनों और आबशारों को वो प्रकृति की नज़र से नहीं, आदमी की नज़र से देखने को उत्सुक रहते हैं। भला कोई आदमी अपने कानों से पक्षियों की आवाज़ का मधुर संगीत सुनकर अपने भीतर रोमांच का सोता फूटता महसूस कर सकता है? एहसास की ऐसी ही एक ऊबड़-खाबड़ ज़मीन पर जन्मे मिथक का नाम है, सालिम अली।
शब्दार्थ-
आबशार – निर्झर, झरना
उत्सुक – बेचैन
भीतर– अंदर
सोता फूटना – यह एक मुहाबरा है, जिसका अर्थ है आनंद की अनुभूति होना
मिथक – प्राचीन पुराकथाओं का तत्व, जो नवीन स्थितियों में नए अर्थ का वहन करता है।
व्याख्या- लेखक को नहीं लगता कि कोई सोए हुए पक्षी को फिर से जगाने की कोशिश करेगा। सालिम अली ने बहुत पहले कहा था कि लोग पक्षियों को केवल इंसान की जरूरतों के हिसाब से देखते हैं, जैसे उनके बारे में यह सोचते हैं कि वे हमें क्या फायदा देंगे। यह उनकी गलती है।
उसी तरह लोग जंगलों, पहाड़ों, और झरनों को भी प्रकृति की सुंदरता के नजरिए से नहीं, बल्कि अपनी जरूरत के हिसाब से देखते हैं। लेकिन असली मजा तो तब है, जब हम पक्षियों की मीठी आवाज सुनकर और उनकी उड़ान देखकर खुद को आनंदित (खुश होता हुआ) महसूस करें।
सालिम अली ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने प्रकृति की इस सुंदरता को समझा और इसे सबको बताना चाहा। उनका जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें सिखाता है कि हमें प्रकृति को प्यार और सम्मान की नजर से देखना चाहिए।
पाठ – पता नहीं, इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भाँड़े फोड़े थे और दूध-छाली से अपने मुँह भरे थे। कब वाटिका में, छोटे-छोटे किंतु घने पेड़ों की छाँह में विश्राम किया था। कब दिल की धड़कनों को एकदम से तेज़ करने वाले अंदाज़ में बंसी बजाई थी। और, पता नहीं, कब वृंदावन की पूरी दुनिया संगीतमय हो गई थी। पता नहीं, यह सब कब हुआ था। लेकिन कोई आज भी वृंदावन जाए तो नदी का साँवला पानी उसे पूरे घटना-क्रम की याद दिला देगा। हर सुबह, सूरज निकलने से पहले, जब पतली गलियों से उत्साह भरी भीड़ नदी की ओर बढ़ती है, तो लगता है जैसे उस भीड़ को चीरकर अचानक कोई सामने आएगा और बंसी की आवाज़ पर सब किसी के कदम थम जाएँगे। हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देगा तो लगता है जैसे बस कुछ ही क्षणों में वो कहीं से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जाएगा। वृंदावन कभी कृष्ण की बाँसुरी के जादू से खाली हुआ है क्या!
