Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke Summary, Explanation, Question Answers| Class 7 Hindi Chapter 1

 

Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke Class 7 Hindi Chapter 1

 

NCERT Class 7 Hindi V Chapter 1 Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke Summary, Explanation and Question Answers

Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke Class 7 Hindi chapter 1 detailed explanation along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary and all the exercises, Question and Answers given at the back of the lesson

इस लेख में हम  कक्षा – 7 की हिंदी की पाठ्य पुस्तक ” वसंत – भाग 2 ” के पाठ 1 “ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ” कविता का पाठ प्रवेश, पाठ सार, पाठ व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ ,  NCERT पुस्तक के अनुसार प्रश्नों पर चर्चा करेंगे |

कक्षा 7 पाठ 1 हम पंछी उन्मुक्त गगन के

 

 

कवि परिचय –

कवि  – शिवमंगल सिंह सुमन जी

Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke Class 7 Hindi Chapter 1 Video Explanation

 

 
 

पाठ प्रवेश ( हम पंछी उन्मुक्त गगन के ) –

‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता आज़ादी को पसंद करने वाले पक्षियों पर आधारित एक बहुत ही अद्भुत कविता है। कवि हमें पक्षियों के माध्यम से मनुष्य जीवन में आज़ादी का मूल्य बताना चाहता है। हम सभी जानते हैं कि आज़ादी से अधिक प्यारा कुछ भी नहीं होता है। पराधीनता किसी को भी पसंद नहीं होती। फिर चाहे वो इंसान हो या कोई पशु या पक्षी। इस कविता के माध्यम से कवि ने यही स्पष्ट करने की कोशिश की है कि गुलामी में भले ही आपको सभी सुख – सुविधाएँ क्यों न उपलब्ध हो और आजादी को जिन्दगी में भले ही कष्ट ही कष्ट क्यों न हो , फिर भी सभी आजादी को ही चुनना पसंद करेंगे। प्रस्तुत कविता में कवि ने पिंजरे में कैद पक्षियों की मनोदशा का वर्णन किया है।


 
 

हम पंछी उन्मुक्त गगन के पाठ सार SUMMARY

‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी की एक बहुत ही अद्भुत कविता है। इस कविता में कवि हमें पक्षियों के माध्यम से मनुष्य जीवन में आज़ादी का मूल्य बताना चाहता है। प्रस्तुत कविता में कवि पिंजरे में बंद पक्षी की व्यथा का वर्णन करते हुआ कहते हैं कि पक्षी खुले और आज़ाद आसमान में उड़ने वाले प्राणी हैं , पिंजरे के अंदर बंद होकर न तो वे खुशी से गाना गा पाएँगे और न ही खाना और पानी पी पाएँगे। आज़ाद होने की चाह में जब वे अपने नरम पंख फडफ़ड़ाएंगे तो पिंजरे की सोने की सलाखों से टकराकर उनके पंख टूट जाएँगे। पक्षियों को बहता हुआ पानी अर्थात नदियों , झरनों का पानी पीना पसंद है। उसके लिए पिंजरे में सोने की कटोरी में रखा हुआ पानी और मैदा को खाने से अच्छा वे भूखे – प्यासे मर जाएँगे क्योंकि उन्हें उस सोने की कटोरी में रखा हुआ पानी और मैदा से कहीं अच्छा नीम का कड़वा फल लगता है। क्योंकि वे उसे आजादी के साथ खा सकते हैं। सोने की जंजीरों से बने पिंजरे में बंद कर दिए जाने के कारण पक्षी अपनी उड़ने की कला और रफ़्तार , सब कुछ भूल गए हैं। अब तो वे केवल सपने में ही पेड़ों की ऊँची डालियों में झूला  झूल सकते हैं। इस पिंजरे में कैद होने से पहले पक्षी की इच्छा थी कि वह नीले आसमान की सीमा तक उड़ते चला जाए। वह अपनी सूरज की किरणों के जैसी लाल चोंच को खोल कर तारों के समान अनार के दानों को चुग लें। यह सब पक्षी की मात्र कल्पना है ,क्योंकि वह पिंजरों के बंधन में कैद है। कविता में पक्षी अपने मन की बात को हम तक पहुंचाने का प्रयास भी कर रहा है। वह कहता है की अगर वह आजाद होता तो क्षितिज को पार करने के लिए अपने प्राणों का त्याग करने से भी पीछे नहीं हटता। प्रस्तुत कविता में पक्षी उसे पिंजरे में कैद करने वाले व्यक्ति से प्रार्थना करता हुआ कहता है कि भले ही वह पक्षी को पेड़ पर टहनियों के घोसले में न रहने दें और चाहे उसके रहने के स्थान को भी नष्ट कर दे। परन्तु जब भगवान ने उसे पंख दिए है , तो उसकी उड़ान में रुकावट ना डाले।

