Rakt aur Hamara Sharir Summary, Explanation and Question Answers

 

Rakt aur Hamara Sharir Class 7 Hindi

 

NCERT Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 Book Chapter 6 Rakt Aur Hamara Sharir Summary, Explanation with Video and Question Answers

Rakt aur Hamara Sharir – NCERT Class 7 Hindi Vasant Bhag 2 book Chapter 6 Rakt Aur Hamara Sharir Summary and detailed explanation of lesson along with meanings of difficult words. Here is the complete explanation of the lesson, along with a summary and all the exercises, Question Answers are given at the back of the lesson. Take Free Online MCQs Test for Class 7.

 

 

इस लेख में हम हिंदी कक्षा 7 ” वसंत भाग – 2 ” के पाठ – 6 ” रक्त और हमारा शरीर ” पाठ के पाठ – प्रवेश , पाठ – सार , पाठ – व्याख्या , कठिन – शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर , इन सभी के बारे में चर्चा करेंगे –

 

 

कक्षा – 7 पाठ 6 रक्त और हमारा शरीर

 

लेखक परिचय

लेखक – यतीश अग्रवाल

Rakt aur Hamara Sharir Class 7 Video Explanation

 

पाठ प्रवेश (रक्त और हमारा शरीर)

” रक्त और हमारा शरीर ” पाठ ” यतीश अग्रवाल ” द्वारा रचित एक निबंध है। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने रक्त , रक्त के घटक , रक्त की कमी से उत्पन्न  होने वाली बीमारियों और उनकी रोकथाम के उपायों को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत पाठ संतुलित और पौष्टिक आहार का महत्त्व समझाता है। शारीरिक संरचना समझा कर हमें साफ – सफाई के लिए प्रेरित करता है। और अति महत्वपूर्ण रूप से हमें रक्त दान की प्रेरणा भी देता है। प्रस्तुत पाठ के माध्यम से लेखक ने रक्त की उपयोगिता पर , उसकी संरचना पर और रक्त किस तरह हमारे शरीर में कार्य करता है , इस पर प्रकाश डाला है। साथ ही साथ संतुलित व् पौष्टिक आहार खा कर एनीमिया जैसी बिमारी से बचा जा सकता है। पौष्टिक तत्वों से युक्त भोजन ही शरीर में रक्त निर्माण में सहायक होता है। यदि हम दूषित भोजन करेंगे और अशुद्ध जल का सेवन करेंगे तो हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता यानि रोगाणुओं से लड़ने की शक्ति भी कम हो जाएगी।

प्रस्तुत पाठ के द्वारा लेखक ख़ास तौर से पाठकों को एनीमिया के कारणों से परिचित कराने और उनसे बचने के उपायों पर प्रकाश डाल रहा है।


