Kim Kim Upadeyam Manika Bhag 2 Sanskrit Class 10 Chapter 3 Question Answers – Sanskrit Class 10 NCERT Solutions
Class 10 – कक्षा 10वीं
Sanskrit Manika Bhag 2 – संस्कृत (मणिका भाग-2)
Kim Kim Upadeyam Chapter 3 – पाठ 3 किं किम् उपादेयम्
Kim Kim Upadeyam Exercises of the lesson
पाठ्यपुस्तकस्य अभ्यासः (अनुप्रयोगः)
प्रश्न 1 – अत्र ‘क’ स्तम्भे सप्त प्रश्नाः ‘ख’ स्तम्भे च षट् उत्तराणि मञ्जूषायां मिश्रीकृत्य लिखितानि। यस्य प्रश्नस्य उत्तरम् अत्र न लिखितम् तम् प्रश्नम् रेखाङ्कितं कुरुत –
| प्रश्नाः | उत्तराणि |
(क) | किमुपादेयम्? | विवेकी |
(ख) | किं जिवितम्? | मुर्खत्वम् |
(ग) | को जागर्ति? | सत्यप्रियभाषिणो विनीतस्य |
(घ) | का सुखदा? | गुरुवचनम् |
(ङ) | किं मरणम्? | अनवद्यम् |
(च) | क्व स्थातव्यम्? | साधुजनमैत्री |
(छ) | कस्य वशे प्राणिगणः? |
|
उत्तराणि-
| प्रश्नाः | उत्तराणि |
(क) | किमुपादेयम्? | गुरुवचनम् |
(ख) | किं जिवितम्? | अनवद्यम् |
(ग) | को जागर्ति? | विवेकी |
(घ) | का सुखदा? | साधुजनमैत्री |
(ङ) | किं मरणम्? | मुर्खत्वम् |
(च) | क्व स्थातव्यम्? | न्याय्ये पथि दृष्टादृष्टलाभाढ्ये |
(छ) | कस्य वशे प्राणिगणः? | सत्यप्रियभाषिणो विनीतस्य |
प्रश्न 2 – पाठम् आश्रित्य उदाहरणानुसारं समुचितपदेन रिक्तस्थानानि पूर्यन्ताम्-
यथा- | गुरोः वचनम् एव | उपादेयम्। |
(क) | कुकर्म एव | —————— |
(ख) | गुरूणाम् तिरस्करणम् एव | —————— |
(ग) | पठितम् परं न अभ्यस्तम् एव | —————— |
(घ) | मानः एव | —————— |
(ङ) | मूर्खत्वम् एव | —————— |
(च) | शशिनः किरणसमाः एव | —————— |
(छ) | अवसरे दत्तम् एव | —————— |
(ज) | प्रच्छन्नं यत् पापं कृत तदेव | —————— |
उत्तराणि-
यथा- | गुरोः वचनम् एव | उपादेयम्। |
(क) | कुकर्म एव | हेयम् |
(ख) | गुरूणाम् तिरस्करणम् एव | विषम् |
(ग) | पठितम् परं न अभ्यस्तम् एव | जाड्यम् |
(घ) | मानः एव | अनर्थफलः |
(ङ) | मूर्खत्वम् एव | मरणम् |
(च) | शशिनः किरणसमाः एव | सज्जनाः |
(छ) | अवसरे दत्तम् एव | अनर्घम् |
(ज) | प्रच्छन्नं यत् पापं कृत तदेव | शल्यम् |
प्रश्न 3 – निम्नलिखितानाम् उत्तराणाम् समक्षम् पाठात् विचित्य प्रश्नाः लेखनियाः –
यथा | सज्जनाः एव शशिकिरणसमाः भवन्ति। | के शशिकिरणसमाः भवन्ति? |
| उत्तराणि | प्रश्नाः |
(क) | ज्ञानं लब्ध्वा छात्रकल्याणाय सर्वदैव तत्परः गुरुः कथ्यते। | ———————————— |
(ख) | यः मनसा पूतं समाचरति सः शुचिः। | ———————————— |
(ग) | सतः असतश्च ज्ञाता नरः पण्डितः। | ———————————— |
(घ) | गुरूणाम् तिरस्करणम् संसारे विषम्। | ———————————— |
(ङ) | अस्मिन् लोके यः सत्यवादी, प्रियवादी च तस्य वशे सर्वे जनाः। | ———————————— |
(च) | प्राणिनां मूढता निद्रा कथिता। | ———————————— |
(छ) | लाभप्राचुर्यम् अगणयित्वा न्यायपुर्णमार्गे एव स्थातव्यम्। | ———————————— |
(ज) | त्यागी एव सर्वासाम् विपदाम् विनाशं कर्तुम् समर्थः। | ———————————— |
उत्तराणि-
यथा | सज्जनाः एव शशिकिरणसमाः भवन्ति। | के शशिकिरणसमाः भवन्ति? |
| उत्तराणि | प्रश्नाः |
(क) | ज्ञानं लब्ध्वा छात्रकल्याणाय सर्वदैव तत्परः गुरुः कथ्यते। | कः गुरुः कथ्यते? |
(ख) | यः मनसा पूतं समाचरति सः शुचिः। | कः शुचिः? |
(ग) | सतः असतश्च ज्ञाता नरः पण्डितः। | कः पण्डितः? |
(घ) | गुरूणाम् तिरस्करणम् संसारे विषम्। | किम् विषम्? |
(ङ) | अस्मिन् लोके यः सत्यवादी, प्रियवादी च तस्य वशे सर्वे जनाः। | कस्य वशे प्राणिगणः? |
(च) | प्राणिनां मूढता निद्रा कथिता। | का निद्रा? |
(छ) | लाभप्राचुर्यम् अगणयित्वा न्यायपुर्णमार्गे एव स्थातव्यम्। | क्व स्थातव्यम्? |
(ज) | त्यागी एव सर्वासाम् विपदाम् विनाशं कर्तुम् समर्थः। | सर्वव्यसनविनाशे कि दक्षः? |
प्रश्न 4 – अत्र ग्राह्याः गुणाः, त्याज्याः दोषाः च कोष्ठेषु लिखिताः। दोषयुक्तानि कोष्ठानि (x) इति चिह्नेन चिह्नितानि कुरुत –
गुरुवचनम् | गुरुनिन्दा | तत्त्वज्ञता | मूढता |
धर्मः | विवेकः | चञ्चलता | शिष्यहितम् |
सज्जनता | शुद्धं मनः | कीर्तिः | संग्रहः |
त्यागः | अनभ्यासः | अपयशः | मूर्खत्वम् |
अभ्यासः | साधुजनमैत्री | गुप्तपापम् | अभिमानः |
उत्तराणि-
गुरुवचनम् | गुरुनिन्दा (X) | तत्त्वज्ञता | मूढता(X) |
धर्मः | विवेकः | चञ्चलता(X) | शिष्यहितम् |
सज्जनता | शुद्धं मनः | कीर्तिः | संग्रहः (X) |
त्यागः | अनभ्यासः (X) | अपयशः (X) | मूर्खत्वम् (X) |
अभ्यासः | साधुजनमैत्री | गुप्तपापम्(X) | अभिमानः(X) |
प्रश्न 5 – अधोलिखितानाम् आकृतीनाम् अधः पाठात् चित्वा समुचितप्रश्नोत्तरम् लिखत –
यथा – (क)
प्रश्न – कमलपत्रे स्थितं जलवत् किं तरलम्? |