सम्पूर्ण कविता का आशय यह है कि पक्षी को गुलामी में मिलने वाली सुख -सुविधाओं और देखभाल से कही अच्छी कठिन आजादी लग रही है। वह आजाद हो कर बहता पानी पीना चाहता है , कड़वा नीम का फल खाना चाहता है , क्षितिज तक अपने साथियों संग प्रतिस्पर्धा करना चाहता है। इसी कारण वह अंत में प्रार्थना कर रहा है कि यदि उसे भगवान् ने उड़ने के लिए पंख दिए हैं तो उसे खुले आसमान में आजादी के साथ उड़ने दिया जाए।


 
 

पाठ व्याख्या ( हम पंछी उन्मुक्त गगन के ) –

हम पंछी उन्‍मुक्‍त गगन के

पिंजरबद्ध न गा पाएँगे ,

कनक – तीलियों से टकराकर

पुलकित पंख टूट जाएँगे ।

शब्दार्थ –
पंछी – पक्षी
उन्मुक्त – आज़ाद , खुले
गगन – आसमान
पिंजरबद्ध – पिंजरे के अंदर बंद
कनक – सोना
तीलियाँ – सलाखें
पुलकित – प्रेम , हर्ष या खुशी आदि से गद्गद् रोमांचित , नरम

व्याख्या – कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में पिंजरे में बंद पक्षी अपनी व्यथा का वर्णन करते हुआ कहते हैं कि हम खुले और आज़ाद आसमान में उड़ने वाले पक्षी  हैं , हम पिंजरे के अंदर बंद होकर खुशी से गाना नहीं गा पाएँगे। आज़ाद होने की चाह में पंख फड़फड़ाने के कारण सोने की सलाखों से टकराकर हमारे नरम  पंख टूट जाएँगे।

भावार्थ – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पक्षी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि गुलामी में कभी भी कोई भी अपना काम ख़ुशी से नहीं कर सकता है। कनक – तीलियों से कवि का तात्पर्य सुख – सुविधाओं से है और कवि कहना चाहते हैं कि गुलामी में भले ही सारी सुख – सुविधाएँ हो फिर भी सभी आजादी को पाने का प्रयास करते रहते हैं।

हम बहता जल पीनेवाले

मर जाएँगे भूखे-प्‍यासे ,

कहीं भली है कटुक निबोरी

कनक – कटोरी की मैदा से ,

शब्दार्थ –
कटुक – कटु, कड़ुआ
निबोरी – नीम का फल
कनक – कटोरी – सोने की कटोरी

व्याख्या – कविता की प्रस्तुत पंक्तियों में पिंजरे में बंद पक्षी अपनी स्थिति से दुखी हो कर अपनी व्यथा का वर्णन करता हुआ कहता हैं कि हम पक्षी बहता हुआ जल पीने वाले प्राणी हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि पक्षियों को बहता हुआ पानी अर्थात नदियों , झरनों का पानी पीना पसंद है। पिंजरे में गुलामी का जीवन जीने से अच्छा तो पक्षी भूखे प्यासे मर जाना पसंद करेंगे। पक्षी कहता है कि उसके लिए पिंजरे में सोने की कटोरी में रखी हुई मैदा से कहीं अच्छा नीम का कड़वा फल है।

भावार्थ – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पक्षी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि पक्षियों को पिंजरे में भले ही सोने  की कटोरी में मैदा और पानी क्यों न दिया जाए , उस सोने  की कटोरी में मैदा और पानी की जगह पक्षी को नदियों , झरनों का पानी पीना और मैदा से कहीं अच्छा नीम का कड़वा फल लगता है। क्योंकि स्वतंत्रता से जीवन जीते हुए कष्टों को झेलना , गुलामी में सुख – सुविधाओं के मिलने से हज़ार गुना अच्छा है।