रक्त और हमारा शरीर पाठ सार

प्रस्तुत पाठ ” रक्त और हमारा शरीर ” में लेखक ने रक्त और हमारे शरीर के विषय में बहुत सी महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी है। लेखक दिव्या अनिल के बारे में बता रहा है कि दिव्या अनिल भाई – बहन है। दिव्या अनिल की छोटी बहन है। वैसे तो दिव्या पहले से ही कमजोर थी लेकिन कुछ दिनों से दिव्या को हर समय थकान महसूस होती रहती है। वैसे तो दिव्या को पहले भी कम ही भूख लगती थी परन्तु अब तो भूख पहले से भी कम हो गई है। उसकी स्थिति देख कर अनिल उसे अस्पताल ले गया। अस्पताल में जब दिव्या को डॉक्टर ने देखा तो उन्होंने कहा कि दिव्या के शरीर में खून की कमी हो गई है। पूरा पता करने के लिए डॉक्टर ने जाँच कराने को कहा। जब अनिल और दिव्या पास के कमरे में खून की जाँच कराने गए तो वहाँ अनिल को उसकी ही जान – पहचान की एक डॉक्टर दीदी दिखाई दी। अनिल ने डॉक्टर दीदी को बताया कि डॉक्टर ने दिव्या को खून की जाँच के लिए उनके पास भेजा है। इतना सुनते ही डॉक्टर दीदी ने दिव्या की उँगली से खून की कुछ बूँदें एक छोटी सी शीशी में डाल दीं और जाँच के लिए काँच पट्टिका पर लगा दीं। फिर वह अनिल से बोलीं कि वह कल अस्पताल से दिव्या के खून की जाँच का प्रतिवेदन ले जाए। डॉक्टर दीदी के कहे अनुसार अगले दिन अनिल अस्पताल पहुँच गया। जब डॉक्टर दीदी ने अनिल को बताया कि दिव्या को एनीमिया है तो अनिल के मन में एनीमिया के बारे में और जानने की इच्छा हुई। अनिल में डॉक्टर दीदी से पूछा कि एनीमिया से उनका क्या मतलब है ? अर्थात एनीमिया  क्या होता है ? डॉक्टर दीदी ने अनिल से कहा कि यह जानने के लिए अनिल को खून के बारे में सब कुछ जानना होगा , तभी वह जान सकता है कि एनीमिया क्या होता है ? फिर डॉक्टर दीदी अनिल को समझते हुए बोली कि  देखने में तो खून लाल तरल के समान दिखता है , किन्तु यदि इसे सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखें तो यह बहुत तरह की वस्तुओं से भरे हुए पिटारे से कम नहीं लगता। इसमें बहुत सरे छोटे – छोटे पदार्थ मिले होते हैं जिन्हें खुली आँखों से देख पाना असंभव होता है। डॉक्टर दीदी कहती  है कि मोटेतौर पर इसके दो भाग होते हैं। एक भाग वह जो तरल है, जिसे हम प्लाज्मा कहते हैं। दूसरा , वह जिसमें छोटे – बड़े कई तरह के कण होते हैं , इन कणों में कुछ कण लाल , कुछ कण सफेद और कुछ कण ऐसे भी होते हैं जिनका कोई रंग नहीं होता , जिन कणों का कोई रंग नहीं होता उन्हें बिंबाणु ( प्लेटलैट कण ) कहते हैं। ये कण प्लाज्मा में तैरते रहते हैं। अनिल को और अच्छे से समझने के लिए डॉक्टर दीदी ने सूक्ष्मदर्शी यंत्र के नीचे एक काँच पटिका लगाई , उसे फोकस किया और अनिल से बोलीं कि देखो सूक्ष्मदर्शी द्वारा जो कण तुम्हें दिखाई दे रहे हैं , ये हैं लाल रक्त – कण। काँच पटिका पर खून की बून्द को देख कर अनिल मानो हैरानी से उछल पड़ा था ! अर्थात अनिल बहुत अभिक हैरान हो गया था। हैरान हो कर अनिल ने डॉक्टर दीदी से पूछा कि खून की एक बूँद में इतने सारे कण ! एक बून्द में इतने सरे कण होंगे इसकी तो अनिल कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था। उन कणों को देख कर अनिल बोला कि इन्हें देखकर तो ऐसा लग रहा है , मानो बहुत सी छोटी – छोटी बालूशाही ( मैदे की बनी एक प्रसिद्ध मिठाई ) रख दी गई हों। डॉक्टर दीदी यह भी बताती है कि यदि हम एक मिलीमीटर रक्त लें तो उसमें हमें चालीस से पचपन लाख कण मिलेंगे। इनकी इतनी संख्या के कारण ही हमें खून लाल रंग का नजर आता है। ये कण शरीर के लिए दिन – रात काम करते हैं। डॉक्टर दीदी अनिल को यह भी बताती है कि साँस लेने पर साफ़ हवा से जो ऑक्सीजन हम प्राप्त करते हैं , उसे शरीर के हर हिस्से में पहुँचाने का काम इन कणों का ही होता है। अर्थात ऑक्सीजन को शरीर के हर हिस्से तक पहुँचने का काम लाल रक्त कणों का ही होता है। इन लाल रक्त कणों का जीवनकाल लगभग चार महीने होता है। चार महीने के होते – होते ये नष्ट हो जाते हैं , लेकिन ऐसा नहीं है कि ये लाल रक्त कण एक साथ ही नष्ट हो जाए, ये धीरे – धीरे कर के नष्ट होते हैं। जैसे कुछ लाल रक्त कण आज नष्ट हो जाएंगे , कुछ लाल रक्त कण कल नष्ट होंगे और  कुछ लाल रक्त कण उससे अगले दिन। इसी तरह ये क्रम चलता जाता है। अनिल परेशान हो कर बोला कि तब तो कुछ ही महीनों में ये खत्म हो जाते होंगे। अनिल की इस बात को सुनकर डॉक्टर दीदी मुसकरा उठीं और बोलीं कि नहीं , ऐसा कुछ नहीं होता। क्योंकि शरीर में हर समय नए कण बनते रहते हैं , जो नष्ट हुए कणों का स्थान ले लेते हैं। डॉक्टर दीदी ने अनिल को यह भी बताया कि हमारी हड्डियों के बीच के भाग में मज्जा ( शरीर के अंदर की नलीदार हड्डी के अंदर का गूदा ) होता है , इस मज्जा में ऐसे बहुत से कारखाने होते हैं जो रक्त कणों के निर्माण – कार्य में लगे रहते हैं। इन रक्त कणों के निर्माण के लिए इन कारखानों अर्थात मज्जा को प्रोटीन , लौहतत्त्व और विटामिन रूपी कच्चे माल की जरुरत होती है।  डॉक्टर दीदी अनिल से पूछती है कि क्या वह यह पौष्टिक आहार लेता है ? डॉक्टर दीदी पौष्टिक आहार के बारे में बताते हुए कहती है कि हरी सब्जी , फल , दूध , अंडा और गोश्त में ये तत्त्व उपयुक्त मात्रा में होते हैं। डॉक्टर दीदी कहती है कि यदि कोई व्यक्ति उचित आहार ग्रहण नहीं करता है , तो इन कारखानों को आवश्यकतानुसार कच्चा माल नहीं मिल पाता। अर्थात यदि कोई व्यक्ति उचित आहार नहीं खाता है , तो रक्त कणों को बनाने के लिए आवश्यकता के अनुसार पौषक तत्व नहीं मिल पाते। इसका परिणाम  यह होता है कि रक्त – कण बन नहीं पाते और शरीर में रक्त में इनकी कमी हो जाती है। लाल कणों की इसी कमी को एनीमिया कहते हैं। अनिल डॉक्टर दीदी से बोला कि उन्होंने उसे बताया था कि खून में सफ़ेद रक्त कण और बिंबाणु ( प्लेटलैट कण ) भी होते हैं , अनिल जानना चाहता था कि हमारे शरीर में सफ़ेद रक्त कण और बिंबाणु ( प्लेटलैट कण ) का क्या काम है ? अनिल के प्रश्नों को सुन के डॉक्टर दीदी ने अनिल  से कहा कि सफ़ेद रक्त कण वास्तव में हमारे शरीर के वीर सिपाही हैं। जब रोगाणु हमारे शरीर पर हमला करने की कोशिश करते हैं तो सफ़ेद रक्त कण उनसे डटकर मुकाबला करते हैं और जहाँ तक संभव हो पाता है रोगाणुओं को भीतर घर नहीं करने देते। और बिंबाणुओं के कार्य को समझाती हुई डॉक्टर दीदी कहती है कि जब हमें चोट लगती है और चोट लगने पर खून बहने लगता है तब बिंबाणु खून को जमाने की क्रिया में मदद करता है। सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सफ़ेद रक्त कण बामारी फैलाने वाले कीटाणुओं को हमारे शरीर में घुसने से रोकने वाले सिपाहियों की भूमिका निभाते हैं और बहुत से रोगों से हमारे शरीर की रक्षा करते हैं। और  बिंबाणु , जब हमें चोट लगती है और चोट लगने पर खून बहने लगता है तब बिंबाणु खून को जमाने की क्रिया में मदद करता है। अनिल डॉक्टर दीदी से पूछता है कि ज़ख़्म गहरा हो तब तो खून बहता ही चला जाता है। उसे कैसे रोका जा सकता है ? अनिल के प्रश्न का उत्तर देते हुए डॉक्टर दीदी कहती है कि यदि किसी को बहुत गहरी चोट लगी हो और खून रुक ही न रहा हो तो ऐसे समय में उस व्यक्ति को जल्दी से डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। अगर डॉक्टर को जरूरत महसूस हुई तो ऐसी स्थिति से निपटने के लिए कुछ टाँके भी लगाने पड़ सकते हैं , डॉक्टर दीदी और भी समझते हुए कहती है कि यह ध्यान रखना चाहिए कि डॉक्टर के पास पहुँचने तक के समय में चोट के स्थान पर कसकर एक साफ़ कपड़ा बाँध देना चाहिए , इससे चोट पर दबाव पड़ेगा और दबाव पड़ने से रक्त का बहना कम हो जाता है , जो उस व्यक्ति के लिए काफी लाभ दायक सिद्ध हो सकता है। डॉक्टर दीदी यह भी कहती है कि अगर बहुत अधिक रक्त बह जाए तो उस व्यक्ति को खून चढ़ाने की आवश्यकता भी पड़ सकती है क्योंकि ज्यादा खून बह जाने से उस व्यक्ति के शरीर में खून की कमी हो जाती है। डॉक्टर दीदी की बात सुन कर अनिल ने कहा कि क्या ऐसे समय में किसी भी व्यक्ति का खून काम आ सकता है ? डॉक्टर दीदी  अनिल को समझते हुई बोली कि हर किसी का रक्त एक – सा नहीं होता। कुछ विशेष गुणों के आधार पर खून को चार मुख्य वर्गों में बाँट दिया गया है। जिस व्यक्ति को खून की जरुरत होती है उस व्यक्ति के खून की पहले जाँच की जाती है कि उस व्यक्ति का कौन सा रक्त – समूह है उस के बाद उसे उसी रक्त – समूह का रक्त चढ़ाया जाता है। अनिल डॉक्टर दीदी से पूछता है कि यदि कभी जरूरत के  समय एक सामान रक्त – समूह वाले  कोई व्यक्ति मिले ही नहीं तब क्या किया जाता है ? डॉक्टर दीदी ने अनिल से कहा कि यदि कभी ऐसी अचानक आई हुई संकट की स्थिति  है तो उसके लिए ही ब्लड – बैंक बनाए गए हैं। प्रायः हर बड़े अस्पताल में इस तरह के बैंक होते हैं , जहाँ पर पहले से ही सभी प्रकार के रक्त – समूहों का रक्त तैयार रखा जाता है। किन्तु इन ब्लड – बैंकों में रक्त का भंडार सुरक्षित रहे , इसके लिए यह आवश्यक है कि हम समय – समय पर रक्तदान करते रहें। कहने का तात्पर्य यह है कि जो भी अस्पतालों में ब्लड – बैंक हैं , उनमें रक्त के भण्डार खाली न हों इसके लिए सभी को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए समय – समय पर रक्त दान करते रहना चाहिए , इससे जिस किसी को भी आवश्यकता के समय रक्त नहीं मिल रहा होगा वह ब्लड – बैंक से संपर्क कर के रक्त ले पाएगा और जरूरतमंद की सहायता हो पाएगी। डॉक्टर दीदी की बात सुनकर अनिल ने बड़े उत्साह के साथ पूछा कि क्या वह भी रक्तदान कर सकता है।व्याख्या – लेखक कहता है कि जब अनिल ने डॉक्टर दीदी से पूछा कि क्या वह भी रक्त दान कर सकता है तो डॉक्टर दीदी ने उसे मना करते हुए कहा कि नहीं , अभी वह रक्त दान करने के लिए छोटा है। डॉक्टर दीदी ने अनिल को समझते हुए बताया कि केवल अठ्ठारह वर्ष से अधिक उम्र के स्वस्थ व्यक्ति ही रक्तदान कर सकते हैं। और एक समय में उनसे लगभग 300 मिलीलिटर खून ही लिया जाता है। रक्त दान के बारे में फैले मिथ्या को दूर करते हुए डॉक्टर दीदी कहती है कि प्रायः यह समझा जाता है कि रक्तदान करने से कमजोरी हो जाती है , किन्तु ऐसा सोचना बिलकुल बेबुनियाद है। क्योंकि हमारा शरीर इतना खून तो कुछ ही दिनों में बना लेता है। और वैसे भी हमारे शरीर में लगभग पाँच लीटर खून होता है। इसमें से यदि कुछ खून किसी जरूरतमंद व्यक्ति के लिए जीवन – दान बन जाए तो इससे बड़ी बात क्या होगी ! कहने का तात्पर्य यह है कि रक्त दान करने से कोई कमजोरी नहीं आती है और न ही किसी तरह से शरीर को नुक्सान  होता है। इसलिए हमें बिना किसी फजूल की बात पर ध्यान दिए समय – समय पर रक्त दान करते रहना चाहिए। ताकि कोई भी  खून की कमी पड़ने के कारण अपनी जान न गवाए। डॉक्टर दीदी की बात सुन कर अनिल ने बड़ी जिम्मेदारी के साथ कहा कि फिर तो बड़ा होने पर वह भी नियमित रूप से रक्तदान किया करेगा। अनिल की ऐसी बात सुन कर डॉक्टर दीदी ने अनिल की पीठ ठोकते हुए उसे शाबाशी दी।