शब्दार्थ-
रासलीला – कृष्ण और गोपियों की प्रेममयी लीलाएँ
शोख – चंचल
भाँड़े – बर्तन, बासन
दूध-छाली – गर्म दूध के ठंडा होने पर ऊपर जमी मलाई की परत
वाटिका- बागीचा
विश्राम – आराम
साँवला – हल्का काला, श्यामवर्ण का
हिदायत – रास्ता दिखाना
व्याख्या- लेखक के अनुसार हमें यह नहीं पता कि भगवान कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला कब रची थी, कब उन्होंने अपनी शरारतों से गोपियों को हँसाया था, कब माखन के भरे बर्तन फोड़े थे, और कब उन्होंने बांसुरी बजाई थी, जिससे सबकी दिल की धड़कनें तेज हो गई थीं। यह सब बहुत पहले हुआ होगा, लेकिन आज भी वृंदावन में वह जादू महसूस किया जा सकता है।
अगर कोई आज भी वृंदावन जाए और वहाँ की साँवली यमुना नदी को देखे, तो उसे वह पुरानी कहानियाँ याद आ जाएँगी। सुबह-सुबह, जब लोग नदी की ओर जाते हैं, तो ऐसा लगता है कि किसी भी पल कृष्ण प्रकट होकर अपनी बाँसुरी बजाएँगे और सब रुककर उसे सुनने लगेंगे।
शाम को, जब बगीचे का माली पर्यटकों को निर्देश देता है, तब भी ऐसा महसूस होता है कि कृष्ण कहीं से आकर अपनी बाँसुरी का जादू फैला देंगे। वृंदावन हमेशा कृष्ण की बाँसुरी की मधुर धुन से भरा हुआ लगता है, और यह जादू कभी खत्म नहीं होता।
पाठ- मिथकों की दुनिया में इस सवाल का जवाब तलाश करने से पहले एक नज़र कमज़ोर काया वाले उस व्यक्ति पर डाली जाए जिसे हम सालिम अली
के नाम से जानते हैं। उम्र को शती तक पहुँचने में थोड़े ही दिन तो बच रहे थे। संभव है, लंबी यात्राओं की थकान ने उनके शरीर को कमज़ोर कर दिया हो, और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी उनकी मौत का कारण बनी हो। लेकिन अंतिम समय तक मौत उनकी आँखों से वह रोशनी छीनने में सफल नहीं हुई जो पक्षियों की तलाश और उनकी हिफ़ाज़त के प्रति समर्पित थी। सालिम अली की आँखों पर चढ़ी दूरबीन उनकी मौत के बाद ही तो उतरी थी।
शब्दार्थ –
मिथक – प्राचीन पुराकथाओं का तत्व, जो नवीन स्थितियों में नए अर्थ का वहन करता है।
शती – सौ वर्ष का समय
हिफ़ाज़त – रक्षा करना
दूरबीन – दूर तक देखनेवाला यंत्र
व्याख्या- लेखक के अनुसार किसी सवाल का जवाब ढूँढने से पहले हमें सालिम अली नाम के उस व्यक्ति को समझना चाहिए, जो दिखने में कमजोर और साधारण लगते थे। उनकी उम्र सौ साल होने के करीब थी। लंबी यात्राओं की वजह से उनका शरीर थक गया था, और उन्हें कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी हो गई थी, जिससे उनकी मौत हो गई।
लेकिन उनकी बीमारी और मौत भी उनकी आँखों से वह चमक नहीं छीन सकी, जो पक्षियों को खोजने और उनकी सुरक्षा के लिए थी। उनकी आँखों पर हमेशा दूरबीन रहती थी, जिससे वह पक्षियों को देख पाते थे। यह दूरबीन उनके मरने के बाद ही हटी। इसका मतलब है कि वे आखिरी पल तक पक्षियों से जुड़े हुए थे। सालिम अली की पूरी ज़िंदगी पक्षियों के प्रति उनके गहरे प्रेम और समर्पण (अपना सब कुछ दे देना) का उदाहरण थी, और उनकी दूरबीन जैसे उनके इस जुनून (पागलपन, सनक) की पहचान बन गई थी।
पाठ – उन जैसा ‘बर्ड वाचर’ शायद ही कोई हुआ हो। लेकिन एकांत क्षणों में सालिम अली बिना दूरबीन भी देखे गए हैं। दूर क्षितिज तक फैली ज़मीन और झुके आसमान को छूने वाली उनकी नज़रों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था, जो प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता है। सालिम अली उन लोगों में थे जो प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाए प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं। उनके लिए प्रकृति में हर तरफ़ एक हँसती-खेलती रहस्य भरी दुनिया पसरी थी। यह दुनिया उन्होंने बड़ी मेहनत से अपने लिए गढ़ी थी। इसके गढ़ने में उनकी जीवन-साथी तहमीना ने काफ़ी मदद पहुँचाई थी। तहमीना स्कूल के दिनों में उनकी सहपाठी रही थीं।