स्‍वर्ण – श्रृंखला के बंधन में

अपनी गति , उड़ान सब भूले ,

बस सपनों में देख रहे हैं

तरू की फुनगी पर के झूले।

शब्दार्थ –
स्वर्ण – श्रृंखला – सोने की जंजीर
गति – रफ़्तार
उड़ान – उड़ने की कला
तरु – पेड़
फुनगी – टहनियों
पर – पंख

व्याख्या – प्रस्तुत कविता की पंक्तियों में पक्षी अपने दुःख को हम सभी से साँझा करते हुए कहते हैं कि हमें सोने की जंजीरों से बने पिंजरे में बंद कर दिया गया है। जिसके कारण हम अपनी उड़ने की कला और रफ़्तार , सब कुछ भूल गए हैं। अब तो हम केवल सपने में ही देखते हैं कि हम पेड़ों की ऊँची डालियों में झूला  झूल रहे हैं।

भावार्थ – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पक्षी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि गुलामी के कारण पशु हो या हम मनुष्य सभी अपनी क़ाबलियत को धीरे – धीरे भूल जाते हैं और गुलामी के कारण स्वतंत्रता से कुछ भी करना केवल एक सपना रह जाता है।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते

नील गगन की सीमा पाने ,

लाल किरण – सी चोंच खोल

चुगते तारक – अनार के दाने।

शब्दार्थ –
अरमान – लालसा , इच्छा , कामना
गगन की सीमा – क्षितिज
तारक – आँख की पुतली , तारे के समान

व्याख्या – प्रस्तुत कविता की पंक्तियों में पिंजरे में कैद पक्षी अपनी कल्पना में खोए हुए पिंजरें की कैद में आने से पहले की अपनी सोच को हमारे सामने उजागर करते हुए कहते हैं कि हम इस पिंजरे में कैद होने से पहले हमारी इच्छा थी कि नीले आसमान की सीमा तक उड़ते चले जाएँ। अपनी सूरज की किरणों के जैसी लाल चोंच को खोल कर तारों के समान अनार के दानों को चुग लें। यह सब पक्षी की मात्र कल्पना है ,क्योंकि वह पिंजरों के बंधन में कैद है।

भावार्थ – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पक्षी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि पिंजरे में कैद पक्षी अपनी कल्पना में खोए हुए अपनी अधूरी इच्छओं को याद करके दुखी हो रहा है। भाव यह है कि गुलामी में रहता हुआ प्राणी अपनी स्वतंत्रता को कभी नहीं भूलता क्योंकि गुलामी किसी को पसंद नहीं होती।

होती सीमाहीन क्षितिज से

इन पंखों की होड़ा – होड़ी ,

या तो क्षितिज मिलन बन जाता

या तनती साँसों की डोरी।

शब्दार्थ –
सीमाहीन – जिसकी कोई सीमा नहीं है
क्षितिज – जहाँ धरती और आसमान मिलते हुए प्रतीत होते हैं
होड़ा – होड़ी – दूसरे के बराबर होने या दूसरे से बढ़ जाने का प्रयत्न
तनती साँसों को डोरी – प्राण पंखेरू उड़ जाना या प्राणों को न्योछावर करना

व्याख्या – प्रस्तुत कविता की पंक्तियों में पक्षी अपने मन की बात को हम तक पहुँचने की कोशिश करते हुए कहता है कि यदि हम आजाद होते तो जिसकी कोई सीमा नहीं है ऐसे आकाश की सीमा को पार करने के लिए दूसरे पक्षियों से बढ़ जाने का प्रयत्न करते रहते। पक्षी कहता है कि या तो हम क्षितिज तक पहुंच जाते या हमारी साँसे थम जाती। कहने का तात्पर्य यह है कि पक्षी क्षितिज को पार करने के लिए अपने प्राणों का त्याग करने को भी तैयार हैं।

भावार्थ – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पक्षी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि स्वतन्त्र प्राणी अपनी किसी भी इच्छा को पूरा करने के लिए किसी भी हद को पार कर सकता है किन्तु गुलामी में जीने वाला प्राणी केवल आजादी से कुछ भी करने के केवल स्वप्न ही देख सकता है।

नीड़ न दो , चाहे टहनी का

आश्रय छिन्‍न – भिन्‍न कर डालो ,

लेकिन पंख दिए हैं , तो

आकुल उड़ान में विघ्‍न न डालो।

शब्दार्थ –
नीड़ – घोसला
आश्रय – रहने के स्थान
छिन्न – भिन्न – नष्ट कर देना
आकुल –  बैचैन , परेशान
विघ्न – रुकावट