रक्त और हमारा शरीर पाठ व्याख्या

पाठ – दिव्या अनिल की छोटी बहन है। यों तो वह शुरू से ही कमजोर है , लेकिन इधर कुछ दिनों से उसे हर समय थकान महसूस होती रहती है। मन किसी काम में नहीं लगता , भूख भी पहले से कम हो गई है। अस्पताल में उसे डॉक्टर ने देखा तो कहा , “लगता है , दिव्या के शरीर में रक्त की कमी हो गई है। जाँच कराकर देखते हैं। ” यह कहकर उन्होंने दिव्या को रक्त की जाँच के लिए पास के एक कमरे में भेज दिया। वहाँ अनिल को अपनी ही जान – पहचान की डॉक्टर दीदी दिखाई दीं।

कठिन शब्द –  
यों तो – वैसे तो
रक्त – खून

नोट – इस गद्यांश में लेखक बता रहा है कि रक्त की कमी के कारण हर समय थकान महसूस होती रहती है। मन किसी काम में नहीं लगता , भूख भी कम हो जाती है।

व्याख्या – लेखक दिव्या अनिल के बारे में बता रहा है कि दिव्या अनिल भाई – बहन है। दिव्या अनिल की छोटी बहन है। लेखक कहता है की वैसे तो दिव्या पहले से ही कमजोर बहुत है , लेकिन कुछ दिनों से दिव्या को हर समय थकान महसूस होती रहती है। अर्थात दिव्या जब भी कोई काम करती है वह जल्दी ही थक जाती है। उसका किसी भी काम को करने का मन नहीं करता , लेखक कहता है कि वैसे तो दिव्या को पहले भी कम ही भूख लगती थी परन्तु अब तो भूख पहले से भी कम हो गई है। उसकी स्थिति देख कर अनिल उसे अस्पताल ले गया। अस्पताल में जब दिव्या को डॉक्टर ने देखा तो उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि दिव्या के शरीर में खून की कमी हो गई है। पूरा पता करने के लिए डॉक्टर ने जाँच कराने को कहा , ताकि उन्हें सही जानकारी हो सके कि दिव्या को क्या परेशानी है। जाँच का आदेश देने के बाद डॉक्टर ने दिव्या को खून की जाँच के लिए पास के एक कमरे में भेज दिया। जब अनिल और दिव्या पास के कमरे में खून की जाँच कराने गए तो वहाँ अनिल को उसकी ही जान – पहचान की एक डॉक्टर दीदी दिखाई दी।

पाठ –  डॉक्टर दीदी ने कहा , ” कहो अनिल , कैसे आना हुआ ? ”
अनिल ने बताया कि डॉक्टर ने दिव्या को खून की जाँच के लिए आपके पास भेजा है।
इतना सुनते ही डॉक्टर दीदी ने दिव्या की उँगली से रक्त की कुछ बूँदें एक छोटी सी शीशी में डाल दीं और स्लाइड पर लगा दीं। फिर अनिल से बोलीं , ” अनिल , तुम कल अस्पताल से रिपोर्ट ले जाना। ”
अगले दिन अस्पताल पहुँचकर अनिल ने डॉक्टर दीदी के कमरे के  दरवाजे पर दस्तक दी। भीतर से आवाज आई , ” आ जाओ। ”
अनिल ने कमरे में प्रवेश किया तो पाया , डॉक्टर दीदी सूक्ष्मदर्शी द्वारा एक स्लाइड की जाँच कर रही थीं। दीदी के इशारे से वह पास रखी एक कुरसी पर बैठ गया। स्लाइड की जाँच पूरी होने पर डॉक्टर दीदी ने साबुन से हाथ धोए और तौलिए से पोंछती हुई बोलीं , ” अनिल , दिव्या को एनीमिया है। चिंता की बात नहीं , कुछ दिन दवा लेगी तो ठीक हो जाएगी। “

कठिन शब्द –
स्लाइड – काँच पट्टिका
रिपोर्ट – कार्य विवरण , विवरण , प्रतिवेदन
दस्तक – हाथ का हल्का आघात , दरवाज़ा खटखटाना
एनीमिया – एनीमिया एक तरह की बीमारी है। जो रक्त की कमी से पीड़ित व्यक्ति को शरीर में लाल रक्त कोशिकाएं व और हीमोग्लोबिन की कमी से होती है। हीमोग्लोबिन रक्त की कोशिकाओं के लिए ऑक्सीजन आबद्ध करने के लिए आवश्यक होता है।

नोट – इस गद्यांश में लेखक डॉक्टर दीदी द्वारा अनिल को , दिव्या को एनीमिया से से ग्रस्त होने की बात बताने का वर्णन कर  रहा है। 

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब अनिल और दिव्या खून की जाँच करवाने दूसरे कमरे में गए तो वहाँ अपनी जान पहचान की डॉक्टर दीदी को पाया। डॉक्टर दीदी ने उनको देखा और कहा कि कहो अनिल , अस्पताल कैसे आना हुआ ? कहने का तात्पर्य यह है कि डॉक्टर दीदी उनके अस्पताल आने का कारण जानना चाहती थी। अनिल ने डॉक्टर दीदी को बताया कि डॉक्टर ने दिव्या को खून की जाँच के लिए उनके पास भेजा है। इतना सुनते ही डॉक्टर दीदी ने दिव्या की उँगली से खून की कुछ बूँदें एक छोटी सी शीशी में डाल दीं और जाँच के लिए काँच पट्टिका पर लगा दीं। फिर वह अनिल से बोलीं कि वह कल अस्पताल से दिव्या के खून की जाँच का प्रतिवेदन ले जाए। डॉक्टर दीदी के कहे अनुसार अगले दिन अनिल अस्पताल पहुँच गया और अस्पताल पहुँचकर अनिल ने डॉक्टर दीदी के कमरे के दरवाजे को हल्का खटखटाया। अंदर से आवाज आई कि अंदर आ जाओ। जब अनिल कमरे के अंदर गया तो  उसने देखा कि डॉक्टर दीदी सूक्ष्मदर्शी यंत्र की सहायता से एक काँच पट्टिका की जाँच कर रही थीं। दीदी के इशारे से अनिल वही पास में रखी हुई एक कुरसी पर बैठ गया। काँच पट्टिका की जाँच पूरी होने पर डॉक्टर दीदी ने साबुन से हाथ धोए और तौलिए से पोंछती हुई अनिल से बोलीं कि अनिल , दिव्या को एनीमिया ( रक्त की कमी ) है। इसके साथ ही डॉक्टर दीदी अनिल से कहती हैं कि चिंता की कोई बात नहीं है , दिव्या कुछ दिन दवा लेगी तो ठीक हो जाएगी।

