कैदी और कोकिला पाठ सार
CBSE Class 9 Hindi Chapter 10 “Kaidi Aur Kokila”, Line by Line Explanation along with Difficult Word Meanings from Kshitij Bhag 1 Book
कैदी और कोकिला सार – Here is the CBSE Class 9 Hindi Kshitij Bhag 1 Chapter 10 Kaidi Aur Kokila Summary with detailed explanation of the lesson ‘Kaidi Aur Kokila’ along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary
इस पोस्ट में हम आपके लिए सीबीएसई कक्षा 9 हिंदी कोर्स ए क्षितिज भाग 1 के पाठ 10 कैदी और कोकिला पाठ सार , पाठ व्याख्या और कठिन शब्दों के अर्थ लेकर आए हैं जो परीक्षा के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण है। हमने यहां प्रारंभ से अंत तक पाठ की संपूर्ण व्याख्याएं प्रदान की हैं क्योंकि इससे आप इस कहानी के बारे में अच्छी तरह से समझ सकें। चलिए विस्तार से सीबीएसई कक्षा 9 कैदी और कोकिला पाठ के बारे में जानते हैं।
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Kaidi Aur Kokila (कैदी और कोकिला)
कैदी और कोकिला पाठ परिचय Kaidi Aur Kokila Introduction
यह कविता एक स्वतंत्रता सेनानी की भावनाओं को व्यक्त करती है, जो ब्रिटिश शासन की कैद में रहते हुए अपनी पीड़ा और संघर्ष को दर्शाता है। कवि जेल की कठिनाईयों और अन्याय का वर्णन करता है, जहाँ कैदियों को न ठीक से जीने दिया जाता है और न ही मरने दिया जाता है।
कवि कोयल को एक प्रतीक के रूप में देखता है—एक ऐसा पक्षी जो स्वतंत्रता और क्रांति का संदेश देती है। वह जेल के अंधेरे, अत्याचार और ब्रिटिश सरकार के दमन को कोयल के गीत से जोड़ता है। उसे लगता है कि कोयल अपने मधुर स्वर में क्रांति की आग भड़का रही है।
इस प्रकार, यह कविता केवल एक कैदी की व्यथा नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक भी है, जो संघर्ष, आशा और क्रांति का संदेश देती है।
कैदी और कोकिला पाठ सार Kaidi Aur Kokila Summary
कविता कैदी और कोकिला में माखनलाल चतुर्वेदी ने भारतीय उपनिवेशवाद (किसी दूसरे देश या क्षेत्र पर नियंत्रण करके उसका शोषण करना) के शोषण तंत्र का गहरा विश्लेषण किया है और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सन्दर्भ में जेल में बंद क्रांतिकारियों की यातनाओं और संघर्षों को चित्रित किया है। यह कविता भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संघर्ष और दमन के दौर में लिखी गई है, जिसमें कवि ने अपनी पीड़ा, असंतोष, और ब्रिटिश शासन के प्रति आक्रोश को व्यक्त किया है।
कविता के प्रारंभ में कवि कोयल से सवाल करता है कि वह क्यों गा रही है, क्या संदेश दे रही है। कवि समझता है कि कोयल भी अब पूरे देश को एक कारागार के रूप में देख रही है, और इसलिए वह अर्द्धरात्रि में चीख उठती है। कोयल की आवाज़ में जो दुःख और क्रोध है, वह ब्रिटिश शासन के अत्याचार और शोषण का प्रतीक है।
कवि जेल के भीतर की भयावह स्थिति का वर्णन करता है, जहाँ ऊँची काली दीवारों के बीच डाकू, चोरों और मार्ग में मारकर छीन लेनेवालों का बसेरा है। उसे जीने के लिए भी ठीक से खाना नहीं मिलता और मरने तक की स्थिति आ जाती है। कवि अपने जीवन की निराशाजनक स्थिति पर सवाल उठाता है कि क्या यह केवल रात का अंधकार है या फिर ब्रिटिश शासन का गहरा प्रभाव है, जिसने हर ओर अंधकार फैला दिया है। वह यह भी पूछता है कि इस काली रात में कोयल क्यों गा रही है, जबकि यह समय मधुर गीतों का नहीं, बल्कि मुक्ति के गीत गाने का है।