व्याख्या – प्रस्तुत कविता की पंक्तियों में पक्षी उसे पिंजरे में कैद करने वाले व्यक्ति से प्रार्थना करता हुआ कहता है कि भले ही हमें पेड़ पर टहनियों के घोसले में न रहने दो और चाहो तो हमारे रहने के स्थान को भी नष्ट कर डालो। परन्तु जब भगवान ने हमें पंख दिए है , तो हमारी बैचैन उड़ान में रुकावट ना डालो। कहने का तात्पर्य यह है कि पक्षी अपनी आजादी चाहता है और वह अपने आप को कैद करने वाले व्यक्ति को याद दिला रहा है कि वह एक पक्षी है और उड़ना उसका अधिकार है अतः उसे आजाद किया जाए।

भावार्थ – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ कविता में कवि शिवमंगल सिंह सुमन जी ने पक्षी के माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाया है। इन पंक्तियों में कवि स्पष्ट करना चाहते हैं कि भगवान् ने सभी प्राणियों को किसी न किसी विशेषता के साथ इस धरती पर भेजा है। जैसे पक्षियों की विशेषता है उड़ना। सभी को अपनी विशेषताओं के साथ जीने का अधिकार है। अतः किसी के भी मार्ग में विघ्न डालना उचित नहीं है।


 
 

Class 7 Chapter 1 Question Answers  (‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ प्रश्न अभ्यास )

प्रश्न 1 – हर तरह की सुख सुविधाएँ पाकर भी पक्षी पिंजरे में बंद क्यों नही रहना चाहते ?
उत्तर – पंछी को गुलामी की अपेक्षा स्वतंत्रता प्यारी है। पिंजरे में हर तरह की सुख – सुविधाएँ पाकर भी पक्षी पिंजरे में बंद इसलिए नहीं रहना चाहते क्योंकि पिंजरे में सुख – सुविधाएँ तो हैं किन्तु वे वहाँ बंधन में हैं , वो बहता पानी पी नहीं सकते , उड़ नहीं सकते , वो उन पंखों का इस्तेमाल नहीं कर सकते जो उनको भगवान् ने उड़ने के लिए दिए हैं। वो अपनी मर्जी से कोई भी वो कार्य नहीं कर सकते जो एक आजाद पंछी कर सकता है जैसे क्षितिज तक उड़ान नहीं भर सकते है, पेड़ के फल नहीं खा सकते , टहनियों पर बैठ कर झूला नहीं झूल सकते। वह पिंजरे में कैद होकर सोने की कटोरी में मैदा खाने की अपेक्षा नीम के कड़वे फल खाना ही पसंद करता है। कोई भी जीवन के अभावों में रहना पसंद करेगा न की बंधन में रहना। यही कारण है कि वह सुख – सुविधाएं पाकर भी अपनी स्वतंत्रता के बदले में पिंजरे में कैद होना नहीं चाहता है।

प्रश्न 2 – पक्षी उन्मुक्त रहकर अपनी कौन – कौन सी इच्छाएँ पूरी करना चाहते हैं ?
उत्तर – पक्षी उन्मुक्त रहकर गीत गाना चाहता है। स्वतन्त्र हो कर आकाश में उड़ना चाहता है। वह स्वतंत्र रहकर नदियों – झरनों का जल पीना चाहता है। पेड़ के फल खाना चाहता है। वृक्षों की डालियों पर बैठकर झुला झूलना चाहता है। अपने पंखों को पूर्णतः फैला कर सीमाहीन क्षितिज को छूना चाहता है। अपनी सूरज जैसी लाल चोंच से अनार के दाने चुगना चाहता है।

प्रश्न 3 – भाव स्पष्ट कीजिए –
या तो क्षितिज मिलन बन जाता / या तनती साँसों की डोरी।
उत्तर – इन पंक्तियों में पक्षी कहना चाहते हैं कि जब वे स्वतन्त्र हो कर आकाश की अंतहीन सीमा को प्राप्त करने के लिए उड़ान भरते तब या तो वे वहाँ तक पहुँच जाते या इस प्रतिस्पर्धा में वे अपने प्राण त्याग देते। अर्थात पक्षी स्वतन्त्र हो हर बहुत दूर दूर तक सफलता पूर्वक उड़ते और थक कर हांफने लगते पर हर हाल में खुश होते।


 

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