पाठ – अनिल के मन में जिज्ञासा हुई , वह बोला , ” दीदी , एक सवाल पूछूँ ? ”
” हाँ , हाँ , क्यों नहीं ” , डॉक्टर दीदी ने कहा।
” एनीमिया से आपका क्या मतलब है दीदी ? ” उसने पूछा।
” यह जानने के लिए तुम्हें रक्त के बारे में जानना होगा , ” डॉक्टर दीदी ने कहा। फिर बोलीं , ” अनिल , देखने में रक्त लाल द्रव के समान दिखता है , किन्तु
इसे सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखें तो यह भानुमती के पिटारे से कम नहीं। मोटेतौर पर इसके दो भाग होते हैं। एक भाग वह जो तरल है, जिसे हम प्लाज्मा कहते हैं। दूसरा , वह जिसमें छोटे – बड़े कई तरह के कण होते हैं … कुछ लाल , कुछ सफेद और कुछ ऐसे जिनका कोई रंग नहीं , जिन्हें बिंबाणु ( प्लेटलैट कण ) कहते हैं। ये कण प्लाज्मा में तैरते रहते हैं। ” इतना कहकर डॉक्टर दीदी ने सूक्ष्मदर्शी के नीचे एक स्लाइड लगाई , उसे फोकस किया और बोलीं , ” देखो अनिल , सूक्ष्मदर्शी द्वारा जो कण तुम्हें दिखाई दे रहे हैं , ये हैं लाल रक्त – कण। “

कठिन शब्द –
जिज्ञासा – जानने की इच्छा
द्रव – तरल , गीला , आर्द्र , तर , द्रव पदार्थ , आसव
भानमती का पिटारा ( मुहावरा ) – बहुत तरह की वस्तुओं से भरा हुआ पिटारा , भाँति – भाँति की चीज़ों वाला पात्र

नोट – इस गद्यांश में लेखक डॉक्टर दीदी द्वारा दी जा रही खून के बारे  में जानकारी का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब डॉक्टर दीदी ने अनिल को बताया कि दिव्या को एनीमिया है तो अनिल के मन में एनीमिया के बारे में और जानने की इच्छा हुई और वह डॉक्टर दीदी बोला कि क्या वह  उनसे एक सवाल पूछ सकता है ? उसकी बात सुनकर डॉक्टर दीदी ने हामी भरते हुए कहा कि वो अपने प्रश्न पूछ सकता है। अनिल में डॉक्टर दीदी से पूछा कि एनीमिया से उनका क्या मतलब है ? अर्थात एनीमिया  क्या होता है ? डॉक्टर दीदी ने अनिल से कहा कि यह जानने के लिए अनिल को खून के बारे में सब कुछ जानना होगा , तभी वह जान सकता है कि एनीमिया क्या होता है ? फिर डॉक्टर दीदी अनिल को समझते हुए बोली कि अनिल , देखने में तो खून लाल तरल के समान दिखता है , किन्तु यदि इसे सूक्ष्मदर्शी द्वारा देखें तो यह बहुत तरह की वस्तुओं से भरे हुए पिटारे से कम नहीं लगता। कहने का तात्पर्य यह है कि खून केवल लाल रंग का तरल पदार्थ नहीं है , इसमें बहुत सरे छोटे – छोटे पदार्थ मिले होते हैं जिन्हें खुली आँखों से देख पाना असंभव होता है। डॉक्टर दीदी कहती  है कि मोटेतौर पर इसके दो भाग होते हैं। एक भाग वह जो तरल है, जिसे हम प्लाज्मा कहते हैं। दूसरा , वह जिसमें छोटे – बड़े कई तरह के कण होते हैं , इन कणों में कुछ कण लाल , कुछ कण सफेद और कुछ कण ऐसे भी होते हैं जिनका कोई रंग नहीं होता , जिन कणों का कोई रंग नहीं होता उन्हें बिंबाणु ( प्लेटलैट कण ) कहते हैं। ये कण प्लाज्मा में तैरते रहते हैं। अनिल को और अच्छे से समझने के लिए डॉक्टर दीदी ने सूक्ष्मदर्शी यंत्र के नीचे एक काँच पटिका लगाई , उसे फोकस किया और अनिल से बोलीं कि देखो अनिल , सूक्ष्मदर्शी द्वारा जो कण तुम्हें दिखाई दे रहे हैं , ये हैं लाल रक्त – कण।   

पाठ – स्लाइड देख , मानो आश्चर्य से उछल पड़ा था अनिल ! रक्त की एक बूँद में इतने सारे कण ! इसकी तो वह कल्पना भी नहीं कर सकता था। वह बोला , ” इन्हें देखकर तो ऐसा लग रहा है , मानो बहुत सी छोटी – छोटी बालूशाही रख दी गई हों। ”
” हाँ ” , दीदी बोलीं , ” लाल कण बनावट में बालूशाही की तरह ही होते हैं। गोल और दोनों तरफ अवतल , यानी बीच में दबे हुए। रक्त की एक बूँद में इनकी संख्या लाखों में होती है। यदि हम एक मिलीमीटर रक्त लें तो उसमें हमें चालीस से पचपन लाख कण मिलेंगे। इनके कारण ही हमें रक्त लाल रंग का नजर आता है। ये कण शरीर के लिए दिन – रात काम करते हैं। साँस लेने पर साफ़ हवा से जो ऑक्सीजन तुम प्राप्त करते हो उसे शरीर के हर हिस्से में पहुँचाने का काम इन कणों का ही है। इनका जीवनकाल लगभग चार महीने होता है। चार महीने के होते – होते ये नष्ट हो जाते हैं , लेकिन एक साथ नहीं , धीरे – धीरे। कुछ आज , कुछ कल , कुछ उससे अगले दिन …। “

कठिन शब्द –
आश्चर्य – हैरानी
बालूशाही – मैदे की बनी एक प्रसिद्ध मिठाई
अवतल – नतोदर , बीच में दबा हुआ या गहरा

नोट – इस गद्यांश में लेखक डॉक्टर दीदी द्वारा दी गई रक्त की जानकारी का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब डॉक्टर दीदी ने अनिल को काँच पटिका पर खून की एक बून्द को फोकस  कर के दिखाया तो काँच पटिका पर खून की बून्द को देख कर अनिल मानो हैरानी से उछल पड़ा था ! अर्थात अनिल बहुत अभिक हैरान हो गया था। हैरान हो कर अनिल ने डॉक्टर दीदी से पूछा कि खून की एक बूँद में इतने सारे कण ! एक बून्द में इतने सरे कण होंगे इसकी तो अनिल कभी कल्पना भी नहीं कर सकता था। उन कणों को देख कर अनिल बोला कि इन्हें देखकर तो ऐसा लग रहा है , मानो बहुत सी छोटी – छोटी बालूशाही ( मैदे की बनी एक प्रसिद्ध मिठाई ) रख दी गई हों। अनिल की बात सुन कर डॉक्टर दीदी ने हामी भरते हुए कहा कि हाँ लाल कणों की बनावट बालूशाही की तरह ही होती हैं। जैसे बालूशाही गोल और दोनों तरफ अवतल , यानी बीच में दबी हुई होती है , उसी तरह के लाल रक्त कण भी गोल और दोनों तरफ अवतल , यानी बीच में दबे हुए होते हैं। रक्त की एक बूँद में इनकी संख्या लाखों में होती है। डॉक्टर दीदी यह भी बताती है कि यदि हम एक मिलीमीटर रक्त लें तो उसमें हमें चालीस से पचपन लाख कण मिलेंगे। इनकी इतनी संख्या के कारण ही हमें खून लाल रंग का नजर आता है। ये कण शरीर के लिए दिन – रात काम करते हैं। डॉक्टर दीदी अनिल को यह भी बताती है कि साँस लेने पर साफ़ हवा से जो ऑक्सीजन हम प्राप्त करते हैं , उसे शरीर के हर हिस्से में पहुँचाने का काम इन कणों का ही होता है। अर्थात ऑक्सीजन को शरीर के हर हिस्से तक पहुँचने का काम लाल रक्त कणों का ही होता है। इन लाल रक्त कणों का जीवनकाल लगभग चार महीने होता है। चार महीने के होते – होते ये नष्ट हो जाते हैं , लेकिन ऐसा नहीं है कि ये लाल रक्त कण एक साथ ही नष्ट हो जाए, ये धीरे – धीरे कर के नष्ट होते हैं। जैसे कुछ लाल रक्त कण आज नष्ट हो जाएंगे , कुछ लाल रक्त कण कल नष्ट होंगे और  कुछ लाल रक्त कण उससे अगले दिन। इसी तरह ये क्रम चलता जाता है।