कविता में कवि के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि जेल में बंद स्वतंत्रता सेनानी न केवल शारीरिक रूप से प्रताड़ित (मानसिक वेदना पहुँचाना) हैं, बल्कि मानसिक रूप से भी अत्याचारों का सामना कर रहे हैं। वह ब्रिटिश शासन के शोषण को एक जेल की तरह अनुभव करता है, जिसमें उसके पास कोई स्वतंत्रता नहीं है। कवि ने अपनी पीड़ा और दुख को व्यक्त किया है, जिसे कोयल की आवाज़ के माध्यम से बताया गया है।
कवि यह भी कहता है कि उसे अपनी हालत में कोई सुधार की उम्मीद नहीं दिखती, और उसके जीवन की जो जंजीरें हैं, वे ब्रिटिश शासन का प्रतीक हैं। उसे लगता है कि उसकी पीड़ा और संघर्ष में कोई भी बदलाव नहीं आएगा। यह स्थिति केवल एक निराशा की स्थिति नहीं, बल्कि एक विद्रोह और संघर्ष का बुलावा है।
कविता के अंत में कवि कोयल से सवाल करता है कि वह क्यों गा रही है, क्या वह चुपचाप विद्रोह के बीज बो रही है? कवि के लिए कोयल का गाना एक विद्रोह का प्रतीक है, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक आंदोलन का संकेत है। कविता में अंतिम पंक्तियाँ भारत और ब्रिटिश शासन के बीच के अंतर को स्पष्ट करती हैं। जहाँ कोयल को हरियाली और स्वतंत्रता मिली है, वहीं कवि को केवल काली कोठरी और बंदीगृह ही मिला है।
कुल मिलाकर, यह भारतीय उपनिवेशवाद के विरोध में एक गहरी सामाजिक और राजनीतिक कविता है। यह न केवल ब्रिटिश शासन के दमन के खिलाफ एक जागरूकता का संदेश देती है, बल्कि स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष और पीड़ा का भी गवाह है। कवि ने अपनी कविता के माध्यम से विद्रोह, संघर्ष और मुक्ति के गीतों को प्रेरित किया है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रतीक बन गए हैं।
कैदी और कोकिला व्याख्या और शब्दार्थ Kaidi Aur Kokila Poem Explanation
1
क्या गाती हो?
क्यों रह-रह जाती हो?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो?
संदेशा किसका है?
कोकिल बोलो तो!
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट-भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना!
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव गहरा है?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली?
शब्दार्थ-
कोकिल- कोयल (यहाँ विद्रोह और क्रांति का प्रतीक)
बटमार – रास्ते में यात्रियों को लूट लेने वाला
तम- अन्धकार
हिमकर – चंद्रमा
कालिमामयी- काली
आली- सखी
व्याख्या- कवि आधी रात में कोयल की आवाज़ सुनकर चौंक उठता है और बेचैनी से उससे पूछता है कि वह बार-बार क्यों गा रही है और उसके इस गीत का क्या अर्थ है। वह जानना चाहता है कि क्या उसमें कोई संदेश या विशेष प्रेरणा छिपी है और यदि ऐसा है, तो वह संदेश किसका है। अंत में, वह कोयल से आग्रह करता है कि वह स्पष्ट रूप से इस बात को बताए।
इसके बाद कवि अपने कारागार की दयनीय स्थिति का वर्णन करता है। वह कहता है कि वह जिस स्थान पर कैद है, वह मनुष्य के जीने योग्य नहीं है। वहाँ की दीवारें ऊँची और भयानक रूप से काली हैं। चारों ओर अपराधियों, चोरों और डाकुओं का बसेरा है। जेल में कैदियों को जीने लायक भोजन भी नहीं मिलता, भरपेट भोजन की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। भूख और अत्याचार से मन और शरीर तड़पकर रह जाता है। अंग्रेज सिपाही न तो मरने देते हैं और न ही ठीक से जीने देते हैं। हर ओर कड़ा पहरा है, जिससे मुक्ति की कोई आशा नहीं बची है। कवि सोचता है कि चारों ओर जो गहरा अंधकार फैला है, वह केवल रात का अंधेरा है या फिर अंग्रेजी शासन का कष्टदायक प्रभाव, जिसने सब कुछ निराशा में डुबो दिया है। उसे लगता है कि यह अंधकार इतना गहरा है कि आशा रूपी चंद्रमा भी हारकर अपना प्रकाश खो चुका है। अंत में, वह कोयल से पूछता है कि इस घोर अंधकार और निराशा के समय में वह क्यों जाग रही है और क्या वह कोई महत्वपूर्ण संदेश देना चाहती है।
2
क्यों हूक पड़ी ?