शब्दार्थ-
बर्ड वाचर (Bird Watcher) – जो व्यक्ति पक्षियों को देखता है या पक्षियों को देखना पसंद करता है।
एकांत – अकेला, अलग
क्षितिज – वह स्थान जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते दिखाई देते हैं।
कायल – स्वीकार करने वाला
गढ़ना – बनाना
सहपाठी – साथ पढ़नेवाला।
व्याख्या – सालिम अली एक ऐसे अद्भुत ‘बर्ड वॉचर’ थे, जिनका मुकाबला करना मुश्किल है। हालाँकि, कई बार वे बिना दूरबीन के भी प्रकृति का आनंद लेते हुए देखे गए। उनकी नजरें इतनी खास थीं कि वे दूर तक फैले मैदानों और आसमान की खूबसूरती को देखती थीं, जैसे उनकी आँखों में कोई जादू हो।
सालिम अली प्रकृति को केवल देखने वाले नहीं थे, बल्कि वे प्रकृति को अपने खास तरीके से समझने और उसकी गहराई में जाने वाले व्यक्ति थे। वे प्रकृति के प्रभाव में न आकर, प्रकृति को अपने प्रभाव में लाते थे। कहने का मतलब वे प्रकृति को प्रभावित कर देते थे। उनके लिए प्रकृति एक खुशहाल और रहस्यमयी दुनिया थी, जिसे उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से समझा।
इस सफर में उनकी पत्नी तहमीना ने उनका बहुत साथ दिया। तहमीना उनके स्कूल के समय की सहपाठी थीं और जीवन भर उनकी साथी बनी रहीं। उनके समर्थन (सहारा) और सहयोग से सालिम अली ने अपनी खास दुनिया बनाई।
पाठ – अपने लंबे रोमांचकारी जीवन में ढेर सारे अनुभवों के मालिक सालिम अली एक दिन केरल की ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवा के झोंकों से बचाने का अनुरोध लेकर चौधरी चरण सिंह से मिले थे। वे प्रधानमंत्री थे। चौधरी साहब गाँव की मिट्टी पर पड़ने वाली पानी की पहली बूँद का असर जानने वाले नेता थे। पर्यावरण के संभावित खतरों का जो चित्र सालिम अली ने उनके सामने रखा, उसने उनकी आँखों नम कर दी थीं।
आज सालिम अली नहीं हैं। चौधरी साहब भी नहीं हैं। कौन बचा है, जो अब सोंधी माटी पर उगी फसलों के बीच एक नए भारत की नींव रखने का संकल्प लेगा? कौन बचा है, जो अब हिमालय और लद्दाख की बरफ़ीली ज़मीनों पर जीने वाले पक्षियों की वकालत करेगा?
शब्दार्थ –
रोमांचकारी जीवन – रोंगटे खड़े कर देनेवाला, मजा आ जाने वाला
साइलेंट वैली – साइलेंट वैली नेशनल पार्क पालक्कड जिले केरल में स्थित है।
सोंधी – सुगंधित, मिट्टी पर पानी पड़ने से उठने वाली गंध
संकल्प – दृढ़ निश्चय, विचार, इरादा
वकालत – प्रस्ताव का समर्थन करने की क्रिया
व्याख्या- सालिम अली, अपने रोमांचक और प्रेरणादायक जीवन में, अनगिनत अनुभवों से धनवान् थे। एक बार वे केरल की ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवाओं से बचाने की प्रार्थना लेकर प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से मिलने गए। चौधरी साहब, जो गाँव की मिट्टी और उसकी खुशबू को गहराई से समझते थे, पर्यावरण पर होने वाले खतरों की तस्वीर सुनकर उनकी आँखों में आँसू आ गए। सालिम अली ने उनके दिल में प्रकृति के प्रति भावना और चिंता जगा दी थी।