पाठ –  ” तब तो कुछ ही महीनों में ये खत्म हो जाते होंगे ” , अनिल ने कहा। यह सुनकर डॉक्टर दीदी मुसकरा उठीं , बोलीं , ” नहीं , ऐसा नहीं होता। शरीर में हर समय नए कण बनते रहते हैं , जो नष्ट कणों का स्थान ले लेते हैं। हड्डियों के बीच के भाग मज्जा में ऐसे बहुत से कारखाने होते हैं जो रक्त कणों के निर्माण – कार्य में लगे रहते हैं। इनके लिए इन कारखानों को प्रोटीन , लौहतत्त्व और विटामिन रूपी कच्चे माल की जरुरत होती है। यह पौष्टिक आहार लेते हो ? हरी सब्जी , फल , दूध , अंडा और गोश्त में ये तत्त्व उपयुक्त मात्रा में होते हैं। यदि कोई व्यक्ति उचित आहार ग्रहण नहीं करता तो इन कारखानों को आवश्यकतानुसार कच्चा माल नहीं मिल पाता। नतीजा यह होता है कि रक्त – कण बन नहीं पाते , रक्त में इनकी कमी हो जाती है। लाल कणों की इसी कमी को एनीमिया कहते हैं। “

कठिन शब्द –
मज्जा – शरीर के अंदर की नलीदार हड्डी के अंदर का गूदा
गोश्त – माँस
नतीजा – परिणाम

नोट – इस गद्यांश में लेखक अनिल द्वारा पूछे प्रश्नों के डॉक्टर दीदी द्वारा दिए उत्तर का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब डॉक्टर दीदी ने अनिल को बताया कि लाल  कणों का जीवन काल लगभग चार महीनों का होता है और वो कुछ आज ,  कुछ कल और कुछ उस से अगले दिन नष्ट हो जाते हैं , तो अनिल परेशान हो कर बोला कि तब तो कुछ ही महीनों में ये खत्म हो जाते होंगे। अनिल की इस बात को सुनकर डॉक्टर दीदी मुसकरा उठीं और बोलीं कि नहीं , ऐसा कुछ नहीं होता। क्योंकि शरीर में हर समय नए कण बनते रहते हैं , जो नष्ट हुए कणों का स्थान ले लेते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे शरीर में हर समय लाल रक्त कण बनते रहते हैं , जब भी कोई लाल रक्त कण नष्ट हो जाता है तो नया बना लाल रक्त कण उसकी जगह ले लेता है। डॉक्टर दीदी ने अनिल को यह भी बताया कि हमारी हड्डियों के बीच के भाग में मज्जा ( शरीर के अंदर की नलीदार हड्डी के अंदर का गूदा ) होता है , इस मज्जा में ऐसे बहुत से कारखाने होते हैं जो रक्त कणों के निर्माण – कार्य में लगे रहते हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि मज्जा में ऐसे पोषक तत्व होते हैं जो रक्त कणों के निर्माण का कार्य करते रहते हैं और हमारे शरीर में रक्त कणों की कमी नहीं होने देते। इन रक्त कणों के निर्माण के लिए इन कारखानों अर्थात मज्जा को प्रोटीन , लौहतत्त्व और विटामिन रूपी कच्चे माल की जरुरत होती है।  डॉक्टर दीदी अनिल से पूछती है कि क्या वह यह पौष्टिक आहार लेता है ? डॉक्टर दीदी पौष्टिक आहार के बारे में बताते हुए कहती है कि हरी सब्जी , फल , दूध , अंडा और गोश्त में ये तत्त्व उपयुक्त मात्रा में होते हैं। डॉक्टर दीदी कहती है कि यदि कोई व्यक्ति उचित आहार ग्रहण नहीं करता है , तो इन कारखानों को आवश्यकतानुसार कच्चा माल नहीं मिल पाता। अर्थात यदि कोई व्यक्ति उचित आहार नहीं खाता है , तो रक्त कणों को बनाने के लिए आवश्यकता के अनुसार पौषक तत्व नहीं मिल पाते। इसका परिणाम  यह होता है कि रक्त – कण बन नहीं पाते और शरीर में रक्त में इनकी कमी हो जाती है। लाल कणों की इसी कमी को एनीमिया कहते हैं। यहाँ पर डॉक्टर दीदी अनिल को एनीमिया किसे कहते हैं और क्या कारण है कि एनीमिया हो जाता है , अनिल के इन प्रश्नों के उत्तर देती है।

पाठ – ” तो क्या संतुलित आहार लेने मात्रा से हम एनीमिया से बचे रह सकते हैं ? ” अनिल ने सवाल किया।
दीदी बोलीं , ” हाँ , यह कहना काफी हद तक सही होगा। यों तो एनीमिया बहुत से कारणों से हो सकता है , किन्तु  हमारे देश में इसका सबसे बड़ा कारण पौष्टिक आहार की कमी है। इसके अलावा इस रोग का एक और बड़ा कारण है पेट में कीड़ों का हो जाना। ये कीड़े प्रायः दूषित जल और खाद्य पदार्थों द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। अतः इनसे बचने के लिए यह आवश्यक है कि हम पूरी सफाई से बनाए गए खाद्य पदार्थ ही ग्रहण करें। भोजन करने से पूर्व अच्छी तरह से हाथ धो लें और साफ पानी ही पिएँ। और हाँ , अनिल एक किस्म के कीड़े भी हैं , जिनके अंडे जमीन की ऊपरी सतह में पाए जाते हैं। इन अंडों से उत्पन्न हुए लार्वे त्वचा के रास्ते शरीर में प्रवेश कर आँतों में अपना घर बना लेते हैं। इनसे बचने का सहज उपाय है कि शौच के लिए हम शौचालय का ही प्रयोग करें और इधर – उधर नंगे पैर न घूमें। “