वेदना बोझ वाली-सी;
कोकिल बोलो तो!
क्या लूटा?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो!
क्या हुई बावली?
अर्द्धरात्रि को चीखी,
कोकिल बोलो तो!
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं?
कोकिल बोलो तो!
शब्दार्थ-
हूक- कसक या पीड़ा युक्त आवाज़
वेदना- पीड़ा
मृदुल- कोमल
वैभव- समृद्धि
बावली- पागल
अर्द्धरात्रि- आधी रात
दावानल – जंगल की आग
ज्वालाएँ- आग की लपटें
व्याख्या- कवि कोयल की पीड़ा भरी आवाज़ सुनकर चौंक जाता है और उससे प्रश्न करता है कि उसकी तान में इतना दुःख क्यों झलक रहा है। वह पूछता है कि यह कैसी हूक (गहरी पीड़ा) है जो उसकी कूक में सुनाई दे रही है। क्या कोई भारी दुःख या संकट उस पर आ पड़ा है? कवि कोयल से आग्रह करता है कि वह बताए कि आखिर ऐसा क्या हुआ है जिससे उसकी आवाज़ इतनी दर्द भरी हो गई है। इसके बाद, कवि कोयल से पूछता है कि क्या उसका कोई बहुमूल्य सुख या संपत्ति लुट गई है, जिसके कारण वह इतनी बेचैन हो उठी है? क्या वह अपनी मधुरता और वैभव की रखवाली नहीं कर पाई और अब उस अपार दुःख को व्यक्त कर रही है? कोयल, जो अपनी कोमल और मधुर तान के लिए जानी जाती है, अचानक इतनी दुखी क्यों हो गई?
फिर कवि आश्चर्यचकित होकर पूछता है कि कोयल अचानक इतनी बावली (पागल सी) क्यों हो गई? आधी रात के इस सन्नाटे में वह इतनी जोर से क्यों चीख रही है? क्या उसने किसी भयंकर संकट या विनाश को देख लिया है? क्या उसे किसी जंगल की आग की भयंकर लपटें दिख रही हैं? अंत में, कवि फिर से कोयल से आग्रह करता है कि वह स्पष्ट रूप से बताए कि उसकी इस पीड़ा और व्याकुलता का कारण क्या है।
3
क्या?- देख न सकती जंजीरों का गहना?
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश-राज का गहना,
कोल्हू का चर्रक चूँ?-जीवन की तान,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान!
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली,
इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली?
इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो!
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो?
कोकिल बोलो तो।
शब्दार्थ-
जंजीर – बेड़ियाँ, हथकड़ियाँ
गहना – आभूषण, जेवर
हथकड़ी – हाथ में पहनाई जाने वाली जंजीर
ब्रिटिश-राज – ब्रिटिश शासन
कोल्हू – बैलों द्वारा चलाया जाने वाला तेल निकालने का यंत्र
चर्रक-चूँ – कोल्हू की आवाज़
तान – संगीत की धुन या स्वर
गिट्टी – छोटे पत्थर
अँगुली – हाथ की उंगली
मोट – पुर चरसा (चमड़े का डोल जिससे कुँए आदि से पानी निकाला जाता है।)
जूआ (जुआ) – बैलों के कंधों पर रखी जाने वाली लकड़ी
अकड़ – घमंड, अभिमान
कूँआ – कुआँ (जल स्रोत), यहाँ शोषण का प्रतीक
करुणा – दया, संवेदना
गज़ब ढाना – अत्याचार करना
आली – रानी, शासक वर्ग
अंधकार – अँधेरा, अज्ञान
बेध – चीरना, पार करना
मधुर विद्रोह-बीज – मीठे शब्दों में क्रांति का संदेश
भाँति – प्रकार, तरीके