लेकिन अब न सालिम अली इस दुनिया में हैं और न ही चौधरी चरण सिंह। सवाल उठता है कि अब कौन आगे आएगा? कौन वह व्यक्ति होगा जो धरती की सोंधी मिट्टी और उसमें उगने वाली फसलों के बीच नए भारत की नींव रखने का सपना देखेगा? कौन हिमालय और लद्दाख की बर्फीली वादियों में रहने वाले पक्षियों के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए लड़ाई लड़ेगा? यह सवाल हमारे भविष्य के लिए सोचने पर मजबूर करता है।
पाठ – सालिम अली ने अपनी आत्मकथा का नाम रखा था ‘फॉल ऑफ ए स्पैरो’ (Fall of a Sparrow)। मुझे याद आ गया, डी एच लॉरेंस की मौत के बाद लोगों ने उनकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से अनुरोध किया कि वह अपने पति के बारे में कुछ लिखे। फ्रीडा चाहती तो ढेर सारी बातें लॉरेंस के बारे में लिख सकती थी। लेकिन उसने कहा – मेरे लिए लॉरेंस के बारे में कुछ लिखना असंभव-सा है। मुझे महसूस होता है, मेरी छत पर बैठने वाली गोरैया लॉरेंस के बारे में ढेर सारी बातें जानती है मुझसे भी ज़्यादा जानती है। वो सचमुच इतना खुला-खुला और सादा-दिल आदमी था। मुमकिन है, लॉरेंस मेरी रगों में, मेरी हड्डियों में समाया हो। लेकिन मेरे लिए कितना कठिन है, उसके बारे में अपने अनुभवों को शब्दों का जामा पहनाना। मुझे यकीन है, मेरी छत पर बैठी गोरैया उसके बारे में, और हम दोनों ही के बारे में, मुझसे ज़्यादा जानकारी रखती है।
शब्दार्थ-
आत्मकथा- अपनी खुद की कहानी
अनुरोध – प्रार्थना
असंभव – मुश्किल, जो हो न सके
गोरैया – चिड़िया
व्याख्या- सालिम अली ने अपनी आत्मकथा का नाम रखा था ‘फॉल ऑफ ए स्पैरो’। यह नाम जैसे उनके जीवन और पक्षियों के प्रति उनके गहरे लगाव को पूरी तरह बताता है। उनकी आत्मकथा न केवल उनके जीवन की कहानी है, बल्कि प्रकृति और पक्षियों के साथ उनके जुड़ाव को भी बताती है।
यह बात सुनकर डी.एच. लॉरेंस की पत्नी, फ्रीडा लॉरेंस की एक बात याद आती है। जब लोगों ने फ्रीडा से आग्रह किया कि वह अपने पति के बारे में कुछ लिखें, तो उन्होंने इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि उनके लिए लॉरेंस के बारे में लिखना नामुमकिन है। फ्रीडा ने कहा कि उनकी छत पर बैठने वाली गोरैया शायद लॉरेंस को उनसे भी बेहतर समझती थी। लॉरेंस इतने खुले और सादगी भरे इंसान थे कि उनका व्यक्तित्व (व्यक्ति की विशेषता या गुण) केवल शब्दों में बांधना मुश्किल था।
फ्रीडा ने महसूस किया कि लॉरेंस उनके भीतर, उनकी रगों और हड्डियों में समाए हुए हैं। लेकिन उनके जीवन और अनुभवों को लिखित रूप में बताना कितना कठिन है। उन्होंने कहा कि उनकी छत पर बैठने वाली गोरैया उनके और लॉरेंस के बारे में शायद उनसे अधिक जानती है। यह विचार हमें इस बात का अहसास कराता है कि सादगी और सरलता में छिपे हुए गहरे अर्थों को बताना हमेशा आसान नहीं होता।
पाठ – जटिल प्राणियों के लिए सालिम अली हमेशा एक पहेली बने रहेंगे। बचपन के दिनों में, उनकी एयरगन से घायल होकर गिरने वाली, नीले कंठ की वह गोरैया सारी ज़िंदगी उन्हें खोज के नए-नए रास्तों की तरफ़ ले जाती रही। ज़िंदगी की ऊँचाइयों में उनका विश्वास एक क्षण के लिए भी डिगा नहीं। वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक ज़िंदगी का प्रतिरूप बन गये थे।
सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे। जो लोग उनके भ्रमणशील स्वभाव और उनकी यायावरी से परिचित हैं, उन्हें महसूस होता है कि वो आज भी पक्षियों के सुराग में ही निकले हैं, और बस अभी गले में लंबी दूरबीन लटकाए अपने खोजपूर्ण नतीजों के साथ लौट आएँगे।
जब तक वो नहीं लौटते, क्या उन्हें गया हुआ मान लिया जाए!