कठिन शब्द –
दूषित – गंदे

नोट – इस गद्यांश में लेखक डॉक्टर दीदी द्वारा एनीमिया के कारणों की जानकारी देने का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब डॉक्टर दीदी अनिल बताती है कि पौष्टिक आहार लेने से शरीर में खून की कमी को दूर किया जा सकता है , तो अनिल डॉक्टर दीदी से पूछता है कि क्या केवल संतुलित आहार लेने मात्र से हम एनीमिया से बचे रह सकते हैं ? अर्थात अगर हम पौष्टिक आहार ले  तो क्या हमें कभी एनीमिया नहीं होगा ? अनिल के प्रश्न को सुन कर डॉक्टिर दीदी बोलीं कि  हाँ , यह कहना काफी हद तक सही होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि यह पूरी तरह से नहीं कहा जा सकता कि अगर आप पौष्टिक आहार लेते हैं तो आपको कभी एनीमिया नहीं हो सकता , पौष्टिक आहार लेने से मज्जा में पौष्टिक तत्वों की कमी नहीं होगी और वह आराम से शरीर की आवश्यकता के अनुसार रक्त तत्व बना पाएगा जिससे कहा जा सकता है कि पौष्टिक आहार लेने से आपके शरीर में एनीमिया होने की गुंजाइश कभी कम हो जाएगी। डॉक्टर दीदी बताती हैं कि वैसे तो एनीमिया बहुत से कारणों से हो सकता है , किन्तु  हमारे देश में इसका सबसे बड़ा कारण पौष्टिक आहार की कमी ही है। पौष्टिक आहार की कमी के अलावा इस रोग का एक और बड़ा कारण है , पेट में कीड़ों का हो जाना। डॉक्टर दीदी अनिल को जानकारी देते हुए बताती हैं कि ये पेट के कीड़े प्रायः गंदे पानी और खाद्य पदार्थों द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। ये कीड़े हमारे पेट में प्रवेश न करें इस के लिए इनसे बचने के लिए यह आवश्यक है कि हम पूरी सफाई से बनाए गए भोजन को ही ग्रहण करें। भोजन करने से पहले अच्छी तरह से हाथ धो लें और साफ पानी ही पिएँ। इससे इन कीड़ों के हमारे शरीर में प्रवेश करने की गुंजाइश न के बारबार हो जाती है। कीड़ों के बारे में जानकारी देते हुए डॉक्टर दीदी अनिल से कहती हैं कि अनिल एक किस्म के कीड़े ऐसे भी हैं , जिनके अंडे जमीन की ऊपरी सतह में पाए जाते हैं। और इन अंडों से उत्पन्न हुए लार्वे जब हमारी त्वचा के संपर्क में आते हैं और  हम बिना हाथों को धोए भोजन करते हैं तो ये लार्वे त्वचा के रास्ते शरीर में प्रवेश कर के हमारी आँतों में अपना घर बना लेते हैं। इनसे बचने का सहज उपाय यह है कि शौच के लिए हम शौचालय का ही प्रयोग करें और इधर – उधर नंगे पैर न घूमें। अर्थात हमें सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए और गन्दगी इधर – उधर नहीं फैलानी चाहिए।

पाठ –  ” दीदी , यह तो बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात बताई आपने ” , अनिल बोला। वह पलभर सेाच में डूबा रहा। फिर बोला , ” आपने बताया था कि रक्त में सफ़ेद कण और बिंबाणु ( प्लेटलैट कण ) भी होते हैं , शरीर में उनका क्या काम है ?
दीदी बोलीं , ” सफ़ेद कण वास्तव में हमारे शरीर के वीर सिपाही हैं। जब रोगाणु शरीर पर धावा बोलने की कोशिश करते हैं तो सफ़ेद कण उनसे डटकर मुकाबला करते हैं और जहाँ तक संभव हो पाता है रोगाणुओं को भीतर घर नहीं करने देते। बस , संक्षेप में यों मान लो कि वे बहुत से रोगों से हमारी रक्षा करते हैं। ”
” और बिंबाणुओं का काम है चोट लगने पर रक्त जमाव क्रिया में मदद करना। रक्त के तरल भाग प्लाश्मा में एक विशेष किस्म की प्रोटीन होती है जो रक्तवाहिका की कटी – फटी दीवार में मकड़ी के जाले के समान एक जाला बुन देती है। बिंबाणुओं इस जाले से चिपक जाते हैं और इस तरह दीवार में आई दरार भर जाती है , जिससे रक्त बाहर निकलना बंद हो जाता है। “

कठिन शब्द –
धावा बोलना ( मुहावरा ) –  हमला करना

नोट – इस गद्यांश में लेखक डॉक्टर दीदी द्वारा दी गई सफेद रक्त कण और बिंबाणुओं के हमारे शरीर में कार्य की दी गई जानकारी का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या – लेखक कहता है की डॉक्टर दीदी के द्वारा जब अनिल को बताया गया कि एनीमिया होने के क्या – क्या कारण हो सकते हैं और इनसे कैसे बचा जा  सकता है तो अनिल को यह जानकारी बहुत ही महत्त्वपूर्ण लगी और  इसके लिए उसने डॉक्टर दीदी को धन्यवाद भी कहा , फिर वह पलभर  के लिए किसी सेाच में डूबा रहा और फिर डॉक्टर दीदी से बोला कि उन्होंने उसे बताया था कि खून में सफ़ेद रक्त कण और बिंबाणु ( प्लेटलैट कण ) भी होते हैं , अनिल जानना चाहता था कि हमारे शरीर में सफ़ेद रक्त कण और बिंबाणु ( प्लेटलैट कण ) का क्या काम है ? अनिल के प्रश्नों को सुन के डॉक्टर दीदी ने अनिल  से कहा कि सफ़ेद रक्त कण वास्तव में हमारे शरीर के वीर सिपाही हैं। जब रोगाणु हमारे शरीर पर हमला करने की कोशिश करते हैं तो सफ़ेद रक्त कण उनसे डटकर मुकाबला करते हैं और जहाँ तक संभव हो पाता है रोगाणुओं को भीतर घर नहीं करने देते। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस तरह हमारे देश के सिपाही दुश्मनों को देश में घुसने नहीं  देते हैं उसी तरह सफ़ेद रक्त कण भी बामारी फैलाने वाले कीटाणुओं को हमारे शरीर में घुसने से रोकने वाले सिपाहियों की भूमिका निभाते हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि सफेद रक्त कण बहुत से रोगों से हमारे शरीर की रक्षा करते हैं। और बिंबाणुओं के कार्य को समझाती हुई डॉक्टर दीदी कहती है कि जब हमें चोट लगती है और चोट लगने पर खून बहने लगता है तब बिंबाणु खून को जमाने की क्रिया में मदद करता है। विस्तार में समझाते हुए डॉक्टर दीदी कहती है कि हमारे खून के तरल भाग प्लाश्मा में एक विशेष किस्म की प्रोटीन होती है जो रक्तवाहिका की कटी – फटी दीवार में मकड़ी के जाले के समान एक जाला बुन देती है। कहने का तात्पर्य यह है कि वह विशेष किस्म का प्रोटीन , जहाँ से चोट लगने के कारण रक्त वाहिकायें कट गई हैं और खून बह रहा है , वहाँ पर मकड़ी के जाले के समान एक जाला बुन देता है जिस में बिंबाणु चिपक जाते हैं और इस तरह रक्त वाहिकाओं में आई चोट भर जाती है , जिससे खून बाहर निकलना बंद हो जाता है। सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है कि सफ़ेद रक्त कण बामारी फैलाने वाले कीटाणुओं को हमारे शरीर में घुसने से रोकने वाले सिपाहियों की भूमिका निभाते हैं और बहुत से रोगों से हमारे शरीर की रक्षा करते हैं। और  बिंबाणु , जब हमें चोट लगती है और चोट लगने पर खून बहने लगता है तब बिंबाणु खून को जमाने की क्रिया में मदद करता है।

पाठ – अनिल बोला , ” दीदी , लेकिन घाव गहरा हो तब तो खून बहता ही चला जाता है। ”
” हाँ , ऐसे समय में उस व्यक्ति को जल्दी से डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। जरूरत समझने पर ऐसी स्थिति से निपटने के लिए कुछ टाँके भी लगाने पड़
सकते हैं , किन्तु डॉक्टर के पास पहुँचने तक के समय में चोट के स्थान पर कसकर एक साफ़ कपड़ा बाँध देना चाहिए। दबाव पड़ने से रक्त का बहना कम
हो जाता है , जो उस व्यक्ति के लिए काफी लाभप्रद सिद्ध हो सकता है। किन्तु अगर बहुत अधिक रक्त बह जाए तो उसे रक्त चढ़ाने की जरूरत भी पड़ सकती
है ” , दीदी ने समझाते हुए कहा।
अनिल ने कहा , ” क्या ऐसे समय में किसी भी व्यक्ति का खून काम आ सकता है ? ”
दीदी बोलीं , ” अनिल , हर किसी का रक्त एक – सा नहीं होता। कुछ विशेष गुणों के आधार पर रक्त को चार मुख्य वर्गों में बाँट दिया गया है। जरूरतमंद व्यक्ति के रक्त – समूह की जाँच करने के बाद उसे उसी रक्त – समूह का रक्त चढ़ाया जाता है। “