व्याख्या- कवि कोयल से पूछता है कि क्या वह रात में रोकर यह जताना चाहती है कि उसे हमारी ये बेड़ियाँ पसंद नहीं हैं? अगर वह इन जंजीरों को दुख और बंधन का प्रतीक मान रही है, तो उसे समझना चाहिए कि ये बेड़ियाँ हमारे लिए गुलामी का प्रतीक नहीं, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ हमारे संघर्ष का सम्मान हैं। हमने इन्हें खुशी-खुशी स्वीकार किया है, क्योंकि ये स्वतंत्रता सेनानियों के लिए गहनों की तरह हैं। हमें गर्व है कि हम जेल में रहकर भी अपने लक्ष्य से नहीं हटे। कवि आगे कहता है कि जेल में कोल्हू की चरमराती आवाज़ अब हमारे लिए संगीत बन चुकी है। हम पत्थरों को तोड़ते हुए अपने हाथों से आज़ादी का गीत लिख रहे हैं। जिस तरह हम कठोर पत्थरों को टुकड़ों में बदल देते हैं, उसी तरह हम एक दिन ब्रिटिश शासन को भी नष्ट कर देंगे। मैं अपने शरीर पर भारी बोझ लिए कोल्हू चला रहा हूँ, लेकिन असल में मैं ब्रिटिश शासन के अहंकार को धीरे-धीरे खत्म कर रहा हूँ। इसके बाद, कवि कोयल के गाने का अर्थ समझ जाता है। वह कहता है कि दिन में जब हम संघर्ष और यातनाओं में डूबे होते हैं, तब हम तुम्हारी मधुर आवाज़ नहीं सुन पाते। लेकिन अब समझ आया कि रात में जब चारों ओर शांति है, तब तुम हमारी पीड़ा को कम करने और हमें हिम्मत देने आई हो। कवि कोयल से पूछता है कि क्या उसकी ध्वनि सिर्फ एक सामान्य गीत है, या वह सच में हमारे भीतर विद्रोह की आग जगा रही है? क्या वह हमें संघर्ष और स्वतंत्रता के लिए प्रेरित कर रही है? कवि व्याकुलता से कोयल से उत्तर माँगता है—”कोयल, बोलो तो!”
4
काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली, कमली काली,
मेरी लौह-शृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली!
इस काले संकट-सागर पर
मरने की, मदमाती!
कोकिल बोलो तो!
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती!
कोकिल बोलो तो!
शब्दार्थ-
काली – काला रंग
रजनी – रात्रि, रात
शासन – सरकार, सत्ता
करनी – कर्म, कार्य
लहर – तरंग, प्रभाव
कल्पना – विचार, सोच
काल कोठरी – अंधकारमय कारागार, जेल
कमली – ऊनी चादर
लौह-शृंखला – लोहे की जंजीरें, बेड़ियाँ
पहरे – निगरानी, सुरक्षा
हुंकृति – हुँकार
ब्याली – सर्पिणी
गाली – अपमानजनक शब्द
संकट-सागर – कठनाईयों से भरा जीवन
मरने की, मदमाती – मौत को गले लगाने की चाहत
चमकीले गीत – क्रांति के प्रेरणादायक शब्द
तैराना – बहाना, फैलाना
व्याख्या- कवि कोयल से कहता है—”हे कोयल! तुम्हारा रंग काला है, आज की रात भी घनी काली है और ब्रिटिश शासन के अत्याचार भी उतने ही काले हैं।” मैं इस कारागार में चोरों और डाकुओं के बीच कैद हूँ, जिससे मेरे मन में भी भयावह और अंधकारमयी विचार उठ रहे हैं। मेरी जेल की कोठरी भी अंधेरे से भरी हुई है। मुझे जो कंबल ओढ़ने के लिए मिला है, वह भी काला है, और जो टोपी पहनने को दी गई है, वह भी काली है। मेरी बेड़ियाँ, जिससे मुझे बाँधकर रखा गया है, वे भी लोहे की काली जंजीरें हैं। इस अंधकारमय माहौल में, रात के समय पहरेदार की कठोर आवाज़ मुझे किसी जहरीले सर्प की फुफकार की तरह चुभती है। इसके अलावा, मुझे जेल के सिपाहियों की गालियाँ भी सहनी पड़ती हैं। यहाँ जीवन पूरी तरह से अशांत और तकलीफ़ से भरा हुआ है। “हे सखी कोयल! तुम इस जेल के इस घुटन भरे माहौल में क्यों चली आई हो? क्या तुम्हें यह एहसास नहीं कि यहाँ तुम्हारे प्राण भी सुरक्षित नहीं हैं?” तुम अपने मधुर स्वर से आनंद और आशा का संदेश देना चाहती हो, लेकिन इस जेल की कठोर दीवारों के बीच, यह स्वर फालतू चला जाएगा। यहाँ निराशा और पीड़ा के बीच, तुम्हारे गीतों का कोई असर नहीं होगा। इस अंधेरी रात में, इस कारागार में, तुम अपने मधुर स्वर से क्यों गा रही हो? “हे कोयल! मुझे अपने मुख से बताओ, तुम यहाँ क्यों आई हो? तुम्हारी इस पीड़ा भरी पुकार का क्या अर्थ है?”