मेरी आँखें नम हैं, सालिम अली, तुम लौटोगे ना!
शब्दार्थ-
जटिल– कठिन
एयरगन – हवाई बन्दूक, जिसमें बारूद का उपयोग नहीं होता
डिगना – हिलना, हटना
नैसर्गिक – सहज, स्वाभाविक
प्रतिरूप – प्रतिमा, मूर्ति
यायावरी – यात्रा करने वाला, घुमक्कड़ी
सुराग – निशान, सबूत
व्याख्या- सालिम अली कठिन प्राणियों के लिए हमेशा एक रहस्य बने रहेंगे। उनके बचपन का एक छोटा-सा अनुभव—जब उनकी एयरगन से घायल होकर नीले कंठ वाली एक गोरैया गिरी—ने उन्हें पूरी जिंदगी प्रकृति की गहराईयों में खोज और शोध की ओर प्रेरित किया। यह छोटी-सी घटना उनके जीवन का सहारा बन गई और उनकी खोज को नए रास्तों पर ले गई।
सालिम अली का प्रकृति के प्रति अटूट विश्वास कभी नहीं डगमगाया। वह डी.एच. लॉरेंस की तरह प्राकृतिक जीवन के प्रतीक बन गए। लेकिन वे केवल एक अलग-थलग द्वीप नहीं बने; उन्होंने प्रकृति के विशाल सागर के रूप में अपना स्थान बनाया।
जो लोग उनके घूमने-फिरने और उनके घुमक्कड़ी स्वभाव को जानते हैं, वे अक्सर महसूस करते हैं कि सालिम अली अब भी पक्षियों के रहस्यों को उजागर करने के लिए निकले हैं। ऐसा लगता है कि वह किसी भी पल, गले में लंबी दूरबीन लटकाए, अपने नए खोजपूर्ण परिणाम के साथ वापस आ जाएँगे। उनकी यह छवि और जानने की इच्छा आज भी उन्हें अमर बना देती है
अंत में भावुक होते हुए लेखक कहता है-
जब तक वह व्यक्ति वापस नहीं लौटता, क्या उसे हमेशा के लिए खो दिया हुआ मान लिया जाए। यह वाक्य असमंजस और दुःख से भरा है।
लेखक की आँखें नम हैं, जो उसके मन में छुपे दर्द और भावनाओं को प्रकट करती हैं। वह (सालिम अली से यह पूछ रहा है कि क्या वह लौटेगा। इसमें प्रतीक्षा और उम्मीद की भावना है, जो उस सालिम अली के लौटने की आस को व्यक्त करती है।
Conclusion
दिए गए पोस्ट में हमने ‘साँवले सपनों की याद’ नामक पाठ का सारांश, पाठ व्याख्या और शब्दार्थ को जाना। ये पाठ कक्षा 9 हिंदी अ के पाठ्यक्रम में क्षितिज पुस्तक से लिया गया है। जाबिर हुसैन ने यह डायरी लेखन महान पक्षी प्रेमी डॉ. सालिम अली की मृत्यु के पश्चात किया था, जिसमें उन्होंने डॉ. सालिम अली का पक्षियों और पर्यावरण के प्रति असीम प्रेम को बताया है।
इस पोस्ट की सहायता से विद्यार्थी पाठ को अच्छे से समझ सकते हैं और इम्तेहान में प्रश्नों के हल अच्छे से लिख सकने में सहायता भी मिलेगी।