कठिन शब्द –
घाव – ज़ख़्म , क्षत , विकृत अंग
लाभप्रद – लाभ दायक

नोट – इस गद्यांश में लेखक डॉक्टर दीदी द्वारा अनिल को रक्त – समूह की जानकारी देने का वर्णन कर रहा है। 

व्याख्या – लेखक कहता है कि डॉक्टर दीदी द्वारा रक्त कणों की जानकारी हासिल करने के बाद अनिल को खून के बारे में और अधिक जानने की इच्छा हुई इसलिए वह डॉक्टर दीदी से बोला कि ज़ख़्म गहरा हो तब तो खून बहता ही चला जाता है। उसे कैसे रोका जा सकता है ? अनिल के प्रश्न का उत्तर देते हुए डॉक्टर दीदी कहती है कि यदि किसी को बहुत गहरी चोट लगी हो और खून रुक ही न रहा हो तो ऐसे समय में उस व्यक्ति को जल्दी से डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए। अगर डॉक्टर को जरूरत महसूस हुई तो ऐसी स्थिति से निपटने के लिए कुछ टाँके भी लगाने पड़ सकते हैं , डॉक्टर दीदी और भी समझते हुए कहती है कि यह ध्यान रखना चाहिए कि डॉक्टर के पास पहुँचने तक के समय में चोट के स्थान पर कसकर एक साफ़ कपड़ा बाँध देना चाहिए , इससे चोट पर दबाव पड़ेगा और दबाव पड़ने से रक्त का बहना कम हो जाता है , जो उस व्यक्ति के लिए काफी लाभ दायक सिद्ध हो सकता है। डॉक्टर दीदी यह भी कहती है कि अगर बहुत अधिक रक्त बह जाए तो उस व्यक्ति को खून चढ़ाने की आवश्यकता भी पड़ सकती है क्योंकि ज्यादा खून बह जाने से उस व्यक्ति के शरीर में खून की कमी हो जाती है। डॉक्टर दीदी की बात सुन कर अनिल ने कहा कि क्या ऐसे समय में किसी भी व्यक्ति का खून काम आ सकता है ? डॉक्टर दीदी  अनिल को समझते हुई बोली कि हर किसी का रक्त एक – सा नहीं होता। कुछ विशेष गुणों के आधार पर खून को चार मुख्य वर्गों में बाँट दिया गया है। जिस व्यक्ति को खून की जरुरत होती है उस व्यक्ति के खून की पहले जाँच की जाती है कि उस व्यक्ति का कौन सा रक्त – समूह है उस के बाद उसे उसी रक्त – समूह का रक्त चढ़ाया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी व्यक्तियों के खून को चार भागों में बाँटा गया है। जिसे खून की जरुरत होती है उसे उसी के जैसे खून को चढ़ाया जाता है किसी अन्य वर्ग के खून को नहीं।

पाठ – ” लेकिन  जरूरत के  समय यदि उस रक्त – समूह का कोई व्यक्ति मिले ही नहीं तब ? ” अनिल ने पूछा।
” ऐसी आपातस्थिति के लिए ही ब्लड – बैंक बनाए गए हैं। प्रायः हर बड़े अस्पताल में इस तरह के बैंक होते हैं , जहाँ , सभी प्रकार के रक्त – समूहों का रक्त तैयार रखा जाता है। किन्तु इन ब्लड – बैंकों में रक्त का भंडार सुरक्षित रहे , इसके लिए यह आवश्यक है कि हम समय – समय पर रक्तदान करते रहें ” , दीदी ने कहा।
” क्या मैं भी रक्तदान कर सकता हूँ? ” अनिल ने पूछा।

कठिन शब्द –
आपातस्थिति – अचानक आई हुई संकट की स्थिति , ( इमरजेंसी ) ,.गिरना , गिराव , ऐसी घटना या स्थिति जिसकी कल्पना या संभावना न हो

नोट – इस गद्यांश में लेखक डॉक्टर दीदी द्वारा अनिल को ब्लड – बैंक की जानकारी देने का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब अनिल को पता चलता है कि यदि किसी को जरुरत पड़ने पर खून चढ़ाना पड़े तो एक जैसे रक्त – समूह की आवश्यकता होती है किसी और रक्त – समूह का खून नहीं चढ़ा सकते तो अनिल डॉक्टर दीदी से पूछता है कि यदि कभी जरूरत के  समय एक सामान रक्त – समूह वाले  कोई व्यक्ति मिले ही नहीं तब क्या किया जाता है ? डॉक्टर दीदी ने अनिल से कहा कि यदि कभी ऐसी अचानक आई हुई संकट की स्थिति  है तो उसके लिए ही ब्लड – बैंक बनाए गए हैं। प्रायः हर बड़े अस्पताल में इस तरह के बैंक होते हैं , जहाँ पर पहले से ही सभी प्रकार के रक्त – समूहों का रक्त तैयार रखा जाता है। किन्तु इन ब्लड – बैंकों में रक्त का भंडार सुरक्षित रहे , इसके लिए यह आवश्यक है कि हम समय – समय पर रक्तदान करते रहें। कहने का तात्पर्य यह है कि जो भी अस्पतालों में ब्लड – बैंक हैं , उनमें रक्त के भण्डार खाली न हों इसके लिए सभी को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए समय – समय पर रक्त दान करते रहना चाहिए , इससे जिस किसी को भी आवश्यकता के समय रक्त नहीं मिल रहा होगा वह ब्लड – बैंक से संपर्क कर के रक्त ले पाएगा और जरूरतमंद की सहायता हो पाएगी। डॉक्टर दीदी की बात सुनकर अनिल ने बड़े उत्साह के साथ पूछा कि क्या वह भी रक्तदान कर सकता है।

पाठ –  ” नहीं , अभी तुम छोटे हो। अठ्ठारह वर्ष से अधिक उम्र के स्वस्थ व्यक्ति ही रक्तदान कर सकते हैं। एक समय में उनसे लगभग 300 मिलीलिटर रक्त ही लिया
जाता है। प्रायः यह समझा जाता है कि रक्तदान करने से कमशोरी हो जाएगी , किन्तु  यह विचार बिलकुल निराधार है। हमारा शरीर इतना रक्त तो कुछ ही दिनों में बना लेता है। वैसे भी शरीर में लगभग पाँच लीटर खून होता है। इसमें से यदि कुछ रक्त किसी जरूरतमंद व्यक्ति के लिए जीवन – दान बन जाए तो इससे बड़ी बात क्या होगी ! ” दीदी समझाते हुए बोलीं।
” फिर तो बड़ा होने पर मैं नियमित रूप से रक्तदान किया करूँगा ” , अनिल ने कहा।
” शाबाश , अनिल ! ” डॉक्टर दीदी ने अनिल की पीठ ठोकते हुए कहा।

कठिन शब्द –
निराधार – बिना आधार का , निराश्रय , बेबुनियाद , निर्मूल

नोट – इस गद्यांश में लेखक डॉक्टर दीदी द्वारा अनिल को और हम सभी को रक्त – दान करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए , रक्त दान से कमजोरी आने का मिथ्या दूर करने का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या – लेखक कहता है कि जब अनिल ने डॉक्टर दीदी से पूछा कि क्या वह भी रक्त दान कर सकता है तो डॉक्टर दीदी ने उसे मना करते हुए कहा कि नहीं , अभी वह रक्त दान करने के लिए छोटा है। डॉक्टर दीदी ने अनिल को समझते हुए बताया कि केवल अठ्ठारह वर्ष से अधिक उम्र के स्वस्थ व्यक्ति ही रक्तदान कर सकते हैं। और एक समय में उनसे लगभग 300 मिलीलिटर खून ही लिया जाता है। रक्त दान के बारे में फैले मिथ्या को दूर करते हुए डॉक्टर दीदी कहती है कि प्रायः यह समझा जाता है कि रक्तदान करने से कमशोरी हो जाती है , किन्तु ऐसा सोचना बिलकुल बेबुनियाद है। क्योंकि हमारा शरीर इतना खून तो कुछ ही दिनों में बना लेता है। और वैसे भी हमारे शरीर में लगभग पाँच लीटर खून होता है। इसमें से यदि कुछ खून किसी जरूरतमंद व्यक्ति के लिए जीवन – दान बन जाए तो इससे बड़ी बात क्या होगी ! कहने का तात्पर्य यह है कि रक्त दान करने से कोई कमजोरी नहीं आती है और न ही किसी तरह से शरीर को नुक्सान  होता है। इसलिए हमें बिना किसी फजूल की बात पर ध्यान दिए समय – समय पर रक्त दान करते रहना चाहिए। ताकि कोई भी  खून की कमी पड़ने के कारण अपनी जान न गवाए। डॉक्टर दीदी की बात सुन कर अनिल ने बड़ी जिम्मेदारी के साथ कहा कि फिर तो बड़ा होने पर वह भी नियमित रूप से रक्तदान किया करेगा। अनिल की ऐसी बात सुन कर डॉक्टर दीदी ने अनिल की पीठ ठोकते हुए उसे शाबाशी दी।