5
तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली!
तेरा नभ-भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार!
तेरे गीत कहावें वाह,
रोना भी है मुझे गुनाह!
देख विषमता तेरी-मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी!
इस हुंकृति पर,
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ?
कोकिल बोलो तो!
मोहन के व्रत पर,
प्राणों के आसव किसमें भर दूँ!
कोकिल बोलो तो!
शब्दार्थ-
हरियाली – हरा-भरा वातावरण
डाली – पेड़ की शाखा
नसीब – भाग्य
कोठरी काली – अंधेरी जेल, कारागार
नभ – आकाश
संचार – गति, स्वतंत्रता
दस फुट का संसार – जेल की छोटी सी कोठरी, सीमित जीवन
गुनाह – अपराध
विषमता – असमानता, भेदभाव
रणभेरी – युद्ध का बिगुल, संघर्ष का आह्वान
कृति – कार्य, कर्म
मोहन – मोहनदास करमचंद गाँधी
व्रत – संकल्प
प्राणों के आसव – जीवन का सार, आत्मा
भर दूँ – समर्पित कर दूँ, अर्पण कर दूँ
व्याख्या- कवि कोयल से कहता है—”हे कोयल! तू कितनी भाग्यशाली है कि तुझे बैठने के लिए हरी-भरी डालियाँ मिली हैं, लेकिन मैं इस अंधेरी, घुटनभरी जेल की कोठरी में कैद हूँ।” तुझे उड़ने के लिए खुला आसमान मिला है, पर मैं इस दस फुट की संकरी कोठरी से बाहर भी नहीं निकल सकता। “जब तू गाती है, तो लोग आनंद से वाह-वाह करते हैं, लेकिन मेरा रोना भी किसी को पसंद नहीं आता। मेरी पीड़ा को कोई सुनना तक नहीं चाहता।” तू स्वतंत्र है, खुले आकाश में रहती है, और मैं परतंत्र हूँ, इस जेल का कैदी हूँ। “इतना सब कुछ जानने के बाद भी, तू इस अंधेरी रात में युद्ध और स्वतंत्रता का गीत गा रही है। बता, मैं क्या करूँ? मेरी विवशता को तू भी समझ रही है।” सोच, मैं इस कैद में रहकर कर भी क्या सकता हूँ? हाँ, तेरी प्रेरणा से मैं यहाँ बैठकर कविताएँ तो लिख ही रहा हूँ। “अब तू ही बता, मैं और क्या करूँ? किस दिशा में अपनी शक्ति लगाऊँ ताकि गांधीजी के स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दे सकूँ?” हे कोयल! तू ही मेरा मार्गदर्शन कर, मुझे बता !
Conclusion
इस पोस्ट में हमने ‘क़ैदी और कोकिला’ नामक कविता का सारांश, पाठ व्याख्या और शब्दार्थ को समझा। यह कविता कक्षा 9 हिंदी ‘अ’ के पाठ्यक्रम में शामिल क्षितिज पुस्तक से ली गई है। माखनलाल चतुर्वेदी द्वारा रचित यह कविता ब्रिटिश काल के शोषण और दमन को चित्रित करती है। इस पोस्ट को पढ़कर विद्यार्थी यह आसानी से समझ पाएंगे कि पाठ में किस विषय पर चर्चा की गई है। साथ ही, यह पोस्ट विद्यार्थियों को परीक्षाओं में प्रश्नों का सही तरीके से उत्तर देने में भी मददगार साबित होगी।