Rakt aur Hamara Sharir Question Answer (रक्त और हमारा शरीर प्रश्न-अभ्यास)

प्रश्न 1 – रक्त के बहाव को रोकने के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर – रक्त के बहाव को रोकने के लिए उस चोट के स्थान पर कसकर एक साफ़ कपड़ा बाँध देना चाहिए , इससे चोट पर दबाव पड़ेगा और दबाव पड़ने से रक्त का बहना कम हो जाता है , जो उस व्यक्ति के लिए काफी लाभ दायक सिद्ध हो सकता है। फिर घायल व्यक्ति को बिना देर किए जल्द ही डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।            

प्रश्न 2 – खून को ‘ भानुमती का पिटारा ’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर – ‘ भानुमती का पिटारा’ यह एक ऐसी लोकोक्ति है जिसका अर्थ है एक पिटारे में भाँति – भाँति की वस्तुएँ। यानि एक ऐसा डिब्बा जिसमें तरह – तरह की वस्तुएँ मौजूद हों। खून को भानुमती का पिटारा कहा गया है क्योंकि यदि सूक्ष्मदर्शी से खून की एक बूंद को जाँचा जाए तो उसमें लाखों की संख्या में लाल रक्त – कण मौजूद होते हैं , जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। इसके अलावा सफ़ेद कण व प्लेटलैट कण भी उसमें पाए जाते हैं। 

प्रश्न 3 – एनीमिया से बचने के लिए क्या – क्या खाना चाहिए ?
उत्तर – यह पूरी तरह से नहीं कहा जा सकता कि अगर आप पौष्टिक आहार लेते हैं तो आपको कभी एनीमिया नहीं हो सकता , पौष्टिक आहार लेने से मज्जा में पौष्टिक तत्वों की कमी नहीं होगी और वह आराम से शरीर की आवश्यकता के अनुसार रक्त तत्व बना पाएगा जिससे कहा जा सकता है कि पौष्टिक आहार लेने से आपके शरीर में एनीमिया होने की गुंजाइश कभी कम हो जाएगी। हमारे देश में इसका सबसे बड़ा कारण पौष्टिक आहार की कमी ही है। एनीमिया से बचने के लिए हमें पौष्टिक भोजन का सेवन करना चाहिए। मसलन हरी सब्जी , फल , दूध , अंडा और मांस का प्रयोग करना चाहिए। इनमें प्रोटीन , लौह तत्व और विटामिन काफ़ी मात्रा में मिलते हैं। ये रक्त के निर्माण में सहायक होते हैं , जिससे एनीमिया रोग होने का खतरा टल जाता है। 

प्रश्न 4 – पेट में कीड़े क्यों हो जाते हैं ? इनसे कैसे बचा जा सकता है ?
उत्तर – पेट में कीड़े दूषित जल और खाद्य पदार्थों द्वारा शरीर में प्रवेश करते हैं।ये कीड़े हमारे पेट में प्रवेश न करें इस के लिए इनसे बचने के लिए यह आवश्यक है कि हम पूरी सफाई से बनाए गए भोजन को ही ग्रहण करें। भोजन करने से पहले अच्छी तरह से हाथ धो लें और साफ पानी ही पिएँ। इससे इन कीड़ों के हमारे शरीर में प्रवेश करने की गुंजाइश न के बारबार हो जाती है। इसके अलावे नंगे पैर हमें नहीं घूमना चाहिए, क्योंकि कुछ कीड़े ऐसे हैं, जिनके अंडे जमीन की ऊपरी सतह में पाए जाते हैं। और इन अंडों से उत्पन्न हुए लार्वे जब हमारी त्वचा के संपर्क में आते हैं और  हम बिना हाथों को धोए भोजन करते हैं तो ये लार्वे त्वचा के रास्ते शरीर में प्रवेश कर के हमारी आँतों में अपना घर बना लेते हैं। इनसे बचने का सहज उपाय यह है कि शौच के लिए हम शौचालय का ही प्रयोग करें और इधर – उधर नंगे पैर न घूमें। अर्थात हमें सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए और गन्दगी इधर – उधर नहीं फैलानी चाहिए। 

प्रश्न 5 – रक्त के सफ़ेद कणों को ‘ वीर सिपाही ’ क्यों कहा गया है ?
उत्तर – रक्त के सफ़ेद कणों को वीर सिपाही इसलिए कहा गया है, क्योंकि ये हमारे शरीर की रक्षा करते हैं। ये रोग के कीटाणुओं को शरीर में घुसने नहीं देते उनसे डटकर मुकाबला करते हैं। जब रोगाणु हमारे शरीर पर हमला करने की कोशिश करते हैं तो सफ़ेद रक्त कण उनसे डटकर मुकाबला करते हैं और जहाँ तक संभव हो पाता है रोगाणुओं को भीतर घर नहीं करने देते। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस तरह हमारे देश के सिपाही दुश्मनों को देश में घुसने नहीं  देते हैं उसी तरह सफ़ेद रक्त कण भी बामारी फैलाने वाले कीटाणुओं को हमारे शरीर में घुसने से रोकने वाले सिपाहियों की भूमिका निभाते हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि सफेद रक्त कण बहुत से रोगों से हमारे शरीर की रक्षा करते हैं। 

प्रश्न 6 – ब्लड – बैंक में रक्तदान से क्या लाभ है ?
उत्तर – ब्लड – बैंक में दान दिए गए रक्त को सुरक्षित रूप में रखा जाता है। किसी भी व्यक्ति को रक्त की आवश्यकता पड़े तो उसके लिए किसी भी रक्त समूह को रक्त वहाँ से लिया जा सकता है। इन ब्लड – बैंकों में रक्त का भंडार सुरक्षित रहे , इसके लिए यह आवश्यक है कि हम समय – समय पर रक्तदान करते रहें। कहने का तात्पर्य यह है कि जो भी अस्पतालों में ब्लड – बैंक हैं , उनमें रक्त के भण्डार खाली न हों इसके लिए सभी को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए समय – समय पर रक्त दान करते रहना चाहिए , इससे जिस किसी को भी आवश्यकता के समय रक्त नहीं मिल रहा होगा वह ब्लड – बैंक से संपर्क कर के रक्त ले पाएगा और जरूरतमंद की सहायता हो पाएगी। इस प्रकार आपातकालीन स्थिति में जरूरतमंद व्यक्ति की जान बचाने में ब्लड – बैंक में किया हुआ रक्तदान काम आता है। 

प्रश्न 7 – साँस लेने पर शुद्ध वायु से जो ऑक्सीजन प्राप्त होती है , उसे शरीर के हर हिस्से में कौन पहुँचाता है ?
सफ़ेद कण
साँस नली
लाल कण
फेफड़े
उत्तर – साँस लेने पर शुद्ध वायु से जो ऑक्सीजन प्राप्त होती है , उसे शरीर के हर हिस्से में लाल रक्त कण पहुँचाता है।

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